Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 16
________________ (७) १०९ ११२ ११४ ११५ ११६ ९३-९४ ११७ ९१. वन्दना की विधि ९२. वन्दनीय द्वारा वन्दना स्वीकार की विधि ९३. वन्दना नियुक्ति का उपसंहार और ४-प्रतिक्रमण आवश्यक नियुक्ति कथन को प्रोतज्ञा ९४. निक्षेप विधि से प्रतिक्रमण के छह भेद दैवसिक आदि प्रतिक्रमण के सात भेद नतिक्रमण के अन्य प्रकार से भेद प्रतिक्रामक और प्रतिक्रमण का स्वरूप ९८. प्रतिक्रमितव्य का स्वरूप ९९. भाव-प्रतिक्रमण का स्वरूप १००. आलोचना का स्वरूप १०१. आलोचना के दैवसिक आदि .. सात भेद १०२. आलोचना करने योग्य क्या है ? १०३. आलोचना के पर्यायवाची नाम १०४. आलोचना में काल-क्षेप का निषेध १०५. भावप्रतिक्रमण का स्वरूप १०६. द्रव्य-प्रतिक्रमण में दोष १०७. भावप्रतिक्रमण का माहात्म्य १०८. विभिन्न तीर्थंकरों के काल में प्रतिक्रमण का विधान १०९. सर्वप्रतिक्रमण में अंधलक घोटक का दृष्टान्त ११०. प्रतिक्रमण नियुक्ति का उपसंहार एवं ५-प्रत्याख्यान नियुक्ति कथन की प्रतिज्ञा . १११. निक्षेप विधि से प्रत्याख्यान के छह भेद ११८ ११९ १२० १२१ १२२ १२३ १२४ १२५-१२८ १०१-१०३ १२९ १०४ १०५ १३१ १०५-१०७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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