Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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उ० १. ]
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पञ्चमं अज्झयणं
आणाए लम्भो नस्थिति बेमि,
( ३ ) जस्स नत्थि पुरा पच्छा, मज्झे तस्स कुओ लिया ? से हु पन्नाणमन्ते बुद्धे आरम्भोवरए;
तमसि अविजाणओ
6
सम्ममेयं ति पासा ।
लोग सा रो
( आवन्ती )
५- १
( २ ) पासह एगे
रूवे
जेण बन्धं वहं घोरं परियावं च दारुणं पलिच्छिन्दिय बाहिरगं च सोयं निक्कम्म- दंसी इह मच्चिए हिं,
कम्मुणा सफलं दहुं तओ निज्जार वेयवी ।
( ४ ) जे खलु भो वीरा समिया सहिया सया जया संघड- दंसिणो आओवरया 10 अहा तहं लोगं उवेहमाणा,
पाईणं पडीणं दाहिणं उदीणं इति, सच्चसि परिविचिट्ठियु, साहिस्सामा नाणं वीराणं समियाणं सहियाणं सया जयाणं संघड-दंसीणं आओवरयाणं अहा- तहा लोगं समुहमाणाणं । किमत्थि उवाही पासगस्स ? न विज्जर, नस्थि - तिबेमि ॥
जे छेए, सागारियं न सेवए, कट्टु एवमवयाणओ बिइया मन्दस्त बालिया लद्धा हुरत्था । पडिलेहाए आयमेत्ता अणासेवणाए – ति बेमि ।
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( १ ) आवन्ती केयवन्ती लोगंसि विप्परामुसन्ती अड्डाए अणट्ठाए वा सु चेव विप्परा मुसन्ती । गुरू से कामा, तओ से मारस्स अन्तो; जओ से मारस्त अन्तो, तसे दूरे । नेव से अन्तो, नेव से दूरे । से पासइ कुसियमिव कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरिय एवं बालस्स जीवियं मन्दस्त अविजाणओ । कुराई कम्माई बाले पकुव्वमाणे
ते दुक्खेण मूढे विपरियासमेइ, मोहेण गब्र्भ मरणाइ एइ,
"
एत्थ मोहे पुणो- पुणो' । संसयं परिजाणओ संसारे परिन्नाए भवइ संसयं अपरिजाणओ संसारे अपरिन्नाए भवइ ।
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गिद्धे परिणिजाणे,
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फासे पुणो- पुणो ' ।
आवन्ती केया 'वन्ती लोगंसि आरम्भजीवी, एएस चेव आरम्भजीवी
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