Book Title: Acharanga Sutram
Author(s): Jain Sahitya Sanshodhak Samiti
Publisher: Jain Sahitya Sanshodhak Samiti

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ 15 20 www.kobatirth.org मायारंग- सुप्तं इह जे पमत्ता, - से हन्ता छेता भेत्ता लुम्पिता विलुम्पित्ता उद्दवेत्ता उत्तासत्ता ' अकडं करिस्सामि ' ति मन्नमाणे । जो वा ..... ( यथा ५, २५-२८. नवरं परिवयन्ति तथा परिवएजा स्थाने पोसेन्ति तथा पोसेज्जा भणनीयं ) .... सरणाए वा । ( ४ ) उवाईय - सेसन्तेण वा सन्निहि- सन्निचओ कज्जइ 6इहमेगिस माणवाणं भोयणाए । तओ से एगया रोग - समुप्पाया समुप्पज्जन्ति; जहि वा ( यथा ५, २५-२८. नवरं परिहरन्ति तथा परिहरेजा पठनीयं ) ... सरणाए वा । (५) जाणित दुक्खं पत्तेय - सायं रस-प० अ०, घाण प० अ०, " अणभिक्कन्तं च खलु वयं सपेहाए खणं जाणाहि पण्डिए जाव सोत्त-परिनाहिं अपरिहायमाणोहिं, नेत्त-प० अ० फास-प० अ०; इच्चेएहिं विरूव-रूवेहिं परिन्नाणेहिं अपरिहायमाणेहिं । आय सम्मं समणुवासेज्जासि-त्ति बेमि ॥ 10 २-२ ( १ ) अरई आउट्टे से मेहावी; खणंसि मुक्के अणाणाए पुट्ठा वि एगे नियट्टन्ति मन्दा मोहेण पाउडाः " अपरिग्गहा भविस्सामो " समुट्ठाए लद्धे कामे' भिगाइ । अणाणाए मुणिणो पडिलेहन्ति; एत्थ मोहे पुणो पुणो सन्ना नो हव्वाए नो पाराए । विमुता हु ते जणा, जे जणा पार-गामिणो । लोभ अलोभेण दुगुञ्छमाणे लद्धे कामे नो' भिगाइ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वित्तु लोभ निक्खम्म [ उद्दे० २-३ For Private And Personal Use Only .... एस अकम्मे जाणइ पासर, पडिलेहाए नावकखइ, एस अणगारे ति पवुच्चर | 25 ( २ ) ' अहो य राओ.... ( यथा ५, १९ - २१ ) .... पुणो-पुणो से आय-बले, से ना - बले, सेमित्त - बले, से पेच्च बले, से देव-बले, से राय-बले, से चोर-बले, से अइहि-बले, से किवण - बले, से समण-बले, ( ३ ) इच्चेएहिं विरूव-रूवेहिं कज्जेहिं दण्ड- समायाणं संपेहाए भया कज्जइ ' पाव- मोक्खो' ति मन्नमाणे अदु वा आसंसाए । तं परिन्नाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दण्डं समारम्भेज्जा, नेव'न्नं एएहिं कज्जेहिं दण्डं समारम्भा वेज्जा, नेव'न्नं 30 एएहिं दण्डं समारभन्तं समणुजाणेज्जा । एस मग्गे आरिएहि पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिप्पेज्जासि-त्ति बेमि ॥ २-३ ( १ ) से असई उच्चा - गोए, पहिए ! इति संखाए के गोया - वाई, असई नीया - गोए, नो होणे, नो अइरिते : नो माणा - वाई, कंसि वा एगे गिज्झे ? ( २ ) तम्हा के

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