Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 उद्दे० ४.] बिईयं अज्झयणं पण्डिए नो हरिसे, नो कुज्झे भूएहिं जाण पडिलेह सायं समिए एयाणुपस्सी, तं-जहा : अन्धत्तं बहिरतं मूयत्तं काणत्तं कुण्टत्तं खुज्जतं वडभत्तं सामतं सबलतं, सह पमाएणं अणेग-रूवाओ जोणी मो संधेइ,विरूव-रूवे फासे पडिसंवेएइ । (३) से अबुज्झनाणे हओवहए । जाई-मरणं अणुपरियट्टमाणे। जीवियं पुढो पियं इह मेगेसि माणवाणं खेत-वत्थु ममायमाणाणं; आरतं विरतं माणकुण्डलं सह हिरण्णेणं, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता, न एत्थ तवो वा दमो वा नियमो वा दिस्सइ; संपुण्णं बाले जीविउ-कामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासु'वेइ। ( ४ ) इणेमव नावकंखन्ति जे जणा धुव-चारिणो; जाई-मरणं परिन्नाय चरे संकमणे दढे। नत्थि कालस्सणागमो-सव्वे पाणा पिया'ऊया सुह-साया दुक्ख-पडिकूला . 15 अप्पिय-वहा पिय-जीविणो जीविउ-कामा। सबोस जीवियं पियं, (५) तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं __ अभिजुञ्जियाणं संसंचियाणं तिविहेणं-जा वि से तत्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुगा वा, से तत्थ गढिए चिट्ठइ भोयणाए । तओ से एगया विपरिसिह संभूयं महोवगरणं भवइ, तं पि से एगया दायादा विभ-20 यन्ति, अदत्तहारो वा से अवहरइ, रायाणो वा से विलुम्पन्ति; नस्सइ वा से, विनस्सइ वा से, अगार-दाहेण वा से डज्झइ । इति से परस्सद्वाए कूराई कम्माई बाले पकुब्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासु'वेइ । मुणिणा हु एयं पवेइयं : 25 _ अणोहन्तरा एए, नो य ओहं तरित्तए; अतीरंगमा एए, नो य तीरं गमित्तए ; अपारंगमा एए, नो य पारं गमित्तए । आयाणिजं च आयाय तम्मि ठाणे न चिट्ठइ, वितहं पप्प'खेयन्ने तम्मि ठाणम्मि चिट्ठइ । उद्देसो पासगस्स नत्थि; बाले पुण निहे काम-समणुन्ने असमिय-दुक्खे दुक्खी 30 दुक्खाणमेव आवट्टमणुपरियट्टइ-त्ति बेमि ॥ (१) तओ से एगया....( यथा ५, १५-२८. नवरं परिहरन्ति तथा परिहरेज्जा स्थाने For Private And Personal Use Only

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