Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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होत्था अहीणवण्णओ ॥ १५॥ तस्सणं विजयखत्तियस्स पुत्ते मियाएदेवीए अत्तए
मियापुत्तेणामं दार एहोत्था-जाइ अंधे, जाइए, जाइबहिरे, जाइपंगुले, हुंडेय वायवे, 15 पत्थिणं तस्स दारगस्स-हत्थावा, पायावा, कण्णावा, अच्छिवा, णासावा, केवलभे
तसिं अंगोवंगाणं आगिती आगिमित्ते ॥१६॥ तएणं सा मियादेवी तं मियापुत्तदारणं है रहस्सियं भूमिघरंसि रहसिएणं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी२ विहरइ ॥ १७ ॥ तत्थणं
मियागामे जयरे एगे जाइ अंधे पुरिसे परिवसइ, सेणं एगेणं सचक्खु तेणं पुरिसेणं अर्थ नाम की रानी थी. वह प्रतिपूर्ण अंग की धारक सुरूपा यावन् वर्णन योग्य थी ॥१५॥ उस विजय क्षत्री का
पुत्र मृगादेवी का आत्मन मृगापुत्र नाम का कुमार था, वह जन्म से अन्धा, जन्म से मुक्का [ बोबडा ] जन्म मे बहिरा, जन्म से पांगुला, हुंडक मंस्थानवाला, बात कफ पित्तादि रोग युक्त था. उस बच्चे के हाथ पांव कान आंख नाक नहींथे फक्त अंगोपांगके चिन्ह मात्र-आकार मात्रथे परंतु प्रसिद्ध नहीं देखातेथे॥११॥ तब वह मृगादेवी उस मृगा पुत्र को छिपाकर भूपी घर (भोंयारे) में गुप्त रखकर गुप्त आहार पनी देती हुइ विचरती थी ॥ १७ ॥ उस मगाग्राम नगर में एक जन्म का अन्धा पुरुष रहता था, उप्त के
एक पुरुष चक्षुधाला आगे को दंड (लकडी) ग्रहण करता हुवा ले जाता था, उस अन्ध पुरुष के [समस्तक के बाल बिखरे हुये थे, उस के शरीर वस्त्रादि की मलीनता कर उसे मक्षिकाओंने घेर रखा था,
बादक-बालब्रह्मचारी मुनि
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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