Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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आयारंग-सुतं
[ उद्दे० ५.
वा जणवसु वा जणवयन्तरेसु वा सन्ते' गइया ' जणा लूसगा भवन्ति, ' अदु वा फासा फुसन्ति ते फासे 'पुट्ठो वीरो' हियासए ' ।
(२) ओए समय- दंसणे दयं लोगस्स जाणिता
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पाइणं पडणं दाहिणं उदीर्ण
Sara are aट्टे वेयवी;
से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सुसमाणेसु पवेयए ( ३ ) सन्ति विरई उवसमं निव्वाणं सोयं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणइ-वत्तियं; सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसि भूयाणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसि सत्ताणं अणुवी भिक्खु धम्म माइक्खज्जा । ( ४ ) अणुवह भिक्खु धम्ममा इक्ख10 माणे नो अत्ताणं आसाएजा नो परं आसाएज्जा, नो अन्नाई पाणाई भुयारं जीवाई सत्ताई आसाएज्जा : से अणासायए अणासायमीणे ।
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वज्झमाणाणं पाणाणं
भूयाणं जीवाणं सत्ताणं ' जहा से दीवे असंदीणे ' एवं
( ५ ) एवं से उट्ठिए ठियप्पा
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अनि अचले चले अबहि-लेसे परिव्वए ।
संखाय पेसलं धम्मं दिट्टिमं परिणिव्वुडे ।
तम्हा संगं ति पासहा |
गन्धेहिं गढिया नरा, विसण्णा काम विप्पिया ।
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तम्हा लहाओ नो परिवित्तसेज्जा, जस्सिमे आरम्भा सव्वओ सव्वयाए सुपरिन्नाया भवन्ति, जोसे' मे लूसिणो नो परिवित्तसन्ति । से वन्ता कोहं च माणं च मायं च लोभं च
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से भवइ सरणं महा- मुणी ।
एस उट्टे वियाहि-ति बोम |
( ६ ) कायस्स विओवाए एस संगाम सीसे वियाहिए । से हूं पारंग मुणी ।
अविहम्ममाणे फलगावयट्ठी
कालोवणीए कंखेज्ज कालं जाव सरीर - भेओ - ति बेमि ॥
महापरिना' नाम सप्तममध्ययनं विनष्टमिति प्राचीनः प्रवादः श्रूयते ।
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