Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अथसंस्कार'भास्करस्यशुद्धिपत्रम् For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirtn.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं.भा. शद्धिप. . ه सेषत् . (सकूलेनाः सीदतु... संस्कारभास्करस्यास्य शुद्धिपत्र वितन्यते॥दोषानपि राणीकर्तुं लेरवकादिप्रमादजान॥१॥ शुद्धिपत्रम् पत्रमा पृष्ठं पद्धिा अशट्रम् ॥ झट्रम्प वम् एवं पति अशरम नाइम् ईषत् २६ संस्था संस्थाः | क्मतिना मनसा संस्था सस्थाः |२| हृदि |७|इत्य तत्रतावन 11 याति |३|तयथा तेयथा संस्था णान्न णमन्न १२ कामिति আন্ত श्राद्धानि १/२ रातु م . و م अत्य योति संस्थाः س . م م रास्तु For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir و م |पं. अगदम् शरम् . १५ हस्तय م م 0 م کم م धीति पृटप. अाम् |२|तयथा |३ मंन काच | गृण्हीया: || केप्य ५ षोडशः م तेस्तया م » م و م م ॥ शम् तेपथा मंतो काश्च ग्रहीताः कोप्य षोडशी तेग रुयु विधि कर्तव्या م पिरिति ३ तिस्तथा ५ सृवा ६ रपि चापि ७ बैजीक १/२ चविशेषाणि तयथा و کم चापि नापि م م م و बैजिक . .. des. . १/४ स्त्रीह || विधि: कुर्वीत سم سم م ه ه विशेषा तानियथा || शो' . هم ه |१|३|शापू For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं.मा. पृ.प.| अहम् इम् | शुद्धिप. |पं. अशुम् ५ बान्त ६ पस्मृ कम धरता कम् बास्त पःस्मृ १/४/धंत و که ७ सेंन् सेन प:स्पृ १ पस्मृ Hom. ,100 सेष r کی کو کم کم که که دو F २ शांवा पांवा लाप م तास्म ताःस्मृ و थिद येद डेषन 11|२|इप 1१३ क्यपु १/५/ पित्रा د کم मणिचो ॥२॥ ४ मतयो | २५ हेमस्य । हेमन For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं.। अशुद्धम् शम् ॥ فيه ه ६ विभूया ه बिया यार्थ मुथ | योर्थ ه |पं. अशुद्धम् १कथिताः २ कशा २ दीर्घा २ जुष्ठा ३ सर्पिझ्या ه 215,999 ده که لا لا لا مه که که ۴ ॥ धम् कथितं कृशाः दीर्घाः जुष्ठाः सर्पिा बजत्य कंडन नत्रि रिणि ४ विलं बल ه ه ه बजय ४ विमितिवि वीति कर्मणी बाये که دوم कंडणं वीतमिति बीत कर्मणि ब्राह्मे बरो ه ६/नत्रि १रिणी २/७होमात् २१४ बर्ग || मोहात् ع For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie सं.भा. पृ.। पं.। अगुहम् ॥ शर्म अशुरम १२ हिरक गइम् हीरक: पत्रपुरे गोमूत्रं २६ पयादि १/४ भागं ५मात्रा जली पयआदि आगः मात्राः जले: रब्रा »10:11..." ११rs 19. गोमूत्रं रोना कस्तुरी शिरीष कस्तूरी सर्षपः सप्त लीर्या ती २ लियो २द्रीय २३ योगत २४ध्ययन वप योगस्त ॥ ध्ययने PAL संभ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ল २ २ अशुद्धम ३ गैरिका ३. पोक्तो ४ भाग: २ १२ २ ५ नरवस्य १२ २ ६ मृण्मय १२ १२ १३ १३ २ ७ भास्यु २ ७ गुलाः १२ वैपूल्यं; वैपूल्यं १ ३. सीत १ ४ / न्यानी शङ्कम गैरिकं पउक्तो भागाः नवम् मृन्मय भाः स्यु गुलः वैपुल्यं २ सित | न्यानि www.kobatirth.org प. १३ १३ १३ १३ |१३ |१३ १३ पू.। पं. १ ५ मकंच ५. कंच १ ५ कंगुश्व , ६ मा॥ १ ६ दुज १ ६ मा-हदा ७ष्ठात्म १३ अशुद्धम १. ७ रुकं | १३ १ ७ मा हा | २ | १ ||लीक्षास्तु For Private and Personal Use Only शुद्ध म माकाश्व का कंशुः माकाः ॥ | दूज माहू ठान्मृ रुळ महा लिक्षातु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं-भा. | प. प.। अशुद्धम् प. प.पं अशुद्धम शडिप. । शइम् पत्ते रुणला ک गुरम् षोडश आढक ق रुष्णाल: |माषा माष م द्रोणः वर्णा م रीविं वर्ण पाल षोडश इति ष्णाला शोडश |सःए م م م मए م कर्षइ प्रस्था पूजनं वोउक्तः व्याहृतिः पूजने | बाउक्ताः व्याहतीः م 11/५ द्रोणस्तु و For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . शुद्धम् नाम सत्यःस्यात् त्याद पे. अशुद्धम् ६ जातं १ पारक्येन A प्रपं. अशुद्दम् नामा |४|सत्यस्यात् त्यद मिआ २ योन देवताह गर्भाधा मिग ॥ शम् जानु पारक्येण धाम चीति बायाम दक्षिणनः याप वर्णः ७ चिरिति २ बाम दक्षितः २. या:प १४ वर्ण यश्चेति देवनानामान्याह गर्भआ रास्त चेतसा |२|२| नच्च॥ प्रचेनसा नञ्च २४ काः For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie A सं-मा प कम् || पं. अशडूम् ४ इंद्राणी शद्धिपः इद्राणी ४ ईश्वरी ईश्वरी द्रोणो पृ.पं. अशाम २० येन | चिन्यू ७|दिभिस्त २ तिस्मृ ७ धरे॥ ५प्रकर्ण कर्मे श्रेष्टेः पेदि | २ | सशर्करा चिन्न्यू दिस्त तिःस्मृ धरः॥ प्रकरणम् कर्मण्य & & & & & & ३ ण नंदुलान् तंदुला: 1919 #assion श्रेष्टेः दोषं दुष्करम् पुनन्नुमा स्वात्रि २४ पुन्तुमा वेचि |२५/१/३/ब्रह्मावि पति सशर्करम् ब्रह्मति For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir (पृ.पं.। अशुद्धम् ताश्च | हत्या ॥ इकडूम् तत्र " ه ه . हुसं . ه नाभि . م ة | याजुषां | संस्कार्यण षुभ्यं यजुषा ससंस्कार्येण . |पृ.पं॥ अशुद्धम् ॥ राम |२१|| उत्तरच्छदेउत्तराय सोत्तरच्छदेउपर्या स्तरणसहित २२ पर्व पर्वणि २३ शोडरा षोडश रस्यवा रान्यतम कोस्मा कःस्मा धियाज धियन्जि पश्भि पृश्नि गरेम गछेम ||२||आयुष्य आयुष्य م م م ه م م م م م م ر و م . له तंना तन्ना . مد पृष्ठि पृष्ठ शेय शेनय . و و १/७/खेन खेनोदमुखेन For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संभा ॥ ६ ॥ प. ३० ३० | पृ. | पं. १ अशुद्धम १ ५ ह्यावि ६ यथायथा २ ततोध्यानं ३६ १ ३ त्र्यंम्प ३६ २ ४ यिष्ण्वः ३९ | १५ वांछि ४१ १ ५ कुर्वीतः ४२ ७ पेचो ४२ २ २ यछा ४४ | २ | २ | गस्तु शद्धम म्हवि | यथायथं तत्रध्यानम् | त्र्यम्प्र यिष्यवः वांच्छि कुर्वीत पर्णवो खच्च्छा मस्त www.kobatirth.org प. पू. पं. नुज्ञात संद ४५ १ २ ४६ २ ३ ५१ १ ३ नोबा ५८ २ ३ मोद्रि. ६० १७ यव अशद्धम् ७८ १ ६ शशा ७९ ४ लंइति ८० २ २ स्थाय्य ८२ २ ६ तिस्त ८६ | १ | ४ || जैमिन For Private and Personal Use Only कदम नुज्ञातः संपद नोब मौद्धि यस्तंव शशी लइति स्थाप्य तिःस जैमिनि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुद्धिप० ॥६॥ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ۴ جم शम् । कम नोबै श्रीधे चिर्भव م होरुत जानी م नना तःखि पृ. |पं.। अशुद्धम् १५ नौ १७ चित्र न॥ता २ सुतानी ५ तदक यपिंड लालं و م م मत्तानां | अशुहम् २७ ग्ध्रीर्थे ५ होत ६ यानी ६ तस्वि |६ प्राच्यो १७ वादिरा |२१ भवाती १५ पूर्व- ह्माणं. दुर्मि. ११२/२६ रुतु. م माध्यो रवदिरा भयोती م م م م तदंकु यः पिंड लालं و و و و و चर م कसू १३८ ११ शीघ १३९/२/६/शिंद्यांत शीघ्र झिं यात् For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie सं-भा. पं. अशएम् शम् परतः १४२ /२/७ श्रुतये - - |३ कुकुस ४ कास मृषा श्रीयं पं. अशम् । शम् १७मीम ७ पुत्रक पुत्र वहत्सु वहन्सू मडप मंडप स्थापन स्थापनं ७नोराज्य नीराज्य यजम्ब यज्ञम्ब करग्रह करग्रह |३/माघं माघे 1१६/पेसते |पेक्ष्यते कस मृशा श्रियं स्वामलं यिश्री: |धिषणा नशी स्वमयं यीश्री धीषणा |२६|नमशी For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [प्र.पं. अशाडूम् पृ.पं.। अशुहम् ॥ शम् तोवरम्ब لو لم प्रिय ७ देवाःस ११ नामिति १ तिस्तृप्ति डम् पूक्तेषु देवास न्तामिति तिसभि परिसमूहनम् २७ घ्रिय १२ लभनं शंन्ध م م . 06.06 प.सूहनं वेत्य र्यनु م संपनम् कन्ध दष्टि उपरा नज्जो दृढांग २३ ऊर्वरा तन्वज्जो २४ रटांग १७र्यान م प्रजापनि २३ विदे २/२ कीतनां प्रजापति विन्दे || कीर्तनं चतुर्थी For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संसा ॥८ ॥ وہ نرم و पं.। अशङ्कम् | युजानोमा रहित २५२ 69 لم |पंः। अशुधम् |२ मिमांसा तोपि २२ रित्या २२ दंतिमः २२ न्यतु हकुल | ४ रजश्वला भिषिंच्य ११ तस्य होमकू मीमांसा तेरपि रीत्या इत्रिमः न्यस्त हाकुल रजस्वला भिषिच्य तस्या होमःकू ७वष्ट्य २७८२ ६ वल्मिकात् |३ निसपे २६माजस्यो १६/१/४ प्रकार | शम् युञ्जाना गृहीत दूत वेष्ट्य वल्मीकात् निक्षेपे माज्यस्यो प्रकार Br २१ इयंत व्हयन्त For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पं. अशडूम् |२/६ सहायनी ३२६/२७ मोअणेस्तैः, ॥ शम् सहायिनी मस्व,णै:चेः, हारैर यारनी प.पं. अशडूम् २२ स्माशदष्ट यावा ७/पौत्रायाय अक्ष प्रदश १/४ विशनि १७ समा. २६ यःसया. ३१९२६ जलाया १७ रष्टि | स्माद्दशदशेष्ट याश्च पौत्राय पक्ष्य प्रदेश विशतः तन्मा. यस्तेमा. जलावा दष्टि जारनी चतुर्थ षिच्य |२६ चतुर्थः २६/११ पिंच्य ३३० २/३ स्मश्र ३४२१५ सूर्याव ३४२२४ विपा श्मश्रु सूर्या विषा यज्ञो । ३४५/२/६/रानो For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं.भा. प. पृ.प.1 अशङ्कम् ४६/१२/पासि ३४६१६जप पृ.।। अशम् ३४७/२६/क्षता वासि । क्षनादि समाप्तम् For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir - - - LLTTTTTTTTTTTTTTற் டிட்டிபட்ட N HEEMANRMALAALLAMANIMAAMARAIMAARITTARNINAMALHAANALAMARLANKA கரும் KOOTTOLYCY | इतिसस्कारभास्करस्यशद्धिपत्रम्. Bாயங்கா NERVONVENONN .45 0 6 .40 . .. . .. . . . . . . UMANIAMVRMAURUUU . . . . . . . .. . .. . . . . . . . .. . .. O . . . 0 . .. . . . . . . . . . .. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अथसंस्कारभास्करस्यानुक्रमणिका प्रारंभः For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . प.पं. . . संभाः। श्रीगणेशायनमः॥अथसंस्कारभास्करस्यानुक्रमणिकापामः । अनुक. पत्रं पृष्ठ पडि प्रकरणानि प्रकरणानि ११"गणपतिस्मरणम् संस्काराणांफलानि | २ मंगलाचरणम् १२ विशेषावश्यकानिकर्माणि . ५ ग्रंथकर्तृनामादि • परिभाषारंभः गौतमोक्तचत्वारिंशसंस्काराः संकल्पाकरणेदोषः अंगिरउक्तपंचविंशतिसंस्कारा: संकल्पेमासादि स्वगृह्योक्तषोडशसंस्कारा: स्वशारयोक्तकर्माकरणेदोष: हिजादन्यः • अन्यथाकर्मकरणेदोषः । |३|कन्यायाअष्टसंस्काराः 1. प्रधानकर्माकरणेतदंगाकरणेचप्रायश्चित्त ॥ . . . . . For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir م . . م . م م . 1. . . . . प्रकरणानि प्रकरणानि धौतवस्त्रधारणं ५२/७/पवित्रेदर्पसंख्या वाग्यमलोपे प्राः ६/१/३/दर्भकुशलक्षणं आइतवस्त्रलक्षणं * 4 अयानयामानि |कंबलेपट्टवस्त्रेचनीलीरागःशास्तः * 5 निर्माल्यकुशाः 5 उदकोपस्पर्शकारणानि * 10/७/पवित्रधारणस्थानंलक्षणंच अनुक्तोगेअंगं २/स्वर्णपवित्रप्रमाणे अदिजियमे .05 पवित्राभावेदर्माः | 4 आसीनाधनियमे *5 ब्रह्मविष्टरनिर्णयः | | 0/7 उपवीतिनाबद्धशिरवेनचविनाकर्म करणेदोषः . *6 पवित्रप्रमाणे 7 /१/३/यज्ञोपवीतनिवीतप्राचीनावीतलक्षणमा ه م . . . . . . و کم ه ي For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संभा॥ अनुक्र 1 . 4 . .64. . .. 5. . . .. . . (पृ.|पंग प्रकरणानि मंगलेतिलकनिश्चयः आहुतिकाल: 1 चन्हिजायालक्षणं यज्ञीयवृक्षाः *5 समिप्रमाणंयायायायविचार 4 गुदानीतसमिदादीनांदोषः देवपिनफर्मुकंड्नादिनिर्णयः असमिद्वानोहोमे दोषः अमिधमनविचारः 1४/सामान्यग्रहहोमाहुतिप्रमाणं प्रकरणानि 25 स्वग्रयोक्तधर्मनिश्चयः अन्यथाकर्मकरणेविचारः उक्तवस्वभावअन्यग्रहणविचारः ६/मूलमंत्रोचारप्रकार: ७/ध्याद्यलाभेप्रतिनिधिः 4 प्राजापत्यादितीर्थनिर्णय: आहुतिद्रव्यग्रहणमानं * 6 स्त्रवेणहवनद्रव्याणि 10/1/1 द्रव्योदेनआहुतिमानं // 10 21 एकाहुत्यांकरादूर्वासरच्या . . . . . For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 4 ف ق 6. . . 6 و प्रकरणानि सर्वोषधयः 4 अर्घद्रव्याणि 6 सप्तधातयः -. . . م و که पंचरंगाः प्रकरणानि 1 मृगीमुद्रालक्षणं 3 ऋषिलंदअज्ञानेदोषः 19 पंचरत्नानि |३/मांगल्याभरणानि 04 पंचगव्यं 2/2 मधुरत्रयं |3 पंचामृतानि * पंचांगा: ६/यक्षकर्दमः * 7 सर्वगंधाः ک . . و . 3 दशांगधूपः धातुमयकलशाः कलशप्रमाणं कलशेपूर्णपाचं सप्तधान्यानि ••६/सप्तमृदः ام . . . . For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ل For . س . . प्रकरणानि द्रव्यमानं तारमानं धान्यमानं स्मातकर्मक्रमः दशप्रणवाः 2 कर्मविशेषेअमिनामानि कर्मागस्वस्तिवाचनेदेवताः कर्मादीप्रणवोच्चारणं 6 इत्यादिशाक्षणेपिकर्माधिकारः 100 स्नानोत्तरंकर्माधिकारः که د هه مو که م لا وظ 6 . . . . . . .64 प प्रकरणानि 2 मुख्यस्मानं 2 संध्यावंदनंविनाअशचिः 4 सर्वकर्मसुयोग्यताफर्माणि ७/कर्मांगनानेविरोष: 22 मंगलस्नानं. * आशकवासोनिर्णयः सप्तवाना हनवस्त्रंशष्फ दग्धजीर्णादिवस्त्रपरिधानेनिषेधः वय॑वस्त्राणि . . ६/धौतवस्त्रप्रसारणनिर्णय: . م . ) . * For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsun Gyanmandie प.प. 1 : . . .24 ba. . . . . . . . प्रकरणानि अन्यदासः धीतवस्याभावेवस्त्राणि | 4 नीलरक्तवस्त्रनिषेधः ५/एकवस्वपरिधानेनिषेधः 1 एकवरूपनिर्णयः कच्छत्रयनिर्णयः धर्मकार्यवय॑वस्त्रं आसरीकक्षानिषेधः २.यज्ञोपवीनधारणसंख्या शिरवाबंधनिर्णयः प्रकरणानि 5 विशिखनिर्णयः / कर्मकालेनिंद्यशब्दाः | 2 उपांशुलक्षणं 4 सष्टतवर्णोच्चारः 5 घोडशोपचाराः 1 पंचोपचाराः २/राजोपचाराः *.5 निकादीनांदक्षिणायनेयत्ता .५/धनिकादिलक्षणं २१/१/६/धनिकादीनांमध्येकेनकियोयमित्यस्पनि / . . * . . . . . For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie ल सं.मा. अनुक्र० ܗ ܐ ܢܞ द - . . प. प. प्रकरणानि प. पं. प्रकरणानि 22 1/1 सूख्यकल्पशक्तीअनुकल्पेनकर्मक || 26 2/2 |मंगलस्नानविधिः रणेदोष: वस्त्रपरिधानादि 4 दक्षिणाप्रतिनिधिः 26 शांतिपाठमंत्राः 5 रजतमुद्रादक्षिणादाननिषेधः 1 करिंगणेशादिस्मरणं ६|सर्वकर्मसब्राह्मणभोजनसंख्या १/प्रधानसंकल्पः २सफलानिकर्माणि 2/4 कलशदीपपूजनं * इतिपरिभाषाप्रकरणं॥ गणपतिपूजन अग्निचक्र विनाकर्माणि 12 स्वस्तिपुण्याहवाचनकारिका 3 नारदोक्तरजोदर्शनशांतिक्रमः पुण्याहवाचनांगवरुणपूजनं 25/2/1 शांतिप्रयोगानुक्रमः || 14 अथपुण्याहवाचन 4. . . . ܐ . . * ܗ ܐ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir bar पकरणानि 7 अथाभिषेक: 7 नीराजनं मातृकास्थापनंगणनाच मातृकापूजन | 3 रहमध्येअविनकलवामानशूर्पस्थापनं वसोर्धाराकरणं आयुष्यमंत्रजपः .5 मंडपेसंस्काराः 10/6 मंडरविनामातृकापूजनाभावः 11 नांदीश्राइकालः AKS014 प. पू. प्रकरणानि २५/नांदीश्रादमध्येद्वितीयनांदीश्राद्धनिषेध 1/6 अयजीवसिरकेवृद्धिाइनिर्णयः॥॥ |2 अथसांकल्पविधिनानांदीश्रादप्रयोगः २/५/ब्रह्माचार्यऋतिम्बरणानि 1/2 आचार्यादीनांमार्थना 2 दियक्षणं ६९/२/१/पंचगव्यकरणं भूमिपूजन ०६पंचभूसंस्कारकारणं . . 1/2 स्थडिपचभूसस्काराः For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 4 सं०भा० प. || जनका >> و مد प्रकरणानि अमिस्थापन 6 कतुशांतीविशेषः 2 मूर्तीनांअभ्युत्तारणं ५/प्राणप्रतिष्ठा सूर्याचाहनं इंद्राचाहनं इंद्राण्यावाहनं 3 भुवनेश्वर्यावाहनं सूर्यादिदेवतापूजन |६|सूर्यमार्थनाक्षमापनंच 55E * * * * Foa666..--. 95.5-0643 . प्रकरणानि इन्द्रमार्थनाक्षमापनंच इंद्राणीप्रार्थनाक्षमापनंच भुवनेश्वरीप्रार्थनाक्षमापनंच 3 स्वर्णकदलीस्थापन 1 सूर्यादीनांसूक्तजपः 4 महमंडलदेवतापकारः यहनामानि यहवर्णाः ग्रहमतिमानिर्माणधातवः | 4 ग्रहप्रतिमानिर्माणप्रकारः . و . . و . For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ظ 2 bina و کم |प . प्रकरणानि प्रकरणानि ६/ग्रहदेशाः ६/प्रत्यधिदेवतानामानि 2 ग्रहगोत्राणि गणेशदुर्गादीनांस्थानानि यहामिनामाचाश्लोकमूळपुस्तकांतनजरचुकी 3 इन्द्रादिदिक्पालानांस्थानानि नेलिहिणेराहिल्यामुछेअनुक्रमणिकेच्याशेच ५/ग्रहाणांवस्त्राणिपुष्पाणिच .5 ग्रहस्थानानि [लिहिलाआहे. 6 ग्रहाणांगंधाः ग्रहमंडलच्यासाः 1 ग्रहणांधूपाः *.6 ग्रहदिङ्मुखानि **3 यहणांनैवेद्यानि 8.11 यजमानाभिमुरवग्रहाणांस्थापनं 6) हविर्द्रव्याणि *.3 अधिदेवताप्रत्यधिदेवतास्थानानि 100ग्रहाणांसमिधः अधिदेवतानामानि |२/१/काण्डानुसमयः 6 . . . . . .10 0 09 . . . . . For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संभा अनक // 6 // م प. पं. प्रकरणानि प्रकरणानि , 13.2 पदार्थानुसमयः / पूर्णाहुतिहोमस्वधारणादि | 3 गणेशायवराहुतिः यहमंडलेगणपतिदुर्गाक्षेत्रपालावाहनं | 4 आधारा ज्यभागाहुतिसंख्या / 5 यहाणांस्थापन 6 विविधग्रहमरवाः 4 ग्रहपूजा विविधग्रहमरवेषयहाणा आहुतिसं 91 1/7 यहाणोंप्रार्थनामंबाः रव्या 4 रुद्रकलशस्थापन कुशकंडिकाव्यारख्या .5 अधिप्रत्यधिदेवताहुतिसंख्या २वारुणपात्रलक्षणं 2/3 पूर्णाहुत्तिमंत्रक्रमः 4 चमसलक्षणं * // 2/7 पूर्णाहुत्याज्यसंस्कारः 11/1 परिस्तरणलक्षणं FE * 25 * * * iv. 6606 ख्याख्यापूरणार्थ 12 व्याहृनिहोम संख्यापूरण ر // 6 // For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . . * . . * * * * . पृ.पं. प्रकरणानि 13 आसादनीयपात्रमध्ये उत्तरम् आज्यस्थालील. चरुस्थालीलक्षणं सम्मार्गकुशलक्षणं उपयमनकुशलक्षणं वलक्षणं पवित्रच्छेदनलक्षणं उसवनोहिंगनलक्षणम् प्रोक्षणेकरणमाह |२/१/असंचरस्थान प्रकरणानि तंदुलक्षालनप्रकार: ६/श्रपणप्रकार: पर्यमिकरणंतलारणंच 2 सुवसम्मार्जनप्रकारः 7/ उदासनस्थान 2 उत्सुनातिकरणलक्षणं ६/प्रदक्षिणपर्युक्षणकारणं ९६/१२/आधारावाज्याहुतिप्रकारः | २/३/उपांशुप्रकार: •/५/अन्वारंप. * * . * . * . * For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie साभा. अनुकर par. फा .पं. प्रकरणानि // 96 26 सुवधारणप. सूयहोमेएव त्याग: अनेक सुवसाध्यहोमप्रकार: ६/अमिपूजास्थानं 2/2 विष्टरुदाहुनि निर्णयः 7 अन्वाधाननिर्णयः कुशकंडिका 4 आहुनिदानसमयः मुरव्यहवि: | हबनारमाहुतिसंख्या * * * *. - * *6.-- 105696-- ॥प. पू.पं. प्रकरणानि 3 मृडामेस्त्तरपूजनंलक्षणंच भूरायानवाहुतयः 2 दिक्पालानांबलिदानं 105/22 गणेशदुर्गाक्षेत्रपालानांबलिदानं 10/3 ग्रहाणांबलिदानं 4 मातॄणांबलिदान ६/प्रधानदेवताबलिदानं 108 |३/क्षेत्रपालमहाबलि: 109/11 दुर्ब्राह्मणलक्षणं || •|२१|पूर्णाहुतिहोमः .. . For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie 116/2/4 मूर्तिदानं प.प. प्रकरणानि 16 वसोर्धारामंत्राः वसोर्धाराब्राह्मण च्यायुषकरणं २/५/श्रेयःसंपादनं 115 /2.5 आचार्यपूजनं 0/7 स्वर्णदानं 12 गोदानं .4 भूमिदानं .६/तिलपावदानं * 2/1 हेमकदलीदानं प्रकरणानि ..6 अभिषेकमंत्राः 119/2/1 अभिषेकेपौराणमत्रा: 12016 आज्यावलोकनं |25 ब्राह्मणभोजनसंकल्प: * 016 आचार्यादीनांदक्षिणादानं 121 1 1 देवताविसर्जन * अभिविसर्जन 7 कर्मेश्वरार्पणं // . |2/7 गर्भाधानसंस्कारनिर्णय: For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं.भा. अनुक . . 5 गर्भाधानकाल: . पप.पं.। प्रकरणानि // प. पं. प्रकरणानि 122/12 प्रथमतौशिष्टाचाराकर्त्तव्यम् || 124 2/3 गर्भाधाननिर्णयः 6 सर्वसाधारणेविशेषः | **6 गर्भाधानप्रयोगानुक्रमः * 2/3 रजस्वलाशद्धिप्रकारः गर्भाधानप्रयोग: 127/ १गर्भधारणार्थमौषधं 123 2/4 स्त्रीणांयोगपयेनक्रतीगमनक्रमः ..5 पुंसवननिर्णयः ..6 अगूमनेदोषः 12814 पुंसवनप्रयोगः 124/1/2 गर्भाधानाकरणेप्रायश्चित्तं 1291 6 गर्भिणीधर्माः ऋतावक्रतीचगमनेशुद्धिप्रकारः १३०/२/६/गर्मिणीपतिधर्माः * 10/६/रजोदर्शनासाग्रस्त्रीगमने दोष: 134/1/1 गर्भवृध्युपायः * 21 गर्भाधानेमलमासादिनिर्णय: || ..४गर्भरक्षोपायः // 8 // For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 4... 0 م م 0 प. पं. प्रकरणानि || प. प.प. प्रकरणानि गस्त्रिावहरोपायः जातकर्मसंस्कारनिर्णयः 11 सीमंतोन्नयननिर्णयः जातकर्मांगनांदीश्राद्धनिर्णय: सीमंतोन्नयनप्रयोगानुक्रमः | नालछेदने कालावधिः सीमंतोन्नयनमयोगः नालछेदनप्रकारः 137/1/4 औदुंबरादिपंचकबंधनं जातकर्मक्रमः 138/1/3 गर्भाधानायकरणेपायश्चित्तं जातकर्मप्रयोगः **4 शीघ्रप्रसवोपायमंत्र: मेधाजननं . .7 शीघ्रमसवार्थयत्रं आयुष्यकरण * 26 शीघ्रप्रसवार्यमंत्रितंजलं |141/2/2 वात्सममंत्राः 139 / / 5 कुयोगादिशातिप्राप्तीस्माननिर्णयः, 143/116 कुमारमातुरभिमंत्रणमंत्राः 0 .२.३मधाज 0 For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 1471 . . संभा॥ || (पं। प्रकरणानि प. पं. प्रकरणानि कुमारयस्तनप्रदानमंत्राः 1 षष्ठीपूजनप्रकारः **4 उदकपूर्णकलशस्थापनमंत्रः |2/4 षष्ठीप्रार्थना अग्निस्थापन सूतिकारहे वलिदानमंत्र: हवनमंत्राः .3 द्वारमातृकाः बालयहः कुमारमुपद्रवेत्तदामंत्राः || 152/1 रात्रिवर्ग(शांतिपाठ मंत्रक्रमः यहणेजाताशौचमध्येचजातकर्मक/ * 2 5 अयनामकरणसंस्कारनिर्णयः रणनिर्णयः |२/६नामकरणप्रयोग: बालस्यदुष्टदृष्टिदोषरक्षाविधिः 21 उपांशुलक्षण बालरोदनपरिहारार्थयंत्र |... आयुष्यकरणमंत्रा: | अथषष्ठीपूजनफारिकाक्रमः || १५७/२/२/आंदोलारोहणं . For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | प. ./पं.। ف ک ف पृ.पं. प्रकरणानि प्रकरणानि 25 पयःपानं 162/26 कंन्याविषये संकल्पः अथनिक्रमणसंस्कारः // 163 16 पुत्रदानसकसः कुमारायसूर्यदर्शनं कन्यादानसेकपः भूम्युपवेशनं हवनविधिः अथान्नप्राशनसंस्कारः | अतरितसंस्कारेपायश्चित्तं शौनकोकदलपुत्रप्रतिग्रहविधाननिर्णय 167/1/7 संक्षिप्तांतरितसंस्कारप्रयोग: २६/दत्तकेविशेष: 4 अथचूडाकरणसंस्कारनिर्णयः | 1/3 कन्यादत्तकग्रहणेविशेष: चूडाकरणप्रयोगः 4 स्त्रीशूद्रयोस्तविशेष: 174/21 स्पृष्टास्पृशरिप्रकार: २३/पुत्रप्रतिग्रहप्रयोग: कर्णवेधः س و 168 सातरित /10/1/ .d For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं०भा० // 10 // bvo . . . पं. प्रकरणानि 22 कर्णक्षालनप्रकार: ०५/रुत्रीणोजातादिसंस्कारनि वर्धापननिर्णयः वर्धापनप्रयोगः 11/४अथाक्षरलेखनारंभनिर्णयः 2 अक्षरारंभप्रयोगानुक्रमः अक्षरारंभप्रयोग: 6 अथोपनयन उपनयनेकाल: 13 उपनयनशब्दार्थ: ॥प प्रकरणानि ब्राह्मणादीनांवसंतादिऋतुग्रहणनिर्ण-|| ज्येष्ठमासनिर्णयः 6 जन्मनक्षत्रादिवयंनिर्ण ज्येष्ठमासापवादः जन्ममासादीनामपवादः उपनयनेनिथ्यादि नैमिनिकानध्यायोपिकाल ग्रहणविचार: |1851 /2 प्रायश्चित्तनिमित्तमेस्खलाबंधने विशेष निर्णयः . // 10 // For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir و م प प्रकरणानि प्रकरणानि 185/22 नष्टचंद्रेअष्टमशकेनिरंशेमास्करेच 1871/6 वर्णाधिपतिस्तद्धलंच व्रतंशस्तं |25 संकटेचंद्रतारायभावेदानं निरंशस्वरूपं * गुरुवलालाने निर्णयः |••६/युगा धनध्यायानांप्रतिप्रसवः |nce/1/2 दुष्टस्थानस्येगुरौशात्यापिनोपनय 1861 2 वयोदश्यादिनिथिय॑संनत्रापपादश्न नाधिकारः 5 अनध्यायस्यपूर्वापरदिनवयंसे 5 अतिसंकरेवत्सरातिकमेचनिर्णय: सोपप दानिषेधोयाजषानविना ..6 | राशिविशेषस्थेगुरोअनिष्टस्थानस्ये सोपप दातिथयः पिनदोषः वारनिर्णयः * 22 रव्यादिग्रहाणांउच्चूस्थानानि 1871/3 शाखाधिपवलाभावेदोषः . 5 अनिष्टगुरुरेकघर्चनाच्छुभः و . . For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं.भा. // 11 // ميم م अनुकर م س کی ه प. प.पं. प्रकरणानि प्रकरणानि 15 उपनयनेनक्षत्राणि 192/13 लमकाला: वेदविरोषेनक्षत्रविशेषाः |** उपनयनाधिकारिण: उपनयनेयोगाः 22 आचार्यादीनांकर्मनिर्णय: उपनयनेकरणानि | 194/1/1 अधिकारसिद्धयेप्रायश्चित्तं 7 उपनयनेदिनभागव्यवस्था 4 मंडपनिर्माणप्रकार: 191 1 2 उपनयनेनिमित्तविशेषेणनिषेधः | 2 वेदीनिर्माणाप्रकारः ..4 निषेधापवादाः / |५/पटीयंत्रपकारः 5 चंद्रसूर्यग्रहणेवय॑दिनानि |६|घटीगमनदिक्फलानि अकालवृष्टयादोकार्याकार्यविचारः | 196/1/2 अनिष्टदिग्गनघटीदोषपरिहारोपायः ||192 /2/6 उपनयनोंत्तरंसूतकप्राप्नोविशेषः // **| |उपनयनसंभारा:अजिनप्रकारश्व و هه For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir یہ سم م . ر प्रकरणानि प्रकरणानि 17 मेखलानिर्माणपकारः || 204 25 पेषादिकर्म 1 यज्ञोपवीतनिर्माणप्रकारः || 2081/2 ब्रह्मचारिणेव्रत्तोपदेशः दंडप्रकारः * 2/2 गायत्र्युपदेशादिकर्म उपनयनेमात्रासृहभोजननिर्णयः 2091/7 समिदाधानं 2001/2 मातृभोजनापूर्वमातरिरजस्खलायां 210/15 मुखविमार्जनं | निर्णयः 22 अंगालेभनं उपनयनक्रमकारिका // 211/1/3 अभिवादन * 26 उपनयनप्रयोग: |.27 संध्यावंदनाधिकारः ..7 उपनयनदिनरुत्यं 212 1/1 भिक्षाचरणं |2032/3 प्रतिष्ठामंत्राः // 25 ब्रह्मचारियमनियमा: و For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ظ. सं० मा // 12 // प. पं. प्रकरणानि प्रकरणानि || 213/2/4 अथाशीर्वादब्राह्मणमंत्रा: 228 /१/६/अयब्रह्मचारिणतलपेप्रायश्चित्तं॥ 210/15 ब्रह्मचारिनित्योपासना | 229 2/4 अथवेदारंभ निर्णयः 1/6 यमलजातपुत्रयोरुपनयननिर्णयः ||23026 वेदारंभप्रयोगानुक्रमः 7 यमलपुत्रयोरुपनयनपयोगविशेषः |23111 वेदारंभप्रयोगः अथकर्माधिकारदान * 2/1 वेदारंभातयः अथयमलजातकन्यकोग्रहप्रकारः 232/1/4 वेदाध्ययनारंभः विकलांगाद्युपनयनप्रकारः 22317 अथकेशांतसंस्कारः 223 पुनरुपनयनकारणंतहिधिश्च / || 225/26 अथसमावर्ननसंस्कारः अययजुर्वेदिनांप्रायश्चितैःसहपुन 236 22 समावर्तन प्रयोगानुक्रमः प्रयोगश्च | // 12 // रुपनयनप्रयोगः || 239/2/2 स्नानार्थअष्टोदकुंभस्थापनस्नानंच|| || 226 For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie به ر ه ه प्रकरणानि // प. पृ.प. प्रकरणानि |2/1 आदित्योपस्थानमंत्र: अतिरुच्छ्रप्रकार: तलत्याम्नायश्च 5 दधिप्राशनादिकर्म रुच्छ्रातिरुच्छ्रप्रकारतरत्याम्नायव 241/1/5 अयचंदनवनयज्ञोपवीतादिधारण 247/1/1 चांद्रायणप्रकारातत्सत्याम्नायश्च मंत्राः | .:/5 प्रथमाब्दप्राजापत्यरुन्छ्वतेसंकल्पः 242/2/4 स्नातस्यनियमाः |*|2/3 द्वितीयाब्देअतिरुच्व्रतेसंकल्पादि |2441 / स्नातस्पअहोरात्रत्रयंवतचर्याच्यते | * * तृतीयाब्देलातिरुच्नतेसंकल्पादि अथक्रमप्राप्तीविवाहः .. 218/1/4 टतीयाब्दार्थाचांद्रायणवतैसंकल्लादि |*| तबादौअनामिनिर्णयःप्रायश्चित्तंच २/१/विवाहोपयोगीकन्यादिप्रकारनिर्णयः |07 पाजापत्यरुच्छ्रप्रकारतरत्याम्ना 11 कन्यालक्षणपरीक्षा यश्च // .. कन्यादोषाः For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं-भा // 13 // م م م ف प. पृ.।। प्रकरणानि प्रकरणानि अथवरगुणाः |256/2/4 एकवत्सरेसमानोदरकन्ययोः वरयोश्च || अथवरदोषाः विवाहनिषेधः अथसापिंड्यनिर्णयः नविशेष: अथदत्तकसापिंड्यनिर्णय: ||258 1/6 एकवासरेयमलजातवियाहनिर्णयः अथगोत्रप्रवरनिर्णयः | * 2/2 स्त्रीणांउपनयनस्थानेविवाहोक्ति अथदत्तकस्यगोत्रादिनिर्णयः निर्णय: अथप्रत्युदाहादिनिषेधः एकवत्सरेकन्यापुत्रयोर्विवाहोपनय अथसोदरकन्यापुत्रयोविवाह ननिर्णयः * * . कन्यापुत्रयोः परिवेत सपरिवेत्तिस |२५६/१/६/प्रवेशादेकवर्षेनिर्गमनिषेधः निर्णयः م ل // 13 // For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir یہ لو ق کم م ه 5 परिवेदनदाषस्यापूवार ر >> ه و प्रकरणानि प. प.पं. प्रकरणानि प्रवेशनिर्गमनिर्णयः / 4 परिवेत्रादिनिर्णयःप्रायश्चित्तंच 5 नांदीश्रादोत्तरनिषिद्ध कर्माणि | अथायदिधिष्पत्सादेविशेषः मुंडनस्यनिर्णयः पुत्रोहाहात्कन्याविवाहनिर्णयः २६७/२/५/विवाहेआशीचमाप्तीनिर्णयः अथशोधनसन्निपातनिर्णयः 268/2/4 मुहूर्तावराजा सामग्र्याहतायांसू मंडनमुंडनविचारः / तकिनोप्यधिकारोपायमाह 7 चत्वारिमुंडनानि 269/1/2 आरंभोत्तरंसूतके प्राप्तेविशेषः अथगुरुलघुमंगलनिर्णयः / संकलितान्नभोजननिर्णयः 264/2/9 सीमताद्यन्नप्राशनांनसंस्कारेषुगुरु | * 2/3 अविवाहेवधूवरजननीरजोदोषे| शकास्ताधिमासादिनिर्णयः निर्णयः م مو م در ه 6 لم For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अल _ संभा. प. पं. प्रकरणानि // प. पू.|पं. प्रकरणानि // 14 // ||270 1/4 नांदीश्राद्धोत्तरंरजोदर्शनोसत्तौनिर्णयः, 273/25 विपरुषांतर्गतेमतेप्रतिकूल दोषनिर . 5 अथकन्यारजोदोषनिर्णयः // 274/2/5 अथचूडोपनयनोहाहानामारंभोत्तरं 27/2/1 अयविवाहहोमकालेकन्याऋतुमनी|| / / जननाशौचपाप्तीकूष्मांडीहोमप्रकास चेत्तत्रनिर्णयः ||276/17 अथविवाह होमकाले कन्याकतुम ..6 अथपतिकूलनिर्णयः तीचेत्तत्रहोमप्रयोगः 272 2/1 अथसंकटेप्रवृत्तिप्रकारमाह . ||277/2 2 अयश्रीशांतिपयोग: **7 प्रतिकूलेपिविवाहकर्तव्यतानिर्णयः 270 21 अथविनायकशांतिकालः 273/1/4 |संकटेविनायकशांतिः ||1 अथविनायकशांतिसेभाराः प्रतिकूल दोषेधिनायकशांतिः, 279 2 2 चिनायकशांतिप्रयोगः // 14 * 2/3 वानिश्चयोत्तरसूतकप्राप्नोनिर्णयः॥२८७/२/६/अथकन्यावर यो:गुर्वर्कबलनिर्णयः / / . . . For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प. og प ." प्रकरणानि // प. पृ. पं. प्रकरणानि 28827 अथबृहस्पतिशांतिः ||2971 6 अयसीमंतिकार्चनं अथाशीविवाहलेदाः 1 वरप्रस्थानरुत्यं कन्याविवाहकालः 7 मधुपर्कक्रमकारिका 2/4 कन्यादानाधिकारिणः 7 अथमधुपर्कप्रयोगः 292/1/6 विवाहदिनात्माविवाहांगकर्मनिर्णयः | 302/2/2 अथगवालंभनंतरयोगश्च |293 /1 || अथब्राह्मवियाहांगवाग्दानविधिः 303/12 अथवरायगंधाधुपचारदानं 12 तेलहरिद्वारोपणंगोधूमपूजनंच .21 विवाहवेद्युपरिअभिस्थापनादि १३.विवाहदिनकर्तव्यमुच्यते 204/1/2 वधूवरांतरालेअंतःपटधारणमंग 5 घटीगमनदिरफलानि लसूक्तादिपठनंच * 2 / 2 /अथगौरीहरपूजनं ||••|४|यरकंठेपुष्पमालार्पणं >> . For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प. संभा॥१५॥ अनुक. hiva 0 0 प. प.पं.। . प्रकरणानि 304 16 वधूवरयो:प्रत्यङ्माङ्-मुरयोपवेशनं ..7 अथप्रतिष्ठामंत्राः .२५अथवरोवधैपरिधानार्यवस्वाद्यर्पणं 305 16 मांगल्यतंतुबंधनं अथसूबवेष्टनमंत्राः 306/2/2 अथकन्यादानसंकल्पादि अथकन्यादानांगगोदानादि 6 गोदानमंत्रः 7 अंगुलीयकदानमंत्रः |2/1 कुंडलदानमंत्रः 6 0 प.पं. प्रकरणानि बलयदानमंत्रः ताम्रपात्रजलपात्रदानमंत्रः 4 कास्यपादानमंत्र: रौप्यपात्रदानमंत्रः तांबूलदानमंत्रः दीपदानमंत्रः वरायोपदेशः. अथसुवर्णाभिषेक मंत्राः 1/4 वरमार्थनादि 2/6 अथगणपतिपूजनककणबंधन 0 0 . // 15 // For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प. प.पं. م که که प्रकरणानि // प. पृ.पं. .. प्रकरणानि | | वधूवर्योरग्मिसमीपेगमनादि। अथगाथागानं 4 दक्षिणतोब्रह्मासनादिउपकंसनीयानिच 31/1 | अयाग्निपरिक्रमणादि आधारावाज्यभागोभूरायष्टाहुतयश्च 2 अथसप्तपदी अथराष्ट्रद्धोमः सप्ताचलपूजनं अथजयाहोमः अथकन्याप्रतिज्ञामंत्राः अथान्यातानहोमः वधूमूर्धन्यभिषेकादिकर्म अथामिरित्यादिपंचकहोमः |324/26 अथाशीवृंदमंत्राः अथलाजाहोमः ||३२६/१/२/वधूवरयोमंत्रपठनकारिका ||३२०/१/६/वरेणवधूहस्तग्रहणमंत्रः 1.६/अथेविवाहेमंत्राधिकारिण: अथाश्मारोहणं 1 . 2/1 अथविवाहहोमेआहुतित्यागादिकारिका 317/12 و که کی For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अनुक्र र्थनाच . . संभा -|| ||.प .पं. प्रकरणानि प.प.पं. प्रकरणानि // 16 ||32521 अवातक कन्योबाहेनिर्णयः३३०१ 5 कन्यानिवेदन ..2 अथग्रामवचनार्थः यसिष्ठारूंधतीपूजनअर्घ्यदानमा 4 विवाहादारस्यघिराचंवरनियमादि 328 1/3 अथऐरिणीप्रदानं वायनदानानि .2 अथऐरिणीपूजा वरहस्ते कन्यानिवेदनं 329/11 ऐरिणीप्रार्थना अथवधूप्रवेशनिर्णयः **4 वरमात्रेऐरिणीदानं वधूप्रवेशांगगणपतिपूजनादि वरगोबाजादीनांवरूपादिभिःपूजनं 332/14 अथप्रथमाब्देधूनिवासः प्रार्थनाच [रसिधारणं अधचतुर्थीकर्मक्रमः || 330 // 1 /२/ऐरिणीवंशपात्रस्यवरगोत्रजादीनांशि॥ * 27 चतुर्थीकर्मप्रयोगः ی م س م 0 0 . // 16 // For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |र्णय: प्रकरणानि पए पर 3 अथदेवकोस्थापनमंडपोद्वासननि||३३९/२/३ अयप्रयोगः प्रकरणानि 241/1 2 अथैकमार्यावियमानवेदिनीयविवाहे| 335 1 1 देवकोत्थापनप्रयोगः अधिवेदनीयकारणमाह 336/2/- अथद्विरागमनं .0/3 अधिवेदनेकालप्रतीक्षामाह 337|| 2 /2 विवाहे भार्ययासहभोजनमाहू |.05 विवाहांतरेविशेषमाह दिवकोस्थापनपर्यंतंनिषिद्धकर्माणि / ||2|| अथस्त्री निधनेहितीयपरिणयकालमा प्रथमावृविसर्जनानंतर अब्दपर्यंत निषेधः अत्रापवादश्च |241/2/3 अथकन्याविषयोगोसून्नाचेदेषव्य 4 कन्यारहेनोजननिषेधः एमक्रम: योगहरकुंभविवाहनिर्णयः ||239 // 1 4 अथवरस्यस्तभार्यवपरिहारोपायक ||242 /2/2 |अथकुंतविवाहपयोग: . کی و 3301 For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पर फूप. अनत्र संभा. // 17 // प्रकरणानि // प. प. प्रकरणानि 343/26 अथबालवैधव्य हरविष्णुमूर्तिदानं 35125 अथार्कीविवाहांगहोमः |245/12 अथार्कीविवाहनिर्णयः अनादिष्टप्रायश्चित्तनिर्णयः |347/2/3 अत्रशोनकोक्तहोमप्रकार: अनादिष्टप्रायश्चित्तमयोगः |348 2/3 अथार्कीविवाहप्रयोगः इतिसंस्कार भास्करपया नुक्रमणिकासमाप्ता. श्लोक:॥ // आदित्ये कपिलोनामपिंगल: सोमउच्यते॥धूमकेतुस्नयालोमेजदूरोमिधे स्मृतः॥१॥ बृहस्पतौशिरचीनामशकेभवतिहाटकः॥ शनैश्चरेमहातेजाराहोके तोहुँता सनः॥२॥ // 17 // For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir STORYRAK लललललललल HALA-A-A httttiMAMMORE अथसंस्कारभास्करःपारश्यते. AAAAMANAL NRNAKINARAYAPARYANAPATYA For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie Dynamometr 90.0000000000000OOOOO TAMAT YEYE Teil 312 0990ODOCOOOOO For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie WS 22 CUTITIR AM YES For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsunl Gyanmandir www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकलेशः प्रसीदतु. (पद्यम्। संस्कार भास्करस्यास्य संबन्धादिचतुष्टयम्॥ जिज्ञासुम्यो ज्ञापयितुं प्रस्तावः क्रियते धुना॥१॥ पुरा किल श्रीमल्यम्बकजटाजूटनिस्मृत गोदावरीदक्षिणतटविराजमाननासिकक्षे बनिवासिना निजमतिमयमन्दरमहीधर मथित शतपथ क्षीरार्णवसमधिगत तवज्ञानपी यूषजोषणमेदुरितसकलच्छात्रामरगणेन शुकूयजुर्वेदान्तर्गत माध्यन्दिनीयशारयाध्यायिनाशौचोपनामधारिणा श्रीमषिभट्टसूरिणा भूनेवरसभूशालिशालिवाहनशके 1621 यः For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सं-मा. सुबोधः संस्कार भास्करोनाम प्रयोगबन्योव्यरच्यत, सा:यमधुना स्वसाध्यरुत्यद्वारा स्पा देशहित निष्ठेन शुक्लयजु. माध्यन्दि ना पाठकोपाव्हयेन पट्टमयूरात्मजमरामक ष्णशर्मणा मया,मानूपाणिधस्य भास्करात्मजानीलकण्ठशर्मणः, गुणदीपिकाभि रव्य नगरीनिवासिनः शक्लोपामिरव्यस्य गौरीशङ्करात्मजनरोत्तमगर्मणश्च साहाय्येन हरिहरादिभाष्यदर्पणादिप्रयोगसिन्ध्यादिधर्मग्रन्थान्तर्गतैः कियद्विषयैर्यथामतिसंपूर्याऽऽ घत्रिंशत्पत्राणीनरेण केनचिन्मंशोध्यनेत्यानराणि पत्राणिब्रह्मपुरीनिवासिविनायकशास्त्रिण: साचिव्येन संशोध्य चैनगन्याधिकारिलोकोपकारार्थमङ्कनद्वारा प्रसिद्धिमानीयत; अथ सोऽयं प्रयोगग्रन्थो दोषेप्यपि गुणबुद्धितिः सकलविद्वज्जनैः कपाशाउवलोक्य परिशोध्यतामिनिस बहुविनयं शतरुत्वस्तान्प्रत्येतत्सत्राधःस्थितोऽहं विज्ञापयामीति शम् भट्टमयूरात्मजरामकृष्णशर्मा. || || // 1 // For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | श्रीगणेशायनमः॥ श्रीसरस्वत्यै नमः॥श्रीगुरुयोनमः॥श्रीलक्ष्मीनारायणाभ्यांनमः॥ अथसंस्कारभास्करप्रारंभः॥ ॥तबादीमंगलाचरणं॥ वात्सल्यापितरोकपोलयुगुलंस्वस्थागतोचुंवितुं दृष्ट्वाकुंचितमास्यपद्यममलंईषस्मितंसत्वरं। अन्योन्यशिवयोस्ततःसवदने | युक्तेअभूतानयोरित्थंयेन विनोदितोसभगवान्बालोगजास्योवतु॥१॥श्रीगणेशंशारदांच लक्ष्मीनारायणंगुरूं॥नवयहांश्चदिक्पालान्नमस्कृत्यपुनःपुनः॥२॥योच्छौचोपनामा |बुधमुकुटमणिविश्वनाथः प्रसिद्धस्तज्जोगंगाधराव्याक्षितिसुरमहितःसर्ववेदार्थवेत्ता। ||नसुत्र साधुशील: शतपथनिपुणोयाज्ञिकैर्वद्यमानः पुण्यात्मासर्वकालेजयनिऋषिवुधः For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 1 // शिष्यसंघार्चितांधिः॥३॥करोतिविदुषांप्रीत्यैसर्वसंस्कारप्पास्फरंसूबहरिहरंकर्कवासदे | भास्कर वींसमाहितः॥४॥आलोक्यसम्यक्मनिनासरलंसुगमनवे॥ यस्यावलोकनेनैवस्फुरंनिहदि नक्षणात्॥५॥ // तच्चगोतमेनचत्वारिंशसंस्काराः कथिताः॥ तद्यथा॥ ॥गर्भाधा नपुंसवनंसीमंतोन्नयनंजातकर्मनामकर्मनिष्क्रमणान्नप्राशनंचौलोपनयनेचत्वारिवेदन तानिकेशांतस्मानेसहधर्मचारिणीसंयोगः॥पंचमहायज्ञाऽष्टकापार्वणश्राईश्रावण्याय हायणीचैत्रीआश्वयुजीनिसप्तपाकसंस्था॥अम्याधेयममिहोत्रदर्शपौर्णमासोचातुर्मास्याययणेष्टिर्निरूढपशुः सौबामणीनिसप्तहविर्यज्ञसंस्था॥अमिष्टोमइत्यमिष्टोमउपथ्य / For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir षोडशीवाजपेयातिरावआप्तोर्यामइतिसप्तमोमयज्ञसंस्था॥उपाकर्मोसर्जनपैतमेधिक | मिनि॥ इत्येतेचत्वारिंशसंस्काराः॥ ॥अंगिरातुपंचविंशतिसंस्कारानुक्तधान्॥तद्यथा। गर्भाधानपुंसवनंसीमंतबलिरेवच॥ बलिर्विष्णुवलिः॥जातकर्मनामकर्मनिक्रमोन्नाश |नंपरं॥चौलकर्मोपनयनंततानांचतुष्टयंनिच्छब्देनप्रसिद्धत्वादियहणेतनानांच तुर्वेदव्रतानामित्यर्थः।।स्मानोहाहीचाययणमष्टकाचयथातथं॥श्रावण्यामाश्वयुज्यां चमार्गशीर्थ्यांचपार्वणं॥उत्सर्गश्चाप्युपाकर्ममहायज्ञाश्चनित्यशः॥संस्कारानियताोते ब्राह्मणस्यविशेषतः इति॥ एषाप्रयोगाः ग्रंयविस्तरमयान्नावलिखिताः॥परिज्ञा For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कारमा // 2 // नार्थकेवलंनामानिलिखितानि॥ ॥अधुनास्वगृह्योक्तगर्भाधानादिविवाहांताः षोड भास्कर शसंस्काराः मुरख्याः मयाऽस्मिन्थेपरिगृण्हीयाः॥तेचगौतमेनप्राक्कथिताः॥ ॥तथाच स्मृत्यंतरे॥ ॥गर्भाधानमतश्चपुंसवनकंसीमंतजाताभिधेनामारव्यंसहनिक्रमेणच तथान्नप्राशनंकर्मच॥ चूडारव्यव्रतबंधकेष्यथचतुर्वेदव्रतानांपुरः केशांतः सविसर्गकः परिणयः स्यात्योडशः कर्मणां॥१॥एतदर्भाधानादिषोडशसंस्काराः सर्वेषामेव ॥एतेच द्विजानामेवसमंत्रकाः॥ ॥यथाहयाज्ञवल्क्यः॥ ॥ब्रह्मक्षत्रियवियूद्रावर्णास्वा // 2 // यास्त्रयोडिजाः // निषेकादिस्मशानांतास्तेषावैमंत्रत: कियाइति॥ ॥निषेक: ग For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भाधानं॥ स्मशानं विवाहश्च॥अतएवषोडशसंस्कारानधिरुत्य॥तेषांपयोगाः समंत्रकाः पारदर्शितयथाभिप्रायेणात्रलिखिताः॥ ॥यमः॥ शूद्रोप्येवंविधः कार्याविनामं वेणसंस्कृतइति॥ ॥कन्यकायाश्चगर्भाधानादिचौलांताः अष्टसंस्काराः अमंत्रकाः // विवाहस्तुपुंस्त्रीरुभयसंयोगेवर्णन्यायेनयथाविधिःकार्यः॥ ॥तथाचस्मृत्यंतरे॥ स्त्रीणांचौलांतसंस्काराः प्रकुर्वीतअमंत्रकाः॥पुंस्त्रीरुभययोगस्तुविवाहस्तद्यथापि|धिरिति॥ ॥अथसंस्काराणांफलानिस्मृतिसंग्रहे॥ निषेकाडैजिकंचैनोगार्मिकंचा पमृज्यते॥क्षेत्रसंस्कारसिद्धिश्चगर्भाधानफलंस्मृतं॥गभिवेच्चपुंसूतेः पुंस्त्वस्यम For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार || ||तिपादनं॥ पुंसूतिः पुंसवनं। निषेकफलवन्ज्ञेयंफलंसीमंतकर्मणः॥निषेकोगर्भाधा | भास्कर // 3 // नं॥गर्भाबुपानजोदोषोजातात्सर्यापिनश्यति॥जानात्जातकर्मानुष्ठानात्॥ अपिश ब्दस्यदोषशब्देनान्वयः॥आयुर्वर्शोभिवृद्धिश्वसिद्धिर्यवहृतिस्तथा। व्यवहतिळवहारस्नस्यसिद्धिरित्यर्थः॥ नामकर्मफलंत्वेतत्समुद्दिष्टमनीषिभिः॥सूर्यावलोकनादायुर|| |भिवृद्धिर्भवेधृवा॥निफमादायुः श्रीवृतिरप्युद्दिष्टामनीषिभिः॥ अन्नाशनान्मातृगींमला |शीरपिशध्यति॥वलायुर्यवृद्धिश्चचूडाकर्मफलंस्मृतं॥ उपनीते: फलंत्वेतद्विजतासि | // 3 // डिपूर्विका॥वेदाधीत्यधिकारस्यसिद्धिषिभिरीरितेति॥यवयत्रचापियूयनेनत्रतत्रबैजी || For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | कगाभिकैनोविनाशोपिफलंज्ञेयं॥ अन्येपिकर्णवेधादयः संस्काराः शास्त्रांतरोक्तास्त तववक्ष्यते॥इतिसंस्काराः॥ ॥तथाचविशेषाणिअवश्यकानिकर्माणिशिष्टाचारया तानिचात्रगृहीतानि॥ // नद्यथा॥षष्ठीपूजनदोल रोहणतथागोदुग्धपानंशिशोभू मीषुस्थितिदनक:प्रनिगृहः कर्णस्यवेधंतथा॥श्रीवर्धापनअक्षरपलिवनंकोमारधीवृद्धयेकन्यारिष्टहरोघटः परिणयश्चार्कस्तथापौरुषे॥१॥एषांप्रयोगाः षोडशसंस्का राणांमध्येसमयानुसारंअलिखिताः॥ ॥तत्रादीपरिभाषा॥ ॥संकल्पेनविना कर्मकरणेदोषोउक्तोभविष्ये // संकल्पेनविनाकर्मयत्किंचित्कुरुतेनरः॥फलंचाप्य For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पकंतस्यधर्मस्यार्धक्षयोभवेत्॥१॥संकीर्त्यमासपक्षादीनिमित्तानितथैवच॥ इदंकर्म मा. // 4 // करिष्येहमितिसंकल्पमाचरेत्॥२॥अनुलंध्यस्वशारयोक्तविधिकर्मसमाचरेत्।।कर्मान्यथा कृतंज्ञात्वातावदेवपुनश्चरेत्॥३॥प्रधानस्याक्रियायांतुसांगंतत्पुनराचरेत्॥तदंगाकर णेप्रायश्चित्तमेवनकर्मतन्॥५॥ ॥वामनपुराणे॥ ॥सर्वमंगलमांगल्यंवरेण्यंवरदंशु भं॥नारायणनमस्कृत्यसर्वकर्माणिकारयेत्॥१॥ ॥वशिष्टः॥ ॥जपहोमोपवासेपु धौतवस्यधरोभवेत्॥ अलंकृतः शुचिर्मोनीश्रद्धावान्विजितेंद्रियः॥१॥यदियाग्यमलोपा // 4 // स्पान्जपादिषुकथंचन॥याहरे?ष्णायमंत्रस्मरेहाविष्णुमव्ययं ॥२॥अहतयस्यलक्षणम् || For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |क्तस्मृतिरत्नायल्यां॥ ॥रषद्दौतनवंश्येतंसदर्शयन्नधारित। अहतंतद्विजानीयात्म वकर्मरूपायनं॥१॥इषधोतं अरजकादिनासकटोतमितिनागान्हिके व्यारण्यातं॥ क श्यपेनत्यन्यथोक्तं॥ अहतंयंत्रनिर्मुक्तं वास:प्रोक्तं स्वयंभुवा॥ शस्तन्मांगलिक्येषुता यत्कालंनसर्वदेति॥१॥ कंबलेपट्टयस्वेचनीलीरागोनदुष्यति॥२॥ क्षीमेवस्त्रे हतेपनी |चेतिसूत्रे अनंतयाज्ञिकैरप्येवंव्यारव्यात॥ ॥वसिष्ठः॥ रौद्रपित्रासुरान्मंत्रांन्तथा / |चैयाभिचारकान्॥व्याहृत्यालायचात्मानमपस्पृष्ट्वान्यदाचरेत्॥१॥ ॥कात्यायनः। ||पित्र्यमंत्रानुब्रुवाणेआत्मालंशोधमेक्षणे॥अधोवायुसमुत्सर्गे प्रहासेंन्तभाषणे॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार |मार्जार मूषकस्पर्शआरुष्टेक्रोधसंभवे॥निमितेषेषुसर्वेषुकर्मकुर्वन्नपस्पृशेत्॥२॥आ-|| भास्कर // 5 // || ||त्मालंमः हृदयालंभः॥ ॥स्मृत्यर्थसारे॥ कर्वगानामनुक्तोतुदक्षिणांगंभवेत्सदा॥ उदोगपरिशिष्टे॥यत्रदिङिनयमोनास्तिजपादिषुकथंचन॥तिस्रस्तबदिशःप्रोक्ताऐंद्री सौम्यापराजिना॥१॥ तत्रैव॥ आसीन:प्रव्हऊोवानियमोयत्रनेश:॥ तदासीने नकर्तव्यंनपहेणननिष्ठनेति॥१॥पंचाशदिवे ब्रह्मातदर्धेननुविष्टरः॥दक्षिणावर्त को ब्रह्मावामावर्नस्तुविष्टरः ॥१॥येण्यायावर्तुलंकृत्यायेण्ययेथिबंधनं॥अनंतगर्तकंसायो // 5 // शंद्विदलमेचच॥२॥प्रादेशमाविज्ञेयंपवियत्रकुत्रचित्॥ पवित्रेदर्भसंरव्यामाहामा | For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कंडेयः॥ ॥चतुर्भिर्दपिंजूलैर्ब्राह्मणस्यपवित्रकं ॥एकैकंन्यूनमुद्दिष्ठवर्णवर्णेय थाक्रम॥१॥सर्वंशावाभवेद्वाभ्यांपवित्रंथितंनया॥ चतुर्भिःशानिके कार्यपौष्टिकेपंचभि तथा॥२॥ सप्तपत्राः भादर्मास्तिलक्षेत्रसमुद्रयाः॥अप्रसूतास्मृतादर्भाः प्रसूतास्तक शा:स्मृताः॥३॥समूलाः कुतपा:प्रोक्ताश्छिन्नायास्तृणसंज्ञिताः॥दर्भाः कृष्णाजिनंमंत्रा ब्राह्मणाहविरमयः॥४॥ अयातयामान्येतानिनियोज्यानिपुनःपुनः॥चितीदर्भाःपथी दर्भाः एदर्भायज्ञभूमिषु॥५॥ रत्तरणासनपिडेषुषट्कुशान्परिवर्जयेत्॥ ॥रमावल्या // इयो स्कपर्वणोर्मध्येपवित्रंधारयेद्बुधः॥अनामिकायपतुनिसर्गतुपचित्रकं ॥१॥नो For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार विनत्यधिवस्यागुतोचिपियर्जयेत् // मुलं मूलवलयं यथिरकायुलोजयेत्॥२॥ मास्कर // 6 // चतुरंगुलमयंस्यात्सवित्रस्यप्रमाणतः॥ ॥नागान्हिकं // अन्यान्यपिपवित्राणिकुश दूर्वामयानिच॥ हेमात्मकपवित्रस्थकलांनाहतिषोडशी॥१॥ माषाणांषोडशादूर्धकुर्या देमपवित्रक॥ तेभ्यः स्वल्पतरंन्यूननकुर्वीतकदाचन॥२॥हीनकर्मेनथोलिष्टेकुश धृतपवित्रकं॥निर्माल्यंतेषुसंप्राप्ति हेमस्यपवित्रके ॥३॥पवित्रामावेसुमंतुः॥ // समूलागोविगर्मोनू कुशौौदक्षिणेकरे॥सव्येचैवतथात्रीन्वैविभूयात्सर्वकर्मस॥१०॥॥६॥ बौधायनः॥ हस्तयोरुभयो?डावासनेपितथैवच॥ तथा॥ सदोपवीतिनामाव्य / / For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सदाबद्दशिरयेनच॥ विशिरयोव्युपवीनश्चयत्करोतिनतत्कृतं॥१॥ अनेनहिदधिरय दिरादिवत्उपवीतित्वस्यवद्धशिवित्वस्यचक्रतुपुरुषोभयोर्थत्वमयगम्यते॥ ॥हेमा द्रोभरद्वाजः॥ ॥दक्षिणबाहुमुधृत्य वामस्कंधेनिवेशितं॥ यज्ञोपवीतमित्युक्तंदेवका र्येषुशस्यते॥१॥कंठाविलंबितंचैवब्रह्मसूत्रंयदाभवेत्॥तन्निविमिनिविख्यातंशस्त कर्मणिमानुषे॥२॥उक्षिप्तेवामबाहोतुदक्षिणस्कंधमाश्रितं॥प्राचीनावीनिमित्युक्तं तसित्र्येष्यकर्मसुइति॥३॥ ॥विष्णुधर्मोत्तरे॥ ॥निलककुंकुमेनैवसदामंगलकर्म || |णी॥कारयित्वासुमतिमान्नश्वेतचंदनंमृदा॥१॥ ॥मंत्रणोंकारपूतेन स्वाहांतेनवि| For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार चक्षणः॥ स्वाहावसानेजुहुयारध्यायन्वैमंत्रदेवतां॥१॥ मंत्रानेयावन्हिजायासातुमंत्र | भास्कर // 7 // स्वरूपिणी॥ तदंतेन्यांप्रयुंजीतसाकांगतयास्मृता॥२॥आदोद्रव्यपरित्यागःपश्चा होमोविधीयते इतिदेवयाशिकः॥ ॥बाये॥ ॥शमीपलाशन्ययोधप्लक्षवैकं कतोद्भवाः॥अश्वत्थोदुंबरोबिल्वश्चंदनःसरलस्तथा॥१॥शालश्चदेवदारुश्चरयादि रिश्चेनियाशिकाः॥ ॥कर्मप्रदीपे॥ ॥नाराष्तादधिकाकार्यासमित्स्यूलतराक्कचि त्॥ नवियुक्तात्वचाचैवनसकीटानस्फाटिना॥पादेशमात्रान्ताधीकानतथास्याद्विशा / खिका॥नसपर्णासमित्कार्याहोमकर्मसुजानता॥२॥मागग्राःसमिधोग्राह्याअरचर्याने | For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir फाटिताः॥ नेत्रंजटामूलंचकथिताः॥ काम्येषुवश्यकर्मादीविपरीताजिघांसतः॥३॥ विशीर्णाविफलाहस्वावक्राबहुशिरयाः कशा // दीर्घास्थूलाघुणेर्जुष्टाकर्मसिद्धिविना |शकाः॥४॥ होतव्यामधुसर्पिभ्यांदभाक्षीरेणसंयुताः॥ पादेशमात्रा: समिधअशारया अपलाशिनीः॥५॥ // शरवः॥ समित्पुष्पकुशादीनिब्राह्मणःस्वयमाहरेत् ॥द्रा नीतैः क्रय क्रीतैः कर्मकुर्वन्द्रजंत्यधः॥१॥ ॥वायुपुराणे // कंडणंपेषणंचैव तथै| योल्लेखनंतथा॥सरुदेवपितृणांस्याद्देवानांतत्रिरुच्यते॥ ॥कात्यायनः // योनर्चि|| पिजुहोत्यमोव्यंगारिणीचमानवः॥मंदाग्निरामयावीचदरिद्रश्चैवजायते॥ तस्मात्समि | For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार होतव्यंनासमि कथंचन॥नवरूपवायुनाकुर्यासाणिशूर्पस्सुवादिभिः॥२॥नकुर्यादा भास्कर // 8 // मिधमनकुर्याहयजनादिना॥मुखेनैवधमेदमिमुरवदेशाइयजायत॥३॥अंधोबुधः सधूमेतुजुहुयाद्योहुनाशने॥ यजमानोभवेदंघः सपुत्रइतिच श्रुतिः॥ ॥मात्स्ये॥ होमादियहपूजायांशतमष्टोनरंभवेत्॥ अष्टाविंशतिरष्टौवायथाशक्तिविधीयते॥ ॥छंदोगपरिशिष्टे॥ यन्नाम्नास्वशारवायांपारक्यमविरोधियत्॥विद्भिस्तदनुष्ठेयं अग्निहोत्रादिकर्मवत्॥ बव्हल्पवास्वगृह्योक्तंयस्यकर्मप्रकीर्तितं॥ तस्यतावनिशास्या // // ॥थैरुतेसर्वंरुतं भवेत्॥२॥ प्रवृत्तमन्यथाकुर्याद्यदिहोमात्कथंचन॥ यतस्तदन्यथामू|| For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie |तंततएचसमापयेत्॥ अन्यथाभूतविपर्यस्त॥ ॥समाप्तेयदिजानीयान्मयैतदयथा कृतं। तावदेवपुनः कुर्यान्नावृत्तिःसर्वकर्मणः॥प्रधानस्याक्रियायत्रसांगंतत्क्रियतेपुनः॥ तदंगस्याक्रियायांतुनावृत्तिनचतलिया॥ ॥ब्राह्म॥ यथोक्तयस्यसंपत्तीया गंतदनुकारियत्॥यवानामिवगोधूमावीहीणामिवशालयः॥१॥आज्यद्रव्यमनादेशेजु होतिषुविधीयते॥मंत्रस्यदेवतायाश्चप्रजापतिरितिस्थितिः॥२॥ अनादेशेअविधाने प्राजापत्योमंत्रः॥ समस्तव्याहतयइतिमदनः॥प्रणवादिनमोतंचचतुर्थ्यांचसत्तम।। || देवतायाः स्वकंनाममूलमंत्रउदाहृतः॥ ॥विष्णुधर्मोत्तरे॥ दध्यलामे पयःकार्यमध्य For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 9 // संस्कार | लाओतथागुडघृतपतिनिधिंकुर्यात्पयोवादधिवानप॥१॥ ॥बौधायनः॥आज्य | भास्कर होमेषुसर्वेषुगव्यमेवघृतं भवेत्॥ तदभावेमहिष्यास्तआजमाविकमेवच॥ तदप्मावेततैले||स्यात्तदभावे तुजार्तिलें ॥तदभावेतकोसुंभनदसावेतसार्षपं॥२॥ ॥याज्ञवल्फ्यः // कनिष्ठादेशिन्यंगुष्टंमूलान्ययंकरस्थच। प्रजापतिपितृब्रह्मदेवतीर्थान्यनुक्रमात्॥१॥दे |शिनीतर्जनी॥पाण्याहुनि दशपर्वपूरिकारसादिनाचेत्क्रचिपर्वपूरिका॥दैवेनतीर्थेनचहू यतेहविः स्वेगारिणिस्वर्चिषितच्चपावके॥आज्यपयादिद्रव्याणिस्रबेणसमिधोमूलतोड्यंग | // 9 // लंबिहायमध्यमानामिकांगुष्टैर्जुहुयात्॥चरुंयाससमंपाणिनैवजुहुयात्। आज्यस्ये तारळे किंवा खुरासनीचें तेल // For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वजुहुयात्॥ तदभावेयज्ञीयवृक्षपर्णेन॥ द्रव्यभेदेनाहुतिमा सिद्धांतशेरवरे ॥की प्रमाणमाज्यस्यात्मधुक्षीरंचतत्सम।तंडुलानाशक्तिमात्रंपायसंप्रसृतेःसमं॥४॥क र्षमात्राणिपक्ष्याणिलाजामुष्टिमितामताः॥अन्नंयाससमंयामंशाकं यासार्धमात्रकं॥५॥ मूलानातुविभागस्यात्कंदानामष्टमांशकः॥ इक्षोः पर्वप्रमाणस्यादंगुलद्वितयंलता॥६॥ प्रादेशमात्रा समिधोनीहीणामंजलीसमं॥तिलसक्तुकणादीनांमृगीमुद्राप्रमाणत:॥७॥ पत्रपुष्पफलादीनांसमानाहुतिरुच्यते॥ चंदनंभीरवंडकस्तूरीकुंकुमागरुकदमाः॥हरिमंथ समाःप्रोक्तासुग्गुलोबदरीसमः॥आहुतीनामिदंमानंकथितंवेदयादितिः॥हरिमंथनण- 1 For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सस्कार कः॥ तिभिर्दूर्वाभिरेकाहुतिः॥कुशेषुधिपत्रेणेकेनि।मृगीमुद्रालक्षण।मीलिता, भास्कर // 10 // नामिकांगुष्ठमध्यमांगलियोजयेत्॥ शेषांगुलीउछितेतिमृगीमुद्रीयमीरिता॥ ॥या | ज्ञवल्क्यः॥ आर्षछंदश्चदैवत्यंविनियोगंतथैवच॥वेदितव्यंप्रयत्लेनब्राह्मणेनविशेषतः ॥अविदित्यातुय: कुर्यायाजनाध्ययनंजपं॥होममंतर्जलादीनितस्थचाल्पफलंभवेत्॥ // अवापवादः॥रुष्णभट्टीये॥नचस्मरेदृषिछंदः श्राईवैतानिकेमरवे॥ ॥अन्यत्र।अमि होवेवैश्वदेवेविवाहादिविधीतथा॥होमकालेन दृश्यतेप्रायश्छंदर्षिदेवताः॥शांतिकादि |कार्येषुमंत्रपाठजपादिषु॥होमेनैवपकर्तव्या: कदाचिदृषिदेवताः॥ ॥स्मृत्यंतरे।|||| 119010 For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कनकंकुलिशनीलंपद्मरागंचमौक्तिकं ॥एनानिपंचरत्नानिरमशास्त्रविदोपिदुः॥१॥ कु लिशंहिरकं // // विष्णुधर्मोत्तरे॥ वनमाणिक्यवैडूर्यपुष्परागेंद्रनीलकं॥पंचरत्नमिति | ख्यातनारदेनमहर्षिणा॥१॥ ॥मदनरत्नेस्कांदे॥ हरिद्राकुंकुमचैवसिंदूरंकज्जलंतथा ॥कूर्पासकंचनांबूलंमांगल्याभरणंभ।कूर्पासके कंचुकी॥ पंचगव्यस्मृतिदर्पणे॥गाय त्र्यादायगोमूत्रंगंधद्वारेतिगोमयं॥आप्यायस्वेतिचक्षीरंदधिक्राणेतिवैदधि॥१॥ तेजो सिशक्रमि त्याज्यंदेवस्यत्वाकुशोदकं॥एभिस्तपंचभिर्युक्तंपंचगव्यमितिस्मृतं॥त| बतायपात्रेपलाशपत्रेयाताम्यायागोमूत्रअष्टमाषप्रमाणं॥ चेतगोः शरुत्शोडषमाष॥पी|| For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार // 11 // | नगो: क्षीरंद्वादशमाप॥ रुष्णगोघृतं अष्टमार्फ॥ कुशोदकंचतुर्माषं॥अवमाषः पंचगुंजात्म भास्कर कइतिधर्मसिंधी॥ ॥मदनरत्नेकात्यायनः॥आज्यंक्षीरंमधुतथामधुरत्रयमुच्यते॥प योदधिघृतंचैवमधुशर्करयायुतं॥पंचामृतमिदंप्रोक्तं सर्वदेवप्रसादकं // // ब्राह्म॥अश्व त्योदुंबरप्लक्षचूतन्ययोधपल्लवाः॥पंचप्नंगाइतिप्रोक्तासर्वकर्मसुशोभनाः॥१॥अश्वत्यो दुंबरोब्राह्मइतिपाठभेदः॥ तथाच॥ प्लक्षः॥पिंपरी॥पारोसापिंपळइतिप्रसिद्धः॥ // |यक्षकर्दम उक्तोगारुडे॥ कर्पूरमगरुश्चैव कस्तूरीचंदनंतथा॥ कंकोलंचभवेदेमिपंचमि // 11 // यक्षकईमः॥ तथा // कपूरचंदनंदकुंकुमंचसमांशकं॥ सर्वगंधमितिप्रोक्तंसमस्तसर|| For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | वल्लभ // 1 // दर्पकस्तुरी॥ कुंकुमंकेशरं॥ ॥कुष्टमांसीहरिद्रेदेसुराशैलेयचंदन।यचा |चंपक मुस्ताचसर्वोषध्योदशस्मृताः॥१॥सुराउशीर॥चंदनमितिप्रसिद्धः कुष्टंप्रसिदं॥मांसी जटामांसी॥हरिद्ररे आंबीहळदवहळद॥मुरामोरवेल॥शेलेयशिलाजित॥यचा वेरखंड। मुस्ताभद्रमोथ॥ पाठभेदे उशीरं वाला॥ ॥भविष्यपुराणे॥ आपः क्षीरंकुशायाणिदध्य क्षतनिलास्तथा।यवाः सिद्धार्थकावअर्घोटांग: प्रकीर्तितः॥१॥सिद्धार्थक श्वेतशि रीष॥ तत्रैव॥ ॥सवर्णरजतंतामंआरकूटतथैवच॥ लोहंत्रपुतथासीसंधानयः प || रिकीर्तिताः॥१॥ आरकूटं॥ सोनपिनल॥त्रपूकथील॥ ॥पंचरात्रे॥रजांसिपंचव / For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 12 // निमंडलाचतुकारयेत्॥ शालिनंडुलचूर्णेनशक्लंबाययसंभवं॥ रकंकुरूंमसिंदूरंगैरि | भास्कर कादिसमुद्भवं॥ हरितालोद्भचंपीतंरजनीसंप्पयंनुया॥ कृष्णदग्धययैश्वापिहरितंपीनमिश्रित।। गैरिका॥ सोनगेरू॥ ॥दशांगधूपोक्तोमदनरत्ने॥षनागकुष्टंदिगुणोराडश्चलाक्षात्र यंपंचनरवस्यभागः॥हरीतकीसर्जरसंसमाशंभागेकमेकेविलवंशिलाजं॥१॥धैंनस्यच खारिपुरस्य चैकोधूपोदशांग कथितोसुनीट्रैः॥ लाक्षालारय॥नरयस्यनरखला॥सर्जरसंराकाशि लाजंशिलाजितवादगडफूलारिष्णुधर्मोत्तरे॥हेमराजतनाम्माश्चमृण्मयालक्षणान्विताः॥ या // 12 // बोहाहप्रतिष्ठासकुंभास्युरभिषेचने॥१॥पंचाशांगुलवैपुल्यउत्सेधोपोडशांगुलाः॥ द्वाद नांगरमाथा, कापूर. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शांगुलमूलस्यान्मुखमष्टांगुलंभवेत्॥२॥पंचचआशाश्नपंचाशाःआशादशपंचाधि कशतमं गुलानिवैपूल्यमितिकेचित्॥पंचदशतावान्चैपूल्यव्यासइनितुयुक्तं॥धातुजे मृन्मयंवापिकलशंयत्प्रतिष्ठितं॥ नसादेशदीर्घच चतुरंगुलमुछित।सीततंडुलपूर्णेन पायेणापिहिताननमिति॥ ॥षद्विशन्मते॥यवगोधूमधान्यानीतिलाः कंगुश्चमुगा काः॥श्यामकंचणकंचैवसप्तधान्यमुदाहृतं॥१॥ यवः प्रसिद्धः॥ कंगुश्च॥ राळे॥श्या मा॥सावे॥ ॥अश्वस्थानाद्गजस्थानाद्वल्मीकासंगमाहदात्॥राजद्वाराचगोगोष्ठा मृदमानीयनिक्षिपेत्॥वल्मीकंवारुळं॥संगमः॥ माहानदीसागरसंगमः। द्रव्यमानमाह॥ For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार याज्ञवल्पयः॥ जालसूर्यमरीचिस्यंत्रसरेणुरजःस्मृतं॥तेष्टोलीक्षास्तुनास्तिस्योराजसपपर भास्कर च्यते॥१॥गोरस्तुतेत्रयः षट्दययोमध्यश्चनेत्रयः ॥रुष्णाल:पंचतेमाषास्नरूवर्णास्तुषोडश |॥२॥पलंसवर्णाश्चत्वार:पंचवापिप्रकीर्तिताः॥डेकृष्णालोरूप्यमाषोधरणंषोडशेवते॥ | // 3 // शतमानंतुदशभिर्धरणैः पलमेवतु॥निष्कंसुवर्णाश्रत्वारइति॥ ॥ताम्यस्योन्मा नं॥पलचतुर्थांशेनकर्षणोन्मितः कार्षिकस्तानसंबंधीपणोभवति॥ कर्षसंज्ञानिघंटे |तेषोडषाक्षः कर्षास्ती पलंकर्षचतुष्टयमितितेशोडशमाषाअक्षः सः एवकर्षः इत्यर्थः॥ || // 13 // कार्षायणसंज्ञश्चनारदेनोक्तः॥कार्षापणोदक्षिणस्यां दिशिरौप्यः प्रवर्तते॥पणैर्निवद्धः | For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पूर्वस्यांषोडशैवपण:सतु॥ लीलावत्यां॥वराटकानांदशक यंयत्साकाकिणीता | चपणश्चतस्त्रः॥ तेषोडशद्रम्य इहावगम्योद्रम्यैस्तथाषोडशभिश्वनिष्कः॥१॥अशीति |गुंजात्मकः कर्षः॥ चत्वारः कर्षानिष्फमितिधर्मसिंधौ॥ ॥धान्यमानंभविष्ये॥पलद्वय तुप्रसृतंद्विगुणंकुडवंमतं॥ चतुर्भिः कुडवैःप्रस्थ: प्रस्थः श्रत्यार आटकः // आढकै स्तैश्चतुर्भिश्द्रोणस्तुकथितोबुधैः॥कुंभोद्रोणद्वयंशूर्पः रवारीद्रोणस्तषोडष॥ ॥गो पथे॥पंचकृष्णालकोमाषस्तैश्चतःपरिभिःपलं॥पलेदशान्तिःप्रस्थोमागधेषुपकीर्ति / सः॥१॥आढकैस्तैश्चतुर्मिश्चद्रोणस्याञ्चतुराटकः॥ ॥विष्णुधर्मोनरे॥ ॥पलंच For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 15 // सं. || || कुडव: प्रस्थआढकोद्रोणएवच॥धान्यमानेषुबोदव्याःक्रमशोमीचतुर्राणाः॥१॥द्रो-|| भा. ॥णैः षोडशभिःखारीविंशत्याकुंभउच्यते॥ विंशतिरित्यत्रद्रोणेरितिसंवध्यते॥ तथाचा कुंभोद्रोणमितिपक्षाविंशतिद्रोणमिन: कुंभइतिपक्षांतरं॥पलसहसमिनः कुंभाइति पक्षांतरं॥ ॥वाराहे॥पलयं तुप्रमृतंमुष्टिरेकपलंस्मृतं॥ अष्टमुष्टिपवेकिंचितिं चिदष्टौतुपुष्कलं॥१॥पुष्कलानिचचत्वारिआढकःपरिकीर्तितः॥ चतुराडकोभवेद्रो णइत्येतन्मानलक्षणं॥एनसक्षाणांशक्तिकालाद्यपेक्षयाव्यवस्था॥ // स्मार्तकर्म- 4 // क्रमउक्तीधर्मसिंधौ॥ ॥संकल्पः स्वस्तिवाविप्रवरणंभूतनिःसृतिः॥पंचगव्ये' For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie मिशतिर्मुरव्यदैवतपूजनं॥ अग्निप्रनिष्ठासूर्यादिग्रहस्थापनपूजनं॥देवतान्याहिनिःपात्रासादनंहविषांरुतिः॥यथाक्रमत्यागहोमाधिनिपूर्वागकः क्रमः॥पूजास्विष्टं नवाहुत्योबलि:पूर्णाहुतिस्तथा॥ पूर्णपात्रविमोकायम्यर्चनांतेऽभिषेचनं।मानस्तो केतिमूतिश्चदेवपूजाविसर्जने॥श्रेयोमहोदक्षिणादिदानकर्मेश्वरार्पणं॥क्रमोयमुत्त रांगानांप्रायःस्मार्नेष्वितिस्थितिः॥ // दशप्रणवोउक्तः शांतिकमलाकरे॥आदोपण वमुच्चार्य व्याहृतिः प्रणवान्विताः ॥मंत्रादीप्रणवः कार्योमंत्रांतेप्रणवःपुनः॥ततोन्या तिसंयुक्तस्त्वंतेचप्रणकसदा॥ अथवा॥ // आदीप्रणवमुच्चार्यसप्तव्याहतयास्ततः॥ // For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 15 // मंत्रादीप्रणवः कार्योमंत्रांतेपणकःपुनः॥अंतर्विसर्गकंकर्याोतेस्मातेचकर्मणि|मंत्रादी भास्कर प्रणवस्तदन्देव स्वामीयभाषणात्॥कर्मविशेषेअमिनामान्युक्तानिधर्मसिंधी॥ ॥अमिस्तु मारुतोनामागर्भाधानविधीयते॥पवमानःपुंसवनेसीमनेमंगलाभिधः॥प्रबलोजातसं|स्कारेपार्थिवोनामकर्मणि॥अन्नाशनेशचिःप्रोक्तोसत्यस्याञ्चोलकर्मणि॥व्रतादेशे समुद्भवोगोदानादीसूर्यः॥ ॥विवाहेयोजकः॥आवसथ्येहिजोनामप्रायश्चित्तेविटः पाकयज्ञेषुपावकः॥पेनकेकव्यवाहनः ॥दैव्येहव्यवाहन:॥शांतिके वरदः॥ पोष्टि // 15 // केवलवर्धनः॥मृतदाहे क्रव्यादः॥पूर्णाहुत्यांमृडः॥अभिचारेक्रोधोमिः॥पश्यार्थेपा For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वकः॥वनदाहेदूषकः॥ कुक्षौजाठरः॥ वैश्वदेवेरुक्मः॥लक्षहोमेवन्हिः॥कोटिहोमे || हुताशनः॥समुद्रेवाडचः॥ अमिहोवेगार्हपत्यदक्षिणामि आहयनीयेनित्रयः॥ज्ञात्वेयममि नामानिसर्वकर्माणिकारयेत्॥ ॥कर्मदेवताआहबोधायनः॥पुण्याहवाचयिष्यदनाम गृण्हीयादसौपीयनामितिविवाहस्यामिरोपासनस्यामिसूर्यप्रजापतयः॥स्थालीपाकस्यामि गर्भाधानस्यचब्रह्मा॥ पुंसवनस्यप्रजापतिः॥असावित्यस्यस्थानेप्रजापतिर्देवतेत्यर्थः॥ तथाचसंयहे॥ ॥स्वस्तिवाचनमंतेतुकर्मेकर्मेयथातथं॥पृथक्पृथक्प्रकुर्वीतदेवतानां || समर्पणं॥औपासनामिसूर्यश्वविवाहेचप्रजापतिः॥स्थालीपाकेमिगर्भश्वआधानेब्रह्म For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // 16 // ॥णस्नथा॥प्रजापति पुसपनेधातासीमंतकेप्यथ॥सविताजातकर्म नामकर्मेप्रजापतिः॥ भास्कर |निक्रमेन्नप्राशनेचसवितापरिकीर्तितः॥चौलेतथेवकेशोतेमजापतिरितिस्मतः॥रंद्रस्त थोपनयनेबतनूर्यअपापकः॥ श्रामेधेविसर्गचसुश्रवाः परिकीर्तितः॥उपाकर्मतसपि ताविवाहेषुप्रजापतिरिति॥ सोमयागगर्भाधानसीमंतोन्नयनाधानादिकाँगभूतेवृद्धि श्रा क्रतुदक्षसंज्ञकाः विश्वेदेवा: अन्यत्रसत्यवस संज्ञकाः॥ // आपस्तंबः॥त्रिमात्र स्तप्रयोक्तव्यः कर्मारंभेषुसर्वशः॥त्रिमात्रःप्रणयः॥ ॥मार्कंडेयः॥इसराप:पयो | // 16 // |मूलंतांबूलंफलमौषधं॥ पक्षयित्वापिकर्तव्याःस्नानदानादिकाःक्रियाः॥स्मानमप्य-|| For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir |धिकारितावच्छेदकं // तदुक्तंहेमाद्रीचेतसा॥स्नातोधिकारीभपतिदैवेपित्र्येचकर्मणि पविषाणांतथाजाप्येदानेचविधिचोदिते॥ ॥आमेये॥ स्मानानामपिसर्वेषांवारुणे नचमानवः॥कर्तुमर्हतिकर्माणि विधिवत्सर्वदाहिजः॥संध्यावंदनंविनाकर्मनकर्तव्यमित्युक्तं॥ तत्रैव॥ संध्याहीनो शुचिनित्यमनर्हः सर्वकर्मरू॥ यदन्यकुरुतेकर्मन तस्यफलमश्नुते॥ ॥वाराहे॥ सुस्मातः सम्यगाचानः कृतसंध्यादिकक्रियः // काम |क्रोधविहीनश्पारचंडस्पर्शवर्जितः॥ जितेंद्रियःसत्यवादीसर्वकर्मसशस्यते॥ ॥क माँगस्मानेविशेषोमार्कंडेयपुराणे॥ शिरः स्नानं प्रकुर्वीतदैवंपित्र्यमथापिया॥ माङ् // For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार // 17 // रयोदङ्मुग्योवापिश्मश्रुकर्मचकारयेत्॥ तबादोश्मश्रुकर्मननःशिरःस्नानं॥ अन्यथा | भास्कर || चित्वापत्यापुनः स्नानापनेः॥ तच्च॥ मानेमंगलकृत्यादीतिलामलकादिनो इप्त्यि |गस्नानपूर्वकं कार्य॥ तदुक्तंपरशुरामेण॥ ततः स्वग्रहमागत्यमंगलस्नानमाचरेत्॥ सपि | धीगंधचूर्णैर्युक्तैः कृष्णनिलामलकैः॥ उदल्गानितैलेनचंपकादिसगंधिना॥ तैलेनमंग| लस्मानं कुर्वीन ब्राह्मणेःसहेति॥ ॥आपस्तंबः // आर्द्रवासास्तुयःकुर्याज्जपहोमपरिय हान्॥सर्वतद्राक्षसंविद्यादहिर्जातंचयत्कृतं॥यज्जलेशष्फवस्त्रेणस्थलेचैवाईयाससा || // 17 // ||॥जपहोमस्तथादानंतत्सनिष्फलंभवेत्॥ सप्तवाताहतमपिभुकं॥ नस्यूतेननदग्धेन || | For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पारस्येनविशेषतः॥मूषकोत्कीर्णजीर्णेर्नकर्म कुर्यादिचक्षणइतिभारतात्॥ ॥बोधा|| || यनः॥ काषायवासाः कुरुतेजपहोमप्रतिग्रहान॥नतदेवागमकर्महव्यकव्येष्षयोहथि / / रिति॥ भवेदितिशेषः॥ ॥आचारादर्शे॥ नरक्तमुल्वणवासाननीलंचप्रशस्यते॥म लाक्तंचसदाहीनंवर्जयेदंबरंयुधइति॥व्याघ्रपादः॥ ॥काषायंकृष्णावस्पंचमलिनंकेश दूषितं॥जीर्णंचसंधितंवापिपारक्यमैथुनेधृतं॥छिन्नायमुपवस्त्रंचकुत्सितंधर्मतोषि दुरिति॥ अयंचनिषेधः॥ सतिसंभवेबोध्यः॥ ॥बतहेमाद्रौ॥प्रागनमुदगबाधौ तपासःप्रसारयेत्॥पश्चिमायंदक्षिणायंपुनःप्रक्षालनाच्छुचिरितिमार्कंडेयः॥ // For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 18 // संस्कार न्यदेवभवेदासः शयनीयनराधिप // अन्यदेवचदेवानाम यामन्यदेवहि॥ // अन्यच्चलो भास्कर कियात्रामन्यदीश्वरदर्शने॥ ॥योगीयाज्ञवल्क्यः॥ अभावेधीतवस्यस्यशाणक्षौमादि || कानिच॥ कुतपंयोगपहुंचाविवासायेनवैभवेत्॥ कुनपोनेपालकंबलः॥ ॥भविष्ये // नीलीरतेनवस्त्रेणयकर्मकुरुतेद्विजः॥स्मानंदानंतपोहोमः स्वाध्यायःपितृ तर्पणं॥वृया तस्यमहायज्ञानीलीरक्तस्यधारणात्॥ व्याघ्रपादः॥ नैकवस्मोदिजः कुर्याद्भोजनंच सरार्चनं॥ तत्सर्वमसरेंद्राणांब्रह्माभागमकल्पयत्॥ ॥विष्णुपुराणे॥ // होमदे | // 18 // | वार्चनाद्यासुक्रियावाचमनेतथा॥नैकवरुनःप्रयतेतद्विजवाचनिकेतथा॥हिजयाच For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | नेस्वस्तिवाचने॥ ॥शातातपः॥ सन्यादंसा सरिश्वष्टंकटिदेशेधृनांबरं॥एकवस्तुत |दिया येपित्र्येषिवर्जयेत्॥ ॥संयहे॥ वामपृष्ठेतथानामौकच्छचयमुदाहृतं॥विधिः क छै:परिज्ञेयोविमोयः सशचिर्भवेत्॥आदीकच्छस्ततोनीवीनाभिमध्येचवाससी॥ नी| वीदक्षिनःस्थाप्याएनत्रिकच्छलक्षणं॥शयनंचाईपादेनशफपादेनभोजनं॥नोत्तरीयमधः कुर्याद्रात्रियासस्नथादिने॥ // कटिवेष्ट्यंतुयद्वयंपुरीपोयेनवारुतः॥ मूत्रमैथुनरुहरुघ धर्मकार्यविवर्जयेत्॥ ॥दानहेमाद्रीगोतमः॥ स्नानेदानेजपेहोमेदैवेपित्र्येचकर्मणि॥ |बधीयान्नासुरीकक्षांशेषकालेयथारुचि // तत्रैवयाज्ञवल्क्यः॥ ॥परिधानाबहिः || For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 19 // कक्षानिवद्धाचासरीमना॥ धर्मकर्मणिविद्वद्भिर्वर्जनीयाःप्रयत्नतः॥ ॥विश्वामित्रः॥यज्ञो भास्कर पवीतेद्वेधार्येश्रौतेस्मार्नेचकर्मणि // तृतीयमुत्तरीयार्थेवरूनामावेतदिष्यते॥ उत्तरीयवस्थामा वेपारस्करगृह्ये॥ एकंचेपूर्वस्योत्तरवर्गणपञ्चादयीतेति॥ ॥शियाबंधनोक्तश्चतुर्विंश तिमते॥ ॥मध्येतुबचात्रैवनिबधीयु:शिरवांततः ॥मध्यंदिनाश्चयेविषापार्श्वदक्षि णतःकमात्॥ वामपार्श्वतुबधीयुर्येविप्राः सामगायनाः॥ ॥संयहे॥ रचल्याटत्यादिदो घेणविशिरयश्चेन्नरोभवेत्॥कोशीतदाधारयीनब्रह्मपंथियुनांशिरयां // 1 // ॥मार्क // 19 // डेयः // कुशपाणि सानिष्ठेद्राह्मणोदंवर्जितः॥ सनित्यंहनिपापानिजूलराशिमिया | For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नलः॥ ॥याज्ञवल्क्यः॥ पेषणादिकयंत्रेषुशब्दोयावत्प्रवर्तते॥पतितांत्यजचांडाला दीनांयायच्चशब्दकः॥ तावत्कर्मनकर्तव्यंतथासंध्याइयेपिच॥ ॥उपांशलक्षणं॥ बृह द्याज्ञवल्क्यः॥ विनाशब्जपोयस्त चलजिहाद्विजच्छदः // उपोशुतंजपंपाहर्मनसामा नसबुधाः॥ स्पष्टतरवर्णोच्चारस्त॥वर्णस्पष्टनरोच्चार्योनासाश्यासायधीनिवा॥ मुखश्वासा |वधीभृण्यन्नभिषेकार्चनेषुचेति॥ आचारमयूरवे॥ ॥कर्मप्रदीपे॥ आवाहनासनपा द्यमर्घमाचमनीयकं॥ मानवस्त्रोपदीनंचगंधमाल्यान्यनुक्रमात्॥१॥धूपंदीपंचनैवेयं ||तांबूलंचप्रदक्षिणा // पुष्पांजलिरितिप्रोक्ता उपचारास्तषोडश ॥२॥फलेनसफलावा || For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार तिःसांगतादक्षिणार्पणे॥ ॥पंचोपचारस्त॥ // गंधपुष्पधूपदीपौनैवेद्यइतिपंचकं॥पं भास्कर // 20 // चोपचारमारख्यातं पूजनेतत्वविधैः॥१॥ ॥राजोपचारास्त॥ // ततःपंचामृताभ्यंगम गस्योहर्त्तनंनथा॥मधुपर्कपरिमलद्रव्याणिविविधानिच॥१॥पादुकोदोलनादर्शव्यजनंछबचामरे॥वाद्यार्तिक्यनृत्यगीतशय्याराजोपचारकान्॥२॥ ॥अथधनिकादिपदेय दक्षिणार्यद्रव्येयत्ताव्यवस्थामाह॥तवादोधनिकादिलक्षणं॥ वाराहे॥ वर्धयित्वाधनंय स्त तस्माद्धासमपीहयः॥नरवादेत्संग्रहपरोधनिकः सउदाहृतः॥१॥ पोषणीय कुटुंबस्या // 20 // |निर्वाहोयावनाभवेत्॥ तावदेवरूखंयेनलभतेपतिवार्षिकं ॥ऋणयस्यतु नास्त्येवसमध्य / For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मउदाहृतः॥२॥धनंपूर्वापरंयस्यवर्ततेबहुसंख्यया॥ अधिकस्यार्जकोयस्यासमहाधनिउ च्यते॥ सदाचाररतोषिपोधनार्जनपराङ्मुखः॥ कुटुंबयनमतिकः सदरिद्रइतिस्मृतः॥ यस्यस्यादशनाभावःसदाचाररतस्यहि॥महादारिद्रः सभवेद्यसोधान्यविवर्जितः॥वर्धयि त्याधनंयस्तयासंवार्षिकमर्जयेत्॥सवैधन्यइतिपोक्तवैकवर्षेणयःपुमान्॥वर्षइयमित | यासंसहिधन्यनरःस्मृतः॥अधिकस्पार्जकोयः स्यात्सधन्यतमईरितः॥धनेनैवविनाय कयासंवार्षिकमर्जयेत् ॥सवैधीरइतिप्रोक्तस्तारतम्यंचपूर्ववत् इति॥ अथैतेषुमध्येके निकियद्देयंइत्याकांक्षायांवाराहे॥ ॥लक्षनमस्कारहोमप्रकत्य॥व्याहृतीनांसहनस्या For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie // 21 // संस्कार | |होमेशुल्फैहिजेर्पयेत्॥माषमाचंसवर्णतुलसहोमेश यवाइत्युक्तं॥ धनिकोहिगुणदया-|| भास्कर त्रिगुणतुमहाधनः॥यवाछूतुदरिद्रेणदातव्यं पुण्यलब्धये॥ दद्यान्महादरिद्रस्ततदर्थंक ल्कमेवचेति॥मध्यमादिभिस्तधनिकायपेक्षयाकिंचिन्यूनंदरिद्रायपेक्षयाकिंचिदधिकंदेयमित्यर्थात्तारतम्येनकल्पनीयं॥धीरेणापिदरिद्रतोपिन्यूनसमंबालामानुसारेणकल्पनीयं ॥एतच्चसवर्णादिद्रव्यविषयमेवनतुगवादिविषयं॥ सवर्णप्रकृत्यैवबैगुण्यादेरुक्तत्वात् एतत्सर्वंनित्यकर्मविषयंअनुक्तपरिमाणविषयकंचज्ञेयं॥काम्येउक्तपरिमाणेचकर्मणि // 21 // नुयथावदेवदेयं // धनिकादिभिस्तदारिद्यमितिपरल्यापयन्यथावन्नददातिसकर्मफ || For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लंनैवानोति॥ तथाचमनुः॥ ॥मनुःप्रथमकल्पस्ययोनुकल्पेनवर्तते॥सनामोति || फलंतस्यपरतिश्रुतिस्मृतिरितिपुराणांतरेपि॥ पित्तशाम्यनरोयस्तधनेसतिकरोतिहि॥ सनामोतिफलंतरचौरएवप्रकीर्तितइति॥ एवं स्वल्पकालसाध्यबहुकालसाध्यकर्मसत्रमा यनुरोधेनद्रव्येयत्ताकल्पनीया॥ ॥भारते॥ वेदोपनिषदेचैवसर्वकर्मरूदक्षिणा॥ सर्वत्रैव तुचोद्दिष्टाभूमिर्गायोथकांचन॥ ॥बैजवापः॥ शिवनेत्रोद्भवंयस्मात्तस्मात्तसिवल्लभ। अमंगलंतद्यलेनदेवकार्येषिवर्जयेत्॥ ॥सर्वकर्मस ब्राह्मणभोजनसंख्यामाहगदाध रे॥गर्भाधानादिसंस्कारेबाह्मणाभोजयेद्दा॥ शतंविवाहसंस्कारेपंचाशन्मेखलाविधी॥ For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार आयसयेत्रयस्त्रिंश-ड्रोनाधानेशनासरं॥ अष्टकंसोजयेद्भक्त्याननसंस्कारसिद्धये॥आय भास्कर // 22 // यणेप्रायश्चित्तेब्राह्मणान्दशपंचचेति॥ रुतकर्मईश्वरार्पणकार्यमित्युक्तंबृहन्नारदीये॥ विष्यपर्पितानिकर्माणिसफलानिभनिहि ॥अनर्पितानिकर्माणिभस्मनीवहुतंहविः॥नित्यं नैमित्तिकंकाम्यंयच्चान्यन्मोक्षसाधनं॥विष्णोः समर्पितंसर्वंसाविकंफलदंभवेत्॥ // निपरिभाषाप्रकर्ण॥ ॥अथगर्भाधान।। तत्रप्रथमरजोदर्शनेत्रयोदशदोषाःज्योतिः | शास्उक्तालेसंकल्पेपक्ष्यामः तत्रदोषाणांनिबर्हणार्थनारदोक्तविधिनाशांतिकत्यागी | // 22 // धानकार्य॥शांतिकर्मअमिचक्रंचावश्यंतथापिभमिचक्रविनाकर्माणिनिर्णानानि॥ For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ज्योतिर्निबंधे॥ ॥दुर्गाहोमविधीविवाहसमयेसीमंतपुत्रोत्सवेगर्भाधानविधौचवास्त समयेविष्णोःप्रतिष्ठादिषु॥ मौजीबंधनवैश्वदेवकरणेसंस्कारनेमिनिकहोमोनित्यभवे नदोषकथितंचकंचवन्हेरपीति॥ ॥अथनारदोक्तगर्भाधानशांतिः॥नियततिथिवा रेषुयदिपुष्पंप्रदृश्यते॥अशांचेद्रनः स्त्रीणानियस्यानंचवाससी ॥१॥तशांतिपकु तिमहयज्ञपुरःसरं॥समुहूर्ततुसंपानेकुर्याच्छानियथाविधि॥२॥विधानंतरकर्नव्यं अरिष्टभंविशेषतः॥ दंपत्योःपातरेवस्यान्मंगलस्नानमुत्तम॥३॥पंचमेदिवसेरनाला द्वाभ्यामप्यत्रमंगलैः॥तिलनेलेनटेनशभकल्केनवापुनः॥ उष्णेश्चवारिभिः श्रेष्ठ For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie // 23 // चपल्लवसंयुतेः॥आन्हिकंविधिवत्रुत्वाविधानंनूनमाचरेत्॥५॥ताचारसमायुक्तःश्च भास्कर यापरयायुतः॥तिथिश्रवणकंकुर्याच्छातिसंकल्पपूर्वकं॥६॥पुण्याहवाचयेत्पश्चात् ब्राह्मणैर्वेदपारगैः॥ रुत्वाफ्युदयिकंबादमाचार्यवरयेत्ततः॥७॥स्थंडिलंचततः रुत्याभ||मिंसंस्थापयेत्ततः॥ईशान्यांचतुर कुंभान्स्थापयेद्वारिपूरितान्॥॥पंचपल्लवसंयुक्तान्स |ौषधिसमन्वितान्॥पंचरत्नसमायुक्तान्पक्तिरूपेणसाधयेत्॥९॥कुंभोपरिन्यसेसात्र शालिनंदुलपूरितं॥ पात्रोपरिन्यसेहरूप्रतिकंभपृथक्पृथक्॥१०॥ सूर्यचविन्यसेदाघेई | // 23 // देंद्राणीततः परं॥ चतुर्थेविन्यसेद्विद्वान्प्रतिमांनुवनेश्वरी ॥११॥ततोयहांश्चसंपूज्ययथा|| For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विधिविधानतः॥ सूर्यकुंभंतुसंस्पृष्ट्वासूर्यसूक्तं जपेहिजः॥१२॥रुदैकादशनींचापिजपे / तबसमाहितः॥प्रधानंपायसंप्रोक्तंसघृतंचसशर्करा॥१३॥ अष्टोत्तरसहसंनुशतमष्टोत्त रंनुवा॥ प्रत्येकदेवनानांच जुहुयात्तिलसर्पिषा॥१४॥आरुष्णेनेतिसूचइंदंबातारमिंद्र तः॥इंद्राणीनुतथादित्यैरास्नेनिचसमंत्रतः॥१५॥ ईश्वरीप्नुवनस्याथयजुषाधीश्चतेति च॥ यहहोमंततः रुत्वायथाविध्युक्तद्रव्यया॥१६॥वंशपासमानीयरक्तवस्त्रसमन्वित मानबराशिंप्रकुर्वीततंदुलानांनृपोत्तम॥१७॥तत्रोपरिन्यसेहेमींकदलीसूर्यदेवतांचन्हे रुत्तरतोविद्वान्कदलीस्थापयेच्छुभा॥१८॥ हेम्नः पंचपलाट्यांवापलस्यापिसुलक्षणा॥ प For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार लार्धेनतदर्धेनतदर्धेनचयापुनः॥१९॥सस्तंभाट्यांसपत्रांचकदलेनविराजितां॥ ॥तंदु भास्कर लानांप्रमाणेतु॥ अष्टमुष्टिभवेलिंचित्किंचिदशौचपुफलं॥पुष्फलानिचचत्वारिभाटक: परिकीर्तितः॥ चतुर्भिराटकैणियाह्याद्रोणैकतंदुलान्॥दयात्ताविप्रवर्यायसवस्त्रांचसद क्षिणां॥अलंकृतायविदुषेश्रोत्रियायकुटुंबिने॥दानमंत्रस्तु॥ रूपबेसागेदेविरंभेनास्करवल्लो॥रक्षमारजसोदोषातदुष्टस्यास्यविगर्हितात्॥दानेनानेनदेवेशसविताविश्व तोमुरयः॥प्रीनोभवतुवैसचोदोषोहरतुदुष्कृत।ततोभिषेचनंकार्यदंपत्योश्चविशेषतः॥ // 24 // ||उच्चार्य वारुणान्मंगाजलेनपंचपल्लवैः॥ उधृत्योधृत्यतंसिंचेत्पुण्यमंत्रैर्यथाविधि ॥आ|| For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पोहिष्टात्रिभिमत्रै पंचेंद्रैःपंचवारुणेः॥भगपणेतीदमापःसमुद्रायपुनंतुमा॥आप्यायपंच नोतिशिरोमेतिचतसृभिः॥देवस्यत्वेत्रिपीत्यादिअभिषिंचपुनःपुनः॥शकादिदेवताःस ब्रिह्माविष्णुपुरोगमाः॥दंपत्योःपरिधानार्यमहतेवाससीपुरा॥कर्मणोंतेविसृज्यान्यासश्वपरिधार्यते॥आचार्यायततोदयास्वर्णगोभूतिलांततः॥बाह्मणेभ्यस्तथान्ये योदक्षिणा अविशेषतः॥सदक्षिणमनाहंमदद्याद्रजापिने॥ब्राह्मणान्भोजयेसश्चाउर्करापृतपा | यसैः॥ यस्मिन्वाससिदृष्टंचरजोदुष्टायावहं॥ तद्वासोयत्नतस्याज्यंततःशांनिकरहित |न्॥ एवंयः कुरुतेशानिनारदोक्तप्रमाणतः॥ तदनिष्टंतुसकलंसयएयविनश्यति॥ ॥इ For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 25 // संस्कार निनारदोक्तरजोदर्शनशॉनिक्रमः॥अथशांतिपयोगानुक्रमः॥ शातिकमप्रवक्ष्यामिनारदे भास्कर नयथोदितं॥गणेशपूजयेदादीस्वस्तिपुण्याहवाचन॥१॥ मातॄणांपूजनंकार्यनांदीश्राइमनः परं॥ आचार्यवरयित्त्वाथब्रह्माणंगाणपत्यकं ॥२॥सादस्यकखिजवजापकान्वरयेननः॥ दिग्ररक्षणंततःकार्यपंचगव्यंयथाविधि ॥३॥भूमिसंपूज्यविधिवत्ताश्वसंस्कारपंचकं॥स्थं डिलेमिंप्रतिष्ठाप्यकलशान्स्थापयेल्कमात्॥४॥मूर्सम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठास्थापनार्चनं॥ यहादीन्स्थापयित्वाथस्थापयेद्रुद्रकंपकं॥५॥ब्रह्मासनंततोदयाकारयेत्कुशकंडिका।लिं| गोक्तैर्नाममंत्रै यथाविध्युक्तद्रव्यया॥६॥ देवताग्रहहोमंचयथासंख्यापुरः सरं॥पूजा // 25 // For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्पिष्टनवाहुत्यावलिंपूर्णाहुतिनथा॥७॥स्वाभादिविमोकांनंहोमशेषसमापयेत्॥श्रेयसे पायदानंचअभिषेकोविसर्जनं॥॥विमाशिषःप्रगण्हीयात्तैर्मिष्टान्नेनभोजयेत्॥ // इति शांतिपयोगानुक्रमः॥नान्वाधानंऋषिञ्छंदोयाजुषागृह्मकर्मणि॥श्रौतेकर्मणिकेषांचिदन्या धानादिकारयेदितिचचनात्॥ऋषिश्छंदअन्वाधानगर्भाधानातिरिक्तसंस्कारेऽस्मिन्ये नांगीकृतं॥ ॥तबादौसर्वकर्मसाधारणांगानांगणेशपूजादीनांस्वस्तिवाचनांतानांप्रयोगः ॥सचशिष्टमचुराचारानुसारेणोच्यते॥ ॥महत्सुकर्मसपूर्वेयु: स्वल्पेषुतस्मिन्नहनिपूर्वाण्हेनिर्णेजनांनपंचमहायज्ञांत रुतनित्यकियेणसपत्नीकेनसंस्कार्षणचयजमानेनपाडमा। For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार, खेनोदङ्मुखेनवाशपीठेउपवेशनं॥ ॥पादोहस्तौचपक्षाल्यदिराचम्पत्रिःपाणानाय | भास्कर // 26 // म्यदेशकालोसंकीर्त्यफरिष्यमाणामुककर्मागतयामंगलस्नानमहंकरिष्येइतिसंकसः॥ // |ततोययाचारमंगलवायघोषपुरः सरंपुत्रवतीवृद्धसवासिनीभिहस्तैः सगंधितेलेनाप्यं जनंतिलामलकादीनांसर्वोषध्यादिसुगंधचूर्णेनोहर्तनं उष्णोदकेनस्नानमिदमेवमंगलस्ना नमित्यभिधीयते॥ // संयहे॥ सौगंध्यतिलतैलेनकुर्यादेगेषुभ्यंजन॥तिलामलकसंयुक्तै, सुगंध्यौषधिचूर्णकैः॥अंगोहर्योष्णोदकेनस्मानंतागलंस्मृतमिति॥ ॥ष्कवस्त्र || // 26 // परिधानपुरःसरंपतिपुत्रवतीवृद्धसवासिनीभिर्मगलतिलकसुतंनीराजनंचप्रकुति॥त For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || याचयजमानः पल्यासंस्कार्येणचयथायोग्याडलंकृतः द्विराचमनं॥ नतोयजमानःन | विश्वेनंसद शंस्ववर्णेनसरुद्धोतंपागुदग्दर्शवाप्रसारितंनान्यधारितंअहतंबसनंतनानिष्ट ष्टिकटयेवंबद्धत्रिकच्छंपरिधास्येइत्यनेनमंत्रणपरिधाय यशसामेत्यनेनमंत्रेणोत्तरीयों ॥अहनेवाक्षीमवस्त्रेश्वेतपीतरक्तरंजितेवानीलीरंजितंविनापल्यासमंबंपरिधाय॥प्रति | वस्त्रेस्मार्तविधिनाद्विराचमनं॥पल्यास्त यथोक्तं॥ ततोवारणादियज्ञीयदारुनिर्मितेसो सरदेशुद्धपीठेशभासनेयज्ञोपवीतिनादक्षिणपार्श्वबद्दशिरवाऽभिन्नकेशेयजमानेन प्राइमुखेनवाउपवेशन॥तदक्षिणतः पल्याचतद्दक्षिणतः संस्कार्येणच॥वारणादिपदेन For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 27 // |सीसवटेंभुरणीकाटपीठ॥ उत्तरछदेउत्तरायइति॥ // सयेदिविझदलोपयहः॥दक्षिणे|| भास्कर चतुः कुशदलोपग्रहः॥सचअनामिक्यांमध्यप॥ एवंकरदये कुशोपग्रहः॥ अथवापंचचा तुकुझादलग्रंथियुतकरयेपवित्रोपग्रहः॥वर्णवर्णेएकैकन्यूनमितिकेचित्॥ ॥शोडश माषमारभ्योयचयथाशक्ति हेमात्मकपवित्रंचातिप्रशस्तं॥ ॥धृतकुंकुमकेशरस्ययामंग लतिलकोस्मार्तविधिनादिराचम्यप्राणानायम्यशांतिपाठपठित्वात्रिमाप्रणवमुच्चार्यलक्ष्मीनारायणादिदेवान्प्रणमेत्॥ // अथशानिपाठमंत्राः॥ ॐ आनोभद्राः कतैयो यन्तुञ्चिश्वतोदब्धासोऽ अपरीतास उद्भिदैः // देवानोयथासमिङ्खधे प्रसन्नतायुयो For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | रक्षितारौदियेदिये॥१॥ देवानाम्भद्रासमतियुतान्देवानीगृतिभिनोनिवर्तता | म्॥देवानी सरन्यमुपसेदिमाच्यन्देवान आयुः प्रतिरन्तुजीवसे // 2 // तान्पूर्चयानिधि दोहूमहेयनगम्मित्रमर्दिनिन्दक्षमसिधम्॥अर्यमणम्बरुण सोममश्विनासर स्वत्तीनः सुभगामयंस्करत् // 3 // तन्नोबातोमयोप्पा तुमेषजंतन्मातापृथिवीत सितायोः // तव्यावाणः सोमसुतोमयोभुवस्तदैश्विनाशृणुतन्धिष्ण्या युवम्॥४॥ तमीशानुन्जगतस्तस्थुषस्पतिधियजिन्यमवसेहूमहे घुयम् ॥पूषानोयथावेदाम सदृधेरक्षिनापायुरदब्धः स्वस्तये // 5 // स्वस्ति न इन्द्रोवृद्धश्रवाः स्वस्तिन For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पूषाविश्ववेदाः ॥स्वस्तिनस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु // 6 // भास्कर // 28 // दश्वामुरुनु पनिमानरः शुमच्यायानोविदर्थेषुजम्मयः // अभिजिदामनयुद्ध सूर चक्षसोधिश्चैनोदेवाऽ अवसागमनिह॥७॥भद्रकर्णेभिः शृणुयामदेवाझुद्रम्पश्यै | माक्षभिर्यजत्राः॥स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहिदेवहितंब दायुः // 8 // शतमिन्नु गरदोऽ अनिदेवायत्रानका जरसन्तनूनाम् ॥पुत्रासोचत्रपितरोम विन्तिमानौमध्यारीरिषतायुर्णतो? ॥९॥अदिति द्यौरदितिरन्तरिक्षमर्दितिर्मा || // 28 // |नासपिनासपुत्र // विश्वेदेवाः अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिजनितम् | For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | // 10 // तम्पनी भिरनुगछेमदेवाः पुत्रैर्धाग्निरुतवाहिरण्येः // नाकैङ्गष्णानास / कुतस्य॑ोकेतृतीयेषुष्ठे अधिरोचनेदिवः ॥११॥आयुष्यवर्चस्यायस्पोमौदि दम्॥इदहिरण्यं चर्चज्जैायाविशतादुमाम् // 12 // यो शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति: पृथिवीशानिरापुः शान्नुिरोषधयः शान्तिः // वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवार शानिर्ब्रह्मशान्तिः सर्च शान्तिः शानिरे व शान्तिः सामाशान्तिरेधि॥१॥ यतो यता समीहंसेततोनो अप्रयङ्क // शन्नः कुरु जान्योभयन्नः पशुपयः // 2 // सशांतिर्भवतु॥ // ॐ श्रीमन्महागणाधिपतयेनमः // ॐ लक्ष्मीनारायणायां For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार नमः॥ ॐ उमामहेश्वरायांनमः॥ ॐ वाणीहिरण्यगर्मात्यांनमः॥ ॐ शचीपुरंदराप्त्यांना भास्कर // 29 // |मः॥मातापितचरणकमलेश्योनमः॥ ॐ कुलदेवताभ्योनमः॥ॐइष्टदेवताभ्योनमः॥ यामदेवताभ्योनमः॥ॐस्थानदेवताभ्योनमः॥ ॐ वास्तुदेवताभ्योनमः॥ ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यःसर्वेभ्योबाह्मणेश्योनमोनमः॥ ॐ पुण्यपुण्याहंदीर्घमायुरस्त॥ समुरखश्चैकदं निश्चकपिलोगजकर्णकः॥ लंबोदरश्वविकटो विघ्ननाशोगणाधिपः॥१॥धूम्रकेतुर्गणाध्य क्षोभालचंद्रोगजाननः॥डादशैतानिनामानियःपठे मृणुयादपि॥२॥विद्यारंभविवाहेच // 29 // प्रवेशेनिर्गमेतथा॥ संग्रामेसंकटेचैवविघ्नस्तस्यनजायते॥३॥शुक्लांबरधरंदेवंशशिव For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir णचतुर्सजं॥प्रसन्नवदनंध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांतये॥४॥ अभीप्सितार्थसिध्यर्थपूजिनीयःसरासरैः॥सर्वविघ्नहरस्तस्मैगणाधिपतयेनमः॥५॥सर्वमंगलमांगल्येशिवेसर्वार्थसा ||धिके॥शरण्येत्र्यंबकेगोरिनारायणिनमोस्तते॥६॥सर्वदासर्वकार्येषु नास्तितेषाममंगलं॥ येषांदिस्थोभगवान्मंगलायतनंहरिः॥७॥लासस्तेषाजयस्तेषांकुतस्तेषांपराजयः॥येषा मिंदीवरश्याभो हृदयस्थोजनार्दनः॥८॥विनायकं गुरुंभानुब्रह्माविष्णुमहेश्वरान्॥सर स्वनीप्रणम्यादोसर्वकार्यार्थसिद्धये॥९॥सर्वेष्यारंभकार्येषुत्रयस्त्रिभुवनेश्वराशदेवादिशे तुन:सिद्धिंब्रह्मेशानजनार्दनाः॥१०॥ ॥विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतोमहापुरुष || For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार स्थविष्णोराज्ञयामवर्तमानस्यअयब्रह्मणोहितीयेपरार्धेविष्णुपदेश्रीश्वेतवाराहकल्पेवैव, // 30 // | स्वतमन्वंतरेअष्टाविंशनितमेकलियुगेपथमचरणेभरतवर्षभरतरचंडेजंबुढीपेदंडकार ण्येदेशेगोदावर्यापश्चिमेतीरेपरशरामक्षेत्रेबोध्यावतारेशालिवाहन शके अमुकनामसे | यत्सरेअमुकायनेअमुकऋतौअमुकमासेअसकपक्षेअमुकतियोअमुकवासरेअमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थितेचंद्रेअमुकराशिस्थितेश्रीसूर्यअमुकराशिस्थिनेदेवगुरोशेषेषुग्रहेष यथायथाराशिस्थानस्थितेषुसत्सुएवंगुणविशेषणविशिष्टायांमपुण्यतिथौममआत्म | // 30 // निः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलायाप्तयेअस्मिन्पुण्याहेअस्याः मममार्यायाःप्रथमरजोदर्श / For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |नसमयेमासतिथिवारनक्षत्रयोगकरणलमहोरावस्त्रदर्शनस्यानदिनभागवर्णानांम ध्येयद्यविरुद्धफलंतत्तदोषपरिहारार्थपुत्रपौवादिसंततिपाप्त्यर्थतथाचममफलत्रेणसह जन्मराशेः सकाशान्नामराशेः सकाशा येके चिहिरुहस्थानस्थितक्रूरग्रहास्तैः सूचिन सूचयिष्यमाणंचयत्सर्वारिष्टंतदिनाशार्थसर्वदातृतीयेकादशभस्थानस्थितशम फलप्राप्त्यर्थगणपतिदुर्गाक्षेत्राधिपनिआदित्यादिनवग्रहाधिदेवताप्रत्यधिदेवतादिसहितः श्रीसूर्यइंद्रइंद्राणीभुवनेश्वरीदेयताप्रीत्यर्थनारदोक्तरजोदर्शनशांतिसांगोपांगेनतथाचमन स्याःममामार्यायाः क्षेत्रगर्मयोः संस्कारार्थप्रतिगर्मसमुद्भचैनोनिबर्हणद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यय For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गर्भाधानाव्यकर्मएकत्रेणा करिष्ये // इतिसंकल्पः॥ // तदंगन्यन गणपनि जनस्य नाका 5 स्लिपुण्याहराचनमा नृकापूजनं आयुष्यमंत्रजपनांदीश्राद्धं ब्रह्माचार्यकविवरणदिन क्षणपंचगव्य करणभूमिपूजनं अमिस्थापनकलशस्थापनभस्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठापूर्वक देवतास्थापनकदलीस्थापनेनवग्रहस्थापनंचाहंकरिष्ये॥नबादीकार्यजलपरिनकलशार्चनं॥ तायामिब्रह्मणाबन्दमानस्तदाशास्नयजमानो हविर्मि: // अहंडमाना वरुणेहबोध्युरुवार्द समान आय प्रमोषी ॥१॥कलशेयरणायनमःगंधाक्षतपुष्पैः|॥३१॥ संपूज्य // नतोदक्षिणहस्नेनकलशमालश्यानिमंत्रयेत् // कलशस्यमुरविष्णुः कंठेरुदः / For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir समाश्रितः॥ मूलेतस्यस्थितोब्रह्मामध्येमागणा:स्मृताः॥१॥ कुक्षोतसागरा:सर्वसप्तडी|| पायसंधरा॥ऋग्वेदोथयजुर्वेदःसामवेदोत्यथर्वणः॥२॥अंगैश्वसहिताःसर्वेकलशेतुस माथिना:॥ इत्यभिमंत्र्य॥ततोगंगायावाहनं।गंगेचयमुनेचैवगोदावरिसरस्वति॥ नर्म देसिंधुकावेरिजलेस्मिन्सन्निधिंकुरु ॥१॥अस्मिन्कलशेसर्वाणितीर्थान्यावाहयामि॥पू जयामि॥नमस्करोमि। कल शोदकेनपूजासंभारान्संप्रोस्य॥ तत्रमंत्रः॥ ॐ अपवित्रः पवित्रोवासर्वावस्थांगतोपिया॥ यःस्मरेसुंडरीकाक्षंसबाह्याभ्यंतरे शुचिः॥१॥ इतिमंत्र गप्रोक्षयेत्॥ // दीपपूजनं॥ भोदीपत्वंब्रह्मरूपअंधकारनिवारक // इमांमयारुतां For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार प्रजासण्हलेजःपपर्धय॥१॥दीपायनमः गंधाक्षतपुष्पैःसंपूज्य॥ ॥अथगणपतिपूजन, मास्कर ननोध्यानं॥ ॥श्वेतांगंश्वेतवस्त्रंसिनकुसमगणैःपूजितंश्वेतगंधैः क्षीराब्धौरत्नदीपेःसु रनरुविमलेरत्नसिंहासनस्थ॥ दोभिः पाशांकुशेष्टाभयधृतिविशदचंद्रमौलिंबिनेत्रंध्याये च्छांत्यर्थमीशंगणपतिममलंश्रीसमेतंप्रसन्न // 1 // ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहित |महागणपतयेनमः ध्यायामि॥ ॥हेहेरंबत्वमेह्येहि अंबिकात्र्यंबकात्मज॥सिद्धिबुद्धि |पनेत्र्यक्षलक्षलाभपितुःपिनः॥१॥ नागास्य नागहारवंगणराजचतुर्भुज॥ भूषितःस्वा || // 32 // युधैर्दिव्यैः पाशांकुशपरश्वधैः॥२॥आवाहयामिपूजार्यरक्षार्थचममकतोः॥ इहागत्य | For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गृहाणापूजाकतुंचरक्षमे॥३॥ॐ गणानान्वागणपनिट हवामहेमियाणान्वामियपति | हवामहेनिधीनान्त्यानिधिपतिर्द हवामहेबसोमम॥आहमजानिग धमाखमजा सिगर्भधम्॥१॥ ॐ भू. सिद्धिबुद्धिसहितमहागणपतयेनमः गणपतिआवाहयामि॥ ॥रम्यंसशोभनंदिव्यंसर्वसौरव्यकरंयुमं॥आसनंचमयादत्तंगहाणपरमेश्वर॥ 2 // ॐवर्णोस्मिसमानानामुयनामिवसूर्यः // इमंतमभितिष्ठामियोमाफश्वाभिधासति // 2 // ॐ भू०सि० म० आसनसमर्पयामि॥ उष्णोदकं निर्मलंचसर्वसौगंध्यसंयुतं॥ | पादप्रक्षालनार्थायदत्तंतेप्रतिययतां॥३॥ ॐ एतावानस्यमहिमातोज्यायाभूपू / For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रुषकः // पादौस्यचिचोभूनानिधिपादस्या मृनन्दिवि॥३॥ॐ भूमि म ग पायंस // भास्कर नाम्नपात्रेस्थितंतोयंगंधपुष्पफलान्वितं ॥सहिरण्यंददाम्यर्घगृहाणपरमेश्वर॥४॥ ॐ धामन्तेविश्यम्भुवनमधिश्रितमन्त समुद्रेहृयन्तरायुषि॥अपामनीकेसमिये यह आतस्तमैश्याममधुमन्तन्न ऊर्मिम्॥ 4 // ॐ भू.सि. म. अर्घस. ॥सर्वती र्थसमायुक्तंसगंधिनिर्मलंजलं॥ आचम्याथमयादत्तंगृहाणपरमेश्वर॥५॥ ॐइ मम्मेवरुणश्रुधीहमद्याचमृडय॥त्यामवस्युराचके ॥५॥ॐ भू-सि-म- आचम // 33 // नंसम०॥ पंचामृत स्नानं॥ कामधेनुसमुद्भूतंसर्वेषांजीवनंपरं॥ पावनंयज्ञहेतुश्चपयः / / For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्नानार्थमर्पित॥१॥ ॐ पय पृथिव्याम्पय ओषधीषुपयौदिव्यनरिक्षेपयोधाः ॥पर्यस्य ती. प्रदिशः सन्तुमयम्॥१॥ ॐ भू-सि-म-पयःस्मानंस // पयःस्नानांतेशद्धोदकरमानंस०॥पयसस्तुसमुद्भूतंमधुराम्रंशशिप्रसं॥दध्यानीतंमयादेवस्नानार्थप्रति गृह्यतां॥२॥ ॐ दधिक्राव्णो: अकारिषजिष्णोरश्वस्यवाजिनः // सुरभिनो| मुरवाकरण आयूट षितारिषत्॥२॥ ॐ भू-सि-म- दधिस्मानं // नवनीतसमुत्सा नंसर्वसंतोषकारकं॥घृतंतुमयंप्रदास्यामिस्नानार्थप्रतिगृह्यतां // 3 // ॐ घृतम्मिमिक्षेतम॑स्य॒योनिघृतश्रितोघृतम्बस्य॒धाम॥ अनुयुधमाह मादयस्वस्वाहारुत। For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार, घमवक्षिहव्यम्॥३॥ॐभू सि-म-घृतस्नानंस०॥घृतस्नानांतेश्शु०॥तरुपुष्यसमा भास्कर // 34 // तंसुस्वादुमधुरंमधु॥तेज:पुष्टिकरंदिव्यंस्नानार्थप्रतिगृह्यतां // 1 // ॐमधुघा नाडक्रतायतेमधुक्षरन्तिसिन्धयः ॥माधीन सन्त्योषधीः ॥१॥मधुनक्त मनोयसोमधुम सार्थिव रजे ॥मधुयोरस्तुनः पिता॥२॥मधुमान्नोबनस्पतिर्मधुमाँ 2 5 अस्तु सूर्य:॥माध्वीवोभवन्तुनः॥३॥४॥ॐ भू-सि-म- मधुस्नानंस // इक्षुसारसमुद्ध ताशर्करापुष्टिकारिका॥मलापहारिकादिव्यास्नानार्थप्रतिगृह्यतां॥५॥ ॐ अपा // 34 // || रसमु यसर्ट सूर्य्यसन्तः समाहितम्॥अपारसस्युयोरसस्तै चौगृहाम्म्य // For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नममुपामरहीतोसीन्द्रीयत्वा॒नुष्टङ्ग हाम्येषतेयोनिरिन्द्रीयत्वायुष्टतमम्॥५॥ ॐ भू-सि-म शर्करास्नानंस॥नानासुगंधद्रव्यंच चंदनंरजनीयुतं॥उद्वर्त्तनंमयाद | गृहाणपरमेश्वर॥१॥ ॐ गन्धर्वस्वाधिश्वासः परिंदधातुधिश्वस्यारिष्येयजे मानस्यपरिधिरैस्युमिरिड ईडितः॥१॥ॐ अहिरिवोगे पर्येतिबाहुज्यायीहेनि परिबाधमानः ॥हस्तनोविश्वधियुनानिविद्वान्पुमान्पुमा सम्परिपातुविश्वत: // 2 // ॐ भू-सि-म- उद्वर्तनस्नानंस०॥उद्वर्तनस्नानांतेशुद्धोदकस्मानंस.॥ ततो || नाममंत्रेणगंधपुष्पधूपदीपनैवेद्यतांबूलदक्षिणा पंचामृतम्नानागपूजनंइतिशिष्टाः | For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // कावेरीनर्मदावेणीतुंगभद्रासरस्वती॥गंगाचयमुनातोयंमयास्मानार्थमर्पित॥१॥ॐ भास्कर आपोहिष्टामयोभुवस्तान ऊर्थेदधातन॥ महेरणायचक्षसे॥१॥योव शिवतमोरस स्तस्य॑माजयतेहनः // उशतीरिवमातरः // 2 // तस्मा अरङ्गमामयो यस्यक्षायजि न्वय // आपौजनयथाचनः // 3 // ॐ भू-सि-म-शुद्धोदकस्मानमभिषेकंचसः शांतिः शांति शांतिः॥ सुशांतिर्भवतु॥ ॐ भू-सि-म स्मानांनेाचमनंस०॥ // सर्वभूषादि। मेसोम्येलोकलज्जानिवारणे॥मयोपपादितेतुत्यवाससीपतिराद्यतां॥१॥ॐ युवासवासा // 35 // || परिवीत आगास उश्रेयान्भवतिजायमानः॥तन्धीरासः कवयःउन्नयन्निस्वाध्योम || For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नसादेवयन्तः॥२॥ ॐ मू.सि.म- वस्त्रंस // नाभिस्संतुभिर्युक्तं त्रिगुणदेवतामयं // उपवीतंमयादत्तंगृहाणपरमेश्वर॥१॥ ॐ यज्ञोपवीतम्परमपवित्रप्रजापतेर्यसह जम्पुस्तात्॥आयुष्यमय्यम्प्रतिमुच्चभुश्चयज्ञोपवीतंबलमस्तुतेजः॥१॥ ॐ भूमिम. यज्ञोपवीतंस०॥ आचमनं॥श्रीरवंडं चंदनंदिव्यंकेशरादिसमन्वितं॥विलेपनंसु रश्रेष्ठ चंदनप्रतिगृत्यनां॥१॥ॐबाङ्गन्धर्वा अरखनॅस्वामिन्द्रस्त्वाम्बृहस्पतिः॥त्वा मोषधेसोमोराजाविहान्यक्ष्मादमुच्यत॥१॥ ॐ भू-सि-म. चंदनमः // अक्षताश्न || सरश्रेष्ठकुंकुमाक्ता मुशोभिताः॥मयानिवेदिताभस्यागृहाणपरमेश्वर॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार अक्षन्नमीभदन्तायप्रिया अधूषत॥ अस्तौषत्वभानवोधिपानविष्ठयामतीयोजा भास्कर // 36 // चिन्द्रतेहरि॥१॥ ॐ भू-सिम अक्षनान्स ॥सुमाल्यानिसगंधीनिमालत्यादीनिवेम। भो॥मयाहनानिपूजार्थंपुष्पाणिप्रनिगृह्यतां॥१॥ॐ ओषधी प्रतिमोदध्वम्पुष्पवनी असूबरी: ॥अश्या इवसुजित्वरी/रुधःपारयणवः // 1 // ॐ भू-सि-म- पुष्पाणि स०॥दूर्वांकुरान्सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्।आनीतांस्तवपूजार्थगृहाणगणनायका // 1 // ॐ काण्डाकाण्डा रोहन्तीपरुषः परुषस्परि॥एवानौदूपतेनुस हौणशते / // 36 // नच॥१॥ ॐ भू.मिमदूर्वांकुरान्स.॥हरिद्राकुंकुमचैयसिंदूरादिसमन्वित।सी। For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भाग्यद्रव्यसंयुक्तं गृहाणपरमेश्वर॥१॥सगंधौषधिचूर्णचनानापरिमलानिच॥नानासु गंधतैलानिअतःशांतिपयच्छमे॥२॥ ॐ अहिरिवभोगेश्पतिबाहुमायीहेतिम्परि बाधमान // हस्तनोविश्वाच्युनानिविद्यन्पुमान्पुमाई सम्परिपातुविश्वतः ॥१॥ॐ भूः सि-म- नानापरिमलद्रव्याणिसमर्पयामि॥ वनस्पतिरसोद्भूतोगंधाट्योगंधउत्तमः॥आप्रेयसची देवानांधूपोयंप्रतिगृह्यतां॥१॥ ॐ धूरसिधूर्चधूर्चन्तन्धूचुतज्योस्मान्धूचतिनन्धूर्बुबम्ब यन्धूम // देवानामसिबन्हितमई सस्मितमम्पषितमनुष्टतमन्देवहूर्तमम्॥१॥ || ॐ भू.सि-म-धूपंस०॥साज्यंचयर्तिसंयुक्तंवन्हिनायोजिमया॥दीपंगृहाणदेवे For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार शत्रैलोक्यतिमिरापह॥१॥ ॐ अमियोनियोतिरमि स्वाहासूर्योज्योनियोतिःसू मास्कर // 37 // स्वार्हा॥ अमि/ज्योर्तुिर्वर्चः स्वाहासूर्योचर्चीज्योति॒र्च स्याहा॥ ज्योतिः सूर्यः सूर्योज्योति स्वाही॥१॥ॐ भू. सि-म-दीपंसमर्पयामि॥ शर्कराघृतसंयुक्तंमधुरंम्चा दुचोत्तमं॥ उपहारसमायुक्तंनैवेद्यप्रतिग्रह्यतां॥१॥ ॐ वेदैवासोदिव्येकादशस्थपृथिच्यामध्येकादशस्थ। अप्सुक्षितौमहिनैकादशस्यनेदैवासोयज्ञमिमंजुषध्वम्॥१॥ ॐ भू-सि-म. नैवेयंस०॥ॐ भू.पानीयंस०॥ ॐ भू. उत्तरापोरानंस० // ॐ मूह // 37 // || स्लपक्षालनंसमर्पयामि॥ ॐ भू-सि-म-मुखप्रक्षालनंस०॥ ॐ भू. चंदनेनकरो For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इनिंस०॥ इदंफलंमयादेवस्थापिनंपुरतस्तव॥ तेनमेसफलावाप्तिर्मवेज्जन्मनिजन्मा |नि॥१॥ ॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पायाश्चपुष्पिणी ॥बृहस्पतिप्रसूतास्ता नौमुञ्चन्त हैस ॥१॥ॐ भू-सि-म-फलंस.॥पूगीफलंमहद्दिव्यनागवल्लीदलै [॥एलादिचूर्णसंयुक्तंनांबूलंपनिगृह्यतां॥१॥ ॐ यत्पुरुषेणहविषादेवायज्ञमते न्वत॥सन्तोस्यासीदाज्यंग्रीमा इमारहविः॥१॥ ॐ भू.सि.म. तांबूलंस. ॥हिरण्यगर्मागर्मस्थंहेमबीजंविपावसोः॥अनंतपुण्यफलदमतःशांतिपयच्छम।।१॥ / ॐ हिरण्यगरिसमवर्ततायेमूनस्यानश्पतिरेकआसीन॥साधारपृथिवीन्द्यामुने For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार माङ्कस्मैदेवायहविषाविधेम।। १॥ॐ भू.सि.म दक्षिणांस॥कदलीगर्भसंभूतंक' | भास्कर रंचपदीपितं॥आरार्तिकमहंकु पश्यमेवरदोभव॥१॥ ॐ इदर्द हविश्प्रजननम्मे अ| स्तुदर्शवीरः सर्वगण स्वस्तथै॥ आत्मसनि जासनिपपुसनिलोकसन्यायसनि॥ अमिजाम्बहुलाम्मैकरोखन्नम्पयोरेनौऽ अस्मासुंधत्त॥१॥ॐ भू-सि-म-कर्पूरनीराज नस०॥नानासगंधपुष्पाणियथाकालोद्भवानिच॥पुष्पांजलिर्मयादत्तोगृहाणपरमेश्व र॥१॥ॐ युज्ञे यज्ञमयजन्तदेवास्तानिधर्माणिप्रथमान्यासन्॥ तेहुनाकम्महि | मान सचन्तयत्रपूर्वसाध्यारसतिदेवाः॥॥ ॐ भू-सि-म- पुष्पांजलिंस.॥यानि | // 30 // For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कानिचपापानिज्ञाताज्ञातकृतानिच॥ तानिसर्वाणिनश्यतिपदक्षिणपदेपदे॥१॥ॐ समास्यासन्परिधयस्त्रिी सप्तसमिधः कृताई॥ देवायद्यज्ञताना अवैभन्मुरुषं पशुम्॥१॥ ॐ भू.सि.म-प्रदक्षिणांस०॥ // अथविशेषाः॥रक्षरक्षगणाध्यक्षर क्षत्रैलोक्यरक्षक॥भक्तानामभयंकर्तावातावावार्णवात्॥१॥द्वैमातुररूपासिंयो पाण्मानुराग्रजप्रभो॥वरदत्वंवरंदेहिवांछितवांछितार्थद॥२॥ अनेनसफलाय॒णफलदोस्तुसदामम॥ ॐ भू-सि-म-विशेषार्घस.॥ // प्रार्थना॥ विघ्नेश्वरायवरदायसुरप्रियायलंबोदरायसकलायजगद्धिताय॥नागाननाय श्रुतियज्ञवि || For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भूषितायगौरीसुतायगणनाथनमोनमस्ते॥१॥ भक्तार्तिनाशनपरायगणेश्वरायसवें भास्कर // 39 // श्वरायाभदायसरेश्वराय॥विद्याधरायविकटायचवामनायभक्तप्रसन्नवरदायन मोनमस्ते॥२॥ नमस्तेब्रह्मरूपाययिष्णुरूपायतेनमः॥नमस्तेरुद्ररूपायकरिरूपा यतेनमः॥३॥विश्वरूपस्वरूपायनमस्तेब्रह्मचारिणे॥भक्तप्रियायदेवायनमस्त भ्यंविनायक ॥४॥लंबोदरनमस्तुभ्यंसततंमोदकप्रिय॥निर्विघ्नंकुरुमेदेवसर्वका र्येषुसर्वदा॥५॥ त्वांविघ्नशत्रुदलनेतिचसुंदरेनिभक्तप्रियेतिसुखदेतिवरप्रदे // 39 // |ति॥ विद्याप्रदेत्यपहरेतिचयेस्तुवंतितेपयोगणेशवरदो भवनित्यमेव॥६॥अना For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यापूजयासिडिबुद्धिसहितमहागणपतिःसांगः सपरिवारः पीयतां॥ // इतिश्रीक पिभट्टविरचिनेसंस्कारभास्करेगणपतिपूजनंसमाप्त॥ ॥अथस्वस्निपुण्याहवाचनं॥ पुण्याहवाचनविधिवक्ष्यामोथयथाविधि॥ प्रयोक्तःकर्मणामादायतेचोदयसिद्धये॥ // नवप्रयोगांतर्गतमितिकेचित्॥ // अबच॥ बव्हल्पवास्वगृह्योक्तं यस्यकर्मप्रकीर्ति न॥ तस्यतापतिशास्त्रार्थनेसर्वकृतं भवेदिति॥पुण्याहवाचनंऋद्धीपूर्तीच॥ // कात्यायनः॥ऋद्धिश्चैवतुसंस्काराविवाहांता प्रकीर्तिताः॥प्रतिष्ठोयापनादीनि पूर्तकर्मयथोदितमिति॥ ॥तच्चकारिकाया॥ स्वस्तिवाचनमवेष्टंगृह्यकर्मादिके / For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahave Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार पुच॥ आचार्येणापिशास्पेस्मिन्मंगलार्थमुदीर्यने॥१॥क्रमेणकलशस्थाप्यपूर्णपा | भास्कर बांतसर्वशः॥ वरुणंतत्रसंपूज्यगंगायावाहनादिकं ॥२॥अर्चिता ब्राह्मणाः सम्यगं धनांबूलदक्षिणाः॥निष्ठेयुर्ब्राह्मणायुग्मावतारोदर्भपाणयः॥३॥निष्ठेवाचयिताने पांदक्षिणस्थउदङ्मुरवः॥ अयनीगनजानुभ्यांनतोमुकुलपद्मवत्॥४॥ अंजलिंशि रस्याधायप्रणमेनिः पुनः पुनः॥ हस्तेकलशमृधृत्यनमेत्रीणिपदानिच॥५॥अथवा चयितुंबाहुंदक्षिणांगसमाश्विनः॥ मनइत्यादिरूपेणएफायमितिचादिशेत्॥६॥मा | // 40 // | नसस्मइतिब्रूयुस्नेसमाहितपूर्वकाः॥प्रसीदेखिनिकर्तारः प्रसन्नाःस्मइनिहिजाः॥ || For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 7 // शांतिरस्थितिविघ्नांता शब्दा: पंचदशेवतु॥ अस्तुवाक्यंद्विजमुरयाच्छ्राय यित्वातथापरैः॥८॥षड्वाक्यानिअस्तितिचडनरैरेकविंशतिः॥पीयतावाक्यपठिनै रुदकस्यनिषेचनं॥९॥ ततःषड्वाक्यपठितैर्बहिरापोनिषेचनं॥ अंतेदशशुभवास्य निकामेतिततोजपः॥१०॥ इक कादयोयहाश्चैकंभगवांस्यभिषेचन॥उदकस्यप कुर्वीतः पुण्याहवाचये नरः॥११॥पुण्याहादिविण्यासमंत्रमध्योर्धनिःस्वनैः॥पु ण्यंकल्याणमृद्धि-अस्वस्तिः श्रीत्यादिपंचकं॥१२॥प्रणवायंत्रिराचष्टेभवपूर्वपयनन्ति // ति॥ प्रत्युक्तविषयेप्रेषस्त्रियारस्वस्तिरित्यतः॥१३॥ वारुणे: पायमानीयैरभिषिच्यसप For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 41 // निकं॥नीराजनंततःकुर्यादंतेकर्मेश्वरार्पणमिति॥११॥ ॥अथपुण्याहवाचने भास्कर आदौअपांपतिकलशपूजनेअवृण: शुद्धकलशोयायः॥ ॥कलशलक्षणंपरिभाषा यामुक्तं॥ ॥अथपुण्याहवाचनप्रयोगः॥ // महीद्योरितिभूमिस्पृष्ट्वा॥ॐम हीद्यौर पृथिवीचन इमज्यज्ञम्मिमिक्षताम्॥पिपृतान्नोप्तरीमभिः॥१॥ ओष धयः समितियवान्सिस्वा॥ ॐ ओषधयः समवदन्तसोमेनसहराज्ञी॥यस्मैरु णोतिब्राह्मणस्तजन्यारयामसि ॥१॥आजिघ्रमितिकलशस्थापयेत्॥ॐ आजि प्रकलशम्मयात्वाविशन्विन्दैव ॥युर्नरूर्जानियतस्य॒सान सहस्रन्धक्ष्वोरुधारा For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पयस्वतीपुनाविशतायि // 1 // वरुणस्योभनमितिजलंपूरयेत्॥ ॐ बरु || णस्योत्तम्भनमसिवरुणस्यस्कंसिर्जनीस्थो वरुणस्य ऋतसदन्न्यसिवरुण स्य ऋतसदनमसिघरुणस्य ऋतसदनमासीद॥१॥त्यांगंधर्वाइतिगंधप्रक्षिपे त्॥ ॐ साङ्गंधर्चा: अरवनं० // 1 // याओषधीरितिसर्वोषधीः॥ याऽ ओषधीः पूर्वी जातादेवेभ्यस्त्रियुगम्पुरा // मनुवाणामह शतन्धामानिसप्तचे॥१॥को डाकांडादितिदूर्वाः॥ ॐ काण्डात्काण्डा रोहन्ती ॥१॥अश्वत्येवेतिपंचपल्लवा न॥ ॐ अश्वत्थेयोनिषद॑नम्पुणेोंचसुतिकृता॥ गोप्नायः इकिलासययस्सन // For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार विथपूरुषम्॥१॥स्योनापृथिवीतिसप्तमृदः॥ ॐ स्योनापृथिविनोमवान्तृक्षरानिव भास्कर // 42 // शनी॥यछान शर्मस॒प्रथाः॥१॥याः फलिनीरितिफलं॥ ॐ या फलिनीर्या) फला०॥१॥परिवाजपतिरितिपंचरत्नानि॥ ॐ परिवाजपतिः कविमिर्हध्यान्त्य कमीत्॥ दधनानिदाशुषै।॥१॥हिरण्यगर्मेनिहिरण्यं॥ ॐहिरण्यगर्भश्सम॥१॥ युवासुवासाइतिरक्तसूत्रेणवेष्टयेत्॥ॐ खुवासुवासाःपरि०॥पूर्णाद/तिपूर्णपात्रम् परिन्यसेत्॥ॐ पूर्णादेवि परांपतसुपूर्णापुनरापत॥ बस्नेवृचिकीणावहाऽ इषम् // 42 // र्य शतकतो॥१॥ तत्वायामीतिवरुणमावाय॥ॐ तत्सोयामिब्रह्मणाचन्दैमा For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नस्तदाशास्नेयजमानो हविर्मिः // अहेडमानो घरुणेहबोध्युरुशममान आयुः / / मोषी // 1 // वरुणसांगंसपरिवारंआवाहयामि॥ ॐ भूर्भुवः स्वः अपांपतिवरुणायन मइतिमंत्रेणषोडशोपचारैः संपूजयेत् // // ततोगंगाद्याचाहनं / सर्वसमुद्राः सरितत्ती निजलदानदाः॥ आयांतुममशात्यर्थदुरितक्षयकारकाः॥१॥ ततः कलशानिमंत्रणं // कलशस्यमुरविष्णुः कंठेरुद्रः समाश्रितः॥मूलेतस्यस्थितो ब्रह्मामध्येमातृगणाःस्म ताः॥१॥कुक्षौतुसागरा:सप्तसप्तहीपावसंधरा॥ऋग्वेदोथयजुर्वेदः सामवेदोह्यथर्व गः॥अंगैश्चसहिताः सर्वेकलशंतुसमाश्रिताः॥३॥ ॥प्रार्थना // देवदानवसं For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वादेमथ्यमानेमहोदधौ॥ उप्तन्नोसितदाकुंभविधृनोविष्णुनास्वयं॥१॥वनोयेसर्वतीर्या- भास्कर // 43 // | निदेवाःसर्वे त्वयिस्थिताः॥त्वयितिष्ठतिभूतानित्यविषाणाःप्रतिष्ठिता:॥२॥ शिव स्वयं त्वमेवासिविष्णुस्त्वंचप्रजापतिआदित्यावसवोरुद्राविश्वेदेवाः सपैतृकाः॥३॥त्वयिति छितिसपियतःकामफलप्रदाः॥त्वलसादादिमयशंकर्तुमीहेजलोद्भव॥४॥ सान्निध्या कुरुमेदेवप्रसन्नोभवसर्वदा॥५॥नमोनमस्तेस्फटिकप्रभायसुश्वेत हारायसुमंगलाय ॥सुपाशहस्तायझपासनायजलाधिनाथायनमोनमस्ते॥१॥पाशपाणेनमस्तुभ्यंपा // 3 // गिनीजीवनायक ॥पुण्याहवाचनंयावत्तावत्वंसन्निधोभव॥१॥ // इतिप्रार्थना For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥अथपुण्याहवाचनं॥अवनीकृतजानुमंडल: कमलमुकुलसदृशमंजलिंशिरस्थाधा यानंतरंदक्षिणेनपाणिनास्वर्णपूर्णकलशंधारयित्वादीर्घानागानद्योगिरयस्त्रीणिविष्णुपदानिच॥ॐ त्रीणिपदाधिचक्रीविष्णुर्गोपाऽ अदाभ्यः॥अनोधर्माणिधारयन्॥१॥तेनायुः प्रमाणेनपुण्यपुण्याहंदीर्घमायुरस्तितिप्तवंतोब्रुवंतुइतियजमानः॥पुण्यंपुण्याहंदीर्घमा सुरथिनिहिजाः॥ ॥एवंसर्वत्रयजमानवचनोत्तरंब्राह्मणाःप्रतिवचनंदधुः॥ब्राह्मणानां हस्तेसुमोक्षिनमस्तु॥शिवाआपःसंतु॥ॐसंतुशिवाआपः॥सौमनस्यमस्तु॥अस्तुसोमन | स्यं॥अक्षतंचारिष्टंचास्तु॥ अस्वक्षतमरिष्टंच॥गंधाःपातुसौमंगल्यंचास्तितिभयंतोब्रुवं For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार |तु॥ॐगंधाःपांनुसोमंगल्यंचास्तु॥एवंसर्वत्र॥अक्षताः पातुआयुष्यमस्ति॥ॐ अक्षताः भास्कर // 44 // |पांतुआयुष्यमस्तु॥पुण्याणिपातुसौश्रियमस्वि०॥ॐपुष्पाणिपातुसोश्रियगस्तु॥तांबूला निपातुऐश्वर्यमस्ति॥ॐताबूलानिपातुऐश्वर्यमस्तु। दक्षिणाःपातुबहुधनमस्वि॥ ॐदक्षि णाःपातुबहुधनमस्तु।पुनरवा पोतुस्वर्चिनमस्ति ॥पुनरबाप्पांतुस्वर्चिनमस्नु।यजमाना चार्यादीन्प्रणम्यश्रीर्यशोविद्यापिनयोचित्तंबहुपुत्रंचायुष्यंचास्तितिभवंतोबुवंतुइनिवदेन्॥ तेचवीर्यशोविद्याविनयोपित्तंबहुपुत्रंचायुष्यंचास्तइत्युक्सादीर्घमायुःशांतिःपुष्टिस्तु // 44 // ष्टिश्चास्थितियजमानमू_भिषिचेयुः॥ ॥यंकृत्यासर्ववेदयज्ञक्रियाकरणकर्मा | For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रंभाः शुष्माः शोभनाः प्रवर्तते तमहमोंकारमादिकत्याकग्यजः सामाशीर्वचनंबहुना | पिम समनुज्ञातावद्भिरनुज्ञान पुण्यपुण्याहवाचयिष्ये॥ॐवाच्यतां॥ ॥ब्राह्मणा नांहस्तेष्वक्षतान्दद्यात्तेचाशिघोदयुः॥ // ॐ भकर्णेभिः शृणुयामदेवासम्पश्ये माक्षभिर्यजत्रा॥स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाट सस्तनूनियसेमहिदेवहितंयदायुः ॥१॥दे वानाम्भद्रासुमृतिजयनान्देवानोट गतिभिनोनिवर्तताम्॥ देवाना सरव्यमुपैसे दिमाच्यन्देवानः आयुः प्रतिरन्तुजीयसै॥२॥ नतद्रक्षाः सिनपिशाचास्तरन्तिदेवा नामोज प्रथमज लेतन्॥योविभर्तिदाक्षायण हिरण्युसदेवेषुरुणुतेदीर्घमायुःसम For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नुष्येषुरुणुतेदीर्घमायुः // 3 // दीर्घायुस्त ओषधेरपनिनायस्मैचत्यारयनाम्यहम्॥ | भास्कर अथोत्त्वन्दीर्घायुम॒त्वाशतवलशाधिरोहतात् ॥१॥द्रविणोदादविणसस्तुरस्पद्रविणोदाःस नरस्थप्रियसत्॥द्रविणोदाबीरवतिमिशन्नोद्रविणोदारासतेदीर्घमायुः॥१॥सचिनापश्चात्ता सवितापुरस्तात्सपिनोत्तरात्तात्सविताधरात्तात् // सवितान: सुव तसर्वतातिसवितानोग सतान्दीर्घमायुः ॥२॥नवोनयोभवतिजायमानोन्हान्केतऋषसामेत्ययं॥ भागन्देवेभ्यो विदधात्ययंप्रचंद्रमास्तिरनेदीर्घमायुः॥१३॥उच्चादिविदक्षिणावन्तो अस्थूर्य अश्व // 45 // ||दाःसहतेसूर्यण॥ हिरण्यदा अमृतबंधजन्तेवासोदा: सोमपतिरन्त आयुः॥ // // For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इत्याशीर्वादः॥ ॥बनजपनियमतपःस्वाध्यायक्रतुदयादमदानविशिष्टानांसर्वेषों / / / ब्राह्मणानांमनःसमाधीयतां // इतियजमानः॥ समाहितमनसः स्मः॥ इतिद्विजाः॥ प्रसीदंतुभवंतः॥ इतियजमानोब्रूयात्॥ प्रसन्नाः स्मइतिद्विजावूयः॥तनोयजमानो ब्रूयात् // ॐ शांतिरस्तु // अस्चितिद्विजाः प्रतिवचनंसर्वत्रदद्युः॥ ॐ पुष्टिरस्तु॥ॐ तुष्टिरस्तु॥ॐ वृद्धिरस्तु॥ ॐ अपिनमस्तु॥ॐ आयुष्यमस्तु॥ॐ आरोग्यमस्तु॥ शिवकर्मास्तु॥ ॐ कर्मसमृद्धिरस्तु॥ॐवेदसमृद्धिरस्तु॥ ॐ शास्त्रसमृद्धिरस्तु॥ॐ धनधान्यसमृद्धिरस्त॥ ॐ पुत्रपौत्रसमृदिरस्तु॥ ॐ इष्टसंपदस्तु॥ॐ अरिपनिर, For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार सनमस्क॥१५॥ ॐयसापेरोग अभंअकल्याणंतरेप्रतिहतमस्त॥ॐ यच्छ्रेयस्तद भास्कर // 46 // स्त॥ॐ उत्तरेकर्मणिनिर्विघ्नमस्त / / ॐ उत्तरोत्तरमहरहरभिवृद्धिरस्तु॥ ॐ उत्तरोत्तराः क्रियाः शुभाः शोशनाः संपर्वतां // अतिथिकरणमुहूर्तनक्षत्रमहलमसंष्यवस्तु। ६॥उद कसेकः॥ॐ तिथिकरणमुहूर्तनक्षत्रयहलग्नाधिदेवता:पीयंती।। ॐ तिथिकरणेसमुहूते, | सनक्षत्रेसमहेसाधिदेवतेपीयनां॥ॐ दुर्गापांचाल्यौपीयेतां // ॐ अमिपुरोगायिश्ये देवा: प्रीयंतां॥ ॐ इंद्रपुरोगामरुद्गणाःप्रीयंतां ॥ॐमाहेश्वरीपुगेगा उमामातरःप्रीय // 46 // ना॥ ॐ अरूंधनीपुरोगाएकपत्न्यः प्रीयंतां॥ ॐ विष्णुपुरोगा: सर्वेदेवाः प्रीयता॥ For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Jo ब्रह्मपुरोगाः सर्ववेदाः प्रीयतां॥ ॐ ब्रह्मचब्राह्मणानप्रीयंनो।। ॐ श्रीसरस्वत्योपीये / / नां॥ ॐ श्रद्धामेधेपीयेतां॥ ॐ भगवतीकात्यायनीप्रीयता॥ॐ भगवतीमाहेश्वरीपीय तो॥ ॐ भगवतीकद्धिकरीपीयतां॥ॐ भगवतीसिद्धिकरीप्रीयतां // ॐ भगवतीपुष्टिक रीप्रीयतां // ॐ भगवतीनुष्टिकरीपीयतां / / ॐ नगरंतीविधविनायकोपीयेतो॥स वाकुलदेवताःप्रीयंता॥ ॐसर्यायामदेवताःप्रीयंतां॥ 21 // ॐ हताश्वब्रह्महिषः॥ॐ ही ताश्परिपंथिनः।। ॐ हताश्चविघ्नकर्तारः शत्रवःपराभयंयांतु।। ॐ शाम्यंतुघोरा|णि॥ ॐ शाम्यं तुपापानि॥ॐ शाम्यंत्वीतयः॥६॥ // ॐ शुभानिवईतां॥ ॐशिया For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार आपःसंतु॥ ॐशियाक्रनयः संतु॥ ॐ शिवाओषधयःसंतु॥ ॐ शिवानद्यःसंतु॥७॥ भास्कर ||शिवागिरयःसंतु॥ॐ शिवा अतिथयःसंतु॥ ॐशिवाअमयःसंतु॥ ॐ शियाआहुत यः संतु॥ ॐ अहोराबेशिवस्यातां॥ // ॐनिकामेनिकामेन पूजन्योधर्षतुफ लवत्योन ओषधयः पञ्च्यन्ताज्योगक्षेमोन कल्पताम् // 1 // ॐ निकामेनिकामे नः पर्जन्योधर्षखितिनिकामेनिकामेवैतवपर्जन्योचर्षतियुबैतेनयज्ञेनयजन्ते फलवत्योन ओषधयः पच्यन्तामितिफलवत्योवैतत्रौषधयः पच्यन्तेयौतेनयज्ञेन // 17 // जन्ते योगक्षेमोनः कल्पतामिनियोगक्षेमोचैत्वकल्पनेचौतेनयज्ञेनयजन्तेत / For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie स्माद्यतेनयज्ञेनयजन्तेक्लृप्तः प्रजानान्योगक्षेमोभवति॥१॥ ॥ॐशुक्रांगारकबु धबृहस्पतिशनैश्वरराहुकेतुसोमसहिता आदित्यपुरोगाःसर्वेयहाःप्रीयंतां॥ॐ भगवान्नारायणःप्रीयतां // ॐ भगवान्पर्जन्यःप्रीयतां // ॐ भगवान्स्वामीम हासेनःप्रीयतां॥ ॥ॐ पुण्याहकालान्याचयिष्ये॥इतियजमानः। ॐ वाच्यता। इनिप्रतिवचनं॥ बाह्यपुण्यमहयञ्चसृष्टयुसादनकारकं ॥वेदवृक्षोद्भवंनित्यंतत्पुण्याहंब्रुवंतुनः॥१॥ मोब्राह्मणा: मयंसकुटुंबिनेमहाजनान्नमस्कुर्वाणाय| आशीर्वचनमपेक्षमाणायमयाक्रियमाणस्यसयहमरवरजोदर्शनशांतिपूर्वक गर्मा|| For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 4 // धानारव्यस्यकर्मणः पुण्याहं भवंतीब्रुवंतु॥ॐ पुण्याहं ॥एवंवचनंप्रतिवचनंच || भास्कर विःपठित्वा॥ // अथवाममपुत्रस्ययाकन्यायाअअमुकसंस्कारारव्यस्थकर्मणः॥ अथवापुत्रस्यवाकन्यायाश्चश्वः करिष्यमाणविवाहांगभूतस्यअद्यदैवतप्रतिष्ठान हशात्यारण्यस्यकर्मणः॥एवंयथोक्तकर्मण्यूहः॥ // ॐ पुनंतुमादेवनार पुनन्तु मनसाधियः // पुनन्तुधिश्वाभूतानिजातवेदः पुनीहिमा॥१॥ ॐ सय कामये तमहाप्नुयामित्युदगयन्ऽ आपूर्वमाणपक्षेपुण्याहे हादशाहमुपसद्वतीभूत्वो, || // 18 // बरेकर्ड सेचमसेवासौषधम्फलानीतिसम्मुत्यपरिसमुह्मपरिलिप्यामिमुप For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir समाधायावृताज्य संस्कृत्यपुर्ट सानक्षत्रेणमुन्थ सन्नीयजुहोति॥१॥पृथिव्यामा धृत्तायांतुयत्कल्याणपुरारुतं॥ ऋषिभिःसिद्धगंधर्वैस्नकल्याणंबुवंतुनः॥१॥ भोब्राह्मा णाः मया० कर्मणः कल्याणभवंतोब्रुवंतु॥ॐ कल्याणं॥३॥ ॐ यथेमाँबाचडूल्या णीमावदानिजनैश्यः ॥ब्रह्मराजन्याच्या शूद्रायचार्यायचस्वायचारणायच॥पि योदेवानांदक्षिणायैदातुरिहVयासमयम्मेकाम: समृध्यतामुपमादोनमतु॥१॥ थाध्यो प्रनिगरात्तरिमेयजमाना महमेभ्योयजमानेभ्योभूदिनिकल्याणमेवेन मानुष्यैवाचोचदति॥१॥सागरस्ययथावृद्धिर्महालक्ष्यादिभिः कृता॥संपूर्णासपमा For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वाचतांचऋविंबुवंतुनः॥१॥ मोबाह्मणाःमयाक्रिय कर्मणःकसिवन्तोबुवंतु॥ॐ भास्कर // 49 // मध्यनां॥३॥ॐ सत्रस्य॒ऽकरिस्यगन्मज्योतिरमृता अभूम।दिवम्मृथिव्या अध्या रहामाबिदामदेवान्त्स्वोति // 1 // ॐत उत्तरस्यहविर्धानस्यजघन्यायाङ्कबाद सामाभिगायन्तिसत्रुस्य ऋद्धिरितिराद्धिमेवैनुदम्युत्तिष्टंत्युत्तरवेदेर्वोत्तरायो श्रो णावितरंतुकतुतरम्॥१॥स्वस्तिस्तुयाविनाशारख्यापुण्यकल्याणवृद्धिदा॥विनायक पियानित्यंतांचस्वस्सिंबुवंतुनः॥१॥ मोबाह्म कर्मणेस्वस्तिमः // ॐ स्वस्ति॥३॥ || || // 49 // ॐ स्वस्तिन इन्द्रोवृद्धश्रवाः स्वस्तिन पूषाविश्वेदाः॥स्वस्तिनस्तायो अरिष्ट / For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie नेमिः स्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु॥१॥ गातुन्यज्ञायगातुन्यज्ञपनय इतिगातुः / / होषयज्ञाये छतिगातुज्यनपतयेयोयजुस्यस स्थान्दैवीस्वस्तुिरस्तुनः स्वस्निानु व्यायः इतिस्वस्तिनोदेववास्तुस्वस्तिर्मानुष्यत्रेत्येवैतदाहो जिगातुक्षेषजमित्यू नोयन्यज्ञोदेवलोकञ्चजत्त्येिवैतदाहशन्नोऽ अस्तुदिपदेशञ्चतुष्पद इत्ये ताचा इदर्द सर्वज्यावद्विाञ्चैव चतुष्पाञ्चतस्मा एवैन्यज्ञस्यसः स्यांगत्वा शंकरोतितस्मादाहन्नोऽअस्तुद्विपदेशचतुष्पदे॥१॥समुद्रमथनाज्जाताजगदानं |दकारिका॥ हरिप्रियाचमांगल्यातांश्रियंचब्रुवन्तुनः॥१॥ मोबाह्मणाःमया०कर्म For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार णः श्रीरविनिमयन्तीबुवंतु॥३॥ॐ श्रीश्चंतेलक्ष्मीश्चपल्यावहोरात्रेपार्श्वनक्षत्राणिरू भास्कर पमश्विनोन्यात्तम्॥ इष्णन्निघाणामुम्मऽइषाणसबलोक म्म इषाण ॥१॥तेनोहतुन ईदक्षः पार्वतस्तऽइमे॒ष्येतर्हिदाक्षायाराज्यमिवैवाप्ताराज्यमिहवैवानोनियउएवं |विहानेनेनयज्ञेनयुजन्नेतस्माद्य एतेनयजेतसवा एकैक एवानूचिनाहंपरोडाशोमयत्येने नोहास्यासपलानुपबाधाश्रीभवति॥५॥ // अस्मिन्पुण्याहवाचनेन्यूनातिरिक्तो | योविधिः सउपविष्टब्राह्मणानांवचनान्श्रीमहागणपतिप्रसादाचसर्व परिपूरित॥ // 50 // ||ॐ अस्तुपरिपूर्णः॥ // // अथाभिषेकः॥ ॥अभिषेकेपत्नीवामतः॥ ॥एक For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्मिन्कलशेवरुणोदकंग्रहीत्वाऽविधुराश्यत्वारोबाह्मणादूर्वाम्मपल्लवैर्यजमानमभिषिचेयुः // ॥नत्रमंत्राः॥ॐ पयः पृथिव्यां ॥१॥पंचनयः // 2 // धरुणस्योत्तं // 3 // पुरंतुमा | // 4 // देवस्यत्वासवितु प्रसवेश्चिौबाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्याम्॥सरस्वत्यैवाचोय सुर्यत्रियैदधामिबृहस्पतेष्वासाम्राज्येनाभिषिञ्चाम्यसौ॥६॥ देवस्यत्वा ॥सर स्वत्यैवाचोयन्तुर्यन्त्रेणाने साम्राज्येनाभिषि चामि॥७॥ देवस्यत्वा०॥ अ |श्विनोपज्येनतेजसेब्रह्मवर्चुसायाभिषिञ्चामिसरस्वत्यैषज्येनचीर्खायान्नाचा // याभिषिञ्चामीन्द्रस्येन्द्रियेणबलायश्रियैवसेभिषिञ्चामि॥८॥विश्वानिदेव | For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार सचिनर्दुरितानिपरांसुय॥यन्तन्न आसुव॥९॥धाच्छमिरिन्द्रोंब्रह्मादेवोबृहस्प भास्कर // 51 // नि ॥सचेतसोधिश्वेदेवायज्ञम्प्रावन्तुनः शुभे॥१०॥ त्वज्यविष्टदाशुषो नपाहि णुधीगिरः ॥रक्षातोकमुतत्मना॥११॥ अन्नपनेन्नस्यनोधेवनमीवस्य शुष्मिणः // प्रदातारन्तारिष ऊर्श्व-नोधेहिद्विपदेचतुष्पदे॥१२॥ ॐ पालाशेमवति" तेनबाह्मणोनिषिचतिह्मवैपलाशोब्रह्मणैचैनमेतदभिषिंचति॥१॥ औदुंबरं भवतिगते नवोभिषिचत्यन्नंवा ऊर्गदंबर: ऊस्वाव?पुरुषस्यस्वंमुवतिनैवतावदवाना|| / यतितेनोखेतस्मादौदुंबरेणस्वोभिषिचति ॥२॥नैथ्य योधपादेमवति। तेनमित्रो For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir राजन्योभिषिंचतिपदिन्यग्रोधः प्रतिष्ठितोमित्रेणवैराजन्यःप्रतिष्ठितस्तस्मान्नैय्य / योधपादेनमित्रोराजन्योभिषिंचनि॥३॥ आश्वत्थंभवति। तेनवैश्योतिषिंचतिसयदेवा दोश्वत्थेतिष्ठत इन्द्रोमरुतः उपामंत्रयतेतस्मादाश्वत्येनवैश्योभिषिंचति॥४॥यद्देव कल्पान्जुहोति। प्राणावैकल्पाऽअमुनमुपाणा अमृतेनैवैनमेतदप्लिपिंचति॥ 5 // सर्वेषांवा एषवेदाना रसोयत्सामसर्वेषामेवैनमेतद्वेदाना 8 रसेनानिषिंचति // 6 // ॐ यौः शांतिरन्त // 1 // यतौयत समीहसे // 2 // अमृताभिषेकोस्तु॥ // शांति: शांतिः शांतिः॥सशांतिर्भवतु॥ ॥ततःपुत्रवतीभिर्वृद्धसवासिनी For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भिजिनकार्यं॥ ॐ अनाधृष्टापुरस्ताद राधिपत्य आयुर्मेदाः पुत्रयंतीदक्षिणतऽन्द्र भास्कर स्थाधिपत्येपजाम्मैदा: सुरवापश्चाद्देवस्यसवितुराधिपत्येचक्षुर्मदाऽआधुनिरुत्तर तोधातुराधिपत्येरायस्पोषम्मेदाः॥विधृतिरुपरिटादृहस्पतेराधिपत्य ओजोमेदाथि वायोमानाष्ट्राभ्यस्पाहिमोरयासि॥१॥ इतिमंत्रेण॥ // अनेनपुण्याहवाचनेन श्रीप्रजापतिः प्रीयता॥ ॥अथमातृकापूजनं॥ ॥तत्रायंक्रमः॥अविनोमंडप श्रेयमावृणापूजनंसझन्॥पैश्वदेवंचसोहरानांदीश्राद्धमतः परं॥१॥ ॥अविघ्नपू // 2 // जनासूर्यवैश्वदेवंविधाय॥ ॥ततोगोधूमादिधान्यपूरितेहरिद्रादिरंजिनेमृन्मयेअ / / For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विघ्नारव्यकलोमोदादिषविनायकमातृणांप्रतिमाकुंकुमेनलिखित्वावाहयेत्।। तद्यथा॥ मोदश्चैवप्रमोदश्चसुमुखोदुर्मुखस्तथा॥अविनोयिनकर्ताचषडेतेविघ्ननायकाः॥१॥ * मोदायनमःमोदंआवाहयामि॥१॥ ॐ प्रमोदाय प्रमोदं ॥२॥ॐ सुमुरयाय. सुमुरचं०॥३॥ॐ दुर्मुखाय दुर्मुरवं // 4 // ॐ अविनाय. अविघ्नं०॥५॥ॐ विघ्नकर्वे विघ्नकर्तारं ॥६॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्य षोडशोपचारे: संपूजयेत् ॥ॐ पूर्भुवः स्वः मोदादिषड्डिनायकाः सुप्रतिष्ठावरदाभवंतु॥ॐ मोदादिषविनायकेयोनमइनिनाममा वेणआवाहनादिपुष्पांजलिपर्यंतपूजनकार्य। अनयापूजयामोदादिषड्विनायकाः For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार पीयंता॥ ॥ततःस्तंभरोपणादिकटावरणद्वारफलकांतसंपादितमंडपे मंडपमातृकाः भास्कर स्थापयेदित्येके॥ ॥तताचार्यहरूलेसुमोक्षितादिकंकार्य॥ अत्राः पातुसुप्रोक्षितमस्ति तिभवन्तोब्रुवंतु॥ॐ अवाः पातुसुमोक्षितमस्त॥गंधाः पातुसोमंगल्यंचास्खिनित // ॐ |गंधाः पातुसोमंगल्यंचास्त॥ अक्षताः पातुआयुष्यमखितिभ०॥ॐ अक्षताःपांतु आयुष्यमस्त॥पुष्पाणिपोतुसौश्रियमस्तितिक्ष०॥ ॐ पुष्पाणिपातुसौश्रियमस्त॥ तां बूलानिपातुऐश्वर्यमस्तितिभ॥ तांबूलानिपातुऐश्वर्यमस्त ॥दक्षिणा पोतुबहुधन || // 53 // मस्तितिभ०॥ ॐ दक्षिणाः पातुबहुधनमस्त॥ अपूपाःपातुबह चाखितिम // ॐ For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie अपूपाः पातुधव्हन्नंचास्त॥शारयादूर्वा:पांनुवृद्धिरस्तितिभ०॥ॐ शारयादूर्वा:पांतु शारयापल्लवानांवृद्धिशास्त॥ ॥तन आचार्येणदूर्वाशम्याम्पादिप्रशस्तवृक्षपत्राणार | क्तसूत्रेणपंचधावेष्टनकार्य॥ आसामंडपमातृसंज्ञाताश्चमंडपमादमंडपेवावंशपात्रेस्थापयित्वा॥धसोः पवित्रमिनिमंत्रणयजमानपल्याशारयासतैलारोपणकार्य॥ ॐ |चसौः पवित्रमसिगृतधार बसौ पवित्रमसिसहस्रधारम्॥ देवस्यासवितापुनातुबसोः पवित्रैणशतर्धारणसुप्या कामधुक्षः॥१॥अहिरिवभोगैरितिशारवासहरिद्राकुंकु मादिसुगंधिद्रव्येणोहर्ननं // ॐ अहिरिवभोगैः ॥१॥निकामेनिकामेतिउष्णोद For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार केनशारचास्नपन॥ ॐनिकामेनिकामेनः ॥१॥दधिकाणेतिशारयासदध्यसनावंदनं। भास्कर ॐ दधिक्राणो अ०॥१॥याओषधीरिनियजमानहस्ते शारखायहणं॥ॐथाओष धीह०|१mनतोयजमानपल्याहस्तेशस्त्रगर्मपंचमीशारयोगहीत्वाकांडाकोडादिनि कंडनकार्य॥ॐकांडोत्काडा रोहती॥१॥ तन आमेयादिचतुर्युमंडपकोणस्तंभेषुक्रमे णचतस्रोमध्येएकाएवं स्थिरोभवेतिस्थिरीकरणे॥अथवावंशपात्रमध्येचतुष्कोणे पुचतस्रोमध्येएकाएवंस्थिरीकरणसंप्रदायः॥ अस्थिरोमवधीनंग आयुर्मवचाज्या // 54 // छन् ॥प्युभयसुरयदस्त्वममे पुरीषवाहणः // 1 // तत्रायंक्रमः॥ ॥नंदिनीनलिनी // For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie मैत्राउमाचपकवाईनी॥ आमेयादिक्रमेणेवशारवाः स्तं प्रतिष्ठिताः॥१॥ ॐ नंदि | न्यैनमःनंदिनींआवा०॥७॥ ॐ नलिन्यैन नलिनीआ०॥८॥ ॐ मैत्रायः मेवांआ, // 9 // ॐ उमाये. उमाआ० ॥१०॥पशुवर्धिन्ये पशुवर्धिनीआ०॥११॥मनोजूनिरि तिप्रतिष्ठाप्यसर्वासांतंत्रेणषोडशोपचारैः पूजनं॥ॐ मूवः स्वः नंदिन्यादिमंडप मानृश्योनम: आवाहनादिषोडशोपचारैः पूजयेत्॥अनयापूजयानंदिन्यादिमंड पमानरःपीयंतां॥ // ततोगीर्यादिमातरोवंशपापीतपटंप्रसार्यतदुपरिकुंकुमा ||दिनालिखित्वावाक्षतपुंजेषुपूगीफलेषुनिवेश्याः॥ // तत्रायंक्रमः॥गोरीपद्माश For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार, चीमेधासावित्रीविजयाजया॥ देवसेनास्वधास्वाहामानरोलोकमातरः॥१॥ हृष्टिः पु-भास्कर ष्टिस्नथातुष्टिरात्मन: कुल देवता॥गणेशेनाधिका तावृद्धीपूज्याश्चतुर्दश॥१॥अत्र चतुर्दशपदसमाहारान्मातरोलोकमातरइतिसर्वासाविशेषणं॥ ॐगणेशायन मः गणेशंआवाहयामि॥ ॐ गौर्यैनमःगौरी आ०॥१२॥ॐ पद्मायैनः पद्मा. // 12 // ॐ शयेन शचीआ॥१४॥ॐ मेधायै मेधांआ०॥१५॥ ॐ सावित्र्यैः सावित्रीं ॥१६॥विजयायै विजयां // 17 // जयाये जयांआ.॥१८॥ देवसे // 55 // नाये देवसेनां // 19 // ॐ स्वधायैन स्वधाः॥ २०॥स्वाहायै स्वाहा // 21 // // // For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir हृष्ट्ये हृष्टिं // 22 // पुष्ट्यै पुष्टिं // 23 // तुष्टयै तुष्टिं // 24 // कुलदेवतायैः / कुलदेवतां // 25 // // इत्यावाय॥ // अथजलमातरः // मत्सीकूर्मीचया राहीमांडुकीमकरीतथा॥याहकीकौंचकीचैवसप्तैनाजलमातरः॥१॥कांस्येवातान पात्रेवाप्रभूतजलपूरणं॥ तत्रमत्स्यादीराबाह्यपूजयेज्जलमातृकाः॥२॥ॐ मत्स्येनमः मत्सीआवाहयामि॥२६॥ ॐ कूम्यै कूर्मी // 27 // ॐ वारायै वाराहीं॥२८॥मां डुक्यै मांडूकीं // 29 // ॐमकर्ये. मकरी० // 30 // याहक्ये ग्राहकीं // 31 // ॐ क्रौंचक्ये क्रौंचकीं // 32 // इत्याबाह्य // ॥अथस्थलमातरः॥ ॥बा For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार भास्कर // 56 // सीमाहेश्वरीचैवकोमारीवैष्णवीनथा॥वाराहीचतथेंद्राणीचामुंडासप्तमातरः॥१॥ ॐ बा| ह्येन ब्राह्मीं // 23 // 7% माहेश्वर्येन माहेश्वरीं // 34 // ॐ कोमार्थेन कोमारी // 35 ॥वैष्णव्यैन वैष्णवीं // 36 // ॐ पाराद्यै वाराही० // 37 // ॐ इंद्राण्ये इंद्राणी // 38 // ॐ चामुंडाये. चामुंडा // 39 // इत्यावाह्य // एताः गोर्यादिवच्छूपै॥ ॥अथ द्वारमातरः॥ जयंतीमंगलाचैवपिंगलादक्षिणेगृहात् // आनंदवर्धिनीवामेमहाका लीचनिर्गमे॥१॥गृहस्यदक्षिणेभागेतिस्रोले रव्यास्तुमातरः॥वामभागेतथाडेचज | // 56 // |यंत्यादिक्रमेणतु॥२॥ ॐ जयंत्यैन जयंती // 40 // मंगलायै मंगलो०॥४१॥ For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पिंगलाये पिंगला // 42 // इतिहारदक्षिणे॥ // ॐ आनंदवर्धिन्ये आनंदवधि नौं०॥ 43 // ॐ महाकाल्यै महाकाली // 44 // इतिवामे // इत्याबाह्यसंपूज्य॥ // ततोगोर्यादिवत्शूर्पगृहमातरःस्थाप्याः॥ ॥कीर्तिर्लक्ष्मीधृतिर्मेधापुष्टिः श्रद्धाकि यामतिः॥बुद्धिर्लज्जावपुःशांतिस्तुष्टिः कात्तिस्तुमातरः॥१॥ ॐ कीर्येन ॥कीर्ति। // 45 // ॐलक्ष्म्ये लक्ष्मी // 46 // ॐ धृत्यैन धृतिः // 47 // ॐ मेधाये मेधां० // 48 // ॐ पुष्टयैन पुष्टिं // 49 // ॐ श्रद्धायै श्रद्धां ॥५०॥क्रियायै क्रिया // 51 // ॐ मत्यैन मति 0 // 52 // ॐ बुह्येन बुद्धि // 53 // ॐ लज्जावपुषेन For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir // 54 // संस्कार, लज्जावपुष // 54 // ॐ शांत्यैन शांति // 55 // ॐ तुष्टयेन तुष्टिं० ॥५६॥ॐ भास्कर कात्यैन काति० // 57 // इत्यावाह्य॥ ॥अथवृतमातरः॥एता: कुड्येशूर्पवा कुं कुमाक्तेन घृतेन दक्षिणोत्तराः पूर्वाभिमुखा लेख्याः॥ श्रीलक्ष्मीधृतिर्मधापुष्टिः श्र दासरस्वती॥ मांगल्येषुपपूज्यतेसप्तैताघृतमातरः॥१॥ॐ श्रियेनमः श्रियं०॥५८॥ ॐ लक्ष्म्यैन लक्ष्मी०॥५९॥ ॐ धृसैन धृतिआ०॥६०॥ मेधायैन मेधांआबा६१॥ ॐ पुष्टयेन पुष्टिंआ०॥६२॥ ॐश्रद्धायैन श्रद्धा आ०॥६३॥ ॐ सरस्वत्यैनमः // 57 // | सरस्वतीआवाहयामि॥६४॥ इत्यावाद्य॥ ॥एवंषड्विनायकादिघृतमातृकाप्चतुःष / / For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ष्टिमादृणास्थापन। मनोजूनिरिनिमंत्रणप्रतिष्ठाप्यसमरव्येदेव्याधियाइनिमंत्रण सर्वाःषोडशोपचारैःसंपूजयेत् // अंसमव्येदेव्याधियासन्दक्षिणयोरुचक्षसा॥मा मड आयुः प्रमौषीर्मोऽ अहन्तवचीरंविदेयतर्वदेविसन्दशी॥१॥ // ततोय जमानःस्थापितमातृकं शूर्पस्वयंग्रहीत्साफ्ल्याचाविधकलशंग्राहयिखापत्ययतः सन्मंडपतोगृहमध्येदेवस्यायेतत्सर्वंस्थापयेत्॥ तहामपा'दीपनिदध्यात् // ततःकु ड्येआवाहितधृतमातॄणामुपरिनागवल्लीदलेनगुडयुक्तेन केवलेनवाघृतेनाभितो धारांघसो पवित्रमितिमंत्रणपातयेत्॥ साचप्रत्यगादिःप्रासंस्थादक्षिणादिरुदम्स For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार स्थावा ॐ बसों:पवित्रम् // // तद्यथा॥ कुड्यलगावसोर्धाराः सप्तधाराघृतेनतु॥ भास्कर // 5 // कारयेत्पंचधारावानातिन्यूना:कदाचन॥१॥अथायुष्यमंत्रजपः॥ ॐआयुष्यवर्च स्ट रायस्पोषमोदिदम्॥ इर्द हिरण्यम्वर्चस्वचैत्रायाविशतादुमाम्॥१॥नतद्रक्षान |॥२॥यदाब_०॥३॥ केचिन्भद्रंकर्णेत्यादिधिरोहतादित्यंतमृचतुष्टयंपठंति॥ // इत्यायुष्यमंत्रजपः॥ ॥अवमंडपपूजनंशिष्टाचारतएव॥मंडपस्तुविवाहेचूडाकर उपनयनेकेशांतेसीमंतोन्नयनेचैवकार्यइत्युक्तं॥ ॥यत्रमंडपोनास्तितत्राविघ्नमं // 5 // डपजलस्थलद्वारमातृकादीनांचानावः॥ तत्रगौर्यादिचतुर्दशमादृणास्थापनमुक्तं॥ | For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // इतिसंस्कार भास्करेमातृकापूजनंसमाप्तं॥ // अथनांदीश्राद्धं // तबकालः॥मा तश्राइंतुपूर्वाण्हेमध्यान्हेपेतृकंतथा॥ततोमातामहानांचवृद्धोश्राङ्वयंस्मृतमिति हे मायादिनिबंधेउक्तं॥ तथा॥ अलाभेभिन्नकालानांनांदीश्राइवयंबुधः॥पूर्वद्यु प्रकुर्वीतपूर्वाण्हेमापूर्वकमितिवृद्धमनुवचनं॥ तच्चकात्यायनेनपृथड्-मातृपार्य गोहपूर्वकनवदैवतनांदीश्राद्धकरणनिषिद्धं॥ यथा॥ आयुष्याणिचात्यर्थंजप्त्वा तबसमाहितः॥षड्मयःपितृश्यस्तदनु श्राहदानमुपक्रमेत्॥१॥ // सूत्रेविशेषोप देशाभावः॥ तवतुनांदीमुखाःपिनरः पितामहाःप्रपितामहाः सपत्नीकाः मातामहपा For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार मातामह वृद्धपमातामहाः सपत्नीका इनिषड्यःपितृभ्यः पार्वणयंस्पष्टं // तच्चसांक || भास्कर // 59 // पिकविधिना॥सांकल्पिकेचसमंत्रकाबाहना_ग्नौकरणपिंडदानविकिराक्षय्यस्वधानाच नप्रनेत्येतत्सप्तकंवयं।सांकल्पे॥शुभायप्रथमातेनवृद्धोसंकल्पमाचरेत्॥ नषष्ट्यायदि| वाकुर्यान्महादोषोभिजायते॥ भनस्मदृद्धिशब्दानामरूपाणामगोविणां॥ अनाम्माम तिलैश्चैवनांदीश्राद्धंचसयत इतिसंग्रहे॥कृते नांदीमुरयेमध्येनकुर्यादितयंपुनः॥ राजाभिषेके कुतिनथैवपुत्रजन्मनीति॥ कृतेफ्युदयश्राद्धेनन्मातृकोत्थापनंविना॥ // 9 // नद्वितीयंनांदीमुखप्रकुर्यात्सुत्रजन्मनि॥ तथैवाफ्युदयंकार्यराज्ञपट्टाभिषेचने॥ अन्य। For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir थानुरुतेमोहादपमृत्युकरंपरं।पुत्रजन्मनिराजाभिषेके चहितीयनांदीबाईकुर्यात्॥ न्यथान॥मंडपोद्दासनापूर्वनांदीश्रादेकतेपुनः॥येकुर्वतिनरामोहादपमृत्युबजनिते॥ इतिशास्त्रार्थप्रदीपे॥एतनिषेधस्त्रिपुरुषसपिंडपर्यंतमितिपुरुषार्थचिंतामणी॥ // वजन्मनिमित्तेतुतत्कालेनिशिवादिवा॥ नोव्रतोपचासीवादिश्राईतुकारयेत्॥इति रेणुकारिकायां॥ ॥नांदीश्राद्धविपार्वणमित्याशयेनामान्नादिपार्वणप्रयोगः शारवांतरत्वान्नात्रलिखितः॥ ॥अथवृद्धिश्राइकर्तुर्जीवसितृकवेनिर्णयः॥ // जीवेत्तुयदिवर्गायवर्गतुपरित्यजेदितिन्यायेनजीवसितकः स्थापत्यसंस्कारेषु || For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मातृमातामहपार्वणयुतंनांदीश्रादकुर्यात्॥ मातरिजीवत्यांमातामहपार्वणमेकमेवामा भास्कर नामहेजीयतिमातृपार्वणमेकमेव॥ केवलमातपार्वणेविश्वेदेवानकार्याः॥वर्गत्रयायेषु मातृपितृमातामहेषुजीवत्सुनांदीश्राद्धलोपएपसुतसंस्कारेपूचिनः॥द्वितीयपियाहाधानपु बेष्टिसोम यागादिषुस्वसंस्कारकर्मसयेत्यएवपितादयात्तेश्योदयास्वयंसुतः॥तथाच मृतमातृमानामहकोपिजीवसितृकःस्वसंस्कारपितुर्मातृपितामहीप्रपितामह्यः।।