Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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PHTaal हायरीयादा वारा
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षष्ठ उपाङ्ग-चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र ।।
सदश चन्द्र प्रगति भूत्र-षष्ठ उपाङ्ग
जथइ नव गलिण कुवलय विगलियसयवत्थपतल दलत्थो ॥ वीरो गयंदमयंगल । प्रथम इष्टार्थ को सिद्धि के लिये मूत्रकर्ता इष्ट देवकी स्तवना करते हुए कहते हैं कि नविन विकसे हुवे नलिन, नीलोत्पल, सोपाखडी वाले, वगैरह कमल समान दीर्घ मनोहरकारी नेत्रों वाले और अपनी लीला सहित माता हुवा गजेन्द्रकी गति समान गति वाले भगवान महावीर स्वामी रागादि ओंको भविपने जीनते है. यहां पर काई प्रश्न करे कि रागादिश ओंकाजय होने से ही केवलज्ञानकीमा
और केवल ज्ञान की प्रापि होने से सत्र प्ररूपना हुइ तो यहां पर वर्तमान काल वाचक जयति भन्द का प्रयोग केस कहा ? उत्तर-पद्यपि जिनेश्वर ने सूत्र प्ररूाना के पूर्व ही रागादि शत्रुओं जीते । तपि जीतने का फल जो केवल ज्ञानादि गुनहैं वे वर्तमान काल में ही वर्त रहे हैं, इस तरह फल के उपना।"
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