Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्दे० ३-४.] पञ्चमं अज्झयणं ( १ ) आवन्ती केया'वस्ती लोगंसि अपरिग्गहावन्ती, एएसु चेव अपरिग्गहावन्ती । सोच्चा वई मेहावी पण्डियाण निसामिया -सामियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए-"जहेत्थ मए संधी शोसिए, एवं अन्नत्थ; संधी दुज्झोसए भवइ । तम्हा बेमि" : नो निण्हवेज्ज वीरियं । । (२) जे पुवुट्ठायी नो पच्छा-निवाई, जे पुवुढाई पच्छा-निवाई, जे नो पुवुढाई नो पच्छा-निवाई से वि तारिसए सिया, जे परिन्नाय लोगमन्नेसिए । __ एयं नियाय मुणिणा पवेइयं, इह आणा-खी पण्डिए अनिहे पुवावर-रायं जयमाणे 10 सया सीलं सॉपेहाए सुणिया भवे अकामे अझञ्झे । इमेण चेव जुज्झाहि ! किं ते जुज्झेण बज्झओ ? जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । जहेत्थ कुसलेहिं परिन्ना-विवेगे भासिए ।। चुए हु बाले गन्भाइ रिज्जइ; (३ ) · अस्सि चेयं पवुच्चई । रूवांस वा छणंसि वा ' से हु एगे संविद्धभए मुणी' अन्नहा लोगमुवेहमाणे ' इति कम्मं परिन्नाय सव्वसो से न हिंसइ', संजमई, नो पगभई । (४) उवेहमाणो पत्तेय-सायं वण्णाएसी नारभे कंचणं सव्व-लोए, एग-प्पमुहे विदिस-प्पइण्णे निविण्ण-चारी अरए पयासु । से वसुमं सव्व-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मन्तं नो अन्नेसी । जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा; जं मोणं ति पासहा तं सम्मं ति पासहा । न इमं सकं सिढिलेहिं आइज्जर्माणहिँ गणासाएहिं वंक-समायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसन्तेहिं । (५) मुणी मोणं समायाए धुणे कम्म-सरीरगं; पन्तं लूहं च सेवन्ती वीरा सम्मत्त-दसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए-त्ति बेमि ॥ 30 (१) गामाणु-गामं दूइज्जमाणस्स । दुज्जायं दुप्परक्वन्तं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणोः वयसा वि एगे बुझ्या कुप्पन्ति माणवा, For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68