पितुः पिदृपितामहप्रपितामहाः॥पितुर्मानामहप्रमातामहवृद्धभमातामहाः सपत्नीका: नांदीमुखाः // 60 // | इत्येवंपार्वणत्रयमुद्दिश्याईकुर्यात्॥ नतुस्वमातृमातामहपाठणोद्देशः॥पिनरिपि For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsun Gyanmandie नामहेचजीवतिस्वसंस्कारपितामहस्यमातृपितामहीप्रपितामह्यइत्यायुद्देशः॥एवंअपि तामहेपियोज्यं॥पितुर्मात्रादिजीवनेतत्सार्वणलोपएच॥ तथाचयेयएयपितादद्यादितिप क्षस्यवर्गाद्यजीवनेतसावणलोपइतिहारलोपपक्षस्यचस्वसंस्कारखापत्यसंस्कारभेदेनव्यवस्था. सिद्धोतितेतिज्ञेये॥ // केचित्तुपक्षदयस्यैछिकोविकल्पोनतुव्यवस्थितइत्याहुः॥एवंमृतपि तृकस्य जीवन्मात्मातामहस्यपितुःपार्वणेनैवनांदीश्राइसिद्धि या॥समावर्तनस्यमाण यककर्तृकत्लेपिनदंगभूतनांदीश्राद्धेपितुस्नदानावेज्येष्ठनात्रादेधिकारइनिकेचित्॥ न बपितापुत्र समावर्तनेस्वपितृश्योनांदीश्राईकुर्यात्॥ पिताजीवसितृकश्चन्सनसंस्का For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // 1 // रत्वात्द्वारलोपपक्षोयुक्तइतिमानि ॥माणवकपितुः प्रवासादिनाभसन्निधानेश्वात्रादि भास्कर मर्माणवकस्यपितुर्मानृपितामहीप्रपितामह्यइत्यायुच्चार्यश्राईकुर्यात्॥मृतपितृकमाणव कसमावर्ननेपितृव्याचाबादिरस्यमाणयकस्यमातृपितामहीप्रपितामह्यइत्याधुच्चारयेत्।। यात्रा देरभावस्वयमेव स्वपितृश्योदयात्॥ एवंजीवपितृकोपिपितुरसन्निधाने यात्रादेर भावेचपितुः पितृप्त्यः स्वयमेवनांदीमुरवकुर्यात्॥ उपनयनेनकर्माधिकारस्यजातत्तात॥एवंविवाहेपिद्रष्टव्यं॥मृतपितृफस्यचौलोपनयनादिकंपितृव्यमातुलादिःकुर्वन्अस्यसंस्का // 1 // यस्यपिवृपितामहमपित्तामहेत्यायुच्चार्यश्राईकुर्यात् // जीवनः पितुरसन्निधानेनकुर्वन्मा, For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तुलादिरस्यसंस्कार्यस्यपितुर्जनकादीनुद्दिश्यैवकुर्यान्नतुसंस्कार्यस्यमृनानपिमाबादीनितिसंक्षेपः॥ // ॥अथसाकल्पिकविधिनानांदीश्रादप्रयोगः॥नांदीम खाः सत्यवस संज्ञकाः विश्वेदेवाः ॐ पूर्भुवः स्वः इदंवः पायंपादावनेजनंपादप्रक्षाल नंवृद्धिः॥ ॥गोत्रापिपितामहप्रपितामहाः सपत्नीका: नांदीमुखाः ॐ भूर्स वः स्वः इदंवः पाद्यपादावनेजनंपादप्रक्षालनंवृद्धिः॥ ॥द्वितीयगोचा:मातामह प्रमातामहवृद्धप्रमातामहाः सपत्नीकाः नांदीमुखाः ॐ भूर्भवःस्वः इदंकःपायं०॥ || // अयपूर्वोच्चारित. शांतिपूर्वक गर्भाधानांगत्वेनसांकल्पिकेनविधिनाबाह्मणयुग्म For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भोजनपर्याप्ताननिष्प्रयीमूतयथाशक्तिहिरण्येन नांदीश्राइंकरिष्ये॥ ॥आस, मास्कर // 62 // निदानं॥ // सत्यवस संज्ञकानांविश्वेषांदेवानांनांदीमुरयानां ॐ भूर्भु इदमास नं॥सरवासनं॥नांदीश्राद्धक्षणौकियेतां // ॐ तथा॥ प्रामुयतां भवंती॥ प्रानुवावः // ॥गोत्राणांपितृपितामहप्रपितामहानांसपत्नीकानांनांदीमुरवानां ॐ भू. इदा मास.॥ ॥द्वितीयगोत्राणांमातामहप्रमातामहवृद्धपमानामहानांसपलीकानांनांदी) सुखाना * मूर्सवः इदमास.॥ // तनोगंधादिदानं॥ सत्यवससंज्ञकेश्योविश्वे- | // 6 // भ्योदेवेन्योनांदीमुरपेभ्यः इदंगंधायर्चनंस्वाहासंपयनांवृद्धिः॥ ॥गोत्रेभ्यःपिन / For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पितामहप्रपितामहेश्यः सपत्नीकेन्योनांदीमुरवेश्यः इदंगंधा०॥ // द्वितीयगोत्रे भ्योमातामहप्रमातामहवृद्धप्रमातामहेश्यःसपलीकेभ्योनोंदीमुरवेश्यः इदंगंधाः॥ // भोजननिक्रय द्रव्यदानं॥ ॥सत्यवससंज्ञकेयोविश्वेभ्योदेवेभ्योनांदीमुखे भ्य:ब्राह्मणयुग्मभोजनपर्याप्तमन्नतन्निक्रयीभूतंकिंचिद्धिरण्यंदत्तंअमृतरू पेणस्वाहासंपद्यतांवृद्धिः॥ गोवेश्यः पितृपितामहप्रपितामहेश्यः सपत्नीकेन्यो नांदीमुरवेश्यः ब्राह्मणयु०॥ ॥द्वितीयगोत्रेभ्योमातामहप्रमातामहवृद्धप्रमा तामहेश्यः सपत्नीकेश्योनांदीमुरवेभ्यः ब्राह्मः॥ ॥सक्षीरमुदकदानं॥ ॥नांदी For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मुरयाः सत्यवससंज्ञका:विश्वेदेवाः प्रीयंतां॥ // गोत्राःपितृपितामहप्रपितामहाः सप- भास्कर लीका: नांदीमुखाःप्रीयंता॥द्वितीयगोत्राःमातामहप्रमानामहवृद्धप्रमातामहाः सपत्नी काः नांदीमुरयाः प्रीयंतां॥ ॥आशिषाग्रहणं॥गोनोवईतां॥वर्द्धतीयोगोबादातारोनो भिवर्धती॥अभिवर्धतांवोदातारः॥वेदाश्चनोभिवर्धता।वर्धतांवोवेदाः॥संततिभिवईती। वर्धतावःसंततिः॥श्रद्वाचनोमाव्यगमत् ॥माव्यगमहःश्रद्धा॥ बहुदेयंचनोस्त॥ स्तुवोबहुदेयं॥अन्नंचनोबहुभवेत्॥ भवतुयोबव्हन्न। अतिथींश्चलमामहै।लभतां // 3 // योतिथयः॥याचितारश्चन:संतु॥संतुवोयाचितारः॥एताआशिषःसत्या संतु।। For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संखेनाः सत्याआशिषः॥ // दक्षिणादानं॥ सत्यवसुसंज्ञकेफ्योविश्वयोदेवेभ्यो नांदीमुरवेयः कृतस्यनांदीश्राद्धस्यफलप्रतिष्ठासिध्यर्थंद्राक्षामलकयवमूलनिक्रयीभूतांदक्षिणांदातुमहमुत्सृजे॥ यवमूलंआर्द्र ॥गोत्रेयः पितृपितामहप्रपिताम हेश्यः सपत्नीकेश्योनांदीमुरवेयःरुतस्यः॥द्वितीयगोत्रेश्योमानामहप्रमाताम हवृद्धप्रमातामहेभ्यः सपत्लीकेश्योनांदीमुरवेभ्यः कृतस्य॥ // ततोनांदीश्राद्धं संपन्न॥ससंपन्नं॥ बाजेबाजेतिविसृज्य॥ ॐ बाजैबाजेवतबाजिनौ नोधने युधिप्राऽ अमृता ऋतज्ञा // अस्यमयः पिबनमादयध्वन्नृप्ताघातपथिभिर्देव For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार // 64 // यानै: ॥१॥आमाधाजस्येत्यनुव्रज्य॥ॐ आमाचार्जस्यप्रसवोयगम्यादेमेघावाट- भास्कर थिवीविश्वरूपे॥भामागंतापितरामातराचामासोमोऽ अमृतत्वेनगम्यात्॥१॥ // अस्मिन्नांदीश्राद्देन्यूनातिरिक्तोयोविधिः सउपविष्टब्राह्मणानांवचनात्नांदीमुखम सादात्सर्वः परिपूर्णोस्त // अस्तुपरिपूर्णः // // इतिसंस्कार भास्करेनां दीपाई॥ // अथब्रह्माचार्यकत्विग्वरणम्॥ आचार्यलंयथास्वर्गेशझादी नांबृहस्पतिः॥ तथात्वंममयजेस्मिन्नाचार्याभवसुब्रत॥१॥ ॐ बृहस्पते अति // 6 // यदर्योअर्हायुमद्विभातिक्रतुमज्जनेषु॥यहीदयच्छवस कतजाततदस्मास For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir द्रविणन्धेहिचित्रम्॥१॥अमुकगोत्री सन्नः असुकप्रवरान्वितः अमुकशायजमानो हं॥अमुकगोबोसन्नं अमुकप्रवरान्वितंभुक्लयजुर्वेदांतर्गनमाध्यंदिनीयशायाध्यायिनंअमुकशर्माणंबाह्मणंअस्मिन्सग्रहमखरजोदर्शनशांत्यारव्ये कर्मणिआचार्यत्वेन त्वामहंवृणे॥ वृतोस्मि ॥गंधादिभिः संपूज्य॥ यथाचतुर्मुरखोब्रह्मासर्वलोकपिताम हः॥तथात्ममयज्ञेस्मिन्ब्रह्माभवद्विजोत्तम॥१॥ ॐ ब्रह्मयज्ञानंप्रथमंपुरस्ता द्विशीमतरतरुचौचुनउ आवः॥सबुभ्याउ उपमा अस्यबिष्टा सुतश्चयोनिमर्सतश्च |चिव // 1 // अस्मिन्रजोदर्शन शोत्याख्येकर्मणिब्रह्मत्वेन त्वामहंवृणे॥वृतोस्मि॥ For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार वांछितार्थफलायाप्त्येपूजितोसि सरासुरैः॥निर्विघ्नंक तुसंसिध्यत्वामहंगणपणे भास्कर || // 1 // ॥ॐ गणानांत्वा०॥१॥अस्मिनजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणिगाणपत्येनखा महंघृणे॥ वृतोस्मि॥कर्मणामुपदेष्टारसर्वकर्मविदुत्तमं॥कर्मिणंवेदनत्वज्ञंसदस्यत्वा महंवृणे॥१॥ ॐ सदसस्पतिमद्भुतंपियमिंद्रस्यकाम्यम्॥सनिम्मेधामयासिषः स्वाहा॥१॥अस्मिनजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणिसदस्यत्वेन त्वामहंवृणे॥ वृतोस्मि॥ ततश्चनुरोष्टौवाऋत्विजोवृणुयात्॥ यज्ञादिकर्मकार्येषुऋविग्शकमरवेयथा॥त // 65 // थायज्ञादिकर्मेस्मिनऋविग्वंमेमग्वेभव॥१॥ अस्मि ऋखिकत्वेनत्वामहंघृणे॥ For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तोस्मि॥ ॥तनःसूक्तजपार्थकग्वेदादीन्घृणुयात्॥ऋग्वेदःपद्मपत्राक्षोगायत्रःसोम दैवतः॥अविगोत्रस्तुविजेंद्रकवि ग्लंमेमवेभव॥१॥ॐ अमिमीळे पुरोहितंयज्ञस्य देवमृखिजे // होनाररत्नधातमम्॥१॥ अस्मिन्रजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणिकलिक्] वेन लामहंवृणे॥ वृतोस्मि॥कातराक्षोयजुर्वेदस्त्रैष्टुभाब्रह्मदैवतः॥भारद्वाजस्त विजेंद्रऋखिन्वंमेमस्वेभव॥१॥ ॐ षेवोर्जेबाचायवः स्थदेवोचः सवितापाय तुश्रेष्ठतमायकर्मणु आप्यायध्वमन्याऽ इन्द्रायभागम्जावतीरनमीवाऽ अयुस्मामावस्तेन ईशनुमाघटि सोध्रुवाऽ अस्मिनोपंतीस्यातबहीर्यजमानस्य / / For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पहि॥१॥ अस्मिनजो वृणे॥ वृतोस्मिासामवेदस्तपिंगाक्षोजागनःशक्रंदैयनः॥काश्य भास्कर // 66 // पेयस्तविपेंद्रविक्रमेमरवेभव॥१॥ ॐ अमआयाहिवीतयेगृणांनोहव्यदातये॥निहो तासुत्सिर्हिषि॥१॥ अस्मिनजो०॥बृहन्नेत्रोथर्ववेदोनुष्टुनोरुद्रदैवतः॥वैखानसकुलोत्पन्नोऋखिस्त्वं ॥१॥ॐ शन्नौदेवीरभिष्टय आपोभवंतुपीतये॥ शज्योमिस्त्रवतु। न॥१॥अस्मिनजो वृणे॥वृतोस्मि॥भगवन्मूर्तिसर्वज्ञसर्वधर्मभृतांवर॥विततेमा मयज्ञेस्मिजपार्थत्वामहंवृणे॥१॥अस्मिन्रजो रुद्रजपार्थेवामहं॥वृतोस्मि ॥ऋषि // 66 // जोगंधादिभिःसंपूजयेत्॥यजमानर्बिजः परस्परंयज्ञकंकणंबधीयुः॥ ॐव्रतेनैदीक्षा For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मामोनिदी सयानोतिदक्षिणाम्॥ दक्षिणाश्रद्धामामोनिश्रद्वयामृत्यमाप्युन॥ एनावद्रूप न्यज्ञस्यद्देवैर्ब्रह्मणाकृतम् // तदेतत्सर्वमानोतियज्ञेसौत्रामणीरुते॥१॥ ॥अथपा र्थना॥ ब्राह्मणा:संनुमेशस्नाः पापासांतुसमाहिनाः॥देवानांचैवदानारः पानार सर्वदेहि नां॥१॥ जपयजैनथाहोमैर्दीनेश्वविविधैःपुनः॥ देवानांचऋषीणांचतृप्त्यर्थयाजका सनाः॥ 2 // येषादेहेस्थितावेदाः पावयंनिजगत्रयम्॥ रक्षतुसनतंतेमांजपयज्ञैर्य वस्थिताः // 3 // ब्राह्मणाजंगमंतीर्थविषुलोकेपुविश्रुतम्॥तेषांवाक्योदकेनैवगुध्यंनि | मलिनाजनाः // 4 // पाचनाःसर्ववर्णानांब्राह्मणाब्रह्मरूपिणः। सर्वकर्मरनानित्यवेदशा | For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार स्वार्थकोविदाः॥५॥ श्रोत्रियाःसत्यवाचअग्रहध्यानरताःसदायद्वाक्यामृतसंसिक्तान भास्कर हिंयोनिनरदुमाः॥६॥ अंगीकुर्वंतुकर्मेनकल्पद्रुमसमाशिषः॥यथोक्तनियमैर्युक्तामंत्रा येस्थिरबुद्धयः॥७॥यलपालोचनात्सर्वाकडयोवृद्धिमाप्नुयुः॥अस्मिन्होमेमयापूज्याः संतुमेनियमान्विताः // 8 // अकोधनाः शौचपराः सततंब्रह्मचारिणः॥यहध्या नरतानित्यंप्रसन्नमनसःसदा॥९॥ अदुष्ट भाषणा:संतुमासंतुपरनिंदकाः॥ ममापिनि यमायेने भवंतुभवतामपि // 1 // इतिसंप्रार्थ्यतान्यायथावक्रियतांविधिः॥कलिन यथापूर्वंशक्रादीनांमस्पेभवन् // 11 // यूयंनथामे भवनकखिजोदिजसत्तमाः॥ अस्य For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यागस्यनिष्पत्तीप्तवंतोभ्यर्चितामया॥१२॥रूप्रसन्नैः प्रकर्तव्यशांतिविधिपूर्वकं॥ // इति संस्कार भास्करे ब्रह्माचार्यक्रबिवरणम्॥ अथदियक्षणं॥ ॥ततआचम्य प्राणानायम्यदेशकालौस्मृत्वा॥अस्मिन्सग्रहमखरजोदर्शनशांत्यारव्येकर्मणियजमा नेनवृतोहंआचार्यकर्मकरिष्ये॥ तदंगशरीरशध्यर्थपुरुषसूक्त जपंकरिष्येइतिपुरुष सूक्तंषोडशचुंजपेत्॥ ॥ततआचार्योवामहलेगौरसर्षपान्लाजमिश्रान्गृहीसा दिग्रक्षणकुर्यात्॥ // तत्रमंत्राः॥ रक्षोहणम्बलगहनम्वैष्णवीमिदमहन्तम्बलगमु किरामियम्भेनिष्टयोयममात्यौनिचरवानेदमहन्तम्बैलगमुक्तिरामियम्मैसमानोयम For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार समानोनिचरखानेदमहन्नम्बलगमुक्तिरामियम्भेसबन्धुर्य्यमसंबन्धुर्निचरचानेदमुहन्तम्लग भास्कर // 6 // मुक्तिरामियम्मेमजानायमर्मजातानिचरवानोत्कृत्याङ्किरामि // 1 // रक्षाहण्वोचलग हनः प्रोक्षामिवैष्णवान्चक्षोहणौवोचलगृहनोवनयामिधैष्णवान्चक्षोहण वो बलगह नोवस्त्रेणामिथैष्णवान्चक्षोहणौ वाँचलगहना उपदधामिवैष्णुचीरक्षा हौवाँबलगुहनीप,हामिचैष्णवीवैष्णवमसिवैष्णवास्थ॥२॥रक्षसाम्भागोसिनिर म्न रक्ष इदमहर्ट रक्षोभितिष्ठामीदमुहर्ट रक्षोबाधऽ इदमहर्ट-रक्षौधमन्न // 8 // / मोनयामि॥ घृनेनद्यावापृथिवीप्रोणुवाथांचाोचेस्तोकानाममिराज्यस्योत्स्वाहास्वाहाका / For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ते ऊर्धनभसंमानङ्ग उत्तम्॥३॥रक्षोहाधिश्वचर्षणिभियोनिम्न पोहता योण स्थ स्थुमासदत् // 4 // अपसर्फतुतेभूतापेमूताभूमिसंस्थिताः॥येभूताविघ्नकर्तार सेनश्यंतुशिवाज्ञया॥१॥ अपक्रातुभूतानिपिशाचाः सर्वतोदिशं॥सर्वेषामक्रोि धेनशांतिकर्मसमारो॥२॥ यदत्रसंस्थितंभूतंस्थानमाश्रित्यसर्वतः ॥स्थान त्यत्वातुतत्सर्वंयत्रस्थंतत्रगच्छतु // २॥भूतप्रेतपिशाचाद्याअपकामंतुराक्षसाः॥ स्थानादस्माद्रजंबन्यस्वीकरोमिभुवंतिमा।।४॥भूनानिराक्षसावापिकात्तिष्ठनिकेचन॥ |तेसर्वेष्यपगछंतुशांतिकंतुकरोम्यहं॥५॥इतिमवैरीशानादिसर्वदिक्षुविकिरेत्।।उदको For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पस्पर्शः॥ ॥ततःपंचगव्यकरण।तयथा ॥गायत्र्यागोमूत्र॥ ॐतत्सवितु॥१॥गंधद्वारामि भास्कर // 69 // निगोमय।। ॐगंधारांदुराधर्षीनित्यपुष्टोकरीषिणी॥ईश्वरीसर्वभूतानांनामिहोपस्येत्रि यं॥२॥ आप्यायस्वेतिक्षीरं ॥ॐ आप्यायस्युसमैतुने विश्वत सोमवृष्ण्यम् // भाचा जस्यसङ्गन्थे॥ 3 // दधिक्राणेतिदधि॥ ॐ दधिका? // 4 // तेजोसीत्याज्यं // // ॐ तेजोसिक्रमस्थमृतमसिधामनामासिपियन्देवानामनापृष्टन्देवयजनमसि॥ | // 5 // देवस्यत्वेतिकुशोदकं॥ॐ देवस्यैवासवितुः०॥६॥ ॐ इतिषणवेनयज्ञकाष्ठेना // 69 // लोट्य आपोहिष्ठेतिविधिमन्त्रैः कर्मभूमियज्ञसंभारांचपोक्षयेत्॥ . // ततोय // For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जमानहस्त प्रमाणंचतुरस्त्रंच तुरंगुलोन्ननंस्थंडिलंपिरच्यतवभूमिपूजनं॥ ॐ सूरसि || भूमिरस्यदितिरमिविश्वायाधिश्वस्यप्नुवनस्यधी॥ पृथिवीन्यपृथिवीर हपृथि वीम्माहि 6. सीः // ॐ भू. पृथिवीकु र्मानंतदेवताभ्योनमः इतिमंत्रणपोडशोपचौरैः संपूजयेत्॥ ॥अवविचारः॥ ॥समंततश्चसिद्धार्याक्षिपेद्रक्षोनमंत्रतः॥सर्वत पंचगव्येनप्रोक्षयेद्यागमंडपं॥ आपोहिष्टायचेनैवततः स्वस्त्ययनंजपेदितिशांति सारे॥ एतेसंस्काराः भूशुध्यर्थइतिग्रहयज्ञकल्पवल्या॥ ॥धृत्वांगुष्ठकनिष्ठात्या मूले साये: कुशवयं // तदअ॒स्तस्यरजसांपूर्वस्थामपसर्पणं॥ रुमिकीटपतंगायाधि / For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार चरतिमहीनले॥ तेषांसंरक्षणार्थीयपरिसमूहनमुच्यतइतिकुशकंडिकायो।रुग्णावृद्धाप भास्कर // 7 // सूनाचवंध्यासंधिन्यमेध्यमुक्॥मृतवत्साच तासांयाचंमूत्रंशरुत्पयइतिकल्पबल्यो। पुराइंद्रेणवनेणहनोबोमहासरः॥व्यापितामेदसापृथ्वीनदर्थमुपलेपनंइतिकुशकंडि| कायो॥ ॥रेयात्रयमुदक्संस्थंपागयस्थंडिलायधि॥ अथवैनत्मकुर्वीत द्वादशांगु ल माय इतिकल्पवल्या॥ // उल्लेरवनंनतःकुर्यादस्थिकंटकमेवच॥नेपामुद्दरणा र्यायउल्लेख्य: कथिनोबुधैः // अंगुष्ठोपकनिष्ठाश्यामभिकार्यतथोत्करं॥रेखाभ्यःसमुपा| | // 7 // दायारलिमाबेनिधापयेदिनिकल्पवल्या॥ ॥येवमंतिपिशाचायाअंतरिक्षनिवासिनः For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नेषोपहरणार्थायसमुधः कथितोबुधैः॥इतिकुराकंडिकायां॥ // अयोक्षणंतु कर्न व्यमुत्तानेनैवमुष्ठिना॥ नहदपयुक्षणंचैवकर्तव्यंन्युजमुष्टिना // इतिकल्पवल्यां।।आ पोदेवगणा:सर्वे आप:पितृगणाः स्मृताः॥ सर्वतदापआदायअभ्युक्षेनिपुनःपुनः॥ संपुटेनामिमानीयस्थाप्यामेर्दिशिकुंडतः। आमक्रव्यसुजौ तस्मात्यकाऊंडेविनिक्षि पेत् // शरावे भिन्नपात्रेवाकपाले चोल्मुके तथा॥नामेःप्रणयनकार्यंच्याधिशोकायाव हं॥ कपालं रसर्परं।उल्मुकंज्वलदमेरेकदेशः॥कुलालचक्रघटितं मृन्मयंपात्रमासु परं // तदेवहस्त घटितंस्थाल्यादिदैविकस्मृतंइतिकल्पवल्या॥ आनीतपात्रयोरेवप्ला For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार विनंतत्क्षणेसवेत्॥ नोचेत्कर्तुर्मनस्तापः स्यासंतापस्तयोरपि॥इतिकल्पवल्यां॥ // भास्कर ततः कृतांजलिः स्वस्तिनइतिमंचंपठेत्॥ ॥देवा आयांतु॥ यातुधाना अपयांतु॥ विष्णोदेवयजनंरक्षस्व॥ // तत्रस्थंडिलेपंचभूसंस्कारान्कृत्वा // मूलधृतैः ईशानी मारण्यावमितै: प्रतीचीमारण्यपाक्संस्थैःनिःसारितैः विभिर्दक्षैःनिःपरिसमुप॥गो मयेनोपलिय्य॥रवादिरकीलेनोल्लिरच्य॥प्रतीचीमारण्यप्रागंतंत्रिरुर्धरेषाकरणया म्यतउदक्संस्थापादेशपरिमिता॥ अनामिकांगुष्ठेनोल्लिखितपासूनांमृदमुधृत्योधूप | क्षिप्य // उदकेनाध्यक्ष्यन्युअपाणिना॥ कास्यपात्रे अग्निमुपसमाधाय॥आनीतममिं || For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie स्थंडिलस्यामेय्यांनिधाय॥ ॐ हुंफट् तिमंत्रेणकच्यादाशनैर्ऋत्यांदिशिपरित्यज्या। ततोमिंदूनमितिमंत्रेणात्माभिमुखममिसंस्थापयेत्॥ ॐ अमिन्दूतम्पुरोघेहव्यवाह सुपब्रुवे॥ देवा 2 : आसादयादिह // 1 // // अम्यानीतपात्रेसाक्षतोदकंनिषिच्य॥ अमिमुखंत त्याध्यायेत् // ॐ चत्वारिशृङ्गत्रयोऽ अस्यपादाद्देशीर्षसप्तहस्वासो अस्य॥विधाबडोवृषभोरोरवीतिमहोदेवोमा 27 आविवेश॥१॥ // सप्तहस्तश्चतुःशृंगः सप्तजिव्होद्विशीर्षकः॥विपाप्रसन्नवदनः सरवासीनः शुचि स्मित:॥१॥ स्वाहांतुदक्षिणेपार्येदेवींचामेस्वधांनथा॥विनदक्षिणहस्तेस्तुशक्ति For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मन्नंचंखुव॥२॥ तोमरंन्यजनंयामेघृतपात्रंचधारयन्॥ आत्माभिमुखमासीनएयरूपोलास्कर // 72 // हुताशन:॥३॥ अमेवैश्वानरशांडिल्यगोत्रशांडिल्यासितदैवलेनिविप्रवरान्वित |मिर्मानावरुण:पितामेषध्वजप्राङ्मुरखममसन्मुयोभव // शांतिकेवरदनीमानिंप्रतिष्ठा पार्थयेत् ॥अभिप्रज्वलितंयंदे जातवेदंहुताशनं॥हिरण्यवर्णमनलंसमृदंविश्वतो मुखं॥ इत्यभिप्रतिष्ठाप्य॥ // अथऋतुशांतीविशेषः॥ ततईशान्यायाम्यमार | // 72 // यउदयसंस्थपंक्तिरूपेणकलशचतुष्टयस्यमहीद्योरित्यादिक्रमेणस्थापन॥तथा For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चनारदसंहितायां॥ ईशान्यांचतुरः कुंभान्स्थापयेद्विधिपूर्वकं ॥याम्यमारभ्योदक्सस्थान्पूर्णपात्रसमन्वितान् // 1 // सूर्यंचतबविन्यस्य इंद्राणींचपुरंदरं॥चतुर्थेविन्यसे द्विद्वान्प्रतिमाप्नुवनेश्वरी // 2 // इनि॥ ॥ततोमहीयोरितिभूमिस्पृश्या॥ ओषधयः समितिययान्क्षिप्त्वा // आजिप्रमितिकलशंस्थापयेत्॥वरुणस्योत्तम्भनमितिजलंपूर येत्॥वांगंधर्वाइतिगंधप्रक्षिपेत् ॥याओषधीरितिसर्वोषधीः॥ कांडाकांडादिनिदूवाः॥ अश्वत्थेवइतिपंचपल्लवान्॥स्योनापृथिवीतिसप्तमृदः॥ आपोहिष्टेतिपंचगव्य। याः फलिनीरितिफलं॥परिवाजपतिरितिपंचरलानि॥हिरण्यगर्मेनिहिरण्यं॥युवास For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |वासाइतिरक्तसूत्रेणावेष्य॥ पूर्णादीतिपूर्णपाबंनिधाय॥तखायामीतिवरुणमावाह्यपं भास्कर // 53 // चोपचारैःसंपूज्यसर्वसमुद्राइतिगंगाद्याबाहयेत्॥ ॥ततः सुवर्णमयचतुर्मूर्तीनां कदलीसहितानामभ्युत्तारणपूर्वकंप्राणप्रतिष्ठाकुर्यात्॥ // ततःसाचार्योयजमान दे |शकालौस्मृतासांस्वर्णमयसूर्यइंद्रइंद्राणीभुवनेश्वरीकदलीमूर्तीनांघनादिदोपपरि हारार्थअभ्युत्तारणपूर्वकंप्राणप्रतिष्टांकरिष्ये // मूर्तीतेनाफ्यज्यउपरिजलधारांकु र्यात्॥ ॥अम्युत्तारणमंत्राः॥ ॐ समुद्रस्य॒त्वाकया परिव्ययामसि॥पायको | || // 73 // स्माय शिवोभव॥१॥ हिमस्यखाजरायुणानेपरिव्ययामसि॥पावकोऽ अस्मभ्यः || For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिवोभव // 2 // उपज्मन्नुपवेतसेचतरनदीप्यो॥ अनैपिनमपामसमण्डूकितानिराग हिसेमन्नौय॒ज्ञम्पायुकवर्ग शिवधि॥३॥ अपामिदंन्ययन समुद्रस्यनिवेशनम्॥ अन्याँस्तै अस्मत्तपन्तुहेतयं पावको अस्मान्य शिवोभव॥४॥ अ#पावकरोचि षामन्द्रयादेवजिल्हयौ // आदेवान्वक्षियसिंच॥ 5 // सन पावकदीदियोमैदे॒वाँ 2 इहा वह // उपयज्ञई हरिश्चन // 6 // पावकयायश्चितयन्त्याल्पाक्षामन्चुरुच उष सोनप्पानुनी। पूर्वन्नयामन्नेतरीस्यनूरण आयोघृणेनतैतृषाणोऽ अजरः // 7 // नमस्ते हरसेशोचिपेनमस्ते अस्य॒र्चिषै। अन्याँस्तै अस्मत्तपंतुहेतयः पायकोड, For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अस्मभ्यर्थ-शिबोभव॥८॥ नृषदे छेडुप्सुषदेचेट्वर्हिषदेचेडनसदेचेड्डबिदेचेट्॥९॥ये भास्कर देवादेवानीयशिवायुज्ञियाना : संवत्सरीणमुप॑भागमासते॥ अहुतादौहविषोयज्ञे अ स्मिन्स्वयंपिबन्नुमधुनोधृतस्य ॥११॥येदे॒वादेवेषधिदेवुत्वमायन्नेब्रह्मणः पुर:एता रोऽअस्य॥येयोन कृतेपर्यतेधामुकिञ्चननतेदिवो पृथिव्याऽ अधिस्मुषु॥१२॥पा णदाऽअपानदाव्यानुदाबर्बोदावरिवोदाः // अन्याँस्तै अस्मत्तपन्तुहेतय पा वको अस्मभ्यम् शिवोभव॥१३॥ ॥ततःप्राणप्रतिष्ठाकुर्यात्॥ ॐ आंहीं कौयरल // 74 // वंशंषसंहक्षहसःसोहं॥आसांसूर्यइंद्रइंद्राणी भुवनेश्वरीकदलीमूर्तीनांप्राणाइहा-|| For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir णाः // पुनः ॐ आंहींजीयरलवंशषसंहक्षहंसः सोहं // आसांसूर्य इ. मूर्तीनांजीयाइ हस्थिताः॥पुनः ॐ आंहींकीयरलवंशषसहसंहसःसोहे।आसांसूर्यइंद्र मूर्तीनासर्वेद्रियाणिवाङ्मनस्वक्चक्षुःश्रोत्रजिव्हाप्राणपाणिपादपायूपस्थानिइहैवागत्यसरपंचि रतिष्ठंतुस्वाहा॥ ॐ मनौजूतिर्जुषता // एषवैपत्ति // 2 // इतिप्रतिष्ठाप्य॥ ॥त्र |स्यासीतिनेवोन्मीलनं ॐ वृत्रस्यासिकनीन कश्चक्षुः असिचक्षुर्मदेहि॥ गंधा दिपंचोपचारान्दलासंस्कारसिद्धयेषोडशप्रणवावृत्ति कुर्यात्॥ // अनेनआसांसूर्यादि| | देवतामूर्तीनांगर्भाधानादिषोडशसंस्कारान्संपादयामीतिवदेत्॥ // इतिप्राणप For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार |तिष्टा॥ // अयसूर्याद्याचाहनं॥ ॥एयेहिपद्मासनपद्मपाणेसुरक्तसिंदूरसमानव | // 7 // ॥सप्ताश्चरक्तांबरसूर्यशीघ्रंगृहाणपूजांभगवन्नमस्ते॥ ॐ आरुष्णेनरज // 1 // ॐ मूर्भुवः स्वः सूर्यइहागच्छइहतिष्ट // ॐ सूर्यायनमः सूर्यावाहयामि॥ // थेंद्रध्यानं॥ एहिनानापरणपियेंद्रप्राचीपतेवजधरामरेश // ऐरावत्तारूढ श चीसरवात्रगृहाणपूजांभगवन्नमस्ते॥२॥ ॐ नारमिंद्रम // 2 // ॐ मूल इंद्रइहा.॥ ॥अथेंद्राणीध्यानं // ए हिदेवीश्वरिहेमवर्णेविशालपंकेरुहलोलनेत्रे॥ अं ||75 // |भोजहस्ते शचिदिव्यरूपेगृहाणपूजाममयज्ञसिध्यै॥३॥ ॐ इन्द्रन्दैवीतिमंत्रण॥॥ For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ॐ इन्द्रन्दैवीर्चिशौमुरुतोनुवांनोभवन्यथेन्द्रन्दैवीर्बिशोमरुतो वमनोभवन॥ एवमिमन्यजमानन्दैवीश्वृधिशौमानुषीश्वानुवांनोभवन्तु // 3 // ॐ भू. इंद्राणिइ. // // अथ भुवनेश्वरीध्यानं॥ ए हिदुर्गदुरितोधनाशिनिप्रचंडदैत्यौघविनाशका रिणि॥ उमेमहेशार्धशरीरधारिणिस्थिरामवत्वंममयज्ञकर्मणि॥४॥ ॐ श्रीश्चैतेल. // 1 // ॐ मू. भुवनेश्वरिइहा. भुवनेश्व. भुवनेश्वरीआवाहयामि॥ // तताक णेत्यादिचतुर्मत्रैर्नाममंत्रै सर्वाएक तंत्रेणषोडशोपचारैः संपूज्यपार्थयेत्॥ सूर्यप्रार्थ |ना // नमोनमस्तेसरसेवितायसहस्रनेत्रायरूमंडलाय॥सिंदूरवर्णायरूपंकजाय For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार सवर्णवज्जाप्मरणायनुभ्यं // 1 // ॥क्षमापन॥सप्तसप्तिसमारूढपग्रहस्नसमंगल॥ | मास्कर // 7 // क्षमाकुरुदयालोत्वंमहराजनमोस्तते॥२॥ // अथेंद्रप्रार्थना // पुरंदरनमस्नेस्क्तयच हस्लनमोस्तुते॥शचीसरवनमस्तेस्तुमेघवाहनमोस्तते॥१॥क्षमापनं॥ // देवराजग जारूढपुरंदरशतकतो॥शचीसरयमहाबाहोवांच्छितार्थप्रदोभव॥२॥ अथेंद्राणीमा र्थना॥वानमामिगजारूढांशचीकमललोचना॥ सरराजपियेदेविधृनसंतानमंजरीं॥ // 1 // ॥क्षमापनं॥ अंभोजहस्ते वरदेकमलायतलोचने॥सुरराजप्रियेदेविप्रसीदपर // 6 // मेश्वरि॥२॥ // अथभुवनेश्वरीमार्थना // नमोस्त देव्यैसरपूजिनायेविशालपंकेरुह For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोचनाये॥ नगाधिराजपियकन्यकायैनमोस्ततस्यैहरवल्लभाये॥ १॥क्षमापन॥दुर्गे देविमहामागेमहादेवप्रियेनघे॥ नीलोसल मुरयेवंयेममपीडानिराकुरु // 2 // इतिपायें // अनयापूजयाश्रीसूर्य इंद्रइंद्राणीप्नुवनेश्वरीदेवनाः पीयंतां // ॥न्हेरुत्तरतोषि द्वान्कदलींस्थापयेछुभा॥ हेम्नःपंचपलाट्यांचपलस्यापिसुलक्षणा॥१॥ वंशपात्रेपनि छाप्यतंदुलानाटकोपरि॥ कदल्यैइतिमंत्रेणपूजयित्वाप्रणम्यच॥ दद्यात्ताहिजवर्या यसर्वदोषापत्तये॥२॥ // ततो मेरुत्तरतःप्रसारितरक्तवस्त्रेवंशपात्रेआठकपरिमि | ननंदुलराशिंकृत्वा तदुपरिहैमींकदलींसंस्थाप्य॥ श्रीसूर्यदेवतायैकदल्येनमइतिमंत्रण For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार षोडशोपचारैः संपूजयेत् ॥दानसमयेअस्यादानकार्यमिति॥ ॥ोजपार्थकृतव भास्कर रणोब्राह्मणः सूर्याद्यावाहितमूर्तिसमीपेउपविश्यकलशंस्पृषाविवाडित्यनुयाकंज स्वाअप्रतिरथं श्रीसूक्तंचइंद्राणीभुवनेश्वरीकलशहयेहिवारं अथवारुदैकादशनी जपेत् // इत्थंनारदोक्तऋतुशांतिविशेषः॥ // अथग्रहमंडलदेवतास्थापन।उक्त प्रकारेणग्रहपीठंविरचयेत् // ॥शास्त्रार्थः॥ महनामानि॥ कांदे॥ जन्मभूत्रिममि श्वर्णस्थानमुरयानिच॥ योऽज्ञात्याकुरुतेशांतियहास्तेनावमानिताः॥१॥रविःसोमी | // 7 // || महीपत्रोबुधोजीवोय भार्गवः॥ शनैश्वरोराहुकेतूनववेदाः प्रकीर्तिताः॥१॥ ॥वर्णाः॥ For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रविभौमोरक्तवर्णेश्वेतश्चंद्रस्तभार्गवः॥बुधजीवोपीतवर्णीकृष्णोमंदविधंतुदो॥धूम्म वर्णाः के तुयश्चयहवर्णाःप्रकीर्तिताः॥ ॥प्रतिमाः॥ रविभौमीताम्ममयौराजतोसोम भार्गयो॥ बुधजीयोस्वर्णमयोलोहीमंदविधुतुदो॥केतुः कांस्योथवासीसःप्रनिमाधातवः स्मृताः॥ ॥मात्स्ये॥ पद्मासनः पयकर: पद्मगर्भसमद्युतिः॥सप्ताश्वरथसंस्थश्च द्विभुजःस्यात्सदारविः॥१॥ श्वेतः श्वेतांबरधरोदशाश्वः श्वेतवाहनः॥ गदापाणिईि बाहुश्चकर्तव्योवरदः शशा // 2 // रक्तमाल्यांबरधरः शक्तिमूलगदाधरः॥ चतुर्मुरवोमे पगमोचरदास्याद्धरासुतः॥३॥पीतमाल्यांबरधरः कर्णिकारसमद्युतिः॥ पड़चर्मगदापा || For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 7 // |णिःसिंहस्थोवरदोबुधः॥४॥देवदैत्यगुरूतहसीतश्चेतोचतुर्मुजो॥दंडिनौवरदोकाव्यो / |साक्षसूत्रक मंडल्॥५॥इंद्रनीलद्युतिःशूलीवरदोगृध्रवाहनः॥बाणबाणासनघर:क तव्योर्कसत:सदा॥६॥करालवदनः रवङ्गचर्मशूलीवरपदः॥ नीलसिंहासनस्थश्चरा हुश्चात्रप्रशस्यते॥७॥धूम्रादिबाहवःसर्वेगदिताविकताननाः॥रधासनगतानित्यं केनवःस्युर्वरप्रदाः॥८॥सकिरीटिन:कार्याग्रहालोकहितावहाः॥ स्वांगुलेनोड्रिताः सर्वेशतमष्टोत्तरावधि॥९॥ ॥देशाः॥उसन्नोर्क :कलिंगेषुयमुनायांचचंद्रमाः॥ // 8 // अंगारकस्त्वंत्यांचमगधायोहिमांशुजः॥१॥ सैंधयेषुगुरुर्जातः शुक्रोमोजकटेनथा। For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शनैश्चरस्त सौराष्ट्रेराहुराटिनापुरे॥ अंतर्येद्यांतथाके तुरित्येतायहभूमयः॥ // गोत्राणि॥आदित्यः काश्यपेयस्त आत्रेयश्चंद्रमाभवेत्॥ भारद्वाजोभवेद्भौमसथा त्रेयश्चसोमजः॥ गुरुश्चैवांगिरोगोत्रःशकोवैभार्गवस्तथा॥ शनिःकाश्यपएबाथरा हुःपैटिनसः स्मृतः॥केनयोजैमिनीयाश्चयहगोत्राणिकीर्तयेत्॥सकारेणतुवक्तव्यंगो सर्ववधीमता॥सकार:कुतुपोज्ञेयोनस्मायनेनतंवदेत्॥ // स्थानानि॥ कांदे॥ वृत्तमंडलमादित्येचतुरस्त्रंनिशाकरे॥महीपुत्रेत्रिकोणतुबुधेवैबाणसन्निभं // गरौतुप दिशाकारंपंचकोणंतुभार्गवे॥ धनुर्निशनोज्ञेयंभूपाकारंतुराहवे। केतवेतुध्वजाका For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie रंमंडलानिप्रकल्पयेत्॥मंडलव्यासश्चयहरलावल्यां॥ मंडलव्यास: कथित सूर्यस्यहा भास्कर दशांगुलः॥ चतुरंगुल सोमस्ययंगुलोलोहितस्यच॥ चतुरंगुल सौम्यस्यगुरोश्चैवषा डंगुलः॥ नवांगुलस्क्तशुक्रस्यअर्कपुत्रस्ययंगुलः॥ द्वादशांगुलोराहोश्चके तोश्चैवषडंगु लइति॥मध्येतुभास्करंथियाछशिनपूर्वदक्षिणे॥दक्षिणेलोहितंपिंयाधुधंपूर्वोत्तरे पिच॥उत्तरेतुगुरुंविद्याद्भार्गवंपूर्वतोन्यसेत्॥ शनिंपश्चिमतः स्थाप्य नैर्ऋत्येराहुमेव च॥केतुंवायव्यकोणेचयहस्थानानिकीर्तयेत्॥दिङ्मुरयानिप्रतिष्टाकल्पे॥ ॥शु // 79 // कार्बोप्राङ्मुखोज्ञेयो गुरुसौम्यावुदङ्मुखी॥प्रत्यङ्मुखौसोमशनीशेषादक्षिणतोमु- / For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रवाः॥ एनेवैदिङ्मुरवाः खेटाः स्वस्वलोके निवासिनः॥यजमानात्माभिमुखाःसर्वेसंस्था पयंनिच॥पूज्यपूजकयोर्मध्येयत्रमाचीप्रकल्पयेत्॥ तबसन्मुखसंस्थाप्यइतिन्यायो यथातथमिति॥ ॥मदनरत्नसंयहे॥ ॥रहस्यदक्षिणेशागेस्थापयेदधिदेव ताः॥ ग्रहस्ययामपार्चेतस्थाप्याः प्रत्यधिदेवताः॥ ॥अधिदेवतानामानि॥ ॥ईश्व रंचउमांचैवस्कंदंविष्णुतथैवच॥ ब्रह्माणेद्रंयमचैवकालं चैवतुअष्टम॥चित्रगुप्तंतुनय मंअधिदैवतकीर्तिताः॥ // प्रत्यधिदेवतानामानि // अमिश्चैवतथाआपपृथिवी | विष्णुरेय च // इंद्रश्चैवत्तकेंद्राणीप्रजापतिस्तथैवच॥सर्पश्चैवतुब्रह्माच एताःप्रत्यधि For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार भास्कर देवनाः॥ ॥संग्रहे॥राहुमंददिनेशानामुत्तरस्यायथाक्रम॥ गणेशदुर्गेवायुश्चराहुके, खोश्चदक्षिणे॥ आकाशमश्चिनौदेवीस्थापयित्वाकमेणतु॥वास्तोष्पतिक्षेत्रपालंस्थाय्यगु रूत्तरेषुच॥ एताः सदैवसंस्थाप्याः कर्मसाद्गुण्यदेवताः॥इंद्रामियमनैक्रत्यावरुणोवा | युरेवच ॥कुबेरेशानावित्यष्टोपागादिमदिशाधिपाः॥ब्रह्माणंचततःस्थाप्यपूर्वंशान्योस्तुमध्यमे॥पतीचिनैऋतिमध्येअनंतंस्थापयेदिति // यथावर्णपदेयानियासांसिकुसमा निच॥नपग्रहेन्योदेयानिसुगंधसहितान्यपि॥ ॥गंधः॥ आदित्यायविलेपार्थदापयेद्र क्तचंदनं॥ चंदनंसितवर्णंचपदयासोमभार्गवे॥कुंकुमेन चसंयुक्तंचंदनंजीवसोम्ययोः For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // अगरीश्चंदनंदयाद्राहुकेत्यर्क जेषुच॥ ॥धूपः // रथेकुंदरकंधूपंशशिनस्त | ताक्षताः॥ मोमेसर्जरसंचैवअगलंचबुधेस्मृत॥ सिल्हकंगुरवेदयाच्छुकेबिल्वागळं तथा॥ गुग्गुलंमंदचारेतुलाक्षाराहोचकेतवे॥ नैवेद्य॥ ॥राडोदनरर्दयात्सोमाय तपायसं॥ लोहितायमसूरान्नंबुधायक्षीरषाष्टिकं ॥दध्योदनंगुरोर्दयात्शुक्रायचघृतो दन॥मिश्रिनंतिलमाषान्नं निवेयंचशनैश्वरं॥ राहोर्मापोदनंदयाकेतोचित्रौदनंतथा // // हविर्द्रव्यं॥ ॥तिलांज्यचरूभिव्यंसमिधांचयथातथं॥यहादीनांचसर्वेषांह विर्द्रव्यमुदीरितं॥ ॥समिधस्त // अर्क: पालाशयदिरावपामार्गोथपिप्पलः॥ औदुंब For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 1 // रःशमीदूर्गाः कुशाश्वसमिधःक्रमादिति॥ // हेमाद्रौप्पयिष्योत्तरेसेयहेच॥ एकैकस्या | भास्कर वाहनादिपूष्पांजल्यंतपूजनं॥ समाप्यचततोन्यस्यइतिकांडोत्तुकीर्तितः॥ सर्वेषामेक तंत्रणरव्यादीनांयथाविधि॥ पूजनंतुप्रकर्तव्यंपदार्थोनुप्रकीर्तितः॥ गणाधिपतयेदे याप्रथमातुवराहुति॥अन्यथाविफलंविषभवतीहनसंशयः॥आधारावाज्यभागौतु आज्येनैवयथाक्रमं // एकैकस्याहुतिहुलाभन्यहोमंततःपरं॥ केवलंयहयज्ञंचसर्वशांत्या दिकेषुच॥ प्रथमोयुतहोमःस्याहितीयोलशहोमकः॥ तृतीयःकोटिहोम: स्यानिविधीग्रहय | // 1 // ज्ञकः॥ अष्टोत्तरसहस्रंतु शतमष्टाधिकंतथा॥ अष्टाविंशतिसंख्याकैरेकैकस्यतुहोमयेत्॥ For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोटिलक्षायुतमरवेरच्यादीनांयथाक्रमं॥ प्रणयादिश्चतलिंगः स्वाहाकारांनाचच॥जद // यात्सर्वदेवानावेद्यांयेचोपकल्पिताः॥ // नृसिंहपुराणे॥ ततोव्यातिभिःपश्चाज्जुहुया अतिलादिकं // यावत्यपूर्यनेसंख्यालक्षवाकोटिरेवया ॥वाशब्देनअयुतमपिगण्हीयान] ॥तिला: कृष्णाघनाश्यक्ता किंचियवसमन्विताः॥ होमेव्याहृतिभिश्चैवमर्वम्नपि / धीयतेइनिशानिरत्ने॥ // संयहे॥ ॥कोटा वधिपत्य धेश्चशतमष्टाधिकार"। तिः॥विनायकादिदिक्पालान्ताष्टाविंशतिसंख्यया॥१॥ लक्षेअष्टाविंशतिश्चअधि / / | प्रत्यधिकेषुच॥विनायकादिदिक्पालान्नाष्टाष्टसंख्ययाहुतिः॥२॥अयुतेष्टाष्टसंख्या // For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार कैरधिप्रत्यधिकेषुच॥विनायकादिदिक्पालो तानाहुत्वाचतुश्चतुः॥३॥केवलेन |धिपत्यधिहुत्याचैवचतुश्चतुः॥विनायकादिदिक्पालाः देवेसंख्याहुतीहुनेदिनि॥४॥॥ शोनकः॥ // अंनेपूर्णाहुतिहुलासमुद्रादूर्मिसूक्ततः॥सततामाज्यधारांतांपूर्णाहुतिम थाचरेत्॥ मात्स्येमिपुराणेच॥ // मूर्धानंदिवमंत्रणावशेषघृतधारया॥दयादुत्यायपू येनोपविश्यकदाचन॥१॥ इतिकातीयानांचावश्यंशांतिमयूरचे॥ ॥कज्योत्यनु वाकेनघृतेनाछिन्नधारया। होमातेसर्वकल्याणीदेया पूर्णाहुतिस्तदेनियहयज्ञकल्पव || // 2 // ल्यां॥ ॥पूर्णाहुतिरन्याज्येनस्याल्याज्येनकदाचनेतियहयज्ञकल्पवल्यां॥ ॥कारिकायो। For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अन्यदाज्यसमानीयाधिश्रितेस्क्यु वावुभौ।तोषनप्यचसंमार्गकुशै:संमृज्यसिंच येत्॥ पुनःप्रनप्ययाम्यायांनिदध्यात्लुक्नुवोचतो॥ आज्यमुहास्यचोपूयावेक्ष्या पद्रव्यनिष्कृतिः॥ चतुर्ग्रहीतमाज्यंतगृहीत्वास्लुचिमध्यतः॥ वस्नतांबूलपूगादिफलपुष्पसमन्विता // अधोमुरयस्वच्छन्नीगंधाक्षतैरलंकृतां॥पूर्वदक्षिणहस्तेनपश्चा दामेनपाणिना॥ अयमध्यममध्यस्थमूलमध्यममध्यतः॥पाणिद्वयेनहोतव्यंपाणि रेकोनिरर्थकः॥ गृहीत्वाथनुवंकर्ता शरवसन्निभमुद्रया॥ वामस्तनांतमानीयनाभि मूलात्स्चंततः॥सप्ततेत्यनुवाकोतेमखेसूक्तान्विशेषतः॥ श्रावयेत्सूक्तमानेयवैष्ण For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | बरौद्रमेंदचं॥ महावैश्वानरंचापिचमकानिननःपठेत्॥ समास्वेतिनपर्चमामेयंसूक्तं॥ मास्कर | विष्णोर्नुकमिनिषडवैष्णवंसूक्तं ॥नमस्तेनिषोडशर्चरौद्रंसूक्तं // आप्यायस्पेनिषड मैंदयं ॥महावैश्वानरं॥ चमकंवाजश्वेत्यारण्यसप्तविंशतिऋचा॥ इतिकाशीदीन क्षितपद्धती॥ ऐशान्यामाहरेत्भस्मस्युचावाथवेणवा॥ अंकनंकारयेत्तेनशिरः केठांसकेषुचेनिशांतिकमलाकरे॥ ॥ततोयहपीठमध्येसूर्यमंडलस्यायेउदक्स स्थपंक्तिरूपेणगणपतिंदुर्गाक्षेत्रपालंचावाय॥ ॥तत्रमंबाः॥ ॥ॐ गणाना | // 3 // खा०॥१॥ ॐ गणपतेइहागच्छइहतिष्ठ ७७गणपतयेनमःगणपतिआवाहयामि॥ For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ||ॐ अम्बेडअम्बुिकेम्बालिकेनमानयतिकश्चन॥ ससस्स्यश्यकः सुभद्रिकापी लासिनीम् // 2 // ॐ भूर्भु. दुर्गे इ. दुर्गायै. दुर्गाआ०॥ ॐ नहिस्पशमदिन न्यमुस्माद्वैश्वानरासुरः एतारममे / / एमनमवृधन्नमण्ड अमर्त्यधैश्वानरक्षेत्र जित्यायदेवा // 3 // ॐ भू क्षेत्राधिपने क्षेत्राधिपनये क्षेत्राधिपनिआ॥ // तत्रपीठमध्येवर्तुलेद्वादशांगुले मंडले प्रामुखंसूर्यरक्त पुष्पाक्षरावाह्य // ॐ आफू ोनरजसा वर्तमानोनिवेशयन्नमृतमर्यंच। हिरण्ययनसवितारथेनादेवोधात ।मुवनानिपश्यन् // 1 // ॐ भू. कलिंगदेशोद्भवकाश्यपसगोत्ररक्तवर्णप्नोसूर्य इाग / For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार छइहतिष्ठ सूर्याय नमःसूर्यभावाहयामि॥ ततआमेय्यादिशिचतुरस्त्रेचतुर्विशत्या # 84 लेमंडलेप्रत्यड्सुरवंसोमंशुक्लपुष्पाक्षतैःसह // ॐ इमन्दैवाऽ असपल संवध्वम्मह नक्षत्रार्यमहुने ज्येष्ठयायमहुनेजानराज्यायेन्द्रम्येन्द्रियाय // इमममुष्यपुत्रममुष्यपुत्रम् स्वैधिशः एषयोमीराजासोमोस्माकम्ब्राह्मणानार्ट राजी॥२॥ ॐ भू० यमुनातीरोद्भव आत्रेयसगोत्रशुक्वर्णभोसोमइहाग इ. // ततोदक्षिणस्यादिशित्रिकोणेव्यंगुले मंडले दक्षिणाभिमुरवभौमरक्तपुष्पाक्षतैः सह॥ ॐ अनिर्मूर्धादिवर कुकुत्पतिः // 4 // पृथिव्या : अयम्॥अपार रेतार सिजिन्वति॥३॥ ॐ भूः अवंनिदेशोद्भयभार For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डाजसगोचरक्तवर्णमोनीम इहा // नतऐशान्यांदिशिवाणाकारे चतुरंगुलेमंडलेउदङ्म | रचंबुधपीनपुष्पाक्षतैःसह॥ॐ उद्बुध्यस्वा प्रनिजागृहित्समिष्टापूर्तेस सृजेथाम्। |यंचे। अस्मिन्सुधस्तु अध्युत्तरस्मिन्विश्वेदेवायजमानश्चसीदन॥४॥ॐ भू. मगधदे शोभयात्रेयसगोत्रपीतवर्णमोबुधइ // ततउत्तरस्यादिशिलंबदीर्घचतुरसेपट्टाफारेषड गुलेमंडलेबृहस्पतिंपीतपुष्याक्षतैःसह॥ ॐबृहस्पते अनियर्यो अत्युमद्विभाति ऋतुमुज्जनेषु॥ यहीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासुद्रविणन्धेहिचित्रम्॥५॥ || ॐ भू-सिंधुदेशोद्भव आंगिरसगोत्रपीतवर्णभोबृहस्पतेइतनःपूर्वस्यादिशिपंचकोणे // For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नवांगुलेमंडलेपाऊमुखशुकं शुक्लपुष्पाक्षनैःसह॥ॐ अन्नासरिस्तोरसम्बाध्य भास्कर पिबत्क्षत्रम्पयः सोम॑म्प्रजापति // कृतेनेसत्यमिन्द्रियम्बुिपाने शुक्रमन्धसः इन्द्र स्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु॥ 6 // ॐ भू. मोजकरदेशोद्भवाभार्गवसगोत्रशक्लवर्ण | मोककइ०॥ ततःपश्रिमायांदिशिधनराकारेगुलेमंडलेपत्यङ्ग्मुरवंशनिकृष्णपुष्पा क्षतैः सह॥ ॐ शनीदेवीरभिष्य आपोभवन्तुपीतये। राज्थ्योरभित्रवन्तुनः // 7 // ॐ भू.सोराष्ट्रदेशोद्भवकाश्यपसगोवकृष्णवर्णभोशनैश्चर इ०॥ ततोनत्यादिशि // 5 // शूर्पाकारे द्वाददगंगुलेदक्षिणाभिमुरचराहुंकृष्णपुष्पाक्षतैःसह॥ ॐ कयानभित्र आई। For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वदूतीसुदा वृधः सरचा // काशचिष्ट्यावृता॥८॥ ॐ पू० राठिनापुरोद्भवपैठिनसगोत्र कृष्णवर्णभोराहो इ.॥ ततोवायव्यांदिशिध्वजाकारेषडंगुले मंडलेदक्षिणाभिमुरवंकेतुंधू मपुष्पाक्षतेःसह॥ ॐ केतुङ्कण्वन्नकेतपेशीमर्जा अपेशसै॥समुषद्भिरजायथाः // 9 // ॐ भू० अन्तर्वेदिसमुद्भवजैमिनसगोत्रधूम्रवर्णभोकेतो इ०॥ ॥त नोधिदेवतास्थापनंग्रहदक्षिणपार्थे // ॐ त्र्यम्बकन्यजामहेसगृधिम्पुष्ट्रियई नम् // उर्वारुकमिवबन्धनान्मृत्योर्मुक्षीयामृतात्॥१॥सूर्यदक्षिणपार्थ // ॐ भू० ईश्वरइहागञ्चइहतिष्ठईश्वरायनमः ईश्वरआवाहयामि॥ एवंसर्वत्र॥ ॐ श्रीश्चनेल For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार |क्ष्मी०॥२॥सोमदक्षिणपाधै॥ ॐ भू. उमेइ. उमाये उमांआ०॥ ॐ यदन्द प्रय // 6 // मजायमानऽ उद्य-समुद्रादुतापुरीषान्॥श्येनस्यपक्षाहरिणस्य बाहू : उपस्तुत्यम्म हियातन्तै अर्बन्॥३॥भीमदक्षिणपार्थे॥ ॐ भू. स्कंदइहा. स्कंदाय०॥स्कंदा // ॐ विष्णोराटमसिधिष्णो भप्रेस्पोधिष्णोः स्यूरसिधिष्णो योसिविष्णुवमसिधि | ष्णवे त्वा // 4 // बुधदक्षिणपा॥ ॐ भू-विष्णोइहा. इहतिष्टविष्णवे // ॐ आब्रह्मा ब्राह्मणोब्रह्मवर्चसीजायतामाराष्ट्र जन्यः शूरः इषुध्योतिव्याधीमहारथोजीयता | न्दोग्धी धेनुर्योदानसना शु? सप्तिः पुरन्धिर्वोषाजिष्णूरथेष्ठाः सुप्नेयोयुवास्यय / For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie जमानस्यचीरोजायतानिकामेनिकामेनः पर्जन्योधर्षतुफलवत्योन ओषधय पच्यतान्योगक्षेमोन कल्पनाम्॥५॥ गुरुदक्षिणपार्श्वे ॐ भू० ब्रह्मन्इ. ब्रह्मणेन ब ह्माणंआ•॥ ॐ सयोषी इन्द्रसगणोमरुद्भिः सोमम्पिववृवहाभूरविद्वान् ॥जहिशā 2 रपमृधौनु दुस्वाथाभयङ्कणहिधिश्वतौनः ॥६॥शुकदक्षिणपाधै॥ ॐ भू. इंद्रइहा. इंद्राय. इंद्रा०॥ ॐ घुमायखाङ्गिरस्वतेपितृमतेस्चाही // स्वाहाघ मायस्वाहाँधर्मपित्रे शनिदक्षिणपार्च ॐ यमइ. इहति यमाय यमंआ॥ कार्षिरसिसमुद्रस्यत्वाक्षित्याउन्नयामि॥समापौ अद्भिरेग्मतसमोषधीभिरोष For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार धीः // 8 // राहुदक्षिणपार्थे॥ ॐ भू.कालइ. इहनि काला कालं.॥*चित्रायसो // 7 // तितेपारमशीय॥९॥केतुदक्षिणपार्थे॥ ॐ भूचित्रगुप्तइ. इहति चित्र चित्रगुप्तं // // तत:प्रत्यधिदेवतास्थापनयहवामपाद्ये ॥ॐ अमिन्दूनम्सुरोदधेहव्यवाहमुप॑ब्रुवे॥ | देवाँ 2 आसादयादिह १सूर्यवामपार्चे॥ ॐ भू० अमेइ. इ. अ. अग्नि-॥ ॐ आपोहि ष्ठी ॥२॥सोमवामपार्चे॥ ॐ पू. आपइ इहति अन्योनम: आपआवा०॥ ॐस्यो नापृथिवि०॥३॥भोमवामपार्चे॥ ॐ भू-पृथिविइ. इ.पृ॰ पृथिवीं मा०॥ॐइदम्य // 8 // ष्णुर्विचक्रमेत्रेधानिदधेपदम्॥ समूटमस्यपार्ट सुरेखाही॥४॥बुधवाम पार्चे ॐ॥ For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भू-विष्णो इहा. इ०वि विष्णुं आ०॥ ॐातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रर्द हवै हवे सुहा वर्ट शूरमिन्द्रम् // व्हयामिशक्रम्पुरुहूतमिन्द्रः स्वस्तिनोंमघवाधाविन्द्रः॥५॥ |रुवामपाधै॥ॐ भू. इंद्रइहाइ इं॰इंद्रा०॥ॐ अर्दित्यैरास्नासीन्द्राण्याऽ उष्णीषः॥पू पार्मिघायदीष्य // 6 // शुक्रवामपार्चे॥ॐ भू. इंद्राणिइहा. इ.ई. इंद्राणीआ०॥ ॐ प्रजापतेनत्वदेतान्नन्योविश्वारूपाणिपरिनाबभूव॥यकामास्तेजहुमतन्नौआ सुबयट स्यामुपतयोरयीणाम्॥७॥शनिवामपार्च॥ ॐ भू. प्रजापतेइहा इम. प्रजापति आ०॥ ॐ नमोस्तो केचपृथिवीम // वे अन्तरिक्षेयेदियितेपयः For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार सर्पयोनमः // 8 // राहुघामपार्च ॐ भू. सर्पाइ० इ०मर्पयो सर्पाना०॥ॐब मास्कर // 4 // यज्ञानग्रंथमम्पुरम्नाहिशीमत सुरुचौबेन औवः ॥सबुभ्या उपमाऽ अस्यचि टा सतश्वयोनिमर्सनश्वृधिः ॥९॥केतुवामपार्च॥ ॐ भू-ब्रह्मन्द ब्रह्मणेन ब्र माणंआ०॥ // ततोविनायकादिपंचदेवना: यास्तोष्पतिक्षेत्रपालंचा बाहयेत्॥ // ॐ गणानान्त्वा०॥१॥ राहोत्तरतः ॐ भू. गणपते इहा इ. ग गणपतिं // ॐ अम्बेअम्बिके // 2 // शनेरुत्तरतः ॐ भू. दुर्गे• इहा. दुर्गायै. दुर्गा०॥ ॐ // 4 // आनोनियुदिः शतिनीभिरध्वरर्ट सहुस्लिीभिरुपयाहिय॒ज्ञम्॥ वार्योऽ अस्मिन्स For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वनेमादयस्वधूयम्पातस्वस्तिशिल सदीनः३ रवेरुत्तरनः ॐ भू० वायोइहा. वायवेन. वायुआ०॥ ॐ घृत’नपावानः पिबतत्वम्बिसापावानः पिबतान्तरिक्षस्यहविरसिस्वाहा ॥दिशः प्रदिर्श आदिशौविदिश उद्दिशोदिम्य स्वाही॥४॥ राहोदक्षिणे॥ ॐ | भू. आकाश इहा. इ.आ. आकाशंआ०॥ ॐ यावाङ्क शामधुमृत्यश्चिनासूतावनी॥ तयायज्ञम्मिमिक्षताम्॥५॥केतोदक्षिणे॥ ॐ भू. अश्विनौइ.इ. अश्विपयां अश्चि नौआ०॥ ॐ वास्तोष्पते प्रतियानीयस्मान्स्चावेशोऽ अनमीवो भवानः // यत्लेमहेम | तितन्नोजुषस्व शन्नोभवद्विपदेशचतुष्पदे॥१॥ उत्तरे ॐ भू. वास्तोष्यतेइ इन्वा / For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वास्तोष्यति आ०॥ ॐ नहिस्पशमविदं // 2 // उत्तरेॐ भू० क्षेत्राधिपते इ. इ. क्षे. क्षेत्राधिपतिआ०॥ // इतिक्रतुसाद्गुण्यदेवताः॥ अथपागादितःपीट समंताहिक पालानावाहयेत्॥ // ॐ वातारमिन्द्र०॥१॥पूर्व भू. इन्द्रइ. इ. इंन्इं,आ०॥ ॐ त्वन्नो अग्ने तर्वदेवपायुभिर्मघोनौरक्षतन्वश्ववन्य॥ तातोकस्यतनयेगाम्। स्थनिमेष रक्षमाणुस्तन्ते॥२॥ आमेय्यां ॐ पू० अमेइहाग इ० अ० अमिंभा० ॐ यमायबोगिर ॥३॥दक्षिणे ॐ भू. यमइ. इन्य यमंआ०॥ ॐ असुन्वन्तमय || // 9 // जमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य॥ अन्यमस्मर्दिछुसान इत्यानौदेविनि For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्रतेतुभ्यमस्त ॥४॥नैर्ऋत्यां ॐ भू निर्कने इ. इ.नि निक्रनिंआ०॥ ॐ तत्सायामिन ॥५॥पश्चिमे ॐ भू. वरुणइ इ.च वरुणा०॥ ॐ आनौनियुदिः शतिनीभिरपुर ६-सहस्ति०६ वायव्यां ॐ भूः वायोइहा. इ-वा वायुंभा०॥ ॐ व्यर्ट सौमवनेतवमना स्तनूषुविधतः // प्रजान्त सचेमहि // 7 // उत्तरेसोमइहा. इ. सो. सोमंभा० // *तमी शानूजर्गतस्तस्थुषस्पतिभियाअन्वमवसेहूमहेबूयम्॥पूषानीययाचेदैसामसदृधेरक्षि तापायुरदेव्याः स्युस्तये॥८॥ ईशान्यां भू. ईश्वरइ ई. ई. आवा०॥ ॐ अस्मे / रुद्रामेहनापर्चनासो वृत्रहत्त्येभरहूतौस्योषी हायशर्ट संतेस्तुवतेधायिनऽन्द्र For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ज्येष्टाऽ अस्मा 2 अयन्तुदेवा३॥९॥पूर्वेशानयोर्मध्येऊर्धायां ॐ मू ब्रह्मनइहा भास्कर ग इब्र ब्रह्माणंआ॥ ॐ स्योनापृथिविनो०॥१०॥निक्रतिपश्चिमयोर्मध्ये धास्थायां ॐ भू० अनंतइहा. इं अनंताय. अनंनं आ०॥ // इतिक्रतुसंरक्षक दिक्पालदेवताः॥ ॥ॐ मनोजूति // एषवैप्रतिष्ठेनिकमयांआदित्यादिग्रहम डलदेवताभ्यो नमःसुप्रतिष्ठितावरदाभवत॥पूजामंत्रस्त ॥ॐ यहाँऽ ऊर्या हुतयोव्य तोधिपायमतिम्॥तेषाँधिशिप्रियाणाम्बोहमिषमूर्युट समैयामुपामग्टहीतोसी // 9 // न्द्रायायुष्टङ्कण्हाम्येषतेयोनिरिन्द्रीयत्वा॒जुष्टतमम्॥१॥ॐ भूर्भुवः स्वः आदित्या For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिनवग्रहमंडलदेवताभ्योनमः इनिमंत्रणषोडशोपचारैःसंपूज्यप्रार्थयेत्॥ // आदि देवनमस्कायंसप्तसप्तदिवाकर॥ आयुरारोग्यमेदेहिकुरुशांतिझाप्रदा॥१॥ रोहिणी शरुधामूर्तरूधारूपसधाशन // सोमसौम्योभवास्माकंसर्वारिष्टंनिवारय॥२॥ कुजकु प्रभवोपित्वंमंगल:परिगद्यसे॥ अमंगलंनिहत्या सर्वदायच्छमंगलं // ३॥बुधस्त्वंयु। द्विजननोबोध्यवान्सर्वदानृणां॥नत्वावबोधंकुरुतेसोमपुत्रनमोस्तते॥४॥वेदशास्त्रा र्थतत्वज्ञज्ञानविज्ञानपारग॥विबुधार्तिहरोनित्यंदेवाचार्यनमोस्तते॥५॥भार्गवोमा र्गजननशुचिःश्रुतिविशारद॥ हत्यायहकृतान्दोपानायुरारोग्यदेहिमे॥६॥को For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 91 // संस्कार गनीलांजनप्ररव्यंमंदचेष्टाप्रसारिण॥छायामार्तडसंभूननं नमामिशनैश्चरं ॥७॥महा भास्कर | शिरामहावनोदीर्घदंष्ट्रामहाबलः।मुंडकायोर्ध्वके शिश्चपीडाहरतुमेतमः॥८॥अधःस्था (गमोकेतोपलधूमसमप्रम॥रौद्ररूपनमस्तुभ्यममपीडांनिराकुरु॥९॥ ॥अनयापूजया आदित्यादियहमंडलदेवताःप्रीयंतां॥ // इतियहस्थापन॥ // ततईशान्यायहसं बंधिरुद्रकलशस्थापनं॥महीद्योरितिकमेणपूर्णपात्रनिधानांकृत्यातत्वायामीत्यावाश्य। ॐ असंख्यातासहस्राणियेरुद्राऽ अधिभूम्याम् // तेषार्ट सहस्रयोजनेवधन्यानितन्म | // 1 // सि॥१॥ इतिमंत्रणषोडशोपचारैःसंपूज्य सर्वेसमुद्राःसरितइनिगंगाद्यावाहयेत्॥ For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तबकलशेसांगरुद्र जपः॥ अनेनकलशोदकेनअभिषेकसमयेपल्यासहयजमानमभिपिंचेन्॥ ॥अथकुशकंडिका॥ एतस्याव्याख्यायहरत्नावलीकुशकंडिकाभाप्यानुसारेणलिखिता॥ ॥यथा // अमेर्दक्षिणतःस्थापिनेवारणादिपीठेउदगया न्यधिकान्कुशानास्तीर्यामेरुत्तरत: कुशासनेब्रह्माणंपूर्वाभिमुरबमासीनंयजमानः स्वयं उदङ्मुरवमासीनोब ह्मणोदक्षिणहस्संगृहीत्याभोब्रह्मन अत्रासनेउपविशेनियान ॥उपविशामीतितेनपठितेदक्षिणपादेनामे पूर्वेणगत्वास्चासनादंगुष्ठानामिकाभ्योकि चिनृणमादायदक्षिणापरस्यानिरस्याम्यभिमुखउपविशनीतिग्रहयज्ञ कल्पवल्या॥ // For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार अमेरुत्तरतः पागये कुशेरासनहयंकल्पयित्वाएकममेरुत्तरतः द्वितीयंतसश्रिमे॥|| भास्कर // 92 // वायव्याश्रितंवारुणद्वादशांगुलदीर्घचतुरंगुलविस्तृतंचतुरंगुलखातं॥यथा।। // वारुण पाणिभावंचद्वादशांगुलविस्तृतं॥ पद्मपत्राकृतिपिपोसणीपात्रसंस्थिनिरिनिकल्सवल्या in ॥चमसंदक्षिणहस्तेनग्टहीत्वासव्ये पाणौषागयंनिधायतिष्ठन्दक्षिणहस्तोसृतपा बजले नात्माभिमुरयंपूरयित्वापश्रिमासनेनिधायदक्षिणयानामिकयाजलमालायामेरु तरतः प्राक्कल्पितेपोक्षण्यासनादुदक्प्रणीतासनेस्थापयेत्॥यथा॥प्रणीताउत्तरेस्था-||||॥९२॥. प्यापितरूयंतरतोमिनः॥ इतिग्रहयज्ञकल्पवल्या // चमसंवारुणप्रणीतापात्रंमागया / For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie तानंबारुणोदकेनसंपूर्य।।दर्भमुष्टिमादायप्रदक्षिणप्रागादिबहिर्भि:कुंडपरिमाणैः // परिस्तरणंविधेयंइतिकल्पवल्यां॥बर्हिर्द मुिष्टिः॥तच्चपागुदगग्रे॥दक्षिणतःप्रागप्रैः॥प्रत्यरादगये। उत्तरतः पागयैः॥ आसादनंतुपात्राणांपादेशांतरकेवुधः॥ अंग लद्वयमानेन इंदेडंडांतरेन्यसेत्॥ मागयोदग्विलंतस्यादुत्तरासादनेमितः॥पात्रजा तंपाग्विलंतदुदगग्रंतुपश्चिमेइतिकारिकाकारः। उत्तरतश्चेदुदक्संस्थं असंभवेषा संस्थपश्चिमसंस्थं उदक्संस्थमपानिदेवयानिकः॥अनंतगर्भिणंसायकोशहिदलमेवा च॥प्रादेशमाविज्ञेयंपवित्रंयत्रकुत्रचित्॥ आज्यस्थालीकांस्यमयीयहाताम्ममयी For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तथा॥ पादेशमात्रदीर्घासाग्रहीतच्याऽवृणाशुभा॥ढापादेशमायूतिर्यङ्नातिबृह // 93 // नमुखी॥ मृन्मपौदंबरीवापिचरुस्थालीप्रशस्थतइतिरत्नमालायां॥सुवसंमार्जनार्थाय पंचवाथत्रयोपिवा॥प्रादेशमात्रानगृहीयासमार्गकुशसंज्ञकान्॥१॥ उपयमनकुशाः सप्तपंचवायत्रयोपिवेनियहयज्ञकल्पवल्या॥समिल्लक्षणंपरिभाषायामुक्तं॥अथव लक्षणं॥ वादिरादेःस्व कार्योहस्तमात्रप्रमाणनः॥ अंगुष्ट पर्वरवातंतधिभागदीर्घपुष्क रं॥१॥ // षडत्रिंशांगुलांस्तुचंकारयेत्यादिरादिभिः॥ कर्दमेगोपदाकारंपुष्करंतह // 9 // देवहि॥१॥पुष्करायंषडंशनुरयानं यंगुलविस्तृतं॥ अंगुष्टैकंस्थूलतरेदंडेनस्यत्रकंकण For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मित्यासादन्यां॥२॥ पूर्णपावलक्षणंपरिभाषायामुक्तं // एवमासादनंकृत्यापवित्रच्छे| दनैः कुशैः॥ अंगुष्ठोगुलिपर्वाफ्यांच्छिद्यामादेशसम्मिनमितिकल्पवल्यां॥अंगुलिर नामिकायपर्व॥ पादेशमात्रमुत्सार्योत्पवनंतुविधीयते॥ उहिंगनंतुकर्तव्यमूर्ध्वमूर्ध्वप्रमाणन इनिकल्पवल्यां॥ पोसणेकारणमाहश्रुतिः॥अथपात्राणिप्रोसतीत्युपगम्यतदेवैषामवा सदस्तक्षान्योमेध्यः कश्चिसराहंतीतितदेयतेषामद्भिरमेध्यंकरोतीति। तक्षावार्थकिः॥ नयतिरिक्तोयोन्योवृषलादिःससर्वोप्यमेध्यत्वादशहः॥ तस्यस्पर्शकतं यदेषोपात्राणां दोषजातंतदनेनपोक्षणेननिवर्तयतीतियहयज्ञकल्पवल्यां॥ पाबाणिकमशः प्रोक्ष्य For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मंस्कार, निदध्यात्तामसंचरे॥ असंचरः प्रणीताम्योरंतरेणप्रकीर्तितः॥ स्वालंभान्निर्वपेदाज्यमा भास्कर ज्यस्थाल्यायथार्हतः॥इति कारिकायां॥प्रणीतमुदकंकृत्यास्थाल्यांविःक्षालितानसि पेत्॥ नंडुलाननुमानेनचर-पूर्णायथासवेत्॥ दैवेषिक्षालिताज्ञेयास्तंडुला पैतृकेसरुत्॥ पात्रोक्षणकालेतुचैतेषांपोक्षणभवेदितिकल्पवल्यां। तबाज्यंब्रह्माधिश्रयति॥ता दुत्तरतआचार्यश्चरुमधिश्रयतीतियुगपत्॥ इतिकल्पवल्यां॥ कात्यायनसूत्रेअवरोत्तर मुत्तरर्द हवीट षि॥श्रपणलक्षणकारिकायो॥ अन्वर्यः अपित स्विन्नोपदग्धोकठिनः || // 9 // शभः॥नचातिशिथिलःपच्योनचरुश्चारसस्तथेनि॥कारिकायो॥ द्वयोःपर्यमिकरणं For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कर्तव्यंज्वलदमिना॥ पर्यग्निकरणेकारणमाहश्रुतिः॥तंपर्यमिकरोत्यछिद्रमेवैनमेतद मिनापरिगृण्हातिनाष्ट्रारक्षास्यभिमषेयुरमिहिरक्षसामपहनेनिकल्पवल्यो।तनः॥स्त्र |वसंमार्जयेत्योचमतःसंमार्जनैः कुशैः॥मूलनः पुष्करंयावत्कुशमूलैस्नथायनः॥अमायायु क्ष्यचपुनःप्रतप्यनिदधातितं॥अधोमुरवंतापयित्वासंमृज्योर्ध्वमुखंततः॥ अश्युक्षण तुप्रणीतोदकेनविशेषयचनाभावालणीतानांसर्वार्थत्वाच॥ पुनःमतपनंपूर्ववत्॥निधा नंसमीपे॥सम्मार्गकुशानामपासनंउत्तरतः॥शारयोतरेमौषासनविहितं॥ आहयनीयेमा सनमेके इतिकात्यायनः॥ अनुवासितानांपूर्वणोद्वासितामामपरेणउत्तरतउपचा For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार || रोहियज्ञइनिवचनादमेरुत्तरतउद्दासनं॥ उदास्यपोक्षणीपश्चाद्भागउत्तरतो मेःस्थाप| | भास्कर नं॥इतिकल्पवल्यां॥ तदुहासिनमाज्यपवित्राभ्यामुत्सूयतदेवावेक्ष्य॥ अवेक्षणंअपद्रव्यनिरसनार्थ इतिकल्पपल्या॥ आज्यस्थालीतान्यांप्रोक्षणीरुत्सुनातीतिश्रुतेः॥उसुना तिकरणेपवित्रमुदगमंवामहस्तेधृत्वातन्मूलंदक्षिणहस्तेधृत्वापवित्रकुशमध्यतउत्सुना ति॥ उपग्रहार्थदक्षिणहस्तेनसव्येकुर्यात्॥ रक्षसांतर्जनायवज्जोवाआपआपोहिक शा: एवंपरंपरयाकुशेषुवज्जखादितिकल्पयल्यां // कारिकायां॥ अधोमुरवऊर्ध्वपादः // 9 // पामुरखोहव्यवाहनः॥तिष्ठत्येवस्वभावेनआहुतिःकुत्रदीयते॥सपरित्रांबुहस्तेनरहे / For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | कुर्यास्रदक्षिणां॥ हव्यवाट्सलिलंदृष्यावितिसंमुयोतयेत्॥तिष्ठतीवहास्थीनीति तेः अस्थिस्थानापन्नत्वात्समिधोत्तिष्टायाधानंइनिदेवयानिकः॥ कारिकायो॥अन्यारंभे रुते होमोब्रह्मणादक्षिणेकरे॥बहुकाष्ठेःसमिधीयादर्चिष्मंतंक्रियाक्षम॥ वेणाज्यंग्यहीत्वामे प्रत्यगुत्तरदेशतः॥आरभ्यदिशमानेयीमाज्यधारामृजुहरेत्॥मनसासंस्मरेस्वाहायुक्तंचैयप्रजापति। नैक्रतिदिशमाश्रित्यऐशानींपूर्ववक्षिपेत्॥ तत्रंद्रायपदस्वा हायुक्तंचोपांशकंभवेत्॥ स्वाहेत्याघारयेदेतायाघारावितिभाषित पांच्यौवाजुहुयादे सावृतसंनतमेवच॥ जुहुयादमयेस्वाहासोमायेनितथापरा॥प्रथमंशानकोणायेद्विती For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार यामेयकोणगा॥ससमिद्देशयाचन्होहोनच्येचोत्तराहुती॥ ननुउत्तरत उपचारोयज्ञइति भास्कर // 96 // शास्त्रोकथमेनेआहुतीदक्षिणसंस्थंहूयेतेइतिचेत्सत्यं। आत्माभिमुखस्यामेर्दक्षिणवा | माभिप्रायेणेत्यदोषः॥प्राजापत्याहुती उपाशत्वकारणंहविर्यज्ञकांडेद्रष्टव्यं॥उपांश लक्षण हौत्रसूत्र॥यस्मिन्मंत्रादयोनविज्ञायतेनव्यंजनंकेवलमेवोष्ठचालनंश्वासोवात दुपार्टः शुरिति॥ भूरादिनवसस्विष्टकतेचाद्यचतुष्टये॥अन्चारंभोभवेनेषु सोन्वारं भकुशेनवै॥रूवधारणार्थकारिका॥ अयेधृतार्थनाशायमध्येचैवमृतप्रजा॥मूलेच // 96 // मियतेहोतास्वस्थानं कथं भवेत्॥ अयमध्याच्चयन्मध्यंमूलमध्याञ्चमध्यनः॥ बंधा For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || रयतेविद्वान ज्ञातव्यंचसदाबुधैः॥नर्जनींचबहिःकृत्वाकनिष्ठांचबहिस्तथा॥मध्यमा नामिकांगुष्ठैः स्नुबंधारयतेदिजः॥स्वहोमेसदात्यागः प्रोक्षणीपात्रमध्यनः॥पाणिहोमे त्यागोन॥इतिकुशकंडिकाभाष्यकारादयः॥अनेकस्तृवसाध्यहोमेअनेकस्खुवासादनं तेषांप्रोक्षणंचेतिसिंधुः॥ सर्वत्रत्यागादौद्रव्यप्रक्षेपइतिगदाधरादयः॥उपविशतीवमा ज्येति श्रुतेः उपविश्यैवआहुतिंजुहुयात्॥आज्याहुतेराज्यस्थानीयत्वेनोक्तत्वादितिदेव याज्ञिकः॥ अमिपूजाबहिः प्रोक्तेतिवचनाबहिरेवसर्वपूजनमितिकेचिदाहुः॥ नत्रवि |शेषोविष्णुधर्मोनरे॥ मध्येपिगंधपुष्पादीन्दद्यादमे संशयः॥बहिनैवेद्यमानंदात For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार | व्यमितिनिश्चयइनिशांतिमयूरये॥ // आज्येनव्याहती त्वामूर्भुवःस्वरितिकमा || भास्कर // 97 // त्॥पंचवारुणकंतद्वदनेचैवप्रजापनिमिनिकारिकायां॥ प्राङ्गहाव्याहृतिभिःस्विष्ट कृदन्यच्चेदाज्याइपिरितिसूत्र॥अस्यार्थः॥यत्रहोमेआज्यादन्यविस्यात्॥अत्रहविः शब्देनचरुरेव हविः॥यत्रचरु:स्यात्तत्रमहाव्याहृतिभिःप्राकविष्टकसवति॥अन्य बांतेपीतिभाष्यकारः॥विष्टकहोम: सर्वहोम द्रव्यैः कार्यः॥ लक्षहोमादौचरुशेषस्यधा यसोक्तरिनिशांतिकमलाकरः॥ ॥तनाचार्योमिसमीपउपविश्यान्चादध्यात्॥ आ थान्वाधान॥ यजुषामन्याधानगोभिलहरिहरगदाधरादिभि!क्तवात्स्मातेकर्मणि For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नान्वाधानंतथापिप्रयोगरत्नस्मार्ताल्हासस्मार्तगंगाधर्यादी अन्वाधानोक्तेः प्रचुरतर // शिष्टाचार प्राप्त वाच्चावाप्युच्यते॥ ॥देशकालो अस्मिन्सग्रहमरवरजोदर्शनशां त्यारव्येकर्मणिदेवतापरिग्रहार्थमन्याधानकरिष्ये॥ अस्मिन्नन्वाहितेमौपूर्वणबह्मणो| गमनं॥ उत्तरतः पात्रासादनं॥ पवित्रे॥कांस्यमयीताम्ममयीवाआज्यस्थाली। ताम्मम यीचरुस्थाली॥पालाश्यसमिधः॥पाच्यावाघारो॥ समिद्धतमेआज्यभागी॥पूर्णपात्रंदक्षिणावा॥ एतान्वैकल्पिकान्पदार्थानहंकरिष्ये॥ अथदेवताभिध्यान।।तत्रप्रजापति | इंद्रअमिंसोमंएताः आज्येनप्रत्येकंएकैकयाहुत्या॥ अत्रप्रधान॥ आदित्यादिनवय|| || For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार हान्अर्कादियथालापसमिच्चरुतिलाज्यद्रव्ये प्रत्येकंपतिद्रव्येणअष्टाष्टसंख्याकाभिरा भास्कर // 9 // हुतिभिः॥अधिदेवताप्रत्यधिदेवताश्चतैरेव द्रव्ये प्रत्येकंपनिद्रव्येणचतुश्चतुःसंख्याका भिराहुतिभिः॥विनायकादिपंचदेवता: क्षेत्रपालंपास्तोष्यतिइंद्रादिदशलोकपालांश्चतैरेचा द्रव्यैःप्रत्येकंपतिद्रव्येण वाफ्यांद्वाभ्यां आहुतिभ्यांयक्ष्ये॥ ॥पुनरत्रप्रधानं॥ सूर्य इंद्राणींमुवनेश्वरीशर्कराघृतसंमिश्रपायसतिलाज्यद्रव्यै: प्रत्येकंप्रनिद्रव्येणअष्टाविंश त्यष्टाविंशतिसंख्याकाभिराहुतिभिर्यक्ष्ये।न्यूनातिरिक्तार्थंघृताक्ततिलद्रव्येणसमस्त // 9 // व्याहृतीरष्टाविंशतिसंख्याकाभिराहुतिभिर्यक्ष्ये॥ शेषेणस्विष्टकृतं॥ अमिंवायुसूर्यं / For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अमीवरुणोअमीवरुणोअग्निवरुणंसवितारंविष्णुविश्वान्देवान्मरुनःस्वर्कान्यरुणंआ |दित्यंअदिनिप्रजापतिएताअंगप्रधानार्थीदेवताआज्येनअस्मिन्सयहमरवरजोदर्शनशोत्या रव्येकर्मण्यहंयक्ष्ये॥ ॥दक्षिणतोब्रह्मासनास्तरणंतत्रब्रह्मोपवेशनं॥उत्तरतःप्रणीनासन। वायव्याद्वितीयमासनं॥ततोवामकरणप्रणीताः संग्रयदक्षिणकरगजलंप्रपूर्यभूमौवायव्या सनेनिधायालयोत्तरतोमेरासनेस्थापन॥बर्हिषाप्रदक्षिणमगिपरिस्तीर्यवाईशानादिपूर्वा स्त्रिमिस्त्रिभिर्दज्ञैःपरिस्तरण॥तच्चपागुदगयैः॥दक्षिणतःमागयैः॥प्रत्यगुदगयैः।उत्त रतःप्रागयैः॥अर्थवत्पात्रासादनं। पवित्रच्छेदनादर्भास्त्रयः॥पवित्रेद्वे॥ प्रोक्षणीपात्रो) For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार आज्यस्थाली॥चरुस्याली॥समार्गकुशा: पंच॥ उपयमनकुशा:सप्त॥ समिधस्तिस्त्रः भास्कर // 99 // ॥स्वः॥आज्यं॥ तंडुलाः॥पूर्णपात्र। दक्षिणावरोवा॥ पवित्रच्छेदनैः पवित्रकरणं॥ इयोः पवित्रयोरुपरिपवित्रत्रयंनिधाय॥इयोर्मूलेनौकुशीप्रदक्षिणीरूत्यत्रयाणांमूलायेएकीकृत्य अनामिकांगुष्ठेनद्वयोरयंछेदयेत्॥ द्वयोर्मूलंबीणिचोत्तरतःक्षिपेत्॥पोक्षणीपात्रेपणीतोदकमासिच्यपात्रांतरेणचतुरिं॥वामकरेपवित्रायंदक्षिणे मूलंधृत्यामध्यत: पवित्राभ्यामुत्सयनंप्रोक्षणीपात्रजलस्पेति॥ प्रोक्षणीनांस || ||99 // / व्यहस्ते करणम्॥ दक्षिणहस्तमुत्तानंरुत्वामध्यमानामिकांगुल्योःमध्यप / For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || रुस्था यापाक्षा वभ्यिाभपामुहिंगनं // प्रणीनोदकेनप्रोक्षणीनांप्रोक्षणं॥प्रोक्षण्युदकेंनआज्यस्था ल्या: प्रोक्षण||संमार्गकुशानांप्रोक्षणं॥उपयमनकुशानांप्रोक्षणं॥समिधाप्रोक्षणं॥सुवस्य प्रोक्षणं॥आज्यस्यप्रोक्षण॥तंडुलानांप्रोक्षणं॥पूर्णपात्रस्यप्रोक्षणं॥ प्रणीताम्योर्मध्ये |संचरेप्रोक्षणीनिधानं॥ आज्यस्थाल्यामाज्यनिर्वापः॥सपवित्रकेचरुपात्रेप्रणीतोदकमा सिच्यक्षालिततंदुलप्रक्षेप:॥ब्रह्मणोदक्षिणतआज्याधिश्रयणं॥ आचार्यस्यचरोरधिया यणमाज्यस्योत्तरतः॥ज्वलितोल्मुकेनपर्यमिकरणं॥स्युवस्यप्रतपनं॥ संमार्गकुशैः सुवस्यसंमार्जन॥प्रणीतोदकेनायुक्षणं॥पुनःप्रतपनंदेशेनिधानं // आज्योडासना / For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार चरोरुहासनं। प्रत्युत्पवनवन् पवित्रणाज्योत्पवनं॥ अवेक्षणं॥अपद्रव्यनिरसनं॥ो भास्कर // 10 // | क्षण्याःप्रत्युत्पवनं // उपयमनकुशानादाय॥निषसमिधोक्याधाय॥प्रोक्षण्युदक शेषे णसपवित्रहस्तेनामेः ईशानकोणादारभ्यप्रदक्षिणवत्पर्युक्षणं॥पवित्रयोःप्रणीता सुनिधानं। दक्षिणंजान्याच्यजुहोनि॥तबाधारायान्यभागोचब्रह्मान्वारब्धयेणज हयात्॥मृगीमुद्रयातस्युवेणाज्यमादायप्रजापनिमनसाध्यात्यास्वाहाकारसुच्चैः इदा प्रजापतये उपांश नममेत्युच्चैरुच्चारयेत्॥अमेरुत्तरभागेॐ प्रजापतयेस्वाहा॥ इदं || // 10 // प्रजापनयेनमम // अमेर्दक्षिणभागे॥ ॐ इंद्रायस्वाहा॥ इदमिन्द्रायनमम॥ इत्या / / For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie घारो॥ मध्येसमिडनमेवाज्यामागो॥ ॐ अयथेस्वाहा॥ इदममयेनमम॥ॐ सोमा यस्वाहा // इदंसोमायनमम॥ ततोयजमानेनद्रव्यत्याग:कार्य: ॥यथाकालंप्रत्याहुन नित्यागस्यकर्तुमशक्यत्वात्सर्वमेवहविर्जानंदेवताश्चमनसाध्यात्वाइदंयथादैवतमसनममेतिएवं रूपंत्यागमुच्चारयेद्यजमानः॥ तवच // मंत्रेणोंकारपूतेनस्वाहांतेनवि चक्षणः॥स्वाहावसानेजुहुयाध्यायन्वैमंत्रदेवतां॥१॥योनर्चिषिजुहोत्यमोव्यंगारिणिचमानवः॥मंदामिरामयाबीचदरिद्रश्चैवजायते॥२॥परिणामोवदानस्ययाजैश्चर्य मिपुष्टये॥ तस्मात्समिद्धे होतव्यं नासमिरेकथंचन॥३॥ अर्क:पलाशरयादिरावपामार्गो For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार || थपिप्पलः॥ औदुंबरशमीदूर्वाकुशाश्चसमिधाक्रमात् ॥४॥तिलाज्यंचरुपकंचहवि भास्कर // 10 // मुख्यंप्रकीर्तितमिति॥ इदंसंपादितंसमिच्चरुतिलाज्यादिहविर्द्रव्यंयायायक्ष्यमाणदेव तात्तस्यैतस्यैदेवतायेनमम॥ यथादैवतमस्त ॥इतियजमानेनोच्चार कार्यः॥तवादी |गणानावेतिमंत्रेणगणेशायवराहुतिरेका॥ ॥तत आदित्यादिनवग्रहान्क्रमेण पूर्वोक्तार्कादिसमिच्चरुतिलाज्यद्रव्यैरष्टाष्टसंख्ययाहुवा॥पूर्वोक्तयहहोमद्रव्येणअघि प्रत्यधिदेवताश्चतुश्चतुःसंरव्ययाहुत्या॥ यस्ययहस्ययासमित्सातस्याधिदेवतायाः प्रत्यधिदेवतायाश्चयोज्या॥विनायकादिदिक्पालांतंक्रतुसाद्गुण्यकतुसंरक्षकदेव / For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता: पलाशोदुंबरान्यनमसमिच्चरुनिलाज्यद्रव्येणद्विद्विसंख्ययाजुहोति॥समिधासर लासत्वचाकनिष्ठिकायवस्थूला हादशांगुलदीर्घायाया। अत्रनिसृभिभिरेका हुतिस्तथैवधिपत्रकुशैरेकाहुतिः॥ द्रवद्रव्यंजुवेणेवपाणिनाकठिनंहविरिति॥प्रधा नंपायसंप्रोक्तंसघृतंचसशर्करं। अष्टोत्तरशतं चैवजुहुयात्तिलसर्पिषा॥ इतिऋतु शांनीनारदसंहितायां। ततःसूर्यदेंद्राणीभुवनेश्वरीणांप्रीत्यर्थतिलपायसाज्यद्रव्येण प्रत्येक मष्टोत्तरशतमष्टाविंशतिसंख्ययावाजुहुयात्॥ततःसमस्तव्याहृतिमिस्ति लाज्यद्रव्येणाष्टोत्तरशतमष्टाविंशतिसंख्ययावाजुहुयात्॥ ॥एवं होमंसमाप्या।। For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार! येः स्थापितदेवनानांचोत्तरपूजनकार्य॥ तत्रार्यक्रमः॥पूजा विष्टनचाहुत्योबलिःपू भास्कर // 12 // र्णाहुतिस्तथा ॥संस्त्रवादियिमोकांतं होमशेषसमापनं ॥श्रेय संपायदानंच अभिषेको विसर्जनमिति॥ // अयपू. कृतस्यकर्मणः सांगतासिध्ययस्थापितदेवतानांम डामेश्वोत्तरपूजनंकरिष्ये॥ // मृडामिस्त॥ पूर्वप्रज्वलितोह्यमिहविर्द्रव्यबुभुजितः // तृप्तोनिधूमनिर्णालो मृडामिःपरिकीर्तितइनियहरत्नावल्या॥ॐ अमेनय॑सृपया गये अस्मान्विश्वानिदेववयुनानिविद्वान् ॥योध्यस्म हुग़णमेनोभूयिष्टान्तेन // 12 // ||मउक्तिम्विधेम॥१॥ ॐ मृडामयेनम गंधादिपंचोपचारैः संपूज्यस्थापितदेवताना || For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मुत्तरपूजनं ॐ विश्वानिदेवसवितरितिमंत्रेण॥ ॐ भू० सूर्यादिस्थापितदेवताप्योना म: गंधादिपंचोपचारेःसंपूज्य॥ अनयापूजयामृडामि स्थापितदेवनाश्वप्रीयंता॥ // ततोहुतशेषहविर्द्रव्यंगहिवाब्रह्मान्वारब्धाविष्टकहोमकुर्यात्॥ ॐ अमयेस्विष्टकृते स्वाहा // इदममेखिष्टकतेनमम॥ ॥तनोभूराद्यानवाहुतयः॥ ॐ भूः स्वाहा॥१॥ इदममयेनमम॥ ॐ भुवःस्वाहा॥२॥ इदंवायवेनमम॥ ॐ स्वः स्वाहा॥ 3 // इदसू र्यायन० // ॐ बन्नौ अमेवरुणस्यविद्वान्देवस्यहेड़ो अवयासिसीष्टा ॥वर्जि टोचन्हि तमः शोशुचानोविश्वादेषार्ट सिप्रमुग्ध्य॒स्मत्स्याहा॥ 4 // इदममीवरु For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गाभ्यां // ॐ सत्वन्नौ अमेघमोभवानीनेदिष्टोऽ अस्या उषसोन्युष्टी॥ अययनोच मास्कर // 10 // रुण रराणोधीहिमृडीकट सहयौन एधिस्वाहा॥५॥ इदममीवरुणाय ॐ अया चामेश्य नभिशस्तिपाश्चात्यमित्वमयाउ असि॥अयानोयज्ञबहास्ययानोधेहि भेषज द स्वाहा॥ 6 // इदममयेअयसेन // ॐ येतेशतंवरुणंयेसहसंयज्ञियाःपाशावितता महान्तः॥भि! अद्यसवितोतविष्णुर्विश्वेमुञ्चतुमरुतःखका:स्वाहा॥७॥ इदंवरुणा यसचिवरिष्णवे विश्वामोदेवेन्योमरुद्भ्यः स्वपश्चनमम॥ ॐ उदुत्तमंचरुणपाशमस्पद // 10 // वाधर्मधिमध्यम ग्रंथाय॥अयोधचमादित्यवतेतवानागसो अदितयेस्यामस्वाहा॥८ For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इदंवरुणायादित्यायादिनयेचन // ॐ प्रजापतये स्वाहा॥९॥ इदंप्रजापतयेनमम।। // इतिनवाहुतयः॥ तनोबलिदानं॥ // तच्चैवं॥अम्यायतनस्यसमंतादिक्षुविदिक्षुच दशदिक्पालानामाषभक्त बलयोदेयाः॥ ॥अयपू. कृतस्यकर्मण:सांगतासिध्यर्थंदि पालपूर्वकं आदित्यादिग्रहमंडलादिस्थापितदेवताभ्योबलिदानंकरिष्ये॥ ॥ॐवाता रमिंद्र०॥१॥ प्राच्यादिशिइंद्रसागंसपरिवारंसायुधंसशक्तिकएभिर्गधा|पचारैस्त्वामहंपू जयामि॥ इंद्रायसांगायसपरिवारायसायुधायसशक्तिकायइमंसदीपमाषमक्तबलिंस ||मर्पयामि॥ भोइंद्रदिशंरक्षबलि भक्षममसकुटुंबस्याभ्युदयंकुरु॥आयुःकर्ताक्षेमकर्नाशी For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार तिकर्नापुष्टिकर्तातुष्टिकर्तानिर्विघ्रकर्तावरदोमव॥अनेनबलिदानेनइंद्रःप्रीयतां॥ ॥ए भास्कर // 10 // |सर्वत्रोहः॥ ॐ त्वन्नौऽ अमे॒तवदेव // 2 // आमेय्यादिशिअमिंसांगं एमिर्गधा अग्नयेसा गायसप० भो अमेदिशं. आयुःकर्ता अनेनबलि अभिःप्रीयतां॥ घुमायत्वागि. दक्षिणस्यादिशियमसांगं एभिर्गंधा. यमायसां भोयमदिशं आयुःकर्ता अनेनब लिदा० यमःमीयतां॥ ॐ असुन्चन्तुमयजमानमिच्छ.॥४॥नैर्ऋत्यांदिशिनिक्रनिंसा ए भिगंधा निर्ऋतयेसा ॥मोनिनेदि० अनेनबलि निक्रनिःप्री० // ॐ तत्वांचामि. |||॥५॥पश्चिमायांदिशिवरुणंसां एभिर्गंधा. वरुणाय सां. भोवरुणदिशं. आयुःकनीय // For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अनेनबलि वरुणःप्री०॥ ॐ आनौनियु०॥ 6 // वायव्यांदिशिवायुंसां एमिर्गंधा. यायवेसा मोवायोदिशं०॥ अनेनबलिदा वायुःप्री० // ॐ वयर्ट-सौम ॥७॥उदीच्यादिशिसोमंसा एभिर्गंधा सोमायसां मोसोमदिशं. अनेनबलि. सोमःप्री०॥ॐत मीशानं० ॥८॥ईशान्यांदिशिईश्वरंसां एमिर्गधा ईश्वरायसा भोईवरदिश०॥अनेनबलिदानेनईश्वरःप्री॥पूर्वंशानयोर्मध्येऊायांदिशिब्रह्माणं. ॐ अस्मेरुद्रा०॥ | 9 // पूर्वेशानयोर्मध्येऊळयांदिशिब्रह्माणसांगं एभिर्गधा ब्रह्मणेसा सोब्रह्मन्दि ||श आयुःक• अनेनबलि ब्रह्मापी० // ॐ स्योनायि० ॥१०॥निक्रतिपत्रिमयो-|| For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार मध्येअधःस्थायादिशिअनंतं सांग• एभिर्गंधा. अनंतायसा भोअनंतदिशं आयुःक अनेनब० अनंतःप्री०॥ ॥ततआवाहनमंत्रेणगणेशदुर्गाक्षेत्रपालबलिदान। // ततोयहवेदीसमीपेयहाणांबलिः॥ ॐ आकृष्णेन ॥१॥सूर्यायसांगायसपरिवारायसा युधायसशक्तिकायईश्चरामिरूपाधिपत्यधिदेवतासहितायइमंसदीपमाषभक्तवलिंस.॥ भोसूर्यइमंबलिंग्रहाणममसकुटुंबस्याभ्युदयंकुरु॥आयुःकर्ताक्षेमकर्ताशांतिकर्ता पुष्टिकर्तातुष्टिकर्नानिर्विघ्नकर्तावरदोमवअनेनबलिदानेनसूर्यःप्री० // 1 // ॐ इमन्दै वा०॥२॥सोमायसी उमाबुरूपाधिप्रत्यधिदेवतास. इमं०॥ भोसोमइमंब०॥ॐ॥ For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अगिर्दा // 3 // भोमायसो. स्कंदभूमिरूपाधिप्रत्यधिदेवतास मोमोमइमंबलिंग | // ॐ उद्बुध्यस्वा०॥४॥ बुधायसांगाय. नारायणविष्णुरूपाधिप्रत्यधिदेवतास• इममा पक्ष भोबुधइमं अनेनबलि बुधःप्री०॥ॐ बृहस्पते // 5 // बृहस्पतयेसा ब्रोद्ररू। पाधिप्रत्यधिदेवतासहिताय०॥ भोबृहस्पतेइमं अनेनबलिदा बृहस्पतिःप्री०॥ॐ अनापरिनु० // 6 // शुक्रायसां• इंटेंद्राणीरूपाधिप्रत्यधिदेव ॥भोशकइमंबलिं. अनेनबलिदा० शुक्रःप्रीय // ॐ शन्नो देवी०॥७॥ शनैश्चरायसां यमप्रजापतिरू ॥पाधिप्रत्यधिदे मोशनैश्चर इमंब. अनेनब शनैश्चर:प्री० // ॐ कयानश्चि // 8 // // For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie | राहवेसां कालसर्परूपाधिप्रत्यधिदे भोरा इमंबलिं. अने राहुःप्री-॥ ॐ केतुंरुण्य भास्कर // 106 // // 9 // केतवेसा चित्रगुप्तब्रह्मरूपाधिपत्यधिदे भोके इमंबलिं. अने केतुःप्री०॥ // ततःक्रतुमा गुण्यदेवताफ्योबलिः ॥ॐगणानान्खा०॥१॥गणपतयेसा सशक्तिकायइ भोग ण इमय आयुः अनेन० ॥ॐअम्बेअंबिके॥२॥दुर्गायेसांसशक्तिका 'मोदुर्गेइ आ युःकी अनेनव०॥ ॐ आनोनि ॥३॥वायवेसां. उम. भोवायोइमंब० // ॐघृतं न०॥ 4 // आकाशायसा मोआकागइमं // ॐ वायांकशा०॥५॥अश्विभ्यांसाइ // 16 // मंस भोअश्विनी अनेनब०॥ ॐ वास्तोष्पते // 1 // वास्तोष्य. सा. इमंसभोवास्तो इ For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie मंब. अनेनब॥ ॐ नहिस्पा ॥२॥क्षेत्राधिपतयेसां० इमंस. मोक्षेत्राधिपतेइमंबा लिं॥ // अथवादिक्पालेभ्यएकतंत्रेणेकमेववलिंदद्यात् // ॐ पाच्य दिशेस्वाहा | च्चैदिशेस्वाहादक्षिणार्थदिशेचाहा च्यदिशेस्वाहामनीच्यदिशेस्वाहार्बाच्यदिशेस्वाहो दाच्यदिशेस्वाहा_च्यैदिशेस्वाहो येदिशेस्वाहार्याच्यैदिशेरचाहार्बीच्यैदिरोस्वाहा | च्यैदिशेस्वाहा।।१॥ इंद्रादिदशदिक्पालेय इमंसदीपमाषमतबलिंस भोनोइंद्रादि दशदिक्पालाःदिशरक्षतबलिं आयु:कर्तारः क्षे० अनेनबलि इंद्रादिदशदिक्पालाः || प्री एवंसर्वेप्योगहेश्यएकतंत्रेणैकमेवबलिंदद्यात्॥ॐ यहाँ ऊर्जा तमम्॥१॥आ| For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार दित्यादिनवग्रहदेवताभ्यःअधिप्रत्यधिदेवताविनायकादिवास्नोष्पनिक्षेत्रपालदेवतासहिता मास्कर // 10 // न्यइमंसदीपमापभक्तबलिं मोनोआदिल्य देवताः अधिपत्यधिदे सहिता: इमंब आयुः कर्मः क्षेम० अनेनब० आदित्यादिनवग्रहदेवता अधिप्रत्यधिदेवताविनायकादिवास्तोप्प निक्षेत्रपालदे०स०पीयंतां॥ एवंमातृणामेकमेववलिंदद्यात्॥ ॐ समरज्येदेव्याः॥१॥गौ र्यादिमातृभ्यइमंसदीपमाषभक्तब भोमोगीयोदिमा तरइमंबलिंगृह्णीनआयुःकळ० अनेनबलि गौर्यादिमातरः प्रीयंना॥प्रधानदेवनाश्यएकतंत्रेणेकमेववलिंदद्यात्॥ ॐ // 17 // | आकृष्णे०॥१॥ नानारमिंद्र // 2 // अदित्यैरा॥३॥श्रीचनेल०॥४॥सूर्यइंद्रइंद्राणी मुवने / For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्वरीदेवनाश्यइमंसदीपमाषभक्तबलिंस.॥मोभोसूर्य इंद्रइंद्राणी भुवनेश्वरीदेवताइमंबलिं ग• ममसकुटुं. आयुःकर्व्यः क्षेम० अनेनबलि सूर्यइंद्रइंद्राणीमुवनेश्वरीदे प्रीयंना॥ // अथक्षेत्रपालमहाबलिः॥एकस्मिन्वंशपात्रेकुशानास्तीर्यतदुपरिआहारचतुर्गुणंद्विगुणंवामाषभक्तदध्योदनंजलपात्रंचनिधायहरिद्राकुंकुमादिपताकायुतंकवा॥ अयपू. सक लारिष्टशांतिपूर्वकंपारिप्सितस्यकर्मणः सांगतासिध्यर्थक्षेत्रपालपूजनंबलिदानंचक रिष्ये // ॐ नहिस्पश-॥१॥ इतिमंत्रेणक्षेत्रपालायनमः षोडशोपचारैःसंपूज्यमार्थ येत्॥ // ॐ नमोक्षेत्रपालस्त्वंभूतप्रेतगणे:सह // पूजांबलिंग्रहाणेमंसोम्योभयतु / / For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार सर्वदा॥ आयुरारोग्यमे देहिनिर्विनंकुरुसर्वदा॥१॥ ॐ नमो भगवनक्षेत्रपालचित्र | भास्कर // 18 // तुरंगवाहनसर्वभूतप्रेतपिशाचशाकिनीडाकिनीवेतालादिपरिवृतदध्योदनपियसकलश तिसहितइमापूजागृहाणअनयापूजयाक्षेत्रपाल:प्रीयतां॥ ततोबलिदानं॥ ॥क्षे त्रपालायसांगायभूतप्रेतपिशाचशाकिनीडाकिनीवेतालादिपरिवारयुतायसायुधायस शक्तिकायसवाहनायइमंसदीपमाषक्तवलिंसमर्पयामि॥ भोभोक्षेत्रपालसर्वतोदिशंरक्षब लिंगक्षममसकुटुंबस्याफ्युदयंकुरु॥ आयुःकर्ताक्षेमकर्ताशांतिकर्तापुष्टिकर्तातुष्टिकर्ता ||108 // ||निर्विभकर्तावरदोतव॥ अनेनबलिदानेनक्षेत्रपाल प्रीयतां॥ अनवेक्षमाणेनदुर्ब्राह्मणेन For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बलिंनीत्वाचनुष्यथेनिक्षेपयेत्॥ ॥यस्यवेदश्ववेदीचविछियेतेत्रिपूरुपं ॥सपैद र्ब्राह्मणोज्ञेयः सर्वकर्मसनिंदितइतिस्मृतो॥ ॥ततोयजमानस्तस्यपृष्टतो द्वारपर्यंतंग लाजलंक्षिपेदिकारेनिमंत्रण॥ॐ हिङ्कारायस्वाहाहितायस्वाहाकदन्तस्वाहावक न्दायुस्वाहापोथतेस्वाहाप्रपोथायस्वाहागन्धाय॒स्वाहाघातायस्वाहानिर्विष्टायरचाहोप विष्टायखाहासन्दिनायुस्वाहावलगतेस्वाहासीनायस्वाहाशयानायस्वाहास्वपतेस्वाहा जायतेस्वाहाकूर्जत॒स्वाहाप्रबुद्धायस्वाहाविज़म्भमाणायस्वाहाषिवृत्तायस्वाहासर्ट होनायस्वाहोपस्थितायुस्वाहायनायखाहापाय॑णायस्वाही // 1 // यजमान:पाणिपादं For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कान प्रक्षाल्याचम्यपूर्णाहुनिहोमकुर्यात्॥ ॥अद्यपू० रुतस्यकर्मणःसांगतासिध्ययंव|| ||भास्कर सो रासमन्वितपूर्णाहुनिहोमंकरिष्ये॥ ततःपाचांनरेनुणचतुर्ग्रहीतमाज्यद्वादशयारंग हीखापात्रोपरिसमिधंधृतावस्यफलतांबूलचंदनमाल्यादिभिरलंकृत्यगृहीत्वापासुरा परिनिधायधृक्षोभयपाणियांयजमानस्तिष्ठेत्॥तत्रमंत्राः॥ ॥ॐसमुद्रादुर्मिमधु मा 37 उदारदुपाई. शुनासममृतत्वमानइ॥घृतस्य॒नामगुह्यन्यदस्तिजिहादेवानी ममृतस्यनाभिः ॥१॥व्यन्नामप्रबेवामाघृतस्यास्मिन्यज्ञेधारयामानमौभिः॥उप // 19 // ब्रह्माश्रुणवत्स॒स्यमानच शृङ्गेच्चमीहोर एतन्॥२॥ चत्वारिशृङ्गत्रयोऽ अस्य / / For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पादाद्देशीर्षसप्तहस्तासो अस्य॥विधाबद्धोवृषभोरौरवीतिमहोदेवोमा २७आविवेश॥३॥त्रिधाहितम्पणिभिमुह्यमानङ्गपिदेवासौघृतमन्यविन्दन्॥ इन्द्रःएकट-सू/ र्य एकञ्चजानबेनादेकर्टः स्वधानिष्ठताः॥४॥ एताऽ अर्षन्ति होसमुद्राच्छनवी जारिपुणानावचः॥घृतस्य॒धारी अभिचाकशीमिहिरण्ययौवेतमोमध्य आसाम्॥ ॥५॥सम्यक्सवन्तिसरितोनधेनौ अन्नईदामनसापूयमाना॥एते अर्षन्त्यूर्मयौघृता स्यमृगाः इवक्षिपणोरीषमाणाः // 6 // सिन्धौरिव प्राध्यनेभूघुनासोचातप्रमियः पतय निजि हार॥ पृतस्यधारा अरुषोनबाजीकाष्ठाभिन्दन्नूमिभिःपिन्व॑मानः॥७॥अभि For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार प्रवन्तुसमैनेचुयोर्णा कल्या॒ण्य: स्मय॑मानासोऽअमिम्॥घृतस्यधारी समिधोनसं मास्कर // 110 // नना ाणोहीतिजातवेदाः // 8 // कन्याइवबहुतुमेनुवा उभज्यजाना अति चाकशीमि // यत्रसोमः सूयतेयायज्ञोघृतस्य॒धारी अमितत्पवन्त॥९॥ अभ्यर्षत। सुष्टुतिङ्गथ्यमानिमुस्मासुभद्राऽदविणानिधत्त॥ इमञ्यजन्नयतदेवतानोघृतस्यधा रामधुमत्सयन्ते॥१०॥धामन्तेष्वियम्भुवनमधिश्रितमन्तः समुद्रहालरापि॥अपाम केसमिथेव आतिस्तमस्याममधुमन्तन्त ऊर्मिम्॥११॥ पुनस्वादित्यारुद्राय | // 110 // | संव:समिन्धनाम्पुनर्ब्रह्माणोबसुनीयव३॥घृतेनत्यन्तन्वचर्धयस्वसत्याः सन्तुष / For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जमानस्यकामा // 12 // सुप्ततेऽ अनेसमिधे सुप्मजिव्हाटसप्तऽकर्षय सुप्तधामसि || याणि॥ सुप्त होवा: सप्तधाबायजन्तिसप्तयोनीरार्पणस्वप्नेनस्वाहा ॥१३॥पूर्णाधि |परीपत० // 14 // अथपानरहुतेवाहुतेवायदरथाःकामयेनसोस्या अनिरसितायैकुंश्येदर्यो पहन्तिपूर्णादविपरापतसुपूर्णापुनरापत॥वस्नेवविक्रीणावहाऽ इषमूर्य शतकनो। स्वाहा॥१॥ इदममयेवैश्वानरायवसरुद्रादित्येभ्यः शतक्रनवेसप्तयतेअमयेषत्र्य श्नमम॥ ॥ततोवसोरांजुहुयात् // तत्रमंत्राः॥ ॐ सुप्ततै अमेसमिधर // 1 // शक्रज्यौतिश्चचिवज्योनिश्चसृत्यज्यौतिज्योतिभाश्च॥ शुक्रक्रतुपाचा हाह। For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मारकर संस्कार | // 2 // ईन्याहसनप्रतिसक॥मितश्युसभितश्चसमराह ॥३॥कृतसत्य // 11 // ध्रुवश्चधुरुणश्च॥ध चविधूर्ताचविधारयः // 4 // ऋजिच्चसत्यजित्रसेनजिच्च सुषेणैश्च॥ अग्निमित्रश्चदूरेऽ अमित्रश्चगणः ॥५॥ईदृक्षास एमरक्षास ऊषु ण सुदृक्षास प्रतिसदृक्षास एतैन॥मितासश्नुसम्म॑तासोनो अद्यसभरसोमरु तोयुझे अस्मिन्॥६॥स्वतवाँश्रप्रयासीचसान्तपनश्वगृहमेधीच॥कीडीचशाकीचौ वेषि ॥७॥इन्द्रन्दैवीर्चिशौमुरुतो वमनोभन्यथेन्द्रन्दैवीर्बिशोमरुतो वानोम | // 11 // || वन्॥ एवममयजमानुन्दैवीश्चविशीमानुषीश्चानवानोभवन्तु॥८॥इमस्त For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमूनस्वन्तन्धयापाम्पपीनममेसरिरस्यमध्ये॥ उस जुषस्चमधुमन्तमईन्समुद्रिय सद नमाविंशस्व॥९॥धृतम्मिमिक्षेघृतमस्य // 10 // ॥ब्राह्मणं॥ अथानोचूसोर्धारानुहो ति॥ अत्रैषसवोमिः संस्कृतः स एपोत्रसस्तुतस्मैदेवा एतान्धाराम्पाटण्हँस्तुयेनमपीगस्लादेतुस्मैव॒सव एतान्धाराम्पारण्हस्नुस्मादेनाम्सोहरेत्याचक्षतेतथैवास्माऽ अ यमेतान्धाराम्प्रगृहातितथैनंप्रीणाति॥१॥युद्देवैताम्बुसोर्धारान्नुहोनि॥अभिषेकऽए यास्येषुः एतद्दा एनन्देवाः सर्वक सँस्कृत्यायैनमेतैः कामेरभिषिचत्येन्यावसोही स्यातथैनमयमेतत्सर्वंकस्म संस्कृत्यायेनमेनैः कामैरमिषिचत्येयावसोरिया For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 1112 // संस्कार ज्येनपचरहीतेनोदुम्बर्यास्युचातस्योक्तोबन्धुः॥२॥ वैश्वानरर्द हुत्या मास्कर शिरोवैवैश्वानर-शीष्णेविाऽअन्नमद्यतेथोशीर्षतोवाऽ अतिषिन्थ्यमानोनिपिव्यतेमारुता। हुलाप्राणावैमारुता पाणेरुवा अन्नमयतेथोपाणेषुवा अतिपिच्यमानोभिषिच्यते। नहा अरण्येनूच्योगाग्वा // अरण्येनूच्यो चोवा अन्नमयतेथोवाचावा अभिषिच्य मानोनिषिच्यतेतदेतत्सर्वम्यसुसर्व येतेकामा सेषावसमयीधारायथाक्षीरस्यवासर्पिषो वैवमारम्भायैवेयमाज्याहुर्रियततदेषायसुमयीधारातस्मादेनाम्यसो रेत्याचक्ष // 12 // | ने॥५॥म आहा इन्चमऽ इन्चम इत्यनेनचत्यापीणाम्यनेनचानेनचत्वाभिषि-|| For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ज्याम्यनेनचेत्येतदशोऽइश्चमेदेहीदच्चमऽ इतिसायदेवैषाधारामिम्प्राप्नुयायैतद्यजः प्रतिपद्यते॥५॥एताऽए नन्देवाः॥एतन्नानेनप्रीत्यतैः कामैरभिषिच्चत्येतयात्सोरिया थेनमेतान्कामानयाचन्ततेश्य इष्टुः प्रीतोभिषिक्त एतान्कामान्यच्छन्तथैचैनमतदेनन्ना न्मेनप्रीत्येतैःकामेरभिषिन्येत्यायुसोरियाथैनमेतान्कामान्याचक्षतेतस्मा इष्टमी तोभिषिक्त : एतान्कामान्यतिहोडीकामौसंयुनत्स्यव्यवच्छेदाथयथाव्योमाकसौसयजु देवुन्यज्ञेनकल्पतामिति॥६॥एतदेवा अब्रुवन् ॥केनेमान्कामान्प्रतिगृहीष्यामड़ त्यात्मनेनैवेत्यब्रुवन्यज्ञोवैदेवानामात्मायुज़ उ एययजमानस्यसयदायजनकल्पा / For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार तामित्यात्मनामेकल्पनामित्येवैतदाह // 7 // द्वादशसुकल्पयति // हादशमासाःसंवत्सर सँ || भास्कर (112 // यत्स॒रोगि वानमिर्यावत्यस्यमात्रात्यतैवेनमेतद्न्नेनप्रीणात्यूथोतायतैवैनमेतद्न्नेनानि पिचतिचतुर्दशसुकल्पयत्यष्टासुकल्पयतिदशसुकल्पयनित्रयोदशसुकल्पयनि॥८॥ थार्धन्द्राणिजुहोति॥ सर्वमेतद्यदर्धेन्द्राणिसर्वेणैवैनमेतमीणात्युथोसर्वेणैवैनमेतदभिषि चति॥९॥ अथग्रहान्नुहोनियज्ञाग्रहायज्ञेनैवेनमेनदुन्नेनप्रीणात्य॒थोयतेनैवैनमेत दृन्नेनाभिषिञ्चति॥१०॥अथैतान्यज्ञकृतुन्नुहोति। अमिश्वमेधर्मश्चमः इत्येवैनमे | // 13 // नयज्ञरुतुभिःप्रीणान्यथा एतैरेवैनमेतृयज्ञरुतुभिरभिषिन्नति॥ 11 // अथायुषस्तो / For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ||मान्जुहोति॥ सहेषयज्ञ उवाचनमूनाया विभेमीनिफानेनमतेत्यभितएयमापरिस्त णीयुरिनिनुस्मारेतदमिमभितःपरिस्तृणन्तितृष्णायावैविप्रेमीतिकातेतृप्तिरितिब्राह्मा णस्यैव तृप्तिमनुतृप्येयमितितस्मात्सर स्थितेयजेब्राह्मणतर्पयितवैब्रूयायतमेवैतत्तुप यति॥१२॥ यत्कर्मणात्सरीरिचन्यान्यूनमिहाकरम् // अमिर्ट स्विष्टुडिवान्स्लिष्टर्ट-सु हुतुंकरोतुस्वाहा // 13 // ॥नतस्यायुषकरणं॥ अहामेघांयशप्रज्ञापियांपुष्टिंश्रियंबल।। नेजआयुष्यमारोग्यं देहिमेहव्यवाहन॥१॥ॐत्र्ययुषन्जमदने कश्यपस्पत्र्यायुषम्॥य देवेषुत्र्यायुषन्नन्नौ अस्तुत्र्यायुषम् // प्रस्मनाललाटेग्रीवायांदक्षिणेर्ट सेहदिचत्र्यायुपमि For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार निमतिमंत्र॥ ॥ततःसंस्मयप्राशनं॥पवित्राप्यांमार्जनं॥ अमोपवित्रप्रतिपनिः॥ब्रह्म भास्कर ॥११॥णेपूर्णपात्रदानप्रणीतोदकेन॥ तस्यकर्मण: सांगनासिध्यर्थब्रह्मन्इदंपूर्णपात्रंसद क्षिणाकंतुभ्यमहंसंप्रददे॥प्रतिगृह्यतांइतियजमानोब्रूयात्॥देवस्यवेनिपनिराहानि॥ प्रणीताविमोकः॥आपः शिवेतिविमोकोदकं यजमानःस्वमूनिमामिपिञ्चति॥ ॐ आप: शिवाः शिवतमाःशान्ताःशान्तनमास्तास्नेकण्वन्तोषज१॥ ॥ततः श्रेयः संपादनात आचार्यादयोवरणक्रमेणसंखंश्रेयोदानंकुर्युः॥ // अयेत्यादि रुतस्यसय हमस्य || // 14 // || रजोदर्शनशांत्याव्यस्यकर्मण: यजमानायश्रेयोदानं करिष्ये॥ तबादीवचःप्रतिवचने।। For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिवाआपःसंतु॥संतशिवा आपः॥सौमनस्यमस्त॥अस्तसोमनस्य // अक्षतंचारिष्टंचा स्त॥ अस्वक्षतमरिष्टंच॥ यजमानहस्तेगंधादिदान॥गंधा:पांतुसौमंगल्यंचास्त॥अक्ष ताःपांतुआयुष्यमस्त॥पुष्पाणियांतुसोश्रियमस्त॥ यत्सापंरोगंभकामंअकल्याणंतदूरे प्रतिहतमस्त॥यच्छ्यस्तदस्तु॥ भवन्नियोगेनमया अस्मिन्नारदोक्त सग्रहमखरजोदर्शी नशांत्यारव्येकर्मणियत्हतंआचार्यसंतदुत्पन्नश्रेयःतत्अमुनासाक्षतेनसजलेनपूगीफ लेनतुभ्यमहसंप्रददे॥ पतिगृह्यनोपनिरहामि ॥तेनश्रेयसावंश्रेयोवान्भव॥ भवामी, नितेनवाच्यं // एवमेव ब्रह्मादयोऋविजोजापकादयश्च॥ यहाब्रह्मादयोऋखिजोजापा। For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार काश्चआचार्यद्वारा श्रेयोदानंकुर्युः॥ तद्यथा॥ भवन्नियोगेनमयाअस्मिन्सयहमरवरजो मास्कर दर्शनशोत्याख्येकर्मणियलतंआचार्यत्वं तथाचएभिर्बाह्मणेः सहयरुतंब्रह्मत्वंगाणपत्यं सादस्य तथाचयः रुतोहोमः यः कृतोजप: आचार्यत्वात्ब्रह्मसात्गाणपत्यात्सादस्यात् होमात्जपात्यदुःसन्नश्रेयःनन् अमुनासाक्षतेनसजलेनपूगीफलेनतु श्यमहसंपददे॥तेनश्रेयसायंश्रेयोवाम्भव॥ भवामीतितेनवाच्य॥ ॥ततआचार्यादी नांगंधवस्त्रालंकारादिभिर्यथायिभपूजनंकार्यदानानिच॥स्वर्णगोभूतिलान्दद्यात्सर्व | // 15 // दोषापनुत्तयेइति॥ ॥तत्रस्वर्णदानमंत्रः॥हिरण्यगर्भसंभूतंसौवर्णपीततैजसं॥ तस्यदाने | For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir निदेवेशसर्वदोषान्निवारय॥१॥ इदंयथाशक्तिस्वर्णवातन्निक्र अमुकशर्म नममेति।। गोदानमंत्रः॥ यज्ञसाधनभूतायाविश्वस्याघोघनाशिनी॥विश्वरूपधरादेवःप्रीयनामनयागया। इमांगावागोनिष्क्रयीमूतरजतमुद्राद्रव्यंरजोदर्शनशांतिसांगतासिध्यय प्राचार्यायतुभ्यमहसंप्रददे॥नममेनि॥ ॥भूमिदानमंत्रः॥सर्वभूताश्रयामिराहे णसमुत्धृता // अनंतसस्यफलदाअतः शांतिप्रयञ्चमे॥इदंभूमिदानपातन्नियीभूतयथा शक्तिरजनमुद्राद्रव्यरजोदर ध्यर्थंअमुकशर्मणेब्रा संप्रददे॥नममेति॥ ॥तिलपात्र |दानमंत्रः॥तिला काश्यपसंभूतास्तिला पापहरा स्मृताः॥तिलपात्रप्रदानेनसर्वदोषोविनश्या / For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तु॥ इदंतिलपात्रंवातन्निक * अमुक नममेति // ॥ततोहेमकदलीदानातरम | भास्कर // 16 // ॥सपत्रेसागेदेविरंभास्करवल्लभे॥रक्षमारजसोदोषाढुष्टस्यास्यचिगर्हितात्॥१॥ दानेनानेनमेदेव सविताविश्वतोमुखः॥प्रीतोमवतुमेसद्योदोषहरतुदुष्करं॥२॥ अनेनस र्णकदलीदानेनश्रीसूर्यःप्रीयतां॥ ॥अथमूर्तिदानं॥ देवदेवजगन्नाथजगतांकारणा व्यय॥ मनोहरनमस्तस्यंभास्करप्रीयतामिति // इमाः सूर्यादिचतस्त्रोमूर्तीःसकलशा: सवस्त्राभाचार्याय तुभ्यमहसंप्रददे॥ इदंग्रहमंडलंआचार्यायतुभ्यमहसंप्रददे॥ ततोग्रह | | कलशदेवताकलशानामुदकमेकस्मिन्माएकीकृत्यदूर्वापंचपल्लवैरुदङ्मुख आचार्यनिष्ट For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नचलरोक्रलिजश्चसपत्नीकंयजमानप्रामुखमुपविष्टमभिषिंचेयुः॥ तत्रमंत्राः॥ ॐ ||| आपोहिष्टा // 1 // यो शिव // 2 // नस्माऽअरं ॥३॥आपोऽअस्मान्मातर शुन्धयन्तु घृतेननोनय पुनन्तु॥विश्व-हिरिप्रम्प्रवहन्तुदेवीरुदिदा यह शुचिरापूत एमि॥१॥ इदमापुःप्रवहनाद्यञ्चमलन्यत्॥यञ्चाभिदुद्रोहान्नैतन्यच्चोपे अधीरुणम्।। पौमातस्मादेनंसु पर्वमाननमुचतु॥५॥स्तोकानामिन्दुम्पतिभूर इन्द्रौवृषायमानो | मस्तुग़षाट्॥घृतमुषामनामोदैमाना स्वाहादेवा अमृतामादयन्ताम्॥ ६॥माया | बिन्द्रोसः उपना हस्तुतसंघमादस्तुशूरः // वावृधानस्तविषीर्यस्यपूर्वी?नक्षत्र For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मभिभूतिपुर्ध्यात्॥७॥ आन इन्द्रौदूरादान आसादमिष्टिरुदवसेवामदुम // ओ-| मास्कर |जिष्टेभिर्नृपतिर्बज्वबाहु सङ्ग्रेसमत्सुतुर्वणिः पृतन्यून्॥८॥आन : इन्द्रोहरिभिर्याव च्छा चीनो बसेराधसेच॥तिष्ठातिबज्जीमुघवाधिरप्सीमन्यज्ञमनोबाजेसाती॥९॥ वातारमिन्द्र० // 10 // इमम्मेवरुणश्रुधीहवमुद्यामृडय॥ वामवस्युराके॥११॥ त] खायामि०॥१२॥खन्नोऽअमे०॥१३॥ सत्वन्नौ अमे०॥१४॥ उर्दुत्तमम्बरुण-॥१५॥ वरुणस्योत्तम्भ // 16 // पातरमिम्मानरिन्द्र हवामहेप्रातर्मिवाधरुणापातचि // 17 // ना॥प्रातर्भगम्यूषणम्ब्रह्मणस्पतिम्पातःसोम॑मृतरुद्रर्ट हुवेम ॥१७॥भगप्रणेतर्म For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabeth .org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | गसत्यराधोपगेमान्धियमुवाददैन्नः // भगप्रोजनयुगोभिर धैर्मगप्रवृमिवन्त स्यामा ॥१८॥समुद्रायाघातायस्वाहासरितायाघातायुवाहा॥ अनाधृष्यायाचाायस्वाहा। प्रतिधृष्यायाबातायखाही॥ अवस्यवेवाबातीयवाहीशिमिदायबाबातीयवाही॥१९॥ आप्यायस्व०॥२०॥पचनद्यश्सरस्वतीमर्पियन्तिसत्रौतसः॥सरस्वतीतुपन्चधासोदेशे भवत्सरित्॥२१॥ पुनन्तुमादेवजनाः ॥२२॥पवित्रैणपुनीहिमाशुक्रेर्णदेवदीयत्॥ अमेकाकतुर // 23 // यनैपवित्रमर्चिष्यमेधिननमन्तरा॥ ब्रह्मते पुनातुमा॥ | // 24 // पर्वमानः सो अधन पवित्रंणविचर्षणिः // य पोतासर्पुनातुमा।।२५॥ For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कार भार्यान्देवसविनः पवित्रैणसवेनेच॥ माम्ऍनीहिदिश्वनः // 26 // वैश्वदेवीपुन्तीदे भास्कर // 11 // व्यागायस्यामिमाबव्यस्तन्वोचीतपृष्टाः // तयामदन्त सधुमादेषुयर्द स्यामपनयो रयीणाम्॥२७॥चिसतिर्मापुनातवासनिर्मापुनातुदेवोमासविनापुनात्यछिद्रेण पवित्रेणसूर्यस्यरश्मिभिः // तस्यनेपचित्रपतेपवित्रपूतस्ययकामा पुनेत छकेयम्, ॥२८॥शिरोमेश्रीर्यशोमुखन्विषि केशायुश्मश्रूणि॥रामिाणोऽ अमृत सम्राट्चक्षुर्घिराश्रोत्रम्॥२९॥जिल्हामावाङ्ग होमनोमन्युः स्तुराशाम ॥मो 118 // दाप्रमोदा अङ्गुलीरनिमित्रम्मेसह // 20 // बाहू वलमिन्द्रिय हस्तौमेक / For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मवीर्यम्॥ आत्माक्षत्रसुरोमम॥३१॥पृष्टिभ्रराष्ट्रमुदरमर्द सौघीवाश्यश्रोणी॥ ऊरू अरलीजानीविशोमेडनिसर्वनः ॥३२॥नाभिर्मेचित्तम्विज्ञानम्पायुमें पचिनि मत्॥ आनन्दनन्दावाण्डोमेमग सौभाग्यम्पसः। जायाम्पमान्य मौस्मिविशिराजाप्रतिष्ठितः ॥३३॥पर्यपृथि // 34 // देवस्य सरंम्ब यत्रिय म्यूसी ॥३५॥देवस्य सरस्व यंत्रणाम चामि॥३६॥दे॒वस्य॑ अश्विनी: // 37 // विश्वानि देव ॥३८॥धामृच्छमि // 39 // त्वज्जविष्ट // 10 // भन्नपुते ॥४१॥पालाशभः॥ // // 42 // ओदुम्बरूं॥ 13 // नैय्ययोधपादं // 44 // आश्वत्थं // 45 // वद्देवकल्पाअहो For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 46 // योर शांतिरन्तरि॥४७॥यतौयतह स०॥१८॥ अथपुराणोक्तमंत्रः॥सुरास्वामभि भास्कर // 119 // चिंतुब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥वासदेवोजगन्नाथस्तथासंकर्षणोविसः॥१॥प्रद्युम्मश्चानिरु/ इनभवंतुविजयायते॥आरवंडलोमिभगवान्यमोवैनैर्ऋतस्तथा॥२॥वरुण:पवा) नश्चैवधनाध्यक्षस्तथाशिवः॥ ब्रह्मणासहिताःसर्वेदिक्पालाः पातुतेसदा॥३॥की तिर्लक्ष्मीधृतिर्मधापुष्टिः श्रदाक्रियामतिः॥ बुद्धिलज्जावपुःशांतिस्तुष्टिःकोतिस्तुमा | तरः॥४॥एतास्त्वामभिषिचंतुदेवपल्यःसमागताः॥ आदित्यचंद्रमाभीमबुधजीव | // 19 // सितार्कजाः॥५॥ यहास्वामभिषिंचंतुराहु-केतुश्चनर्पिताः॥ देवदानवगंधर्वायक्षरा // For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्षसपन्नगाः॥६॥ऋषयोमानवागावोदेवमातरएवच॥ देवपल्याद्रुमानागादेत्याना प्सरसांगणा:॥७॥ अस्याणिसर्वशरमाणिराजानोवाहनानिच॥औषधानिचरत्ना|निकालस्यावयवाश्चये॥८॥सरितःसागराःशेलास्तीर्थानिजलदानदाः॥एनेत्वाम भिषिचतुसर्वकामार्थसिद्धये॥९॥ सर्वेषांवा // 49 // अमृताभिषेकीस्त॥एवमभिषे कानंतरंसर्वोषधीरनुलिप्यशुद्धोदकेनस्नाबाउभयोः स्नानवस्नत्यागः॥यस्याग्याचा र्यायदयात्।। शुक्लमाल्यांबरघरोधृतमंगलतिलक:सपत्नीकोयजमानः स्वामनेउपा विश्याचम्याज्यावलोकनं कुर्यात्॥ ॐ रूपेणवोरूपमभ्यागान्तुथोच्चिन्यवेदाधि / For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 120 // भजतु॥ तस्यपथाप्रेनचन्द्रदक्षिणाधिस्वपश्यव्यन्तरिक्षन्यतस्वसदस्यै ॥१॥रुपर्टः भास्कर रूपम्प्रतिरूपोवावृतदस्यरूपम्प्रतिचक्षणाय // इन्द्रोमायाभि:पुरुरूपएतेयुक्ता ह्यस्यहरूयातादशे त्ययवैहयोयम्वैदशचसहस्राणियहूनिचनन्तातदेतद्ब्रह्मपूर्वमनम बाह्यजमनुः सर्वानुशासनम्॥१॥ इदंआज्यपाबंसदक्षिणाकंआचार्याय तुभ्यमहसंपा ददे॥ // नतोब्राह्मणभोजनसंकल्पः॥रुतस्यकर्मणःसांगतासिध्यर्थयथाशक्तिब्राह्म णान्मोजयिष्ये।तेनश्रीकर्मांगदेवताःप्रीयंतां॥ ॥कर्मसांगतासिध्यर्थआचार्याय | // 120 // दक्षिणांदयात्॥ ऋषिगादिप्योयथाशक्ति दक्षिणांदवा अन्येष्योब्राह्मणेप्योयथाश For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie क्तिभूयसींदक्षिणादातुमहमुत्सृजेइतिदत्वा॥तेषामाशियोगृह्णीयात् // ततोदेवतामिविस जनं॥ यातुयहगणाः सर्वेस्खशक्त्यापूजितामया॥ इष्टकामप्रसिध्यर्थपुनरागमनायचा ॐ उतिष्ठब्रह्मणस्यतेदेवयन्तस्त्वेमहे॥ उपप्रयन्तुमरुतः सुदानव इन्द्रावासचौ॥१॥ आवाहितदेवनाः स्वस्थानेगछत॥ गच्छगच्छसुरश्रेष्ठस्वस्थानेपरमेश्वर॥यत्र ब्रह्मादयोदेवास्तवगछहुताशन॥१॥ॐययज्ञछयज्ञपतिङ्ग खाँयोनिङ्गकृस्वाही।एष तैयज्ञोयज्ञपतेसहस्तवासवीरमर्जुषस्नुस्खाहो॥१॥यज्ञनारायणस्वस्थानेगच्छाम || याअमुकमासपक्षतिथ्यादियथाकालेययादेशेयथाशक्किद्रव्यादिकेनयत्कृतनारदोक्तरजो For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार, दर्शनशांत्यारव्यंकर्मतत्कालहीनंपक्तिहीनंश्रद्धाहीनंब्राह्मणानांवचनान्त्रीसूर्याद्यावाहि | मास्कर तदेव ताप्रसादात्सर्वंपरिपूर्णमस्तितिभवेतोब्रुवंतु॥ अस्सुपरिपूर्णइतिब्राह्मणाब्रूयः॥प्रमा दाकुर्वतांकर्मप्रच्यवेदाध्वरेषुयत्॥स्मरणादेवतद्विष्णोः संपूर्णस्यादिनिश्रुतिः।।१।।यस्यस्मृत्याचनामोत्न्यातपोयज्ञक्रियादिषु॥न्यूनसंपूर्णनांयातिसद्योवंदेतमच्युतं॥२॥ॐपि णवेनमोविष्णवेनमोविष्णवेनमः॥३॥एवंयः कुरुतेशांतिनारदोक्तप्रमाणतः॥ तदनिष्ठं तुसकलंसद्यएवविनश्यतीनि॥इतिसंस्कारसास्करेसयहमखनारदोक्तरजोदर्शनशांतिप योगः॥ ॥अथगर्भाधानसंस्कारनिर्णयः॥ गर्भाधानसीमंतोन्नयनेतुस्तीसंस्कारत्वा- // || // 11 // For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सतिगर्मनावर्तेते॥किंतुप्रथमगर्नेएवकार्य॥ इतिधर्मसिंधौ॥ तबप्रथमरजोदर्शनेत्र योदशदोषाः तेषांफलानिचज्योतिःशास्त्रे उक्तानि॥ अथप्रथमौशिष्टाचाराकर्तव्यमा ह॥संस्कारकोस्तुओकश्यपः॥ प्रथमौतुपुष्पिण्याः पतिपुत्रवतीस्त्रियः॥ अक्षतैरासनकुर्मुस्तस्मिंस्तामुपवेशयेत्॥ हरिद्रापुष्पगंयादीन्दद्या तांबूलकंरजआशिषोवाचयेयु ताःपतिपुत्रवतीभव॥दीपैर्नीराजनंकुर्य:सदीपेवासयेद्गृहे॥ता:सर्वाःपूजयेत्पश्चाद्धपुष्पा क्षतादिभिः॥लवणापूपमुगादिदद्यात्ताभ्यः स्वशक्तिनइति॥ // सर्वर्तुसाधारणविशेष | माह॥ ॥वसिष्ठः॥ विरारजस्वलाऽ शुचिभर्वति॥साज्यान्नसुंजीयान्नामुनाया। For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 122 // संस्कार || दधाशयीतनदिवास्वप्यान्नाग्निंस्पृशेन्नरज्वादिस्पृशेन्नदंताधारयेन्नपुष्पायलंकरणंनय हान्निरीक्षेतनश्लीलंकिंचिदाचरेन्ननूतनजीर्णखर्परेणजलंपिबेन्नांजलिनापिबेन्नलोहेनायसे न॥ तानेणविज्ञायतआहारेगोरसंवर्जयेदिति॥ // अथरजस्वलाशदिप्रकारः॥स्मृत्यर्थसारे॥ रजस्वलाषष्ठिमृत्तिकाभिःशौचंरुवामप्रक्षाल्यदंतधावनपूर्वकंसंगवेसशिराः मायादिति॥ ॥अथगर्भाधानकालः॥पारस्करः॥ तामुदुह्ययथर्तुप्रवेशनं। तांबधूपू तिविधिनाउदुह्यविवाहयित्वायथर्तुऋतावनोपवेशनमभिगमनं कुर्यादित्यर्थः॥ याज्ञव // 122 // ल्यः॥षोडशर्तुर्निशाः स्त्रीणांतस्मिन्युग्मासुसंविशेत्॥ ब्रह्मचार्ययपर्वाण्यायाश्चतस्त्रश्च For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वर्जयेत्॥स्त्रीणांगर्भधारणयोग्यावस्थोपलक्षिन: कालक्रतुः॥सचरजोदर्शनदिवसादा / रभ्यषोडशाहोरात्र॥तस्मिन्नृतीयुग्माससमासुरात्रिषु॥राविग्रहणादिवसप्रतिषेधः॥ संधि शेद्गच्छेत्॥ पुत्रार्थ॥ युग्मास्थितिबहुवचनंसमुच्चयार्थमतश्चैकस्मिन्नपिऋतीअप्रनिषि डासुयुग्मास सर्वासरात्रिषुगच्छेत्॥एवंगच्छन्ब्रह्मचार्यवभवति॥ अतोयबब्रह्मचर्य श्राद्धादिषुचोदितंतगच्छतोपिनब्रह्मचर्यस्खलनदोषोति॥किंचपर्वण्यायाश्चतस्रश्न वर्जयेत्सर्वाणीतिवहुवचनावगमादष्टमीचतुर्दश्योर्महणं॥ अबसर्वासुयुग्मासरात्रिषुग ||मनमावश्यक॥तञ्चैकस्यांरात्रौसकदेवकार्य। इदंचौगमनमन्यकालेप्रतिबंधादिनाग। For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार मनासंभवेत्राद्धैकादश्यादावपिकार्य।यतुहेमाद्रीचरहस्ये॥दिवाजन्मदिनेचैवनकुर्या 'मास्कर // 123 // |न्मेथुनंबती॥श्राद्धंदत्याचभुत्वाचश्रेयोर्थीनचपर्वसितितदनृतुविषयं॥तथाचगरपरि ||शिष्टे॥यदिदिवांमैथुनंबजेल्लीबा अल्पवीर्या अल्पायुषश्रप्रसूयते॥ तस्मादेत दर्ज|येदिति॥स्त्रीणांयोगपद्येतुक्रतोगमनक्रममाह। योगपयेतुतीर्थानांविषादिक्रमनोब जेत्॥रक्षणार्थमपुत्राणांग्रहणक्रमशोपिवेति॥ तीर्थंक्रतुः॥विषादिवर्णक्रमेणपात्र |विवाहक्रमश्चेनि॥ ॥अगमनेदोषमाह॥पराशरः॥ऋतुरुनानांतुयोमार्यांसन्निधोनो ||123 // पगच्छति॥घोरायांब्रह्महत्यायायुज्यतेनात्रसंशयइति॥ अस्यापवादमाहमदनरत्नेव्यासः For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | // व्याधितोबंधनस्थोवाप्रवासेपथपर्वस॥ऋतुकालेपिनारीणांब्रह्महत्यांप्रमुच्यतइति|| |॥गर्भाधानाकरणेप्रायश्चित्तमाह॥पारिजातेआश्वलायनः॥ गर्भाधानस्याकरणान |स्यांजातस्तदुष्यति॥ अरुखागांडिजेदला कर्यास्सुंसवनंपति:॥ ऋतौगमनेपराशरः॥ कतीतुगर्भशंकित्वात्मानंमैथुनिनःस्मृत।। अन्तौतुयदाग छोचंमूत्रपुरीषवत्॥ स्त्रियास्तुनस्मानं // उमावष्यसुचीस्यातांदंपतीशयनंगतो॥शयनादुस्थितानारीशचिः स्यादचिः पुमानिनिवृद्धशातातपोक्तेः॥ // प्रथमर्तोःपूर्वस्वीगमननकार्यमित्याहा श्वलायनः॥ प्राग्रजोदर्शनासत्नीनेयाद्गत्यापनत्यधः॥ व्यर्थीकारेणशकस्यब्रह्मह For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार त्यामवाप्नुयादिति॥ // आद्यौगर्भाधानंचमलमासशकास्तादायपिकार्य॥उत्सवेषु भास्कर // 124 // |चसर्वेषुसीभंतेऋतुजन्मसुं॥सरासरगुरोश्चैवमोट्यदोषोनविद्यतेइतिनिबंधेगूक्तेः॥ |दिनशद्विस्तुज्योति शास्येउक्ता॥ ॥अथगर्भाधानप्रयोगः॥ तच्चक्रतुदर्शनमारण्य आद्यरात्रिचतुर्कपर्वादिनिषिद्धदिनानिचवर्जयित्वा॥ आद्य नियतेचगुरुशकास्तमल मासादिदोपोनास्ति॥ तच्चज्योतिःशास्त्रोक्तशादिनेशभकाले कार्यं ॥नवयुग्मासुराधि पुपुत्र: अयुग्मासुकन्याजायतेइति॥तवार्यक्रमः ॥गारव्येमावनांदीयजतिविधुबलं ||124 // प्रातफस्नापयेत्तांदोषेशांतिप्रकुर्याइसनथफलधान्यार्पणंसूर्यवीक्ष्य॥ यत्नद्रावोस्वायी | For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रमयनिकुशालोबाह्यरत्यासुताप्त्येगबातांनागरेणप्रतिकुसुमसरोलंभ स्यात्तुयत्ते॥१॥ अथर्तुमतीस्त्रीनूतनवस्त्रकंचुकींचपरिधायमाल्यापरणैरलंकृत्यशभासनेप्राङ्मुरबमुप विशेत्॥तनःपनिपुत्राद्यवछिन्नसंतत्यन्विताप्तिः कुलवृद्धसुमंगलस्त्रीभिगेधूिमै रि केलादिनानाफलैस्तत्सल्लवैश्वप्रक्षेपणंवृद्धाचारयाःफसिनीरितिमंत्रेणकारयेत् // आच म्यप्राणानायम्यदेशकालोसंकीर्त्य अस्याःमममार्यायाःप्रथमगतिशयद्वारा अस्यांज निष्यमाणसर्वगर्माणांवीजगर्भसमुद्भपैनोनिवर्हणार्थगर्भाधानाख्यसंस्कारकहिंकरिष्येइनि कतनिशिकर्मणोमंबाभिज्ञानेसतिसूर्यावलोकनोत्तरंविपाशिषोग्टहीत्वामातृविसर्जनादि| For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार संपायराबावभिगमनादिकं कुर्यात्॥अथमंत्राणामज्ञानेविशेषः॥ अस्याः मम भार्या भास्कर // 125 // निबर्हणार्थगर्भाधानसंस्कारनिशिकर्मणादिवापरुष्यमाणसद्य मंत्रजपपूर्वकंगर्भाधानारज्यं, कहिंकरिष्येइतिसूर्यावलोकनोत्तरंसर्वान्मंत्रान्पठित्वामातृगणविसर्जयेदित्येकःपक्षः तदंगविहितंगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमानकापूजननांदीश्राइंचकरिष्येइति| कला॥ आदित्यंगर्ममित्यादित्यमवेक्षते॥ॐ आदित्सङ्गम्पियसासमविसहस्रस्य पतिमाम्बिश्वरूपम्॥परिडिहामाभिर्म-स्था: शतायुषणुहिचीयमाना // 1 // |नेनमंत्रेणदंपत्तियांसूर्यावलोकनमस्कारश्च॥ ततःसायंकालीनंनित्यकर्मरुत्योभोक For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्लांबरधारणानुलेपनमाल्यापरणालंकनीसदीपेशयनागारेसखशय्याप्रसारितक्रम। मंचकमारुह्यसुमुहूर्तस्त्रियमुत्तानीमाक्झिारःशयितांकलाभातस्याः नाभिदेशोहस्तं दत्वाभिमृष्यजपेत्।। अंपूषाभग सवितामेददातुरुद्रः कल्पयतुललामगुम्बिष्णुनिडूल्यनुलष्टारूपाणिपिर्ट शतु॥ आसिञ्चतुप्रजापतिर्धातागर्भन्दधातुते॥गर्भधेहिसि नीचालिग धेहिपृथुष्टुकेगते अश्विनौदेवावाधत्तांपुष्करखजी॥तेजोवैश्वानरोदद्यादथब्रह्मानुमन्त्रयते॥ ब्रह्मागर्मन्दधातुते॥अथाभिगमनं॥ ॐ गायत्रेणत्वाल दसामन्यामित्रैष्टुमेनाछन्दसामन्यामिजागतेनाछन्दसामन्यामि॥१॥रेतोमूत्र For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsun Gyanmandie संस्कार विजेहातियोनिम्प्रविशर्दिन्द्रियम्॥गर्भोजरायुणावृत उल्बजहाति जन्मना॥ऋ भास्कर // 126 // ते सत्यमिन्द्रियधिपान क्रमन्धमा इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पोमृतम्मधु॥१॥अभि गमनोत्तरंनस्या दक्षिणस्कंधस्योपरिहस्तंनीत्वातेनहृदयमालमते॥ॐ यत्तेसुशीमे हृदयन्दिविचन्द्रमसिश्रितम्॥वेदाहन्तन्मान्तद्विद्यासश्येमशरदः शतन्जीवेमशरदः शतर्ट शृणुयामशरदःशतम्॥१॥रुतस्यकर्मणःसांगतासिध्यर्थयथाशक्तिब्राह्मणा भोजयिष्ये।तेनश्रीकर्मांगदेवताःप्रीयंतां॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृही | // 126|| खा॥यातुमा तृगणाःसर्वेइतिमातॄणांविसर्जनकार्यम्॥ इति संस्कारभास्करेगर्भाधान For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || संस्कारः॥ // सायदिगर्भनदधीननदोषधंपतिःकुर्यात् ॥ऋतुस्मानायांचतुर्थेहनिवाषोडश रात्रिमध्येकस्मिंश्चियुग्मेन्हिपुष्य नक्षत्रादिनाचंद्रमायुज्येततदन्हिकमतीमुपोष्यत्तद्राबोसि 6 ह्याः श्वेतपुष्ण्याबृहत्यामूलमुत्थाप्योदपेपंपिष्टवादक्षिणस्यांनासिकायामासिंचतिभा // ॥तत्रमंत्रः॥ ॐ इयमौषधीबायमाणासहमानासरस्वती॥ अस्याऽअहंबृहत्या पुत्र पितुरिवनामजयनम्॥१॥ इनिसंस्कार भास्करेगर्भधारणार्थमौषधं॥ // अथपुंसवनकर्म णोनिर्णयः क्रमश्वोच्यते॥ पुंसवनंतुगर्म संस्कारत्वाप्रतिग:कार्यमितिधर्मसिंधौ॥ पुंसव नसंस्कारेगुरुशुक्रास्तमलमासादिदोषोनास्तीतिसंस्काररत्नमालायो॥ ॥प्रयोगपा हिंगणी. For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार रिजानेजानूकर्ण्य:॥ ॥द्विनीयेवानृतीयेवामासिपुंसवनं भवेत्॥व्यक्ते गर्भभवेत्कार्यसीमते भास्कर ॥१२॥नसहाथवेनि॥ ॥तगर्भाधानप्रतिमासेहितीयेतृतीयेयायस्मिन्नहनिपुनक्षत्रेणचंद्र मायुज्येततस्मिन्नहनिगर्भिणीमुपवास्यरात्रौन्ययोधावरोहान्चंगांवोदकेनपिष्वानासिका यांदक्षिणपुटे आसिंचनिभर्ताहिरण्यगर्भाय समझतइत्येताभ्यामृगया॥न्यग्रोधोवटवृक्षः ना स्यअवरोहा अतिसंबंअवाचीनंजायमानाः अंकुराः तस्यशारखायाःशृंगांश्चनदकुरान उदकेन मिष्ट्रत्येक पक्षः॥ कुशकंटकर्द सोमार्ट शंचैके // एकेषामाचार्याणांमतेन्यमोधावरोहोकरेषु // 27 // पिष्यमाणेषुकशकंटकं कुशमूलांकुरं सोमायुंसोमलताखंडंचतन्मध्येपेषणेनवरुनगालिनका | 1 पारंव्या. 2 दक्षिणदिशेसजाहलेल्या. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir य। सोमलतातावेगुडूचीलताब्राह्मीयायाया॥एतत्पक्षेद्रव्यचतुष्टयपेषणकार्यमिति॥तवा |यंक्रमः॥पुंसारख्येमातनांदीन्यजनिपुरुष स्पंदनालाग्दिमासेविससेवाप्युपोष्यानिशि सुवटमवानं कुरान्पेष्यवार्भिः॥सोमाधुकोशकंटान्सिपनिचवसनेगालिनंदक्षिनासारंधे क्षिप्त्वासमंत्रसजलमभिसषेदंकमध्येशरावं // 1 // // अथप्रयोगः॥ आचम्यप्राणाना यम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्या मममार्यायाः उसस्यमानगर्भस्यबैजिकगार्मिकदोषपरि हारार्थपुरूपताज्ञानोदयप्रतिरोधपरिहारद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थपुंसवनंकरिष्ये।तत्रनिविप्रार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमातृकापूजनंवसोहराआयुष्यमंत्रजपंनां For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार // 128 // दीश्राद्धंचकरिष्येइनिकृत्वा अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापति:प्रीयतामितिवदेत्॥ ननस्तांग | भास्कर र्मिणीमापयित्वाहनेवाससीपरिधाप्योपवास्य॥ नतोरात्रोन्ययोधावरोहांकुरांश्चकुशकंटक सोमलताखंडंचोदकेनपिष्वापेषितोदकंचनगालिनरुत्वागर्भिणीदक्षिणनासिकायामासिंच तिभा॥ नत्रमंत्री॥ ॐ हिरण्यगर्म० // 1 // अयः सम्भृतः पृथिव्यैरसाच्चविश्यक | र्मणः समपर्जुनाये॥ तस्यत्वष्टाविदधंद्रूपमैतितन्मय॑स्यदेवलमाजानमये॥२॥ कूर्मपित्त चोपस्थेकत्येतिउदकपूर्णशरावंअंकेनिधायेति॥सयदिकामयेतबीर्यचान्स्यादयंग-||१२८॥ स्तदानस्याः स्त्रियाअंके उदकपूर्णशरावंनिधाया गर्भिण्याउदरं अनामिकायेणस्पृश / For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नार्ममतिमचयते।। ॐ सुपर्णोसिगरुत्मास्त्रिवृत्तेशिरोगायत्रच्चक्षुर्वृहद्रथेतरेपक्षो। स्तोम आत्माच्छन्दा स्यङ्गनिय पिनाम॥सामतेतनू/मव्यन्यज्ञायज्ञियस्पुच्छन्धि प्रया शफार॥ सुपर्णोसिगुरुत्मान्दिवङ्ग-स्वःपत // 1 // इत्यनेनमंत्रेण॥ कृतस्यक म सांगतासि स्मृत्युक्तान्दशसंख्याकान्ब्राह्मणाभोजयिष्ये।ब्राह्मणेभ्योदक्षिणांदलाते राशिषोगृहीत्या॥यातुमातृगणाः सर्वतिमातॄणांविसर्जनकुर्यात्॥ इतिसंस्कारभास्करेषु सवनसंस्कारप्रयोगः॥ ॥अथगर्भिणीधर्माः॥पाये॥ गर्मिण्यधिकारेअदितिंप्रतिक श्यपः॥नायस्करेषूपविशेन्मुसलोखलादिषु॥ अवस्करेषुमार्जन्यादिषु॥नोपस्करेतिपाठां For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 129 // तरेउपस्करशब्देनशूर्पादिज्ञेयं॥ जलंचनावगाहेनशून्यागारंविवर्जयेत्॥ वल्मीकेनाधितिष्ठे |तनचोहिममनाभवेत् ॥विलखेन्नन'मिनांगारेणनामस्मना॥नशयालुः सदातिष्ठेद्या यामंचविवर्जयेत्॥नतुषागारतस्मास्थिकपालेषुसमाविशेत्॥वर्जयेत्कलहंगेहेगावभगतयै वच॥ नमुक्तकेशातिष्ठेतनाशचिःस्यात्कदाचन॥नशयीतोत्तरशिरानचैवाधःशिराः कचित्॥ नवस्त्रहीनानोछिष्टानचाचरणातथा॥नामंगल्यांवदेवाणीनचहास्याधिकासवेत्॥कुर्या छुश्रूषयानित्यपूजामांगल्यतत्सरा॥तिष्ठेप्रसन्नवदनासदासर्तुर्हितेरतेति॥ भविष्ये॥संध्या // 29 // यांनैवभोक्तव्यंगर्भिण्यावरवर्णिनि॥स्थातव्यंनचगंतव्यंवृक्षमूलेचसर्वदा॥नदुर्मुखीसदातिशेख For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ट्वाच्छायांविवर्जयेत्॥ सर्वोषधीभिः कोष्णेनवारिणास्नानमाचरेत्॥ईषदुष्णकोणेशस्तरक्षात भूषाचवास्तपूजनतत्परा॥ दानशीलातृतीयायांपार्वत्यानक्तमाचरेत्॥गर्भिणीकुंजराचादिशै लहादिरोहण॥व्यायामंशीघ्रगमनंशकटारोहणंत्यजेत्॥शोकरक्तविमोक्षचसाहसंकुक्कुटा सन॥ व्यवायंचदिवास्वापरात्रौजागरणत्यजेत्॥ अतिरुक्षेतुनाश्नीयादत्यम्लमतिभोजन। अत्युष्णमनिशीतंचगुहारविवर्जयेत् // इतिवृत्ताभवेन्नारीविशेषेणतुगर्भिणी॥यश्वतस्यांभवेत्पुत्रःस्थिरायुर्वृद्धिसंयुतः॥ अन्यथागर्भपतनमवाप्नोतिनसंशयइति॥ मार्कंडेयोपि ॥वृक्षंमहींचनाकामेन्नप्राकारंपयोनिधि॥परिखांचनचाकामेदबलागर्भधारिणी॥गर्भर For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार खासदाकार्यानित्यंशोचनिषेवणान्॥ प्रशस्तमंत्रलिखनाउनमाल्यानुलेपनादिति॥स्मृत्यनरे ||भास्कर // 10 // भूम्यांचैवोच्चनीचायामारोहश्चापरोहण॥ नदीपनरणेचैवशकटारोहणनथा।उयौषधंनथाक्षारंमैयु निमारचा हणं // रुतेपुंसवने चैवगर्भिणीपरिवर्जयेत्॥गर्भयहणंचश्रमादिलिंजर्वेदितव्यं॥गृहीत गर्भायाः सद्यःश्रमोग्लानिश्चजायते॥पिपासायास:सक्थिस्थंदनंशुक्रशोणिनयोरनुसंबं |धीयोन्या:स्फुरणचेत्यादि // अन्यचप्रयोगार्णवेस्मृत्यंतरे॥ दानंपकानशिक्षायाःपरिवेषणमे विच॥पचनेनचकर्तव्यंगर्भिण्यासर्वथैवविति॥ इनिसंक्षेपेणगर्भिणीधर्माः॥ // अथगर्मिणी ||130 // पतिधर्माः॥गर्भिणीवांछिन्द्रव्यंतस्यैदयायथोचित॥ सूतेचिरायुषंपुत्रमन्यथादोषमर्हतीति। For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir याज्ञवल्क्यः॥ दोहदस्याप्रदानेनग दोषमयामुयात्॥वैरूप्यंमरणंचापितस्माकार्यप्रियस्त्रिया इति // दोहदंगर्भिणीभियं॥स्मृतिचिंतामणो। सोनार्यागर्भिणीयस्यचेत्स्यात्सूनोश्चौलंक्षौर कसीत्मनश्च॥ गेहारंभस्तंभसंस्थापनंचवार्धिस्नानं नैवकर्याच्चयात्रामिति ॥दक्षः॥ ऋतुइ येव्यतीनेतुनकुर्यान्मौजिबंधनं॥ अभ्याधानंगयात्राइंचपनंच विवर्जयेदिति॥कालविधा ने॥ोरंशवानुगमनंनवलंतनंचयुद्धंचवास्तुकरणंखतिदूरयानं॥उहाहमोपनयनंजलधे बिगाहं आयुःक्षयोपयनिगर्भिणिकापतीनां॥ वगाहइत्यत्रअवेत्युपसर्गाययवाकारस्यभागुस्मितेनलोपः ॥क्षोरंवपनं॥तच्चारकर्तनस्याप्युपलक्षणं // नोदन्यतोनसिस्नायान्नचश्मा For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार 131 // श्शादिकर्तयेत्॥ अंतर्वल्याः पतिःकुर्वन्नप्रजाभवतिध्रुवमिनिऋतुस्मरणात्॥ यत्तु॥ वपन |स्यनिषेधेपिकर्तनंवैविधीयतेतिस्मृत्यंतरवचनं॥तद्गर्भिणीपतिभिन्नानांजीव पितृकादीनायोवपननिषेधस्लत्रकर्तनविधानपरं॥ संघहे॥ दहनंवपर्नचैवपर्वतारोहणतथा॥ नाया रोहणंचैववर्जयेद्गर्भिणीपनिरिति॥स्मृत्यनरे॥गर्मिण्यामपिभार्यायांविवाहेप्यथवाव्रते॥ सपितापिचपेकेशान्गौतम्यांसिंहगेगुराविति॥विवाहेइत्यत्रनिवृत्तेपीतिशेषः॥एवंव्रतेइ त्यत्र॥ गौतम्यामितिगोनम्यसन्निहिनदेशनिवृत्यर्थ।सिंहगेयरापितितीर्थयात्रांतरोपलक्ष | // 131 // ॥विवाहेबतबंधेचगर्मिणीपतिरेव च ॥मुंडनसर्वतीर्थेषुकुर्यादेवाविचारनिति॥स्मृति For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दर्पणधृतसंग्रहवचनसंवादात्॥स्मृत्यंतरे॥सिंधुरनानंद्रुमच्छेदयपनंप्रेतवाहनं॥ विदे शगमनंचैवनकुर्यादाक्षिणीपतिरिनि॥ प्रेतवाहनमित्यनेनप्रेतविधानमप्युपलक्ष्यते॥ ज्योतिर्निबंधेगालयः॥प्रव्यक्तगर्भापतिरधियानंमृतस्थवाहक्षुरकर्मसंग॥ तथैवयत्लेन गयादितीर्थयागादिकंवास्तविधिनकुर्यादिति॥ आदिशब्देनबत्तोयापनादि॥ दिन दर्पणेदक्षः // मुंडनंपिंडदानंचप्रेतकर्मनथैवच॥नजीवसितकः कुर्यारार्भिणीपतिरेव चेति॥पिंडदानशब्देनश्राद्धमुपलक्ष्यते॥इतिकेचित्॥ वपनप्रेतविधानापयादतत्रैवाक्षौ नैमित्तिकंकुर्यान्निषेधेसत्यपिध्रुवं॥ पित्रोःप्रेतविधानंचगर्भिणीपतिरेय चेति।। For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार एतेचनियमाः सप्तममासादूभवंति॥पवनंमैथुनंतीर्थवर्जयेदार्भिणीपतिः॥ श्रादचस भास्कर // 132 // समान्मासादूर्धनैवसमाचरेदित्यादिआश्वलायनोक्तेः॥अत्रकेचित्सप्तममासोत्तरंयो वपनादिनिषेधः सदोषातिशयार्थः।तेनतसूर्वमपिशक्तोसत्यांवपनादिनिषेधपरिपालनमस्स्ये वेत्याहुः॥ऊर्थनैवसमाचरेदितिवचनात्सप्तममासापूर्वकदाचिदपनादिकरणमस्तीतिगम्यते॥दक्षः॥ मासषट्वेव्यतीतेतुनकुर्यान्मौजिबंधनं॥अभ्याधानंगयाश्राद्धंयपनंचपि वर्जयेदिति ॥संस्कारदर्पणेसत्यव्रतः // ऋतुत्रयेव्यतीतेतुनकुर्यान्मौंजिबंधनं॥अम्या // 132|| धानंगयात्राईवपनंचविवर्जयेदिति॥ संकटवशेनशक्ताशक्तपरतयावाव्यवस्थायथायथं For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बोध्या॥ तीर्थतीर्थयात्रा॥श्राइंश्राद्धभोजनमितिकेचित्॥पित्राःक्षयाहश्राद्धादिकंतुसप्तम मासादूर्वमपिभवति॥पित्रोः क्षयाहंदर्शचगयाश्राद्धंमहालयं॥ग्रहणावष्टकाबारे कुर्याग र्भवतीपनिरितिसत्यव्रतोक्तेः॥एतच्चनित्यानायुगादिश्राद्धानामुपलक्षणे॥पिंडयज्ञोपिभवत्येव॥नित्यत्वात्॥मुंडनंपिंडदानंचेसुदाहृतदक्षवाक्ये॥पिंडदानशब्देनश्राद्धमुपलक्ष्यतइति श्राद्धस्यैव निषेधप्राप्तोपित्रोः क्षयाहमिति सत्यव्रतवाक्येननित्याद्वानांपनिप्रसवःक्रियते॥ पिंडदानशब्देनपिंडदानमेवनिषिध्यतइतिमतेपित्रोःक्षया हादिश्राद्धेष्वपिपिंडदाननिषेधः॥ नवनिर्वपणंकार्यतस्यामपिनसत्तमेतिआन्वष्टक्यविषयएवगर्भिणीपतित्वमयुक्तोय पिंड / For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार दाननिषेधःप्राप्तःसनास्तिइतिनिबंधकारलेरखनादान्वष्टस्यव्यतिरिक्तसांवत्सरिकादिस्थलेक भास्कर // 13 // यंपिंडदानप्राप्तिरितिवाच्यं // अपिशब्देनसांवत्सरिकादीनामपिसंग्रहीनत्वेनतलाप्तिसंभ यात्॥नचपितृशब्दस्यपिंडनिषेपणशब्देनान्ययात्कथमेतदितिवाच्यं॥ सन्निहितपदान्वयस भवेव्यवहितान्वयकल्पनस्यानुचितलात्॥सांवत्सरिकादिषुगर्मिणीपतिकर्तृकपिंडदानाचार स्यबहुशोदृष्टत्वाच्चेतिकेचित्॥ वस्तुतस्तुएतन्मतेपिक्षयाहादिश्राद्धेष्वपिपिंड निषेधोनैवास्ति। आईचसप्तमान्मासादूर्धनैवसमाचरेदिन्याश्वलायनवचनस्यबादशब्दार्थः श्राइभोजन // 133 // |परइनिमतेवाडकरणस्यैतस्मादेववचनात्याप्ततापित्रोःक्षयाहमितिकचनंसपिंडकसविधाना For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चंद्रष्टव्यं॥यथाचारंव्यवस्था॥ इतिगर्मिणीपतिधर्माः॥ // अथगर्भवृध्यपायः॥वरी विश्वाचगंधाचमधुकंभंगराड्समं॥अजादुग्धेनपानंतुनार्यागर्मस्यवृद्धिकदिति॥वरीशताव री॥विश्वाशुंठी॥गंधाअश्वगंधा॥ भाषायांआस्कंदइत्युच्यते॥ मधुकंज्येष्टमधु॥ रंगराट् भाषायांमाकाइति॥ ॥अथगरिक्षोपायः॥ शोरखायनगृह्ये॥ चतुर्थेमासिगर्भरक्षण ॥ब्रह्मणामिसंविदानइतिस्थालीपाके नहलाक्षीभ्यांतइतिप्रत्यूचं आज्यलेपेनांगान्यवम जेदिति॥ ब्रह्मणामिंसंविदानइतिराक्षोघ्नं // अथवास्वशाखोक्तराक्षोनीसूक्तग्रहणं॥ शा रुपांतरोक्तखान्लौकिकानाविदंकार्य॥ इतिगर्भरक्षणोपायः॥ ॥अथगर्मिण्यागर्म For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार सावहरोपायः॥ तत्रेदंगो।यदिगर्भस्त्रवेदांम्रणास्याःपाणिनाविरूनाप्नेरुन्मार्टि। पराचंवा // 13 // नार्वाचंबष्टाबभातुबंधने॥ सकतूनुपवेश्यदशमासोअवीरहेनि॥यदिगोगर्भिण्या सवेत्तदाता स्यानाभेरूययोदेश:गर्भावस्थितियोग्यः सखेनपाणिनापराचंखेतिमंत्रणविरुन्मार्टिऊर्धाप वर्गसंमृजीतेत्यर्थः॥सरुदेवमंत्रः॥ यत्रैकस्मिन्द्रव्यइतिसूत्रात् // नैमित्तिकमिदंकमी।औ षधमपि।पीत्वातंडुलतोयेनतंडुलीयजटाकती। पता चयानारीस्थिरगप्रिजायते। शर्करायचतिलैःसमांशकैर्माक्षिकेणसहमक्षितैःस्त्रियः॥ नास्निगर्भपतनोक्षवंभयंपा // 14 // ||पभोक्तुरिवतीर्थसेवनमिति // तंडुलीयजदातंडुलजामूलं॥माक्षिकंमधु॥ इतिगर्भस्रायह For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie | रोपायः॥ ॥अथसीमंतोन्नयनं // ॥तत्रनिर्णयः॥ हारितः॥सरुसंस्कृतसंस्काराः सीमंतेनदिजस्त्रियः॥ययंग प्रसूयंतेससर्वःसंस्कृतोभवेदिति॥ यदिसीमंतस्यमुरख्यका लातिक्रमस्तदाप्रसवादर्यागपिकर्तव्यं॥ तथाचोक्तं॥सीमंतोन्नयनंसुरख्यकालेनस्यात्कयं चन॥कार्यमाप्रसवादेतदितिशखोब्रवीत्स्फुटमिति॥ अकृतसीमंतायाःप्रसवेविशेषःसत्य बनेनोक्तः॥स्त्रीयद्यरुतसीमंताप्रसूयेतकदाचन॥ पुत्रंगृहीत्वाविधिवत्सार्नसंस्कारमर्हती नि॥ // अथसीमंतोन्नयनंनामक्षेत्रगर्भसंस्कारकर्मव्यारव्यायते॥तच्चप्रथमगर्नेगर्मसंभ वात्मासेषष्टेष्टमेवापुन्नक्षत्रेशक्लपक्षादिज्योति शास्त्रोक्तशभदिनेकार्य॥अत्रापिनि। For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार // 135 // यतकालेअधिमासगुरुराकास्तादिदोषोनास्ति॥ असंभवेयावत्प्रसवकालपर्यंत। अत्राप्यनिया नकालेअधिमासादिप्रत्यवायोनास्ति॥ // अथसीमन्तोन्नयनप्रयोगः॥तवार्यकमः॥ सीमंतारख्यस्थीज्येभवतिचयुवते;ष्टमेमासिषष्ठेशालाकर्मादिनांदीश्रपयतिसतिलंसद्गमिश्रंच रुपाक्॥ पाजापत्यैक हुत्वोदितमनुहयनंसर्वपंचादशस्यासश्वासीतोपविश्यंपिनयतिपुलिकास्था प्यतांपेष्यगाने॥१॥ तत्रपत्न्यासहमंगलस्नापितआहनवासोयुगुलालंकृतःपल्यासहबहिःशा लायांशभासनेउपविश्याचम्यप्राणानाथम्यदेशकारकीर्तनांतेअस्या:ममभार्यायाःगर्भाचयये- | | त्यस्तेजोवृध्यर्थं क्षेत्रगर्भयोः संस्कारार्थप्रतिगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणेनवीजकोसत्त्यतिशयद्वारा // 35 // For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसीमंनोन्नयनारख्यसंस्कारकर्मकरिष्ये। तबनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंसा स्लिपुण्याहवाचनअविघ्नपूजनंमंडपस्थापनमातृकापूजनंवसो रािआयुष्यमंत्रजपंना दीश्राद्धंचकरिष्ये इतिकृया॥ अत्रपुण्याहवाचनांने धाताप्रीयतामित्यूहःकर्तव्यः॥ ततो बहि:शालायास्थंडिलेपंचायूसंस्कारपूर्वकं मंगलनामामेः स्थापनं। तत:दक्षिणतोब्रह्मास नादि आज्यासादनानंतरतंदुलतिलमुद्गानामासादन। अनंतरंउपकल्पनीयानि।मृदुपीठ | युग्मान्यौदंबरफलान्यपक्कान्येक स्तबकनिबद्धानि॥त्रयोदशपरिमाणकास्त्रयोदर्शपिंजुलाः।।। येणीशलली॥ वीरेतरशंकुः।केचिदश्वत्थशंकुः॥ पूर्णचात्रं अलोहितंसूत्रेणपूर्ण ॥वीणा१ तीनटिकाणीश्वेन . 2 वीर तरोउँनवृक्षः 3 चात्र म्हणजे सूत काढण्याचीचाकी. 4 लोरखंडाखेरीज For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मंस्कार | गाथिनोंचनि।गानंगायनं वयवर्णिकोचीणागायिनीराजवर्णनसंबंधिगानंकुरुतः॥ अथा | भास्कर // 13 // | वानलादिमबंधिगानंकुरुनः॥आज्यनिर्वपणानंतरं॥चरुपात्रेमुदगप्रक्षेपंरुत्वाधिश्रयण ईपनिपुतिलतंदुलप्रक्षेपः॥ पर्यनिकरणांतेआधारावाज्यभागोस्सुवणजुहुयात्॥म नसा॥ ॐप्रजापतयेस्वाहा॥ इदंप्र०॥ ॐ इंद्राय. इदमि॥ ॐ अमयेचा इदम. ॐ सोमायस्था. इदंमो०॥ ॥नतश्रुमभिधार्यस्सुवेणचरुजुहुयात्॥ ॐ प्रजापतये: इदंप०॥५॥तनःस्थालीपाकेनोत्तरार्धास्विष्टकृत्॥ ॐ अमयेविष्टरुतेवा. इदम || ||137|| | // 6 // ननोभूराद्यानबाहुतयः॥ॐ भूः स्वा. इदम०॥७॥ ॐ भुवःस्वा इदंया०॥८॥ ॐ || 1 थोडेसेशिजल्यावर. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie www.kobatirth.org |स्वः स्वा. इदंसूर्याः॥९॥ॐ त्वन्नौ अमे॥ इदम वरु०॥१०॥ ॐ सत्वन्नोऽअमे इदम यरु० // 11 // ॐ अयाश्चामे // इदम अयसे // 12 // ॐ येतेशनं इदंवरु०सविवे // 13 // ॐ उर्दूत्तमः॥१४॥इदंब-दित्यायादि०॥ मनसा ॐ प्रजाप इदंप्र०॥१५॥ // ततः संनयप्राशनादिप्रणीताविमोकांतंहोमशेपंसमाप्य॥ // ततःपवादमेट्रैिपी ठेमृद्वासनसंस्थाप्य तदुपरिगर्मिणीमुपवेशयेत्॥ततोयुग्मेनसटाग्रप्सेनौदंबरेणत्रिभिः येण्यारुतिदर्भपिंजुलैमध्येण्याशलल्यावीरतरशंकुनासूत्रपूर्णचात्रेणचेत्येतैः सर्वैः पूँजी रुतैःसीमंतमूर्धिविनयति॥ललाटांतरमारण्यकेशान्द्रिधाकरोतिमी॥ ॥ततोविन || 1 तैलदेवदारुपीठे . 2 पंचभिरेकीकृते: For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 137 // यनं॥ ॐ भूर्विनयामि॥ ॐ भुवनियामि॥ ॐ स्वर्विनयामि // तत औदुंबरादिपंचक भास्कर स्यवेण्याबंधनं॥ ॐ अयमूजीवतोवृक्ष ऊर्जीवफलिनी मच ॥१॥इत्यनेनमंत्रण॥ अथ |गाथागानं ॥ॐ सोम एवनोराजेमामानुषी:प्रजाः॥ अविमुक्तचक्र आसीरस्तीरेतुफ्यमसाविति॥१॥ एतयागाययावीणागाथिनौगानंकुर्यातां // असीस्थानेसमीपावस्थिता या महानद्यानामग्रहणं॥ गंगा॥ यमुना॥ स्वरखतीत्येवमादिप्रथमांतं नामग्रहणंख्येव करोति // कृतस्यकर्मणःसांगतासिध्यर्थस्मृत्युक्तान्दा संख्याकान्ब्राह्मणान्मोजयिष्याते || // 137|| नश्रीकर्मागदेवताःपीयनां // ब्राह्मणान्गंधतांबूलादिभिः संपूज्यतेभ्यश्चदक्षिणांदत्वातैरा For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिषोगृहीत्वाअभिविसृज्यमाणोविसर्जनं॥यांतुमातृगणा:सर्वे पूजामादायपार्थिवी। इष्टकामप्रसिध्यर्थपुनरागमनायच॥ // इतिसंस्कारभास्करेसीमन्तोन्नयनसंस्कारप्रयोगः॥ ॥अथजातकर्मक्रमारंभः॥ // अथकस्माच्चिद्योगाद्गर्भाधानादिसंस्काराअकृताश्चेत्तर्हिगोदा नपूर्वकमनादिष्टप्रायश्रितंकलांतरितसंस्कारान्संपायचजातकर्गकार्यमिति॥शीघ्रप्रसवोपा या ग्रंथांतरे॥हिमवत्युत्नरेपार्धेशवरीनामयक्षिणी॥तस्यानूपुरशब्देनविशल्यास्यात्तुगर्मि | णीखाहा॥इतिमंत्रणेकविंशतिदूर्वांकुरैरेकपलंतिलतैलंप्रदक्षिणमावर्तयन्नष्टशतमंबंजपि खातत्तैलंकिंचित्पायये छेपमुदरेलेपयेदिति॥अथयंत्रप्रकाशेयंत्रमप्युक्तं॥गजामिवेदाउडुरा For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 13 // शरांकारसर्षिपक्षाइतिहिक्रमेणालिखेषसूनेःसमयेगृहेदंसुरवेननार्यःप्रसवंतिशीघमिति भास्कर | अस्यार्थः॥गर्भिण्यानार्यादृष्टिगोचरेदेशेसमचतुरस्रसंसाध्यतस्यसमान्नयकोष्टकान्कलाईशा नोत्तरघायुकोष्टेषुअष्टमतृतीयचतुर्थानकाक्रमेणलिखिखापूर्वमध्यमपश्चिमकोष्टेषुप्रथमपं चमनयमाकान्क्रमेणविलिरव्यआमेयदक्षिणनैतकोष्टेषुषष्टसप्तमद्वितीयाकान्क्रमेणविलि खेत्॥ इदंयंत्रप्रसूतिसमयेसूतिकागृहेलेखनीयंएतदर्शनेनसुरखेनशीघ्रनार्यःप्रसवं नि॥यंत्रं यथा॥ सोयंतीमितिप्रसवकालेशूलवनी स्त्रियंभ एयत्तुदशमा // 138 // स्योग इतिमंत्रेणदशवारपठितेनोदकमप्तिमंत्र्यतेनोदकेनशीघ्रप्रसवार्थविवारम पा For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भिषिंचेत्॥ ॐएयतुदर्शमास्योग जरायुणासह॥यायम्वायुरेवनियासमुद्र एयति॥एवायन्दशमास्यो अस्त्रज्जरायुणासह // 1 // इत्यनेनमंत्रेण॥ अायुक्षणा नंतरंवरावपतननिःसारपर्यंतंप्रसूतिसमीपेअवैतुपृश्निशैवलमितिमंत्रजपतिमा॥ॐ अवैतुपृश्निशैवलर्ट शुनेजराज्यपत्तवेनैवमा र्ट सेनपीवरीनकस्मॅिश्चनायतनमयज रायुपद्यताम् // 1 // शातिप्राप्ततिथिनक्षत्रयोगादिसंभवेपुत्रमुखमदृष्दैवस्मानंकार्य। तथैवानिष्टतिथिनक्षत्रयोगविषघटिसंक्रांतिग्रहणपर्वपोषजननेवैकृतप्रसवेचशांतयोम यूवादिशांतिग्रंथेषुद्रष्टव्याः॥ ग्रंथविस्तरभयान्नावलिखिताः॥ ॥अथजानकर्मसंस्का For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार रनिर्णयः॥ तद्यथा॥नपक्केननचामेनश्राद्धं हेम्वकारयेत्॥पुत्रजन्मनियात्रायांश॥१३०॥ दत्तमक्षयमिति॥१॥ जातकर्मणिनांदीश्राइंरात्रापपिकार्य।यद्यपिकिंचिकर्मीगंप्रथ ||मनांदीश्राद्धंकृतंतथापिपुवजन्मनिमित्तंनांदीश्राद्वंद्वितीयंतदिनेएवप्नुवापिजननकालेकार्यमिनि, ॥नालछेदनेकालपतीक्षामाहहारितः॥कालपतीक्षाबालस्यनालच्छेदनकर्मणि॥षण्मुहूर्तात्परंका यसंकटेष्ट मुहूर्तके॥१॥ तदूय छेद्यमच्छेद्यपित्रादिःसूतकीमवेत्॥२॥ ब्रह्मसूत्र धृतनालंतेनावेष्ट्यनिरंतयेत्॥मूलतोष्टांगुलंत्यवानालंच्छिद्याक्षुरादिनेति॥१॥तवा // 139 // यंक्रमः॥जातेपुत्रेसचैलंभवतिजनयतोमानांदीयमेधायुष्येवेनंजपःस्याज्जननप्युवममुं For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie मंत्रयेन्मातरंच॥ सव्यंप्रक्षाल्यवामस्तनमुदकयुतंपात्रप्रच्छिद्यनालंसूत्यमिंस्थाप्यहुत्या द्वितयमनुदिनविंशतिवेदशाहं॥१॥इति॥ // अथजातकर्मप्रयोगः॥ तब जातेपुत्रे पिताकुलदेवतावृद्धप्रणामपूर्वकंतस्यमुरवनिरीक्ष्यनद्यादावनुष्णवारिणातडागादीवाउदङ्ग संस्नायात्॥मूलज्येष्ठाव्यतिपातादोउत्पन्नेमुरयमदृष्ट्वैवस्मायान्॥ अथासंभवेदिवाटताभिः शीताभिरद्भिः सुवर्णयुताभिर्गहेएवस्नाखाऽहतेवाससीपरिधायधृतकुंकुमतिलकःशमासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालोस्मृत्वाममास्यबालकस्यगर्भाबुपानजनितसकल दोषनिबर्हणायुर्मेधाभिवृद्धिबीजगर्मसमुद्भवैनोनिबर्हणहाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थजात For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार कर्मकरिष्ये॥ तत्रनिर्विनाथगणपनिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमातृपूजनायुष्यमंत्रज भास्कर // // 40 // पपूर्वकमाभ्युदयिकाई हेनैवकरिष्येइतिरुवा॥अवपुण्याहवाचनातेसविताप्रीयतामि त्यूहः॥ अच्छिन्नेनालेमेधाजननायुष्येकरोति॥ तत्रमेधाजननंयथा॥ अनामिकयासुवर्णी तर्हितयामधुघृतेएकीकृत्यघृतंबाकेवलंकुमारंप्राशयतिपिता॥ॐ भूस्वयिदधामि॥ॐ सुव स्वयिदधामि॥ ॐ स्वस्वयिदधामि॥ॐ भूर्भुवःस्वःसर्ववयिदधामीत्यनेनमंत्रणसरुपाशय ति॥ अथास्यायुष्यंकरोति॥ तत्रकुमारस्यनाभिदेशेवादक्षिणकर्णसमीपेअग्निरायुष्मा 140 न्नित्यादिवक्ष्यमाणमंत्रान्जपति॥ॐ अमिरायुप्मान्सवनस्पतिभिरायुमास्तेनबायु For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie घायुष्मंतंकरोमि॥१॥ ॐ सोमऽ आयुष्मान्सडओषधीभिरायुष्मॉस्तेनत्वायुषायुष्मंतंक रोमि॥२॥ ॐ ब्रह्म आयुष्भत्तद्रा ह्मणेरायुष्मत्तेनत्वायुषायुष्मंतंकरोमि॥३॥ ॐदे वाऽ आयुष्मंतस्तेमृतैरायुष्मंतस्तेनत्वायुषायुष्मंतंकरोमि॥४॥ ॐ ऋषयआयुष्मंतस्तेन |तैरायुष्मंतस्तेनखायुषायुमंतंकरोमि॥५॥ अपितर आयुष्मंतस्तेस्वधानिरायुष्भतस्तेना खायुषायुमंतंकरोमि॥६॥ ॐ यज्ञ आयुष्मान्सदक्षिणाभिरायुष्मास्तेन त्वायुषायु मंतंकरोमि॥७॥ ॐ समुद्र आयुष्मान्सस्ववंतीभिरायुष्मास्तेनत्यायुषायुमंतंकरोमि | // 8 // एतावत्पर्यंतममिरायुष्मानित्यारण्यत्रिर्जपति॥ ॐ व्यायुपजमदगेकश्या / / For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार पस्यत्र्यायुषम्॥यदे॒वेषुत्र्यायुषन्तन्नौऽ अस्तुत्र्यायुषम्॥ व्यायुषमित्येतमपिमंत्रंविर्ज | भास्कर // 141 // पति॥सयदिकामयेतकुमारःसर्वमायुरियादिनितदाकुमारंवात्सप्रेणाभिमृशति॥दिवस्परी त्यारयगोमंतमुशिजोविचचरित्यंतोवात्सपः॥ ॐ दिवस्परिप्रथमन्यज्ञे अग्निरस्महिती युम्परिजातवेदाः // तृतीयमप्सुनुमा अजस्मृमिन्धान एनजरतेस्ाधीश ॥१॥चियातै अमेधात्र्याणियातेधामधिमतान्युरुत्रा॥विद्यानामपरम हायद्विया| नमुत्सन्यतै आयगन्यै॥२॥ समुद्रेवानृमणी अप्स्वन्तर्नुचाऽ ईधेदिवो // 141 // मृडऊधन्॥ तृतीयॆवारजसितस्थिवाः समपामुपस्थैमहिषासंवर्धन्॥३॥अके For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir न्दग्निस्तनयन्भियद्यौः सामारेरिंहहीरुधः समचन्॥स्योर्यज्ञानोबिहीमिद्दोऽअ. रव्यदारोदसीभानुनामात्यन्तः // 4 // श्रीणामुदारोधोरयीणाम्मनीषाणाम्प्रार्पणः सोमगोपाः // वसं सूनु सहसो अप्सुराजाधिभात्ययड उपसामिपानरे॥५॥विश्व स्यकेनुर्भुवनस्यगर्भः आरोदसीड अपृणाज्जाय॑माना // बीडुचिदद्रिमभिन सरायन्ज नायग्निमयजन्तुपन्च // 6 // उशिक्पाबुको अतिश्स मेधामत्यै थुमिरमृनोनि धायि // इयर्तिधूमम॑रुषभरिंघदुछुक्रेणशोचिषायामिनक्षन्॥७॥शानोरुक्म / ऊायद्यौदुर्म ऋषमायुः श्रियेरुचानः // अग्निमृतोऽ अवडयोभियंर्दैन / For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सास्कर संस्कार न्योरजनयत्सुरेताः॥८॥यसैअधकृणवद्रशोचेपूपन्दैवघृतवन्तममे॥ नन्नयप्रत | // 142 // रम्बस्योऽ अच्छाभिसम्मन्देवभक्तन्यविष्ट॥९॥ आतम्भजसोश्रवसेष्यमऽ उम्य उक्थऽ आमना शस्यमाने॥मिया सूर्यप्रियो अमाभात्युनतेनमिनददुज्जनिबै ॥१०॥लाममेयजमाना 7 अनुयून्विश्वावरूदधिरेधार्याणि॥वासहद्रविणमिच्छमानाबुजङ्गमन्नसृशिजोधिवत्रु: // 11 // ततःकुमारस्यप्रागादिचतुर्दिक्षुचबार उपरिभागस्यामावेमध्येवानैर्ऋत्यकोणेएक: पंचम एपंचब्राह्मणानवस्थाप्य॥इममनुप्राणेनियजमानोब्रूयात्॥एवंसर्वत्र॥व्यानेत्यादयः॥ ततः // 12 // पूर्वदिकस्थितोब्राह्मण कुमारलक्षीकृत्यप्राणेनियान् ॥एवंन्यानेनिदक्षिणतः ॥अपानेत्यपरः For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // उदानेत्युत्तरतः॥ समानेतिपंचमउपरिष्टादवेक्षमाणोब्रूयात्॥ अविद्यमानेषुब्राह्मणेषुस्वयमे वप्रनिदिशंपरिक्रम्येतत्करोति // स्वयंकरणपक्षेप्रेषाभावः॥यस्मिन्देशेकुमारोजातोभवतितं देशमभिमंत्रयते॥देशंसूतिकागारं॥ ॥नमंत्रः॥ ॐ वेदतेभूमिहदयन्दिविचन्द्रमसिश्रित ॥वेदाहन्नन्मान्तद्विद्यापश्येमशरदः शतन्जीवेमशरदःशतः शृणुयामशरदःशतम् | // 1 // अथैनंकुमारमझिमृशनि // ॐ अश्माभव परकर्मवहिरण्यमसुतम्भव॥ आत्माये पुत्रनामासिसजीवशरदः शतम्॥१॥ अथास्यमातरमझिमंत्रयते॥ॐ इडासिमैत्राय रुणीवीरेवीरमजीजनथाः॥ सात्वम्वीरवतीभवयास्मान्वीरवतोकरत्॥१॥इतिमंत्रण॥ For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार थास्यमातुर्दक्षिणस्तनंजलेनप्रक्षाल्यकुमारायप्रयच्छति॥ ॐ इमर्ट स्तनमूर्यः॥ भारकर // 14 // | // 1 // ततोवामस्तनपक्षाल्यप्रयच्छति // ॐयस्नेस्तनः शशयोजोमयोभोरत्नधास विद्यः सदः // येनविश्वापुष्यसिबार्याणिसरस्वतीतमिहधातवेकः // 1 // इत्यनेन मंत्रण॥ ततःसूतिकायाः रखवाधस्ताकुमारस्यशिरप्रदेशेउदकपूर्णकलशंनिदधाति॥ ७ॐ आपोदेवेषजायथयथादेवेषुजायथ॥ एवमस्याट सूतिकाया 8 सपुत्रिकायांजायथ // 1 // इत्यनेनमंत्रेण॥तदुदकपात्रस्थापितमेवदशाहतिष्ठतिप्रागुत्यानात्॥