Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
(३)
AR
प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्त ज्ञात : आमुख
शीर्षक-उक्खित्ते-उत्क्षिप्त/उत्स्थित अर्थात् उठाया हुआ या उठा हुआ। यह एक स्थिति का नाम है जिसमें कोई वस्तु अपनी सामान्य स्थिति से उठ, किसी उच्च स्थिति में पहुंचकर स्थिर हो जाय। वह स्थिति पार्थिव भी हो सकती है, मानसिक भी तथा आत्मिक भी। इस कथा में ये सभी स्थितियाँ समन्वित हैं और उनका आधार है अन्तःप्रेरित करुणा। प्रत्येक आयाम में किसी उच्च स्थिति पर पहुँचना और उस स्थिति को बनाये रखना, इस भागीरथ प्रयत्न में करुणा की अनोखी महत्ता का बेजोड़ उदाहरण इस कथा में प्रस्तुत किया गया है।
कथासार-राजगृह (मगध) के राजा श्रेणिक के नंदा नामक रानी से अभयकुमार नाम का पुत्र था। वह अतीव बुद्धिमान् व मेधावी था तथा समस्त राज-काज का संचालन उसी के हाथ में था। राजा श्रेणिक के एक अन्य रानी थी जिसका नाम धारिणी था। वह एक रात अपने मुँह में एक श्वेत हाथी को प्रवेश करने का स्वप्न देख जाग पड़ी। राजा श्रेणिक तथा स्वप्नवेत्ता पण्डितों ने इस स्वप्न को एक तेजस्वी पुत्र-प्राप्ति का संकेत बताया।
धारिणी गर्भवती हुई और तीसरे महीने में उसे असमय मेघ तथा वर्षाकाल में वन-उद्यानादि में भ्रमण का आनन्द लेने का दोहद उत्पन्न हुआ। धारिणी ने श्रेणिक राजा से दोहद की बात कही। असमय में वर्षाकाल की संभावना न होने से चिन्तित राजा ने अपने मेधावी पुत्र अभयकुमार से सारी बात कही। अभयकुमार ने पिता को आश्वस्त किया और अपने पूर्व-जन्म के मित्र एक देव का आह्वान कर उससे सहायता माँगी। देव ने अकाल मेघ तथा वर्षाऋतु की दैवी रचना कर धारिणीदेवी का दोहद पूरा करवाया। ___यथा समय धारिणीदेवी ने पुत्र प्रसव किया और अकाल मेघ के दोहद से सूचित होने के कारण राजा ने उसका नाम मेघकुमार रखा। कुमार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। यथा समय उसकी शिक्षा-दीक्षा हुई और युवा होने पर आठ सुन्दर राज-कन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया।
एक बार श्रमण भगवान महावीर राजगह पधारे। जन-समह उनका उपदेश सनने उमड पडा। मेघकमार भी सचना प्राप्त होने पर उनका उपदेश सनने गया। भगवान के वचन सन मेघ को को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने दीक्षा लेने का निर्णय लिया। मेघ अपने माता-पिता से अनुमति लेने गया तो उन्होंने उसे बहुत समझाने की चेष्टा की कि गृहस्थ जीवन के सभी आनन्द भोगने के बाद दीक्षा लेने का विचार करे। पर मेघ अपने निर्णय पर अटल रहा और अन्ततः दीक्षा ले ली।
श्रमण जीवन के प्रथम दिन ही मेघ असुविधाओं के कारण विचलित हो गया। रात्रि को उसकी शय्या द्वार के निकट लगी थी और अपने-अपने कार्य से आते-जाते अन्य श्रमणों के पाँव आदि छू जाने से उसे रात भर नीद नहीं आई। विचलित मेघकुमार भगवान महावीर के पास आया। उसकी चंचल मनोदशा देखकर भगवान महावीर ने स्वयं ही उसकी समस्या बताई और साथ ही उसके पूर्व-जन्म की कथा सुनाई।
Care
T
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org