Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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उद्दे० ३-४.]
पञ्चमं अज्झयणं
( १ ) आवन्ती केया'वस्ती लोगंसि अपरिग्गहावन्ती, एएसु चेव अपरिग्गहावन्ती ।
सोच्चा वई मेहावी पण्डियाण निसामिया -सामियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए-"जहेत्थ मए संधी शोसिए, एवं अन्नत्थ; संधी दुज्झोसए भवइ । तम्हा बेमि" :
नो निण्हवेज्ज वीरियं । । (२) जे पुवुट्ठायी नो पच्छा-निवाई, जे पुवुढाई पच्छा-निवाई, जे नो पुवुढाई नो पच्छा-निवाई
से वि तारिसए सिया, जे परिन्नाय लोगमन्नेसिए ।
__ एयं नियाय मुणिणा पवेइयं, इह आणा-खी पण्डिए अनिहे पुवावर-रायं जयमाणे
10 सया सीलं सॉपेहाए सुणिया भवे अकामे अझञ्झे । इमेण चेव जुज्झाहि ! किं ते जुज्झेण बज्झओ ?
जुद्धारिहं खलु दुल्लभं । जहेत्थ कुसलेहिं परिन्ना-विवेगे भासिए ।।
चुए हु बाले गन्भाइ रिज्जइ; (३ ) · अस्सि चेयं पवुच्चई । रूवांस वा छणंसि वा ' से हु एगे संविद्धभए मुणी'
अन्नहा लोगमुवेहमाणे ' इति कम्मं परिन्नाय सव्वसो से न हिंसइ',
संजमई, नो पगभई । (४) उवेहमाणो पत्तेय-सायं वण्णाएसी
नारभे कंचणं सव्व-लोए, एग-प्पमुहे विदिस-प्पइण्णे
निविण्ण-चारी अरए पयासु । से वसुमं सव्व-समन्नागय-पन्नाणेणं अप्पाणेणं अकरणिज्जं पावं कम्मन्तं नो अन्नेसी । जं सम्मं ति पासहा, तं मोणं ति पासहा; जं मोणं ति पासहा तं सम्मं ति पासहा । न इमं सकं सिढिलेहिं आइज्जर्माणहिँ गणासाएहिं वंक-समायारेहिं पमत्तेहिं गारमावसन्तेहिं ।
(५) मुणी मोणं समायाए धुणे कम्म-सरीरगं;
पन्तं लूहं च सेवन्ती वीरा सम्मत्त-दसिणो । एस ओहंतरे मुणी तिण्णे मुत्ते विरए वियाहिए-त्ति बेमि ॥
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(१) गामाणु-गामं दूइज्जमाणस्स ।
दुज्जायं दुप्परक्वन्तं भवइ अवियत्तस्स भिक्खुणोः
वयसा वि एगे बुझ्या कुप्पन्ति माणवा,
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