ततोनालच्छे // 143 // दिन॥ // ततःसूतिकागृहद्वारदेशेअरनिमात्रेस्थंडिलेपंचायूसंस्कारान्कृत्वासूतिकामेः For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsur Gyanmandie स्थापन॥ संपूज्यहविः संस्कृत्यपर्युक्ष्य॥ अनःप्रभृत्युत्यानंयाचनायत्सायंप्रातः संधिवेल योईयो: प्रत्यहंयावत्सूतिकारमानंकरोतितापद्दशाहपर्यंतफलीकरणमिश्रान्सर्षपान्तस्मि नगौडेढेआहुतीहस्तेनजुहोति॥ फलीकरणमिश्रान्सूक्ष्मतंडुलायमिश्रान्॥ ॥तत्रमंत्री // ॐशंडामर्काउपवीरःशौंडिकेय उलू रयल :॥मलिम्रचोद्रोणासश्चवनोनश्यतादिनःस्सा हा॥ इदंशंडामर्काउपवीरायशौंडिकेयायउलूरबलायमलिम्सचोद्रोणासश्चयनोनश्यतादि तेभ्यश्चनमम॥१॥ ॐ आलिखन्ननिमिष किम्बदन्त उपश्रुतिः॥ हर्यक्षःकुम्मीशत्रुःपा त्रपाणिमणिहँत्रीमुरयः सर्पपारुणश्चयनोनश्यतादितःस्वाहा॥ इदमालिखन्ननिमिषायकिं / For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वयःउपश्रुतहर्यक्षायकुंभीशववेपात्रपाणयेनृमणयेहंत्रीमुरवायसर्षपारुणायचवनायचा नमम॥२॥ इत्याहुतिहयं॥ ॥यदिकुमारयहोबालमुपद्रवेत्तदातंबालं जालेनपच्छायोन शियेणवाससावाप्रच्छायांक आधायतंबालंहृदिस्पृशन्पिताजपति॥ ॐ कुर्कुरः सुकुर्कुरः | कुकुरोबालबंधनः॥चेच्चे छुनकः सृजनमस्ते अस्तुसीसरोलपेतापहरतत्सत्यं॥ यत्नेदेवाय रमददुःस त्वंकुमारमेवयावृणीथाः॥चेच्चेछुनकः सृजनमस्ते अस्तुसीसरोलपेनापहरन सत्यं यत्तेसरमामातासीसर पिताश्यामशबलौवातरो॥चेच्चे झुनक:सृजनमस्ते अ स्तसीसरोलपेतापहर // 1 // इत्यतपठितेनरक्षति॥ ॐननामयतिनरुदतिनहष्यति // 44 // For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नग्लायतियवयवदामोयत्रचाभिमृषामसि // 1 // इत्यनेनमंत्रेणाभिमृशतिकुमारपिता // ॥रुतस्यकर्मणःसांगनासिध्ययस्मृत्युक्तान्दशसंख्याकान्ब्राह्मणान्सूतकांनेभोजयि ष्ये // तेनश्रीकर्मी०॥ब्राह्मणेभ्योगंधतांबूलवस्त्रालंकारादिभिर्ययाविभयंसंपूज्याातत्यश्चसुव दिदक्षिणादसातैराशिषोगृहीत्या॥ // मातॄणांविसर्जनं॥ यातुमातृगणा सर्वस्वशस्या यूजितामया॥ इष्टकामप्रसिध्यर्थपुनरागमनायच॥१॥ इतिविसर्जयेत्॥ कुमार्याश्चैतज्जान कर्मामंत्रकंकार्य॥ राबोसंध्यायांग्रहणेजाताशोचांतरमध्येपीदंकार्य॥मृताशोचमध्येजा नश्चेनदैवाशौचांतेवाकार्य। पितरियामांतरगतेपिपितृव्यादिगोत्रजोज्येष्ठ कमेणेदेकुर्या For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार त्॥ इदंआयुष्यकरणकालातिक्रमपिकियते॥मेधाजननंतुमुरख्यकालातिकमाननिवर्ततेत भास्कर // 145 // स्मात्कुमारंजातंघृतंवैवायेपतिलेहयतिस्तनंबानुधापयंतीनिजातमावस्यकुमारस्थश्रुत्या | मेधाजननोपदेशान्संस्कारकर्मत्याच्च॥ ॥इनिसंस्कार भास्करेजातकर्मसंस्कारप्रयोगः॥ // अथवालस्यदुष्टदृष्टिदोषादोरक्षाविधिः॥ // वासदेवोजगन्नाथःपूतनातर्जनोहरिः॥रा क्षतित्वरितंबालमुंचसंचकुमारकं॥रुष्णरक्षशिशंशेरयमधुकैटभमर्दन॥ प्रातःसंगवमध्यान्हसायान्हेषुचसंध्ययोः॥महानिशिसदारक्षकंसारिष्टनिषूदन॥ य गोरजःपिशाची // 15 // |श्चय हान्माट्यहानपि॥बालयहान्विशेषेणछिधिछिंधिमहाभयान्॥वाहित्राहिहरेनि For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्यत्वद्रक्षाभूषितंशिकं // इनिभस्माभिमंत्र्यैवषयेत्तेनमस्मना॥शिशोर्ललाटायेंगे पुरक्षांकुर्याद्यथाविधि॥ इतिप्रयोगसागरे॥ ॥रक्षरक्षमहादेवनीलग्रीवजटाधर॥य हैस्तुसहितोरक्षमुंचमुचकुमारकं // अमुंमंत्रभूर्जपवेपिलिरव्यतसवंदक्षिण जेवधीयात्इनियंत्रोद्वारे॥ ॥बालरोदनपरिहारार्थयंत्रमुक्तं मयूरये॥ षडलमध्येहीकार स्तन्मध्येशिशो मधिलिरव्यषद्कोणेपु ॐलुलुबस्वाहेतिमंत्र ( षडक्षराणिविलिरव्यतबहिर्नेमिवदृत्त इयंविलिख्यतद्वहिरधो " ) इदंयंज्यथो |सुरवैरर्धचंद्ररावेष्ट्यपंचोपचारे सेपूज्यबालहस्तेबध्रीयादिति॥ तंलिपेत्॥ For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 14 // भास्कर ॥बालयहशांत्यादिकंबालग्रहस्तवश्वशांतिकमलाकर शांतिमयूरवयोर्द्रष्टव्यः॥ // थषष्टीपूजनं॥ ॥तद्यथा॥ विघ्नेशजन्मदानांचजीवंत्याचप्रपूजन॥जातादिपंचमे षष्ठेनिशीथेबलिमाहरेत्॥१॥ द्वारतृतीयभागेतु पुत्तलैश्वापिकज्जलैः॥दक्षिणोत्तरयोर्दै शेलेरव्यचत्वारिपूजयेत्॥२॥ द्वारस्यो तृतीयभागइति॥ ॥अर्चयेद्दशदिक्पालान् गीनवादिबनिःस्वनैःरुत्वाजागरणरात्रीगीतेश्वशांतिपाठकैः॥३॥ दशाहंसूतिकागा रमायुधैश्चविशेषतः॥वन्हिः सधूमसलिल पूर्णकुंभ:प्रदीपकैः॥ 4 // मूसलादितथारा स्पैर्वर्णकैश्चित्रितेनच ॥विभूतिरक्षांकुर्वीतसर्पपान्विकिरेत्तथेनि॥५॥ तच्चपंचमेषले 116 For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |दिनेवापूर्वरात्रोपित्रादिदिराचम्यप्राणानायम्यदेशकालसंकीर्तनांतेअनयोः सूतिका | बालकयो: आयुरारोग्याभिवृध्यर्थंसकलारिष्टशांतिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थविनेशस्य जन्मदानांजीयंत्यपरनाम्न्याःषष्ठीदेव्याः शस्त्रगर्माभगवत्याश्चयथामीलितोपचारैःपूजनं| करिष्ये॥ ॥एनप्रतिमा:पीठादोवाक्षतपुंजेषुपूगीफलेषुविनिवेश्याः॥संप्रदायस्त स्वर्णमयीं एकांजीपतिकप्रतिमांरुवातस्याश्च अग्युत्तारणपूर्वक प्राणप्रतिष्ठांकुर्वति॥सर्वा सांपृथग्याएकतंत्रेणषोडशोपचारैःपूजनं॥ तद्यथा॥ आयाहिवरदेदेविषष्ठीदेवीसिपि श्ता॥ शक्तिभिः सहपुत्रंमेरक्षरक्षवरानने॥१॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठा॥ अथध्या For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार // 14 // नं॥देवीमंजनसंकाशाचंद्रार्धकृतशेखरां ॥सिंहारूढांजगद्धात्रीकोमारी मक्तवत्सलोना भास्कर इंग्खेटच विषाणाममयंवरदांतथा॥तारकाहारभूषाट्यांचिंतयामिनवांशकां॥१॥ ॐ श्रीश्चतेलक्ष्मी // 1 // ॐ भूर्भुवः स्वःविनेशजन्मदाषष्ठीदेवीजीवंतिकाभ्योनमः // ध्यायामि॥एवंसर्वत्र॥ आगच्छवरदेदेविस्थानेचाबस्थिराभव॥आराधयामिभक्त्या त्यारक्षबालंचसूतिकां // 1 // ॐ हिरण्यवर्णाहरिणींसवर्णरजतस्रजां॥चंद्राहिर ण्मयीलक्ष्मीजातवेदोममायह॥ // ॐ भूः विघ्नेशाय विघ्नेशंआ० / जन्मदाये |147 // षष्ठीदेव्यैनमः॥ जन्मदाषष्ठीदेवी आवाह०॥ॐ शस्नगागवत्यैनमः॥ शस्त्रंगमि For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie | गवतीं आवाहयामि॥ संध्यारागनिभरक्त मासनंस्वर्णनिर्मित। गृहाणस मुरवीभू त्वारक्षबालंचसूतिका॥ ॐ तामऽआचहजातवेदोलक्ष्मीमलपगामि // यस्याहि रण्यम्बिन्देयामश्यम्पुरुषान्हं // ७भू. विघ्ने० // आसनंस०॥ गंगाजलंसमानीतंसु। वर्णकलशेस्थितं॥ पायंगहाणमेबालंसूतिकांचैवपालय॥ ॐ अश्वपूर्णारैथमध्याहस्तिनादप्रमोदिनी॥ श्रीयन्देवीमुपव्हयेश्रीमीदेवी षतां॥ॐ मू०वि० पायंस // अक्षतापु प्पगंधाट्यमार्थनिर्मलंजलं॥ शहाणपाहिमेपुत्रसूतिकांभयहारिणि॥ ॐ कांसोस्मि ताहिरण्यप्रकारामााज्वलन्तीन्तृप्तान्तर्पयन्तीं // पोस्थितांपुयपूर्णां नामिहोपहये For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार श्रियं॥ ॐ मू.वि. अय॑सः ॥ग्यहाणाचमनीयंतुकर्पूरेलादिवासितं॥ सबालोसू भास्कर // 14 // तिकांपाहिजगन्मातर्नमोस्तते॥ ॐ चन्द्राम्प्रभासायशाज्वलन्तीं श्रियन्लोकेदेवर्जुष्टा, मुदारां॥ ताम्यनेमींशरणमहम्पपये अलक्ष्मीर्मेनश्यताम्साँवृणोमि // ॐ भू-वि आ चमनंस०॥पंचामृतंगहाणेदंपयोदधिघृतंमधु॥ शर्करासहितंदेविपाहिवालंसमादक // ॐ घृतेनसीतामधुनासमज्याम्विर्देवैरनुमतामरुदिः॥ ऊर्जस्वतीपया पि न्यमानास्मासीतेपर्यसाझ्याववृत्स्व॥ ॐ मूवि पंचामृतस्नानस०॥ दुकूलादिम // 148 // ||यंदेवि नानारत्नैः परिष्कृतं॥ परिधत्स्वमयंवस्त्रंरक्षमेसुतसूनिके॥ ॐ उपेंतुमादेवस For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir खः कीर्तिश्चमणिनासह॥पादुतोस्मिराष्ट्रेस्मिन्कीर्तिमहिंददातुमे॥ॐ भू०वि० वस्त्रं स॥नानारत्नमयंदिव्यंमुक्ताहारमयंकभागृहाणकालरात्रित्वंरक्षमेसुतसूतिके॥ ॐ क्षुत्पिपासामलाज्येष्ठा अलक्ष्मी शाम्यहं॥अतिमसमृद्धिंचसर्वानिर्गुदमेगृहात् ॥ॐ मू.वि. अलंकारान्समर्पयामि॥ कर्पूरागरुकस्तूरीकंकोला दिसमन्वित।चंदनं स्वीकुरुत्वमेरक्षबालंचसूतिकां॥ ॐगंधद्धारांदुराधर्षानित्यपुष्टांकरीषिणी॥ ईश्वरीसर्व भूतानांतामिहोपव्हयेश्रियं॥ ॐ भू.वि. चंदनं स०॥ सुमाल्यानिरुगंधीनिमालस्या दीनिवैप्रमो॥ रहाणवरदेदेविरक्षवालंचसूतिकां // ॐ मनसःकाममार्केतिम्वा॒चः स॒त्यम For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsun Gyanmandie संस्कार | शीमहि।पशूनांरूपमन्नस्यमयीश्रीश्रयतायशः॥ ॐ भू-वि• पुष्पंस॥ हरिद्राकुंकु भास्कर // 149 // मादीनिनानापरिमलानिच॥गृहाणकालरात्रित्वंरक्षबालंचसूतिकां॥ ॐ अहिरियो गैः०॥ ॐ भू०वि० परिमलद्रव्यंसम०॥वनस्पत्युद्भवंधूपंदिव्यंस्वीकुरुदेविमे॥प्रसीद समुखीभूत्वारक्षमेसुतसूतिके // ॐ कर्दमेन प्रजापतामयिसमावकर्दमश्रेिय म्वासयमेकुलेमातरम्पमालिनी॥ ॐ भू०वि० धूपंस० // आज्यवर्तिकृतंदेविज्योति पांज्योतिषतथा॥ जीवंतिकेगृहाणेदंरक्षमेसुतसूतिके॥ ॐ आप:सजन्तुस्निग्धानिचि // 149 // / क्लीनुवसमेगृहे ॥नीदेवीमातरंश्रियम्वासयमेकुले॥ ॐ मू०वि० दीपंस ॥नैवेद्यलेय For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पेयादिषड्रसेञ्चसमन्वितं॥ सुक्ष्वदेविगणैर्युक्तारक्षमेसुतसूतिके॥१॥ॐ आर्द्रायः करिणीयष्टींसवर्णीहेममालिनी।सूर्याहिरण्मयींलक्ष्मीजातवेदोममावह॥ ॐ भू.वि. नैवेद्यस० // इदंफलंमयादेविस्थापितंपुरतस्तव॥ तेनमेपरितुष्टावंरक्षबालंचसूतिका॥ ॐ याः फलिनी०॥ ॐ भू०वि० फलंस.॥नागवल्लीदलंरम्यंपूगीफलसमन्वितं॥ भद्रेगृहाणतांदूलंपाहिमेसुतसूतिके॥ ॐ आर्द्राम्पुष्करिणींपुष्टींपिंगलांपमालि नीं॥ चन्द्राहिरण्मयींलक्ष्मीजातवेदोममाह // ॐ भू.वि. तांबूलंस०॥हिरण्यगर्ने | तिदक्षिणां० ॐ भू. वि दक्षिणांस // कदलीगर्भसंधूतंक:रंच प्रदीपिन॥आरानि / For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार कमहंकुरक्षबालंचसूतिकां // ॐ इदर्ट हविः०॥ ॐ भू.पि. कर्पूरनीराजनंस॥ भास्कर |नानासगंधपुष्पाणियथाकालोद्भवानिच॥पुष्पांजलिंगृहाणेमंरक्षमेरुतसूतिके॥ॐ श्रीश्चतेलक्ष्मी० // ॐ भू.वि. पुष्पांजलिंस.॥ यानिकानि॥ सप्तास्येतिप्रदक्षि णां०॥ अथप्रार्थना॥ षष्ठीदेविनमस्तस्यसूतिकायहशालिनी॥पूजितापरयातत्त्या दीर्घमायुःप्रयच्छमे॥१॥ जननीजन्मसौरव्यांनांवर्धिनीधनसंपदां। साधिनीसर्वभूता नांजन्मदेत्यांनतापयं॥२॥ गौरीपुत्रोयथास्कंदः शिशुलेरक्षितःपुरा॥ तथाममाप्यमुं| | // 15 // बालंषष्ठिकेरक्षतेनमः॥३॥ यथादाशरथीरामश्चतुर्मूतिर्मयप्रदे॥वयासंरक्षितस्त For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृद्वालंपाहिशुभप्रदे॥४॥विष्णुनाभिस्थिनोब्रह्मादैत्येश्योरक्षितस्त्वया॥ तथामेवालकंरक्ष योगनिद्रेनमोस्तते॥५॥रक्षितीपूतनादिभ्योनंदगोपसतीयथा। तथामेबालकंपाहिदुर्गे दियिनमोस्तते॥६॥यथावृत्रासुरादिंद्रोरक्षितोदितिबालकः॥लया तथामेबालोयरक्षणीयोम हेश्वरि॥७॥ यथासयाजनीपुत्रोहनुमानक्षितःशिशः॥ तथामेबालकंरसदुर्गदुर्गातिहारि|णि॥८॥ रुद्रःस्वर्गायथादेविकश्यपादिसतास्वया॥ मातस्माहितथाबालं विष्णुमायेनमोस्तु ते॥९॥सर्वविघ्नानपारुत्यसर्वसोरव्यप्रदायिनी॥ जीवंतिकेजगन्मात:पाहिनःपरमेश्वरि॥१०॥ अनयापूजयाविनेशजन्मदाजीवंत्यपरनाम्नीषष्ठीदेवीशस्त्रगाभगवत्यःप्रीयंतां॥ततो For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार दिक्पालपूजनाननोनीराजनं॥सूतिकागृहेबलिंसोपस्करंदयात्॥ तत्रमंत्रः॥क्षेत्रस्याधिपने भास्कर ||देविसर्वारिष्टविनाशिनि॥बलिंगृहाणमेरक्षक्षेत्रसूतींचबालकं // 1 // इमंसोपस्करबलिंक्षेत्रा धिपत्यदेव्यैसमर्पयामि॥ ततआगत्यद्वारस्योभयक्तिकज्जलेनदेदेमातरौलिखेत्॥तन्नामानि |॥धीषणावृद्धिमाताचतथागौरीचपूतना॥ आयुर्दाश्योपवं खेताअद्यबालस्यमेशिवाः॥ पंचोपचारैःपूजयेत्॥ सवासिनी भोजन। विप्रेयश्चरखा यतांबूलदक्षिणादिदद्यात्॥ तैराशिषोगृहीत्वा ॥दशमेन्हिविसर्जनंकार्य॥ जननाशौचमध्येप्रथमषष्ठदशमदिनेषु || दानेपतिहेचनदोषः॥ अन्नंतुनिषिद्धं॥ अत्रपंचमषष्ठदिनयोःपुरुषाःशस्वहस्ता: // 151 // For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir स्त्रियश्चनृत्यगीतकारिण्यः अस्यांरात्रौजागरणंकुर्युः ॥सूतिकागेहंसधूमाग्निदीपंश स्त्रमुशलांबुविभूतियुतकार्यं॥सर्पपांश्चसर्वतोविकिरेत्॥ अन्यदपियथाचारंकार्य॥वि पाश्वशांतिपाठपठेयुः॥ इतिसंस्कारभास्करेषष्टीपूजनं॥ ॥अथरात्रिवर्गः॥रा त्रिवर्गोनामशांतिपाठः॥ तंचदशदिनंसूतिकासमीपेप्रदोषसमयेजपेत्॥ // अयपूर तिथौसकलारिष्टशांतिपूर्वकं सूतिकाबालकयोः आयुष्याभिवृध्यर्थश्रीपरमेश्वरप्री त्यर्थंशांतिपाठजपंकरिष्येइनिसंकल्पः॥ तत्रायंक्रमः॥ गणानांत्वेतिप्रथमंत्रीश्चते तदनंतरं॥ ब्रह्मयज्ञानम्प्रथमंइदम्बिष्णुस्खत्र्यम्बकं // भूरसिभूमिप्रथमंआ For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 152|| पोहिष्ठानतःपरं॥ तेजोसिश क्रमितिचबायो येनेघृतंघृत॥२॥ नवग्रहाणांमंत्राश्च भास्कर दिक्पालानांतथैवच॥ आश:शिशानमारण्यमर्माण्यंतंततःपठेत्॥३॥दिवस्परिस मारण्यश्विनुरूल्यायुषंजपेत्॥आनोभद्रासमारण्यजनिखातंततःपरं॥४॥ऋचम्वा चंसमारण्यअंतेतु शरदः शतान्॥राविवर्गमिमंजाप्यवालानांभयनाशनं॥५॥ // इतिसंस्कारभारकरेरात्रिवर्गक्रमः समाप्तः॥ ॥अथनामकरणसंस्कारनिर्ण यः॥ एकादशाहेद्वादशाहेवाविप्रस्यनाम कमी। क्षत्रियाणांत्रयोदशेषांउदोवादिने॥ वै॥१५२॥ श्यानांषोडशेविंशतितमेवादिने॥ द्वाविंशेमासांतेवाशूद्राणां॥ दशम्यामुत्थाप्येतिप्रस, For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वदिनमारण्यदशम्यारात्र्यामतीतायांएकादशेन्हि सूतिकामुत्थाप्यस्नापयित्वामातृपूजापूर्व कंनांदीमुरयाईकखाश्राव्यतिरिक्तंबीन्ब्राह्मणाभोजयित्वापितानामकरोति॥ तद्यथोक्तं ॥अवपितृग्रहणादन्यत्रापिपितुर्नियमोवगम्यते॥अत्राप्यसन्निधौपितरिअन्यः कश्चित्कुल वृद्धःकरोति॥तत्र॥कृष्णानंतोऽच्युतश्चक्रीवैकुंठोथजनार्दनः॥ उपेंद्रोयज्ञपुरुषोवासुदेवा तथाहरिः॥योगीशःपुंडरीकाक्षोमासनामान्यनुक्रमात्॥अबयथाचारंचैत्रादिमार्गशी धादिर्वाक्रमः॥तच्चत्रिपुरुषवाचिदेवतावाचिविष्टवायुग्माक्षरंप्रतिष्ठाकामः॥ चतुरक्षरंत्र ह्मवर्चसकामोनामकुर्यात्॥ तच्चघोषवदादिघोषवंतिअक्षराणि॥गघड।जझनाडटण। For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार दयन। वाम नामादो। अंतस्थायरलवा: नाम्नोमध्येभवति॥दीर्घायसानं ॥रुत्प्रत्यया | भास्कर // 153 // // नतदिनातं॥कन्यकायास्त अयुग्माक्षरंआकारांतं॥ तद्वितांतं॥ अवब्राह्म णस्यशतिंनाम कुर्यात्।क्षत्रियस्थवर्मात॥ वैश्यस्यगुप्तांतं॥शूद्रस्यदासांत। नाक्षत्रनामानितुचुचे चोलाश्विनीप्रोक्तेत्यादिज्योतिर्थयोक्तावकहडाचक्रानुसारे |णाश्चिन्यादिचतुश्चरणेषुचूणामणिश्चैदीशश्योलेशोलक्ष्मणइत्यादिकानि कुर्वति // कातीयानांतुकृत्तिकोसन्नस्यामिशर्मतिनक्षत्रदेवतासंबईनाक्षत्रंनामकुर्यात्॥ना||१५३॥ क्षत्रनामैवाभिवादनीयं गुप्तंचामौंजीबंधनात्॥मातापितरावेवजानीयातां॥व्यावहा For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie रिकनामचतुर्थ।। तच्चकवर्गादिषुतृतीयचतुर्थपंचमवर्णहकारान्यतमवर्णाद्यावयवकं यरलवान्यतममध्यवर्णयुतंकलवर्णरहितविसर्गातपित्रादिपुरुषत्रयान्यतमवाचकंग बुवाचकभिन्नतहितप्रत्ययरहितंकपत्ययातंयुग्माक्षरंपुंसांअयुग्माक्षरंस्त्रीणांका ! तयथा॥ भक्ता॥ इत्याबंदेवनानाम॥ मासनामस॥ चकिणी॥ वैकुंठी॥वासु |देवी॥ एतानि त्रीणिङीवंतानि॥ हरिरित्येतन्नामकन्यापुत्रयोःसमानम्॥ शेषाण्यष्टो। जनार्दना // उपेंद्रा॥ यज्ञपुरुषा॥ योगीशा॥ पुंडरीकाक्षा॥ कृष्णा॥अनंता॥अच्यु ता॥ एतान्याबनानि ज्ञेयानीतिधर्मसिंधौ॥ ॥तच्चजन्मनएकाददोन्हि वायथा For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie |चारंनियतदिनेनामकरणकार्य॥नियतकालेपिविष्टिवैधृतिव्यतिपातमहणसंकायमा भास्कर // 154 // स्याश्राइदिनचेत्तर्हिनकार्य॥ नियतकाले क्रियमाणेरारुकास्तवाल्यवार्धक्ययका तिचारमलमासादिनिषेधोनास्ति॥नियतकालातिकमेतुज्योतिःशास्त्रोक्तामदिने कार्य।यदिकेनचिसकारण प्राप्तकालेजातकर्मनभवतितदाअनादिष्ट प्रायश्चित्तपूर्वक नामकर्मकालेजातकर्म नामकर्मचसहैकतंत्रेणकार्य॥ सकृदेवभवेड्राइमित्याशय स्तपसिद्धः॥ ॥अथप्रयोगः॥तत्रायंक्रमःशिष्टाचारश्च॥नामारव्येमातनांदीन्य // 15 // जतिजननतोडादशैकादशेवाविप्रास्त्रीभोजयित्वारुतमपिच भवेत्तचितंनैवपुंसः॥त| For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्यादौघोषवंतोयरल यपुरतः शर्मवर्मेतिगुप्तेत्येतेविप्रादिवर्णान्वितयेषुअभिधानंत मीबंतमस्या:॥१॥ ततः कुमारपितामंगलं स्नासाहतवाससीपरिधायधृतमंगलति लकःशभासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्यशिशो: बीजग समुद्भवैनोनिबर्हणायुरभिवृद्धिव्यवहारसिद्विद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थनाम करणं करिष्ये॥तबनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्रा ढुंचकरिष्येइतिकृत्वा॥ अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापतिःप्रीयतामितिवदेत्॥नामक |रणेअधिकारार्थत्रीन्ब्राह्मणाम्भोजयिष्ये॥ अवशिष्टाचारप्राप्तंनामदेवतापूजनान| For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार द्यथा॥ कांस्यपात्रेतंडुलान्प्रसार्यतदुपरिसवर्णशलाकयाश्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादौ भास्कर अमुकदेवताभक्त इतिनाम॥मासनाम॥ नक्षत्रनाम।व्यवहारनाम॥ एवंनामचतुष्ट यलिखित्वा॥ ॥अस्यशिशोबव्हायुष्यप्राप्त्यर्थनामदेवतापूजनंकरिष्ये इतिसंकल्पः ॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठा॥श्रीश्चतेनिमंत्रेणनामदेवताभ्योनमइतिषोडशोपचारैःसं |पूज्य॥ ततःस्वदक्षिणतःमातुरुत्संगस्थस्यशिशोर्दक्षिणकर्णकथयति // हेकुमारलंगण पनिशक्तोसि॥हेकुमारखंकुलदेव्याशक्तोनाम्मामार्तडोसि // हेकुमारत्वं मासनामार // 15 // म्णोसि॥हेकुमारत्खनक्षत्रनाम्नाचूडामणिरसि॥ हेकुमारत्वंव्यवहारनाम्नारामचं For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir द्रोसीनि॥इतिकथयित्वा॥मनोजूतिरिनिमंत्रपठनातेविप्रेर्नामरुप्रतिष्टितमितियाचयित्या ततोब्राह्मणानभिवादयेत्॥ तयथा॥हेकुमारत्वंगणपतिभक्तोसिसर्वान्ब्राह्मणान भिवादय॥ इत्युपशिपितावदेत्॥ आयुष्मानभवसौम्यगणपतिभक्तः॥ इतिद्विजाब्रू युः॥हेकुमारत्वंमार्तंड शर्माकुलदेव्याभक्तोसिसर्वान्ब्राह्म॥आयु मार्तडशर्मा।हेकु |मारत्वमासनाम्नारुष्णशर्मासिसर्वान्त्रा०॥आयु० कृष्णशर्मा।हेकुमारत्वनक्षत्रनाम्नाचूडामणि शर्मासिस॥आयु-चूडामणिशर्मा॥हेकुमारत्वं व्यवहारनाम्मारामचंद्रशर्मासिस०॥आयु-रामचंद्र शर्मा॥ ननोविप्राःवेदोमीतिमंत्रेणाशिपंशिशवेदयुः। ॐ वेदोसियेनवंदेयवेददेवेन्यौवेदोभाया For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर // 156 संस्कार स्तेनमयंवेदोसूयाः॥१॥ // उपांशलक्षणेतु॥अभिवादननामेदमस्येत्यालोच्यचेत सा॥उपोशनिर्दिशेच्चैतनजानीयुःपरेयथेति॥ ॥अथास्यायुष्यंकरोतिदक्षिणकर्णम भिनिधायवाग्यागिनित्रिरथास्यनामधेयंकरोतिवेदोसीतितदास्यैतद्यमेवनामस्या दयदधिमधुघृनटसर्ट सृज्यानतहितेनजातरूपेणप्राशयति॥अथास्यायुष्यंकरोतिदक्षिण णकर्णे॥ ॐ अमिरायु सवनस्प०॥ ॐसोमऽ आओषधी॥ॐब्रह्म आत्तद्राम ॥ॐ देवाऽ आयु. मृत०॥ ॐ ऋषय: आ-व्रते॥ॐपितर आस्वधा०॥ ॐ य- ज्ञs आन्त्सदक्षिः॥ ॐ समुद्र आन्सरवं०॥ ॐ व्यायुषजम० // 1 // इतित्रिः॥ 156 // For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथास्यदधिमधुघृतमेकीरुत्यप्राशयति॥ॐ भूस्खयिदधामि॥ ॐ भुवस्व०॥ॐ स्वस्त्वयि // ॐ मूवःस्वःसर्वं त्व०॥अथैनमभिमृशति॥ ॐ अश्मासवपरशुर्भवहिरण्यमस्रुतम्भव॥ आत्मावैपुत्रनामा सिसजीवशरदः शतम्॥१॥अथास्यमातरमभिमंत्रयते॥ॐ इडासिमै. ॥१॥अथैनंमातुःस्तनपक्षाल्यप्रयच्छति॥ॐ इमः स्तन ॥१॥यस्तेमनः इतिऋगयांगाऊतं या एतमाहुःअतिपितावताभूरतिपितामहोवताःपरमावतकाष्टांपापश्रियायशसाब्रह्मवर्चसेन यायविदोब्राह्मणस्यपुत्रोजायते॥१॥ ततःकर्तादेवताभ्योब्राह्मणेत्यश्चनवा॥ दशसंख्याका नब्राह्मणाम्भोजयिष्ये। ब्राह्मणेफ्योदक्षिणादखातैराशिषोगृहीला॥ यातुमातृगणाःसर्वनिमा For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तृणोविसर्जनं। कुमार्याअपिनामकरणेअमंत्रकंकार्य // इतिसंस्कार भास्करेनामकरणं॥ // भास्कर // 157 // आंदोलशयनेसोडादशोदिवसःशुभः॥त्रयोदशस्तशय्यायांननक्षवविचारणा॥१॥अवदिने शुभकालेकुलदेवतांयोगशायिनंचसंपूज्यस्मृलानत्वाचमावादिसभग स्पीक्षिः अलंकृत शिशंगीनवायघोषपुरःसरंआंदोलेदक्षिणशिरसंनिधापयेत्॥ प्राप्तकाले कुयोगसलेपिजातकर्म वत्कार्यं ।।इत्यांदोलारोहणं॥ ॥एकविंशद्दिनेचैवपयः शेरयेनपाययेत् ॥अन्नप्राशननक्ष वेदियसेवापरेशिशु॥१॥ अत्रोक्तदिनेशुभकालेगणपतिकुलदेवतांचसंपूज्य गोक्षीरेशरयेन // 15 // पात्रीमातादक्षिणशिरसंशिशुमंकेनिधायआष्यायस्पेनिमंत्रणपाययेत्॥इतिदुग्धपान॥ // अथ For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org निक्रमणसंस्कारः॥ तच्चदादोन्हिचतुर्थेमासेवायात्रोक्तशुभदिनेशुभकालेकार्य॥ तवायंक मः॥निक्रामस्सूर्यमासेभवतिसदिवसेमातनांदीसुरवातेनच्चक्षुर्कापाठेर्दर्शयनिसविताजा तपुत्रस्यनार्या॥कुर्या कन्याविमंत्रैर्यहमखमथवाकेविदिच्छंतिविषाभोज्यंदानादिकृत्यंभव निविधिरयंसर्यसंस्कारमुरब्धः॥१॥शिशनासहमंगलंस्मात्याशमासनेउपविश्य॥ आचम्यमा णानायम्यदेशकालकीर्तनानेममास्यशिशोःआयुरभिवृष्टिव्यवहारसिद्विद्वाराश्रीपरमेश्वर प्रीत्यर्थगृहान्निक्रमणंकरिष्ये॥स्वस्तिवाचनादिमातृपूजापूर्वकनांदीश्राद्धांतंकृत्या॥अत्रपु ण्याहवाचनातेसवितापीयतामियूहः।ततःपि ताडलंरुतंशिमात्गृहीतंसशकुनेगृहा For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie संस्कार, निझम्यसूर्येदीक्षणेकारयेत्॥ तत्रमंत्रः॥ ॐ तच्चक्षुर्दहितम्पुरस्ताच्छुकमुच्चरत्॥पश्येम भास्कर // 158 // शरदेशतं जीवैमशरद शतः शृणुयामशरदः शतम्प्रर्बयामशरदः शतमीनाः स्यामश |रदः शतम्भूर्यश्चशरदः शतात्॥१॥देवतायतनेगच्छेत्॥गृहमागत्यरूवासिनीभिर्निराज्या दशब्राह्मणाभोजयिष्येइतिसंकल्पयेत्॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणांदला॥तेराशिषोगृहीला॥यांतु मातृगणाःसर्वतिमातृणांविसर्जन॥ ॥कुमारस्यास्मिन्नेवदिनेरात्रौशावेलायांचंद्रदर्श कार्य। तद्यथा॥ चंद्रार्कयोर्दिगीशानादिशांचवरुणस्यच॥निक्षेपार्थमिदंदयितेसारखंतु // 158 // सर्वदा॥प्रमत्तवाप्रसप्तवादिवारात्रमथापिवा॥रक्षतुसनतंतेलांदेयाः शक्रपुरोगमाः॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इतिसंस्कारभास्करनिष्क्रमणसंस्कारः॥ // अथभूम्युपवेशनं॥पंचमेचतथामासेशिशंभू मौनिवेशयेत्॥ तत्रसर्वेयहा शस्ताभौमोष्यत्रविशेषतः॥१॥ तच्चध्रुवमृदुलघुनक्षत्रादिज्योति शास्त्रोक्तशादिनेपूर्वाण्हेस्वस्तिवाचनंरुलावाराहकूर्ममनं पृथींचसंपूज्य॥ ततोगोम योपलिप्तमोरंगवल्लीमंडलंरुखातत्रद्रोणसमानंगोधूमराशिरुत्या॥ तत्रराशौमंगलगीत वायघोषपुरः सरमलंरुतंशिशुमुपवेशयेत्॥ तत्रमंत्राारक्षेनंवरूधादेविसदासर्वगतेयुभे आयुःप्रमाणलिखितंनिक्षिपस्वहरिप्रियो॥१॥ अचिरादासुषस्तस्ययेकेचित्परिपंथिनः॥ जीवितारोग्यविनेषुनिर्दहस्वाचिरेणतान्॥२॥धारिण्यशेषभूतानांमातात्वमसिकामधुका For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 159 // अजराचाप्रमेयाचसर्वभूतनमस्कना // 3 // चराचराणांभूतानांप्रतिष्ठानामियायसि॥कुमारंपा, भास्कर हिमातस्त्वंब्रह्मातदनुमन्यतां॥४॥रूवासिनीभिर्निराज्य॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणोदवातैराशिषोराही खाधान्यराशिंगुरवेदयात्॥एवंकुमार्याअपि॥ // इतिभूम्युपवेशन॥ // अथान्नप्राशनं॥ षष्ठेमासेन्नप्राशन।तचज्योतिःशास्त्रोक्तशभदिनेकार्य॥ तत्रायंक्रमः॥अन्नप्राशोथनांदी अपयतिचचरुंपायसंचाथहुलातत्राघाराज्यप्पागोदिनयमथघृताद्देवदेवींतुवाजः॥प्राणा यासश्चत्तस्त्रश्चरहुतिथहुनेस्सिष्टकरमूर्भुवाद्याः सर्वास्ताविंशतिस्तमुदिनमथशिशंषा ||159 // शयेइंतहेम्मा॥१॥ ततःपित्तासभार्य:शिशुनासहमंगलस्नालाऽहतेवाससीपरिधायधृता For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |तिलकः कामासनेचापविश्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेममास्यशिशोर्मातृग मंगलपाशनशुध्यर्थभन्नायब्रह्मवर्चसतेजइंद्रियायुर्वललक्षणफलसिद्धिबीजगर्भसमुद्भवैनोनिवर्हण द्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थअन्नप्राशनारव्यकर्मकरिष्ये। तत्रनिर्विभार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपु ण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्राइंचकरिष्येतिरूखा॥ तत्रपुण्याहवाचनातेसविताघीयतामितिवदेत् // ततः स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंशचिनामानममिंप्रतिष्ठाप्यषोडशो) पचारैःसंपूजयेत्॥ततोब्रह्मोपवेशनादि॥ आसादितेविशेषः॥सर्वान्षड्रसान्क्षारकटुति| ककषायमधुराम्लां ब्लेयपेथ्यचोष्यखाउंयवशाल्यादिनिर्मितंघृतादिनानितमन्नतेज For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, सपात्रेधृतं॥ पुस्तकशरुपवस्त्रादिशिल्पंचविन्यसेत्॥ पवित्रच्छेदनादिमाज्यभागातंरुलानंता भास्कर // 16 // राज्येनाहनियं॥ तत्रमंत्रौ॥ॐ देवींवाचमजनयंतदेवास्तांविश्वरूपाःपशवोचदंति।सा नोमंद्रेषमूनेंदुहानाधेनुर्वागस्मानुपशष्टुनैतुस्वाहा // 1 // इदंबाचेन ॥ॐ देवींवा नुपसुष्टुततु | ॥ॐ बाजौनो अयपसवातिदानंबाजोंदेवाँ 2 ऽ तुभिकल्पयाति॥ चाजोहिमासर्वबीर ज्जजाधिश्वाऽआशाबार्जपतिर्जयेय स्वाहा॥२॥ इदंबाचेवाजाय ॥ततःस्थालीपाकेनाहुतिच तुष्टयं॥ ॐ प्राणेनान्नमशीयस्वा इदंप्रा०॥ॐ अपाननगंधानमशीयस्वा इदमपानाय० 16 // चक्षुषारूपाण्यशीयस्खा. इदंचक्षुषे०॥ ॐ श्रोत्रेणपशोशीय इदंथो ॥ततःस्यालीपाकेन For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie स्विष्टकृत्॥ ततोमहान्याहृत्यादिनयाहुतयः॥ततःसंस्त्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांतं होम शेषंसमाप्य॥ ॥ततः स्याल्यांआसादितसर्वरसान्शाल्यादीन्यन्नानिचआनीयएकस्मिन्या प्रत्येकमुभृत्यसरुदेवप्राशयेदंतेतिमंत्रेण॥ ॐहंत॥ नकारंमनुष्याइनिश्रुतेः। नतोबालकंमू मोउपवेश्यनदोपस्तकशस्ववस्मादिशिल्पंविन्यस्यजीविकापरीसांकुर्यात्॥शिशुःस्वेच्छ | याप्रथमंयस्पृशेत्तेनैवतस्यजीविका भविष्यतीतिज्ञायेत्॥ब्राह्मणेभ्योदक्षिणादखातैरा शिघोगृहीत्वादशब्राह्मणान्मोजयिष्येइतिसंकल्प्य॥मातॄणामग्नेश्वविसर्जनंकुर्यात्॥ इतिसं० मा० अन्नप्राशनं॥ अथशौनकोक्तदत्तपुत्रप्रनिग्रहविधाननिर्णयः॥ // For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शौनकः ॥अपुत्रोसनपुत्रोवापुत्रार्थसमुपोष्यच॥वाससीकुंडलेदद्यादुष्णीपंचांगुलीयकं॥१॥ भास्कर 16 // न्वाधानादियत्तंबंकखाज्योत्पवनादिकं ॥दातुःसमक्षंगत्यातुपुत्रदेहीतियाचयेत्॥२॥दानेसम ोदातास्मेयेयज्ञेनेतिपंचभिया देवस्थलेनिमंत्रणहस्तान्यांपरिगृह्यच॥२॥अंगादेगेत्यूचंजा वाचाप्रायशिशुमूर्धनि॥ गृहमध्येतमादायचरंहुत्वाविधानतः॥४॥यस्वाहदेत्यूचाचैवतु यममेकचैकया॥सोमोदददित्येताभिःप्रस्मृचंपंचभिस्तथा॥५॥सिष्टकदादिहोमेचर त्या शेषंसमापयेत्॥बंधुनिःसहभुजीतब्राह्मणांश्वविशेषतः॥६॥ ॥दत्तके विशेषः॥पितुर्गोत्रे /161 / / णयः पुत्रः संस्कृतःपृथिवीपते॥आचूडांतेनपुत्र सपुत्रनांयानिचान्यतः॥१॥चूडोपायनसंस्का For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |रानिजगोत्रेणवैकृताः॥ दत्ताधास्तनयारलेस्युरन्यथादासउच्यते॥२॥नसेकपत्रिणोदास्तथै वज्येष्ठपुत्रकमिति॥ ब्राह्मणानांसपिंडेषुकर्तव्यपुत्रसंग्रहः॥सोदकोवासगोबोबाध्यन्यत्रतुन कारयेदिति॥ ॥कात्यायनः॥ अवातृवयसोअसंपदत्तपालने।कुलस्याइरणा ययाह्यांकन्यांविवाहयेदिति कन्यादत्तक यहणेविशेषः॥ ॥स्त्रीशूद्रयोस्तपि शेषः॥पराशरेणशूद्रकर्तृकहोमोविप्रहारैवोक्तः॥तथापि ब्राह्मणस्यशूद्रखबाघापत्तेः॥ नएयदातापौराणमंत्रपठेत् // कुलस्योद्धरणार्थायदेवामिद्विजसन्निधौ॥ वंशविस्तरणा यप्रतिगृहामीमंसतं॥१॥कन्याविषयेउत्तरार्धदः॥अपजसनिवृत्यर्थंकन्यास For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // 162 // ताप्रगृह्यतामिति॥ मूर्ध्यवघ्राणे॥ अंगादंगानिसंभूतान्हदयादीनिसर्वशः॥आत्माए भास्कर नामासिसजीवशतवत्सरान्॥१॥ इति॥ होममंत्रः ॥सोमोददद्धर्वायगंधर्योदददग्नये।। अनेनअमिनादत्तोयेनदत्तोमयाइमंइति॥ // अथप्रयोगः // पुण्ये हनिसपलीकोयज मानःशुभासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेममअप्रजखप्रयुक्तपैन करणापाकरणपुन्नामनरकबाणद्वारावंशाभिवृध्ययंत्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थशौनकोक्तविधि नापुत्रप्रनिग्रहंकरिष्ये॥ कन्याविषयेविशेष:॥अप्रजवनिरासार्थमयसमस्तपितृणानिरा 162 // |तिशयानंदवंशोदारकल्पोक्तफलावाप्तयेश्रीपरमेश्वरप्रीय॑एतत्कन्यायाःस्वकन्यारूपसत्ता For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir करणंकरिष्येइतिसंकल्मेऊहः॥ तत्रनिर्विनाथगणपतिपूजनंस्वस्लिपुण्याहवाचनआचार्ययर णंचकरिष्येइतिहखा।कुलदेवतागुरूंशसंपूज्यनत्याचपुत्रप्रतियहांगविहितंअग्निप्रनिष्ठापन हवनंचकरिष्ये॥ ॥एपंकन्यासत्ताकरणांगखेनेति॥ तत्रस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंलो किकामिप्रतिष्ठाप्य॥तनोदक्षिणनोब्रह्मासनादिप्रोक्षण्याः प्रत्युत्पवनांतंकवा॥तनआ चार्येणसहदातुःसमक्षंगछेत्॥ आचार्यद्वारायांचांकारयेत्॥आचार्योदानारंप्रत्येतस्मै त्रंदेहीतियांचांकुर्यात्॥ ददामीतिदातावदेत् // ततोदानाआचम्यप्राणानायम्यदेशकाल| कीर्तनांतेतववंशाभिवृद्धयेममचपुत्रकफलप्राप्तिकाम:श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थपुत्रदानकरिष्ये। For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार कन्याविषयेतु॥ तववंशीद्वारार्थंकन्यारूपसत्तासिध्ययंचकन्यास्वसत्तानिवृत्तिपूर्वकंतुभ्यं भास्कर // 163 // एतकन्यानिवेदनंकरिष्येइतिऊहः॥तदंगविहिनंगणपनिपूजनकरिष्येइतिरुत्वा॥ ततोयथा शक्तिचंदनादिनापतिगृहीतारंसंपूज्यदानमंत्राः॥ ॐयज्ञेनदक्षिणयामसक्ताइंद्रस्यसख्या ममृतत्वमानशं॥ तेश्योपद्रमंगिरसोयो अस्तप्रतिगृणीमानवंसमेधसः॥१॥य उदाय पितरोगोमयंवस्वतेनभिदन्परिवत्सरेवलं॥दीर्घायुवमंगिरसोवो अस्त प्रतिगृपणीतमान समेधसः॥२॥ यऽऋतेनसूर्यमारोहयन्दिव्यप्रथयन्पृथिवीमातरंविः॥सप्रजास्वम |163 // | गिरसोवो अस्तपरिणीतमानस्समेधसः॥३॥ अयन्ना सावदतिबलवोगृहेदेवपुत्रा For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कषयस्त हणोत्तमं॥ सुब्रह्मण्यमंगिरसोयोअ॥१॥ ॐ विरूपास इसषयस्त उद्गमी रवैपस॥ तेऽअंगिरस: सनस्ते अमे परिजज्ञिरे॥५॥ इतिमंत्रपठनाते॥इमपुत्रतयेपैतृकरणा पाकरणपुन्नामनरकोत्तारणार्थवंशाभिवृध्यर्थआत्मनश्चमुक्तयेश्रीपरमेश्वरप्रीतयेतुफ्यमहंस पददेनमम॥कन्याविषयेविशेषः॥इमांकन्यांतवअप्रजखनिरासार्थसयासहएकविंशतिपुरु पोधरणार्थआत्मनश्वमुक्तयेवंशोदारकलोक्तफलावाप्तये श्रीपरमेश्वरप्रीतयेआत्मसत्तानिवृत्तिपूर्वकं तुभ्यंकन्यारूपसत्तांअहंसंपददेनममेति॥एतद्दानोदकंपुत्रविषयेप्रनिगृही तृहस्तेनिषिच्य॥कन्याविषयेषतिगृहीतृसमीपेजलमध्ये जलंक्षिपेदिति ॥पतिगृहातुए For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 16 // भवान्॥कन्यारूपसत्तांप्रतिगृहातुभवान्॥ देवस्यत्वेतिमंत्रणहस्तहयेनप्रनिराहामी काकर तिप्रतिगृह्यस्वाकेउपवेशयेत्॥ ततअंगादंगादितिमंत्रणशिशंमूर्ध्यभिजिभ्रेत्॥ ॐ अंगादा गान्संभवसिहदयादधिजायसे॥ आत्मावैपुत्रनामासिसजीवशारदःशतम्॥१॥ततोयुवास यासाइनिमंत्रणबालकायवस्त्रंपरिधायउष्णीवधाकुंडलादिभिरलंरुत्यकुंकुमादिनानिला कंकृत्याप्रावरणेनसंवेष्ट्यधृतच्छचंगीतनृत्यमंगलवायपुरःसरंब्राह्मणेः स्वस्सिनइंद्रेतिसुमंग लसूक्तपउन रैस्तंबालगृहे आनीयपुरंधीभिर्नीराजयेत्॥ ततोगृहीताहस्तोपादोचप्रक्षा 64 // ल्यअमेःपश्चिमतः शुभासनेउपविश्यस्वदक्षिणतः पलींपल्युत्संगेवालंचोपवेश्य॥ // For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir आचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेदत्तविधानांगहवनंकरिष्ये॥ उपयमनशानादाये त्यादिआज्यभागांतंरूखा॥ ततश्रुमभिघार्यहोमः॥ ॐ यस्खाहदाकीरिणामन्यानोमर्त्य म मोहवीमि॥ जातवेदोयशोऽअस्मासपेहि जाभिरमे अमृतसमस्यीस्वाहा॥१॥ इदम मयेनमम॥ ॐ यस्मैखंसरुते जातवेदउलोकममैकृणवः स्योनं // अश्विनंसपुत्रिणवीरयों तंगोमतरयिन्नंशतेस्तुस्लिवाहा॥२॥ इदममयेनमम॥कौस्तुभेतुमंत्रदयेनैकाहुतिःपद-|| र्शिता॥ ॐ तुभ्यमग्नेपर्यंचहत्सूर्यांवहुतु सह॥ पुनःपतिभ्योजायांदाग्ने जयासहस्वाहा | // 1 // इदंसूर्यसावित्र्यैः॥ ॐ सोमौददद्वंधर्वायगंधर्वोददग्नये॥रयिंचपुत्राश्यांदादुमि For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार | मझमयोऽ इमांस्वाहा॥ 2 // इदंसूर्यसावित्र्यैः॥ ॐ इहैवस्तुमाथिोष्ट विश्वमायुर्व्यश्भुती शास्कर // 15 // | क्रीलंतीपुर्नसृभिमोदमानौवेगृहेस्वाहा॥३॥इदंसूर्यसा०॥ॐ आनःप्रजांजनयतुप जापतिराजरसायसमनकर्यमाः॥अटुर्मंगली:पतिलोकमाविशंशन्नोभवदिपदेशचतुष्पदे स्वाहा // 4 // इदंसूर्यसावित्र्येन०॥ ॐ अघोरचक्षुरपतिभ्येधिशिवापशभ्यः समनाःसय चर्चाः॥वीरसूचकामास्योनाशन्नोभवद्विपदेशचतुष्पदेस्वाहा॥५॥इदंसूर्यसावित्र्यैन०॥ ॐ इमांलामिंद्रमिशः सुपुत्रांसमगांरुणु॥दशास्योपुत्रानाधेहिपतिमेकादशंरुधिस्वाहा॥६॥ // 15 // |इदंसूर्यसावित्र्येनमम॥ ततोव्यस्तसमनव्याहृतिभिरष्टाहुती खा॥ उमाश्यांस्पिष्टरुत्॥॥ For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तनोभूरायानयाहुतयः॥ ततः संस्त्रयप्राशनादिप्रणीतापिमोकांनंहोमशेषसमाप्याआचार्यायवस्त्रालंकारादिभिर्य याविभयंपूजयित्वाधेनुंदयात्॥ ब्राह्मणेभ्योदक्षिगांदत्वातैराशिषोगृहीला॥सभोपविष्टान्गंधतांबूलादिभिस्तोषयेत्॥दशब्राह्मणान्मोजयेत्॥दे वतामिविसृज्याकर्मणःसंपूर्णतावाचयित्वाईश्वरार्पणकुर्यात्॥बंधुसहद्भिःसहमुंजीत॥ततः खस्तिवाचनादिनांदीश्राद्धांतंरुत्वाजातकर्मादीन्संस्कारा-कुर्यात्॥अथवाकृतजातकर्मादिषुचा लोपनयनादिकुर्यात् // इतिसंदलपुत्रप्रतिग्रहविधान॥ ॥अथांतरितसंस्कारप्रायश्चि तं॥गर्भाधानादीनिचूडाकरणांतानिसंस्कारकर्माणिनियतकालान्यपिहितानि॥यदिदैववशा || For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार सुरुषापराधाडादोषाहानियतस्यकालस्यअतिक्रमोमबतिनदापायश्चित्तंविधीयते॥कात्या यनः॥आरभ्याधानमाचौलाकालेनीतेतुकर्मणांव्याहत्याज्यंतुसंस्कृत्यहलाकर्मयथाक्रम॥ व्यस्तै समस्तैाहत्याचत्वारिपंचवारुणं॥प्रतिसंस्कारलोपेतु साज्येनपृथक्पृथगिति॥ अ न्यच्च॥ एतेष्वेकैकलोपेतुपादक समाचरेत्॥ चूडायाअर्धकच्छंस्यादापदीत्येवमीरितं॥ नापदितुसर्वत्रद्विगुणद्विगुणंचरेत्॥ लुप्तेकर्मणिसर्ववप्रायश्चित्तंविधीयते॥ प्रायश्चित्तेझतेप। वालप्तकर्मसमाचरेत्॥ इति // अशक्तीगोदानं॥अथवागोनिक्रयीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्य दानमिति // ॥अथोपनयनदिनापूर्वन्हिआचम्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेज 166 // For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्यकुमारस्थगर्भाधानादियापुंसवनादिचूडाकरणांतानांसंस्काराणांकालानिपत्तिजनित प्रत्ययायपरिहारद्वाराश्रीपरमेश्वरमीत्यर्थअनादिष्टमायश्चित्तहोमपूर्वकंगोदानंकरिष्ये।स्थंडिलेपंच भूसंस्कारपूर्वकंलौकिकाभिप्रनिष्ठाप्य॥ब्रह्मोपवेशनादिआज्यभागांतेपतिसंरकारेआज्येनव्य स्तसमनव्याहृतीश्चनरस्सन्नोऽअमेत्यादिपंचयारुणंहुला।ततोमहाच्याहत्यादिविष्टकदंतादशाहु। तयः॥ततःसंस्त्रवप्राशनातंहोमशेषसमाप्य॥ गांचदद्यात्॥अथवाकालातिपन्नसंस्कारप्रत्यवाया परिहारद्वारागोनिष्क्रयीभूतयथाशक्तिरजनद्रव्यंदातुमहमुत्सृजे॥ नेनश्रीकांगदे // इत्यं नरिनसंस्कारेपायश्चित्तं॥ ॥अथसंक्षिप्तांतरितसंस्कारप्रयोगः॥यया।पाङ्गामकरण For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 16 // द्वालः प्रागन्नप्राशनाच्छिशुः॥कुमारकस्तविज्ञेयोयावन्मोंजीनिबंधनं // नदू_ब्रह्मचारी भास्कर स्यादिसर्गातेतुस्नातकः॥रुतेविवाहेविधिवद्गृहस्थाश्रमिणवदेदिति॥सर्वांतरितसंस्कारेकु |मारः परिकीर्तितइनि॥ गणशक्रियमाणानांमातॄणांपूजनंसरुत् ॥सरुदेवप्नवेत्थाईहोम मंत्रा:पृथक्पृथगिति॥ // ततोयजमानः पत्नीकुमारसहितउपनयनदिनापूर्वन्हिमंगलं स्मात्याउहतेवाससीपरिधायधृतमंगलतिलकः शभासनेउपविश्य॥आचम्यपाणानायम्य देशकालकीर्तनांतेअस्यकुमारस्यबीजगर्भसमुद्भपैनोनिबर्हणेनबीजकोत्सत्यतिशयमा- 167 // गर्भामंगलपाशनशद्धिपुरुषताज्ञानोदयनेजइंद्रियबलायुर्व?भिव्यवहारसिद्विद्वारा For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थगर्भाधानादिवासयनादिअन्नप्राशनांतासंस्कारानेकतंत्रेणायतथाच हिजखसिघ्यावेदाध्ययनाधिकारसियर्थश्चःकरिष्यमाणचौलोपनयनेब्रह्मवर्चस्वसिध्यर्थये दारसंचएकतंत्रेणकरिष्ये॥तदंगबेननिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिवाचनादिनांदीश्राद्दा करिष्येइतिहखा॥ ॥अथांतरितसंस्कारणामयश्यकर्तव्यानि॥ ॐ पूषाप्नगई इतिगर्मा धान॥ॐ हिरण्यगर्भो ग्यःसंहितइत्येताभ्यांदाण्यामृगन्यापुंसवनं॥ ॐ मूवि स्वरिनिम हाच्या हृतिभिर्थिनयामीतिसीमंतः॥ ॐ भूस्वयिवस्वयिस्वस्वयिभूर्भुवः स्वः सर्वत्वयि दधामीतिमेधाजननं // अग्निरायुष्मानित्यादिव्यायुषकरणांतंजानकर्म॥ श्रीकुलदे असुन For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार | कदेवताभक्तमासनामनक्षत्रनामव्यवहारनामप्रतिष्ठाय्यवेदोसीत्याशिषमितिनामकर्मी | भास्कर // 16 // || ॐ तच्चक्षुरितिनिक्रमणं॥ ॐ हन्त / इति मंत्रेणान्नमाशनं // पुण्याह वाचनातेमृत्युः सवितासविनासविता चैतेपीयनांइनि॥ // इत्यंतरिनसंस्कारप्रयोगः॥ // अथचूडाकरणसंस्कारः॥ ॥सांवत्सरिकस्यचूडाकरणं // संवत्सरोजातोयस्यसःसां वत्सरिकः॥सचायसंवत्सरस्यानिमेमासे॥ तृतीयेवाप्रतिहते॥अथवातृतीयेसंवत्सरे अपूर्णचूडाकरणंकुर्यात्॥यथामंगलंवासर्वेषां।।अथवाययाकुलाचारंपचमेढेवाउपनीत्यास 168 // हक्रियतेतथाव्ययस्था॥उदगयने शुक्लपक्षेगुरुभुक्रयोर्याल्ययाईफ्यास्तसमयानाचेअक्षये For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अनधिकेचमासेज्योतिः शास्त्रोक्तप्रशस्ततिथियारलग्नेशुनेमुहूर्नेदिनेएयकार्यःनतुरात्री। यदिगर्भाधानादिसंस्कारलोपस्तस्रायश्चित्तंकालात्ययनिमित्तंप्रायश्रितहोमंचकलाकार्यइति | ॥प्रायश्चित्तप्रकारक्तअंतरितसंस्कारलोपकरणे दृष्टव्यः॥सूनोतिरिगर्मिण्यांचूडाकर्मन कारयेत्॥पंचमाद्वात्मागूथुतुगर्भिण्यामपिकारयेत्॥सहीपनीत्याकुर्याचेत्तदादोषोनवियते॥ चरितस्यचौलादिमंगलनकार्य।मातरिरजस्खलायामपिनकार्य।।विवाहव्रतचूडासु मातायदिरजस्वला॥ तस्याः शद्धेःपरंकार्यमंगलंमनुरब्रवीत्॥नांदीश्राद्देोत्तरंरजस्वला यांशांतिरुत्वाकार्य ॥केचित्तुमुहूर्तातरानावेमारंभास्त्रागपिरजोदोषे श्रीपूजनादिपि। For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार धिनाशांति हत्याकार्यमित्याहुः॥मानुलपित्रच्यादेः कर्तुःपल्यारजन्चलायामपिमंगलनेति मारकर // 169 // सिंधुः॥त्रिपुरुषात्मककुलेषण्मासमध्येमौंजीविवाहरूपमंगलोत्तरं मुंडनारव्यंचूडाकर्मा) दिनकार्य। संकटे तुअवसेदेकार्य॥ चतुः पुरुषपर्यंतं कुलेसपिंडीकरणमासिक श्राद्दोन मेतकर्मसमाप्तेः पाक्चूडाकर्मादिकमाभ्युदयिककर्मनकार्य। एकमात्जयोरेकसंवत्सरे अपत्ययोईयोः समानसंस्कारोनकार्यो॥नसंस्कार:समानःस्यान्मावृतेदेविधीयते॥पारं भोत्तरंसूतकमाप्तौकूष्मांडीभिर्कभिवृनंहुलागांदवाचूडोपनयनोहाहनादिकमाचरेत् // 19 // ॥चौलकर्मणिजातकर्मणिचभोजनेसांतपनकच्छंप्रायश्चिनं॥ अन्येषुसंस्फारेषूपवा|| For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सेनशुद्धिः॥चूडांनाः सर्वसंस्काराः स्त्रीणाममंत्रका कार्याः। होमस्तसमंत्रकः // इदानीं शिष्टेषुस्त्रीणांचूडादिसंस्कारकरणनदृश्यते॥विवाहकाले चूडादिलोपप्रायश्रिनमात्रंकु ति॥ चोलोत्तरंमासत्रयपर्यंनसपिंडै: पिंडदानंतिलतर्पणंचनकार्य।महालयेगयायांपिबोः प्रत्यद्वश्राद्धेचपिंडदानादिकार्य॥ इतिधर्मसिंधौ॥ इतिचूडाकरणोपयोगीनिर्णयः॥ ॥अथकमः॥चौलंस्थान्येकवर्षाद्युदिनमयकुलान्मानरोबाह्यशालांचीवि पाभोज्यहुसामनु मिनमुदकैश्योंदनंदक्षिणेप्राक् ॥व्येण्याशल्याविनीयत्रिकुशतरुणकंधार्यतरैःसकेशान्छि, खोक्ष्णोगोमयेस्यादितिवदपरयोः केशमेवंनृपाब्दे // 1 // // अथपयोगः॥तवबहिशा, For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भास्कर लाभपति॥ज्योतिः शास्त्रोक्ते शुभमुहूर्नेमाताकुमारमादायाप्लान्याहतेवाससीपरिधाप्यांक आधा थपश्चादनेरुपविशति॥ तत्रसंकल्पः॥देशकालौस्मृ० अस्यकुमारस्यबीजगर्भसमु। वैनोनिबर्हणेनबलायुर्व!भिवृद्धिव्यवहारसिद्धिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थचौलकर्मकरि थे।यदाउपनीत्यासहक्रियतेतदासंकल्पस्तचूडोपनयनेकरिष्येएवमूहःकर्तव्यः॥त निर्विनाथगणपतिपूजनंस्वस्लिपुण्याहवाचनंअविघ्नपूजनमडपस्थापनमा नृकापूजन यसोरानांदीश्राइंचकरिष्येइतिरुवा॥ अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापतिः प्रीयतामिति // 170 / / वदेत्॥ चूडाकरणाधिकारार्थबीन्ब्राह्मणान्मोजयिष्ये॥ ततोबहिःशालायांस्थंडिलेपंच For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भूसंस्कारान्कृत्यामन्यनाम्मोमेःस्थापन॥ततःब्रह्मोपदेशनादिपात्रासादनेनाबचरः॥पावासाद नानंतरंउपकल्पनीयानि॥शीतोदकं // उष्णोदकं॥ नवनीतपिंडः॥घृतपिंडोदधिपिंडोया।बाद) शांगुलदीर्घात्र्येणीशलली॥सायाणिहादशांगुलदीर्घाणिसप्तविंशतिकुशतरुणानि॥ताम्रपरि कृतआयसक्षुसाआनडुहगोमयपिंडः॥नापिनः॥वरश्चेति॥पवित्रीकरणादिआज्यभागा नंतरमहाच्याहत्यादिप्रजापत्यंतानवाहुतयः॥ तयथा॥ ॐ प्रजापतयेस्वा इदंप्र०॥ॐ इंद्रायस्वा० इदइ०॥ ॐ अमयेस्वा. इदम०॥ ॐ सोमायस्वा इदंसो० // ॐ भूः स्वाद दमम॥ॐ भुवःस्वा इदंवाना स्वःस्वा. इ. सूर्याय ॥ॐ त्वन्नौ अमेस्वाहा॥इद / For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ममीवरुणाभ्यांन० // ॐ सत्वन्नौ अमेस्वा० इदममीवरुणापन्यांन० // ॐ अयाश्चामे भास्कर | स्वा० // इदममयेऽप्रयसे॥ येतेशतम्ब०॥ इदंवरुणायसवित्रेविष्णवेविश्वेयोदेवेभ्योमरु यः चर्केश्यश्चन०॥ ॐ उदुत्तमं०॥ इदंवरुणायादित्यायादितये॥ ॐ प्रजापतयेस्वाइ दंप्रजाप॥ततःविष्टकृत्।। ॐ अमयेस्विष्टकतेचा इदम स्विष्ट ॥ततःसंरबपाशनादिमा ॥णीताविमोका होमशेषंसमाप्य।। ततएकस्मिन्पात्रेशीतास्वप्सूष्णाऽआपआसिंचति॥आसिं| |चनसमयेकुमारेणअन्वारंभकार्यइतिपयज्ञः॥ ॐ उष्णेनवायउदकेनेह्यदितेकेशान्यप- // 11 // // 1 // इनिमंत्रण॥ अथात्रउदकेनवनीतपिंडंघृतपिंडदभोवापास्यति॥ तदुदकमादायदक्षि For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir णगोदानमुंदति॥ तच्चकारिकायो॥उंदनंकेशमूलेतुकेशमध्येविनीयनं॥छेदनंचैवकेशाये एषएवक्रमोभवेदिति॥ दक्षिणगोदानंशिरोदक्षिणपार्श्वस्थकेशप्लावनादीत्यर्थः॥ ॥ॐ सवित्राप्रसूतादेव्या आपउंदतुतेत॥दीर्घायुखायबलायवर्चसे॥ इत्यनेनमंत्रण॥तत रुयेण्याशलल्याकेशान्विनीय॥विस्थानचेतयाशलल्याइति॥विनय केशसमीकरणं॥त्री णिकुशतरुणान्यंतर्दधाति॥ 7 ओषधेवायस्व ॥१॥इत्यनेनमंत्रण॥शियोनामेतिलाह क्षुरमादाय॥ॐशिवोनामासिवधितिस्नेपितानमस्ते अस्तमााहिर्ट सी ॥१॥निवर्नयामी ||तिकेशकुशक्षुरसल्लमीकरणं॥ ॐ निवर्तयाम्पायुषेन्नायाय जननायरायस्पोपायसुप्रजा For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार स्वायसुवीर्घाय॥१॥ छेदनेमंत्रः॥ ॐबेनावपत्सयिताक्षुरेणसोमस्यराज्ञोवरुणस्यविज्ञानाने भास्कर // 17 // नब्रह्मणोवपतेदमस्यायुष्यंजरदष्टिर्ययास ॥१॥इत्यनेनमंत्रणसकेशानिकुशतरुणानिष छियानडुहेगोमयपिंडेपास्यत्युत्तरतः॥अनेस्त्तरतःगोमयपिंडस्यस्थापनमितिगदाधरः॥ततस्त स्मिन्नेवदक्षिणगोदानेएवमेवापरंवारयंतूष्णींकर्तव्यं॥एकद्रव्येकर्मावृत्तौसकृन्मंत्रवत्कर्मेतिकात्यायनः॥तत्मकारः॥उंदनं॥विनयनं॥विकुशनरुणानर्धानासल्लमीकरणं॥ छेदनं॥गोमय पिंडेप्रासनं॥एयमुक्तेनप्रकारेणपुनरेकवारंकर्तव्यं॥पनिमगोदानेअप्येवमेवकर्मकरोति॥ॐ॥१७२॥ सवित्रामसू०॥१॥इत्यनेनपश्चिमगोदानेउंदनं॥ येण्याशलल्याविनयन।। ॐ ओषधेवाय For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्वेनित्रिकुशतरुणांतर्धानं॥ ॐ शिवोनामेतिलोहक्षुरग्रहणं // ॐनिवर्तयामीतिसंलमीक रणं॥ छेदनेमंबविशेषः॥ ॐ त्र्यायुषंजमदमेरिति॥गोमयपिंडेपासन।पुनःपश्चिमगोदाने एवमेवापरंवारदयंतूणीकर्तव्यं॥ तत्पकारः॥उंदन।।विनयनं // विकुशतरुणांतर्धान। सल्लमीक रणं॥छेदन॥गोमयपिंडेगासनं॥एवमुक्तेनप्रकारेण ॥अथोत्तरगोदाने॥ ॐ सवित्राप्रसूताइति |मंत्रेणउंदनं॥व्येण्याशलल्याविनयनं॥ॐ ओषधेत्रायस्पेति विऊशतरुणांतर्धानं॥शिवो नामेतिलोहारग्रहणं॥ॐ निवर्तयामीतिसंलग्नीकरण॥ छेदनेमंत्रविशेषः॥ ॐ वेनभरि श्ररादिवंज्योकपश्चाद्विसूईं।तेनतेयपामिब्रह्मणाजीचानवेजीवनायसुश्लोस्यायस्वस्तये॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | इनिमंत्रणछेदनंगोमयपिंडेपासन।पुनरुत्तरगोदानेएवमेवापरंउक्त प्रकारेणवारद्वयंचूणी भास्कर // 173 // कर्तव्यं॥उंदनं॥विनयनं ॥त्रिकुशतरुणांतर्धानं / सल्लमीकरणं॥छेदनं ॥गोमयपिंडे| पासनं॥ततस्त्रिःक्षुरेणशिरःप्रदक्षिणंपरिहरनि॥ ॐ यत्क्षुरेणमज्जयितासुपेशसापत्राः वावपतिकेशान्छिन्धिशिरोमास्यायः प्रमोषीः॥१॥सकृन्मंत्रणदिस्तूष्णींशिरस:समंतात्पुर बामणाततस्ताभिरद्भिःशिरःसमुद्यनापितायक्षुरप्रयच्छति॥ॐ अक्षण्यं परिवप इतिमत्रेण॥सचा नापितउदङ्मुरपस्थितस्यकुमारस्यप्रासंस्थंप्रामुखस्थितस्यउदक्तस्थंशिरोवपेत्।।यथा // // 173 // मंगलंकेशशेषकरणमित्यम्यायमर्थः॥कुलव्यवस्थयाशिरवास्थापन।केचित्संचशिरयाः॥के | For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चिदेकशिरवाः॥यस्ययथाप्रसिदिस्तस्यतथाशिरयास्थापन॥यथा॥ केशशेषततःकुर्या यस्मिनगोत्रेयथोचित।कुर्वन्त्यन्येशिरखामात्रमंगलार्थमिहक्कचित्॥ कंबुजानांवसिष्ठानां || दक्षिणेकारयेच्छिवांविभागेत्रिःकश्यपानामुंडाश्चगवोमताः॥पंचचूडाआंगिरसएकावा जसनेयिनामिति॥ततःसर्वान्केशानगोमयपिंडेकृत्वातंगोमयपिंडवस्त्रादिनावेष्ट्य अनुगुप्तरू खागवांगोष्ठेस्थापयेत्॥अथवापल्वलस्योदकानेउदकसमीपेस्थापयेत्॥पल्यलंनडागः ततश्चूडाकरणसंस्कारकर्तास्वाचार्यायवरंददाति॥ वरंगोनिष्क्रयास्मृत्युक्तान्दशसंख्या कान्ब्राह्मणाभोजयिष्ये।यातुदेवेतिमातॄणांविसर्जनं॥इतिसंस्कारभास्करेचूडाकरणं॥ // For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार स्पृष्टास्पृष्टेशानानपः॥बालस्याफ्युक्षणंप्रोक्तंशिशोराचमनंस्मृत॥रजस्वलादिसंस्पर्शस्ना भास्कर // 174 // नमेवकुमारके॥१॥याज्ञवल्क्यः // चांडालादिषुसंस्पर्शेसचैलंस्नानमाचरेत्॥तोयेनिमज्जे नविनाशद्धिर्नास्तीतिनिश्चयः॥२॥ // इतिसंस्कार्यस्यस्पृष्टास्पृष्टविचारः॥ ॥अथकर्ण विधः॥ सोवर्णीराजपुत्रस्यराजतीविप्रवेश्ययोः॥ शूद्रस्यचायसीसूचीकर्त्तव्यासूबरंध्रयुक् ॥१॥कर्णरंधेरवेश्छायाप्रविशेदयजन्मनः॥स्त्रीणायथेच्छंरंभ्रंचकर्णाभरणधारणेइति॥ त चवर्षवृत्तीयेपंचमेवाज्योतिः शास्त्रोक्तशभमासे शुक्लपक्षेशभदिनेशभमुहूर्तेका। रुतम ||17|| | गलस्नानआहतवाससीपरिधायभृत्तमंगलनिलकःशभासनेप्राङ्मुरवउपविश्याचम्यप्राणा| For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie नाथम्यदेशकालकीर्तनांने अस्यकुमारस्यायुरभिवृद्धिव्यवहारसिद्धि द्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्य थंकर्णवेधंकरिष्ये॥ तदंगत्वेननिर्विघ्रार्थगणपतिपूजनंकरिष्येइतिहखा॥नतोगणेशंसरस्वतीक लदेवतांब्रह्मविष्णुशियान्नवग्रहाल्लोकपालान्ब्राह्मणांअनखाकुमारंपाङमुरवाभासनेउपवेश्य तहस्तेमपुरंदत्वा दक्षिणकर्णमभिमंत्रयने॥ ॐ भद्रंकर्णेभिरितिमंत्रेण॥ ततोवामकर्णमभि | मंत्रयते॥ॐ यक्ष्यन्तीचेदागनीगन्तिकर्णप्रिय सरपोयम्परिषखजाना ॥योवशिड्रेचिना ताधि धन्यज्याउइयर्ट समनेपारयन्ति॥१॥ततःशिशोःकर्णवेधस्थलमारक्तरसेनांकयिसा || यथापितवंसवर्णादिसूच्यामंगलसूत्रोपेतया कुशलसुतगस्त्रियाकर्णवेधयेत्॥कुमारस्यपूर्व | For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार दक्षिणकर्ण॥ कुमार्यास्तपूर्वबामकर्णवेधयेत्॥यथाशक्तिब्राह्मणाभोजयेत्॥तेभ्यश्चदक्षिा मारकर // 175 // णादत्वातैराशियोगृहीत्वा ॥सुवासिन्यैचकुंकुमतांबूलादिदत्यागणपनिपिन्जेन्॥ // थकर्णवेधनक्षत्रात्तीयनक्षत्रेकर्णक्षालनंउष्णोदके नरोहणार्थकार्य॥ रूटोचकोयथा भरणधारणक्षमतामयतितथावर्धनीयो।पुंसः सूर्यरश्मिप्रवेशपर्यंतंरंभंवर्धयेत्।।रुषीणां यथेच्छं॥ इतिसंस्कारभास्करेकर्णवेधः॥ ॥जातकर्मादिचूडाकरणांतानिसंस्कारकर्माणि कुमार्यास्तअमंत्रकाणिकार्याणि।होमस्तसमंत्रकः॥स्पीशूद्रयोस्तगर्भाधानादिविवाहोता. 175 // ||नयसंस्काराः॥ तत्रापिशद्रस्यकेवल पौराणविधिनाइतिहरिहरभाष्येनिर्देशः॥ यथा।जा For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नकर्मसमारभ्यस्त्रीणांचूडांतसर्वशः॥होमः समंत्रकः कार्य संस्कारस्तुअमंत्रकः॥१॥ इनि |स्त्रीविषये॥शूद्रेतुपायुक्तं॥ ॥अथवर्धापननिर्णयः॥ तच्चवर्षपर्यंत प्रतिमासेजन्मति थौकार्य॥ तदनंतरं प्रत्यध्देजन्मतिथीकार्य।तिथिद्वैधेयत्रजन्मक्षयोगः सातिथिर्याया। दिनद्वयेजन्मक्षयोगसत्यासत्वयोरौदयिकीदिमुहूर्ताधिकाग्राह्या॥ हिमुहूर्नन्यूनाचे पूर्वा ॥जन्ममासेधिमाससबेशुइमासेकर्तव्यं॥नवधिके॥ इदंवर्धापनंबाल्येपित्रादिनाकार्य। पश्वात्तुस्वयमेवेति॥ ॥अयप्रयोगः॥जन्मदिनेकुमारपत्नीसहितोयजमानः मंगलं स्मात्याहतयाससीअलंकारांश्चपरिधायधृतमंगलतिलकोमातापित्रोर्वाचार्यकुलदेवता For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार विपाश्चनमस्कृत्यगृहात्यंतरतः शभासनेप्राङ्मुख उपविश्यस्वदक्षिणतःपलीतदक्षिण // 17 // तःकुमारमुपवेश्यधृतपवित्रपाणिराचांतःप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांते अस्यकुमारस्य दीर्घायुःश्रीतेजोवृद्धिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थअद्यजन्मदिनेवर्धापनारव्यंकर्मकरिष्ये। | स्वयंकरणेममचदीर्घायुस्तेजोवृद्धिद्वारा श्रीप-प्रीत्यर्थंअद्यमदीयजन्मदिनेवर्धापनारम्यक मकरिष्येइतिसंकल्पः॥ तत्रनिर्विवार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंचकरिष्येइतिक खा॥ततः श्रीपादिपीठेपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजेषुदेवनाआवाहयेत्॥ तद्यथा॥ ॐगणपत ||176 // येन गणपतिआ. एसर्वत्र // ॐ दुर्गायै ॐ कुलदेवतायै प्रजापतये॥ अपि| For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ष्णये 7 महेश्वराया सूर्याय॥ॐ सोमाय॥ मोमायः॥ बुधा बृहस्सा शकायः॥ शनैश्चरा॥राहवे॥ॐकेनवे॥ॐ कालाय॥ॐ युगायॐ संवत्सरा-ॐ अयनाय ॥ॐ ऋतके॥ॐमासाय॥ पक्षायः॥ ॐजन्मतिथयेनमः // ॐजन्मायः॥ ॐ जन्मयोगा॥ॐ जन्मकरणा॥ॐ जन्मराशये ॥ॐ जन्मलग्रा॥ॐ शिवायैबाऊसा भूत्यै॥ॐ प्रीत्यै 76 संनत्यै // अनुसूयाथै ॥ॐ क्षमायै॥ॐउपविष्टाये || द्रायै ॥ततःपंक्तिरूपेणाष्ट दलानित्रीणिविरच्यनदुपरिपूगीफलेदेवताआवाहयेत्॥ॐष ष्ठीदेव्यै ॥ॐमार्कंडेया-॥ॐजमदग्रये // पुनस्तदयेपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजेषु॥अश्वत्थाम्ने / For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // 177|| नमः अश्वत्थामा आवाहयामि॥एवंसर्वत्र॥ॐ बलये ॐ व्यासाय॥ॐ हनुमतेवाघिमी भास्कर षणायः॥ ॐ रूपाचार्याय॥ ॐ परशुरामायः // ॐ कार्तिकेयायः // उनःपंक्तिरूपेणाक्षतपुंजेषा। ॐ इष्टदेवताये॥ स्थानदेवतायेवाॐ वास्तदेवताये॥ॐ क्षेत्रपालावापृथिव्यै ॥ॐ अश्यः॥ ॐ तेजसे यायवे॥ॐ आकाशायः॥ सर्वासांसमंतात्यागादिदिक्षुवापंक्तिरूपेण॥ ॐइंद्रायॐ अग्नये ॥ॐ यमायनिक्रतये॥ॐ वरुणायः॥ वायवे ॥ॐ कुये | रायॐ ईशानाय॥ ॐ ब्रह्मणे॥अनंना ॥इत्यावाय॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्य॥आयोदेये ||177 // तिमंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूज्या आयौदेवाः सईमहे धामग्रंयत्यध्वरे॥ आचर्दिवास आ For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिौयज्ञियासोहयामहे // 1 // इतिमत्रेण॥ ॐ भूर्भुवः स्वःमार्कंडेयाद्याचाहिनदेवनायो / नमः इत्या वाहनादिषोडशोपचार समर्पणं पवेदधिभक्तनैवेद्य अन्येश्यः पायसादि। प्रार्थना॥जयदेविजगन्मातर्जगदानंदकारिणी॥प्रसीदममकल्याणीनमस्तेषष्ठिदेवते॥१॥ // आयुःप्रजमहाभागसोमवंशसमुद्भव॥ महातपोनिधि श्रेष्ठमार्कंडेयनमोक्तने॥२॥ चिरंजीवोयथासंभोभविष्यामितथामुने॥ रूपयान्वित्तवानायुःश्रियायुक्तंचमांकुरु॥३॥ कर्तापिताचेत्तर्हिश्रियायुक्तंशिशुंकुरुइति॥ मार्कडेयनमस्तेस्त सप्तकल्पांतजीवन॥ | युरारोग्यं मेदेहिप्रसीदभगवन्मुने॥१॥ कपि० // आयुरारोग्यंबालायदेहित्वभगयन्सुने / For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार इति॥चिरंजीवोयथासंभोमुनीनांपवरोद्विज // कुरुष्वमुनिशार्दूलतथामांचिरजीविनं॥१॥ भास्कर // 17 // कपि०॥वालंमेचिरजीविनमिति॥जमदमेमहापागमहातेजोमयोज्ज्वल॥आयुरारोग्यसि ध्यर्थमस्माकंबरदोमय॥१॥ कपि बालायवरदोपव॥त्रैलोक्येयानि तानिस्थावराणिचराणि च॥ ब्रह्मविष्णुशिवैःसाधूरक्षांकुतुनानिमे॥१॥प्रीयंनांदेवताःसी: पूजागृहंतु तामम॥प यच्छंबायुरारोग्यंयश:सोरव्यंचसर्वदा॥२॥मंत्रन्यूनंकिणल्यूनद्रव्यन्यूनमहामुने।यद चिन्मयादेवपरिपूर्णतदस्तमे॥३॥अनयापूजयामार्कडेयाचावाहितदेवनानीयंता॥ततःपा | // 18 // ||यसेनसर्वेभ्योपभूतेश्योनमइतिबलिंदद्यात्॥कचित्स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वक लौकिफामि|| For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रतिष्ठाप्य॥ ब्रह्मोपवेशनायाज्यभागांतंकवा॥ ततोघृताक्ततिलैर्नाममन्त्रेणषष्टीदेवीमार्कंडेया जमदमीनांप्रीत्यर्थअष्टाष्टसंख्ययाअन्यावाहितदेवतानामेकैकयाहुत्यामहाव्याहत्याशाविश निसंख्ययाचजुहुयात्॥शेषेणविष्टछत्॥ ततोमूराद्यानवाहुतयमाज्येना। ततः दभाशा नादिप्रणीनाविमोकांतंहोमशेषसमाप्य॥दानानिदद्यात्॥तत्रादौसवर्णयुक्ततिलपात्रदान।। निला काश्यपसंभूतास्तिला: पापहराःस्मृताः॥तिलकांचनदानेनदीर्घायुष्यंददातुमे॥१॥ इदंनिलपात्रंसदक्षिणाकंदीर्घायुष्यप्राप्तिकामनयामार्कंडयाद्यावाहितदेवताप्रीत्यर्थंअशु कशर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहंसंप्रददे॥ घृतपात्रदानं॥ आज्यंतैजसमुद्दिष्टंआज्ययज्ञैःप्र For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार ||तिष्ठितं॥आज्यपात्रप्रदानेनदीर्घायुष्यंकुरुष्यमे // 1 // इदंाज्यपावंसदक्षिणाकंदीर्घायुः || // 179 // ||श्रीप्राप्तिकामनयाश्रीमार्कंडेयाद्यावाहितदेवतापीत्यर्यअमुकशर्मणेब्राह्मणायतन्यमहंसं पददे॥गोदानमपिदयात्॥नतस्तिलशर्करायुतंपयःपिवेत् // तत्रमंत्रः॥सतिलंशर्करामिश्र जल्यर्थमितपयः॥ मार्कंडेयाइरलब्ध्यापिबाम्यायुर्विवृद्धये॥१॥ इतिमंत्रणपिवेत्॥ब्राह्म योगंधादिभिःसंपूज्यतेपत्यश्चदक्षिणांदखानेराशिषोगृहीत्वा आवाहितदेवनाअमिंचविसृज्य॥ यथाशक्तिब्राह्मणान्मोजयित्वा।यस्यस्मृत्येनिनला ॥सद्धधुभिःसहस्वयंभुंजी // 179 // नेति॥ग्रंथांतरेतुमातुरेवसवासिन्याश्चहरिद्राकुंकुमपुष्षतांबूलादिभिःसंपूज्यताश्यांचनो For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir राज्यअनंतरंअक्षतपुंजेषुकुमुदाषष्टीदेवींजन्मद॑देवतांकुलदेवतांचसंपूज्यबाह्मणान्स पूज्यतेफ्यश्चापूपपूरिकापायसयुक्तानिकुमुदादिदेवतापीतयेपुवायुर्विवर्धनार्थयथाशक्ति वायनानिदद्यात्॥तेभ्यश्चदक्षिणांदलातैराशिषोगृहीत्वा॥ सवासिन्यैशिशवेच भोजनंदत्वा देवताविसृज्ययस्यस्मृत्येतिनमेत् // इतिवर्धापनपयोगः॥ // अथाक्षरलेखनारंपनिर्ण यः॥मार्कंडेयः॥पंचमेसप्तमेवाद्वेपूर्वस्यान्मौजिबंधनात् // तत्रचैवाक्षरारंभः कर्तव्यस्तश दिनेइति॥पंचमेसप्तमेवावर्षअक्षरलेखनारंभउत्तरायणेकार्यः॥अत्रकुंशस्थः सूर्याय ज्यः॥ शुक्लपक्षः सःप्रोक्तः कृष्णश्चात्यत्रिकंपिना॥द्वितीयावृतीयापंचमीदशम्येका For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsur Gyanmandie भास्कर संस्कार // 180|| दशीडादशीत्रयोदश्यः श्रेष्ठाः॥अश्विनीमृगार्दापुनर्वस पुष्यहस्सचित्रास्त्रात्यनुराधाश्रवण | धनिष्ठाशततारकारेवत्योप्तीमशनिमिन्नवाराश्चशमाः॥तबायंक्रमः॥संपूजयेद्गणाधीशंतथै |वचसरखतीं ॥कुलदेवींततश्चैवपूजयेच्चबृहस्पति॥ नारायणमहालक्ष्मीगंधधूपादिभिस्तथा॥ स्वविद्यासत्रकारांश्चस्ववियांचविशेषतः॥एतेषामेवदेवानांनाममंत्रणपूजनं॥ कलाहोमस्वशाखोक्तंआधारांतंसमाचरेत्॥पूर्वोक्तदेवतानांचनाम्नातुजुहुयात्सृतं॥प्राङ्मुखोगुरुरासीनःपश्चिमा भिमुसंशिशु॥कुर्यादक्षरसंस्कारलेखनवाचनादिक।राजत्योपाटिकायांवैपसार्यकुंकुभादिकंासु वर्णलेरखनीयेनलिरवेत्तवाक्षराणिवै॥ नमोगणेशायतणसरस्वत्यैनमस्तथा। नमःकुलदेव | // 10 // For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तायैश्रीगुरुभ्योनमस्तथा॥ लक्ष्मीनारायणायांचलिखिलापंचनामभिः॥ ॐ नमःसिद्ध मित्यादिलेखयित्वाअनुक्रमात् ॥एवंलिखित्वाआचार्य:शिशहस्तेनपूजयेत्॥तयेवतेनसं| लेख्यपुनस्त्रिर्वाचयेत्ततः॥आचार्यपूजयेत्पश्चाइस्त्रालंकारभूषणे:॥त्रिभिःप्रदक्षिणाकायदेिवताश्चाथवैगुरुं॥ब्राह्मणान्यूजयेद्रयागंधपुष्पाक्षतादिभिः॥तोषयेद्दक्षिणादिमिरा शिषंपरिगृह्यच // नीराजनंनतःकुर्यात्तवासिन्याःकरेणच॥उष्णीषंगुरवेदयाद्देवताग्निंघि सर्जयेदिति॥ // अयप्रयोगः // तवपंचमेवर्षेज्योतिःशास्त्रोक्तउदगयनेगुरुजकास्त | रहितेशामासेरशक्लपक्षेशभदिनेसमुहूर्नयजमानः शिशुनासहमंगलस्नात्वाऽहनेवास For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सरकार सीपरिधायालंकृत्यधृतमंगलनिलक: शनासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्य भास्कर // 181 // शिशो:लेरपनवाचनादिविपुलविद्याज्ञानप्राप्तयेविद्यारंभकरिष्ये।तबनिर्षिनाथगणपतिपूजनंकरिष्येइ) निरुत्वा॥ ततस्तंदुलाष्टदलेगणेशंसरस्वतीकुलदेवतांगुरुंलक्ष्मीनारायणंचावाद्यअक्षतपुंजेषुपक्तिरूपेणनारदंपाणिनिंपतंजलिंसारख्यंकात्यायनंपारस्करंयास्कंकपिंजलंगोभिलंजैमिनि विश्वकर्माणंआचार्यव्यासंचाबाह्य॥स्ववियासूबंव्याकरणंभाष्यादिकंचसंस्थाप्य॥नाममंत्रे णषोडशोपचारैःसंपूज्यपार्थयेत्॥सर्वविद्येवमाधारःस्मृतिज्ञानप्रदायक॥ प्रसन्नवरदोभूला // 181 // // देहिविद्यास्मृतियशइति ॥अनयापूजयाआवाहिनदेवताःभीयंतो॥ ततःस्थंडिलेपंचभूसंस्का For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रपूर्वकंलोकिकामिंप्रतिष्ठाप्यसंपूज्य॥ ततोदक्षिणतोब्रह्मासनायाज्यभागांतंकवा॥आज्येना बाहितदेवत्तानामष्टाष्टसंरख्याहुतीर्हत्या॥ततोमहाव्याहत्यादिस्विष्टकदंतादशाहुतयः॥नतःसं स्वप्राशन।पवित्राप्यांमार्जनं॥ अमोपवित्रप्रतिपत्तिः॥ब्रह्मणेपूर्णपात्रदान॥प्रणीताविमो कः॥आपःशिवेतिमंत्रेणविमोकजलेनमूर्धानमभिषिंचेयुः॥एवंहोमशेषसमाप्या। ततोबालक आवाहितदेवताअध्यापनगुरुंचनमस्कृत्य॥अध्यापनगुरोः समीपेप्रत्यङमुखम पविश्यरजतादिपाटिकायांकुंकुमादिकंप्रसार्यतदुपरिसवर्णशलाकयाश्रीगणेशायनमः॥ |श्रीसरस्वत्यैनमः॥श्रीकुलदेवतायेनमः॥ श्रीगुरुभ्योनमः॥श्रीलक्ष्मीनारायणाश्यानमः॥ For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ||ॐ नमःसिद्धं // इत्यादिलेख्य॥पूजनमंत्रः॥ ॐ सरस्वतीयाजेभिर्वाजिनीवती॥ यजम्दै // 12 // युधियाचेस॥१॥ ॐ लिखिनसरस्वत्यैनमः॥इतिमंत्रेणषोडशोपचारैःसंपूजयेत्॥गुरुका मारहस्ताविवारंलेखनवाचनादिकंकारयेत्॥अनंतरंकुमारः देवताक्षरंगुरूंचविःप्रदक्षिणी, रुत्यगुरुंसंपूज्यतस्मैचोष्णीषसमर्म्यनमस्रुत्सा|आचार्यगंधादिभिःसंपूज्यतस्मै अन्यत्रा ह्मणेभ्यश्चदक्षिणांदखातैराशिषोगृहीला॥ सवासिन्याकुमारंनीराज्य॥देवतामिविसृज्य॥अन्येभ्यस्तांबूलादिकंपदापयेत्॥इतिसं मा विषारंपविधिः॥ ॥अथोपनयन ||182. | मुच्यते॥ ॥तकालः॥सूत्र॥अष्टवर्षबाह्मणसुपनयेत्॥गर्माष्टमेवावर्षब्राह्मणमुपनये For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नाएकादशवर्षराजन्यमुपनयेत् // द्वादशवर्षवैश्यसुपनयेत्॥ अत्राप्यतिकालावधिश्॥आषोड शाइर्षाब्राह्मणस्यान तीतःकालोभवत्याहाविंशाद्राजन्यस्याचतुर्विंशाद्देश्यस्येति॥यथामंगलंवा सर्वेषामुपनयनकार्य॥ यथामंगलशब्देनस्मृसंतरोक्तंपंचवर्षादिकालाभिधान। कैश्रिताप नयनशब्देनोपनयनमेवाभिधीयते तदयुक्तं॥उपनयनविषयप्रयोजकन्यापारस्योपनायन शब्दवाच्यखालक्षणायामानाभावादिनिहेमाद्रिः॥अन्येतुआचार्यसमीपनयनांगकंगायत्र्य पदेशपदानंगायत्र्याब्राह्मणमसृजदिनिश्रुती गायत्र्याब्राह्मणमुपनयीनेतिकात्यायनस्मृती चोपनयनस्यगायत्र्युपदेशांगवदर्शनात्॥एवंचोपनयनपदंयोगरूदंसमिद्दर्शादिपदस्थे For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार // 12 // वांगवाचिनोप्युपनयनपदस्यतत्संबंधेनप्रधानसंज्ञालोपपत्तेरित्याहुः॥परेतु पंकजपदस्पेवएक भास्कर यौगिकस्यरूटस्यचयोगरूटपदवाच्यसात्॥अत्रतूपनयनेयोगस्यगायत्र्युपदेशेचरूटेश्यसद्भावेनैकत्रविद्यमानला भावान्नयोगरूटसमुपनयनपदस्यतेनसमीपनयनस्यैवप्रधानलादि त्याहुद्यमितिसंस्काररत्नमालायां॥वसंतेब्राह्मणंग्रीष्मेराजन्यंशरदिवैश्यमिति॥माघादिपं चमासेषुमेखलाबंधनंशिशोः॥