Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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उद्दे ६०. ]
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विइयं अज्झयणं
एएस व जाज्जा
द्वे आहारे अणगारो मायं जाणेज्जा
परिहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा, अन्नहा णं पास पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिप्पज्जासि — त्ति बेमि ।
से जहे यं भगवया पवेइयं :
लाभो ' त्ति न मज्जेज्जा, अलाभो ' ति न सोयए, बहु पि ल न नि ।
परिहरेज्जा । एस मग्गे आरिएि
२
( ४ ) कामा दुरइकमा, जीवियं दुप्पडिवूहणं; काम-कामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरह तिप्पर पिट्ट परितप्पर । आयय-चक्खू लोग-विपस्सी
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लोगस्स अहे - भागं जाणइ, उड्डुं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ गढिए अणुप
रियट्टमाणे;
संधि विइत्ता इह मच्चिएहिं
6 एसवीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए ' ।
1
( ५ ) जहा अन्तो तहा वाहिं, जहा बाहिं तहा अन्तो । अन्तो- अन्तो पूइ-देह- 16 न्तराणि पास पुढो विसवन्ताई पण्डिए पडिलेहाए,
से मइमं परिन्नाए ।
माय हु लाल पच्चासी,
मा तेसु तिरिच्छं अप्पाणं आवायए । कासंकसेयं खलु पुरिसे, बहु-ताई, कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोभ
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वेरं वेहि अप्पणी । जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए
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अमराय महा सड्डी,
अमेयं तु पेहार अपरिनाऍ कन्दर;
""
'से तं जाणह, जमहं बोम ! "
जस्स वि य णं करेइ,
अलं बालस्स संगेणं, जेवा से कारे, बाले ।
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( ६ ) इच्छं पण्डिए पवयमाणे । से हन्ता छेता भेत्ता लुम्पिता विलुम्पिता उद्दव - इता ' अकडं करिस्सामि ' त्ति मन्त्रमाणे ।
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न एवं अणगारस्त जायइ-त्ति बेमि ||
२-६
( १ ) से तं संबुज्झमाणे आयाणयिं समुट्ठाए - तम्हा पावं कम्मं
नेव कुंजा न कारये ।
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