Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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आयारंग-सुत्तं
[उद्दे०६
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सिया तत्थे गयरं विपरामुसइ,
छसु अन्नयरम्मि कप्पा । सुहट्ठी लालप्पमाणे ___सएण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ ।
सएण वि प्पमाएणं पुढो वयं पकुव्वइ, जास मे पाणा पवाहिया । पडिलेहाए " नो निकरणाए :
एस परिन्ना पवुच्चइ, कम्मोवसन्ती । जे ममाइय-मई जहाइ, से जहाइ ममाइयं; से हु दिट्ठ-भए मुणी, जस्स नस्थि ममाइयं । तं परिन्नाय मेहावी . विइत्ता लोग, वन्ता लोग-सन्नं
___ से मइमं परक्कमेज्जासि–ति बेमि। ( ३ ) नारई सहए वीरे, वीरे नो सहए रई;
जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रज्जई । सद्दे य फासे अहियासमाणे ।
निम्विन्द नन्दि इह जीवियस्स । मुणी मोणं समायाय धुणे कम्म-सररिंग;
पन्तं लुहं सेवन्ति वीरा सम्मत्त-दंसिणो ।
एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए --त्ति बेमि । 80 (४) दुव्वसु-मुणी अणाणाए तुच्छए गिलाइ वट्टए: 'एस वीरे पसंसिए', 'अच्चेइ लोग-संजोगं, एस नाए पवुच्चइ'; जं दुक्खं पवेइयं 'इह माणवाणं' तस्स 'दुक्खस्स कुसला परिन्नं उदाहरन्ति ': (५) ' इति कम्म परिन्नाय सव्वसो' जे अणन्न-दंसी से अणन्नारामे, जे अणन्नारामे से अणन्न-दंसी:
जहा पुण्णस्स कत्थई, तहा तुच्छस्स कत्थइ । 25 जहा तुच्छस्स कथई, तहा पुण्णस्स कथई । अवि य हणे अणाइय माणेः
एथम्पि जाणः सेयं ति नत्थि " केयं पुरिसे कं च नए ? !" ' एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए !'
उर्दू अहं तिरियं दिसासु, से सव्वओ सव्व-परिन्न-चारी ।
. न लिप्पई छण-पएण वीरे। से मेहावी, जे अणुग्घायणस्स खयन्ने, जे य बन्ध-पमोक्खमन्नेसीः
___कुसले पुण नो बद्धे नो मुक्के से ज्जं च आरभे जं च नारभे !
(५) अणारद्धं च नारभे,
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