Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
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उद्दे०३.]
तइयं अज्झयणं
छिन्देज्ज सोयं लहुभूय-गामी । ६. गन्थं परिन्नाय इह'ज्ज वीरे
सोयं परिन्नाय चरेज्ज दन्ते; उम्मुग्गा लध्दं इह माणहि __ नो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि-त्ति बेमि ॥
(१) संद्धि लोगस्स जाणित्ता
आयओ बहिया पास, तम्हा न हन्ता न वि घायए ।
जमिणं अन्नमन्न-विइगिन्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्म,
किं तत्थ, मुणी, कारणं सिमा ? १. समयं तत्थु वेहाए अप्पाणं विप्पसायए;
अणन्न-परम-न्नाणी नो पमाए कयाइ वि ॥
आय-गुत्ते सथा धीरे जाया-मायाऍ जावए, (२) विरागं रूवेसु गच्छेज्जा महया खुड्डएहि वा ।
आगई गई परिन्नाय
दोहिं वि अन्तेहिं अदिस्समाणे से न छिज्जइ न भिजाइ न डज्झइ,
न हम्मइ (३) कंचणं सव्व लोए। अवरेण पुव्वं न सरन्ति एगे
किमस्स'ईयं किं वा गमिस्स; भासन्ति एगे इह माणवा उः
जमस्स'ईयं तमा गमिस्सं । नाईयमद्धं न य आगमिम्स
अद्धं नियच्छन्ति तहागया उ; विधूय कप्पे एयाणुपस्ति
निज्झोसइत्ता खवए महेसी। २. का अरइ के या'णन्दे ? एथं पि अगहे चरे;
सव्वं हासं परिच्चज्ज अल्लीण-गुत्तो परिव्वए । ( ४ ) पुरिसा ! तुममेव तुमं-मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसी ? जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेजा दूरालइयं; जं जाणेज्जा दूरालइयं; तं आणेज्जा30 उच्चालइयं ।
पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।
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