Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयारंग-सुतं [उद्दे० २. एत्थ वि बाले परिपच्चमाणे रमइ पावेहि कम्मे हिं ___ असरणं ' सरणं ' ति मन्नमाणे । इहमेगेसि एग-चरिया भवइ । ( ३ ) से बहु-कोहे बहु-माणे बहु-माए बहु-लोभे, बहु-रए 5 बहु-नदे बहु-सढे बहु-संकप्पे आसव-सकी पलिओच्छन्ने; उट्ठिय-वायं पवयमाणे-'मा मे केइ अदक्खू ' । अन्नाण-पमाय-दोसेणं सययं मूढे धम्मं नाभिजाणइ । अट्टा पया, माणव, कम्म-कोविया, जे अणुवरया अविज्जाए पलिमोक्खमाहु; आवट्टमेव अणुपरियदृन्ति-ति बेमि ॥ ५-२ (१) आवन्ती केया'वन्ती लोगांस अणारम्भ-जीवी, एएसु चेव अणारम्भजीवी । 10 एत्थोवरए तं झोसमाणे । अयं संधी ' ति अद्दक्खू, जे ' इमस्स विग्गहस्स अयं खणे' ति अन्नेसी। एस मग्गे आरिएहिं पवइए। ( २ ) उठ्ठिए नो पमायए। 'जाणित्तु दुक्खं पत्तेय-सायं'; पुढो-छन्दा इह माणवा-पुढो दुक्खं पवेइयं । से अविहिंसमाणे अनवयमाणे पुढो फासे विपणोलए, एस समिया-परियाए वियाहिए । (३) जे असत्ता पावहिं कम्मेहिं उयाहु : " ते आयका फुसन्ति ” इति, उयाहु 20वीरे : ' ते फासे पुढे'हियासए'। से पुव्वं पेयं पच्छा वेयं भेउर-धम्मं विद्धसण-धम्म अधुवं अनितियं असासयं चयावचइयं विपरिणाम-धम्मं पासह । एवंरूव-संधि समुवेहमाणस्स एगाययण-रयस्स इह विप्पमुक्कस्स नत्थि मग्गे विरयस्स-त्ति बेमि । ( ४ ) आवन्ती केया'वन्ती लोगंसि परिगहावन्ती : से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमन्तं वा अचित्तं वा, एएसु चेव परिग्गहावन्ती, एयदेवेगेसिं महब्भयं भवइ । लोग-वित्तं च णं उवेहाए, एए संगे अविजाणओ, से सुप्पडिबुद्धं सूवणीयं ' ति नच्चा पुरिसा ! परम-चक्खू विप्परकम एएसु चेव बम्भचेरं ! ति बेमि; (५)" से सुयं च मे अज्झत्थं च मे " : बन्ध-प्पमोक्खो तुज्झ'ज्झत्थेव । एत्थ विरए अणगारे दीह-रायं तिइक्खए; पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते परिव्वए । एवं मोणं सम्म अणुवासेज्जासि--त्ति बाम । 16 25 80 For Private And Personal Use Only

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