Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
अर्थ |
HT एकादशमांग विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध art
manimarnmarnnnnnnnnnnnnnwww
पुरओ दंडएणं पगडिजमणे २ फुटहडाहडसीसे मच्छिया चडगर पहकरेणं अणिजमाणमग्गे मियागामे णयरे गिहेगिहे कालवडियाए वित्तिं कप्पमाणे विहरइ ॥१८॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए परिसानिग्गया॥१९॥ तएणं से विजए खत्तिए इमीसे कहाए लट्ठ समाण जहा कूणिए तहा णिग्गए जाव पज्जुवासइ ॥ २० ॥ तएणं से अंधे पुरिसे तं महाजणसइंच जाव सुणेता, तं पुरिसं एवं वयासी-किन्नं देवाणप्पिया! अजमियगामे इंदमहंतिश जाव निगच्छइ ?
॥ २१ ॥ तएणं से पुरिसे तं जाइ अंध पुरिसं एवं वयाती-णो खलु देवाणुप्पिया उस के पीछे २ मक्खीओं जाती थी, वह अन्ध उस मृगा ग्राम नगह में घरोघर भिक्षा के लिये दीनवृति से आजीविका करता हुवा विचरता था ॥ १८ ॥ उप काल उस समय में श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी पधारे चंदनपादाप बगीचे में यथा उचित अवग्रह ग्रहण कर विचरते थे, दर्शनार्थ परिषदा आई ॥ १९ ॥ तब उस" विजय क्षत्री राजा को भगवन्त पधारने की खबर लगी, जिस प्रकार कोणिक राजा भगवंत के दर्शन करने
आया था तैसे बह भी आया ॥ २० ॥ तब वह अन्ध पुरुष उन दर्शनार्थ जाते हुवे बहुत लोगों का शब्द मुनकर, चक्षुवाले पुरुष से यों कहने लगा-हे देवानुप्रिय ! आज मृगाग्राम नगर में क्या इन्द्रोत्सव यावत् जिम के लिये इतने पुरुष जाते हैं ? ॥ २१ ॥ तब वह चक्षुबाला पुरुप उप्त जाति अन्ध पुरुष से
दुःख विपाक का पहिला अध्ययन-मृगापुत्र का
।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org