Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयारंग-सुत्तं [उद्दे०६ wwwwwwwwwwwwwwwwwww w wwwww सिया तत्थे गयरं विपरामुसइ, छसु अन्नयरम्मि कप्पा । सुहट्ठी लालप्पमाणे ___सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ । सएण वि प्पमाएणं पुढो वयं पकुव्वइ, जास मे पाणा पवाहिया । पडिलेहाए " नो निकरणाए : एस परिन्ना पवुच्चइ, कम्मोवसन्ती । जे ममाइय-मई जहाइ, से जहाइ ममाइयं; से हु दिट्ठ-भए मुणी, जस्स नस्थि ममाइयं । तं परिन्नाय मेहावी . विइत्ता लोग, वन्ता लोग-सन्नं ___ से मइमं परक्कमेज्जासि–ति बेमि। ( ३ ) नारई सहए वीरे, वीरे नो सहए रई; जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जई । सद्दे य फासे अहियासमाणे । निम्विन्द नन्दि इह जीवियस्स । मुणी मोणं समायाय धुणे कम्म-सररिंग; पन्तं लुहं सेवन्ति वीरा सम्मत्त-दंसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए --त्ति बेमि । 80 (४) दुव्वसु-मुणी अणाणाए तुच्छए गिलाइ वट्टए: 'एस वीरे पसंसिए', 'अच्चेइ लोग-संजोगं, एस नाए पवुच्चइ'; जं दुक्खं पवेइयं 'इह माणवाणं' तस्स 'दुक्खस्स कुसला परिन्नं उदाहरन्ति ': (५) ' इति कम्म परिन्नाय सव्वसो' जे अणन्न-दंसी से अणन्नारामे, जे अणन्नारामे से अणन्न-दंसी: जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थइ । 25 जहा तुच्छस्स कथई, तहा पुण्णस्स कथई । अवि य हणे अणाइय माणेः एथम्पि जाणः सेयं ति नत्थि " केयं पुरिसे कं च नए ? !" ' एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए !' उर्दू अहं तिरियं दिसासु, से सव्वओ सव्व-परिन्न-चारी । . न लिप्पई छण-पएण वीरे। से मेहावी, जे अणुग्घायणस्स खयन्ने, जे य बन्ध-पमोक्खमन्नेसीः ___कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के से ज्जं च आरभे जं च नारभे ! (५) अणारद्धं च नारभे, 30 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68