Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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आधारंग-सुतं
अट्ठे व हए व लूसिवा पलिय-पगन्थे अदुवा पगन्थे अहिं
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सद्द- फासेहिं । इति संखाए एगयरे अन्नयरे
अभिन्नाय तिक्खमाणे परिव्वए ।
जे य हिरी । जे उ अहिरीमाणे
चेच्चा सव्वं विसोत्तियं संफासे फासे समिय-दंसणे । ( ३ ) एए भो नगिणा वुत्ता, जे लोगंसि अणागमण-धम्मिणो आणाए मामगं धम्मं, एस उत्तर-वाए इह माणवाणं वियाहिए । एत्थोवर तं झोसमाणे
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आयाणिज्जं परिन्नाय परिवारणं विगिञ्च ।
इहसि एग चरिया होई । तत्थि 'यरा - इयरेहिं कुलेहिं सुद्धे 'सणाए सव्वे'सणाए से मेहावी परिव्वए;
६--३
[ उद्दे० ३.
सुभ वा अदुवा दुब्भि अदु वा तत्थ भैरवाः
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पाणा पाणे किलेसन्ति । ते फासे ' पुट्ठो वीरे' हियासएज्जासि'- त्ति बेमि ॥
( १ ) एवं खु, मुणी, आयाणं ।
"
या सुक्खाय धम्मे, ' ' विधूय - कप्पे निज्झोसहत्ता ' । जे अचेले परिवुसिए, तस्स भिक्खुस्स नो एवं भवइ : ' परिजुण्णे मे वत्थे; वत्थं जाइस्तामि, सुत्तं जाइस्तामि, सूई जाइस्ता - मि, संधिस्तामि, सिव्विस्सामि, उक्कसिस्सामि, वुक्कसिस्सामि, परिहिस्सा मि, पाउणिस्सामि ' । ( २ ) अदु वा तत्थ परकमन्तं भुज्जो अचेलं तण - फासा फुसन्ति, सीय- फा० 20 फु०, तेओ-फा० फु०, दंसमसग फा० फु० -- एगयरे अन्नयरे विरूव-रूवे फासे अहियासेर अचेले लाघवमागममीणे तवे से अभिसमन्नागए भवइ जहे 'यं भगवया पवेश्यं, तमेव अभिसमेच्चा सव्वओ सव्वयाए समत्तमेव समभिजाणिया ।
एवं तेसि महावीराणं चिर-रायं पुव्वाई वासाई रीयमाणाणं दवियाणं पास' हियासिय; आगय-पन्नाणा किसा बाहा भवन्ति पयणुए य मंस - सोणिए । वणी - परिन्नाय एस तिष्णे भुत्ते विरए वियाहिए ―त्ति बेमि । ( ३ ) विरयं भिक्खु रीयन्तं चिर- राओसियं अरई तत्थ किं विधारए ? संघेमाणे समुट्ठिए;
जहा से दीवे असंदी एवं से धम्मे आरिय- देसिए ।
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अवखमाणा अणइवाएमाणा दइया मेहाविणो पण्डिया । एवं तेसि भगवओ अणुट्ठाणे । जहा से दिया- पोए, एवं ते
सिस्सा दिया य राओ य अणुपुव्वेण वाइय-ति बेमि ॥
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