Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उ० १. ] www.kobatirth.org पञ्चमं अज्झयणं आणाए लम्भो नस्थिति बेमि, ( ३ ) जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ लिया ? से हु पन्नाणमन्ते बुद्धे आरम्भोवरए; तमसि अविजाणओ 6 सम्ममेयं ति पासा । लोग सा रो ( आवन्ती ) ५- १ ( २ ) पासह एगे रूवे जेण बन्धं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिच्छिन्दिय बाहिरगं च सोयं निक्कम्म- दंसी इह मच्चिए हिं, कम्मुणा सफलं दहुं तओ निज्जार वेयवी । ( ४ ) जे खलु भो वीरा समिया सहिया सया जया संघड- दंसिणो आओवरया 10 अहा तहं लोगं उवेहमाणा, पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति, सच्चसि परिविचिट्ठियु, साहिस्सामा नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सया जयाणं संघड-दंसीणं आओवरयाणं अहा- तहा लोगं समुहमाणाणं । किमत्थि उवाही पासगस्स ? न विज्जर, नस्थि - तिबेमि ॥ जे छेए, सागारियं न सेवए, कट्टु एवमवयाणओ बिइया मन्दस्त बालिया लद्धा हुरत्था । पडिलेहाए आयमेत्ता अणासेवणाए – ति बेमि । 15 ( १ ) आवन्ती केयवन्ती लोगंसि विप्परामुसन्ती अड्डाए अणट्ठाए वा सु चेव विप्परा मुसन्ती । गुरू से कामा, तओ से मारस्स अन्तो; जओ से मारस्त अन्तो, तसे दूरे । नेव से अन्तो, नेव से दूरे । से पासइ कुसियमिव कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरिय एवं बालस्स जीवियं मन्दस्त अविजाणओ । कुराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे ते दुक्खेण मूढे विपरियासमेइ, मोहेण गब्र्भ मरणाइ एइ, " एत्थ मोहे पुणो- पुणो' । संसयं परिजाणओ संसारे परिन्नाए भवइ संसयं अपरिजाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गिद्धे परिणिजाणे, १७ फासे पुणो- पुणो ' । आवन्ती केया 'वन्ती लोगंसि आरम्भजीवी, एएस चेव आरम्भजीवी For Private And Personal Use Only 5 20 25 1 30

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