Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir wwwanna उद्दे० १.] तइयं अज्झयणं छणं-छणं परिन्नाय लोग-सन्नं च सव्वसो । उद्देसो पासगस्स...( यथा ७,३०.) ... आवट्ट अणुपरियट्टइ-त्ति बेमि ॥ सी ओ स णि जं 10 (१) सुत्ता अमुणी, मुणिणो सययं जागरन्ति; लोगंसि जाण अहियाय दुक्खं । समयं लोगस्स जाणित्ता एत्थ सत्थोवरए । जस्सि'मे सदा य रूवा य गन्धा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवन्ति, (२) से आयवं नाणवं वेयवं धम्मवं बम्भवं, पन्नाणेहिं परिजाणइ लोगं । मुणी ति वच्चे, धम्मविउ त्ति अनु, आवट्ट-सोए संगमिणं'भिजाणइ । सीओसिण-चाई से निग्गन्थे अरइ-रइ-सहे फरुसियं नो वेएइ । जागर-वेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमोक्खसि । (३) जरा-मच्चु-वसोवणीए नरे, सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ । पासिय आउरे पाणे अपमत्तो परिव्वए । मन्ता एवं अहियं ति पास 15 आरम्भजं दुक्ख मिणं ति नच्चा माई पमाई पुनरइ गभं । उवेहमाणो सह-रूवेसु उज्जू माराभिसंकि मरणा पमुच्चइ । अप्पमत्तो कामेहिं, उवरओ पाव-कम्मे हि, वीरे आय-गुत्ते, जे खेयन्ने । ( ४ ) जे 20 पज्जवजाय-सत्थस्स खेयन्ने; से असत्थस्स खेयन्ने; जे असत्थस्स खेयन्ने, से पज्जवजायसत्थस्स खेयन्ने । अकम्मस्स ववहारो न विज्जह कम्मुणा उवाही जायद । कम्मं च पडिलेहाए कम्म-मूलं च जं छणं पडिलेहिय, सव्वं समायाय दोहिं अन्तेहिं अदिस्समाणे । तं परिन्नाय मेहावी विइत्ता लोग, वन्ता लोग-सन्नं से मइमं परकमेज्जासि-ति बेमि ॥ For Private And Personal Use Only

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