Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उद्दे०३.] तइयं अज्झयणं छिन्देज्ज सोयं लहुभूय-गामी । ६. गन्थं परिन्नाय इह'ज्ज वीरे सोयं परिन्नाय चरेज्ज दन्ते; उम्मुग्गा लध्दं इह माणहि __ नो पाणिणं पाणे समारभेज्जासि-त्ति बेमि ॥ (१) संद्धि लोगस्स जाणित्ता आयओ बहिया पास, तम्हा न हन्ता न वि घायए । जमिणं अन्नमन्न-विइगिन्छाए पडिलेहाए न करेइ पावं कम्म, किं तत्थ, मुणी, कारणं सिमा ? १. समयं तत्थु वेहाए अप्पाणं विप्पसायए; अणन्न-परम-न्नाणी नो पमाए कयाइ वि ॥ आय-गुत्ते सथा धीरे जाया-मायाऍ जावए, (२) विरागं रूवेसु गच्छेज्जा महया खुड्डएहि वा । आगई गई परिन्नाय दोहिं वि अन्तेहिं अदिस्समाणे से न छिज्जइ न भिजाइ न डज्झइ, न हम्मइ (३) कंचणं सव्व लोए। अवरेण पुव्वं न सरन्ति एगे किमस्स'ईयं किं वा गमिस्स; भासन्ति एगे इह माणवा उः जमस्स'ईयं तमा गमिस्सं । नाईयमद्धं न य आगमिम्स अद्धं नियच्छन्ति तहागया उ; विधूय कप्पे एयाणुपस्ति निज्झोसइत्ता खवए महेसी। २. का अरइ के या'णन्दे ? एथं पि अगहे चरे; सव्वं हासं परिच्चज्ज अल्लीण-गुत्तो परिव्वए । ( ४ ) पुरिसा ! तुममेव तुमं-मित्तं, किं बहिया मित्तमिच्छसी ? जं जाणेज्जा उच्चालइयं, तं जाणेजा दूरालइयं; जं जाणेज्जा दूरालइयं; तं आणेज्जा30 उच्चालइयं । पुरिसा ! अत्ताणमेव अभिनिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68