Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवमं अज्झयणं अदु गामिया उवसम्गा : इत्थी एगइया पुरिसो वा । ९. इह-लोइयाई पर-लोइयाई भीमाई अणेगरूवाई, अवि सुब्भि-दुब्भि-गन्धाई सद्दाई अणेग-रूवाई अहियासए सया समिए फासाई विरूव-रूवाई। अरई रहं च अभिभूय रीयई माहणे अबहु-वाई । सयोहं तत्थ पुच्छिसु एग-चरा वि एगया राओ, अव्वाहिए कसाइत्था; पेहमाणे समाहिं अपडिन्ने । " अयमन्तरंसि; को एत्थं ? " " अहमंसि" ति " भिक्खु" आह१ अयमुत्तमे से धम्मे : तुसिणाएँ स कसाइए झाइ । जंसि पेगे पवेवन्ति सिसिरे मारुए पवायन्ते संसि प्पेगे अणगारा हिमवाए निवायमेसन्तिः २५. 'संघाडीओ पविसिस्सामो, एहा य समादहमाणा पिहिया वा सक्खामो; अइदुक्खं हिमग-संफासा!' संसि भगवं अपडिन्ने अहे-वियडे अहियासए दविए, निक्खम्म एगया राओ चाएइ भगवं समियाए । एस विही अणुकन्तो माहणेण मईमया बहुसो अपडिन्नणं भगवया एवं रीयन्ते - त्ति बेमि ॥ १. सण-फास सीय-फासे य तेओ-फासे य दंस-मसए य अहियासए सया समिए फासाई विरूव-रूवाई। अह दुच्चर-लाढं अचारी वज्ज-भूमि च सुब्भ-भामं च, पन्तं सेज्ज सेविसु आसणगाई चेव पन्ताई। लाढेहिं तस्सुवसग्गा बहवेः जाणवया लूसिंसु, अह लुक्ख-देसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु निवइंसु । ४. अप्पे जणे निवारेइ लसणए सुणए डसमाणे, 'छुच्छुक् ' कारेन्ति आहन्तुं " समणं कुकुरा डसन्तु" ति । एलिक्खए जणे भुज्जो बहवे वज्ज-भूमि फरुसासी, लहि गहाय नालीयं समणा तत्थ एव विहरिसु; एवं पि तत्थ विहरन्ता पुट्ठ-पुव्वा अहेसि सुणएहिं, संलुश्चमाणा सुणएहिंदुच्चरगाणि तत्थ लाढहिं । ७. निहाय दण्डं पाणेहिं तं कायं वोसज्जेमणगोर अह गाम-कण्टए, भगवं ते अहियासए अभिसमेच्चा, ८. 'नाओ' संगाम-सीसे व पारए तत्थ से महावीरे । For Private And Personal Use Only

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