Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयारंग-सुत्तं [ उद्दे० ३ (२) सन्ति पाणा पुढो-सिया । लजमाणा पुढो पास । " अणगारा मो" त्ति एगे पवयमाणा । जनिणं विरूव-रूवेहिं सत्थोहिं पुढवि-कम्मसमारम्भेणं पुढवि-सत्थं समारम्भमाणे अन्ने 5व' णेगरूवे पाणे विहिंसइ-( ३ ) तत्थ खलु भगवया परिन्ना पवेइया इमस्स चेव जीविस्स परिवन्दण-माणण-पूयणाए, जाइ-मरण-मोयणाए दुक्ख-पडिघाय-हेउं - से सयमेव पुढवि-सत्थं समारम्भइ अन्नेहिं वा पुढवि-सत्थं समारम्भावइ अन्ने वा पुढवि-सत्थं समारम्भन्ते समणुजाणइ; ( ४ ) तं से अहियाए, तं से अबोहीए । से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं, समुट्ठाए - सोच्चा खलु भगवओ अणगारणं वा अन्तिए इहमेगेसिं नायं भवइ : एस खलु 10 गन्थे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए । इच्चत्थं गढिए लोए । जमिणं विरूव-रूवेहिं सत्यहिं पुढवि-कम्मसमारम्भेणं पुढवि-सत्थं समारम्भमाणे अन्ने वणे ग-रूवे पाणे विहिंसइ (५) से बेमिः अप्पेगे अच्चमब्भे,अप्पेगे अच्चमच्छे:अप्पेगे पायमब्भे,अपेगे पायमच्छे.... 15 गुप्फ....जघं....जाणुं....ऊरु .... कडिं....नाभिं ....उयरं ....पासं ....पिट्टि....उरं....हिययं.... थणं....खन्धं....बाहुं....हत्थं....अंगुलिं....नहं....गीवं....हणुं....होहूं....दन्तं....जिब्भं....तालुं ....गलं....गण्डं....कणं....नासं....अच्छि....भमुहं....निलाडं....सीसं...., अप्पेगे संपमारए अप्पेगे उद्दवए। (६) एत्थ सत्थं समारम्भमाणस्स इच्चेए आरम्भा अपरिन्नाया भवन्ति, एत्थ सत्थं 20 समारम्भमाणस्स इच्चेए आरम्भा परिन्नाया भवन्ति । तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं समारभेजा नेव'न्नेहिं पुढवि-सत्थं समारम्भावेजा नेव'न्ने पुवि-सत्थं समारभन्ते समणुजाणेज्जा। जस्से'ए पुढवि-कम्म-समारम्भा परिन्नाया भवन्ति, से हु मुणी परिन्नाय-कम्मे -त्ति बेमि ॥ (१) से बेमि : से जहा वि अणगारे उज्जुकडे नियाग-पडिवन्ने अमायं कुब्वमाणे वियाहिए। 25 (२) जाए सद्धाएँ निक्खन्तो, तमेव अणुपालिया; ___ वियहित्तु विसोतियं पणया वारा महा-वीहिं लोगं च आणए अभिसमेच्चा अकुओभयं । (३) से बेमि:-ने'व सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा । जे लोगं 30 अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ, जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ । (४-६) 'लज्जमाणा....( यथा पं० २-१३. नवरं पुढवि स्थाने उदय भणनीयं )... विहिंसइ For Private And Personal Use Only

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