Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उद्दे ६०. ] www.kobatirth.org विइयं अज्झयणं एएस व जाज्जा द्वे आहारे अणगारो मायं जाणेज्जा परिहाओ अप्पाणं अवसक्केज्जा, अन्नहा णं पास पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिप्पज्जासि — त्ति बेमि । से जहे यं भगवया पवेइयं : लाभो ' त्ति न मज्जेज्जा, अलाभो ' ति न सोयए, बहु पि ल न नि । परिहरेज्जा । एस मग्गे आरिएि २ ( ४ ) कामा दुरइकमा, जीवियं दुप्पडिवूहणं; काम-कामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरह तिप्पर पिट्ट परितप्पर । आयय-चक्खू लोग-विपस्सी 10 लोगस्स अहे - भागं जाणइ, उड्डुं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ गढिए अणुप रियट्टमाणे; संधि विइत्ता इह मच्चिएहिं 6 एसवीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए ' । 1 ( ५ ) जहा अन्तो तहा वाहिं, जहा बाहिं तहा अन्तो । अन्तो- अन्तो पूइ-देह- 16 न्तराणि पास पुढो विसवन्ताई पण्डिए पडिलेहाए, से मइमं परिन्नाए । माय हु लाल पच्चासी, मा तेसु तिरिच्छं अप्पाणं आवायए । कासंकसेयं खलु पुरिसे, बहु-ताई, कडेण मूढे पुणो तं करेइ लोभ 20 वेरं वेहि अप्पणी । जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमराय महा सड्डी, अमेयं तु पेहार अपरिनाऍ कन्दर; "" 'से तं जाणह, जमहं बोम ! " जस्स वि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जेवा से कारे, बाले । 25 ( ६ ) इच्छं पण्डिए पवयमाणे । से हन्ता छेता भेत्ता लुम्पिता विलुम्पिता उद्दव - इता ' अकडं करिस्सामि ' त्ति मन्त्रमाणे । 5 न एवं अणगारस्त जायइ-त्ति बेमि || २-६ ( १ ) से तं संबुज्झमाणे आयाणयिं समुट्ठाए - तम्हा पावं कम्मं नेव कुंजा न कारये । For Private And Personal Use Only 80

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