ज्येष्ठमासेविशेषेणसर्वज्येष्ठस्यवर्जयेत् ॥ज्येष्ठमासेनज्येष्ठ स्यजन्ममासेनसर्वशः॥ इतिस्मृत्यंतरे॥ वृत्तराते॥नजन्मधिष्ण्येनचजन्ममासेनजन्मकाली // 13 // यदिनेविदध्यात्॥ ज्येष्ठेनमासिप्रथमस्यसूनोस्तथासनायाअपिमंगलानि॥१॥ संग्रहे॥मि| For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir युनेसंस्थितेमानोज्येष्ठमासोन दोषकृत्॥राजमार्तडे॥ जातेदिनंदूषयतेवसिष्ठोह्यष्टोच |गोनियनंदशात्रिः॥ जातस्यपसकिलभारियशेषाः प्रशस्ताःरवलुजन्ममासे॥जन्ममा सेतियोभेचविपरीतदलेसति॥ कार्यंमंगलमित्याहुर्गर्गमार्गवशौनकाः॥ संग्रहे॥जन्ममासे निषिद्धेपिदिनानिदवावर्जयेत्॥ आरश्यजन्मदिवसाच्छुमाः स्युस्लिथयोपराः॥ जन्ममासेच जन्म‘नजन्मदिवसेपिच॥ आद्यगर्भसतस्याथदुहितुर्वाकरगृह इति॥ करयहोविवाहः।। |इतिरत्नमालायो ॥तचोदगयनेज्योनिः शास्त्रोक्तशाभमासेक्लपक्षेगुरुशकास्तबाल्यवार्थी स्यादिदोषरहितेपदोपानध्यायादितिथिरहिनेदुष्टयासरर्खदुर्योगादिदोषरहितेझो दिनेसु For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार // 184|| लग्नेसुमुहूर्नकार्य॥ अथतिथ्यादि ॥ज्योतिर्निबंधे नृसिंहः॥तृतीयापंचमीषष्ठीद्वितीयावापिस प्तिमी। पक्षयोरुभयोश्चैवविशेषेणसुपूजिताः॥धर्मोकामीसितेपक्षेरुष्णेचप्रथमातथा॥रुष्णत्र | योदशींकेचिदिच्छंतिमुनयस्तथा // द्वादश्येकादशीचैवमध्यमेचप्रचक्षतइति॥धर्मीदशमी || कामी त्रयोदशी॥सिनेश क्लेपक्षेधर्मकामीयायो / रुष्णेचेत्यत्रचकारः सितेपक्षेइत्या |स्यानकर्षणार्थः॥तेनशलप्रतिपदोपियहणं॥केचिदाचार्याः कृष्णपक्षांनर्मिनीमप्युप |नयनेस्वीकुर्वति॥मध्यमेचेत्यवपक्षयइतिज्ञेयं॥टोडरानन्देवसिष्ठः॥नैमित्तिकमनध्यायं|| कृष्णेचप्रतिपदिनं // मेखलाबंधनेशस्तंचीलेवेदबनेषुचेति॥अयंचप्रतिपदिनविधिनैमित्ति For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie कानध्यायविधिश्वातीतकालस्यार्तस्यबटोरुपनयनविषयः॥प्रशस्ताप्रतिपलष्टोकदाचि छुभगेविधी॥चंद्रेबलयुनेलग्नेवीणामनिलंघनमितिच्यासोक्तेः॥एवं॥चंद्रेबलयुनेलमाछु भभावेशभेक्षिते॥ चतुर्दशीप्रशंसंतिकुमारवयसाधिकइति च दुर्दशीविधिरपि।।स्वाध्याय | वियुजोपस्राः कृष्णप्रतिपदादयः॥प्रायश्चित्तनिमित्तेतुमेरपलाबंधनेमता इतिकाला दर्शादिधृतवृद्धगाठवचनात्सर्वेषांनैमित्तिकानध्यानांकृष्णप्रतिपदादिनित्यानध्यायानां चप्रायश्चित्तोपनयनपरतैयमापूर्वोपनयनपरता॥विसुजोविषमाः॥पनादिनानि॥ स्वाध्यायवियुजोदिवसास्कृत्तीयापंचमीसप्तमीनयम्येकादशीत्रयोदश्यताः प्रायश्चित्तो For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 185 // भास्कर पनयनेउपयुज्यंतइत्यर्थः॥ अमावास्यालवापिनिषिद्वैव॥ अमावास्यातुसर्वत्रनिंदिताशुभक मिणीतिवचनात् ॥अपरार्के। नष्टे चंद्रेष्टमेशकेनिरंशेभास्करेनथा॥ कर्तव्यंनोपनयनं नानध्या येगलग्रहइति॥निरंशस्वरूपंज्योतिर्निबंधे॥राशेःप्रथमभागस्थानिरंशः सूर्यउच्यतइति॥ अत्रिः॥ पराजितेतिनीचस्थेनीचेशकेगुरौतथा॥ तिनंयदिकतिसमवेद्देदवर्जितइतिरा जमार्तंडः॥ नष्टेशक्रेतथाजीवेनिरंशेचैवप्पास्करे॥ उपनीतस्यशिष्यस्यजडत्वंमृत्युरेपचेति। युगादिदिनानध्यायानामपिपतिप्रसवमाह॥ परद्वाजः॥याचेत्रवैशाखसि ताकृती |यामाघस्यसप्तम्यथफाल्गुनस्य॥कृष्णेद्वितीयोपनयेप्रशस्तापोक्ताभरद्वाजमुनींद्रमुरव्ये For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रिति॥ अवचैत्रसितहत्तीयामाघशकूसप्तम्योर्मन्यायोःप्रतिप्रसवः॥मन्वादिषुत यो:स्मृत्यर्थसारेपागत्॥वैशारयतृतीयायुगादेरपि॥मुहूर्ततवे॥ त्रयोदश्यादिचतुष्कस सम्यादिवयंचतुर्थीचअष्टोगलयहास्त्याज्यागर्गस्यमनेतथाषष्ठीति॥ अवाप्यपवादः॥ षष्ठीसप्तमीत्रयोदशीनांविनियोगोपन्यासेनदर्शितः॥ अयंगलग्रहापवादोमूकायुपनयनविष) यइतिकेचित्॥ स्मृत्यंतरे॥ अनध्यायस्यपूर्वद्युरनध्यायासरेहनि। बतारंभविसर्गचवि | यारंपंचवर्जयेदिति॥ एतदपवादोद्वितीयासप्तमीत्रयोदशीनांविनियोगोपन्यासेनदर्शितः ॥स्मृतिसारे॥ सोपपदासूपनीनःपुनःसंस्कारमर्हतीति ।अयंचनिषेधोयजुर्वेदिनांनभवति॥ For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie सरकार | ||दबतोपनयनेस्वाध्यायाध्ययने तथा॥ नदोषोयजुषासोपपदास्वध्यापनेपिचेतिस्मृतिदर्पणस्म || // 16 // त्यंतरोक्तेरितिकेचित्॥महानिबंधेष्यदर्शनादिदंनिर्मूलंतेनतेषामपिनिषेधोस्त्येवेत्यन्ये।। नाश्चोक्तास्तवैच॥ज्येष्ठशक्लदिनीयातुआश्विनेदशमीसिता॥ चतुर्थीदादशीमाघएनाःसो पपदास्मृताइनि॥चतुर्थीद्वादशीमाघइत्यत्रासितेत्यनुषन्यते॥ वासरानाहनारदः॥गुरुशक बुधानांनुयाराः श्रेष्ठ तमाः स्मृताः॥अधमःसोमवारस्तसूर्यबारस्तमध्यमः॥वारोमंदारयोर्यज्यौंकृष्णोपोनिशापतेः॥अस्संगतस्यसौम्यस्यवारोवोदिजन्मनामिनि॥मंद: शनिः // | // 16 // आरोपौमः॥निशापतिश्चंद्रः॥सोम्योबुधः॥ तया॥सर्वेषांजीयशकज्ञवाराः प्रोक्तावतेशभाः | For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चंद्रार्कोमध्यमौज्ञेयोसामघाहुजयोःकुजः॥ शारखाधिपतिवार श्वशारयाधिपबलंन था॥शारयाधिपतिलमंचदुर्लभंत्रितयंबतइति॥ सर्वेषांब्राह्मणादीनां // जीवो वृहस्पतिः ॥ज्ञोबुधः॥ बाहुजः क्षत्रियः॥ वलंगोचराष्टवर्गादि॥ शाखाधिपबलासंभवेदोषमप्या हमदनरत्नेवृद्धगायः ॥शारयाधिपेबलिनिकेन्द्रगते चमौंजीबंधस्तदीयदिवसेषुक भायकूप्तः॥अस्मिन्चलेनरहितेतुपुनर्दिजानांस्यादर्णसंकरइतिषवदंतितज्ञाइनि॥ तथा // वर्णाधिपबलमप्यपेक्षते॥सदानुकूलेचैकस्मिन्वर्णेशेबल शालिनि॥ ब्राह्मणा देः प्रकुर्वीनकुमारंबतचारणमितिपराशरोक्तेः॥ पतीसिनेज्यौषिमाणांनृपाणांकुजभा For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार स्करी॥ वैश्यानांशशस्त्सोम्यायितिवर्णाधिपाःस्मृताइतितेनैवव्यवस्थापदर्शनाच मास्कर // 18 // मदनरत्लेराजमार्तडः॥ पितुःसूर्यबलंश्रेष्ठेशारयावर्णेशयोबटोः॥ सर्वेषांगुरुचंद्रविलं श्रेष्ठंबनादिष॥ मौंजीबंधेविवाहेचप्रतिष्ठायांविशेषतइति॥सर्वेषामित्यनेनयेषोनशारया धिपोगुरुस्तेषामपिबटूनांतत्सिवृणांचगुरुबलमावश्यकं ॥उपयोरलामेबदोरावश्यक मितिध्वन्यते॥ संकटेचंद्रतारायभावेप्यधिकारायदानमुक्तंज्योतिर्निबधे॥चंद्रेशं संलवणंचवारेदिनेविरुद्धेवयतंडुलांश्॥धान्यंचदद्यात्करणेनथा योगेविरुद्धेकना | // 187 // | कंचदेयमिति॥दिनंतिथिः॥ नित्यकालेवटोगुरुबलालाभेशांत्यातलामः॥अनित्यका For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लेनैपमित्याहनारदः।वालस्यवलहीनोपिशात्याजीवोबलपदः ॥यथोक्तवत्सरेकार्यमनुके नोपनायनमिति॥केषुचिद्दुष्टस्थानेषुस्थितेतुगुरौशांत्यापिनोपनयनाधिकार इत्याहवसिष्ठः॥ बंधोतृतीयेरिपुराशिसंस्थइच्छंतिपूजांजनिगेव्ययस्ये॥पुराननाअष्टमगेपिसूरोशात्यापिने योपनयाधिकार इति॥बंधुश्चतुर्थः॥रिपुराशिषष्ठः॥जनिर्जन्मराशिः॥व्ययोद्वादशराशिः।। अनिसंकटेएतेषपिराशिषुपूजाहोमादेर्गुणत्खादिवृद्धिकल्पनयोपनयनकार्यमेवनतत्रुतसं यसरानिक्रम कार्यः॥तस्माद्हेन्यःकालखाडलीसंवत्सरोमतइतिवचनात्॥ राशिविशेषस्या स्यगुरोरष्टमादिस्थानस्थितस्यापिनाधिकारपतिबंधकसमित्याहभरद्वाजः॥धनुर्मीनकु For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार लीरम्योजीबोजन्मांत्यमृत्युगः॥अतिसौरव्यंबटोः कुर्याइसिष्ठवचनं यथेति॥ कुलीरः | भास्कर // 188|| कर्क:सचगुरोरुच्चस्थान॥यथाहुर्दैवज्ञाः॥अजवृषसमृगांगनाकुलीराझषवणिजौचदि वाकरादितुंगाइति॥अजोमेषः॥वृषभःप्रसिद्धोराशिः॥मृगोमकरः॥अंगनाकन्या॥ कुलीरःकर्क:॥झषोमीनः॥वणिक्तुला॥दिवाकरादीनांसप्तानांग्रहाणांक्रमेणमेषादी निसप्तोच्चस्थानानीत्यर्थः॥ राजमार्नडः॥व्रतेजन्मत्रिकारिस्थोजीवोपीष्टोर्चनात्सरुत् ॥शमोतिकाले तुष्टिव्ययस्थोद्विगुणार्चनादिति॥ द्विपंचसप्तनवैकादास्थोसुरु:शु॥१८॥ भफलप्रदः॥जन्मतृतीयपष्ठदशमस्थानेषपूजाहोमात्मक शांत्यामः॥चतुर्थाष्टमहा। For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दशस्थानेषुदुष्टफलः॥ कर्कधनुर्मीनराशिपुचतुर्थादिस्थानेपिनदोषः॥अतिसंकटेचतुर्थदादा शस्थोद्विगुणपूजाहोमादिनाशनः॥अष्टमस्तुधिगुणपूजाहोमादिनाक्रमः॥केचिदनिष्ठोवामा विधेश भइत्याहुस्तन्नेतिराजमार्तंडः // अष्टमवर्षादिमुख्यकालेरारुबलाभावेपिमीनगतरवियत्न चैत्रेवाशात्याव्रतबंधकार्योनतुमुरल्यकालातिक्रमः॥नित्यकालस्यबलीयस्वातइतिधर्म सिंधी। नक्षत्राण्याहनारदः॥ श्रेष्ठान्यर्फबयांत्येज्यचंद्रादित्युत्तराणिच॥ विष्णुत्रयाश्चि मित्राञ्जयोनिभान्युपनायनेइति // अर्कत्रयंहस्तचित्रास्वातयः॥अन्यरेवती॥ईज्य:तिष्यः॥ चंद्रोमृगशिरः॥अदितिःपुनर्वसु॥उत्तराशब्देनउत्तरात्रयं॥विष्णुप्रयंश्रयणधनिष्ठाशनमिया For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार / जः॥अश्विनीअश्विनी॥मिबोनुराधा॥ अजयोनिमरोहिणीनक्षबं॥बृहस्पनिः॥विधूत्तरेषु भास्कर रोहिण्या हस्तेमैत्रेचवासवे॥ खाष्ट्रेसौम्यपुनर्वस्वोरुत्तमंधुपनायनमिति॥ वेदविशेषेणनक्षत्रवि | शेषविधियोतिर्निबंधे॥ मूलेहस्तबयेसार्पशैवेपूर्वावयेतथा॥ऋग्वेदाध्यायिनांशस्तंमेखला बंधनंबुधैः॥पुष्येपुनर्वसीपोष्णे हस्तेमैत्रेशशांकमे॥ध्रुवेषुचप्रशस्तस्थायजुषामौंजीबंधनं॥पुष्य वासवहस्ताश्चिशियविष्णूतरावयं॥ प्रशस्तमेस्यलाबंधेवटूनांसामवेदिनां॥मृगमैत्राधिनीहस्ता रेवत्यदितिवासवं॥अथर्ववेदिनांशस्तोनगणोयंबनार्पणेइति ॥सापआश्लेषा॥शेवंआ // 19 // पौष्णरेवती।मेअनुराधा॥ शशांकभमृगशिरः // ध्रुवाणिउत्तरावयंरोहिणीच॥ वासवंज्ये For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ठा। अश्विनी अश्विनी।शिवा / विष्णु: श्रवणं / अदितिःपुनर्वस ॥एषामसंभवेसारस मुच्चये॥मघायेयविशारद्रयाम्यहित्वाचवारुणं॥व्रतेशस्तानिसर्वेषांचेदेदोक्तंनलायतइनि॥ आमेयंकृतिका॥ ऐंद्रज्येष्टा॥ याम्यंभरणी॥ वारुणेशततारका॥ तत्रापिपुन्नक्षत्राण्यतिप्रश स्नानि ॥विशेषेणपुन्नामधेयइनि गृह्योक्तेः॥ नानितुप्रागेवोक्तानि॥यस्त। ताराचंदा नुकूलेषुयहाब्देषुसुमेष्वपि॥पुनर्वसोचोपनीतःपुनः संस्कारमर्हतीतिराजमार्तउवचनेषु नर्वसनिषेधः सज्योतिर्विप्रसिद्धवसिष्ठादिसंहितावदर्शनात् // हेमाद्यादिमहानिबंधे पुनर्वसविधेरेप प्रतीते दाक्षिणात्यसकलशिष्टानांपुनर्चसायुपनयनानुष्ठानाचरणस्यो For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पलंगाच्यनिर्मूलः // ममूल वेपिनयजुर्वेयर्यदिविषयः // अनंतगेदानज्योनिर्निबंधव माम्कर // 19 // चनेयजुर्वेद्यथर्ववेदिनानस्यविहिनत्यान्॥ योगेषुव्यवस्थामाहश्रीपतिः॥ सवैधृतिस्क | व्यनिपाननामासोप्यनिष्टःपरिघस्यचा)। निस्रस्तुयोगेप्रथमेसवजेच्याघानसंज्ञेनपं चशूले॥ गंडेनिगंडेचषडेव नाड्यः शोषुकार्यषुपियर्जनीयाइति॥प्रथमोयोगोविफ। भः॥उक्तान्यविषयेत्याहबृहस्पतिः॥शिष्टाष्टादशयोगेषु प्रशस्तमुपनायनमिति॥करण व्यवस्थापितेनैवोक्ता॥बवादीनांतुषकं स्यादुपनायेमुपूजितं। शकुन्यादीनिविष्टींचा // 19 // वर्जयेच्चविशेषनइनि॥दिनभागव्यवस्थामाहमनः // सर्वदेशेषुपूर्वाण्हे मुख्यस्यादुपना। For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यनं॥मध्यान्हेमध्यमंत्रोक्तमपराण्हेचगर्हितमिति॥ उत्तराईपिसर्वदेशेष्वित्यनुषज्य ते॥एवंव्यवस्थितेपिशुभकालेनिमित्तविशेषेणनिषेधमाहगर्गः॥ ग्रहेरवी डोर वनिप्रक म्पेकेनौमहोल्कापननादिदोषे॥ व्रतेदशाहानिवदंतितज्ज्ञास्त्रयोदशाहानिवदंतिकेचि दिति॥वानीतिशेषः॥ संकटेतुचंडेश्वरः॥दाहेदिशांचैवधराप्रकंपेवजप्रपातेचविदा, रणेच॥ केनौतथोल्कांशुकणप्रपातेत्र्यहनकुर्याद्र तमंगलानीनि॥ धर्मप्रकाशेगर्गः।। द्रसूर्योपरागेषुव्यहंप्रामशसंभवेत्॥ सप्ताहमशभपश्चास्मृतंग्रहणसूतकमितिएना चार्धग्रासविषयं ॥सर्पग्रासेषुसप्ताहमर्धयासेदिनवयं। प्रियकांगुलनोयासेदिनमेकंथि For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार वर्जयेदित्यंगिरसाविशेषस्योक्तेः॥विसरतोदुष्टकालास्तविवाहप्रकरणेवक्ष्यामः।एतेषूक्ते भास्कर // 11 // पुसूत्रोक्तोमुख्यकालः स्मृत्युक्तस्तसंकटे / मुरव्योविधिःस्वशास्त्रोक्तइतर: स्यात्तुसंकटइ |तिवचनात्॥लल्लः॥बतेन्हिपूर्वसंध्यायांवारिदोयदिगर्जनि॥ तद्दिनेस्यादनध्यायोव्रतं तत्रविवर्जयेदिति॥बतेन्हिउपनयनदिवसे॥ वारिदोमेघः॥तद्दिनेबनदिने उपनयनदिनइ तियावत्॥वतंउपनयनं॥तत्रअनध्याये॥अनेनवचनेनसर्वस्येवोपनयक्रियाकलापस्य निषेधेप्राप्ते नांदीश्राप्तोत्तरंवेदारंभरहितस्यसर्वस्योपनयनस्थकर्तव्यतोक्ताज्योतिर्निवं ||191 // | धे॥ नांदीश्रादेशनेचे स्यादनध्याय स्वकालिकः॥मौंजीबंधनदाकुर्यादेदारंभनकारये For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie दिनि ॥मृगादिविशारपांतव्यतिरेकेषुयदृष्टिगर्जनादिकंतदकालिकंतन्निमित्तोनध्या योडकालिकः ॥सचनांदीश्राद्धोत्तरंचेत् तदामोंजीबंधउपनयनंकुर्यान्॥ तवत्यवेदारंभ मात्रंतुनैवकारयेदित्यर्थः ॥नांदीश्राद्धरुतइतिवचनान्नांदीश्राद्धास्त्राग्वारिदगर्जनेमों जीबंधोपिनभवति॥वेदारंभनकारयेदिनिनिषेधकयेषांसूत्रेवेदारंभस्मदिनएपविहि तिस्तत्परः॥सत्यापाटसूत्रानुसारिभिरकालिकानध्यायेपिमौंजीबंधएतस्मादचनाकर्तव्य ए॥वेदारंभस्वविहितवादेवनभवति॥ननुगायत्र्यारंभेणेवसर्ववेदारंभोभवतिप्रयोगा|तरेउक्तत्वात्गायत्र्युपदेशामकारंपएपसर्ववेदारंपस्तस्यचवेदारभनकारयेदित्यनेननि For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsur Gyanmandie // 19 // संस्कार षेधइतिचेन्न।तस्याथर्ययेदव्यतिरिक्तसर्ववेदांतराध्यापनार्थकपुनरुपनयननिवृत्तिबोधना भास्कर र्थखात्॥नचावकिमानमितिवाच्या सर्वेभ्योवेदेभ्यःस्यसावित्र्यनूच्यतइनिहिब्राह्मणमिति धर्मसूत्रस्यअगृह्यमाणविशेषलादेकमेवोपनयनंसर्वार्थमितिन्यायः॥ अस्मिन्नर्थेशाव्यायनब्राह्मणमेवपग्निं॥अथर्ववेदस्यतुपृथगुपनयनंबचनाकर्तव्यं॥तथाचनवश्वना ॥नान्यत्रसंस्कृतोग्यंगिरसोधीयीतेनि॥अन्यत्रअन्यवेदार्थं ॥ण्यंगिरसोयर्यवेदइत्युज्ज लारुयाख्यानस्यचमानवान्।उपनयनारंभोत्तरंसूतके प्राप्तविशेषःसंग्रहे॥कूष्माडीभिघुन / 192 // हुलागांचदयासयस्विनीं। चूडोपनयनो दाहप्रतिष्ठादिकमाचरेदितिसंस्काररत्नमालायां।। For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नच्चोदगयने ज्योतिः शास्त्रोक्त शुभमास शुक्लपक्षगुरुवाकालवाल्ययार्धक्यादिदोषरा हितेप्रदोषानध्यायादिनिथिरहितदुष्टवासरादुर्योगादिदोषरहितेशदिनेसलग्नेस मुहूर्नेकार्थ / / माधवीयेकालनिर्णयेलमकालश्॥प्राकपालेद्विजानीनांव्रतबंधःप्रशस्य ते॥बनोहेद्विजातीनामपराण्डविवर्जयेत् // तत्काल:पितृकर्मणोमंगलेखक मप्रदः॥ | राबोनिशीयासरतआसरकालउच्यते॥ तत्रैवपाणियहणंसुलमेप्याभप्रदमिनि।पारा शरस्मनौ।। अनन्यगनिकत्वेतुगोणपक्षसमाचरेत् // अन्यथास्वीरुतोदोषस्वनिष्टफलभागमये दिति॥ // नत्राधिकारीच॥ गार्ग्यः॥पितैयोपनयेत्पुत्रंनदाचेपितुःपिना॥ तदनाचेपितुर्मा For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नानदभावेनुसोदर इति ॥बनबंधकुमारस्यविनापितुरनुज्ञया॥यःकरोनिद्विजोमोहान्न भास्कर रकंपतिपयतेइति ॥पितरिपोषिते प्रेतेसंन्यस्नेपनितेथवा॥विनाज्ञयाप्युपनवेदन्यत्र अधि कारिणेति॥अथाचार्यादिश्च॥ // याज्ञवल्क्यः॥सगुरुर्यःकृपांरुवावेदमस्मे प्रयच्छ नि॥ उपनीयददद्वेदमाचार्य:सउदाहृतः॥ ॥मनुः॥ एकदेशंतुवेदस्यवेदांगान्यथयापु नः॥योध्यापयतिवृत्यर्थमुपाध्यायःसउच्यते॥ ॥पारस्करः॥निषेकादीनिकर्माणियः करोतियथाविधि // संभावयतिचान्नेनसविप्रोगुरुरुच्यते॥ अम्याधेयंपाकयज्ञंअमि|| ||193 // टोमादिकान्मरवान्॥ यःकरोनिवृतोन्येनसहिजोकलिगुच्यतेइति॥ ॥उपाध्याया For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शाचार्यआचार्याणांशनपिना॥ सहस्रंतुपितुर्मानागौरवेणानिरिच्यतेइति ॥अधिकारसि इयेप्रायश्चित्तमाहविष्णुः॥रुच्छ्वयंचोपनेताबीन्छांश्चबटुअरेत्। आचार्योदश साहस्त्रांगायींचजपेत्तथा॥ बटुप्रायश्चित्तकारणं॥ प्रायपनयनाकामेराचार कामवादिभिः // लशनादीन्यभक्ष्याणिकतोस्त्रीस्पर्शनादिभिः॥ // मंडपश्च॥ संग्रहे॥ दशद्वादशहस्तो ल्पोमध्यमोऽर्कमनून्मिनः। पोडशाष्टादशकरउत्तमःपरिकीर्तितः॥ युग्महस्तोविनिर्मायापि षमकरोनैवच॥ चतुरस्त्रसमःकार्यः षोडशस्नमसंयुत्तः॥ चूडाषोडशभिर्युक्त द्वात्रिंशादिः प्रचूडकः॥समर्षिमते॥ मङ्गलेषुचसर्वेषुमंडपोगृहवामतः॥कार्य षोडशहस्तोवा For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार यूनहनोदशावधीति॥ सार्धचत्वारिपंचर्चासप्तहस्तसमुछित्तः॥नारिकेलदलैर्बाह्ये- भास्कर // 194|| दुकूलादिभिरंतरे॥ छादयेन्मंडपसर्वचतुरिविवर्जितमिति॥ ॥वेदीच॥ बटोर्वेदीप|| कर्तव्याचतुरस्त्राचनुःकरा॥ करोन्नताबटोहरलै पृष्टेसोपानसंयुता॥१॥विवाहेश्रीधरीवेदी विंशत्यससमन्विता॥ चतुर्विंशत्यत्रयुनावतेवेदीप्रकीर्तिता॥१॥विवाहोपनयेवेदीएनेषुवज्जर च्यते॥ तदयेकलशाकारमितियज्ञविदांमतं // 1 // गृहान्निर्गमवामांगेवसोचियेदिका॥ कार्याविवाहेविद्भिौजीनांग्रहदक्षिणेइतिगृह्यकारिका।वेदीकुर्यास्यगेहा | // 194 // स्य वामेमंडपमंडितां॥ हस्तोछिनांचतुर्हस्तांकन्यायाश्यव्रतेवटोः॥ रत्नावल्यां॥ पश्चिमा For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भिमुरयंदारंयाचेदुत्तरामुरगं। वेदिकानुतदाकार्यागृहानिर्गमदक्षिणे॥निर्गमशब्देनगृह द्वारमुच्यते॥ दक्षिणाभिमुखंदारंपूर्वाभिमुखमेववा॥वामामागेतदाकार्यात्रतेवेदीयथातथ। एवंचनैर्ऋत्यांचेदीनभवतीनि तात्पर्यार्थः॥विवाहोपनयेयज्ञेवेदीकुर्यास्पयत्नतः।।वेदींषि नायदाहोम: कर्मचष्टोभिजायते इतिअश्वत्थामकारिकायां॥ऊखरेदुर्भगानारीशल्येचे वमृतप्रजा॥कोणवेधेयनापत्यंदारवेधेधनक्षयइति॥ अथघटीयंत्रप्रकारमाह॥ // कालंसाधनेयंत्रनिर्णयोयथा॥ कालसाधनयंत्राणिबहूनिपृथिवीतले॥ तन्मध्येमंगलेमु रव्यंघटीयंत्रप्रकीर्तितमिनिसंस्कारको मुद्यां॥ ततःकुमारपितासस्नातोधृताहततिलको For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार हनप्रमाणोदीर्घताम्रपात्रंजलेनापूर्यधान्यराशीसंस्थाप्यतदम्रगणपतिवरुणीसंपू- भास्कर ज्यस्थापितजलपूर्णपात्रेअधोभागकुंभार्धारुतिताम्यमयींदशपले स्तुलितांषडंगुलोछित्तों द्वादशांगुलविस्तृतांघटीमहोरात्रषष्टितमपूर्णप्रमाणाकालसाधनार्थमार्तंडमंडला|दयं वीक्ष्यक्षिपेत्॥ तामेवास्तसमयेअवशेषार्धबिंनिरीक्ष्यक्षिपेत्॥ घटींगंधादिभिःसंपूज्य पार्थयेत्॥मुख्यात्वमसियंत्राणांब्रह्मणानिर्मिताघटि॥ भवभावायबटवे कालमाधनका रणमिति॥ // प्रक्षिप्तघटीअष्टदिशांमध्येयदिग्गनानत्यागादितः कमेणफलानि॥यथा // 195 // // पार्थिनासाघटीतोयेयांदिशंपतिगच्छति॥पूर्वादिदिक्फलंचैवस्थितामध्येशाप्रदा॥ For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सबंदुःखंतथामृत्यूरोगीपियसुबुद्धिमान्॥वेदविद्यारनःश्रीमान्फलंपूर्वादिदिक्कमात्य दाअनिष्ट दिग्गनाघी पूर्णावा तदाउपनयनानंतरंसुदिनेतिथिवारनक्षत्रलमदिग्पनी नांपूजनंतिथ्यादिदेवनानांउक्तमंत्रणायुतजपंतदशांशतिलाज्यैमंदानादिकंचक र्यादितिघटीसूत्र॥ // अथमंताराः॥तत्रपरिधानयस्त्राणांमूत्रव्यारव्या॥ वासासि शाणक्षोमाविकानिब्राह्मणक्षत्रियविशां॥ त्रयाणांब्रह्मचारिणांकमेण॥ शणलड्मयंशाणं॥ क्षोमंसुमाआनसीनहिकारमयंपट्टकूलं॥आधिकं अवेर्मेषस्यरोमनिर्मितनेपालकंबलं॥सर्वेषां कार्पासंवा॥ कालमाहतंबासोब्राह्मणस्य॥ मांजिष्ठंक्षत्रियस्य॥पीतंवैश्यस्येति॥संस्काररत्न For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मालायो॥उत्तरीयधर्मसूत्रे॥ हारिणमेणेयंचाकृष्णब्राह्मणस्य कृष्णचेदनुपस्तीर्णासनशायी // 96 स्याद्रौरपंराजन्यस्यबस्ताजिनंवैश्यस्याविकंसार्ववर्णिकमिति॥हरिणोमृगस्तस्यविकारोहारि णंचर्म॥ एणीमृगीतस्याविकारऐणेयं तच्च कृष्णं॥रुष्णचेदितनके वलंहारिणंतदानस्मिनआस्तीर्णेनासिनेनचशयीत॥रुरुबिंदुमान्मृगः नस्यविकारोरोरवं ॥बस्तश्छागस्तस्या जिनं // अविस्'युर्मेषस्तस्यविकाराविकंतत्सर्वेषांवर्णानां॥तस्थहारिणादिभिर्विकल्पः॥ कंबलोप्याविकएयसर्वेषामित्यर्थइतिव्यारल्यानमुज्वलाकृता॥पावरणपर्याप्तोत्तरीयाजि नासंभवेशाकलः॥ अरवंडंबाविरवंडंचाष्टाचवारिंशदंगुलं॥ चतुरंगलविस्तीर्णधारयेद For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |जिनंसदेति॥ वंडनयमानस्मृत्यंतरे॥व्यंगुलंतुबहिर्लोमयहास्याच्चतुरंगुलं॥ अजिनंधा रयेहिपश्चतुर्विशाष्टपोडशेरिति॥ चतुर्विंशांगुलएकः ॥अष्टांगुलोद्वितीयः॥षोडशांगुलस्ततीयः ॥एवं विभिःरचंडैरष्टाचवारिंशदंगुलपरिमंडलमजिनंधार्यमित्यर्थः॥अत्रपरिषेचणा थंकिंचिदधिकं याचं॥ अन्यथाअष्टाचत्वारिंशदंगुलमजिनंधार्यमित्यनेनविरोधापत्तिः।। वांगुलानिसंस्कार्यस्ययाह्याणि॥स्मृत्यर्थसारे॥ आहतंवस्त्रयुग्मंचश्वेत्तरक्तमथापिचा।का, ष्णरौरवबस्तानिविप्रादेरजिनानितुइति // यथा ॥अजिनंव्यंगुलंचापिचतुरंगुलविस्तृतं॥ बहिःअरोमसंगृह्यधारयेदुपवीतयत्॥ यथावर्णस्थवसनंतत्तत्सूत्रेणधारयेदिनि॥गदाधरण For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahave Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार , कार्पासमयमंबरईपत्धी नवं श्वेतंनान्यधारित प्राचारार्यकसिनं॥ ॥मेखला॥ मौंजीमेय मास्कर // 197) लांत्रिवृतांब्राह्मणस्यधनुार्ट राजन्यस्याविसूत्रवैश्यस्येति ॥मौजी मुंजणनिर्मिती विवृतांत्रिगुणां॥ धनुषोरज्जुा // अविसूत्रअविलोममयीरज्जुः॥ धर्मसूबेपि // विवृमौंजीमेरवलाब्राह्मणस्यशक्तिविषयेदक्षिणावृतानांज्याराजन्यस्यमोंजीवाऽयोमिश्रापिसूत्री वैश्यस्यसेरीतामलीवेत्येकइति ॥त्रिवृत्तिगुणामुंजानाधिकारीमोंजी॥ एवंभूताब्राह्मण स्यमेखला भवति॥साचशक्तिविषयेशक्तीसत्यांदक्षिणावृतानांकर्तव्या॥तद्धितार्थेगुणमू- 197 // तानामपिमुंजानामेतहिशेषणं॥ज्याधनुषारज्जुः॥अथवामौंजीसाचायोमिश्राक्कचित्काला For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यसेनबद्धा ॥अधिरे यायिः अव्याः सूत्रमापिसूत्रअविलोममयीरज्जुःसैरीसीरवाहयोकर ज्जुः॥तामलोवृक्षस्नस्यत्वचायथितातामलीएवंभूतासावैश्यस्यमेरवलेत्येके आचार्यामन्यतइति व्यारव्यातमुज्वलारुता॥विशेषमाहमनुः॥विवृन्मोजीसमाश्लक्ष्णाकार्याविपस्यमेखला॥क्ष त्रियस्यतुमो-ज्यावेश्यस्यशणतांतचीतिसमान क्वचिसूक्ष्मानकचित्स्यूलाकिंतर्हिसर्वन एयसमा॥ लक्ष्णानंतु तनुवराणयुक्तापरिधृष्टाच॥ ज्याकदाचिच्चर्ममयीभवतिकदाचित्रण मयीतवचर्ममयीव्यावृत्यर्थमौर्वीज्याविशेषणं॥ तयाधत्तुषोवतारितयाश्रोणिबंधःकर्तव्यइ तिमेधातिथिः॥ ज्यायांत्रिवृत्सादिगुणेनस्वरूपनाशप्रसंगात्॥ शणतांतव्यास्वस्त्येवेनिशे For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार यं॥ अनुकल्पमाहमनः॥Kजानावेतुकर्तव्या कुशाश्मनकबल्वजैः॥विनायंथिनैकेनत्रि | // 198 // भि:पंचभिरेययेति // अवादिशब्दलोपोद्रष्टव्यः॥तेनेत्थंवाक्यं मयति॥मुंजायभावइनि।ग्रंथ यश्चप्रवरसंख्यथा॥ एकप्रयरस्यकोयंथिः। विप्रवरस्यत्रयः॥पंचप्रवरस्यपंचेतिवृद्धाः॥६ तिसंस्काररत्नमालायां॥ मोंजीरशनाब्राह्मणस्य॥ धनुाराजन्यस्य॥ मौवैिश्यस्य॥ मुंज शरः तत्वङ्मयी॥धनाधनुर्गुणः॥मुंजायमानेकुशाश्मंतकबल्बजानां॥ क्रमेणब्राह्मणा दीनां॥ अश्मंतकबैल्यजस्तखङ्मयीवाश्मंतकारख्यंबेल्वजाख्यतृणमयीनिभर्तृयज्ञव्याख्या // 198 // ने॥ तांत्रिवलीलतांबटोःकटिप्रदेशेप्रदक्षिणबधिरावेष्ट्यअनंतरग्रंथयायःपंचवायथा For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रयरनियमेनकार्याः॥ // यज्ञोपवीतं॥ कार्पासोनिर्मल प्रोक्तः इचिक्षेत्रसमुद्भवः।।त चावेसूत्रनिष्कासंसंहतांगुलिमूलके॥ आवेष्यषण्णवत्यातत्रिगुणीरुत्ययलतः॥अधिप्रद क्षिणावृत्तंसमस्यान्नवसूत्रकं॥ तत्रिःप्रदक्षिणीकृत्यब्रह्मयंथिःप्रदीयते॥ पृष्ठवंशेचनात्या चधृतंयहिंदनेकटिं। स्तनादूर्धमधोनाभ्यां तन्नधार्यकदाचन॥ नवार्यमुपपीतस्यान्ना निलंबनचोट्रितं॥विच्छिन्नवाप्यधोतंबामुक्तानिर्मितमुसजेत्॥ ब्रह्मचारिणएकंस्या स्नातस्यदेवहूनिवा॥ तृतीयमुत्तरीयार्थे वस्त्राप्ताचेचतुर्थकमिति॥ ॥दंडः॥पालाशोब्रा ह्मणस्यदंडोबैल्बोराजन्यस्योदुंबरोवैश्यस्य॥सचअंगुष्टमात्रस्थूलतरः अवक्रसाग्रसत्व For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार चः पादादिललाटोनिमकेशसंमिनदीर्घाब्राह्मणस्य॥विल्यवृक्षोद्भयोललाटमूलसंमितोराज भास्कर // 199 // न्यस्य // औदुंबरवृक्षोयोदंडीघ्राणायसंमितोवैश्यस्येति॥ उपनयनेमात्रासहभोजनंभर ज्ञातंसंयहकारेण॥मात्रासहोपनयनेविवाहेमार्ययासह॥ अन्यत्रसहमुक्तिसातित्यं प्रामुयान्नरइति // सत्रयात्मकप्रायश्चित्ताचरणोत्तरंकाम चार कामवादकामभक्षणनि षेधप्रवृत्तेरियनस्त्रीयासहशुंजीतेनिनिषेधस्यापिप्रवृतखात्तस्यवाधोनेनक्रियते॥नचमा बासहोपनयनइनिवचनादुपनयनमध्ये यातिप्पोजनानितेषुसर्येष्यपिमासहिनस 199 // मस्तिनिवाच्यं आचारसंवादेनसूत्रोक्ताशनपर्यायक भोजनएचैतस्यवचनस्यप्रवृत्तेरु For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चितत्वेनमधानोत्तरकालिकेसूबरुताकंठरणानुक्मोजनेमात्रासहेत्यस्याप्रवृतेः॥ यत्तु॥मावासहैवमुंजीतऊयमातारजस्वला॥ व्रतबंधःप्रशस्तस्यादित्याहभगवान्य मइतिवचनतः भोजनात्याक्मातरिरजस्वलायांव्रतबंधोनभवतीतिकेचित्॥अन्येतुए तस्यवचनस्थैवमहानिबंधेष्यदर्शनेननिर्मूलसात्कर्तव्यमेवेत्याहुः॥तदत्राचारानुरोधे नयाज़।। मातृभोजनानंतरंकुमारस्यवपनंकारयंतितच्छाखांतरविषयं॥इतिसंस्कार रत्नमालायां॥ ॥अथकमकारिका॥ दत्वाप्रेषड्यंप्राग्वसनथरशनाब्रह्मसूत्रोत्तरी यंदंडःपूर्णाजल्यर्घःप्रणतरवियरोलमपृच्छापदानं॥वन्हिंचावृत्तचास्मनुमितहवनं| For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सरकार स्वीयसाविधिदानंयन्हे :कार्यस्वशिक्षाकथयतिनियमंब्रह्मचर्येविकल्पः॥१॥अथसर्वसाधा // 20 // रणसंभाराः॥घटीयंत्र॥ सदशांतःपटः॥परिधानार्थकोपीनं॥विवलीकृतमेखला॥यज्ञोप वीतं॥कार्पासमयंाहतवाससउत्तरीय॥ अजिनमुत्तरीयार्थ॥ अवृण:सरल सत्वचःसान:पाला शदंड। अंजलिपूरणार्थमुदकं॥ पूगीफलानि॥चंदनाक्षतपुष्पाणि॥गायत्र्युपदेशार्थआचारपाप्तंकांस्यपात्रंसवर्णशलाकातंडुलाश्च॥कुशाः॥इंधनानि॥समिधः // भिक्षाचर्य | पात्रंचेति॥ अथप्रयोगः // अत्रबहिः शालाभवति॥ तत्रोदगयनेज्योतिः शास्त्रोक्तशुभ | // 200 // / मासेशक्लपक्षेशमेदिनेसुमुहूर्तेउपनयनकर्तुतत्पूर्वयुः यजमानपत्लीकुमारान्यांसहमं For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गलंस्मालाआहतवाससीपरिधायालंकृत्यधृततिलकोबहि:शालायांशुमासनेपामुरवउपयि श्यस्वदक्षिणतःपत्नींनदक्षिणतःसंस्कार्यंचोपवेश्यधृतपवित्रपाणिराचांत: प्राणानायम्यदेश कालकीर्तनातेस्वस्योपनेतृत्वाधिकारसिध्यर्थच्छ्वयात्मक प्रायश्चित्तंबातमत्याम्नायगो निष्क्रयीमूनयथाशक्तिरजतद्रव्यदानपूर्वकंद्वादशसहस्रद्वादशाधिकसहसूवागायत्रीजप महंयथावकाशंकरिष्ये अथवाब्राह्मणद्वाराकारयिष्येइनिरुत्या॥अथकुमारेणापिदेशकाल कीर्तनांतेममकामचारकामवादकामातक्षणादिदोषपरिहारार्थकच्छ्वयात्मकप्रायश्चित्त प्रत्याम्नायगोनिष्क्रयीमूतयथाशक्तिरजतद्रव्यदानपूर्वकंद्वादशसहस्र द्वादशाधिकसह / For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संवागायत्रीजपंब्राह्मणदारामहमाचरिष्येइतिकारयिखा। उपनयनकार्य॥ यजमान:पुनः भास्कर // 20 // देशकालकीर्तनांतेअस्यकुमारस्यहिजबसिध्यैवेदाध्ययनाधिकारसिध्यर्थश्रीपरमेश्वरपी त्यर्थचउपनयनंश्वः याभयकरिष्ये॥यदाचौलेनसहोपनयनंक्रियतेतदासंकल्लेचौलोपनय नारव्येकर्मणीअहंकरिष्येइत्यूहः॥ तत्रनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंआ विधपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंबसोहराआयुष्यमंत्रजपनांदीश्राइंचायकरिष्येना, |दीश्राद्धांनंकला // अत्रपुण्याहवाचनातेइंद्रःप्रीयतामित्यूहः कर्तव्यः॥यदातदिनेग्रहया // 21 // शंकरोतितदा॥अस्यकुमारस्यग्रहानुकूलतासिध्यर्थंग्रहयज्ञंकरिष्ये॥ तत्रादौनिर्विघ्ना For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir थंगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनं अविघ्नपूजनंमंडपस्थापनमातृकापूजनंयसो | राआयुष्यमंत्रजपंनांदीश्राईब्रह्माचार्यऋखिग्यरणंदिग्रक्षणपंचगव्यकरणंभूमिपूजन अमिस्थापनंनवयहस्थापनरुद्रकलशस्थापनंचायकरिष्ये॥नांदीश्रादानंतरं यजमा नेनवंशपात्रंस्वयंगृहीत्वाअविधगणपतिकलशमार्ययाग्राहयित्वाघंटादियायघोषेण सहितःसब्राह्मणः स्वस्तिनऽ इंद्रेत्यादिमंत्रान्वक्ष्यमाणाथैना आय्याश्चपठन्सन्ग्रह |मध्येगत्वाप्रतिष्ठापनदेशमुपलेपयित्वारंगवल्यादिभिरलंरुत्यतत्रश्रीपादिपीटंस्थाप यित्वातदुपरितंदुलान्प्रतिष्यतेषुत्तद्वंदापात्रानर्यपृजाम्मैपाहिश स्थपशून्मेपाह्ययं | For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 202 // पितुम्मेपाहि इनिमंत्रणप्रतिष्ठाप्यतत्रैवोत्तरतःकलशमार्थयानिधाप्यपंचोपचारे संपूजयेगास्कर त्॥ अथवादेवस्यायेस्थापनीयं॥ तत्रमंत्रः॥ ॐ अथैना आप्यानवतीभ्यामभिमशती दमेवैतद्वनःसिक्तमाय्यायत्तेसोमाभ्यां प्राणोवैसोमःपाणन्नद्रे तसिदधातितस्माद्रेन:सिक्तं प्राणमभिसम्भवतिपूयेतेप्राणासम्मवेदेषोहैवात्रसूददोहाःप्राणोवैसोमःप्राणःसूद दोहाः॥१॥ग्रहयशंकरोतिचेत् तदाआचार्यवरणादिहोमशेषंसमाप्य॥ कृतस्यकर्मण:सो गतासिध्यर्थनानानामगोपयोब्राह्मणेश्यःगंधादिनापूजयिष्यानित्यश्वभूयसीदक्षिणां // 22 // दलातैराशिषोगृह्णीयात्॥ ॥ततउपनयनदिनेकुमारपिताबहिः शालायांदेशका For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir लकीर्तनांतेउपनयनांगपिहितं अस्यकुमारस्यवपनंकरिष्येवपनंकारयित्वा॥पुनः अस्यकुमारस्यउपनयनेअधिकारायंत्रीन्ब्राह्मणाभोजयिष्ये। अनुच्छिष्टपाके नब्राह्मणत्रयमो जनं॥तत्संक्तीमुंडितशिरा:सुस्मातः कुमारो जीत॥भोजनानंतरंकुमारस्नापयित्वा।पुनः कुमार पितावहिशालायांवेयुपरिशुभासनेउपविश्यअस्यकुमारस्योपनयनांगभूतंअग्रिम तिष्ठापनंकरिष्ये॥येयुपरिस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसमुद्भवनामामिंप्रतिष्ठाप्या। ततोब ९पर्युप्तशिरसमलंकृतंवेयग्रेआचार्यसमीपमानयंति।वेयाःसोपानेवस्थाप्य॥ ततःसदृत्त यःस्ववर्णदृटपुरुषाः मध्येंतःपटंधारयेयुः॥दैवज्ञाःसमंगलपयानिपठेयुः॥सुलोसमुहूर्त For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मनोजूतिरितिमंत्रएषवैप्रतिष्ठाइतिमंत्राचाराद्विजापटेयु: प्रतिष्ठेतिपठित्वासमु भास्कर // 20 // हूर्तेसप्रतिष्ठितमस्तितिब्रूयुः // अंतःपरंउदनिःसार्य कुमारंआचार्यपादोपणमय्यतद्दति णतःपश्चादनेरवस्थाष्य॥नतोब्राह्मणाप्रतिष्ठामंबान्पठित्वामाणवकशिरसिअक्षतान्समर्पयेयुः॥तवमंत्रः॥ ॐ मौजूति षतामाज्यस्यबृहस्पतिज्ञामिमनोत्वरिष्ट्रयझर्ट समिमन्दधातु॥विश्वेदेवास इहमादयन्नामा प्रतिष्ठ॥१॥ ब्राह्मणं॥ ॐ मनो जूति षतामाज्यस्येतिमनसावा इदर्द सर्वमाप्तन्तन्मनसैवैनत्सर्वमामोनिबृहस्पतिर्य // 23 // जमिमृन्तनोखरिष्टयज्ञ समिमन्दधातितिबविवढं तत्सृन्दधातिविश्वेदेवाःसा इहमादय For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तामितिसर्ववैधिश्वेदेवाणेवैतसृन्दधातिसदिकामयेतयात्मृतिष्ठेति॥१॥एषवेष भूमियज्ञोयतेनजेनयुजन्तेर्वमेवप्रभूतम्भवति॥२॥ एषवैधिपूनमयज्ञोपत्र। नय ज्ञेनयजन्नेसर्वमेवविभूतम्भवति॥३॥एषवैव्यष्टिमियज्ञोयौनयज्ञेनयजन्तेसर्वमेवघ्य एभवति॥१॥ एषयिधृति मय॒ज्ञोयतेनयज्ञेनयजन्नेसर्वमेवविधृतम्भवति॥५॥ एषयै निर्नामयज्ञोयौनयज्ञेनजन्तेसर्वमेवव्या॒कृतम्भवति॥६॥ एष वाउ ऊर्जस्वान्नाम यज्ञोपौतेनयज्ञेनयजतेसूर्यमेवोर्जस्वद्भवनि॥७॥ एषवैपयस्वाग़मयज्ञोयत्रतेनयजे नबजनेसर्वमेवयस्वद्भवति ॥८॥एषवैब्रह्मवर्चसीनामयज्ञोयफ्रतेनयज्ञेनयजन्त आना For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsuri Gyanmandie भास्कर संस्कार // 204 // ह्मणोब्रह्मवर्चसीजायते॥९॥एषा अतिव्याधीनामयज्ञो।नयज्ञेनयजन्त आराज योनिव्याधीजायते॥१०॥ एषवेदी|नामयज्ञोयत्रतेनयज्ञेनयजंत आदीर्घारण्य ज्ञायते॥ | // 11 // एषवैक्लुप्ति मयज्ञोयतेनयज्ञेनवजन्तेसर्वमेयलप्तमायति॥१२॥एषवैप्रतिष्ठानाम यज्ञोयतेनयज्ञेनयजन्तेसर्वमेवप्रतिष्ठितम्भवति॥१३॥ ॐ प्रनिष्टासपत्तिष्ठिननस्त॥ ब्रह्मवर्चसीभव॥ आब्रह्मन्नित्याशिषंदाः॥ ततःप्रेषयो।ब्रह्मचर्यमागामितिब्रूहीत्याचार्यो वदति॥ब्रह्मचर्यआगामितिकुमारोब्रूयात्॥ब्रह्मचारीपाड्मुखस्तिष्ठन्ब्रह्मचर्यमागामि || | // 20 // निब्रूयादितिगदाधरादयः।।उदङ्मुखइतिरेएदीक्षिताः ॥ब्रह्मचार्य सानीतिबृहीत्याचार्यो | For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चदनि॥ ब्रह्मचारीअसानीनिवदुर्ब्रयात्॥ अथाचार्योमाणयकस्यकटिसूत्रंबध्याकोपीनंपरि धाफ्यति॥ ॐयेनेन्द्रायबृहसतिर्वासःपर्यदधादमृतं॥तेनखापरिदधाम्पायुषेदीर्घायुखायब लायवर्चसे // 1 // इत्यनेनमंत्रेण॥ आचमनं॥ तताचार्योमाणवकस्यकटिप्रदेशेमेखला प्रदक्षिणत्रिदृष्टयित्वाययोक्तलक्षणांयथाप्रवरग्रंथियुतांबध्नानि॥ ॐ इयन्दुरुक्तम्परियाध मानावर्णम्पवित्रम्पुनतीम आगात् // प्राणापानाभ्याम्बलमाददानास्त्रसादेवीसुभगामेखलेयं॥ इत्यनेनमंत्रण|आचमनं॥ अथाार्मयज्ञोपवीतमभिमंत्रयेत्॥नप्रकारः॥आपोहिष्ठेति निसभिकग्निरुपीतंप्रक्षाल्याब्रह्मयज्ञानंगाइदंविष्णु नमस्तेरुद्रः॥ इतितिमृतिकन्भि For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार रुपनीनेभंगुष्ठंघामयेत॥ पुनस्तथैवनयतंतुषुदेवनाःविन्यसेत्॥ नयथा॥ ओंकारंप्रथम भास्कर तंतोन्यसामि॥ अनेनप्रकारणाये, ष्टम् // ॐकारा मिनागाश्रमोमरंद्र प्रजापतिः॥ वायुः सूर्याविश्वेदेवाइत्येनेनवर्तनवः // 1 // ॐ उपयामहीतोसिमाविबोसिचनोधाश्चनो धाउ असिचनोमथिंधेहि ॥जिन्यज्ञजिन्वयज्ञपतिम्मगीयदेवाय त्यामवित्रे॥१॥ इतिसूर्याय प्रदर्शयेन्॥ ततउपवीतंकरसंपुटेनिधायदशगायत्र्याभिमंत्रयेन्॥ॐ तत्सवितु // 1 // ततो माणवकोमंत्रपठन्दक्षिणहस्तेनोयकतेनदक्षिणकरमध्येयज्ञोपवीतंप्रक्षिष्यवामेनवामस्कंधे // 205 // धारयेत्।।ॐयज्ञोपवीतम्परमम्पपिवम्प्रजापतेर्यत्सहजम्पुरस्तात् // आयुष्यमय्यम्प्रतिम | For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ञ्च यज्ञोपवीतम्बलमस्तुतेजः॥१॥ यज्ञोपवीतमसियज्ञस्यत्वायज्ञोपवीतेनोपनया मि॥२॥ इत्यनेनमंत्रण॥ आचम्य॥ ततः कार्यासमहनवासःपावारंउपचीतवत्प्रयच्छति।। ॐ युपासवासा: परि० // 1 // अथाजिनंप्रयच्छति॥ॐमित्रस्यचक्षुर्धरुणम्बलीयस्ते जो यशस्विस्थविर समिद्धम्॥ अनाहनस्यम्वसनञ्जरिष्णुःपरीदम्वाज्यजिनन्दधेहम्॥१॥ इतिमाणवकस्थमंत्रपाठः // अथाचार्योमाणवकायदंप्रयच्छति॥ प्रतिगृहानि॥ॐ योमेदं ड: परापनद्वैहायसोधिभूम्याम् // तमहमुनराददाम्यायुषेब्रह्मणेब्रह्मवर्चसाय॥१॥ इतिमाणवकम्यमंत्रपाठः॥दीक्षावदेकेदीर्घसत्रमुपैनीतिवचनात्॥अथाचार्यः स्वांजलिजलेना For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पूरितेनमाणवकांजलिंपूरयत्यापोहिष्टेतितिस्मृतिकग्मि॥आचार्यपठिनेनमाणचकःसूर्याया। भास्कर ॥२०६॥दयात्॥ॐआपोहिष्ठा०॥१॥योच शिव०॥२॥ तस्माऽ अर॥३॥ श्रीसूर्यायनमः।इदमद ननमम॥ इत्याचार्यस्यमंत्रपाठः॥ तत्तआचार्योमाणवकं सूर्यमुदीक्षपतिप्रेषयेत्॥माण चकः सूर्यमुदीक्षते॥ तच्चक्षुर्देवहितं ॥१॥इतिमाणवक स्यमंत्रपाठः॥ अथमाणव कस्यदक्षिणस्कंधोपरिहस्संनीत्वातस्यहृदयमालभते आचार्यः॥ अंममवनेनेहृदयन्दया / मिममचिन्नमनुचित्तन्तेअस्तु॥ममयाचमेकमनाजुषस्वबृहस्पतिवानियुनक्तुमा॥॥॥२०॥ इत्याचार्यस्यमंत्रपाठः॥ ततोमाणवकस्यदक्षिणहस्तमाचार्योगृहीखा। कोनामासि॥इत्या For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ह॥ एवंपृष्टः कुमारःप्रत्याह॥ अमुकशर्माअहंभो॥ एयंत्रिः आचार्यः प्रतिपृच्छतिमाण यकं॥ कस्यब्रह्मचार्यसीनिआचार्य:॥ भवतइत्युच्यमानेमाणवकेन॥माणवकंपतिआ चार्याब्रूयात् // इंद्रस्यब्रह्मचार्यस्यमिराचार्यस्तवाहमाचार्यस्तयासोअमुकशर्मन्॥अथेन म्भूनेयापरिददात्याचार्यः // ॐ प्रजापतयेखापरिददामिदेवायसासवित्रेपरिददाम्य यस्तो पधीभ्यः परिददामिद्यावापृथिवीभ्याखापरिददामिविश्वेश्यस्खादेवेश्यः परिददामिसर्ये प्यस्वाभूतपयःपरिददाम्यरिष्ट्ये॥१॥इत्याचार्यपठिनमंत्रणबदुरक्षणं॥प्रदक्षिणमनिंपर्यु क्ष्योपरिशत्याचार्यस्योत्तरतोमाणयकः॥ ततः ब्रह्मोपवेशनादिपर्युक्षणांतंचरुवर्जाप For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 207 // संस्कार र्युक्षणानंतरंआधारावाज्यभागीमहायातयः सर्वप्रायश्चित्तंप्राजापत्यांनंसिष्टरुञ्चेनाश्च भास्कर || तुर्दशाहुतयः॥ॐ प्रजापतयेस्वा इदंप्रजापतयेनमम॥१॥ ॐइंद्रायस्वा० इदमिंद्रा // 2 // ॐ अमयेचा. इदमम०॥३॥ ॐ सोमायस्वा इदंसी०॥ 4 // ॐ भूः स्वाहाइदमम॥५॥ ॐ भुवःस्वा इदंवायवेन०॥६॥ ॐ स्वस्वाहाइदेसूर्यायः॥७॥ ॐ बन्नौअमेस्मत्स्वा इदममीवरुणापयो० // 8 // ॐसवन्नोऽ अमे एधिस्वा इदम ग्रीवरुणाभ्यां ॥९॥ॐ अयाश्यामेजट स्वाहा // इदमनयेअयसे.॥१०॥ ॐ येतेश // 20 // तं स्वास्चा- इदंवरुणायसवित्रेविष्णवेविश्वफ्योदेवेश्योमरुवः स्वःश्यश्च // 11 // For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उदुत्तमम् स्यामस्वा इदंवरुणायादित्यायादितये // 12 // ॐ प्रजापतयेस्वा. इदंप्रजाप० // 13 // ॐ अमयेविष्ट रुतेस्वाहाइदममयेषिष्टकतेन // 14 // तनःसंस्त्रयप्राशन।पवित्रायो |मार्जनं॥ अनौपवित्रपतिपत्तिः॥पूर्णपात्रवरयोरन्यतरस्यब्रह्मणेदान॥तचनाम्मादिपात्राप णीताविमोकः // ॐ आपःशियाइतिमंत्रणप्रणीताविमोकोदकेनमूनिपिंचेत्॥ थेब्रह्मचारिणमाचार्यः सर्ट शास्ति॥ब्रह्मचार्यसीत्याचार्योवदनि॥ भवामीतिब्रह्मचा शिवदति // आपोशान॥ इत्याचार्यः॥अशनानि // इनिब्रह्मचारी॥कर्मकुरु ॥इत्याचार्यः॥ करवाणि // इतिब्रह्मचारी॥मादिवासुषुप्याः। इत्याचार्यः॥ नवपामि॥ इनिब्रह्मचारी।। For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 20 // वाचंयच्छ॥ अध्ययनंसंपाच॥इत्याचार्थः // यच्छामि॥इतिब्रह्मचारी॥समिधमाधेहि॥इत्या भास्कर चार्यः॥आदधामि॥ इतिब्रह्मचारी॥आपोशानइत्याचार्यः॥अशनानीतिब्रह्मचारी॥ // अथास्मेब्रह्मचारिणेसावित्रीमन्वाहाचार्यः॥तवादोआचारात्कांस्यपात्रतंडुलान्प्रसार्थतदुप ||रिसवर्णशलाकया ॐकारव्याहृतिपूर्वकंगायत्रीलिखित्वा॥ अयपूतिथीममब्रह्मवर्च|ससिध्यर्थवेदाध्ययनाधिकारसिध्यर्थंगायत्र्युपदेशांगविहितंगायत्रीसावित्रीसरस्वतीपूज नपूर्वकंआचार्यपूजनंकरिष्ये॥मनोजूनिरितिप्रतिष्ठाप्य॥ श्रीश्चतेतिषोडशोपचारेपूजन // 208 / / रुत्वा॥ नतआचार्यपूजनं कुर्यान।कथंभूतायब्रह्मचारिणेइत्यपेक्षायांदक्षिणतस्लिष्टतामा / For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सीनायउत्तरनोमेः व्यवस्थितायप्रत्यङ्मुरवोपविष्टायपादोपसंग्रहणपूर्वकमुपसन्माचार्यसमीक्षमाणायस्वयमपिसमीक्षिताययादाचार्यः॥कथ।। ओंकारच्याहतिपूर्वप्रथमंपच्छः॥द्वितीय मर्धर्चश:॥ तृतीयंसर्वश:पठेत् // तत्रमंत्रः॥ हरि: ॐ मूवः स्वः तत्सवितुर्वरैपयुम्मदेिवस्य धीमहि॥धियोयोनः प्रचोदयात्॥१॥ एवंविरुत्कोपयोरपिप्रणवपूर्वकंस्वस्तिकरणं॥॥ संवत्सरेषण्मास्येचतुर्विद शत्यहेद्वादशाहेषडहेत्र्यहे येत्येषांकालानामन्यतमेकालेक्षत्रियवेश्या योः॥सद्यस्वेवगायत्रींब्राह्मणायानुब्रूयात्॥त्रिष्टुसंसावित्रींक्षत्रियस्य॥ जगतींसावित्री विश्यम्यब्रूयात् // इत्युपदेशः॥ अवायसरे ब्रह्मचारिणः समिदाधान।कुशोपग्रहोला / For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार निनःसमिधादायदंडसहितएयपश्चादमेरुपविश्य॥ नवप्रथमंनाघदक्षिणहस्सेनामे संधु भास्कर // 20 // क्षणं॥संधुक्षणं इंधनप्रक्षेपः॥यक्ष्यमाणमवैःपंचभिः॥ॐ अमेसुययःसुश्रवसमाकुरु॥१॥ ॐ यथा त्वममेसुश्रवःसवामसि // 2 // ॐ एवंमार सश्रयासोश्रवसंकुरु // 3 // ॐ यथात्वममे देवानांयज्ञस्यनिधिपाऽअसि॥४॥ॐ एवमहंमनुष्याणांवेदस्यनिधिपोभूयासम्॥५॥ इत्येतेः पंचभिर्मचैः पत्तिमंत्रमिंधनप्रक्षेपः // उमाश्यांसंधुक्षणप्रसिद्धिरस्ति॥ ततःप्रदक्षिणममिंजलेन पर्युक्ष्योतिष्टन्समिधआदधाति॥ॐ अमयेसमिधमहापंम्बृहतेजातवेदसे ॥अथात्वममेसमि // 20 // धासमिध्यस एवमहमायुषामेधयावर्चसाप्रजयापशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनसमिन्धेजीयपुत्रोम | For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |माचार्योमेधाव्यहमसान्यनिराकरिष्णुर्यशस्वीनेजस्वीब्रह्मवर्चस्यन्नादोभूयासर्ट स्वाहा // // 1 // इत्यनेनमंत्रणप्रथमां ॥ततोनेनैवमंत्रणद्वितीयांसमिधमादधाति॥पुनरनेनैवमंत्रेणत तीयांसमिधमादधाति॥ एषानइतिवासमिदाधानमंत्रः॥मंत्रसमुच्चयोवा // ततउपविश्यपू विवत्परिसमूहनं॥प-मूहनं अमेस प्रवेत्यादिपंचभिमत्रैःप्रतिमंवमिंधनप्रक्षेपः॥ ॥न तस्तूष्णींपाणीप्रतप्यवक्ष्यमाणै.सप्तभिर्मत्रैःप्रत्तिमंत्रणमुरवधिमार्जनं॥ॐ तनूपाउ अमे सिनन्यूम्मेपाहि॥१॥ ॐ आयुर्दा अमेऽस्यायुमेदेहि॥२॥ ॐ चर्चादा अमेसिच मे देहि॥३॥ॐ अमेयन्मैतन्वाऽऊनन्नन्मऽ आपण॥ 4 // ॐ मेधांमेदेवःसविता आदधा For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | तु // 5 // ॐ मेधांदेवी सरस्वतीआदधातु॥ 6 // ॐ मेधामश्विनीदेवायाधत्तांपुष्कर | खजी॥ 7 // इत्येतेमुरवमार्जनमंत्राः // अवशिष्टाचारप्राप्ताः केचनपदार्थालिख्या ते॥ ॐ अङ्गानिचम : आप्यायंतां // इति मंत्रेण शिरः प्रतिपादातसींगालंपनं // ततो दक्षिण हस्तायेण // ॐ वाकम, आप्या यतां // इतिमुरवालंम नं॥ ॐ प्राणश्चम : आप्या यतां // इति नासिकयोरालंघनं // ॐ चक्षुश्च| मआप्यायतां॥ इति चक्षुषीयुगपत्॥ ॐ श्रोत्रंचमऽ आप्यायतां // इतिदक्षिणश्रोत्रं॥ // // 210 // नेनैवमंबेणया मं॥ ॐ यशोबलंचम आप्यायतां ॥इतिबाव्होरुपस्पर्शनं॥ तनख्यायु // For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पकरणं॥प्रस्मनाललाटेग्रीवायांदक्षिणे सेहदिच॥ ॐ त्र्यायुषञ्जमर्दोः॥ इनिललाटे।। ॐ कश्यप॑स्य व्यायुषम्॥ इतिग्रीवायां॥ ॐ बद्देवेषुव्यायुषम्॥इतिदक्षिणेर्ट से॥ ॐ तन्नौ अस्तुत्र्यानुषम् इति हदि। ततःगोत्रनामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादनं // ततोब्रह्मचारीद क्षिणश्रोत्रेसमौकरीकलाभिवादयेत्॥ अमुकसगोत्रः अमुकप्रवरान्वितः अमुकशर्माअहंभो। वैश्वानर अभिवादयामिइतित्रिः॥३॥अमुकसगोत्र ॥मोसूर्यअभिवादयामि॥३॥असकस गोत्र // भोआचार्यअभिवादयामि॥३॥अमुकसगोत्र // मोअध्यापकगुरोखामभिवादया |मि॥ 3 // ततआचार्यादिः प्रत्यभिवादयेत्॥ अभिवादयस्व आयुष्मान्भवसौम्य अमुकर्म || For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार न॥ इनिप्रत्यभिवादनं॥ // यथाहयाज्ञवल्क्यः॥दक्षिणपदमालफ्यपाणिनादक्षिणेनच॥ स भास्कर // 211 // व्येनसव्यंस्पृष्टव्यमभिवादनकर्मणि ॥व्यक्स्यपाणिनाकार्यअमिंसूर्यगुरूंतथा॥उपसंग्रहणय थाइतिपाठभेदः ॥उमाभ्यामपिहस्तायांकारयेछोत्रसदृशौइति॥ अन्यथादोषोस्तियथा॥जा न्मप्रतियकिंचिच्चिकित्साधर्ममाचरत्॥सर्वतन्निष्फलंयातिएकहस्ताभिवादनादिति॥अभि वादनंतु॥मोशब्दकीर्तयेदं तेस्वस्यनाम्नोभिवादने॥ आयुष्मान्भवसौम्येतिवाच्याप्रत्यभिवादने इति॥ प्रत्यभिवादनाकरणे॥ योनवेत्यभिवादस्यविप्र प्रत्यभिवादन।नाभिवायःसविदुषायथा // 21 // शूद्रस्तथैवसः॥इत्यभिवादनं॥ ॥संध्यावंदनाधिकारस्त ॥यावब्रह्मोपदेशोनतावत्संध्यादि For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कंचन॥ ततोमध्यान्हसंध्यादिसर्वकर्मसमाचरेदिति॥ // अवभिक्षाचर्यचरणं॥ ब्रह्मचारीपा बंगृहीसा॥ भवतिभिक्षादेहि॥ इत्येवमुकाब्राह्मणोभिक्षांयाचते॥भिक्षायहणोत्तरंब्रह्मचा री ॐ स्वस्तीत्याशीर्वचनंदद्यात्॥भिक्षाप्तवतिदेहीतिक्षत्रियः॥भिक्षादेहिमवतीति इयः॥यत्रप्रत्याख्याननकुर्वतितत्रशिक्षार्थगच्छेत् // तिस्त्रोचाभिक्षायायाःषहादशाऽपरिमिताया॥ आत्मनआचार्यस्यचआहारपरिमितावधिवा॥मातुः सकाशात्प्रयममिक्षायाचेतेये के आचार्यामन्यते॥एवंयथोक्तांतिक्षांतिक्षयिलाआचार्यायभैक्षनिवेदयेत्॥ सुंश्वेत्याचा र्यानुज्ञातोपिसांस्वीकृर्यादिनिभिक्षाचर्यचरणं॥ वाग्यतोहदोषतिष्ठेदित्येके अहिर्ट सन्नर For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 12 // संस्कार ण्यासमिधा आहत्यपूर्ववदाधायवाचविसृजते॥ वाग्यनोमौनी॥ अहःशेषनिष्ठेत् इति / भिक्षानिवेदनो नरयावदस्तमयंगुरुसेव नाध्ययनेतिष्ठेदित्येकेआचार्यामन्यते॥ अहिंसन् इतिअछिंदस्वयंभमाःसमिधआहृत्यपूर्ववदाधायइति॥पूर्ववसंध्योपासनपूर्वकंतस्मिन्ने वामोपरिसमूहनादित्यायुषकरणांतंसमिंदाधानंअभिवादनंचकुर्यादित्यर्थः॥वाचंपिजन | इनि॥ याग्विसर्गः॥यावद्वतंतावदमिरक्षणविरात्रंवा॥अतास्याब्रह्मचर्यपरिसमा ब्रह्मचारिणोयमनियमाःकथ्यते॥अधाशायीस्यात्॥ अक्षारलवणाशीस्यात्॥ दंडधा / // 212 // रणकर्तव्यं॥अरण्यास्वयंप्रशीर्णाः समिधाहत्य॥ सायंप्रातःसंध्योपासनपूर्वकप For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिसमूहनादित्र्यायुषकरणां यथोक्तंकर्मकर्तव्यं॥ गुरुसुश्रूषाकर्तव्या॥सायंप्रातजिनार्थेमोजनसन्निधानेवारद्वयंभिक्षाचरणंकर्तव्यं॥मधुमासाशनंनकर्तव्यं॥मज्जननक तव्यं॥उधृतोदकेनरमायादित्यर्थः॥ कुशासनोपरिमसुरिकायुपधानरुलानोपविरो त्॥स्त्रीणामध्येअवस्थाननकर्तव्यं॥अनृतंनवक्तव्यं॥ अदत्तनगण्हीयात्॥स्म त्यंतरोक्ताश्चयमनियमाअनुष्ठेयाः॥यथा॥परिधृतवस्त्रंक्षालनंयिनानदधीत॥ प्रमंस सँल्लमितंविरुतंवस्त्रंनदधीत॥अस्तसमयेभास्करावलोकनंनकुर्यात्॥ शुल्कवदनंपरियादादिवर्जयेत्॥पर्युषितमन्नंभिस्सदानंचनभक्षयेत्॥कांस्या For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पस्कार यसवंगभूपात्रे मोजतेनपानचनकुर्यान्। नोबूलाक्षणंनकुर्यात्॥अभ्यंगमक्ष्णोरंजी " मास्कर // 21 // नमुपानच्छवादसँचवर्जयेत् ॥इति॥ यस्यैवमध्यवयसोश्यखारोवेदामयापठिता व्या:सौष्टाचत्वारिंशद्वर्षाणिवेदब्रह्मचर्यचरेदिति॥ ॥स्मृत्युक्तापंचाशसंरव्याका ब्राह्मणाम्भोजयिष्येइति॥ // अथाशीर्वादः॥ हरिः ॐ ब्रह्मचर्यमागामित्या ह // ब्रह्मण एचैतदात्माननिवेदयतिब्रह्मचार्यसानीत्याहब्रह्मणः एतदात्मान म्युरिददात्यथैनमाहकोनामासीतिप्रजापतिर्वैकः प्राजापत्यमेवैनन्तकबोपनयते / // 213 // | // 1 // अथास्यहस्तङ्गण्हाति // इन्द्रस्यब्रह्मचार्यस्युमिराचार्यस्तृवाहमाचार्यस्तुवा For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie सावित्येतेचैश्रेष्ठेबलिष्ठेदेवने: एताभ्यामेवैन श्रेष्ठाभ्याम्बलिष्ठाभ्यान्देवृताभ्याम्प रिददातिनथाहास्य ब्रह्मचारीनकाञ्चनातिमार्छतिनसय एवँ वेद॥२॥ अथैनम्भू तेभ्यः परिददाति॥प्रजापतयेखापरिददामिदेवायसासरित्रेपरिददामीत्येतेपैश्रेष्ठेचर्षिष्ठे देने एताफ्यामेवैन श्रेष्ठाभ्याम्बृर्षिष्ठाझ्यान्देवृताफ्याम्पुरिददातिन्थाहास्यब्रह्मचा ||शनकाञ्चनार्तिमार्छनिनसय एवं वेद॥३॥ अयस्वोषधीय परिददामीनि॥ तदेन मयश्वोषधीभ्यश्चपरिददातियावापृथिवीषयान्त्यापरिददामीतिनदेनमाझ्यान्यावाप थिवीभ्याम्परिददातिययोरिद सर्वमधिविश्वेश्यस्याभूतेश्यः परिददाम्युरिष्ट्याऽऽति For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मंकार // 21 // सास्कर नदेन सर्वेभ्योभनय पग्दिदायुरिष्टयेतथाहास्यब्रह्मचारीनकाञ्चनातिमार्छतिनस या वेद॥४॥ ब्रह्मचार्यमीत्याह॥ ब्रह्मण एवैनन्तसरिददात्य॒पोशानेत्यमृतवाड आपो| मृतमशानेत्येवैनन्तदाहकर्मकुर्तुिनिचार्य वैकर्मवीर्यवर्धित्यवैनन्तुदाहसमिधमाधे हीतिसमित्स्वात्मानन्नेजसाब्रह्मवर्चसेनेत्येवैनन्तदाहमासुषुष्या इनिमामथाइ स्येवैनन्नदाहापोशानेत्यमृतवा आपोमृतमशानेत्येवैनन्तदाहनदेनमुमायती मुते | नपरिगृहानितथाहास्यब्रह्मचारीनकाञ्चनार्तिमाईतिनसय एववेद // 5 // थास्मेसावित्रीमन्वाह॥ ताई हस्मे ताम्पुरासँवत्सरेन्बाहुः संवत्सरसम्मिता_गर्माः For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रजायन्तेजात एवास्मिरसाचन्दध्म इति॥६॥ अथषट्समासेषु ॥षड्डाकतवः संवस) रस्यसंवत्सरसम्मितावैगुर्भाः प्रजायन्तेजात एवास्मिंसदाचन्दध्म इति॥७॥ अथच तुर्वि गृत्सहे॥ चतुर्विद शातिसंवत्सरस्यार्धमासाः संवत्सरसम्मितावैगाःप्रजायन्तेजा न एयास्मिंस्तवाचन्दध्म इति // 8 // अथद्वादशाहे // ददामासाःसंवत्सरस्यसंवत्सरस स्मितावैगाः प्रजायन्तेजात एवास्मिंस्तवाचन्दध्मः इनि॥९॥ अयषडहे॥षड्वाइन वसंवत्सरस्यसंवत्सरसम्मितावैर्माःप्रजायन्तेजात एवास्मितहाचन्दध्म इति॥१०॥ अथव्यहे॥ योवा ऋनुयः संवत्सरस्यसंवत्सरसम्मितावैगाःप्रजायन्तेजात एवा For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार, स्मॅिम्साचन्दध्माइनि॥१॥ तदपिलोकयन्ति॥ प्राचार्योगीभवनिहस्तमाधा भास्कर // 215 // यदक्षिणम्॥ तृतीयस्याः सजायतेसावित्र्यास हब्राह्मण इतिसयोहलायब्राह्मणाया नुब्रूयादानेयोवैब्राह्मणः सद्योवाड अग्निर्जायते तस्मात्सय एवब्राह्मणायानुब्रूयात् // 12 // नाई हैनामेके॥सावित्रीमनुष्टुभमन्चा हु ग्वाऽ अनुष्टुप्तदस्मिन्वाचन्दध्मति नतथाकुर्यायोहैनन्तबब्रूयादान्याऽअयमस्याचमदिनमूकोपविष्यतीतीश्वरोहतथै| म्यानृस्मादेनाङ्गयी मेयसावित्रीमनुब्रूयात्॥१२॥ अथहैकेदक्षिणनः॥ति॒िष्टनेया 215 // सीनायान्चा हुर्ननथाकुर्याद्यो हैनन्तुबाहुल्यन्वा अयमिममजीजनतबुल्योम For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ||पिप्यतीतीश्वरोहतयैवस्यात्तस्मासुरस्तादेवप्रतीचेसमीक्षमाणायानुयात् // 14 // तवैप छन्वाह॥योवेप्राणाः प्राण उदानोव्यानस्तानेवास्मिंस्तधात्यथार्थव॒शोडौवा इमौमा गोप्राणोदानावेयप्राणोदानावेयास्सिँस्सद्दधात्यथरुस्मामेको अयम्प्राणः रुल्मए वृप्राणमेवास्मिस्तकस्मन्दधाति // 15 // तटाहुः॥न ब्राह्मणम्ब्रह्मचर्यमुपनीयमिथुनञ्च रे गएषामवनियोब्रह्मचर्यसपैतिनेदिमब्राह्मणयिषिताहेतसोजन्यानीति॥१५॥ नदुवा आहुः॥काममेवचरेहय्योा इमाःप्रजाव्यश्चैवमनुष्यश्चतावाऽइमामनु व्यःप्रजाःप्रजननासृजायनेछन्दा-सिवैदैव्यः प्रजास्तानिसखोजनयतेततः For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार एतज्जनयतेनस्मादुकाममेवचरेत्॥१७॥ तदाहुः॥ नब्रह्मचारीमन्मध्वनीयादोषधीनाचार | // 216 // एषपरमोसोयन्मुधुनंदन्नायम्यान्नङ्गलानीत्य॒थहस्माहश्वेतकेतुरारुणेयोब्रह्मचारीसन्मध्व मॅस्यश्यैया एतदियायैशिष्टं यन्मधुसतुरसोयस्येहशिष्टमितियथाहवाऽ ऋचँबायजुर्ग मामवाभिव्याहरेत्तादृतयः एवविद्वान्ब्रह्मचारीसन्मध्वभानितस्मादुकाममेक्वाश्नीयात् ॥१८॥इत्येकादशेकाण्डे तृतीयप्रपाठके पञ्चमंत्राह्मणम्॥ ॐ ब्रह्मवैमृत्ययेप्रजाः॥प्राय छत्तम्मेब्रह्मचारिणमेवनायच्छु त्सोब्रवीदस्तुमुद्यमप्येतस्मिनभागऽइतियामेवरात्रि समिधन्ना हरानाऽ इनिनम्माया रात्रिम्ब्रह्मचारीसमिधन्नाहरत्यायुषऽ एवनामवदाययस // 16 // For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || नितुस्माब्रह्मचारीममिधमाहरेन्नदायुपोरदायव्सानाति॥१॥दीर्घसवाएष उपेति॥ ये ब्रह्मचर्य सुपेनिसामुपयन्समधमाद्धातिसापाथणीयाबाट स्मास्यन्सोदयनीयाथयाउ अन्न रेणसव्या एवास्थता ब्राह्मणाब्रह्मचर्यमुपयन्॥२॥चतुर्धाभूतानि विशति // अमिम्पदामृत्युम्प दाचार्यम्पदात्मन्येवास्यचतुर्थः पादःपरिशिष्यते // 3 // सयदमयेसमधमाहुरति॥ यरण्यास्या भोपादस्तमेवतेनपरिक्रीणातित सँस्कृत्यात्मन्धत्तेस.एनमाविशति॥४॥ अश्रयदात्मा न॥दरिद्रीकृत्येवाहीभृत्वाभिसतेय एवास्यमृत्यौपादस्तमेवतेनपरिक्रीणातितई सँस्कृ त्यात्मन्यतेसएनमाविशति॥५॥ अथवदाचार्ययचसङ्करोति यदाचार्यायकर्मकरोतियाए, For Private and Personal Use Only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार // 217 // वास्याचार्येादस्तुमेवनपरिकीणातित सँस्कृत्यात्मन्धत्तेस एनमाविशनि॥८॥नुहये भास्कर | स्मात्या॥भिक्षेत्रापहवेस्नालामिक्षाञ्जयत्यपज्ञातीनामशनायामपपितॄणार्ट सऽ एyविद्वा न्यस्याउ एचभूयिष्ठः श्लाध्येताम्भिक्षेतॄत्याहुम्तल्लोक्यमितिम यद्यन्याम्मिक्षितव्यान्नविदे दपिस्वामेवाचार्यजायाम्भिौतायोस्वाम्मानुरन्नैनः सप्तम्यामशिनानीयान्तमयम्बिहार्ट समे बञ्चरन्तर्ट सधैवेदाः आविशन्तियथाहा : अमिःसमिछोरो चना एवर्ट हयेसुरुमालारो चनेयः एवृम्विद्वान्ब्रह्मचर्यञ्चरनि॥७॥ अष्टावष्टीकृतो॥ ब्रह्मवर्चसकामस्याभिषुणुयादि // 217|| त्याहुरष्टाक्षरावैगायत्रीब्रह्मगायत्रीब्रह्मवर्चसीहेवमयति॥८॥सयकामयेत।ब्रह्मवर्चसीस्यामिति / / For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बसन्तेस आदधीतब्रह्मवैवसन्तोब्रह्मवर्चसी हैप्पवति॥९॥ शतमानम्मवति॥शतायु |र्वैपुरुषःशतेन्द्रिय आयुरेन्द्रिय॒वीर्घमात्मन्धत्ते॥१०॥ कां०११. प्र०२. ब्रान्६ ब्रह्मय र्चसीभय॥ आचार्यादीनगंधादिभिः संपूज्यतेत्यश्चदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीला।।स्था पितमात्रादिदेवकोत्थापनमंडपोडासनंचकार्य।। तद्विधिश्चायेचक्ष्यते // इतिसंस्कारभास्कर | उपनयनप्रयोगःसमाप्तः॥ ॥अथोपनयनादूचंब्रह्मचारिणः सायंप्रातरमिनित्योपास नविधिः॥ सायंसंध्योपासनंरुलाधृतदंडादिहीतेंधनाज्यसमित्स्थापितामिसमीपेस्पासने उपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनानेममसतेजोब्रह्मवर्चस सिध्यर्थअमिनाराया For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir / णप्रीतयेचसायममिपरिसमूहनंसमिदाधानादिकंचकरिष्ये॥ अमिमुसंकत्वाचवारिभंगेति- भास्कर // 218 // ध्यासागंधादिनाफ्यज़॥ ततोग्ने मुश्रवइत्यादिपंचभिर्मत्रैःप्रतिमंत्रघृतप्तें धनप्रक्षेपः॥जले नामिंपर्युक्ष्य।उत्थायआज्यातसमिधमेकांगृहीबा मयेसमिधमहार्षमित्यारण्यभूयास | 8 स्वाहेत्यंनंमंबंपठित्वातामनौजुहुयात्॥अनेनैवमंत्रणदिनीयांतथातृतीयांसमिधमादध्या त्॥पुनरमे सुश्रयइत्यादिपंचभिर्मचैरिंधनंप्रक्षिष्य // तूष्णीपाणीप्रतप्यतनूपाअमेत्यादिमं वैःप्रनिमंत्रमुखरिमार्जन। पुनः अंगानिचमइत्यादियशोबलमित्यंतमत्रैः प्रतिमंत्रंपत्थंगा | // 18 // लंघनकार्य॥ ततस्यायुषमितिप्रतिमंत्रेणभस्मललाटेग्रीवायांदक्षिणेट से हृदिचसंधायी। For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // ततोगोत्रनामपूर्वकंवैश्वानरादीनामप्तिवादन। अनेनसायममिपरिचरणेन अमिनाराय ण:पीयनां ॥णेपालःम्मानसंध्योपासनोत्तरआचम्यादिदेशकालकीर्तनोत्तरंपातरमिपरिसमा / हनंसमिदाधानादिकंचकरिष्येइत्यूहेनइंधनप्रक्षेपादिअभिवादनातंसर्पकर्म कुर्यादिति॥ // उपनयनागौनष्टेपुनरुत्पादनविधिः // रेणुकारिकायां // तामिना शेतिनावीन्कन्ट्रांश्चन तंचरेत् / / प्राग्वदयिंप्रतिष्ठाष्यकटिसूत्रादिकंपुनः॥स्पृश-मंत्रान्पठेदमायाज्येनानि / यत् // नगायत्र्युपदेशंचरुत्वाग्निपरिसुश्रुषांइति॥ // अथयमलजातपुत्रयारूपनयने निर्णयः॥ // संस्कारकमार्थंज्येष्ठकनिष्ठभावउच्यते॥ मनुः॥ जन्मज्येष्ठेन-चाहानंसु / For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार ब्रह्मण्यास्वपिस्मृतं॥यत्तयोश्चैवगर्थेषुजन्मतोज्येष्ठतास्मृताइनि॥देवलः ॥यस्थजातस्यया भास्कर // 219 // मयोः पश्यंतिप्रथमंसुरवं॥ संतानःपितर त्रैवनस्मिन्ज्येष्ठ्यंप्रतिष्टितं॥मागवतेतु॥दोनदा भवतोगर्भोसूतिर्वेशविपर्ययादित्युक्तेः॥पश्चादुसन्मस्यज्येष्ठयमुक्तं॥वैद्यकेप्यावेयसंहिता| यां॥ यदाविशेद्विधाभूतंबीजंपुष्पंपरिक्षरत्॥तदाभवेद्विधागर्मःसूतिर्वेशविपर्ययादिति॥तथा पिबहुसंमतमनुवचनंयुक्तं॥निर्णयसिंधौ॥एकस्मिन्यासरेप्राप्तेकुर्यायमलजानयोः ॥क्षोरंच वविवाहंचौंजीबंधनमेवचेति। यमलयोर्युगपदेवसंस्कारकरणेएकमेवनांदीश्राइंकार्यमिति | // 19 // धर्मसिंधौनांदीश्राद्धप्रकरणांतेउक्तं॥यमलयोरेककालेएकमंडपेवासमानसंस्कारौनदोषायेति For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir धर्मसिंधौविवाहनिषेधापवादप्रकरणेउक्तं ॥रेणुकारिकायां॥एकस्मिन्वत्सरेचैववासरे मंडपेतथा // कर्तव्यंमंगलस्वस्त्रोांवोर्यमलजातयोः॥ एकंचाफ्युदयंकार्यपृथग्वेद्योग नेषुच॥पृथकुतिसंभारान्पृथगाचार्यमेवच॥यमलकन्यकोडाहे पृथग्यरीचयेदिके।पृथग्यो। |तिकदानंचऐरिण्यादितथैवचेति॥ संग्रहे॥ जातैककाले यमलोसुतोवनेनथैवकन्धेअपि ऊटकाले॥ आचार्ययुग्मंरयलुबेदियुग्मंकुर्वीतनांदीमुरवमेकमेवेति॥ अथयमलपुत्रयोः उपनयनेसर्यसंप्मारान्पाग्यन्द्विगुणसंपाय॥वेदिकेचहेविरच्यआचार्टीहोइति॥ // अथयमलपुत्रयोःउपनयनप्रयोगविशेषः॥कर्तापल्यासहमंगलस्नासाहतवामसीपरि, For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार धायधृतमंगलनिलकोमंडपमध्येशमासनेप्राङ्मुरयउपविश्यवदक्षिणतःपलींनदक्षिणतम भास्कर मलजातकुमारोउपवेश्यपवित्रपाणिरावांतःप्राणानायम्यदेशकालकीननांनेअनयो:यमलजान कुमारयोः रिजलसिध्यैवेदाध्ययनाधिकारार्थचउक्तपकारेणज्येष्ठस्यस्वयंकनिष्ठस्यान्यद्वाराउपनया नारव्यसंस्कारोअद्यवाश्वःकरिष्ये॥ममोपनेतृत्वाधिकारसिध्यर्थंकृच्छ्त्रयात्मकप्रायश्चि नपूर्वकंद्वादशसहस्रअथवाद्वादशाधिकसहस्त्रंगायबीजपंस्वयंवाब्राह्मणद्वाराअहमाचरिष्ये। कुमारेणापिकामचारकामवादकामभक्षणादिदोषपरिहारार्थकच्छ्त्रयात्मकप्रायश्चित्तपूर्वकं // 220 // ब्राह्मणद्वाराहादशसहसंवाद्वादशाधिकसहस्रंगायत्रीजपंअहमाचरिष्ये॥पुन:पिता॥ अ For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie नयोः कुमारयोःग्रहानुकूलनासिध्यर्थग्रहयज्ञकरिष्ये॥तत्रनिर्विनाथगणपतिपूजनंस्य | |स्तिपुण्याहवाचनंअधिनपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंबसोराआयुष्यमंत्रजपंनादी श्राइंग्रहयज्ञांगंआचार्यादिवरणंदिग्रक्षणपंचगव्यकरणभूमिपूजनंपंचभूसंस्कारान्अमि| प्रतिष्ठापनंग्रहस्थापनंरुद्रकलशस्थापनंचायकरिष्ये॥ कालांतरेग्रहयज्ञकरणेसंकल्पेयथाकालंग्रहयज्ञंकरिष्येइत्यूहः कर्तव्यः॥ सर्वथाग्रहयज्ञाकरणेग्रहयज्ञसंकल्पमेवनकुर्यात्॥ तपक्षेनांदीश्राद्धांतंसंकल्पकुर्यात॥नांदीश्राद्दोनरंपूर्वोक्तप्रकारेणगृहमध्येमातृकाःस्था |पयेत्॥ यहयज्ञकरणेयहयज्ञांतंकुर्यात्॥ यदाचौलेनसहोपनयनंकियत्तेतदासंकल्पेची For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लोपनयनारव्येकर्मणीअहंकरिष्ये इत्यूहः॥ अथपितास्वानावादिन्यःयमलजातकनिष्ठ॥२२१॥ कुमारस्यचूडोपनयनादियाउपनयनादिसंस्कार स्याधिकारंदद्यात् // तद्यथा॥ आदोगणपतिसंपूज्य॥अथाधिकारदानं॥ प्रात्रेममास्ययमलजातकनिष्टकुमार स्यचूडोपनयनादिवाउपनयनादिसमावर्तनांतसंस्कारकर्माधिकारार्थत्वामहंवृणे॥धा तरंगंधवस्त्रादिनापूजयेत् ॥तथाचसंग्रहे॥चातरस्यकुमारस्यचूडादिस्नातकावधि॥ संस्कारकर्मकरणाधिकारंतेददाम्यहं॥१॥इत्युत्वाकुमारं घातुरुत्संगेदयान्।गृहीताचा | // 221 // क्ष्यमाणमंत्रेणगृण्हीयात् ॥चूडादिस्मातकांनानिकर्माणितुतवाज्ञया॥षातरस्यकुमा For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रस्यकरिष्येहंस्चपुत्रवत्॥इतिमंत्रेणकुमारंगृहीत्वाकुंकुमादिभिरलंरुत्यप्रयोगवत्संस्का रान्कुयीत्॥अथयमल जानकन्यकोडाहप्रकारः॥तबसंभाराः॥वेद्यो ।यौतिकडयोसो पस्करंऐरिण्यारव्यवंशपात्रद्वयं॥अंनःपटवस्त्रेदे॥मधुपर्कादिसर्वसामग्रीयंसंपायेति॥यम लजातकन्ययोर्दिनांतरेणोदाहकरणेपितुरेवाधिकारः॥ तत्रसंकल्पेममास्याःकन्यकायाः इत्यू हकार्यः॥ यमलजातकन्ययोरु दाहस्येकदिने करणपक्षेनांदीश्राझंतंपियकुर्या त् // विवाहदिनरुत्यंतुम्नानादिनाकार्य।। अत्रप्रधानसंकल्पेममानयो कुमार्यो: इत्यू हःकर्तव्यः॥दानृपतिगृही बोरधिकारदानेप्रनिगहेचविशेषः॥ अस्याः कुमार्याः इत्यूहः For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 222 // संस्कार कर्तव्यः॥उभोगणेशंसंपूज्य॥श्वानर्ममास्था:यमलजातकन्यायाः विवाहसंस्कारकर्माधिकारा | भास्कर यसामर्हवृणे॥धारंगंधवस्त्रादिनापूजयेत् // संग्रहेअधिकारदानमंत्रः॥मातर्ममास्याःकन्यायाः विवाहोत्साहकर्मरू॥अधिकारंप्रदास्यामिकुरुकर्मयथोदितं॥ इतिमंत्रेणकन्यांनानुरु संगंदयात्॥ग्रहीतावक्ष्यमाणमंत्रेणगण्हीयात् // विवाहादीनिकर्माणिसांगानितुतवाज्ञया। धातरम्या:कन्यकायाः करिष्येहंयथोदितं।इनिमंत्रेणकन्यांसहीत्वाकुंकुमादिभिरलंसत्यपि वाहप्रयोगोक्तवत्संस्कारंकुर्यात्॥विवाहोपनयनयोर्देवकोत्थापनंपितेवकुर्यादितियमलजातनि / / 22 / / बाहोपनयनसंस्कारप्रकरणं॥ // अथविकलांगायुपनयनप्रकारः॥स्मृत्यर्थसारे॥ष For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दांधबधिरस्तब्धजडगद्गदपंगुषु।कुलवामनरोगाशकांगधिकलोगिषु॥धस्नपुस्तेषुचैतेषु संस्काराःस्युर्यथोचित।मत्तोन्मतोनसंस्कायैपितितश्यतथेवच।। तदपत्यंतुसंस्कार्यमपरेत्याहु रन्यथेति॥पतितलक्षणेतु॥आषोडशाही ब्राह्मणस्यान तीतःकालोपवति॥ द्वाविंशाहर्षा द्राजन्यस्यचतुर्विंशाह द्वैश्यस्य ॥एतदर्षेऽनतिकांनएवोपनयनकालोभवति॥ अतऊ धंपतितसावित्रीकामयंति॥ तेनैतान्नोपनयेयुर्नाध्यापयेयुर्नयाजयेयुर्नवेभिर्व्यवहरेयु स्तदपत्यसंस्कारयेयुः॥ब्राह्मण्यांब्राह्मणादुसन्नोब्राह्मण एवेतिश्रुतेः॥ अन्येतुनसंस्कार्य मित्याहुः॥होममाचार्यः करोनि॥उपनयनंआचार्यसमीपानयनं॥ अग्निसमीपेया॥सावि | For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार बीवाचनंवा॥अन्यदंगयथासंभकार्यमिति // त्रयाणांपक्षाणामन्यतमनप्रधानमिद्धिरित्या // 223 // शयः॥मूकबधिरादेः सावित्रीवाचनासमवेस्पृष्ट्वाभाचार्येणजपःकार्यः / वाचक श्वेनर्हिमें बोलिखित्वाचार्येणदर्शयितव्यः ॥तेनमनसानिनितव्यः॥यथा॥संस्कारमंत्रहीमादीन्करो त्याचार्यएवतु॥उपनेयाश्चविधिवदाचार्यस्यसमीपतः॥ आनीयामिसमीपेतुसावित्रीस्पृश्या वाचयेदितिपारस्करवचनं॥अन्यत्समानं। उपनेयस्यवासःपरिधानादिपुयेसंस्कारमंत्रास्ता नाचार्य-पठेदित्यर्थः॥तेषोविरात्रोधंनदीर्घबनाइनिसंस्कारमास्कोपिकलांगायुपनयनप्रकारः॥ अथपुन || // 22 // | रुपनयनकारणनविधिश्च॥ तत्रपुनरुपनयनकारणमाह॥ तच्चप्रत्यवायनिमित्तकंपायश्चि For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नभू पुनरुपनयनमायं॥ तच्चजातकर्मादिसहितंतद्रहितंप्रायश्रित्तांतरसहितकेवलंचेत्यनेक विधारूतस्योपनयनस्योक्तकालायंगवैगुण्येनवैफल्यापत्तावपरं॥ तवप्रथमंयथा॥ अमत्या औषधांतरानाश्यरोगनाशार्थंपैष्ट्या सुरायाः पानेधिमासंझच्छाचरणंपुनरुपनयनंच॥मत्यांपे ट्यन्यसुरायाओषधार्थपानेरुच्छातिकच्छौपुनरुपनयनंच॥पेष्टीपानेद्वादगाब्दं॥ अज्ञानाहा रुणीगोडीमाधीसुरापीताचेत्नप्तहछंपुनरुपनयनंच॥ अज्ञानाद्रेनीषिणमूत्राणामशनेसरासस पान्नजलादिलक्षणेचनप्तकृच्छंपुनःसंस्कारश्च॥ज्ञालाविण्मूत्रायशनेचांद्रायणपुनःसंस्कारी |॥लशुनपलोडुग्रंजनविड्राहयामकुक्कुटनरगोमांसभसणेहिजातीनांननस्पायश्चित्तांतेपुन For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर // 224 // रुपनयनं॥माधवमतेरक्तलशुनकृष्णताक भक्षणोनपुनरुपनयनं // अविखरोष्ट्रहरिन / नीवडयामानुषीक्षीरपाने तप्तकच्छंपुन संस्कारश्य।रासमोष्ट्राचारोहणेकच्छंपुनः संस्कार | ॥इदंहेमाद्रिमनमिति॥सिंधोक्कचित्॥मिताक्षरास्मृत्यर्थसारादिमतेरासप्पोष्ट्रारोहे उपवासत्रयादिमावंनतुपुनः संस्कारः॥कोस्तभाशयोप्येवं॥वृषमारोहणेअमत्याछं मत्यारूत्रयादि॥केचिट्टषारोहेपुनसंस्कारकुर्वतितत्रमूलंमृग्य। एवमजबस्लमहि पारोहेपि॥ मांसभक्षकमलभक्षकपशोविटाक्षणेपुनरुपनयनमात्र॥केचिन्मानुषमल अक्षणेपिपुन:संस्कारमात्रमाहुः॥प्रेतशय्यापतियाहीपुनः संस्कारमर्हति ॥जीवतोमृतवा || // 224|| For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie श्रुित्वापुत्रादिनांऽत्यकर्म करणेतंघृतकुंभेनिमज्योत्यस्नापयित्वाजातकर्माद्युपनय नांतसंस्कारानकवात्रिराबव्रतांतेपूर्वभार्ययातस्यांमृतायामन्यभार्ययावाविवाहः कार्यः॥ आहितामिश्चेत्पुनराधानायुष्मदिष्ट्यादि। तीर्थयात्रांविनाकलिंगांगपंगांभ्रसिंधुसौवी रपत्यंतचासिदेशगमनेपुनः संस्कारः॥ चांडालान्नाक्षणेचांद्रायणबुद्धिपूर्वपक्षणेकादं उभयत्रपुनःसंस्कारः श्य॥अजिनमेवलादंडोभेक्ष्यचर्याव्रतानिच॥निवर्ततेरिजातीनांपु नःसंस्कारमर्हति॥ वपनंमेखलेतिस्मृत्यंतरेपाठः॥एवंगणिकान्नाक्षणेपिब्रह्मचारिणोम | धुमांसाशनेपुनरुपनयनंप्राजापत्यंत्रिरात्रोपवासावा ॥मत्याभक्षणेपराकः॥अश्यासद्विगुणं For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 225 // संस्कार पुनसंस्कारश्रापितृमातृगुरुभ्योभिन्नस्यप्रेतस्यात्यकर्मकरणेब्रह्मचारिणःपुनरुपनयनं भास्कर हस्तमथितदधिमक्षणेबहिर्वेदिपुरोडांशाशनेअप्यासेकच्छःपुनःसंस्कारश्च॥ यःसंन्यासंग हीसाततोनिवृत्यगार्हस्थ्यचिकीर्षतिसषण्मासंरुच्छ्रान्झवाजातकर्मादिसंस्कारैः संस्कृतःशु द्धोगार्हस्थ्यंकुर्यात् // एवमनशनमरणार्थसंकल्प्यनिवृत्तोपिकुर्यात् / / कर्मनाशाजलस्पर्शाक रतोयाविलंघनात्॥गंडकीबाहुतरणासुनःसंस्कारमर्हति॥ ॥अथानध्यायादेश्चद्वितीयं॥ प्रदोषेनिश्यनध्यायेमंदेकृष्णेगलग्रहे ॥अपराण्हेचोपनीतःपुनःसंस्कारमर्हति। अत्रप्रदोषः / // 225|| प्रदोषदिन॥रुष्ण कृष्णपक्षएकादश्यादिरंत्यविकरूपोपराण्हनदिनतृतीयतागरूपइत्युक्त। For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie अनध्यायाअपिनित्याएचपोर्णिमाप्रतिपदादयपुनरुपनयननिमित्तं॥नतुनैमित्तिकाः अका लवृष्ट्यादिनिमिनकविराबादयः॥नैमित्तिकेषुपातर्गर्जितनिमित्तानध्यायएवपुनःसंस्कार निमित्तं॥अत्रविस्तरः कोस्तो // अंसाभिमर्षकवटोः समीपमानयनंप्रधानकर्मनस्यपि स्मरणेपुनरुपनयनं॥एवंगायत्र्युपदेशविस्मरणेपि॥ अत्रापितेषांनदीर्घवतं॥ब्रह्मपुराणेनारदः। सावित्रीग्रहणादूर्वंतद्दिनेवाचतुर्थके॥पंचमेष्टेहादशेवावत्सरेव्रतमुत्सृजेत्॥मनुः॥पक्षेमा सेचZर्षेचौंजीमोक्षःप्रशस्यते॥तृतीयदिवसेकार्यपंचमेचविशेषतइति॥इतिपुनरुपन यनकारणनिर्णयः॥ // अथयजुर्वेदिनांप्रायश्चित्तैःसहपुनरुपनयनप्रयोगः॥प्राय || For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 226 // श्चित्तार्थेवतबंधेविशेषः॥तबनिमित्तानंतरमेवकरणेउदगयनपुण्यनक्षत्रायुक्त कालानापेक्ष्या भास्कर |ते॥अन्यथातुयथोक्तकालापेक्षा। तबकर्तापित्तातदनाचेपितृव्यादिसपिंडः। तदमायेन्यःकश्चि त्॥ यत्रपुनरुपनयनंप्रायश्चित्तसेनोक्तं तत्रपर्षदुपदिष्टविधिनातदेवकार्य।यत्रतुप्रायश्चित्ता तरसहितंतत्रोक्तविधिनाप्रायश्चित्तंसंस्कार्थणकारयित्वाचार्यणतस्योपनयनंकार्य॥यत्रजा तकर्मादिसंस्कारसहितमुपनयनविहितंतत्रजातादिचौलांतसंस्कारान्कलाकार्य॥ तत्रादौ ब्रह्मचारिणः पिज्येष्ठाभ्यामन्योछिष्टभोजनेत्रियासहभोजनेवाश्राद्धसूतकान्नगणि| | // 226 // कान्नाशनेवाअमुकदोषपरिहारार्थपर्षदुपदिष्टंप्रायश्चित्तंकरिष्येइतिकता॥ आचार्य / For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्तअस्थामुकदोषपरिहारार्थपुनरुपनयनसंस्कारसिद्धिद्वारा श्रीप. द्वादशसहस्रगायत्रीज पंअहंवा ब्राह्मणद्वाराकरिष्ये॥ ब्रह्मचारीस्थंडिलेमिंप्रतिष्ठाय्यअमिमुरवंरुखाआज्यसे स्कृत्यादिआघाराज्यभागांतहखाआज्यप्लतपलाशसमिधंगृहीत्वा पुनस्वादि कामाःस्वा हा॥१॥ ॐ पुनमनः पुनराम: आगन्पुनः प्राणः पुग़त्माम आगन्पुनश्चक्षुः पुनःश्रोत्र म्मु आर्गन्॥ वैश्वानरो : अदब्धस्तनूपाऽ अमिनः पातुरिनादेवृध्यात्स्वाहा॥२॥ ततश्चरु होमः // ॐ सुप्तनैअमे घुतेनुस्वाहा॥१॥ यतैपवित्रमर्चिष्योधिननमन्तरा॥ ब्रह्मते पुनातुमास्याहा // 2 // पव॑मानुसोऽ अयन पुषित्रैणुविचर्षणिशायरपोतासनातुमास्वाहा॥३॥ For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार अउभाभ्यान्देवसविनः पवित्रणमयेनच॥माम्युनीहिचिञ्चतम्चाहा॥४॥ तनःस्विष्टकदादिनवा मास्कर // 227 // हुनीहुँला होमपंसमाप्य॥ गांदत्या अथवागोनियंदयात्॥ // ततः कृतमंगलस्मानोध ततिलककर्नाशुपतासनेउपविश्य॥दक्षिणतःसंस्कार्यंचोपवेश्य॥ आचम्यमाणानायम्यदेश कालकीर्तनांते अस्यसंस्कार्यस्यपुनःसंम्कारसिद्धिद्वाराश्रीप. जातकर्माद्युपनयनांतान्संस्का रान्करिष्ये॥ अथवाकेवलं उपनयनसंस्कारकरिष्येतिसंकल्पः॥ तदंगविहितंनिर्विधनासिध्यर्थं गणेशपूजनादिमंडपप्रतिष्ठानांदीश्राद्धांतंकवा॥अधिकारार्थब्राह्मणाभोजयिखाकुमारव // 227 // पनादिकंकलाप्रयोगानुसारेणउपनयनंकवावाजातकर्मप्रमृत्युपनयनांतसंस्कारान्सलाइ For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie त्याद्यपक्षः॥अथापरमापरिधानात्रूत्वापालाशींसमिधमादायव्रात्यप्रायश्चित्तं हुखाच्याहती र्जुहोति॥ इनिद्वितीयपक्षः॥ अथापरोब्राह्मणवचनासावित्र्याशतरुत्वाभिमंत्रितंघृतंपाश्यक तपायश्चित्तोभयतीत्यादिकमयदत् इतितृतीयपक्षः॥ // तत्रोक्तपक्षाणांशक्ताशक्तभेदेनव्यवस्था॥इदंकौस्तुभेद्रष्टव्यं॥ ॥एवंशारयांतरेपपिवपन मेखलाजिनदंडोक्ष्यचर्याव्रतादिकं वैकल्पिकच्यवस्थयानुष्ठायस्यस्वशारयोक्तोपनयनकार्य॥ ॥इतिसंस्कारभास्करेसंक्षिप्त | पुनरुपनयनप्रयोगः॥ ॥अथब्रह्मचारिव्रतलोपेप्रायश्चित्तं।बोधायनः॥ अवशीचा चमनसंध्यावंदनदर्भभिक्षामिकार्यराहित्यशूद्रादिस्पर्शकोपीनकटिसूत्रयज्ञोपवीतमेष For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार लादंडाजिनत्यागदिवास्वापच्छत्रधारणपादुकाघारोहणमालाधारणोद्वर्तनानुलेपनांजनजलकी भास्कर // 228 // डायूतनृत्यगीतवाद्याभिरतिपारयंडादिभाषणपर्युषितभोजनादिवनलोपसकलदोषपरिहारा थरुच्छ्वयंचरेन्महाव्याहत्यादिअनादिष्टहोमंचकुर्यात् // तयथा॥ आचम्यप्राणानायम्य देशकालकीर्तनांतेपूर्वोक्त शौचाचमनादिवतनियमानांमध्येकश्चिद्वतलोपतज्जनितदोषपरिहारा थरु छ्त्रयप्रायश्चित्तंबातत्पत्याम्नायगोनिक्रयीमूतरजनद्रव्यदानंमहाच्याहत्यादि अनादि प्टहोमंचकरिष्ये।तबादौगोनिक्रयरजतद्रव्यंदला॥ बतलोपजनितदोषपरिहारार्थकच्छचया- |1228|| मकपत्याम्नायेइदंयथाशक्तिगोनिक्रयरजनद्रव्यंअमुकर्मणेब्राह्मणायत्तुभ्यमहसंपददेइति।। For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ततःस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकं विटनामानममिंप्रतिष्ठाप्य॥ब्रह्मोपवेशनाद्याज्यभागांते व्यस्तसमस्तव्याहृतीश्चतस्त्रःपंचवारुणेत्यादिनवाहुतीश्चाज्येनजुहुयात्॥नद्यया॥ॐ भूःस्वा हाइदममयेनमम॥ ॐ भुवः स्वाहाइदंयायवेन ॥ॐ स्वःस्याहाइदंसूर्याय॥ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहाइदंप्रजापतयेन ॥ॐ त्वन्नौ अमे स्मस्याहा. इदमनीवरुणाभ्यांन॥ॐ |सत्वन्नोअमे एधिस्या इदमग्रीवरु॥ॐ अयाश्यामे जर्ट स्वा इदममयेअयसेन मम॥ॐ येतेशनं स्वर्गःस्वा. इदंवरुणायसवित्रेयिष्णावेविश्वेश्यादेवेश्योमरु-मः सभ्यश्चन ॥ॐ उर्दुत्तमम्य, स्यामस्वाहा. इदंवरुणायादित्यायादितयेचनमम॥एना / For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार ||अनादिष्टनवाहुतयः॥ अनंतरमहाच्याहत्यादिखिष्टरुदंतादशाहुतीराज्येनहला॥ संस्त्र | // 229 // वपाशनादिप्रणीताविमोको नहोमशेषंसमाप्य॥ // नृटिनानांमेखलादीनांपुनर्ग्रहणका य॥तथाचमनुः॥मेखलामजिनंदंडमुपवीतंकमंडलुम्॥अप्सुग्रास्यविनष्टानिगृहीत्वान्या निमंत्रवदितिव्रतलोपेप्रायश्चित्तं॥ // अथवेदारंपनिर्णयः॥ तत्रवेदब्रह्मचर्यचरे दित्यनेनवेदाध्ययनांगतयाब्रह्मचर्याचरणमुक्तं॥वेदाध्ययनारेशाकालस्येतिकर्तव्य नाचनोक्ता॥केवलंसमावर्तनकर्मसूत्रकारेणारब्ध॥ वेदर्द समाप्यस्नायात्॥अत्रये | // 229 / / दस्यारंभविनासमाप्तिकर्तुनशक्यते॥ अतउपनयनांतरमेववेदारंभस्यसमय: इ For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्येवगम्यते॥ इतिकर्तव्यता॥पुनः एतदेवव्रनादेशनविसर्गेष्धिति॥ उपाकर्महोमानि देशाद्रतादेशनंवेदारंभःप्राप्नोति। अतत्र॥उपनीयगुरु:शिष्यंमहान्याहनिपूर्ववंदेदम ध्यापयेंदेनंशौचाचारांश्चशिक्षयेदिति॥अत्रापिनांदीश्रादंबिनानारम्यते॥अतःकारणाज्योनिःशास्त्रोक्ते शोदिनेकार्य॥ सचस्वशारयापूर्वकोवेदारंभः॥ वसिष्ठः॥पारंपर्यागनोयेषा वेदःसपरिबृंहणं।यच्छारयाकर्मकुर्वीततच्छायाध्ययनंतथा॥१॥अधीत्यशारयामात्मीया मन्यशाखांततः परं / स्वशारयायःपरित्यज्यशारयारंडःसउच्यते॥२॥पराशरः॥येदस्या ||ध्ययनंसर्वधर्मशास्त्रस्यचैवहि॥ अजानतीर्थतद्व्यर्थंतुषाणांकंडनंयथा॥१॥ मनुः॥ For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार योनधीत्यहिजोवेदमन्यत्रकुरुतेश्रमं॥ सजीवन्नेव शूद्रत्वमाशुगछतिसान्वयः॥१॥र मास्कर |ति॥अत्रप्रतिवेदस्यारंमणंपृथक्पृथक्॥तसक्षेप्रतिवेदस्याहुतिदयंब्रह्मणेइत्यादिनयाहु त्यनंतरमहाव्याहत्यादिस्पिष्टरुदंतादशाहुती लाहोमशेषेसमाप्यवेदारनरुत्वाआत्यसेन्॥ तनः परंदिनीयस्यनांदीश्राद्धाद्यारंभः॥ एवंसर्वत्र॥ सदशक्तोएकतंत्रेणनांदीयाइमेकमेवेनिपनिवेदस्याहुतिद्वयंब्रह्मणेछंदोश्यबहुलाभंतेप्रजापत्यादिसप्ताहुती लाअनंतरमहाच्या हत्यादिदशाहुतयः॥ तवार्यक्रमः॥वेदारव्येमातृनांदीमुखमथजुहुयाइन्हिवक्रेऽतरिक्षं // 20 // वायुंब्रह्मादिहलानवयजुपिमयेन्मुख्यतोपूर्भुवायाः॥ऋग्वेदेप्रास्मृथिव्यामयइतिचदि। For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वेसूर्यमेवंचसामादिगम्यश्चंद्रमस इतिनिखिलातत्वसंरव्याहुतीना॥१॥अथ प्रयोगः॥ ततआचार्यउपनयनोत्तरमनध्यायरहितेज्योतिःशास्त्रोक्तशुभदिनेब्रह्मचारि |णमाझ्यशुमासनेस्वस्योत्तरत उपवेश्य॥बनादेशोवेदारमास्तत्राणानायम्यदेशकालकी तैनातेअस्यब्रह्मचारिण: अद्यकरिष्यमाणानांवेदवतचतुष्टयारंमणकर्मणांवशारवापूर्व कवेदारंभमहंकरिष्ये॥तत्रनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनमातृकापूजन यसो रानांदीश्राद्धंचकरिष्येइतिहला॥तत्रपुण्याहवाचनातेअपापक:प्रीयतामित्यूहः। नतःस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसमुद्भवनामानममिंप्रतिष्ठाप्य॥ततोब्रह्मोपवेगनायाज्य For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 23 // संस्कार भागांतंचरुपर्जंकृत्ला॥ आज्यभागानंतरंयजुर्वेदाहुतीर्जुहोति॥ॐ अंतरिक्षायस्वाहाइदमं भास्कर नरिक्षायनमम॥ ॐ वायये इदंवायवेन // ॐ ब्रह्मणेस्वा इदेब्रह्मणे०॥ ॐ उंदोभ्यःस्वा० इदंछंदोत्यो ॥अथऋग्वेदाहुतीर्जुहोति॥ॐ पृथिव्येस्खा इदंपृथिव्ये ॥ॐ अमयेस्था * | इदममये॥ॐब्रह्मणेस्वा इदंब्र०॥ ॐ छंदोमयः स्या. इदंछंदोम्यो०॥अथसामवेदाहुती | ||ति॥ ॐ दिवेस्खा. इदंदिये ॥ॐ सूर्यायस्वा इदंसूर्या॥ ॐ ब्रह्मणेवा इदंब्रह्मः॥ॐ | छंदोभ्यः वा इदं छंदोपयो॥ ॥अथार्यवेदाहुतीर्जुहोति // ॐदिग्भ्यःस्वा इदंदि|| | // 23 // गयोन०॥ ॐ चंद्रमसेस्था. इदंचंद्र०॥ ॐ ब्रह्मणेस्वा. इदंब०॥ ॐ छंदोत्यःस्वा. इदंछ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | दो // प्रजापतये इदंप ॥ॐ देवेभ्यःस्वा इदंदेवे ॥ॐ ऋषिष्यास्या- इदंक // ॐ श्रद्धायेखाइ दंबडायैः॥ ॐ मेधाये इदंमेधायैः॥ ॐ सदसस्पतये इदंसद०॥ ॐ अनुमतये. इदमनमः॥ ततोमहाव्याहत्यादिविष्टकदंतादशाहुतयः॥ततःसंस्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांतंहोमशेष | समाप्यातनोवेदाध्ययनमारभेत्॥ नच्च कारिकायां।वेदारंभेवसानेचपादोग्रायोगरो:सदा। व्यवस्थपाणिनाकार्यमुपसंग्रहणंगुरोः॥१॥सव्येनसव्यः स्पृष्टव्योदक्षिणेनतुदक्षिणाः॥ब्राह्मणः प्रणयंकुर्यादादावंतेचसर्वदा॥२॥ प्रत्यड्नुस्खायोपविष्टायोपसमीक्षतेगुरुः॥वेदारंभमन्याय थाशास्त्रमनंद्रितः॥३॥ हस्तोतुसंयुतौधाnजानुनोरुपरिस्थिती॥ गुरोरनुमतिकुर्यासठनान्य For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | मिनिर्भयेत्॥४॥हस्तहीनतुयोधीनेस्वरवर्णविवर्जितं॥ ऋग्यजुःसामभिर्दग्धोवियोनिमधिगच्छ भास्कर // 232 // नि॥५॥प्रणयंपाक्प्रयुजीनव्याहृतीस्तदनंतरं॥ सावित्रींचानुपूर्वणननोवेदान्समारभेत्॥१॥ णयमादावंतेचकुर्यात्॥ ततःशिष्टाचारान्ब्रह्मचारिणावेदसरस्वतीपूजनकार्य॥अद्यपू तिथौबहाया र्चससिध्यर्थंवेदसरस्वतीपूजनंकरिष्ये॥ वेदसरस्वतींस्थाप्य॥वेदोसियेनत्व। श्रीश्चत्तेतिकगयाषोडशोपचारेःसंपूज्य॥ तनःप्रत्यङ्ग्यायोपविष्टायपादोपसंयहणपूर्वकंआचार्यमुरयमीक्षमा णायअनसूयकायस्वहस्तीजानुप्त्यामुपरिकृतवतेब्रह्मचारिणेवेदंप्रयच्छति॥ॐ पूर्भुवः स्वा // 232 // ॐ तत्सवितुः॥१॥ॐषेखोर्जे खाद्यायवःस्थदेवोय सचिनापार्पयतुश्रेष्टतमायकर्मण आ For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्यायध्यमभ्या इन्द्रायभागम् जायतीरनमीवाऽ अयक्ष्मामावस्तेन ईशनमाघर्टिसोध्रुवाः अस्मिन्गोपतोस्यातबहीर्थ्यजमानस्यपशूपाहि॥१॥ इनियजुर्वेदः॥ॐ अमिमीळेपुरो हिन्यज्ञस्यदेवमृत्विज॥होतारंरत्नधातम॥१॥रतिऋग्वेदः॥ ॐ अमझायाहिवीतयेगृणानोहव्यदा | तय।निहोताससिबर्हिषि॥१॥ इतिसामवेदः॥ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपोभवंतुपीतये।शज्यो रभिखवन्तुनः // 1 // इत्यथर्ववेदः॥ ॐस्पस्तीन्युत्का॥इतिस्पशाखाविधिवत्स्वशारखावेदंपरशाखाविधिवत्सरशारवाचेदंचपठेत्॥ब्राह्मणमोजन॥यातुमातृगणेतिमातॄणांविसर्जनं॥ इतिसंस्का भास्करे वेदव्रतचतुष्टयं॥ ॥अथकेशांतकर्मोच्यते॥ जन्मतःसप्तदशेवर्षेनोचेद्रतति / For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मर्यापूर्वकालापकर्षणंरुत्याउदगयनेसक्लपक्षेचौलोक्ततिथ्यादीगोदानंकुर्यात्॥ तनआचा भास्कर // 233 // बिहिः शालायांपल्यासहरूमासनेउपविश्य // तद्दक्षिणतः ब्रह्मचारिणमुपयेश्य॥ आ| चम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांतेअस्यब्रह्मचारिणः केशांतकर्माहंकरिष्यो। तदंगविहितंग णपनिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनअविभपूजनमंडपस्थापनमातृकापूजनंयसोहराआयुष्य मंत्रजपनांदीश्रादंचकरिष्येइतिरुत्वा॥ अत्रपुण्याहवाचनातेप्रजापतिः पीयतामित्यूहःक. तव्यः॥बहि:शालायांस्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसूर्यनामामिंप्रतिष्ठाया। ततोब्रह्मोपवेशना // 23 // | दिपावासादनंचरुवर्ज॥पावासादनानंतरंउपकल्पनीयानि।।शीतोदक।। उष्णोदकं॥नयनीन / For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पिंडः॥धृनपिंडोचा।व्येणीशलली॥सप्तविंशतिकुशतरुणानि॥ ताम्रपरिष्कृतआयसक्षुरः) आनडुहगोमयपिंडः॥नापिनश्च॥अत्रगौरे वपरः॥ एनान्युपकल्य॥ पवित्रच्छेदनादिपर्युक्ष गानेआधारावाज्यभागोचहुला॥ ततोमहाव्याहत्यादिलिष्टरुदंतदशाहुतयः॥ तद्यथा॥ॐष जापतयेस्वा. इदंपजा ॥ॐ इंद्रायस्वा. इदंइंद्रा०॥ ॐ अमयेचा. इदम०॥ ॐ सोमाय स्वा० इदंसोमा० // ॐ भूस्वाहा इदममः॥ ॐ भुवःस्था इदंवा // ॐ स्वःस्वा इदंसूर्याय ॥ॐखन्नौअमे इदमग्रीवरु०॥ अंसखन्नो अग्ने इदममीव०॥ ॐ अयानामे इदम मयेअ॥ ॐ येतेशन इदंबरुणा सवि // ॐ उदुलूम इदेवरुणायादिः // ॐ प्रजाप. For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार / इदंप्रजा०॥ ॐ अमयेमिष्टरुते इदं // तनःसंवपाशनादिप्रणीतापिभोको होमशेषसमाप्य भास्कर // 234 // तनोमातुरंकेब्रह्मचारिणमुपवेश्य। एकस्मिन्पावेशीतास्वप्मूष्णा आप आसिंचति॥उदकासेकम विशेषः / ॐउष्णेन केशश्मश्रुवपेति॥अथाबनवनीतपिंडंपास्पनि॥ तन उदकमादायदक्षि णगोदानसंदति // ॐ सवित्रापसूताइनिमंत्रण॥ ततः त्र्येण्याशलल्यापिनयति॥वीणिकुश तरुणान्यनर्दधानि॥ॐओषधेत्रायम्वइतिमंत्रेण॥नायपरिष्कृतायसक्षुरयहणं॥ ॐ शियोना मासि इनिमंत्रेण // ततःकेशकुशक्षुरसंलगीकरणं॥ॐ निवर्तयाम्या इतिमंत्रेण॥छे | // 234 // |दनमंत्ररू॥ॐयेनावपत्सयि इनिमंत्रणपछियानडुहेगोमयपिंडेपास्यत्युत्तरतोप्रियमाणे॥ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir एवमेवापरंवार द्वयंदक्षिणगोदानेतूष्णीकर्मकर्तव्यं॥ ततपश्चिमगोदाने उंदनादिसंलग्रकरणी तमेकवारंपूर्ववत्समंत्रकंकुर्यात्॥छेदनमंत्रस्त॥ ॐ त्र्यायुषज्मद इनिमंत्रणपछिया॥पश्चिमगोदानेएवंपुनरद्वयंतूष्णींकर्तव्यं॥ ततउत्तरगोदाने उंदनादिसंलमकरणां तमेकवारंपूर्ववसमंत्रकं कुर्यात्॥ छेदनमंत्रस्त॥ ॐयेनभरिश्च॥इतिमंत्रणपच्छिया न०॥ पुनरुत्तरगोदानेएवंपुनरियंतूष्णीकर्मकर्तव्यं॥ ततःशिरसमंतान्मुखातंभुरंत्रि वारंभामयिसा॥मंत्रेविशेषः॥ ॐ यस्सुरेणमज्ज-शिरोमास्यायु:प्रमोषीर्मुखम् ॥१॥इ || निमंत्रेण॥ ततःशिरः समुंद्यनापितायक्षुरप्रयच्छति॥ ॐ अक्षण्यपरिवपेत्यनेनमंत्रण। For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नापितःशिरवारक्षित्वाकेशश्मश्रुवपनंकुर्यात्॥ ब्रह्मचारिणस्मानं॥शांतेमाचार्यायगांद // 235 // दानि॥सर्वेषुसंस्कारकर्मस्वाधानादिविवाहांतेषुपितैयकर्ता।।तदभावेअन्यः॥ यथाशक्तिबा ह्मणान्मोजयिष्ये॥यातुमातृइतिमावृणांविसर्जन॥ ॥संवत्सरंब्रह्मचर्यमवपनंचइतिके शां तकर्मानंतरं ब्रह्मचारीब्रह्मचर्यव्रतंचरेत्॥अवपनंचकेशांतोत्तरंसंस्कृतः संवत्सरंवपनंवर्जये त्॥द्वादशरात्रंपड्रायंत्रिरात्रमंततः इनिविकल्पः॥ इतिसंस्कारभास्करेकेशांतपयोगी // अथसमावर्तनकर्मोच्यते॥ वेदमधीत्यगुरुणानुज्ञातःस्मायात्॥ ब्रह्मचर्यवाष्टाचत्वारि // 235 // शहर्षाणिसमाप्यस्नायात्॥द्वादशवार्षिकंवाव्रतंसमाप्यगुर्वनुज्ञानःस्नायात्॥ उपयंबासमा For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्यस्मायात्।।वेदशब्देनविधिविधेयस्तर्क इत्येतत्रयमुच्यते॥ विधिः विधायकंब्राह्मणवा क्यं।विधेयोमंत्रः॥तर्फार्थवादः॥ शिक्षाकल्पोव्याकरणं निरुक्तंछंदोज्योतिषमित्येभिषडंगैःसहिनंवेदमधित्यावगम्यचस्मानमिच्छंत्येकेआचार्याः॥नकल्पमात्रग्रंथमा अधीने अनवबुद्धेस्ना नमिच्छति॥अनुष्ठानायोग्यखात्॥ग्रंथमात्राध्ययनेपिकतेयाज्ञिकोयज्ञविद्याकुशल:कामनायात्॥ तच्चज्योतिःशास्त्रोक्तशादिनेब्रह्मचारीकतनित्यक्रियोऽर्यादिनायुरुंसंपूज्यतेनानुज्ञातःसमावर्तनारव्यकर्मकुर्यात्॥वागीशादितिसो म्यपोष्णदिनरुन्मित्रोत्तरारोहिणीगोविंदेषुशशांकभानुगुरुविच्छुकार्कवारादिषु॥रिक्ता / / For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार भास्कर // 236|| पर्वतथाष्टमींप्रतिपदंमेपंचकीटहरिहित्वाइडियुतेष्टमेन्हिविमलेकुर्यात्समावर्तनंइति श्रीधरः॥ तत्रायंक्रमः॥स्मानेच्छोमातनांदीसप्तत्रिहुतिसमित्वष्टकुंभाभिषेकोमौंजी मुत्कारवीक्षादधिनिलवपनंदंतधावावनेजो॥लेपोवासांसिसूत्रस्रजमथशिरसोवेष्टनकर्णी |पां कृत्वानेत्रांजनादिरपिचपदवाणयष्टिप्रवासाः॥१॥ततआचार्यउक्तदिनेरुतनित्यक्रियास भार्यः ब्रह्मचारिणासहभासनेउपविश्याचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनांनेअस्यब्रह्मचारि णःगृहस्थाश्रमांतरप्राप्तिद्वाराश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसमावर्तनारख्यकर्मकरिष्ये।तदंगविहितंगण | // 236|| पतिपूजनंस्वस्लिपुण्याहवाचनमातृकापूजनंदसोहराआयुष्यमंत्रजपनांदीश्राईसकरिष्येइ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir निरुत्सा॥अत्रपुण्याहवाचनानेसुश्रवःप्रीयतामितियदेत्॥ ततःभोआचार्यअहंस्नास्येइत्या नुज्ञाप्रार्थनाब्रह्मचारिणः॥नाहीतिप्रत्यनुज्ञागुरोः॥ततःपादोपसंग्रहणंगुरोः॥ततःपरिधि तेपंचभूसंस्कारपूर्वकंसूर्यनामानममिप्रतिष्ठाप्या। ततोब्रह्मोपवेशनादिपात्रासादनंचरुवजी पावासादनानंतरंउपकल्पनीयानि॥संधुक्षणानि॥पर्युक्षणार्थमुदकं॥समिधः॥हरिनाक | शाः॥अष्टोपारिकुंभाः॥धौतवस्त्रं ॥दधितिलावा॥नापितः॥स्मानार्थमुदकं॥औदुंबरंकनि / ठिकाययत्स्थूलंद्वादशांगुलदीर्घसरलंसवचंदंतधावनकाष्ठंबाह्मणस्य॥दशांगुलदीर्घराज न्यस्य॥अष्टांगुलदीर्घ वैश्यस्य ॥उद्वर्तनद्रव्यं ॥स्मानार्थमुष्णोदकं॥ चंदनं। आहतेवास For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार // 237 // सी॥ यज्ञोपवीतं॥पुष्पाणि॥ उष्णीषं॥ कर्णालंकारो॥ अंजनं॥ आदर्शः॥ छत्र॥उपानहो। वैणवदंडः॥पूर्णपात्रेयरोपा॥एतान्युपकल्प्य॥पवित्रच्छेदनादिपर्युक्षणातेआघारावाज्यभागोन चजुहुयात्॥ॐप्रजापतयेस्वा इदंप्र॥ॐइंद्रायस्वा० इदमि॥ ॐ अमयेस्वा इदम॥ ॐ सोमाय इदंसो० इत्याज्यभागानंतरंच शाखावेदारंभयाहुतिहोमः॥अनंतरंब्रह्मणेछ। दोश्यइत्याहुनिद्वयमपिजुहोति॥यदिवेदचतुष्टयमधीत्यस्मानंकरोतितदाप्रतिवेदवेदाहु निद्वयंहुत्वाब्रह्मणे छंदोत्यइत्याहुतिद्वयंपुनःपुनर्जुहोति॥ततःप्रजापतयइत्यारण्यानुम त्यंता:सप्ताहुनीर्जुहोति॥ एवंवेदद्वयत्रयाध्ययनेपियोज्य। ततोमहाच्याहत्यादिस्विष्टक // 237 // For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दंतादशाहुतयः॥ तद्यथा॥ ॐ अंतरिक्षायस्वा. इदमंतः॥ ॐवायवेस्खा इदंवा ॥ॐब्रह्मणे स्वाट इदंब्र // ॐ छंदोग्यःस्वा इदंलं ॥इतियजुः॥ ॐ पृथिव्येस्वा. इ.पृ. ॥ॐ अग्नयेखा इदं अ॥ ॐ ब्रह्मणेस्वा इदंब्रा छंदोत्यास्या-इदं // इतिकक्॥ॐ दिवेस्था इदंदि०॥ सूर्याय | स्वा.इ.सू.॥ॐ ब्रह्मणेस्वाइ॥ छंदोश्याइदं॥इतिसाम।। ॐ दिगन्यः इदं ॥ॐचंद्रमसे स्खा इन्चं॥ॐब्रह्मणे इदंब ॐ छंदोभ्यःस्वा-इदं // इत्यथर्व॥ ॐ प्रजापतये इ.॥ॐ देवायः स्वा०॥ ॐऋषिभ्यः स्वा॥ ॐ श्रद्धाये॥ ॐमेधायैः॥ ॐ सदसस्स.॥ॐ अनुमतये // ॐ धः स्वाइन्मः // ॐ भुवः स्वा. इ.या० // ॐ स्वःस्वा-इन्सू०॥ ॐबन्नौअमेन्ड्.मय // For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार ॥ॐ सत्वन्नौअमे इ.म-कः // ॐ अयाश्यामे इ.म अ॥ ॐ येतेशनं. इ-व-स.पि.॥ॐउर्दु || // 23 // तुम०॥इ-ब-दित्या०॥प्रजाप-इ०॥ ॐ अमयेविष्टक इ.म.वि. तनःसंस्रवप्राश नादिप्रणीताविमोकांहोमशेषंसमाप्य॥ ततःपरिसमूहनादिन्यायुषकरणांतंसमिदाधानंब्रह्म चारीकरोति // आचार्यस्योत्तरतउपविश्य॥दक्षिणहस्तेनामेः संयुक्षणप्रक्षेपःवक्ष्यमाणमंत्रैः पंचभिः॥ ॐ अमेसु // ॐयथात्वममे // ॐ एवंमार्टः॥ ॐ यथात्वमः॥ ॐ एवमहंम॥ त्येतैःपंचभिमत्रैःप्रनिमंत्रमिंधनप्रक्षेपः॥प्रदक्षिणममिंपर्युक्ष्योत्तिष्ठत्समिधादधाति॥ॐ मयेस.॥१॥ इतिमंत्रेणप्रयमसमिधमादधाति॥ अनेनैवमंत्रेणद्वितीयांनथावृतीयां॥उपवि // 238 // For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie श्यपुनः॥अमेसुश्रवेत्यारन्यपंधनप्रक्षेपः॥ ॥तूष्णींपाणीप्रतप्यवक्ष्यमाणेः सप्तभिर्म प्रनिमंत्रमुरखचिमार्जनं॥ ॐ तनूपा तन्वमे // आयुर्दा स्यायु.॥ॐ वर्चीदा वर्ची-॥ ॐ अमेयन्मे ॥ॐ मेधामेदेवः // ॐमेधादेश // ॐ मेधामश्चि॥इत्येतैर्मुरयमार्जनं॥ अवशिष्टाचारः॥ॐ अंगानिचम इतिमंत्रणप्रलप्तपाणिभ्यांशिरः प्रकृतिपादपर्यंतानिसर्वाण्यं गान्यालभते॥नतोदक्षिणहलायेण॥ ॐ वाकमा इनिमुखालंपानं॥ अंप्राणश्य इतिनासारंधे युग०॥ ॐ चक्षुश्चम इन्चक्षुषीयुः॥ॐ श्रोत्रंच इ-श्रोत्रेयुः॥ ॐ यशोबलंच इतिवाव्होरुपस्प निं॥ ततस्यायुषाणिकरोति॥अनामिकयाभस्मगृहीलामस्मनाललाटेयीवायांदक्षिणेर्ट सेहदि For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सस्कार च॥व्यायुषमितिप्रतिमंत्र॥ ॐ त्र्ययुषंजुमदमे ॥१॥इतिमंत्रस्यप्रतिपादेन। ततोगोत्र || भास्कर // 239 // नामपूर्वकंवैश्वानरादीनामभिवादनं // ततआचार्यःपरिश्रितस्योत्तरतोष्टानासदऊमानांदक्षिणो तराणास्थापनाउदकुंभानांपुरस्तालागयकुशास्तरणं॥ तेषुस्नानक तिष्ठेदुदङ्मुखः। ॐयेप्य तरमयःप्रविष्णगोय उपगोटोमयूरोमनोहास्खलुविरुजलनुदुषुरिंद्रियहातान्चिजहामि योरोचनस्तमिहगृण्हामि॥ इत्यनेनमंत्रेणेकस्मादुदकुंपादुदकंगृहीलातेनोदकेनानिषिंचे | स्नानकर्तात्मानं॥ ॐ नमामतिर्षिचामिश्रियेयशसेब्रह्मणेब्रह्मवर्चसाय॥१॥ इतिमंत्रेणा||भिषिंचति॥ पुनःप्वंतरमयरनिमंत्रण द्वितीयोदकुंभादुदकमादाय॥ॐ येनश्रियमकृणु। For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नायेनावमृशताई सुरान्॥येनाक्षावायपिंचतांयहांतदश्विनायशः॥१॥ इतिमंत्रेणाभिषिंचनि॥पुनःयेप्चनरमयइत्यनेनवृतीयोदकुंभादुदकमादाय॥ ॐ आपोहिष्टी ॥१॥इतिमं त्रेणाभिषिंचति।पुनःयेपचतरमयइत्यनेन चतुर्योदकुंभादुदकमादाय॥योव शिव॥१॥ इतिमंत्रेणाभिषिंचति॥पुनःयेप्वंतरमय० ॥१॥इतिमंत्रणपंचमोदकुंभादुदकमादाय।। * तस्माऽअरंग ॥१॥इतिमंत्रेणाभिः॥पुनःयेप्चतरमयइत्यनेनमंत्रेणषष्ठसप्तमाष्टमो |दकुंभेश्यः प्रत्येकमुदकमादायतूष्णीवास्त्रयमभिषिंचनिस्नानकर्तात्मानं॥तत उर्दुनुममिति मंत्रणमेखलांशिरोमार्गणनिःसार्यमूमोनिधाय॥ तथैवाजिनंचोत्तार्य॥दंडत्यागलखानेउदगयं For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार भूमोनिधाय॥ अन्यद्वासस्तूष्णींपरिधायादित्यमुपतिष्ठतेब्रह्मचारी॥ ॐ उद्यझमाजम भास्कर णुरिंद्रोमरुद्भिरस्तास्मानर्यावभिरस्माद्दशसनिरसिदशसनिमाकुर्वाघिदन्मागमयोद्ययाज कृष्णुरिंद्रोमरुद्भिरस्ताद्दिवायावनिरस्ताच्छतसनिरसिशतसनिमाकुळविदन्मागमयोय वाजष्णुरिंद्रोमरुद्भिरस्तात्सायंयायभिरस्नात्सहस्त्रसनिरसिसहस्त्रसनिमाकुर्वाचिदन्मा गमय॥१॥ इत्यादित्योपस्थानमंत्रः॥नतोदधिमाशनंतिलप्राशनंबातूष्णीं॥जटालोमन रवानांनिरंतनं स्नानं॥औदुंबरकाष्ठेनदंतधावनं / / ॐ अन्नाद्यायव्यूहवः सोमोरा जायमागमत्॥समेमुररांप्रमाक्षतेयशसाच भगेनच // 1 // इतिमंत्रणदंतान्धाचयेत् // For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ततः सुगंधिद्रव्येणोदर्तनं॥उष्णोदकेनस्मानं॥ अंगपोच्छनं॥ततचंदनायतुलेपनम ध्यमानामिकाभ्यांगृहीत्वामुखनासिकयोरालभनं॥ ॐ प्राणापानौमेतर्पयचक्षुर्मतर्प यत्रोत्रंम्मेनर्णय॥१॥ इतिमंत्रणालंभन॥ ततःपाण्योर वनेजनंसखातदुदकमादायाप सव्यंकवादक्षिणाभिमुखोमूत्वातदुदकंदक्षिणस्यादिशिनिषिंचेत्॥ॐपितर:शुन्धन्तो॥इ त्यनेनमंत्रेण॥ ततोयज्ञोपवीतीभूत्वा।उदकोपस्पर्शनं॥ततश्चंदनादिनात्मानमनुलिप्यज पेत्॥ॐ सुचक्षाअहमक्षीभ्यामभूयासर्ट-सपर्चामुखेन॥सश्रुकर्णाफ्याभूयासम्॥3॥ इत्यनेनमंत्रेणानुलिप्य॥सरुद्दीताहनवासःपरिधान॥ॐपरिधास्यैयशोधास्यैदीर्घायुग For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार खायजरदृष्टिरस्मि॥शतंचजीवामिशरदः पुरूचिरायस्पाषमभिमॅव्ययिष्ये॥१॥ इत्यनेनमंत्रण भास्कर // 2413 // |वासःपरिधाया। अथयज्ञोपवीतधारणं॥ ॐ यज्ञोपवीत्नम्पर०॥१॥ आचम्य॥ अथोत्तरीयधारण। ॐ यशसामायावापृथिवीयशसेन्द्रायबृहस्पनि॥ यशोगश्चमाविदयशोमापनिपयन॥१॥इतिमं त्रणात्मानमाच्छादयीत॥ एकंचेद्दासोभवनितदानस्येयपरिधानीयवाससउत्तरार्धमुत्तरीयंकुर्यात्॥ॐ याऽ आहरज्जमदनिःश्रद्धायैकामायन्द्रियाय॥नाअहम्प्रतिगृहामियशसाचागेनच॥१॥इतिम त्रिणपुष्पमालाग्रहण॥ततस्तांपुष्पमालांशिरसिबधीयात्॥ ॐ ययशोप्सरसामिन्द्रश्चकारपिपुलंप // 21 // तेनसङ्ग्रथिताः समनसऽ आवधामियशोमयि॥१॥इत्यनेनपुष्पमालाबंधनं। उष्णीषेणशिरो For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वेष्टयते॥ ॐ युवासवाःपरिवीन आगास उश्रेयान्भवतिजायमानः॥ तन्धीरास:कययाउन नयन्तिस्वाध्यो मनसादेवयन्तः॥ इत्यनेनमंत्रणोष्णीषं॥ॐ अलङ्करणमसिभूयोल करणम्भूयात्॥इत्यनेनमंत्रणफर्णवेष्टकोप्रतिमुंचते।। प्रथमंदक्षिणकर्णेततोऽनेनैवमंत्रेणयामक णे॥ ॐ वृत्रस्यासिकुनी कश्चक्षुर्दाअसिचक्षुर्मदेहि॥१॥इत्यनेनमंत्रेणाक्षिणीअक्॥प थमंदक्षिणततोनेनैवमंत्रणवामं॥ ॐ रोचिष्णुरसि॥१॥ इत्यनेनमंत्रेणात्मानमादर्शप्रेक्षते॥ उप्रतिगृहाति॥ ॐ बृहस्पतेञ्छदिरसिपाप्मनोमामन्तहितेजसोयशसोमामन्नःहि | // 1 // इत्यनेनमंत्रेणात्मनःशिरसिउर्वप्रसार्य॥ॐ प्रतिष्ठेस्थोविश्वतोमापातम्॥१॥ इत्यनेन For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मंत्रणोपानहीप्रनिमुंचनेपादयोर्युगपत्॥ॐ विश्वाफ्योमानाष्ट्रायस्परिपाहिसर्वतः॥१॥ इतिमंत्रणवैणवंदंडमादत्ते॥मेखलोन्मोचनादिदंडदानांतस्नानकर्ताकर्मकरोतिनाचार्यः॥ दंतप्रक्षालनादीनिनित्यमपिमंत्रचंतिमवंति॥वासछत्रोपानहांचनवानासुपादानमंत्रोभवति। नतुनित्यधारणे॥ततआचार्य: स्नातस्यनियमान्वदेत् // शूद्रादिस्पर्शनंनकर्तव्यं॥इच्छया शूद्रोपिअस्नातकोनियमेष्यधिक्रियते॥नृत्यगीतवादिबाणिनप्रतिगच्छेत्॥इ-छयापरैः क्रियमाणंसद्गीतंत्रोतुंगच्छेत्॥रागसहितंसद्गीतास्वयंचनकुर्यात्॥ क्षेमेसतिरात्रीयामांन | // 25 रंनगछेत्॥ अक्षेमेतुकामंगच्छेत्॥क्षेमेसतिनधावेत् इतिनशीघ्रंगच्छेत्॥उदपानावे For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्षणइतिकूपमध्ये अवलोकनकर्तव्यं॥ वृक्षारोहणनकर्तव्यं॥ फलप्रपतनंइतिफलबो टननकर्तव्य॥ संधिसर्पणइतिसंध्यासमयेगमनंयाअपमार्गगमनकर्तव्यं॥विवृतइति नमस्नानंनकर्तव्यं॥विषमलंघनमितिपर्वतगर्तादेर्लंघननकर्तव्यं॥शुल्कवदनंइतिलज्जा करंदुःरयकरंअमंगलभाषणंनकर्तव्यं॥संध्यादित्यप्रेक्षणंइतिसंध्यासमयेउपरक्तसूर्यबिंवा वलोकनकर्तव्यं॥भेक्षणानिइतिसवर्णविनासिद्धभिक्षाचर्यानकर्तव्या॥अपस्चात्मानना वक्षेतइतिजलमध्ये स्वमुखेनपश्येत्॥ अजातलोम्नीइतिअनुसन्नलोम्नीस्त्रीं॥विपुंसीइ ||तिपुरुषारुतिस्त्रीं॥पंटंचइतिनपुंसकंप्रसिद्ध। एतान्नोपहसेत् इतिअभिगमनंनकारये For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यात भास्कर संस्कार नागर्भिणीविजन्याइतिब्रूयात्॥सकुलमितिनकुलंब्रूयात्॥भगालमितिकपालंघूयात्॥ // 243 // मणिधनुरितींद्रधनुर्च्यात् ॥गांधर्यतींपरस्मैनाचक्षीतइतिपरस्यगांवत्संपाययंतीनांपरस्मै खामिनेवानकथयेत्॥ऊर्वरायामनंतर्हितायांभूमौइतिसस्यक्त्यांवाकुशादियज्ञीयत णवत्यांभूमौमुत्रपुरीपोत्सर्गनकुर्यात्॥उत्सर्पस्तिष्ठन् इतितथैवधायमानःसन्उत्तिष्ठ न्सन्मूत्रपुरीषोत्सर्गनकुर्यात्॥स्वयंपशीर्णेनकाष्ठेनगुदंप्रमजीतइतिआत्मनःप्रयत्न विनापतितेनयज्ञीयरहिताकंटककाष्ठेनरदंपोच्छेत् ॥यथा॥तृणायंतर्हितापूमीशि || | // 243 // रम्यावारैरावेष्ट्ययज्ञोपवीतंनिचीतंकलाअलंबितंकर्णेरुत्वादियोदङ्मुखोरात्रोदक्षिणा For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भिमुरवउपविश्यमोनीमूत्वामूत्रपुरीषोत्सर्गकुर्यात्॥यज्ञोपवीतस्यनिवीनवंविनैवकर्णधार णमनाचारः॥मूत्रोत्सर्गकदमृदंलिंगेसरुत्रिवारंयामकरेडिवारमुपयो:करयोर्दवातावद्वारी जलेनक्षालयेत्॥पुरीषेतुनावमृदंएकालिंगेगुदेतिस्रः वामकरेदशउपयोःकरयोः सप्तपंचा विर्वापिपादयोर्दत्वातावतैवजलेनक्षालयेत्॥ मूत्रचत्वारिगंडूषाणिपुरीषेद्वादशगंडूषोगी रणमिति॥विकृतंवासोनाच्छादयीतइतिनील्यादिरंजितवस्त्रनपरिधीन॥टबतइति| स्थिरसमारब्धव्रतोपवेत्॥ वधनस्यात्सर्वतः आत्मानंगोपायेत्सर्वेषामित्रमितिवधाना घाताचायकःखेषांपरेषांचमित्रमिवसरवेवज्ञायेत्॥स्नातकस्यसतोऽहोरात्रत्रयव्रतचा / / For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सरकार // 24 // ोच्यते॥अमांसाशीमयनि॥अमृन्मयेनपात्रेणउदकादिकंपिबति॥ऋतुमतीस्त्रीशूद्रभाषण भास्कर नकरोति॥शयंप्रसिदंरुष्णशकुनिरितिकाकः॥ शुनामिविश्वाकुकुटः॥एतेषादर्शनंचनकुर्या त्॥शावोमृतकः तस्मिन्जातेसतिकीखालब्धावाज्ञातिभिर्यदद्यतेतछायान्ननायात्नग्रही | यात्नाक्षयेदित्यर्थः॥शूद्रस्यअवरवर्णस्यनापितादेरपिअन्नंतच्छूद्रान्ननाद्यात्नगृण्ही यादित्यर्थः। सूतके प्रसवाशौचेसतिज्ञानीनामन्नत्सूतकान्ननाद्यात्नभक्षयेदित्यर्थः। |मूत्रपुरीषेष्टीवनंचातपेनकुर्यादिनिमूत्रपुरीषेप्रसिद्धेष्टीवनंसुरवाल्लालादिआतपेचनकुर्यात्।। | // 24 // सूर्याच्चात्माननांतर्दधीनेतिछत्रादीनामूत्रोत्सर्गनकुर्यात्॥तप्तेनोदकार्थान्कुर्वीतइति॥तप्ते For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kallassagarsun Gyanmandie नोदकेनशौचाचमनादिकाःक्रियाःकार्याः॥अवज्योत्यदीपादिनारात्रीपोजनंनकर्तव्यास त्यवदनमेवयाकर्तव्यं॥यथा॥रागद्वेषमहंकारत्यकाचवारिमायसेत् // क्षमादयाशांतिसवं सवैज्ञानीसमोक्षमागिति। नाधस्तनाममांसादयोयमनियमाःकर्तव्याः॥यदिप्रवर्यवान्म हावीरःसोमयागार्थस्वीसनदीक्षःदीक्षितोभवतितदामूत्रपुरीषेष्टीवनादि अवज्योत्यरात्री मोजनांतानिनकुर्यादिनियमनियमाअनुष्टेयाः॥यथाशक्तिब्राह्मणामोजयिष्ये॥आचार्या दिपूजनतेश्यप्रदक्षिणांदत्वातैराशिषोगृहीत्वा॥मातॄणांविसर्जनकलाकर्मेश्वरार्पणक त्॥ि इतिसंस्कार भास्करेसमावर्तनप्रयोगःसमाप्तः॥ // // For Private and Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इतिसंस्कारभास्करेसमावर्तनप्रयोग:समानः॥ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथक्रमप्राप्तोविवाहः॥ तवअनामिनिर्णयःप्रायश्चित्तंचायथा॥अनाश्रमीनतिष्ठेन दिनमेकमपिद्विजः॥आश्रमेणविनातिष्ठन्प्रायश्चित्तीमवेहिजइतिदक्षस्मृतेः॥एतत्मा यश्चित्तनिष्फनिर्मिताक्षरायां॥अनामिप्रायश्चित्तंयथा॥अनाश्रमीसंवत्सरंपाजाप संकच् चरिखाश्रममुपेयात्॥द्वितीये निरुचंतनीयेकच्छातिरुच्छूमतऊधूचीद्रा यणमितिहारीतोक्तेः॥धेनोरमावेनिष्कंस्यात्तदर्थंपादमेवचा। रांजाअशीतिःकर्षस्तक पश्चिखारिनिष्ककारुवर्णरजतंवापिदद्यात्त्यनुसारतइति ॥अशीतिगुंजात्मकःकर्षः ॥चवारः कर्षा एकोनिष्कश्चेति॥ ॥प्राजापत्यरुषं द्वादशदिनसाध्यंतद्यथा।प्रथम For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ||त्रिदिनेमध्यान्हे एकमुक्तंषड्विंशतिग्रासपरिमितंहविष्यान्नं भोक्तव्यं द्वितीयेत्रिदिनेन // 24 // |क्तं द्वाविंशतियासपरिमितंभोक्तव्यं // तृतीयेत्रिदिनेअयाचितंचतुर्विंशतियासपरिमिनं मोक्तव्यो। अत्र सर्वत्रहविष्यान्नसोक्तव्यं॥अयाचितंयांचारहितं॥चतुर्थेत्रिदिनेअ| नशनमितिप्राजापत्यरुच्छं। एनसत्याम्मायेगौरेका॥ ॥अतिरुच्छ्यथा।प्रथमे त्रिदिनेएक मुक्तंपाणिपूरितंहविष्यान्नंभोक्तव्याहितीयेविदिनेअयाचितंपाणिपूरितंभोला व्यं॥तनीयेविदिनेउपवासइनिनवदिनसाध्यंअनिरुच्छं॥एतत्सत्याम्नायेगोडया) // 246) छातिरुच्छंयथाएकयासपर्याप्तस्यप्राणधारणपर्याप्तस्यवादुग्धस्यएकविंशतिदिनेषु / For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पक्षणेकच्छ्राऽतिरुच्छ्। एतस्यत्साम्मायेगोचतुष्टयंत्रयंगा॥ ॥चांद्रायणंयथा॥ह विष्यान्नस्यमयूरोडप्रमाणमेकयासमेवं शुक्ल प्रतिपदमारश्यपोर्णिमांनंएकैकवर्धितयासंकृष्णप्रतिपदमारण्यअमांतमेकैकग्रासन्यूनंचेतियवमध्यचांद्रायणव्रतं॥पक्षेतिथि वृद्ध्याषोडशयासाः॥क्षयेचतुर्दशयासाश्चेति॥ ग्रासान्नंगायत्र्याभिमंत्रयेदितिमहार्ण वे॥ एतस्यत्याम्मायेष्टोपंचचतस्रोवागावइति॥प्रथमाब्देप्राजापत्यरुच्छतेसंकल्सः॥देशका लकीर्तनांनेअमुकशर्मणःममबनविसर्गदिनमारस्यएकाब्दपर्यंतवानन्न्यूनदिनपर्यंतंभ नाश्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थप्राजापत्यरुच्छ्वतप्रत्याम्नायेगोनिक्रयीभूतंय For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार याशक्तिरजनमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये॥ इतिसंकल्पातेब्राह्मणसंपूज्यपूर्वकस्सिनद्र भाकर // 247 व्यंगृहीत्वा॥ इदंप्राजापत्यरुच्छ्पत्याम्नायैकगोनिष्क्रयीभूतरजतद्रव्यमुद्रां अमुकशर्म ॥णेबाह्मणायतुश्यमहंसंप्रददे॥ द्वितीयाब्देअतिरुच्छ्व्रतेसंकल्पः॥देश० ममवन मारण्य अब्दद्वयपर्यंत अनाश्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थ अतिरुच्छ्रवत त्याम्नायगोदयनि यीभूतंयथाशक्तिरजतमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये। इतिसंकल्पाते ब्राह्मणंसंपूज्यपू वैकल्पितंद्रव्यंगृहीला॥इदंअतिरुच्छ्रप्रत्याम्नायगोइयनिक्रयाभूतरजतमुद्राद्रव्यंअमुः | // 247 // नुश्यमहसंप्रददे॥ तृतीयाब्देरुच्छातिरुच्छ्वतेसंकल्पः॥देश ममव्रत मारण्यअब्दन For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यपर्यंतंअनाप्रमस्थितिजन्यदोषपरिहारार्थरुच्छातिरुच्छव्रतप्रत्याम्नायगोचतुष्टय निष्क्रयीभूतंयथाशक्तिरजनमुद्राद्रव्यदानमहमाचरिष्ये।।इनिसंकल्पातेब्राह्मणसंपूज्या। रुच्छातिरुच्छ्रप्रत्याम्नायगोचतुष्टयनिष्क्रयीभूतांरजतद्रव्यमुद्रांअमु तुभ्यमहंसंप्रददे| तृतीयादोकस्मिंश्चिदपेचांद्रायणबनेसंकल्पः॥देश ममत्रत मारश्यतृतीयाब्दा अयदिनपर्यंतंअनाश्रमस्थितिजन्यदोष चांद्रायणव्रतंतस्पत्याम्नायपंचगोनिष्क यीभूतयथाशक्तिरजतद्रव्यमुद्रादानेनाह.॥ इतिसंकल्लातेबाह्मणंसंपूज्यपूर्वकसितं द्रव्यंगृ०॥ इदंचान्द्रायणवतपत्याम्नायपंचगोनिष्क्रयीभूनरजतद्रव्यमुद्रांअमु.तुझ्यम | For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार | हंसंप्रददेइति अनामित्वप्रायश्चित्तं। विवाहोपयोगीकन्यादिप्रकारोनिर्णयश्चागुरवेतु // 248 वरंदखास्मायीननदनुज्ञया।वेदवतानिवापारंनीत्वायुमायमेवया // अविप्लनब्रह्मचर्योलक्षण्या स्त्रियमुद्हेत्॥ अनन्यपूर्विकांकांतामसपींडायवीयसी॥अरोगिणींचासमतीमसमानार्षगोत्र जामितियाज्ञवल्क्योक्तेः॥विविधोपिवेदवतोभयस्नातकोऽविलंबेनलक्षणादिविशिष्टास्त्रियों परीक्षिनामुद्हेत्॥अनन्यपूर्विकामितिअन्येषांवादगानादिनानपूर्वदत्ता॥असपिंडांसापिं यसंबंधरहितां॥यवीयसींन्यूनवयस्कां॥असमानार्षगोत्रजांखसमानगोत्रप्रवररहि तामिति।।अवापिकुलमपरीक्षेने निगृह्यादिवचनादादौसदाचारादिगुणवत्तयाहीनकि 248 // For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie यत्वादिदोषरहितकुलंपरीक्ष्यतन्वज्जोहाह्या॥ तदनुलक्षणान्यपिपरीक्षणीयानि॥लक्षणा निचझमाझमसूचकानि॥तनुलोमकेशदशनादीनिप्रत्यक्षावगम्यानिबाह्यानि।।नयाचा मनुः॥अव्यंगांगीसौम्यनाम्नीहंसवारणगामिनी॥तनुलोमकेशदशनांमृदंगीमुहहेस्त्रि यमिति॥कात्यायनः॥अव्यंगांदोषरहितांसरूपांवयपूर्विका।सवर्णरुकुलोत्पन्नांकाल सणसंयुतां॥प्रतिगृहीतांतांकन्याकुलसंतानवर्धिनीमिति॥तथाचज्योतिर्निबंधे।म दंगीगूढगुल्फासमकुचनयनावृत्तनामोरुक्क्रारुष्ण नेत्रकेशास्थिरतरसुरवादी र्घनेत्राविलोमा। मृहाणीस्वल्पमालालघुललितगमापाणिपादोष्ठरक्तासाकन्योहाहिता For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तारकर संस्कार |चेत्सुनधनविपुलान्नायुरारोग्यदास्यादिति॥ अथकन्यादोषाः॥निर्पणाझल्कसंप्माषीकोधयु // 249 // तासरोगिणी॥विषयोगावंध्ययोगाकुलविधसयोगका॥दरिद्रजारयोगाचहीनाचरणसंयुता। एतद्दोषदशेर्युक्तानांकन्यांनप्रतिगृहेदिति॥ // अथवरगुणाः॥नवबुद्धिमतेकन्यां प्रयच्छे |दितिबद्धृचगृह्ये॥ नथाचज्योतिर्निबंधे॥विद्यावतंसरूपंउभयकुलचिंज्ञातशीलंडटांग निर्याधिशांतियुक्तंहिजरूरप्रणतोकिंचिदार्यप्रयुक्तं॥सम्यक्पृष्टोचपृच्छांप्रचुरतरधियं मूत्रधारंसलिंगमेतद्रूपंवरिष्टंबरमिहवरयेत्कन्यकायाः सवेशः॥१॥ यमः॥कुलंचशीलंचयय // 249 // / रूपंविद्यांचविनंचसनाथनांच॥एतान्गुणान्सप्तपरीक्ष्यदेया कन्यायुधैःशेषमचिंतनीया For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथवरदोषाः॥ आचारहीनोमूर्यश्चकुरूपोचोरजारकः॥ पाखंडीचतथोन्मत्तोमूहक कुल दूषकः॥ यूतकर्मग्नश्चैवदशदोषाः प्रकीर्तिताः॥एनदोषप्रयुक्तायेतेषुकन्यानदीयते।। अन्यच्च॥षंटमूकांधबधिरकाणकुमाश्यवामनः॥अश्रोत्रीपंगवश्चैवतेषुकन्यानदीयते॥अन्य च। श्वित्रीकुष्टीअपस्मारीकुनखीश्यामदतकः ॥वृणयुक्तोव्याधियुक्तस्तेषुकन्यानदीयत्तेइ ति॥पतितःपायुक्तः॥असपिंडामिनिसापिड्यंवर्जनीयं॥ अथसापिंड्यनिर्णयः॥ वध्यावरस्यया नातः कूटम्याचदिसप्तमः॥ पंचमीचेनयोर्मातानत्सापिंड्यंनिवर्ततेइति॥ कूटस्थइतिमू लपुरुषमारझ्यात्रगणना॥ कूटस्थोमूलपुरुषोयतःसंतानभेदतः॥संस्कारकौस्तो।दशभिः For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पुरुषैरव्याताछोत्रियाणांमहाकुलात् ॥उद्हेत्सप्तमादूनदभावेतुसप्तमी॥पंचमीतदमावेत | भास्कर // 25 // पितृपक्षेष्षयविधिरिति॥ सप्तमींचतथाषष्ठीपंचमींचतथैवच॥ एवमुद्दाहयेत्कन्यांनदोषःशा कटायनः॥ चतुर्थीवावृत्तीयोवापक्षयोरुभयोरपि।विवाहयेन्मनुःप्राहपाराशर्योगिरायमः | // 1 // चतुर्थीमुद्दहेकन्यांचतुर्थःपंचमोवरः॥पराशरमतेषष्टींपंचमोनतुपंचमीं॥१॥इतिसा पिंड्यदीपिकायां॥ पंचमवरपंचमीकन्योद्धाहे व्यवस्थोक्ता विश्वरूपनिबंधे। दोपत्रीपूर्वजा स्यातांत्तयोरपिचसंततिः॥पंचमःपंचमीकन्यांननत्रयरयेद्विजः॥१॥देकन्येपूर्वजात्स्यातां || ||250 // संततिःस्यात्तयोरपि॥पंचमःपंचीकन्यां वरस्तत्रसमुद्हेत्॥२॥ कन्यापुत्रौतुसंभूतीपूर्व For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जासंततिस्मयोः॥यदिस्यादरयेत्तत्रपंचमःपंचमीमपीति॥३॥असपिंडाचयामातुरसपिंडाच यापितुः॥साप्रशस्ताद्विजानीनांदारकर्मणिमैथुने॥यत्तुदोषानुरूपेणकुलमोर्गणचोरहेत्॥ नित्यंसंव्यवहार्य स्याहेदोक्तै: तत्प्रतीयतेति॥ तच्चययाशारवोक्त प्रकारेणयथादेशाचारकुला चारानुसारेणकुलदीर्घसंकोचितविचारतोव्यवस्थाज्ञेया॥विस्तरस्तुग्रंथांतरेज्ञेयः ॥मातुलक न्यानिषेधस्त॥यथा॥मातुलस्यसनापिप्रोदक्षिणेतासमुदहेन्॥ वर्जनीयाप्रयलेनसर्वाज सनेयितिरिति॥ तत्रगोत्रप्रवरविचारेणोद्हेत्॥ गोत्रप्रवरेक्येमहद्दोषः॥अथदत्तकसापिंडयनि णयः॥ तद्विवरणयथा॥गौतमः॥उर्ध्वंसप्तमापिटपंचायोबीजिनश्च॥मानबंधुश्य:पंचमादि | For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार |ति॥उक्तंच॥वरुदेवांगजानाचकोंतेयस्यविरुध्यनइतिवार्तिक व्यारव्यावसरेन्यायसधा-॥ |कृतादत्तकविषयमेतदित्यंगीरुत्यकुंत्याजनककुलेमाप्तपूरुषंसापिंड्यमितिव्यारव्यातंतद्विषयत्वेनैवसापिंड्यमिमांसायाम्॥ अतः कुलयेपिसाप्तपूरुषमापिंड्यंप्रतीयते।।पेठीन सिस्त॥ बीन्मात्तःपंचपित्तः सप्तपुरुषाननीत्योहहेदित्याह।व्याख्यातमेतदपरा:दन कादिपुत्रापितृपक्षनोनिवृत्तपिंडगोवायुयान्प्रत्येनदुच्यतेपंचपिन्तइति॥ अनश्चपनि ग्रहीतृकुलेसाप्तपूरुषसापिंड्यंपनीयनेप्रतिगृहीतमापितक कुलयोस्त्रिपुरुषसापिंट्य 1251 // मितिमाञ्चः॥ अथात्रव्यवस्थोक्तासापिंड्यदीपिकायर्या // दत्तकीतादीनांजनकगोत्रेणोप || For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie नयनेरुतेजनककुलेसाप्नपूरुषंसापिंड्यं॥प्रतिगृहीतृमातृपितृकुले निर्वाप्यपिंडलक्षणं त्रिपूरुषसापिंड्यं॥प्रतिगृहीतृगोऽउपनयनमात्रेरुतेपंचपूरुषं ॥जातकर्माद्युपनयनां तेरुत्तेसाप्तपूरुषमितिपैठीनसिवचः साफल्यायव्यारव्येयम्॥नकेपलंदत्तकस्यपरिणय नार्थमेवैषसापिंड्योपन्यासः॥किंतुतत्संततेस्तत्पित्रादिकुलोत्पन्नैःसहसंबंधसंभवनिर्ण यार्थमपि॥ अन्यथापार्यसमद्रयोरदत्तकयोःसंबंधासंभवशंकायाअनार्यसभाद्रयोरद तकयोः संबंधासंभवशंकायाआचार्यकर्तृकोपन्यासस्यनदुपपत्येसधायांगौतमीयोपन्यास स्यालमकतापत्तेःयादृशदत्तकस्ययथासापिंडयमुक्तसंततोपिनथैवतबोध्यम्।।अतएवय For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 252 // मदनपारिजानोक्तं॥दत्तपुत्र्याःसनस्यमातुःप्रतिग्रहीतृमानु:कुलेत्रिपूरुषंसापिंड्यं। दत्तक || भास्कर पुत्रसतस्यस्पजनककुलेपंचपूरुषमितितदपिपूर्वोक्तरित्यादत्तकविशेषसंततिविषयत्वेनच्या ख्येयम्॥ मुख्यावयवानुवृत्यमावेपिद्वितीयसापिंडयप्रकारमाह॥समंतुः॥ पितृपल्यःसर्वा मातरस्तद्धानरोमातुलास्तद्भगिन्योमातुः स्वसारस्नदुहितरश्वभगिन्यस्तदपत्यानिभागिने यानि॥ अन्यथासंकरकारिणःस्युरितिमदनपारिजातेमाधवीयेचनदगिन्यइतिपठिनेअन्ययथेषुतुपठ्यते॥ अत्रयावचनंबाचनिकमितिन्यायेनपरिणीतेष्वेवातिदेशिकंसापि-|| || // 252|| ड्यनतुपंचमसप्तमादिपर्यंतमितिमचरणप्रश्तयोबहवइति॥यवीयसीस्वापेक्षयाययसा For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वपुषाचन्यूनां॥ अरोगिणींअचिकित्स्यराजयक्ष्मादिरोगरहिनां // मातृमनीमिनिपुत्रि / काकरणशंकानिवृत्यर्थं॥यत्रतुपुत्रिकाकरणामापनिश्चयस्लत्रतामश्चातकामप्युद्हेत्॥इनि दत्तकसापिंड्यनिर्णयः॥ ॥अथगोत्रप्रवरनिर्णयः॥विश्वामित्रोजमदमिर्भरद्वाजोय गौतमः॥वसिष्टोषिःकश्यपश्चइत्येतेसप्तऋषयः॥सप्तानामृषीणामगस्त्याष्टमानांयदपत्यंतद्गोत्रमित्याचक्षतइति // असमानार्षगोत्रजामिति // ऋषेरिदमार्षगोत्रप्रवर्तकस्यम्। ने वर्तकः प्रवरइत्यर्थः।गोत्रंवंशपरंपरयाप्रसिहं॥स्वसमानेआर्षगोत्रेयस्यतस्माज्जाना / यानभवतितायास्कमाधूलमोकानोभिन्नगोत्राणामपिमार्गबयेतहव्यसावेतमेतिप्रवरेक्य For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार मस्तितबविवाहोमादिनि असमानार्पजामित्युक्तं॥ आंगिरसाबरीषयौवनाश्चनिमाधान मानाकर // 253 // वांबरीषयोयनाश्चति॥ आंगिरसमाधान प्रवरभेदेपियोवनाश्वगोत्रस्य॥ तादृशविवाहयारणा यासमानगोत्रजामित्युक्तं॥ तथाचगोत्रप्रवरोपृथक्पर्युदासेनिमित्तभूतो॥ प्रवेरैक्येविशेषमा हबौधायनः॥पंचानांविषुसामान्यादविवाहस्त्रिषुद्वयोः॥ग्यंगिरीगणेष्वेवंशेषष्वेकोपिवारयो दितिविवाहमितिशेषः॥ भृगूणांनविवाहोस्तिचतुर्णामादितोमिथः॥ श्येतादयस्पयस्तेषांवि वाहोमिथइष्यते॥षण्णांवैगौतमादीनांविवाहोनेष्यतेमिथः॥दीर्घतमाऔनथ्यनकक्षीयां-|| श्चैकगोत्रजाः॥ भरद्वाजाग्निवेश्याश्चशृंगाःशैशिरयःकताः॥एतेसमानगोत्राः स्युगर्गाने For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वदंतिवै॥पृषदश्वामुद्गलाविष्णुवृद्धाएकोगस्त्योहारितःसंस्कृतयःकपिः॥यस्कश्शेषामिय इष्टोविवाहःसरन्यैर्जामदम्यादिभिश्शायावत्समानगोवाः स्युर्विश्वामित्रोनुवर्नते॥तायड सिष्ठश्चाविश्वकश्यपश्चपृथक्पृथक्॥ यापैयाणांत्र्यार्षयःसन्निपातोऽपियाहरू योर्षया णापंचार्षयःसन्निपानो ऽविवाहः॥एकएपऋषिर्यावसवरेघनुवर्तते॥तावत्समानगोत्रत्वम् नग्यंगिरोगणादित्यसमानप्रवरैर्विवाहः॥ परहाजाश्यकपयोगर्गारोक्षायणाइति।च खारोपिभरद्वाजा नोहहेयुःपरस्परं॥१॥ ओतथ्यपवरोयेषांगीतमानांपवेदिह॥ तैः सर्वैरपिनै येष्टाभरद्वाजस्यमंगतिः॥१॥इतिसंक्षिप्तगोत्रप्रवरनिर्णयः॥ अथदत्तकस्यगोत्रादिनिर्णयः॥ For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार तत्रया तत्रयश्चप्रतिग्रहीत्राजातकर्मादिमिश्रूडादिभिर्वासंस्कृतस्तदेकगोत्रः॥ एतमभिप्रेत्यैवो // 254 // त्रग्क्येिजनयितुर्नमजेदेनिमःसुतइतिशास्त्रमपिप्रवृत्तम्॥एतदन्यतुप्रतिगृहीवोपनयनमात्र स्कृतस्तदुत्तरतःप्रतिग्रहीतोवादेवरातवहिगोत्रएवेतिव्यवस्थापागवादि। तथाप्येषांच्यवस्थाअ भिवादनप्रादादिगतगोत्रनिर्देशा॥ विवाहेतुदत्तकमात्रेणबीजिप्रतिगृहीत्रोःपित्रोर्गोत्रप्रवर वर्जनकार्य॥प्रवरमंजर्यादिनिबंधेषुतन्निषेधोक्तेः॥इतिदत्तकस्पगोत्रप्रवरनिर्णयः॥प्रथम त्युग्रहादिनिषेधोनारदेन॥ प्रत्युग्रहोनैवकार्योनैकस्मेडुहितद्वयं॥नचैकजन्ययाः पुंसोरेकज // 254|| न्येनुकन्यके॥ नैवेकदाचिदुद्दाहोनैकदामुंडनयमिति॥यत्कुटुंबोसन्नाकन्यकास्वकुलआनी / For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वपुषाचन्यूनां॥अरोगिणींअचिकित्स्यराजयक्ष्मादिरोगरहिनां // मातृमनीमिनिपुत्रि || काकरणशंकानिवृत्यर्यं॥यत्रतुपुत्रिकाकरणाभापनिश्चयस्मत्रतामन्चातकामप्युद्हेत्॥इति दत्तकसापिंड्यनिर्णयः॥ ॥अथगोत्रप्रवरनिर्णयः॥विश्वामित्रोजमदमिरिद्वाजोय गौतमः॥वसिष्ठोषिकश्यपश्चइत्येतेसप्तऋषयः॥सप्तानामृषीणामगस्स्याष्टमानांयदपसंनद्गोत्रमित्याचक्षतइति // असमानार्षगोत्रजामिनि॥ऋषेरिदमार्षगोत्रप्रवर्नकस्यम्। नेावर्तकःप्रवरइत्यर्थः।गोत्रंवंशपरंपरयाप्रसिई॥स्वसमानेआर्षगोत्रेयस्यतस्माज्जाना / यानभवनितांयास्कमाधूलमौकानोभिन्नगोत्राणामपिमार्गयचेतहव्यसायेनमेतिरेक्य For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तत्रयश्वप्रतिग्रहीवाजातकर्मादिभिश्चूडादिभिर्वासंस्कृतस्तदेकगोत्रः॥एतमभिप्रेत्येवगो भास्कर बिग्यियेजनयितुर्नमजेदेनिमःसुतइतिशास्त्रमपिप्रवृत्तम्॥एतदन्य तुप्रतिगृहीबोपनयनमात्रमा स्कृतस्तदुत्तरतःप्रतिरहीतोवादेवरातपरिगोत्रएवेनिव्यवस्थापागवादि। तथाप्येषांव्यवस्था भिवादनप्रादादिगतगोत्रनिर्देशा॥ विवाहेतुदत्तकमात्रेणबीजिप्रनिगृहीत्रोःपित्रोर्गोत्रप्रवर वर्जनकार्यं ॥प्रवरमंजर्यादिनिबंधेषुतन्निषेधोक्तेः॥इतिदत्तकस्यगोत्रप्रवरनिर्णयः॥अथम युवाहादिनिषेधोनारदेन॥ प्रत्याहोनैवकार्यो कस्मेहियं॥ नचैकजन्ययाःपुंसोरेकज // 254|| न्येनुकन्यके॥ नैवंकदाचिदुद्दाहोनेकदामुंडनद्वयमिति॥यत्कुटुंबोसन्नाकन्यकास्वकुलआनी For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यतेनकुटुंबेएचस्वकुटुंबोत्पन्नकन्यकाप्रदानंप्रत्युराहइत्युच्यते।।पायसनविरुडसंबंधसद्भावा त्॥तयाचयापरिशिष्टे॥कन्यायवीयसीमसपिंडामसगोत्रामविरुद्धसंबंधामुपयच्छेदिति ॥विरुद्धोलोकिकसंबंधोयस्याःसानथा। भार्यास्वसुर्दुहिता,पिदव्यपत्नीस्वसा, मौत हितृकन्या.वरकन्याचेत्यादयः॥प्ररुतेतुघातृदुहितकन्यादेवरकन्याचकन्यैवव्यवहि यतइतिरुत्वानस्त्रीपरिणयनं।लोकविरुद्धसंबंधएवमादीविरुदसंबंधेसत्येवप्रत्युवाहा निषेधोनान्यत्रेतिवेदितव्य। आसांप्रत्युद्धाहोनकार्यएव॥तथैकस्मेवरायदुहितृदयन दद्यात्॥ज्येष्ठायांजीवत्यासत्या कनिष्ठांनदद्यात्॥मृतीतस्येववरस्यकनिष्ठांदद्यात्॥ For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार अन्यथाविरुदसंबंधाभावात्॥ इदमपिप्राविरुदसंबंधैसनिवेदितव्यं // एवंविधउद्दाहःक भास्कर // 255 // दाचिन्नकार्यः॥ तथैकस्मिन्नेवकालेमुंडनयनकार्य। तथाच॥एकजन्येतुकन्येद्देपुत्रयोर्ने कजन्ययोः॥नपुत्रीद्वयमेकस्मेप्रदयात्तुकदाचनेति॥ इतिप्रत्युद्वाह निर्णयः॥अथसोदर, कन्यापुत्रयोर्विवाहयो:समानसंस्कारलेय्येकवर्षकर्तव्यत्वमनुज्ञातं ज्योतिः शास्त्रे। सोदर्य योःकन्यकयोः स तयोरेकवत्सरे॥विवाहोनस्मृतइति। अत्रैकवर्षनिषेधेनभिन्नवर्षे कर्तव्य ताविधीयते॥निषेधस्वेकवर्षेपिषण्मासादर्यागेव॥ तथाचसारसमुच्चये॥ एकोदरश्वातृयिया | // 255 // हरुत्यंस्वस्रो पाणिग्रहणविधेयं॥षण्मासमध्येमुनयःसमूचुर्नमुंडनमंडनतोपिकुयात / For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अतएकवर्षनिषेधानिन्नवर्षेनुषण्मासादगिपिनैवदोषः॥यदितुज्येष्ठमा सेयस्यविवाहादोरुने कार्तिकेमार्गशीर्षतत्सोदरस्यविवाहादीक्रियमाणेषण्मासाभ्यंतरेपिचतुर्मासातिक्रमणानदोषः यदुक्तंवाक्यसारे॥ एकःकर्ताशसंकुर्यान्नपुत्र्योःपुत्रयोरपि॥षण्मासेवाचतुर्मासेवर्षदेतुशो अनमिति॥षण्मासमध्येचतुर्मासमध्येवापुत्र्योः पुत्रयोरपिशभविवाहादिकमेकःकर्तानकुर्या न्। वर्षभेदेनुषण्मासातिकमामावेपिशप्रस्यादिति // तदुपलक्षणेनात्रप्रवेशनिर्गमादिदोषोना स्तीतिगम्यते॥तथाचज्योनिःसारे॥नैकस्मिन्वत्सरेफुर्यासवेशान्निर्गमक्कचित्॥ अतिका || नेवत्सरेस्यात्तथामासचतुष्टयेइतिद्वितीयादिविवाहेपुनरुपनयनादोचसमानसंस्कारखाधि || For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 256 // चारः॥जातकर्मसंस्कारवादृद्धिावादीस्वयमेवकर्तव्यत्वाच्चानथावचनं॥जातकर्मादिसंस्कारे भास्कर पिनाकुनिनादिकं॥समावृत्तौस्वयंकुर्यादाघेपाणियहेपिनेनि॥पुनरुपनयनेआपलायनः॥ थोपेतपूर्वस्यरुताकृतंकेशवपनमेधाजननंचानिरुक्तंपरिदानंकालश्शेति // अवपरिदानादी नाममावात्स्वयमेवकर्तृवंसिद्ध॥ देशव्यवस्थायामपिनदोषःपठ्यते॥ज्योति:शास्त्रे॥ए कोदो करतलग्रहणयदिस्यादेकोदरस्थवरयो: कुलनाशनंच॥ एकाब्दिकेहिविधवाभवती हकन्यानयंतरेपिकपदंपृथुशेलरोघेइति ॥एकाब्दमध्येएकोदोःकन्ययोः करतलयहर्णय || 256 // दिस्थात्॥ एकोदरस्थवरयोळकरतलग्रहणस्यात्तदाकुलनाशनंकन्याविधयाच भवति।नदी। For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवधानेपृथुशेल व्यवधानेपिशादंभवति॥नयंतरेणशेलांतरंचलक्ष्यते॥तथाचस्मृतिः॥ व्यवधानमहानद्यागिरिर्वाव्यवधायकः॥वाचोयत्रपिभियंतेनद्देशांतरमुच्यते॥ अतः पृथुप ||दनयापिसंबंधनीयतेननदीमहतीगृह्यते॥चतुर्विंशतियोजनायामहानयोगोदावर्यादयोद्दाद शपुराणादोषसिद्धाः॥पृथुशैल: सह्यविध्यादिः॥अयंचसकलभिन्नाब्दादोविधिःप्रवेशनि मिनिर्णयेवेदितव्यः॥समानन्यायतखात्॥ अथैकमानप्रसूतयोर्निणयःसंहितासारायल्यां | // एकमात्प्रसूतानामेकस्मिन्वत्सरेयदि॥विवाहंनैवकुर्वीतयदंतिमुनयोयथा॥१॥ स्मृत्यंतरे।। विवाहस्लेकजन्यानामेकस्मिन्नुदयेकुले॥ नाशंकरोत्सेकवर्षस्यादेकविधवायतः॥२॥उदयोग For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर संस्कार लमं॥एकजन्यानामेकस्मिन्लमेविवाहकुल विनाशंकरोति॥ एकवर्षलेकविषयास्यादित्यन्य॥२५॥ यः॥विवाहोबनबंधादीनामुपलक्षणं॥तथाचज्योति शास्त्रे।एकमातृजयोरेकवत्सरेपुरुषस्त्रियोः॥ निसमानकियोकुर्यान्मावोदेविधीयते।।पुरुषोचस्त्रियोचपुरुषस्त्रियो।पृथक्त्वविवक्षायोबहुवासभा वान्नबहुलं॥ एकमातृजयोईयोः स्त्रियोरेकवर्षसमानक्रियांनकुर्यादित्यर्थः॥समानक्रियातुल्य |संस्कारः॥अववर्षतुमनजमानेन।मनुजवर्षेणसंवत्सरव्यवहारात्॥ तद्वर्षचैत्रादिफाल्गुनामांत ग्रहगणितेप्रसिद्ध॥ यत्तुगर्गवचनं // बातृयुगेस्वसृयुगेनातवमयुगेतथा॥नजातुमंगलंकु र्यादेकस्मिन्मंडपेहनीति॥ एकस्मिन्मंडपेहनीतिनिषेधादेकवर्षेपिभिन्नेहनिकर्तव्यतार्थसि // 257 // For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir डा॥अपिच॥पुत्रीपरिणयादूर्भुयावदिनचतुष्टयं॥ पुन्यंतरस्यकुर्वीन नोग्राहमितिसूर यः॥दिनचतुष्टयमध्येपुञ्यंतरस्यविवाहनिषेधादिनचतुष्टयोत्तरमेकर्षपिपुञ्यंतरस्यपि वाहोविधीयनइत्युक्तखादिनचतुष्टयग्रहणेमंडपोहासनानानिविवाहसमाप्तिकर्माणिलक्ष्य ते॥ प्रायश्चतुर्थदिनेतेषांविधानात्॥ अतएववराहः॥उग्रह्यपुत्रींनपिताविदध्यात्सुञ्यंतर स्योदहननजातु॥ दिनानिचसारिहिमंगलस्यसमापनंताबदतोविदध्यात् इति ॥अतश्चैकमंडपेशोभनदयस्यनिषेधोस्तीतिसिई॥ नथाचयमलजानेनिर्णयसिंधो॥ एकस्मि न्यासरेपासेकुर्याद्यमलजातयोः॥ क्षौरंचैवविवाहंचौंजीबंधनमेवच॥ अबविशेषःम For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार भास्कर // 25 // दृकारिकायां। एकस्मिन्यत्सरेचैववासरेमंडपेतथा॥ कर्तव्यंमंगलंस्वस्रोओबोर्यमलजातयोः | इति॥ ननुस्त्रीणामुपनयनस्थानेपियाहइत्युक्त खात्॥सोदरकन्यापुत्रयोपियाहोपनयनयोःस मानसंस्कारसमितिचेत्उच्यते॥अष्टमेवर्षेबाह्मणमुपनयेदित्याश्वलायनयचनेनकुमारमि त्यनुवर्तते॥कुमारीनिवृत्यर्थमिदमिनिवृत्तिकृताव्याख्यातं॥ हरदत्तेनापि ब्राह्मणग्रहणंचात्र स्त्रीशूद्रादिनिवृत्तयइति // अतोध्ययनानधिकारास्त्रीणामुपनयननिषेधएव॥यथाहाभारा जः॥ उपनयनारव्ययकर्मविद्यार्थसमुदीरितमिति॥अतएवाहोपनयेद्गुरुशिष्यं॥जाताधि | // 25 // काराज्जननादष्टमेब्देसवेदिदं॥कुमाराधिरुनेश्वापिनस्त्रीणामिदमुच्यतइत्यतःस्त्रीणाम् / / For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पनयननिषेधएव॥ एवं चेत्तर्हिस्त्रीणांदिजन्मलंनस्यात्॥ तस्मात्स्त्रीणादिजन्मससिध्यर्थमे वोपनयनस्थानेविवाहइत्युक्तमेतदेवस्पष्टीकृतमनुना॥वैवाहिकोविधिः स्त्रीणामोपनायनि कःस्मृतः॥पनिसेवागुरीवासीगृहस्थामिपरिश्रियेति॥अत:स्त्रीणांविवाहविधिरेवोपनय नमितिकलाकन्यापुत्रयोविवाहोपनयनयोःसमानसंस्कारसमितिउच्यते॥पुरुषाणामुप नयनादूर्धस्त्रीणांविवाहादूर्धंयथावर्णपूर्णमाशोचंइत्युक्तबास्त्रीणाविवाहएवचेस्त्री णांविवाहएचोपनयनस्यानदापुरुषाणांस्त्रीणांचोपनयनादूर्ध्वंपूर्णमाशौचमित्यवस्यत्॥ अपिच॥स्त्रीणांविवाहकालेचेद्गुरुकदिनविद्यते॥ द्विजानांचोपनयनेगुरुंनत्रैवपूजयेत् // For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार इत्यादौस्त्रीनरयोः पृथगुपादानान्॥स्त्रीविवाहस्तविवाहएव॥ एतन्तुमनुवचनेविवाहए। भास्कर // 259 // वोपनयनंतस्त्रीणांदिजन्मलोपादानपरं॥अन्यथाश्वलायनादिवचनैविरुध्यते॥अतःक न्यापुत्रयोरु दाहोपनयनयोर्नसमानसंस्कारसमिनिसिइं॥ अनःसोदरकन्यापुत्रयोविवाहो पनयनेएकवर्षेपिकर्तव्येएव // तत्रापिपुत्रोपनयनकर्मसमाप्यपुत्र्युदाहंकुर्यात् ॥नमुंडन मंडनतोपिकुर्यादितिनिषेधात्॥परिवेतृसंतुपुत्रकृतपुत्रस्यकन्याकृतंकन्यायाएव॥तथाविधा गर्गादिक्चनदर्शनात्॥अतःकन्यापुत्रयोःपरस्पररुतोनपरिवेतृत्व परिवेत्तित्वविचारः॥अथ | // 259 / / ||प्रवेशनिर्ग:निर्णयः॥तत्रज्योतिः शास्त्रे॥स्त्रीविवाहःकुलेनिर्गमः कथ्यनेघुविवाहःप्र For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वेशोमुनींद्रेःस्मृतः॥निर्गमादादितोनप्रवेशःशमस्खेकसंवत्सरांतावधिःकीर्तितः॥कुले सापिंड्ये॥उभयत्रकुलस्यान्नमित्यादिषविज्ञानाचार्यवियेंद्रारण्यादिमुनिभिस्तथाव्यारव्यातला त्॥सापिड्यंसाप्तपुरुषप्रसिद्धं॥वासिष्टे॥ नपुंबिवाहोर्खामृतुत्रयेपिविवाहकार्यदुहितुःप्रकुर्या त्॥ नमंडनाच्चापिहिमुंडनंतुगोत्रैकतायांयदिनाब्दभेदेइति॥गोत्रैकतायामितिसापिंडयेदृष्ट व्यं॥ सापिंडानामेवविवाहसंबंधनिषेधइति // तथाचस्मृतिः॥ नित्यामधीतंचस्मानंच शिशिरैर्जलैः ।सपिंडोनैवकुर्वीतपिंडानोडासनायधीति // तथाचगार्यः॥नांदीश्रादेक तेपश्चायावन्मादृविसर्जन॥दर्शश्राइंक्षयाईस्मानंशीतोदकेनच॥ अपसव्यंस्वधाकार For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नित्यश्रादतथैवच॥ ब्रह्मयज्ञंचाध्ययनंनदीसीम्मोचलंघनं॥ उपवासबतचैवश्रादभोज भास्कर // 260|| |नमेवच॥अपसव्यंस्वधाकारंनित्य श्राईनथैवच॥नैवकुर्यु:सपिंडानमंडपोडासनावधीति॥वि वाहबतचूडासुवर्षमईनदर्धकं॥पिंडान्सपिंडानोदयुःप्रेतपिडंपिनानरेतिस्मृत्यंतरे॥पुत्रो बाहान्नैवपुत्रीविवाहोपिऋतुपये॥अब्दांतरान्मुंडनंचनेकदामुंडन द्वयं॥पूर्वाईस्पष्टं। विवाहानंतरंभब्दांतरादब्दमध्येमुंडनंचनकार्यं ॥तथा॥ एकदाएकस्मिन्नेवकाले मुंडन यंनकायीं। एतदपिसापिंड्येद्रष्टव्याभिन्नवर्षादिषुतुनदोषइतिप्रायुक्तमेव। तथाचज्योतिःसागरे। | // 260|| |संवत्सरेविदेशेतुमंडनादपिमुंडनं॥ नरोद्वाहास्त्रीविवाहप्राहुर्गर्गमुरखाअपि॥तथाच॥ // For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संवत्सरेकियन्यूनेनरोडाहे कृतेसति॥राजांतरंयदिभवेच्छस्तःपाणिग्रहःस्त्रियइति राजांतरंवत्सरांतरं॥ज्योतिःशास्त्रेपि॥षण्मासमध्येयदिदंतरंपवेद्विवाहः पुरुषेविया | |हिते॥स्त्रीणामपीच्छंतिपराशराद्याः कुले विवाहव्रतपूर्वकंचेति॥ भूतरंराजांतरं॥ तच्चोत्तरवर्षे एवभवति॥ अतोधूपदंतरंवर्षांतरमित्यर्थः॥तथा चोक्तं॥ यश्चैवश इपनिपया दैकोवारःसराजामुनिभिःप्रतिष्ठितइति ॥वर्षतुमानुषमानेनेतिप्रायतं ॥कुलेसापिंडयेशे घस्पष्टं॥यत्तुमेधातिथिवचनं ॥पुरुषत्रयपर्यंत प्रतिकूलंचगोत्रिणां॥प्रवेशनिर्गमीतह तथामंडनमुंडनमिति॥एतद्भिन्नजातीयेषुसापिंड्येवेदितव्यं ॥यतस्तेषांसापिंड्यंत्रि For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 26 // पुरुषमेव॥तथाहशेरवः॥ययकजाताबहवः पृथक क्षेत्राः पृथक्जनाः॥एकपिंडाए | भास्कर थक्शौचाः पिंडेघावर्ततेविप्पिति॥ ॥अथशोभनसन्निपातनिर्णयः॥तवसायणीये। |एकस्मिन्छोभनेवृत्तेदिशमनवकारयेत्॥यदिकुर्यास्त्रमादेनतबनस्याच्छुकंध्रुवमिति। वृत्तेप्रवृत्तेसमाप्तइतियावत्॥ततःसंवत्सरेवृत्तेचूडाकर्मविधीयते॥द्वितीयेयावतीयेपिक तव्यं श्रुतिचोदनादित्यादिप्रयोगदर्शनात्॥ इदमेकमंडपविषये। एकमंडपेशोभनदयस्य प्राङ्गिषिद्धतात्॥ एकगृहेपिसहशोधनस्यनिषेधः॥मंदिरवामशागेवेदीविधानाद्देद्या- // 26 // स्तमंडपमध्येविधानाच्च एकगृहेएकमंडपः स्यादितिअतएवस्पष्टमुक्तंप्रयोगसारे॥एक For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लमेडिलमेवाइरहेयस्यशोधना। तयोरेकंप्रनष्टंस्थाढईतेन्यदितिश्रुतिरिति॥यस्यगृहेएका लग्नेहयोर्लगयोवदिशोप्सनेमवतइत्यन्वयः॥शोभनंबियाहोपनयनादि॥ एवमेकमंडपए कगृहेवाएककर्तरिवाशोभनदयस्यनिषेधइति॥यत्वाचार्यवचनं॥एकमावप्रसूतेदेकन्येवापु बकौतयोः॥सहोद्वाहनकुर्वीत तथैवव्रतबंधनमिति॥ अत्र सोदर्ययोरेककाल उहाहादिनि धाभिन्नमातृकयोः सहोद्दाहादिकरणमागतंतद्भिन्नकर्तृवेनमिन्नगृहेसतियेदितव्य। अन्यथापूर्ववचनविरोधः॥ एवंद्वयोनिषेधेआदिनिषेधःसिद्ध एय॥कर्तृत्वमेवात्रविवक्षिता // वृद्धिश्राद्धाधिकारिपित्रादेरेयनतुविवाहहोमकर्तुरस्य॥उद्वाह्यपुत्रींनपिताविदध्या For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पुत्र्यंतरस्योहहननजानु॥ इत्यादियचनलिंगदर्शनान्॥ अन्ययाकन्याविवाहेकर्तृलासंभवा मास्कर // 262 // // अयमंडनमुंडनविचारः॥संहितासारावल्यां॥नमंडनान्मुंडनमू_मिष्टंनपुत्रयोर्मुडनमे कपः॥ नवियाहोर्धमृतुत्रयेपिचियाहकार्यदुहितुश्चकुर्यादिनि॥एनत्सपिंडतायाज्ञानव्ये।कु लेकत्रियादाक्नकुर्यान्मुंडनवयं॥प्रवेशान्निर्गसंपश्चान्मंडनान्नतुसुंडनमितिगदितखात्।। मंडनविवाहः॥मुंडनचौलोपनयनादि। तथाचसारसमुच्चये॥पाणिपीडनविधेरनंतरंचौलको पिनयनेविवर्जयेदिति॥चौलोपनयनाभ्यांगोदानसमावर्तनयोरपिग्रहणमतिदेशवात्॥त // 262|| याचश्रीपतिः॥ ब्रतबंधवदिधेयंनियतव्रतविसर्गश्च॥केशांतकर्मविहितंचौलसमंषोडशेवर्षइति For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir एतदेवस्पष्टीकृतं॥ ज्योतिर्निबंधे। वर्गसमावर्तनकंसचौलंकेशांतमेनानिवदंतितज्ज्ञाः॥ो, रंपुरस्कृत्यमवंतियस्माच्चत्वारितस्मादिहमुंडनानीति // केचिञ्चौलकर्मेवमुंडनमितिवदंति नहुवाक्यविरोधादनादरणीयंशिष्टसमाचाराचभिन्नवर्षादिषुनदोषइतिप्रागुक्तमेवातदे। वोदाहतसंहितासारावल्यां॥फाल्गुनेचैत्रमासेतुपुत्रोदाहोपनायने॥ दादब्दस्यकु/नना त्रयउलंघनमिति॥ एतद्बहुवाक्यतायांनसंशयनिवृत्तिः॥किंतुषोडशवर्षेकेशांतोडादशवाद) शवर्षाण्येकैकस्यवेदस्यब्रह्मचर्यमितिवेदप्रामाण्येनकुलेविपुरुषसापिंड्येविवाह किनभवतिहा त्यादिशंकयामुंडनशब्दार्थनिश्चयेकात्यायनः॥मुंडनंचौलमित्युक्तं व्रतोदाहीतुमंडन।चौ For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ससा न मुंडनमित्युक्तंवर्जयेद्वरणासरम् // मौंजीचोभयतः कार्यायतोमौंजीनमुंडनमः भास्कर // 263 // मांजीपाधान्यमित्युक्तंभोंज्यंगसुंडनंस्मृतम् // मौंज्यामुंडनं अंगनप्रधानं इति॥वर णासरंकन्यावरणोत्तरमितिसंस्कार रत्नमालायां॥ मंडनेरुतेपुनरुपनयनादेश नायंनिषेधः // तबकेशसंडनस्यकृतारुतखात्सुनरुपनयनादेः प्रायश्रित्तात्मकत्येनविहितस्यकालातिकमेप्रायश्चित्तावृत्तिभयादनुक्तकाल त्याच्च // इतिमंडन मुंडननिर्णयः॥ ॥अथगुरुलघुमंगलनिर्णयः॥सारसमुच्चये।चूडाकेशांतसीमंतपिपाहो // 263 // पनयंबुधाः॥ गुरुमंगलमित्याहुस्तद्वयंलघुमंगलं॥ तच्च गुरुमंगलाल्लघुमंगलंनिषिध्या // For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ते॥ ज्योतिः शास्त्रे॥ज्येष्ठंरुलाठुषण्मासंनकुर्यालघुमंगलं॥ कुर्वनिमुनयः केचिदन्यस्मिन्नपिवत्सरइति॥ तथाच॥ मातृयज्ञक्रियापूर्वज्येष्ठंरुलातुमंगलं॥कतुत्रयंपुनर्यावन्नकुर्या लघुमंगलं ॥मातृयज्ञोमातृपूजातस्याःक्रियावृद्धिश्राद्धादिः॥तथाचचतुर्विंशतिमते॥तिवः पूज्या:पितुःपक्षेतिस्रोमातामहेतथा॥इत्येतामातरःप्रोक्ताःपितुर्मातुःस्वसाष्टमी। ब्राह्मा यास्तुततः सप्तदुर्गाक्षेत्रगणाधिपान्॥ वृध्यादोपूजयित्वातुपश्चान्नांदीमुखान्पित्तृत्।। मातृपूर्वान्पितॄन्यूज्यततोमातामहानपि॥मातामहीनतःपूज्यायुग्माभोज्यादिजातयः। / एतद्विधिपूर्वकंगुरुमंगलंकवाषपमासाध्यंतरेलघुमंगलंनकार्यमित्युक्तंभवति॥मान For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार जादीनांचूडाकर्मादिषुप्राधान्येनविहितत्वाच्चूडाकर्मादिकंगुरुमंगलमिन्युच्यते॥ तथाचगृह्या कारियां॥ पुंसवनेचसीमंतचौलोपनयनेष्पिह॥विवाहेचानलाध्येयप्रतिश्रोतकर्मसु।इदं श्राईप्रकुतिबीजवृद्धिनिमित्तकं ॥अन्येषोडशसंस्कारेश्रावण्यादिष्यपीष्यत इति।। अत्रपुंसवनग्रहणात्सीमंतसाहचर्याचपुंसवनमपिगुरुमंगलंभवति // चौलातिदेशाके शांतमपि॥अयंगुरुमंगलानंतरंलघुमंगलस्यनिषेधः कालातिपन्नस्यैव॥नयथाकाल प्राप्तस्य॥सिंहस्थरांरीगुरु का कारताधिमासादिपुचास्यविधानात् जातकर्मादेराशौचांतर // 26 // प्राप्तावपिविधानाच्च॥ तथाचज्योतिशास्त्रेउक्तं ॥सीमंतजातकादीनिषाशनांतानिचक्रमा For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त॥ कर्तव्यानिनदोषोस्तिपंचाननगतेगुरौ॥ वृद्धमनुः॥अन्याधेयंप्रतिष्ठांचयज्ञदानव्रतानि च॥ वेदव्रतवृषोत्सर्गचूडाकरणमेरवलाः॥मोगल्यमभिषेकंचमलमासेविवर्जयेत्॥बालेवायदिया वृद्धे शुक्रेचास्तमुपागने॥मलमासइवैतानिवर्जयेद्देवदर्शनमिति // अत्रचूडाकरणादीनांच र्जनाच्छेषाणांनदोषइतिज्ञापितं॥तथाचबृहस्पतिः॥यस्याःकियायाः संप्रोक्तः कालो मासैदिनैरपि॥ननबमोट्यदोषोसिअस्तो वागुरुशकयोरिति॥आवश्यकत्वमाहाश्वलायनः॥तातेमृतेवापनिनेसंन्यस्तेवाविदेशगातगोत्र जेन श्रेष्ठेनकार्याः पुंसवनादयइति॥ अतः काल प्राप्तस्यजातकर्मादेरावश्यककर्तव्यखादयं दोषोन। अयंचनिषेधःप्रायएक कर्तृ For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | कस्यतिगम्यते॥गुरुलघुमंगलयोन्निकर्तृकत्वेतुनदोषः॥ वाक्यद्वयेपिज्येष्ठंकलेतिउत्का भास्कर // 25 // पाप्त्यपदर्शनादेककर्तुः प्रतीयमानवाहिशेषादर्शनाचाभिन्नवर्षादिष्वपिनदोषइतिप्रायुक्तमे |व समावर्तनसंज्ञकमिति एतद्दिगवलंबेनान्यदपिकधीतिनिर्णेतव्यं // इतिगुरुलघुमंगलनि र्णयः॥ ॥अथपरिवेत्रादिनिर्णयः॥ तल्लक्षणमाहमनुः॥ दारामिहोत्रसंयोगंकुरुतेयोय जेस्थिते॥ परिवेत्तासविज्ञेयःपरिवित्तिरूपूर्वजइति॥स्मृसनरे॥ज्येष्ठायांयद्यनूठायांकन्यानोहायतेनुजा॥स्यादयेदिधिपुर्जयापूर्वान्यादिधिषुःस्मृता॥परिवेत्रादिस्वरूपकथनपू| विकंतत्प्रायश्चित्तमाहहारितः॥ज्येष्ठेऽनिविष्ठे कनीयान्निविशमानःपरिवेत्ताभवतिपूर्वःप For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रिवित्तिःपरिवेदिनीकन्यापरिदायीदातापरियष्टायाजक तेसर्वपतिताः संवत्सरंप्राजापत्येनरुशेणपावयेयुरिति।एतकामतःपित्राद्यनुज्ञातोडाहविषयं ॥अकामतः पित्रादिदत्तोबाहे तुमानयतंत्रेमासिकं // अज्ञानतःपिवाद्यदत्तोडाहे याज्ञवल्कीयंवतचतुष्टयं॥उपपातक दिः स्यादेवंचांद्रायणेनवा॥पयसावापिमासेनपराकेणाथवापुनरिति॥ एवमितिगोवधप्रायश्चित्तातिदेशः॥अज्ञानतः पित्रादिदत्तोबाहेतुयमः॥ कृदयपरिवेत्ताकन्यायाःरु च्छ्रएयतु॥ अतिकछंचरेद्दातायष्टाचांद्रायणंचरेत् इति॥ प्रायश्चित्तांतेविशेषमाह वसिष्ठः। परिवेदनः रुशानिरुच्छौचरित्वातस्मेदत्यापुनर्निविशेत्तांचैवोपयच्छेदिति॥प For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 26 // संस्कार ||रिवेदनइनिपरिवेत्तुरेयसंज्ञा॥ तस्मेज्येष्ठायब्रह्मचर्येतीक्ष्यमिवनिवेद्यपुनरुदहे कामित्यु | भास्कर |क्ति तामेवेतिच्याचष्टेविज्ञानेश्वरः। तथाप्रदिधिषुपत्यादेरपिविशेषवसिष्टः॥अदिधिषुपतिः कच्छातिकछोडादशरावंचरित्वानिविशेततांचैवोपयच्छेतेति॥दिधिषुपतिः कलानिक | छौचरित्वातस्मैपुनर्निविशेदितिचरिवाज्येष्ठायामन्येनोटायांपश्चात्तामेवोदहेत् // तस्मै कनीयस्याः पूर्वव ज्येष्ठांदखाअन्यासदहेतेति व्याख्यातंपारिजातादोएवं निर्णयति॥परिये। दनदोषस्यापवादमाहयमः॥पितृव्यपुत्रान्सापत्नान्परपुत्रांस्तथेवच॥दारामिहोत्रधर्म // 26 // पुनदोषःपरिवेदनइनि॥ परपुत्रादत्तकादयइतिपारिजातः॥ सोदर्यविषयेपित्साहकात्यायनः For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir देशांतरस्थान्क्लीवाश्चतथाकुटवृणानपि॥वेश्यातिसक्तपतितशूद्रतुल्यांविरोगिणः।। जडमूकांधवधिरकुजवामनखेलकान्॥ अतिवृद्धानमाश्विकृषिसक्तान्नृपस्यचाधनगृहिम सक्तांश्चकामतःकारिणस्तथा॥ कुहकोन्मत्तचोरांश्चपरिवेत्तानदूषति॥खेलको समपादइयः॥ अनार्यानैष्ठिकब्रह्मचारिणः॥कामतःकारिणोविवाहादीच्छायानिवृत्ताइतिच्याव्यातंपारिजाते। देशांतरगतज्येष्ठस्यप्रतीक्षावधिमाहवसिष्ठः॥अष्टोद्वादशवर्षाणिज्येष्ठधातरमनिविष्ट मप्रतीक्षमाणः प्रायश्चित्तीभवतीनि॥ द्वादशेतुमुख्यपक्षः॥ द्वादशैवतुवर्षाणिश्रेयान्ध मार्थयोगतः॥न्याय्यः प्रतीक्ष्यतं वाताधूयमाणःपुनःपुनरिति॥ अत्राप्यपधादेकार्णाजि For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार निः॥ उन्मत्तःकिल्विषीकुष्ठीपतिनःक्लीबएववा॥राजयक्ष्मामयावीचनन्याय्यस्यात्प्रतीक्षित भास्कर // 267|| मिति॥ कन्याविषयेप्युक्तदोषापवादंगर्गः // एकमातृप्रसूतानांकन्यानांपरिवेदने॥दोषःस्या सर्ववर्णेषुनदोषोभिन्नमातृष्षिति // वृद्धमनुः // विवाहेनाधिकारेणज्येष्ठकन्यास्थितायदि॥तदानुज्ञांविनाचापिकनिष्ठामुद्हेत्तदेति॥ अन्यत्सर्वपरिवेदनोक्तमनुसंध्येयमिति पारिजातः॥इतिपरिचेबादिनिर्णयः॥ // अथविवाहे अशौचप्राप्तोतदपोह्यसयःशौ चंचंद्रिकाकारमाह॥ तत्रयाज्ञवल्क्यः ॥दानेविवाहेयजेचसंग्रामेदेशविप्लवे॥आपद्य- // 267 // पिचकष्टायांसद्यःशौचंविधीयते॥दातुर्वरस्यकन्यायालयः शौचविधीयते इतिषत्रिंशन्म For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie ते॥विवाहोत्सवयज्ञेषुत्वंतरामृतसून के // परैरन्नंप्रदातव्यं मोक्तव्यंचदिजानमः। तयज्ञविवाहेषुश्रा होमार्चनेजपे॥प्रारंसेसूतकंनस्यादनारंसेतुसूतकं ॥प्रारंभश्चंतनै वोक्तः॥पारंमोवरणयज्ञेसंकल्पोव्रतसत्रयोः॥नांदीमुखंविवाहादोश्राद्धेपाकपरिकि येति ॥वरणंतुमधुपर्कातेज्ञेयं। तथाचबाये॥ गृहीतमधुपर्क स्ययजमानाच्चऋषि जइत्युक्तेः॥ एतच्चवरणमस्वेव // अवरणवत्स्वाधानेष्टिपशुबंधादिषुतुस्वीयाद्यपदार्थ प्रवर्तनमेवारंपः॥ तथाचदर्शपूर्णमासयोरवृतस्यहोतुःसामिधेनीषुप्रवृत्तस्याशौचामायः॥ कन्यायाः वरपितरंपतिदानमेव विवाहः॥ वरंपतितुहोमपाणिग्रहणादि ॥प्रारब्ध For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पाकेश्राद्धकर्तुः ॥रुतनिमंत्रणेबाहेतुग्राइप्सोक्तुरितिव्ययस्थेनिकालविवेचनकारादयः॥ भास्कर // 26 // शंकरभट्टकृतधर्मप्रकाशेतुतत्तस्मृतिषुपाकनिष्पत्तिकृतसंकसितनिमंत्राणांत्रयणामपि अशौचाभावनिमित्तयोक्तेनिमित्तत्रयसमुच्चयएयश्राद्धेनाशीचंतथैवशिष्टसमाचारादि युक्तं // मुहूर्तातरालालेसामय्यांकृतायांसूनकिनोप्यधिकारीपायमाह पारिजातेविष्णु ॥अनारब्यविशुध्यर्थंकूष्मांडैर्जुहुयाहृतं॥ गांदयासंचगव्याशीततः शुद्ध्यतिसूतकीति। ततःशुध्यतीतिपुनरुक्तिर्विवाहायुपयोगिपाकपरिवेषणादावपिशद्विज्ञापनार्था॥गांप|| | // 26 // यखिनींदद्यात्॥संकटेसमनुप्राप्ते सूतके समुपस्थिते॥कूष्मांडीभिघृतंहुलागांचदयात्पय / / For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्विनीं। चूडोपनयनोद्वाहप्रतिष्ठादिकमाचरेत् // यदैवसूतकप्राप्तिस्तदेवाप्युदयकिये | निसंग्रहोक्तेः॥स्मृतिकोस्तुभेचौलप्रसंगेतुआरंभोत्तरंसूतकेमाप्तेविशेषः॥ संग्रहेइत्युत्काकू भांडीभिघृतंहुवेतिसंग्रहवाक्यमुपन्यस्तं॥ एवंशतिपूर्वकंविवाहायनुष्ठानेतदंगत्वेनसंक मितान्न भोजनेनदोषइतिबृहस्पतिनोक्तं॥विवाहोत्सवयज्ञेषुत्वंतरामृतसूतके॥पूर्वसंकपितान्नेननदोषःपरिकीर्तितइति।मृतसूतकमध्येविवाहायनुष्ठानेउक्तशतिपूर्वकमार ब्धेइत्यर्थः॥नांदीश्रादोत्तरंसूतकादीविवाहारंभोत्तरमपिसंकल्पितान्नेनैवविशेषइति | पत्रिंशन्मते। पूर्वार्धेतुपूर्वयत्॥परैरन्प्रदातव्यंमोक्तव्यंचद्विजोत्तमेरिति॥विवाहादि / For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 269 // मध्येसूतकादिप्राप्तावित्यर्थः॥ पूर्वसंकल्पितान्न भोजनसमयेसूतकादौतुविशेषस्तवैय॥ मास्कर जानेषुतुविप्रेषुत्वंतरामृतसूतके॥अन्यगेहोदकाचांताःसर्वेतेशुचयःस्मृताइति॥ भोक्तभिर्युक्त शेषस्याज्यः॥ पकशेषः सूतकिभिनिव्यइत्याशयः॥ // अथविवाहेच धूवरजननीरजोदोषेनिर्णयः॥ वधूवरान्यतरयोजननीचेद्रजश्वला॥तस्याःशद्धेःप रिंकार्यमांगल्यंमनुरबीत्॥१॥माधवीये॥ प्रारंभाप्राविवाहस्थमातायदिरजस्वला। निवृत्तिस्तस्यकर्तव्यासहत्वश्रुतिचोदनात्॥१॥प्रारंभालागितिनांदीश्रादासागिति // 269 / / ज्ञेयं॥नांदीमुरबंधिवाहादावित्यादिनातस्यैव प्रारंभः॥ वृद्धमनुः॥ विवाहबतचूडास माता // For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यदिरजस्वला॥ तदानमंगलंकार्यकडोकार्यक्रोप्सप्तिः॥मेधातिथिः॥चौले चव्रतबं| धेचविवाहेयज्ञकर्मणि॥भार्यारजस्वलायस्यप्रायस्तस्यनशोभनं। गर्गः॥ यस्योद्दाहा दिमांगल्येमातायदिरजस्वला ॥तदाननत्यकर्तव्यमायुःक्षयकरंयनः॥ बृहस्पतिः॥वैधव्यं चविवाहेस्याज्जडवंबनबंधने॥ चूडायांचशिशोर्मृत्युविनोयात्राप्रवेशयोः॥रजोदर्शनस्य नांदीश्राद्धोत्तरमुसत्तोततः पूर्वमुसत्तावपि मूहूर्तांतरालाभेश्रीपूजनादिकांशांतिक त्यातदैवचौलादिकार्य।यथाकारिकानिबंधे॥ सूतकोदक्ययो: शुध्येगांदद्याडोमपूर्वकं॥षा कर्मणिशहास्यादितरस्मिन्नध्यति // अलाभेसमुहूर्तस्यरजोदोपेयुपस्थिते॥धि For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार |यसंपूज्यतस्कुर्यादृयहत्याप्तयंकरी॥ हैमीमाषमितांपयांग्रीसूक्तविधिनाचरेत॥प्रत्यूचं मास्कर // 270 // पायसंहुत्वाऽभिषिंच्यामाचरेत्॥ श्लोकभेदेनप्राप्तापदोक्तारंपास्यमुहूर्ती तरालाम स्यश्रयणान्नपरस्परसापेक्षत्वं // रजोदर्शनादिसंभावनायांनांदीश्रावस्यापकष्यानुष्ठाने प्यवधिरुक्तःप्रयोगरत्ने॥एकविंशत्यहर्यज्ञेविवाहेदशवासराः॥विषट्-चौलोपनयने नांदीश्राद्धविधीयते॥ // अथकन्यारजोदर्शनेनिर्णयः॥ विवाहात्सूर्यकन्यारजोदर्श, नेजातेविवाहयोग्यतासिध्यर्थउपायमा हाश्वलायनः॥पिताऋतून्स्यपुत्र्यास्त गणयेदा ||270 // ||दितःसधीः॥दानावधिगृहेयत्नासालयेच्चरजोवतीं। दद्यात्त तुसंध्यागाःशक्तःकन्या For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie |पितायदि॥दातव्येकापियलेनदानेतस्ययथाविधि॥दयाहाब्राह्मणेष्यन्नमतिनिःख सदक्षिणा तदतीतर्तुसंरव्येषुवरायप्रतिपादयेत्॥उपोष्यविदिनकन्यारावीपीलागवांपयः॥अदृष्टरजसेदद्यात्क|| ल्यायैरलाभूषणं॥नामुदहन्वरश्चापिकूष्मांडैर्जुहुयाहृतमिति॥विष्णुः॥यद्देवेतिकरसूक्तंकूग्मांड परिकीर्तिनं॥नवावृत्याहुनेदाज्यहोमकूष्मांडिकीर्तितः॥ तस्याःकन्यायादानेकर्तव्येयथाविधिस वर्णशृंगादिगोदानविधिनेत्यर्थः॥वरायेतिउक्तप्रकाराणामन्यतमेनदातुःकन्यादानेयोग्यताप्लव तीत्यर्थः।उपोष्येति-लोकेनदृष्टरजस्ककन्यायाउपवासत्रयांतेगव्यपयःपानपूर्वकंअदृष्टस्जसेकुार्य रमभूषणदानेनविवाहयोग्यताउच्यते॥तामुइहभितिवरस्यकूष्मांडहोमेनतदुद्दाहयोग्यने / For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मस्कार तिबोधव्यं॥अथक्यिाहहोमकाले कन्याकनुमतीचेत्तत्रयज्ञपा। विवाहविहितेतंत्रे होमका भाकर // 21 // लउपस्थिते॥कन्यामृतुमतीदृष्ट्याकथंकुतियाज्ञिकाः॥स्मापयित्वातुनीकन्यामर्चयित्वायथापि धि॥ युजानामाहुतिहुलाततः कर्मणियोजयेत्॥अन्यच्च॥ मुंजानःप्रथममंत्रैरष्टाविंशतिस ख्यया॥आज्याहुनिचजुहुयाद्गाचदद्यात्पयस्विनीं।यहा॥स्मृत्यर्थसारे॥वियाहहोमेपकातेयदिकन्यारजस्चला॥ त्रिरात्रंदंपतीस्थातांपृथक्शय्यासनाशिनी॥ चतुर्थेहनिसंस्नानौना स्मिन्नमौयथाविधि॥ विवाहहोमकुर्वीतमित्यादिस्मृतिसंग्रहइति॥ ॥अयपनि // 371 / / कूलनिर्णयः॥ कृष्णामट्टीये॥वधूवरार्थेघटितेसनिश्चिनेवरस्यगेहेप्यथकन्यकायाः॥प्रिये For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नाचिन्मनुजोथनारीतदानकुर्युः खलुमंडनंते॥मनुः॥ वाग्दानानंतरंथऋउपयस्यकुलेषुच // व्यब्दोनबालमरणेप्रतिकूलंनविद्यते॥स्मृतिरत्नावल्यां॥ऊनद्विवार्षिकेमेतेननस्थपनिकूला ता॥ शांतिःस्याच्छुभदानृणांकूष्मांडगणहोमतः॥ वाङनिश्चयेरुतेपश्चापितरौनिधनंगतौ॥तयोस्तपतिकूलंस्यान्नान्येषांतुकदाचनेनिवृद्धवसिष्ठः॥ वर वध्योःपितामानापिन व्यश्वसहोदरः॥ एतेषांप्रतिकूलस्यान्महाविघ्नप्रदंभवेत्॥पितापितामहश्चैवमानाचैवपिना मही॥पितृव्यस्त्रीसतोघाताप्लगिनीवाविवाहिता॥एभिरेवविपन्नैश्चप्रतिकूलंबुधैःस्म त। अन्यैरपिविपन्नस्तकेचिदूचननद्भवेदिति // मोडव्यः।। वाग्दानानंतरंमातापिताना / For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भास्कर संस्कार तापिपद्यते॥विवाहोनैवकर्तव्यः स्ववंशहितमिछनेति॥ ॥अथसंकटेप्रवृत्तिप्रकारमाह // 22 // मेधातिथिः॥वाग्दानानंतरंयत्रकुलयोः कस्यचिन्मृतिः॥ततःसंवत्सरादूर्धविवाहः शादो भवेत्॥पुरुषवयपर्यंतप्रतिकूलंस्वगोविणां ॥प्रवेशान्निर्गमस्तदृत्नथामंडनमुंडने॥प्रेतक ाण्यनिर्त्यचरेन्नाभ्युदयकियां॥ आचतुर्थततः पुंमिपंचमेशप्पदंभवेदिति॥स्मृतिरत्नाव ल्यां॥पितुरदमिहाशौचंतदर्धमातुरे यच॥मासत्रयंतुमार्यायास्तदर्धनानृपुत्रयोः॥अन्येषांतु |सपिंडानामाशीचमाससंमितं॥ तदंतेशांतिकंकृत्वाततोलगंविधीयतइति॥ज्योतिःप्रका शे॥प्रतिकूलेपिकर्तव्योविवाहोमासमंतरा। शांतिविधायगादत्सावाग्दानादिचरेत्पुनरि For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ति॥स्मृत्यंतरे॥पतिकूलेपिकर्तव्यकेप्याहुवहुसंप्लवे ॥प्रतिकूलेसपिंडस्यमासमेकंविध र्जयेत्॥विवाहस्तततःपश्चात्तयोरेवविधीयतइति॥ज्योतिःसागरे॥दुर्मिक्षेराष्ट्रमंगे। चपित्रोर्वाषाणसंशय॥पोटायामपिकन्यायांनानुकूलंप्रतीक्षतइनि॥अन्यत्रापि॥दीर्घरो गाभिभूतस्यदूरदेशस्थितस्य च // उदासीनस्थितस्यापिप्रतिकूलंनवियते॥संकटेसमन। प्राप्तेयाज्ञवल्क्येनयोगिना॥ शांतिरुक्तागणेशस्यकलातांशसमाचरेत्॥अरुखाशांतिकंय स्तनिषिद्धेसतिदारुणे॥प्रकरोतिककर्मविघ्नस्तस्यपदेपदे॥ वृद्धवसिष्ठः॥प्रतिकूले || / तुसंप्राप्तेविवाहंनैवकारयेत्॥अंतेदोषविनाशायकुर्याच्छांनिमिमांशमा॥श्रियैजानइ For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार निश्रियं॥ इदंविष्णुरितिविष्णुं॥गोरिर्मिमायेतिगौरी॥त्र्यंबकमितित्र्यंबकं ॥परंमृत्यो भास्कर // 273 // | रितियमं॥पूजयित्वातिलाज्यंचहुनेदष्टोत्तरशतं // ॐ भूः स्वाहामृत्युनश्यतांस्नुषाये सरसंवर्धनास्वाहा॥ ततोहोमंसमाप्य गोदक्षिणामवेदिति॥स्मृतिचंद्रिकायां॥रुतेवानिश्चयेपश्चान्मृत्युभवतिगोत्रिणः॥तदानमंगलंकार्यनाशवैधव्यदंध्रुवं॥ वाग्दानानंत रंयंत्रकुलयोः कस्यचिन्मृतिः॥वनोदाहोनैवकार्यःस्ववंशक्षयदोषरुतइति॥अत्रयद्यपि स्त्रियेनकस्यचिदितिमृत्युभवतिकस्यचिदितिचाविशेषेणोक्तं तथापिपितामहादीनामपि | // 273 // |मरणस्यप्रतिकूलदोषनिमित्तत्वेनकचिदकीर्तनादविवाहितायाभगिन्याइतिविवाहिताया For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | मरणस्यतथालानुक्तेर्मेधातिथिवास्येस्खगोत्रिणामितिचंद्रिकावाक्यमर्त्यस्यगोत्रिणइतिच कीर्तनादध्यावरस्यवासगोत्रसपिंडेषुत्रिपुरुषांतर्गतमय॒मृतेप्रतिकूलदोषइतिमंनव्यं॥स्त्री चचरस्यहितीयादिविवाहसमयेपूर्वोदासतस्तस्यांपूर्वोसन्नः एनपोत्रोपलक्षणं॥ एवं पितृव्ययह णंतत्पुत्रस्यएवं वरमारभ्यजनकत्रिपुरुषीकूटस्थमारण्यसंतानोदेचत्रिपुरुषीअत्रयोदव्या॥ धूवरयोः समानगृहेतन्मरणेकंचित्कालंप्रतीक्ष्येव विवाहइति तदाकुर्युरित्यादिशब्दैोध्यते॥त। योस्तयनिकूलंस्यादितिकालप्रतीक्षाशांतिभ्यामसमाधेर्योदोषोहयोर्युगपन्मरणजइत्यर्थः॥ नएयोक्तंनान्येषांतुकदाचनेति अन्येषांसपिंडानानयोरप्येके कमरणजस्तसमाधेयइनिआश For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार / यः॥वृदयसिष्ठचाक्येचतुर्णामरणस्यमहाविघ्नकरत्वकथनेतवप्रतीक्षासहिनाकेवलंबाविनाय भास्कर // 274 // कशानिरितिकथनार्थं। अतएयतविधिवास्यशेषेणशोत्यकरणेपदेपदइतिविघ्नस्यमहलंपद शिनं॥एमिरेवविपन्नैरितिकालप्रतीक्षासहितायाः श्रीपूजनादिशांतेर्निमिनमेतन्मरणमवेत्या शयः॥ अतएव मांडव्ययाक्येनैवकर्तव्योनिमित्नानिमित्तानंतरमितिव्याख्येयं / / इतिप्रतिकू लनिर्णयः॥ // अथचूडोपनयनोहाहानांपारंपोत्तरंमुहूतीतरालाभेजननाशोचपातेसंक टयशासाप्तकर्मकरणेतछुध्यर्थंप्रायश्चित्तीभूतमार्तंडानुसारीकूष्मांडीहोमप्रयोगः॥सतस्ना // 27 // नादिर्यजमानःपल्यासंस्कार्पणचसहपीठादायुपविश्याचम्यमस्यामुकसंस्कार्यस्यजननाशो For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चमध्येसंकटवशेनअमुकसंस्कारकर्तुंकूष्मांडमंत्रैराज्यहोमपयस्विनीगोदानंतनिफ्यवापं चगव्यप्राशनंचकरिष्येइति॥तत्रादौनिर्विघ्नार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिवाचनमपिकुर्वति॥कू मांडहोमक अस्मिन्स्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकविटनामानममिप्रतिष्ठाप्यसंपूज्यातच देवनाभिध्यान।। तत्रप्रजापतिइंद्र अमिंसोमं॥प्रधानंअग्गिंवायुंसूर्यकूष्मांडमंत्रैः॥अभिवायं सूर्यं अमीवरुणौअमीवरुणोअमिंवरणसवितारंविष्णुविश्वान्देवान्मरुतः स्वन्विरुणंआदि त्यंअदिति प्रजापति अमिसिष्टकृतंएता अंगप्रधानार्थादेवताः आज्येनास्मिन्कर्मण्यहंयक्ष्य तनोदक्षिणतोब्रह्मासनादि आज्यप्मागांतंकवा॥ नावचरुः॥कूष्मांडहोममंत्राः ॥ॐ यद्द। For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार , वादेवृहे उंन्देवासश्चमाघ्यम्॥अमिमा॑तस्मदे सोधियान्मुञ्चत्वहस स्वाहा॥१॥ इद भास्कर // 275 // ममयेनमम॥ॐ यदिदिवायदिनक्तमेनार सिचक्रमाव्यम्॥ घायुतिस्मादेनसोचिश्चान्म नवट हसल स्वाहा॥२॥ इदंवाय. * यदिजायद्यदिखम एनाद सिचामाच्यम्॥ सू मातस्मादेनसोचिश्चान्मुच्चत्तर हैस स्वाहा॥२॥ इदंसूर्यायनमम॥ ततोभूराद्याः स्विष्टक |दनादशाहुतयः॥ततःसंस्त्रयप्राशनादिप्रणीताविमोकांतहोमशेषंसमाप्याततःपयस्विनीगो दानं ॥पतिगृहीत ब्राह्मणपूजनं॥गांवस्त्रालंकारादिभिः संपूज्य॥दानमंत्रः॥गयामंगेषुति // 275|| टेलिति॥इमांगांपयस्विनीयथाशक्त्यलंरुतांजननाशोचदोषनिरसनार्थकूष्मांडीप्रायश्चित्त / / For Private and Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir होमसांगतासिध्यर्थप्राप्तकर्मकरणेअधिकारार्थचअ शर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहसंप्रददे // दानसांग इमोदक्षिणां० अथवाइदंगोनिष्क्रयीभूतंनिफनिष्का५पादंवासुवर्णमूल्यरजनद्रव्यंसदक्षिणाकंतुझ्यमहं ततोविधिवसंचगव्यंरुत्सा॥ यत्त्वगस्थिगतंपापंदेहेतिष्ठतिमामके // प्राशनापंचगव्यस्यदहत्यनिरिवेंधनंइतिपठितमंत्रपूर्वकं ॐ इत्यनेनप्राशयेत्॥य थाशक्तिब्राह्मणपोजनसंकल्पः॥ब्राह्मणान्संपूज्यतैराशिषोगृहीलाअनिविसृज्य॥ नेनतेनकमर्णाश्रीपरमेश्वरःप्रीयता॥ इतिसंस्कारभास्करे कूष्मांडीहोमप्रयोगः॥ // अथविवाहहोमकालेकन्याऋतुमतीचेत्नवहोमप्रयोगः॥कन्यासस्माताशपासनेउ For Private and Personal Use Only Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पविश्य॥कतुदोषविनाशार्थप्राप्तकर्मणियोग्यतासिध्यर्थमुजानहवनंपयस्विनीगोदानंपयः भास्कर // 276 // प्राशनंचकरिष्यो।निर्विघ्नतासिध्यर्थंगणेशंसंपूज्य ॥यंजानहोमंकर्तुंअस्मिन्स्थंडिलेपंचा भूसंस्कारपूर्वकंविटनामानममिंप्रनिष्ठाप्यसंपूज्य॥दक्षिणतोब्रह्मासनायाज्यभागांतेना, बचरः॥मुजानपथमं॥जतेमन इतिऋगयांचतुर्दशावृत्याष्टाविंशत्याहुनीराज्येनहु खा।ौचमंत्री // ॐ युनश्चयममनस्तुबायसवि॒ताधियः // अमिर्कोतिर्नुिषाध्य थिव्या अध्याऔरत्स्वाहा॥ इदंसवित्रेनमम॥१॥ युजतेमन तथुज्जतेधियोधिपाधिम- // 26 // स्यबहनोयिश्चितः॥विहोादधेवयुायिदेक इन्महीदेवस्यसवितुरे परिषुतिः स्वाही॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इदंसपित्रेनमम॥ तनोमूरायाः विष्टकृदंनादशाहुतयः॥संयप्राशनादिप्रणीताविमोकांनी होमशेषसमाष्य॥ ततःपयस्विनींगांदद्यात् ॥गांवस्त्रालंकारादिभिःसंपूज्या प्रतिगृहितृब्राह्मण णसंपूज्य॥दानमंत्रः॥गवामंगेषुतिष्ठतिसुवनानिचतुर्दश॥यस्मात्तस्माछियेमेस्यादिहलोके परवच॥ इमांगापयस्विनीयथाशक्त्यलंकृतांऋतुदोषनिरासार्थयुञानप्रायश्चिनहोमसिध्या यंप्राप्तकर्मकरणेअधिकारार्थचब्राह्मणायतुत्यमहसंप्रददे // दानसांगतामिध्यर्थडमांदसि णोतुत्यमहसंपददे॥अथवागोनिप्रयीमूनिफनिष्काधुवासवर्णमूल्यरजतद्रव्यंसदक्षिणाकंतु प्यमहसंप्रददे॥ ततःपयःप्राशनं / / कामधनसमुनघृतबीजंशशिप्रभानस्यप्राशनमा|| For Private and Personal Use Only Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वेणरजोदोषोविनश्यतु॥ इदंरजोदोषनिवृत्यं विदिनपयःप्राश्य ॥अभिविसृजेत्॥इ || भास्कर // 277| ||तियुञ्जानहोमविधिः॥ ॥अथवधूयरमाटरजःप्राप्तौनांदीश्रादोत्तरंमुहूर्तीनरालामे || संकटेप्राप्तकर्माधिकारार्थश्रीशांनिकरणेप्रयोगः॥आचम्यदेशकालोसंकीर्त्यअस्यसंस्का र्यस्यविवाहादिमंगलमध्ये अस्मसल्यारजउत्पन्नदोषनिरासार्थसकलारिष्टशांत्यर्थसंस्का यस्यबव्हायुष्यप्राप्त्यर्थश्रीशांतिकरिष्ये॥ तदंगखेनगणेशपूजनंस्वस्तिवाचनरुवाआ |चार्यवास्थंडिलेपंचभूसंस्कारपूर्वकंबरदनामानममिंप्रतिष्ठाप्यसंपूज्य॥ तत्पुरतःभद्र | // 277 // ||पीठेतंदुलाष्टदलंविरच्य तदुपरिकलशंसंस्थाप्योपरिपूर्णपात्रंनिधायवरुपयुग्मेनसंवष्टय / For Private and Personal Use Only Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तदुपरिअभ्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठापूर्वकस्वर्णमयींश्रीमूर्तिप्रतिष्ठाष्य॥ श्रीसूक्तेनषोडशो // पचारैःसंपूज्यप्रार्थयेत्॥ महालक्ष्मिनमस्कायंसहस्रकरमंडिने॥आयुःश्रीमंगलंदेहि रजोदोषनिवारयेति॥दक्षिणतोब्रह्मासनाद्याज्यमागोतंकखापंचदश श्रीसूक्तेनप त्यूचंतिलाज्यपायसहोमरुत्वा॥ भूरादिस्विष्टकृदंतादशाहुती खाज्येन॥ततःसंखयप्रा शनादिप्रणीताविमोकोनं होमशेषंसमाप्य॥गवामंगेषितिगांवातन्निक्रयद्रव्यंद्रत्वा॥ऐंद्र वारुणपायमानीयमंत्रैरंगसूक्तैरभिषेकमंत्रैश्वसंस्कार्येणसहापिषिच्या प्रतिमामाचार्यायदला दक्षिणांदलाविपाशिषोगृहीत्वाब्राह्मणभोजनसंकल्पंकृत्वाप्रतिमामिविसृज्य॥ यस्यस्म For Private and Personal Use Only Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार त्येतिनत्वाकर्मसंपूर्णतांचाचयेदितिसंस्कार भास्करेषीशांतिप्रयोगः॥ ॥अथविना भास्कर // 27 // परिहारायविनायकशांतिरुच्यते॥ तत्रकालः ॥विष्णुधर्मे। हस्तपुष्याश्चयुक्सोम्यवैष्ण वेचोत्नरावये॥नक्षत्रेचमुहूर्तचमैत्रेवाब्रह्मदैवते॥शक्लपक्षेचतुर्थ्यांचवासरेधिषणस्यच॥ | विघ्नस्यपरिहारार्थशांतिकुर्याट्रिनायकीमिनि॥अथविनायकशांतिसंभाराः॥सिद्धार्थाः।गो घृतं॥ सर्वोषध्यः॥प्रियंगुः॥नागकेशरं। चंदनं॥ अगरु॥कर्पूरः॥कस्तूरी॥ सप्तमृदः॥ अश्वस्थानात्॥गजस्थानात्॥बल्मिकात्॥सरिसंगमात्॥ अशोव्यहदात्॥राजारा- // 278|| न्॥गोगोष्ठान्॥७॥ गोरोचनं। चंदनं। कुंकुम।। अगरुपातयोगंधाः॥गुग्गुलः॥अत्रणा For Private and Personal Use Only Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्रत्यार: कुंभाः॥ आनडुहंरोहितचर्म॥ भद्रासनं॥ श्रीपर्णिपीठ // चूतादिपंचपल्लवाः। चननःस्त्रजः॥आहतवस्त्राणि। श्वेतवस्त्र॥सार्षपतैलं। औदुंबरवृक्षोद्भवः सुपः।शूपं॥सकरफलीकृतास्तंडुलाः॥तिलपिष्टं।तिलपिष्टमिश्रितोदनः॥शूद्रवर्णे॥ पक्कापकमास) ॥पक्कापक्काश्चमत्स्याः॥ द्विजवर्णेमाषपिष्टमयंमस्यमांसंच॥ चित्रविचित्राणिपुष्पाणि ॥सुगंधिद्रव्याणिच॥शूद्रवर्ण। विविधासुरा॥गोडी। पेष्टी॥ मायीच॥ द्विजवर्णपियो। गुडलवणमिश्रगोडी॥पयोलवणमाषपिष्टमिप्रपेष्टी॥पयोमधुलवणमिश्रमाध्वी।मूल-! कः॥कंदाकारोभक्ष्यइत्यर्थः॥पूरिकाः॥ अपूपाः // 3 ॥स्नेहपकगोधूमविकारइत्यर्थः।। For Private and Personal Use Only Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर // 279 // संस्कार उंडेरकरजः॥३॥माषपिटदामयापोताखजइत्यर्थः॥दथ्योदन।पायसं॥गुडमिश्रशाल्या दिपिष्टं।मोदकाः॥दूर्वाः॥यजमानपन्योराहतवस्त्राणि॥पिनाथकोविकयोसोवोहेपनिमो इतिविनायक शांतीसंमाराः॥ अथप्रयोगः॥उक्तकालेपवित्रपाणिरधिकारीप्राणानाय म्यदेशकालोसंकीर्त्य॥ अद्यपू. ममअमुकस्यकर्तव्यउपनयनेवाविवाहेनिश्चयोत्तरं कस्यचित्तूगोत्रजपुरुषस्यसंजातमृतिजनितप्रतिकूल सकलदोषपरिहारद्वारावधूवर यो:आयुरभिवृद्धिपूर्वक संतत्यपिछेदसकलाभूतिसिध्यर्थश्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थसनवग्रह मरवांविनायकशांतिकरिष्येवा॥ अस्यकुमारस्यउपनयनफर्मणोनिर्विप्रफलसिध्ययविनायक For Private and Personal Use Only Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शांतिकरिष्ये॥ इतिसंकल्पः॥ तदंगत्वेनगणेशपूजनादिनांदीश्राद्धांतंकवाऽचार्यवरणकुर्या त्॥आचार्यत्वं यथास्वर्ग एवं चतुरः पराशरमतेष्टोवाकविजोवृणुयात् // तथाचत्वारःस्वस्ति वाचकाइतिमदनरले॥ अस्ययागस्य ॥१॥तेषांवस्त्रादिभिःपूजनं॥ ततःसाचार्योयजमा नोवामहस्नेगौरसर्षपानगृहीबारक्षोहणंइत्यादिमंत्रैः सर्षपान्यिकीय॥ गायत्र्यादिभिर्म त्रैःपंचगव्यरुखा॥ आपोहिष्ठेतिविमिर्मत्रैः कर्मभूमिप्रोक्ष्य॥ भूरसीनिमंत्रणभूमिसंपूजा येत्॥ ततआचार्य-पंचवर्णैः शुक्लैपिष्टैर्मध्ये स्वस्तिकंकृतातदुपरिआनडुहंचर्मपाग्रीव मुत्तरलोमनदभावप्रागयकुशानास्तीर्यतत्रश्रीपर्णिकाष्ट जंपीठंउत्तरच्छदंसंस्थाप्याचे For Private and Personal Use Only Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तवस्षेणाच्छायतच्चतुर्दिक्षुचवारिस्वस्तिकानिकखातेषुप्रागादितएकवर्णाश्चतुरः कुंभान्म। भास्कर // 280 // हीयोरित्यादिमंत्रैःपूर्णपात्रांतंचतुर्ब्राह्मणे-पृथक्पृथक्मंत्रावृत्यासंस्थापयेत् ॥नपिरो षः ॥गंधनिक्षपेचंदनागरुकेशरकस्तूरीकर्पूरगोरोचनगुग्गूलं निक्षिपेदिनि॥कलशस्यम खेविष्णुरित्यादिदेवदानवइत्यंतेपठेन्। ततश्चतुर्दिसुचत्वारऋत्विज: वन्नोऽ अमेतिमंत्रण यरुणमावाह्यषोडशोपचारैः संपूज्य॥आनोभद्राः ॥१॥शम्भोधातः // 2 // इत्यादि स्वशारयोकशांतिकमंत्रा-पठेयुः। ततआचार्योभद्रासनस्यपूर्वतोहोमार्थस्थंडिलंकला // 280 / / तदीशान्याहम्तमात्रवेदिकायापीठे वस्त्रादौवामहीयौरित्यादिपूर्णपात्रातंकलशंसंस्थाप्य॥ // For Private and Personal Use Only Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ननःस्वर्णमयविनायकांबिकामृारम्युनारणपूर्वक प्राणप्रतिष्ठांकला॥कलशोपरिसंस्था-|| प्य॥ आवाहयेत्॥ तवमंत्रः॥ ॐतत्पुरुषायविद्महे वक्रतुंडायधीमहि॥तन्नोदंतीप्रचोदया त्॥ इतिविनायकं॥ सागायैपिग्रहेकाममालिन्यै धीमहि।तन्नोगौरीप्रचोदयात्॥ इत्यंवि को॥ हेमप्रतिमयोरावाहयेत्॥ अपरार्केभविष्येत्वन्याअपिउक्ता:॥तसरितोयथावकाशंपति मास्वक्षतपुंजेषुवाव्योमकेशं पार्वतीं। सीमावरूदेवं।अर्क मंडलं।सोममंडलं। भौमं॥ बुधबृहस्पनि ॥शकं॥ शनैश्चरं। राहुं॥केतुं॥बाहुलेय।विष्णुं।एतान् ॥इंद्रादिलोकपालंग, श्वाबाह्यादिनैवेद्यांतैपचारैःसंपूज्य॥भद्रासनस्यपूर्वतः रुतेस्थंडिलेमिस्थापनंकुर्यात्॥ For Private and Personal Use Only Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 28 // तद्यथा॥भयपू. अस्मिन्सग्रहमखविनायकशात्यारव्येकर्मणिअस्मिन्स्थंडिलेपंचामसंस्का |भास्कर |रपूर्वकंअमिस्थापनकरिष्ये॥पंचायूसंस्कारान्रुत्वावरदनामानमनिस्थापयेत्॥विनाय कादुत्तरतः ग्रहवेद्यांग्रहावाहनं कुर्यात्॥अयपू. प्रारिप्सितकर्मणः सांगतासिध्यर्थआदि त्यादिग्रहाणांस्थापनंपूजनंचकरिष्ये॥तत्रग्रहपीठमध्ये आदित्यादिअनंतपर्यंतरजोद र्शनशांतिवन्यहाणांस्थापनंपूजनंचकार्य॥ तदेशान्यांदध्यक्षतादिभूपिनं कलशंविधि नास्थाप्यतत्रवरुणपूजयेत्॥देवदानव० भवसर्वदा॥ततोमिसमीपमागत्यान्याधानंकु-२१॥ र्यात्॥अय अस्मिन्सयहमखविनायकशांत्यारव्येकर्मणिदेवतापरिग्रहार्थमन्वाधानंक || For Private and Personal Use Only Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie रिष्ये। पूर्वणब्रह्मणोगमनमित्यादिपदार्थानहंकरिष्ये॥ अथदेवताप्तिध्यानं॥तत्रप्रजा पतिइंद्रअमिंसोमंआज्येनएकैफयाहुत्यायक्ष्ये। अत्रप्रधानं॥आदित्यादिनवग्रहान् अर्कादिसमिच्चरुतिलाज्यद्रव्यैःप्रत्येकंप्रतिद्रव्येणअष्टाष्टसंख्याकाभिराहुतिभिर्यक्ष्य ॥अधिदेवताःप्रत्यधिदेवताश्वतैरेवद्रव्यैः प्रत्येकंप्रतिद्रव्येणचतुश्चतुःसंरच्याकाभिरा हुतिभिर्यक्ष्ये॥विनायकादिपंचदेवताः क्षेत्रपालंवास्तोष्पतिइंद्रादिलोकपालांश्चनैरेचद्र व्यैः प्रत्येकंप्रतिद्रव्येणद्वान्यांद्वाप्याआहुतियांयक्ष्ये॥पुनरवप्रधानामिनं। संमिता | शालं॥कटंकटंकूष्माउं॥राजपुत्र।प्रत्येकंएकैकयाच, हुत्या।व्योमकेशादीन्प्रत्येकं | For Private and Personal Use Only Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार |एकैकयाचर्चाहुत्यायक्ष्ये॥शेषेणविष्टकृतमित्यादि॥ दक्षिणतोमेब्रह्मासनादिपरिस्तर भास्कर णांतंपाबासादनं।पवित्रच्छेदनादर्मास्त्रयः॥पवित्रेदे॥प्रोक्षणीपात्रां|आज्यस्थाली।चर] स्थाली।। ग्रहहोमार्थगृहसिद्धचरुस्थाली॥संमार्गकुशाःपंच॥उपयमनकुशाःसप्तासमिध स्तिस्रः॥सुवः॥आज्यं॥ तंडुलाः॥पूर्णपात्र।पवित्रच्छेदनादिपावप्रोक्षणांतंरुत्वा॥ आज्यस्थाल्यामाज्यनिर्वापः॥सपवित्रकेचरुपावेतंडुलावापःप्रणीतोदकमासिच्य॥द| |क्षिणताज्याधिश्रयणं॥चरोरधिश्रयणमाजस्योत्तरतइत्यादिचरूद्वासनांतंकुर्यात्।। तत:गव्याज्यलोलीरुतेनगोरसर्षपकल्केनोहर्तितसर्वांगंसर्वोषधीभिः सर्वगंधैश्चलिप्त || For Private and Personal Use Only Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie शिरसंयजमानंआचार्योमंगलवेदघोपेर्भद्रासनेउपवेशयेत्॥ ततोयजमानःपूर्ववृतेश्चतु-|| भिकलिग्भिः स्वस्तिवाचनंकुर्यात्॥पोब्राह्मणाः ममग्रहेअद्यकरिष्यमाणसग्रहमरयविना यकशात्यारव्यस्पकर्मणः बहुपुण्याहंभवनोब्रुवंतु॥ अस्तुपुण्याहंइतिद्विजावंदयुः ॥एवंका णादि ॥ततोजीवसनिपुत्राभिःसवासिनीभिर्निराजनकार्य॥नायश्चयजमानोवस्त्रक चुकादिदद्यादित्याचारः॥ ततआचार्यायजमानदक्षिणतउदङ्मुखस्तिष्ठन्पूर्वदेशस्थक लशमादाय।।सहस्राक्षशतधारमृषिभिःपावनंकृतं // तेनत्वामभिषिंचामिपावमान्यः पु नंतुते॥ इतिमंत्रणयजमानमभिषिंचेत्॥ कुंभमध्येकिंचिज्जलमयशेषणीयं॥दक्षिणक For Private and Personal Use Only Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार / भमादाय॥ गंतेवरुणोराजामगंसूर्योबृहस्पतिः॥ भगमिंद्रश्चवायुश्चमगंसप्तर्षयोददुः॥ भास्कर // 28 // इतिदक्षिणकुंभेनयजमानमभिषिंचेत्॥ततःपश्चिमकुंभमादाय॥यत्तकेशेषुदीओग्यसीम तेयच्चमूईनि॥ललाटेकर्णयोरक्ष्णोरापस्तत् तुसर्वदा॥ इतिपश्चिमकुंभेनयजमानमभि पिंचेत्॥ ततउत्तरकलशमादाय॥सहस्राक्षशतधारमृषिभिःपावनं कृतं॥तेनखामभिषिंचा मिपायमान्यःपुनंतुते॥भगंतेवरुणोराजाभगंसूर्याबृहस्पतिः॥पगमिंद्रश्चवायुश्चनगंसप्त || र्षयो ददुः॥यत्तेकेशेषुदौरियंसीमंतेयच्चमूईनि॥ ललाटेकर्णयोरक्ष्णोरापस्तत्तु सर्वदा | // 283 // इतिमंत्रैरनिषिंचेत्॥ ततश्चतुभिर्मीलितैःकुंभैरभिषेकः॥तत्रमंत्राः॥एतद्देपावनस्नानस / For Private and Personal Use Only Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्राक्षमृषिस्मृतं॥तेनसांशतधारेणपायमान्यःपुनखिमाः॥शक्रादिदशदिक्पालाब्रह्मेशकेशवादयः॥आपस्तेभंतुदोर्भाग्यंशांतिंददतुसर्वदा॥ॐ समित्रियान आपऽ ओषधयःसंतुदु मिवियास्तस्मसंतुषोस्मान्द्वेष्टियं चचयं द्विष्मः॥समुद्रागिरयोनद्योमुनयश्चपतिव्रताः॥दीर्मा ग्यघ्नंतु तेसर्वंशांतियच्छंतुसर्वदा॥पादगुल्फीरुजंघास्यनितंबोदरनाभिः॥ स्तनोरुबाहुहस्ता यग्रीवास्वंसांगसंधिषु॥नासाललाटकर्णेषुकेशांतेषुचयस्थितं॥ तदापोभंतुदौर्भाग्यशांति त्यच्छंतुसर्वदा॥ ततआचार्यःप्राङ्मुखोयजमानस्यपश्चात्तिष्ठन्सव्यपाणिनाकुशान्यज मानस्यशिरसिप्रागयान्निधाय॥तत्रसार्षपेतैलंऔदुंबरलुयेणादाय॥ॐमिनायस्वाहाइदंमि For Private and Personal Use Only Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार तायनमम॥यजमानस्यत्यागः॥ॐ संमिनायस्वाहाइदंसंमिता // ॐ शालायस्वाहा मास्कर // 284 // इदंशालाय०॥ ॐ कटंकटायस्वा हाइदंकटंकटाय०॥ ॐ कूष्मांडायस्वा. इदं कूष्मांडायर ॥ॐ राजपुत्रायस्वा. इदंराजपुत्रा०॥ इतिषडाहुतीर्मस्तकेजुहुयात्॥ ततोमिसमीप-|| |मागत्य॥पवित्रणाज्योत्पवनादिसोमायस्वाहेत्यंतंकुर्यात्॥षड्भिरमौअपितचरुणाजुहुयात्॥ ॐमितायस्वा इदंमिता०॥ ॐ संमितायस्वा० इदंसंमिताय० ॥ॐ शालायस्थान इदंशा०॥ ॐ कटंकटायस्वा इदंकटंकटाय०॥ॐ कूष्मांडायस्वा. इदंकृष्मा०॥ ॐ राजपु // 284|| वाय इदंराजपुत्रा०॥तेनैवचरुणाव्योमकेशादीनोहोमः॥ ॐ व्योमकेशायचा. इदंव्योम | For Private and Personal Use Only Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir के ॥यथामंत्रलिंगत्यागः॥ॐ पार्वत्ये॥ॐ भीमजाय॥ॐ वासदेवाय ॥ॐ अर्काय०॥ ॐ सोमायः॥ ॐ भोमायः॥ ॐबुधायः॥ ॐ बृहस्पतये // अंशकाय०॥ॐशनये.॥॥ राहये॥ॐके तये॥ॐबाहुलेयाय॥ॐ विष्णवे ॥ॐ इंद्रायः॥ॐ अमये॥ॐयमा य॥ ॐ निक्रतये॥ ॐ वरुणाय०॥ ॐ वायवे०॥ ॐ कुबेरायः॥ ॐ ईशानायः॥ ततो यजमानेनद्रव्य त्यागःकार्यः॥ इमानिसंपादितानिहवनीयद्रव्याणियायायक्ष्यमाणदेव तास्ताझ्यस्तापयःमयापरित्यक्तानिनमम॥तनोगणेशायवराहुतिः॥नतोयहहोमःपू वित्॥ततः स्थापितदेवतानांपंचोपचारपूजा॥विष्टकदादिप्राजापत्यांतोहोमः॥ततोब | For Private and Personal Use Only Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार लिदानंपूर्ववत्॥क्षेत्रपालबलिः॥ हस्तपादप्रक्षालनं॥ततो हुत्तशेषचरुणाइंद्रादिलोकपाले | भास्कर // 28 // श्योनाममंत्रैर्बलिंदया। कद्धोदकेनसुलातोयजमानःविनायकसमीपेउपविश्या॥ ॐ तत्पु रुषायवि० तन्नोदंती० // 1 // ॐ सागायेकि तन्नोगौरी // 2 // दात्यांमंत्राफ्यांविना यकांबिकाफ्यांनमःध्यायामीत्येवंषोडशोपचारैःसंपूज्य॥कतारुततंडुलान्॥तिलयु तोदन।पकाप कमत्स्यान्॥पकापकमासे ॥विविधांसुरां॥पर्कमासं॥मूलकापूपपूरिकोंडरा जनक्दध्यन्नपायसगुडमिश्रपिष्टमोदकलड्डुकानिचित्रसगंधपुष्पकूष्मांडफलानिचैकपा // 285|| शूर्पयाकला॥ ॐ तत्पुरुषा तन्नोदंती ॥१॥ॐसभगाये तन्नोगौरी ॥२॥विना For Private and Personal Use Only Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie यकाधिकाभ्यांनमः इमंउपहारंनिवेदयामि॥ इति निवेद्य // कुंकुमगंधर्वासर्षपा सहितोदकेनांजलिमापूर्य॥ ॐ तत्पुरुषाय० // ॐसागाये ॥२॥इतिमंत्राभ्यांविनायकांबिकाश्याइदमघसमर्पयामि॥ अर्घदत्वा॥ मौशिरः कला॥रूपंदेहियशोदेहि भगवन्देहिमेसगं।।पुत्रान्देहिधनंदेहिसर्वान्कामांश्चदेहिमे॥ इतिविनायकं // रूपंदेहियशोदेहिमगंभगवतिदेहिमे॥पुत्रान्देहिधनंदेहिसर्वकामांश्चदेहिमे॥ इत्यंबिकांचे पतिष्ठेत्॥ सौभाग्यमंविकेदेहिरूपंभाग्यंयशोपिच॥स्त्रियंपुत्रांश्वकामांश्चतथाशौर्यंच | देहिमे॥ गणेशमानरंवालयत्किंचिन्मदभीप्सितं॥ एकनाम्नैवतद्देहिदेहिगोरिवराना / For Private and Personal Use Only Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | ने॥ततआचार्यः शूर्पकुशानास्तीर्यकतारुताद्युपहारंपूर्वोक्तंसर्वंतनिधाय चतुष्यथेगा भान्कर // 286 // त्वा॥तत्रभूमिजलेनाप्युक्ष्यतब कुशानास्तीय॥ नवमंत्रोक्तदेवताः संपूजयेत्॥ आदित्याग दिमंत्रोक्तदेवताभ्योनमः ध्यायामीत्येवंषोडशोपचारेः पूजयेत्॥ तवरूपैनिधायबलिंदद्या न॥मंत्रास्त॥बलिंगृहविमेदेवाआदित्यावसवस्नथा॥मरुतावश्विनोंदेवाः सपर्णाःपन्न गाग्रहाः॥ असरायातुधानाअपिशाचामातरोगणाः॥शाकिन्योयक्षवेतालायोगिन्यःपू तनाग्रहाः॥ मुंभकाःसिद्धगंधर्वानागाविद्याधरानगाः॥दिक्पालालोकपालाश्चयेचवि // 286| नस्यनायकाः॥जगतांशांतिकारोब्रह्माद्याश्चमहर्षयः॥माविघ्नामाचमेपापंमासंतुपरि // For Private and Personal Use Only Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पंथिनः॥सोम्यामवंतुतृप्ताश्चमूतप्रेता:सरवावहाः॥ततोयजमानोगृहमागत्यहलोपादोचा। क्षाल्याचमेत्॥नतआचार्यकृतस्यसग्रहमखविनायकशोत्याख्यस्थकर्मणःसांगतासिध्यर्थ बसोारासमन्वितंपूर्णाहुनिहोमकरिष्ये।उक्तविधिनापूर्णाहुतिंवसो रांचहुबाप्तस्मधार गंकुर्यान्॥संस्रवणा॥रुतस्यसग्रहमरयविनायकशासारख्यस्यकर्मणःसांगता॥प्रणीतावि मोकः // श्रेयोदानं॥यजमानः कृतस्यसग्रहमखविनायकशांत्यारण्यस्यकर्मणःसां श्रेयाची करणकरिष्ये॥ आचार्यः कृतस्यस श्रेयोदानंकरिष्ये॥शिवाआपःसंवित्यादि॥ भवन्नि योगेनमयाअस्मिन्सयहमरवविनायकशांन्यारव्येकर्मणियत्कृतंआचार्यत्वंतनाचा For Private and Personal Use Only Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार र्यगंधादिनापूजयेत्।ततोयहकलशोदकेनयजमानस्यसकुटुंबस्याभिषेकः॥विनायकोविक भास्कर // 287 // यो पंचोपचारे पूजांकृत्वा॥यातुदेवेनिविसृज्य // इमेविनायकांबिकयोनीआचार्यायतुझ्या महंसंप्रददे॥ इदंग्रहपीठंतुमय०॥ अमिंगंधादिनासंपूज्य॥गच्छगतिविसृज्य। रुतस्य सय हमरयविनायक शांत्यारख्यस्थकर्मणःसांगतासिध्यर्थयथाशक्तिबाह्मणान्मोजयिष्ये। अनेनरुतेनकर्मणाश्रीपरमेश्वरःधीयतां ॥ब्राह्मणेफ्योधूयसींदयातेप्याशिषोगृण्हीया दितिसंस्कारभास्करेविनायकशांतिप्रयोगः॥ // अथगुर्वर्कबलंज्योतिर्निबंधेगर्गः|| | // 287 // स्त्रीणांगुरुवलंश्रेष्ठंपुरुषाणार वेवलं॥तयोश्चंद्रबलंश्रेष्ठमिनिगर्गणभापितं॥जन्मत्रिदश / For Private and Personal Use Only Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मारिस्थःपूजयाशपदीगुरुः॥विचाहेथचतुर्थाष्टद्वादशस्योमृतिप्रदः॥देवलः।।नष्टात्म || जाधनवतीविधवाकुशीलापुत्रान्विताहतवासअगायिपुत्रा॥स्वामिप्रियापिगनपुत्रधया धनाट्यावंध्यासवे सरगुरोक्रमशोभिजन्म॥बृहस्पतिः॥झपचापकुलीरस्योजीवोप्य भगोचरः॥ अतिशोधननांदद्याडिवाहोपनयादिषु॥राजमार्तंडः॥ नृतीयषष्ठगश्चैवदनामै कादशस्थिन:रविःशडोनिगदितोवरस्यैवकरयहे॥जन्मस्थेचद्वितीयम्येपंचमेसप्तमे पिवा॥नवमेभास्करेपूजांकुर्यापाणिग्रहोत्सवे॥चतुर्थेवाष्टमेचैव हादशेभास्करेस्थिते॥ वर:पंचत्वमानोतिरुनेपाणियहोत्सवेललः।। द्वादशदशमचतुर्थेजन्मनिषष्ठाष्टमेन। For Private and Personal Use Only Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार तीयेच॥माप्तेपाणियहणेजीववैधव्यमामोति॥ मूहूर्तदीपिकायां // व्ययविदिग्बंधुमृति // 28 // ||12 / 3 / 10 / 4 / 8 स्थितोपिस्त्रियोधनास्तांकसतायगैश्च॥विधायहेर्देवपुरोहितश्चक्रममा दश्चेतियसिष्ठाह॥गर्गः॥सर्वत्रापिशमंदद्याद्वादशाब्दात्परंगुरुः॥पंचषष्ठान्दयोरेव शाम गोचरनामता॥ सप्तमात्पंचवर्षेषुवोच्चस्पर्क्षगतोयदि॥अवमभोपिकानंदयाच्छुभकक्षेषुकिं / नः॥रजस्वलायाः कन्यायागुरुशनिचिंतयेत्॥ अष्टमेपिप्रकर्तव्योविवाहस्त्रिगुणाचनात्।। अर्कगुर्बिलंगीर्यारोहिण्यर्कबलास्मृता॥कन्याचंद्रबलाप्रोक्तावृषलीलमनोबला॥ अष्टवर्षा // 28 // भवे दोरीनववर्षाचरोहिणी॥दशवर्षाप्तवेत्कन्याअतऊर्धरजस्वला॥ ॥अथवृहस्प-|| For Private and Personal Use Only Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |तिशांतिः॥ शौनकः॥ कन्यकोद्वाहकालेतुआनकूल्यंनविद्यते॥ ब्राह्मणस्योपनयनेगुरोपि धिरुदाहृतः॥सवर्णेनगुरुंकलापीतवस्त्रेणवेष्टयत्॥ऐशान्यांधवलं कुंअंधान्योपरिनिधाय च॥मदनंमधुपुष्पंचपलाशचैवसर्षपान॥मांमीगुडूच्यपामार्गविडंगीशंखिनीयचा॥सह देवीहरिकांतासर्वोषधिशतावरी // बलाचमहदेवीचनिशाद्वितयमेवचा रूखाज्यशागप यतस्वशारयोक्तविधानतः॥ग्रहोक्तमंडलेश्यय॑पीन पुष्पाक्षतादिभिः॥ देवपूजोत्तरेकाले | ततःकुंभानुमंत्रण॥ अश्वत्थसमिधश्चाज्यंपायसंसर्पिषायुतं // यवत्रीहिनिला साज्या || मंत्रोवबृहस्पतेः॥अष्टोत्तरशतंसर्व होमशेषसमापयेत् ॥पुत्रदारसमेतस्यअभिषेकंस For Private and Personal Use Only Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार माचरेत्॥ कुंभाभिमंत्रणोक्तैश्वसमुद्रज्येष्ठमंत्रतः॥प्रतिमांकुमवस्त्रंचआचार्यायनिवेदा भास्कर // 28 // येत्॥ब्राह्मणाम्भोजयेत्पश्चाच्छादःस्यान्नसंशयः॥ इतिबृहस्पतिशांतिः॥ ॥अया टोविवाहभेदाः॥तबमनुरु देशपूर्वकंक्रमेणतलक्षणमाह॥ ब्राह्मोदेवस्तथैवार्ष:प्राजापत्य स्तथासुरः॥ गांधाराक्षसश्चैवपेशाचश्चतथाष्टमः॥ आच्छायचाहयित्वाचश्रुतशीलवते स्वयम्॥ आहूयदानंकन्यायाब्राह्मोधर्म:प्रकीर्तितः॥यज्ञेतुवितनेसम्यगृविजेकर्मकुर्व ने॥ अलंरुतसतादानेदैवधर्मंपचक्षते॥ एकंगोमिथुनंदेगावरादादायधर्मतः॥कन्याप्रदा // 289 // नंविधिवदार्योधर्म:सउच्यते॥सहोमोचरताधर्ममितियश्चानुभाष्यतु॥कन्याप्रदानमायच For Private and Personal Use Only Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्राजापत्योविधिःस्मृतः॥अवविशेषपारिजातेभगवान्॥अन्येषपिविवाहेषुधर्मस्यचरणंस ह।यद्यप्युक्तंतथाप्यबविशेषोक्तिहाश्रमात्॥ आश्रमांतरसंप्राप्तिनिषेधार्थेतिगम्यते॥ नचावतम्यांजीवत्याविवाहस्यपरिग्रहः॥ आश्रमानरयोगोवामृतायांभवतस्तताविति॥मा न्येतुपुत्रादाय नमिसाध्येषुसाहित्यनियमार्थासेति॥ जातिप्योदविणदखाकन्यायाश्चस्वश तितः॥ कन्यापदानंस्वछंदादासुरोधर्मउच्यते॥ इच्छयान्योन्यसंयोगःकन्यायाश्चवरस्य च॥गांधर्वःसइतिज्ञेयोमैथुनेकामसंभवः॥ हत्वाछित्वाचतित्वाचक्रोशंतीरुदतीगृहात्॥ प्रगृह्यकन्याहरणंराक्षसोविधिरुच्यते॥सप्तामत्तांप्रमत्तांचाहोराबीयःप्रयच्छति॥सपापि For Private and Personal Use Only Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार टोविवाहानांपैशाचःप्रथितोष्टमः॥ आपेगोमिथुनादानंचकन्याहणं॥ नतुनावकन्यायि भास्कर // 290 // क्रयेणनिद्यत्वमित्सपिमनुनैवोक्तम्॥ आपेगोमिथुनंशुल्कंकेचिदाहुम॒षैवतदित्युपक्र म्य॥ शुल्कंमूल्य।। अर्हणतत्कुमारीणामानृशंस्यहिकेवलमिति॥ तद्गोमियुनं आनृशंस्यं अ निंदिनम् // किंतुत-कुमारीणामहर्णपूजनमित्येवमाचारमदनरत्नेच्यारण्यानम्॥ एषांव्यय स्थामाहमनुः॥षडानुपूर्व्यापिप्रस्यसत्रस्यचतुरीवरान्॥विशूद्रयोस्त तानेवविद्यार्थ्या नराक्षसान्॥ तत्रब्राह्मादीनगोधर्यान्तान्ब्राह्मणस्यधान् धर्मादनपेतान्चिंद्यात्॥क्षत्रस्यआ- // 290 // सरगांधर्धराक्षसपैशाचान्॥ वैश्यशूद्रयोराक्षसवर्जितान्आमरगांधर्वपेशाचानितिन्यारव्या / For Private and Personal Use Only Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मदनपारिजाते॥ एषामपिप्राशस्त्यव्यवस्थामाहमनुः॥ चत्वारोबाह्मणस्याद्याः शस्नागों धर्मराक्षसो॥ राज्ञस्तथासरोवेश्येशूद्रेचांत्यस्तगर्हितइत्यष्टौविवाहभेदाः॥ ॥कन्या विवाहकालः॥ सोमोददरंधर्यायगंधर्वोदददग्नयेइतिश्रुतिः॥ तथाचज्योतिर्निबंधे॥षडब्द मध्येनोद्वाह्याकन्यावर्षद्वयंयतः॥सोमो भुक्ततस्त इदंधर्वश्वतथानलः॥यमः॥ सप्तसंव सरादूर्ध्वंसर्ववर्णस्यकन्यका ॥विवाहे शस्यतेराजन्नन्यथाधर्मगर्हितइति॥ यथा॥अष्ट वर्षामवेदोरीनववर्षाचरोहिणी॥ दशवर्षाप्तवेत्कन्याअनऊyरजस्वला॥१॥ गोरींददन्ना किलोके चैकुंठेरोहिणींददन्॥कन्यांददन्ब्रह्मलोकेगैरयेतुरजस्वला॥२॥ द्वादशेदेरजस्त / For Private and Personal Use Only Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार लांइत्यन्यपाठः॥ रत्नमालायांदेवलः॥ऊयदशाब्दाद्याकन्यावर्षेएकादशेतुसा॥गांधारीस्या भास्कर // 29 // समुदायाचिरंजीवितुमिच्छतेति॥ तत्रसप्तमाष्टमाब्द उत्तमः॥ नवमदशमोमध्यमः॥ कादशाब्दअधमइति॥ अवकन्याक्योब्दोषद्विगुणाब्दवयस्क वरायकन्यादद्यात्।। न्ययादानेदोष मागास्यादिति॥ ॥कन्यादानाधिकारी ॥माधवीयेनारदः॥पितादया स्वयं कन्याश्चातावानुमतेपितुः॥ मातामहोमातुलश्नसकुल्योजननीतथा॥मातात्वना वेसर्वेषांपरुतौयदिवर्तते॥तस्यामप्ररुतिस्थायांकन्यांदद्युःस्वजातयः॥ यदातुनैवकचि // 29 // स्याकन्याराजानमाबजेदिति॥ अपरुतिस्थाउन्मत्तादिदोषयुता॥गम्यत्वभावेदा // For Private and Personal Use Only Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तृणांकन्याकुर्यात्स्वयंवरमिति॥ दानप्रशंसा॥ सर्वतः॥अलंकृत्यतुयः कन्यांभूषणाच्छा दिनादिभिः॥दवास्वर्गमवामोतिपूज्यतेवासवादिभिरिति॥ऋष्यभंगः॥वरगोवंसमुच्या र्यप्रपितामहपूर्वकं॥नामसंकीर्तयेहिडान्कन्यायाश्चैवमेवहीति॥दानेविशेषस्त॥सर्वत्र प्राङ्मुरचोदातापतियाहीउदङ्मुखः॥एषएवविधिर्यत्रकन्यादानेविपर्ययइति॥ विवाहेमं| डपस्तपायुक्तः॥ वेदिकाप्रकारः॥ नारदः॥हस्तोच्छ्रितांचतुर्हस्तांचतुरस्रांसमंततः॥परस्पेतिशेषः॥ ॥अथविवाहदिनात्याविवाहांगमंगलकार्यकर्तव्यतीच्यते॥यरा हः॥कार्यविवाहकाऱ्यांगंविवाहोदितफेर्जनैः॥विबलंचविधुंहित्यात्रिषष्टनवमंदिन॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मास्कर संस्कार // 29 // हेरंबपूजनंतैल हरिद्राचांकुरार्पणं॥पेषणकंडनायंचवेदिकामंडपादिकं॥ यवारकुंकुमा दिश्चलडुकादिव्यंजनानीति // ययारंचिकसा॥ विवाहेदिनशद्धिस्त॥ उदगयनआ पूर्यमाणपक्षेपुण्या हेकुमार्याः पाणिंगण्हीयात्।।तथाच॥विवाहझझिंप्रवदंतिसंतो वात्स्यादयःस्त्रीजनिजन्ममासादिति॥अत्रवधूवरयोर्घटितादिविचारोगुरुबलादिकंपु ण्याहादिविनिर्णयोलमशादिश्चेत्यादिज्योतिःशास्त्रज्ञेये॥ विस्तरभयान्नात्रलिखितं॥ // इतिसंस्कारपास्करे विवाहोपयोगीसापिंड्यादिसंक्षिप्तनिर्णयः॥ // 5 // For Private and Personal Use Only Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथमुरव्यब्राह्मविवाहांगभूतोवाग्दानविधिरुच्यते॥ज्योतिर्विदादिष्टेविवाहनक्षत्रादि युनेशभकाले प्रशस्तवेधैर्युग्मब्राह्मणे: पुरंध्रीशिर्जातिबांधवैश्वसहवरपितागंधाक्षता पुष्पयुग्मवस्त्रभूषणफलतांबूलादिगृहीखातूर्यमंगलवायादिभिर्युतः कन्यागृहे आगत्य शक्षवस्त्रपीठासनेप्रत्यड्मुखउपविशेत्॥ तहदासनेकन्यापितापामुरवउपविश्यस्य वामतः प्राङ्मुखीकन्यामुपवेश्य॥ स्वपुरतःगणपतिंकलशंचसंस्थाष्य॥ श्रीगणपत्यादि। स्मरणपूर्वकं देशकालकीर्तनांतेकरिष्यमाणकन्याविवाहांगतं वाग्दानमहंकरिष्येइति कन्यापितु:संकल्पऊहः॥ करिष्यमाणपुत्रवियाहांगभूतंकन्यानिरीक्षणपूजनंचकरि || For Private and Personal Use Only Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार येइनिवरपितुःसंकल्पः॥तदंगविहितंगणपतिपूजनंवरुणपूजनंचकरिष्ये इतिउप्नौरु भास्कर // 293 // खा॥ ततोवरपिताअमुकगोत्रोत्पन्नायअमुकप्रवरान्वितायअमुकर्मणेवरायअमुको वोत्पन्नांअमुकप्रवरान्वितांप्रमुकीनाम्नीकन्यांमार्यात्वेनवृणीमहे॥इतिकन्यापित तिब्रूयात्॥ ततोदाताप्पार्यासुदृढ ध्वनुमतिंगृहीत्वायथोक्तमनुवाद्यवावृणीध्वमि तिवदेत्।।ततोवरपिताकन्यानिरीक्षणपूर्वके कुंकुमाक्षतपुष्पयुग्मवस्त्राभूषणतांबूलादि भिःकन्यांस्थानेपूजयेत्॥संप्रदायागतमंचैः॥ततोदाताप्रत्यङ्मयोपविष्वरपितरंग|| || // 293 // धितांबूलादिभिःपूजयेत्॥सचवरपितादातारं पूजयेत्॥ ततोदाताहरिद्रारंवंडयुतपंचपूगी। For Private and Personal Use Only Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir फलानिगृहीत्वापठेत्॥अव्यंगेऽपतिते क्लीवेदशदोषविवर्जिते॥ इमांकन्यांप्रदास्यामिदेवा मिद्विजसन्निधो॥१॥अमुकसगोत्रोत्पन्नायअमुकअपरान्वितायअमुकशर्मण:प्रपोत्राया मुक शर्मणापोत्रायअमुकशर्मणःपुत्राय॥अमुकसगोबोसन्नांअमुक प्रवरान्वितांअमुकशा मण: प्रपोबीअमुकशर्मण:पोबीअसकर्मण:पुत्रीअमुकीनाम्मीइमांकन्याज्योतिर्विदा दिष्टेमुहूर्तेदास्ये इतिवाचासंप्रददे॥ यदाबभ्रनिनिमंत्रणहरिद्रारवंडपूगीफलानिवरपि तवस्त्रप्रांतेबध्वाग्रंथिचंदनेनार्चयितापठेत्।।वाचादत्तामयाकन्यापुत्रार्थस्वीरुतात्वया॥ |कन्यावलोकनविधीनिश्चिनस्वंसखीसव॥१॥ततोवरपितापूर्ववनहरिद्राखंडयुतपूगीफला For Private and Personal Use Only Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार निगृहीत्वा अमुकगोबोत्पन्ना अमुकमवरान्वितांअमुकर्मण:प्रपोचीं॥अमुकशम- भास्कर ॥२९॥णःपोत्रींअमुकशर्मण:पुत्रीं॥ अमुकीनाम्नीइमांकन्यांअमुकसगोत्रोत्पन्नायअमुकप्रय रान्चितायअमुक शर्मणः प्रपोबायअमुकशर्मण:पोत्रायअमुकर्मण:पुत्रायअमुक शर्मणेवराय भयंतोनिश्चितापवेखितिदातृवस्त्रप्रांतेपूर्ववन्मत्रेणबध्याग्रंथिचंदनेनार्च यित्वापठेत्।। वाचादत्तात्वयाकन्यापुत्रार्थस्वीरूतामया॥वरावलोकनविधौनिश्चिनस्वंस खीमय॥१॥ ततोदात्तापात्रस्थसिततंदुलपुंजोपरिशचीमावाह्य कन्याहस्तेनसंपूज्यप्रार्थः // 29 // ||येत्॥ देवेंद्राणिनमस्कायंदेवेंद्रप्रियभामिनि॥विवाहभाग्यमारोग्यपुत्रलापंचदेहिमे॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पुरंध्रीमिनिराजनादिमांगलिक कार्य ।विप्रेमयोगंधतांबूलदक्षिणादिभिःसंपूज्य।तेरा शिषोसहीत्वा॥ गणपत्यादिविसर्जयेत्॥ इतिसंस्कारसास्करे योग्दानविधिः॥ ॥तनो विवाहदिनात्पूर्वतृतीयषष्ठनवमरहितान्यतमशुभदिनेयिवाहनसवादियुतेवधूवरयोस्नै लहरिद्रारोपणंगोधूमपूजनंचकार्य। सिंहासनेरथारोहे दंपत्योःपादक्षालने॥ अभिषे केसोरव्यरुत्येतिष्ठेसनीतुवामतः॥१॥श्राद्देसदैववामांगेपलीचादकमाहरेत्॥ वृद्धिाद्वा दिमांगल्येदक्षिणांगेसदाभवेत्॥२॥ लाज होमंसमिद्दोमंमूर्धिहोमंतथैवच॥ पूर्णाहुतिय |सोरांतिष्ठनेवहिकारयेत्॥३॥ ततोषिवाहदिनापूर्यदिनेकन्यापितावरपिताचसपली // For Private and Personal Use Only Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार क: कन्यापुवाश्यांसहमंगलं स्मात्याहतवाससीपरिधायधृततिलकोलंकारादिभिरलंक भास्कर // 295 // तोपहि:शालायांशुमासनेउपविश्य॥ स्वदक्षिणतःपत्नीतद्दक्षिणतः संस्कार्यंचोपवेश्या |॥आचम्यमाणानायम्यदेशकालोसंकीर्त्यअस्यअमुकशर्मणः ममपुत्रस्यदेवपितृक णापाकरणधर्मप्रजोत्पादनसिद्धिदाराश्रीपरमेश्वर पीत्यर्थश्वः करिष्यमाणयिवाहारच्यं कर्मकरिष्येइतिवरपक्ष। अस्या: अमुकीनाम्याः ममकन्यकायाःभीसहधर्मप्रजोत्सा दनगृह्मपरियहधर्माचरणेष्यधिकारसिद्धिद्वाराधीपरमेश्वरप्रीत्यर्थश्वः करिष्यमाण||२९५।। विवाहारण्यकर्मकरिष्यइतिकन्यापक्षे॥ तदंगविहितंनिर्विघार्थगणपनिपूजनंस्वस्निपु For Private and Personal Use Only Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ण्याहवाचनअविघ्नपूजनमंडपस्थापनंयसो गनांदीश्राडूंचाद्यकरिष्येअबपुण्याहयाचा नातेप्रजापतिःप्रीयतामितियदेत्॥ यहानुकूलतासिध्यर्थयहमरयंकरिष्येइतिकरणंउभ यपक्षेसमानं॥ इत्येषिचाहदिनात्पून्हिसर्वकुर्यादिति॥ // अयविचाहदिनकर्तव्य मुच्यते॥ ॥घीयंत्रनिमार्णस्थापनपूजनप्रार्थनापकारस्त उपनयनपकरणज्ञेयः ॥प्रक्षिप्तघटी अष्टदिशांमध्येयदिग्गतात.प्रागादितः क्रमेणफलानि॥यथा॥प्रार्थि तासाघटीतोयेयांदिशंप्रतिगच्छति॥ पूर्वाशादिफलंवक्ष्येस्थितामध्येराभप्रदा।सो भाग्यंनिधनंचैवअपमृत्यूरुजान्विता॥ भर्तुः प्रियाचवश्याचमान्यासरखधनान्चिते-|| For Private and Personal Use Only Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ति॥यद्यनिष्टदिग्गतापूर्णावा तदातिथिवारनक्षवलमदिक्पतीनांविवाहमंगलोत्तापू भास्कर जनं उक्तमंत्रणायुतजपंतदशांशतिलाज्येमिंगोदानादिकंचकुर्यादिति। अथगौरी हरपूजनं॥ततः कन्यामातासुधालिप्तकुड्येआमवृक्षकुंकुमेनचंदनेनवापिलियन दोभूमोरंगवलिंपिरच्यतत्रकोणचतुष्टयेस्थापितकलशश्रेणीनांमध्येसूबवेष्टितह शनिधायतदुपरिअयभागेउपलंनिधायतबयस्वातंदुलपुंजेअन्योन्यालिंगित |गौरी हरयोः प्रतिमांसुवर्णरौप्यादिनिर्मिनांकात्यायनीमहालक्ष्मीशचीभिःसहपूजये // 296 // त्॥तत्रमंत्रः॥सिंहासनस्थादेवेशींसर्यालंकारसंयुतां॥पीतांबरधरंदेयंचंद्रार्धकृतशे | For Private and Personal Use Only Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie || रचरं॥ करणाथरूधापूर्णकलशंदक्षिणेननु ॥वरदंचाभयंयामेनाश्लिष्यचतनुपिया-| मितिध्यानमंत्रः॥ गोरीहरमहे शानसर्वमंगलदायक॥पूजागृहाणदेवेशसर्वदामंगलेकुरु॥इ | तिपूजामंत्रः॥ कन्यादेह प्रमाणेनसप्तविंशतितंतुभिः॥ कृतवनिकयादीपंप्रज्याल्यनैल पूरितं॥इति॥ सुवासिनीब्राह्मणानभोजयेत्॥ततोवधूर्मंगलसुस्नानास्पदयेपरिहितासन पीतवस्त्रंपरिधायकुंकुममाल्यादिमिभूषिताउपविश्य।कुंकुममाल्याक्षताः पुन:पुन: गौरीहरोपरिउमान्यांहस्ताभ्यांप्रक्षिपेत्॥इति॥ // अथशिष्टाचारप्राप्तंसीमंतिका र्चनमपिलिरम्यते॥ नत्रायंक्रमः॥पादप्रक्षालनांतेकुरु भतिलकंअक्षतामालदे For Private and Personal Use Only Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार शेउष्णीपंपुष्यमालांशिरसिचकुरुतेलारोपणनारिहस्तात्॥ दद्याइतपपूर्णदायफलमथ भास्कर // 297 // तसंसरवनारिकेलंएवंसीमतपूजां कुरुतविधिवत्आगमार्यपरस्य॥तनोदातागंधाक्षतपु ध्ययस्त्रोष्णीषनीराजनफलताबूलादिगृहीत्वापुरंधीनिर्ब्राह्मणेश्चसहमंगलतूर्यघोषपुरःस रंघरगृहेयास्थलेगच्छेन्॥वरःप्रशस्तवेशालंसनोपस्माच्छादितपीठेमाड्युरवउपदिशेन्॥ तसुरतः दानाप्रत्यङ्मुख उपविश्याचम्यदेशकालौस्मृत्वाकन्याविवाहार्थआगताय स्नातकायवराय सीमंतिकेनार्चयिष्ये॥ तदंगत्वेननिर्विधार्थगणपतिवरुणपूजनंकरिय्येइतिरुत्वा॥ततो|| | // 297 // || वरपूजनं॥ ॐ विराजो दोहोसिपिराजोदोहमसीयमयियायायेषिराजोदोहः॥ 1 // || For Private and Personal Use Only Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इतिमंत्रण पादप्रक्षालनं॥ ॐ सचक्षा. इनिमंत्रणगंध॥अनाधृष्टाइत्यक्षतावंदन। ॐ सुवास वासेतिवस्योष्णीषं // ॐ यद्यशोप्सरसामि० इतिमंत्रेणपुष्पं // ॐ बसोः पवित्रमसीतितैलारोपणकार्यं // तैलंमस्तकेक्षिपेत्॥ॐ ऋतवस्त्या कतावृधडक तुष्टास्थकतावृधः॥घुतचुतौमधुश्शुतोधिराजोनामैकामधुक्षा अक्षीयमाणा: ॐ ऋतपस्येत्वृतवोह्येता कतावृध इतिसत्यवृधः इत्येतहतुष्ठास्य ऋतावृधः इत्यहोरात्राणिवाः इष्टका ऋतुषवा अहोरात्राणितिष्ठतिघृतश्तोमधुश्चत इति तृदेनाघृतश्चतश्चमधुश्रुतश्चकुरुते॥१॥विराजोनामेत्येतद्वैदेवा एताड इष्टकाना For Private and Personal Use Only Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मभिरूपाव्हयंतयथायथैना एतदाचक्षतेता एनानाभ्युपावर्तनाथ लोकंपृाऽ एचपराच्या भास्कर // 29 // स्तस्थरहितनाम्भ्योनिमेमिहत्यस्तापिराजीनामाकुर्वतता एनानाभ्युपावर्तततस्माशदष्टका 5 उपायलोकं भेणुयाभिमंत्रयतेतदेनाविराजः कुरुतेदशाक्षराहिपिराकामघाऽ अक्षीय |माणाऽ इतितदेना: कामदुघाः अक्षीयमाणाः कुरुते॥ 2 // इतिमंत्रेणवरहस्ते सन्मुरमंत्री फलंदेयं सुमुहूर्तमस्विनिविप्राः पठेयुः॥अनेनयरपूजनेनलक्ष्मीनारायणःप्रीयता॥नानानामगो बेभ्योब्राह्मणेभ्योभूयसींदक्षिणांदखा॥ तैराशिषोगृहीत्वा॥अन्ये न्योतांबूलादिकंदला // 29 // गणपत्यादिविसर्जयेत्॥ इतिसंस्कारशास्करेसीमांतपूजनं॥ ॥ततःशिष्टाचारा। For Private and Personal Use Only Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दरपिताएवं विधिनावस्त्रकुंकुमपुष्यफलैर्व●पूजयेदिति॥वरः कतनित्यकियोविधिव कृतस्वस्तिवाचनोब्राह्मणे: सहसालिकाहारमुक्काअभुत्काबाईषद्योतनश्वेतंसदशंपरे |णाधृतंवरूनयुगलंपरिधायमग्वीष्टदेवतापित्रादीन्नमस्कृत्यतैरनुमोदितोयथाविभवंभ |श्वादियानमारुह्यधृनसितच्छवस्वपित्तैमा॑निबांधवैः स्वस्तिन इंद्रेतिसमंगलसूक्तपा उनपराह्मणैःपुरंध्रीनिःपूर्णकलशोदकपात्रकन्यापुष्याक्षतदीपमालाधजलाजैर्मंग लय॑घोषैश्चसहवधूगृहेगत्यातद्वारदेशेषाङ्मुरपस्थितनीराजनपूर्णकुंभयुतैः स्त्रीपु रुपैःप्रत्युद्यातोनीराजितलन्मंडपंप्रयिशेत्॥तबार्यक्रमः॥साधूक्तिर्विष्टरंपायमपर For Private and Personal Use Only Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार || मुदकाय॑मथुप्राशनंबीनाचामेद्दामलेप: सुमनसमुपवीतानिवस्याणिभूषाः॥का !! भास्कर // 299 // |लंस्मृत्वामिसंस्थापयतिअथवरोवस्त्रमेनांप्रदद्यात्सन्मुरव्यंपाणिपीडाजिगमिषतियदै पीतिवन्हिस्मरित्या॥ आघारो वाघाष्टयजतिचक्रतापाडितिद्वादशैताचित्तायाविश्व संख्यारुतिपरिमितयोप्याथसंज्ञामिपंचा।वध्याचोत्यायलाजायजतिदशमितस्यायजा नांपतेसोदीचीकामेत्पदानिस्थितवतउदके नोत्तरेणाभिषिचेत्॥सूर्येक्षासन्हिचास्तेध्रुवम | सिहृदयालंपसोभाग्यदानंचर्मण्याथोनिवेश्यसिहजपनिवर: स्विष्टमेनाद्विसप्तरिति॥ // | // 299|| अथमधुपर्कः॥ तत्रवरस्यार्घदानंस्मर्यते॥तत्मसंगेनयातोास्तेकथ्यते॥ षडभियं|| For Private and Personal Use Only Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ति॥ आचार्यऋत्विग्वैवायोराजापियः स्नातक इति॥ अथसर्वसाधारणोपविधिरुच्यते याहुमात्रंहस्तमायादीर्घपंचविंशतिकुशैर्घटितंविष्टरद्वयं॥पायंपादप्रक्षालनार्थजलं अर्धार्थशस्वपात्रस्थंजलं॥चंदनाक्षतपुष्पाणि॥मधुपर्कार्यंदधिमधुघृतंकांस्यपाएकी कृतंकांस्यपात्रेणापिहिता यज्ञोपवीतवस्त्रालंकरणानि एवमासाय॥ ततोवरंभावस्वाच्छा |दितपीठे पाड्युरचमुपयेश्य॥ दाताउदमुखःमत्यमुखोवाउपविश्याचम्यपाणानायम्यदेश) कालीस्मृता॥कन्याविवाहांगलेनआगतंवरंमधुपर्केणार्चयिष्ये। तत्रनिर्विनाथगणपति स्मृत्वा॥ // ततोदातापरस्यायेरुतांजलिपुटस्तिष्ठन्पठेत् // ॐ साधुभवानास्तामयि | For Private and Personal Use Only Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार यामोभयंत॥ ॐ अर्चय॥ इनियरोभूयात्॥विष्टगदीनि अन्य संबोधयति॥ तद्यथा॥ भास्कर अर्चकादपरोचिपोषिष्टरादीनिमधुपर्कातानित्रिःसंबोधयति॥विष्टरोविष्टरोबिष्टरः प्रतिग्ट यतां॥ततो?र्षयितुः सकाशादिष्टरंपतिगृहाति॥ ॐ व स्मिसमानानामुद्यतामि यसूर्यः॥इमंतमप्तितिष्ठामियोमाक श्वाभिदासति॥१॥ इनिमंत्रणविष्टरमुदगयमास नेनिधायउपविशति॥पादार्थमुदकंपादार्यमुदकंपादार्थमुदकंप्रनिग्रह्मतां॥पनिगृहा मि॥सन्यंपादपक्षाल्यदक्षिणपक्षालयतिब्राह्मणश्चेदक्षिणप्रथमं॥ *विराजोदोहोसि पिराजो दो हमसीयमयिपायायै पिराजीदोहः॥१॥ इत्यनेनमंत्रणदक्षिणंपादंप्रक्षाल्या | For Private and Personal Use Only Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ततोयाममनेनेयमेदेमंत्रावृनिः॥पूर्ववद्वितीयोबिष्टरः॥इयांक्तविशेषोषिष्टरमुदगर्म चमोल त्यातस्योपरिपादीकरोति॥ ॐ व स्मीत्यनेनमंत्रण॥ ततोर्पयितुरर्पदानं॥ अर्पोडोऽर्थः प्रनिराह्यतां॥ॐ आपःस्थयुष्माभिःसर्वान्कामानवानवानीतिमंत्रेणोक्षात्यांप्रतिटण्हानि // ततोर्घशिरसाभिवंद्यप्रागुदग्यानिनयन्नभिमंत्रयते॥ ॐ समुद्रंयःपहिणोमिखायोनिमा भिगच्छन॥ अरिष्टास्माकंचीरामापरासेचिमत्पयः॥१॥ इत्यनेनमंत्रेणानिनयेत // आचमनीयमुदकमाचमनीयमुदकमाचमनीयंभतिगृह्यतां। अर्घ्यआचामति॥ॐ आमागन्यशसासर्ट सृजवर्चसा॥तम्माफुरुभियम्प्रजानामधिपतिम्पशूनामरिष्टिंता For Private and Personal Use Only Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | नूनाम् // 1 // इत्यनेनमंत्रण॥ नतोदिराचमनं ॥मधुपर्कोमधुपर्कीमधुपर्क:प्रतिगृह्य भास्कर तो॥ततोर्पयितुर्हस्ते स्थितंमधुपर्कमय॑ईक्षते॥ ॐ मित्रस्यलाचक्षुषाप्रतीक्षेइत्यने नमंत्रेण॥देवस्यखेतिप्रतिटण्हाति॥ ततोमधुपर्कपतित्यसव्येपाणीरुत्सापिधानंनि कास्य दक्षिणस्यानामिकयात्रिःप्रयोतिमधुपर्कविःप्रदक्षिणमालोडयति॥ ॐनमः श्यावास्यायानशनेयत्न आविइंततेनिष्फन्तामि॥१॥ इत्यनेनमंत्रणअनामिकांगु प्टेनचत्रिनिरूक्षयति॥ तस्यविःप्राभाति॥ ॐ यन्मधुनोमधव्यम्परम रूपमन्नाय | // 301 // म्॥तेना हम्मधुनोमधव्ये नपरमेणरूपेणान्नायेनपरमोमधव्योन्नादोसानि॥१॥ इत्य For Private and Personal Use Only Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नेनमंत्रणाभाति॥पुनरप्यनेनैवमंत्रणवारइयंउच्छिष्टमेवमाभानि।मधुपर्केचसोमो चनोच्छिष्टंइतिवचनान्॥मधुमतीगिर्वा प्रत्यूचंपुत्रायांतेयासिनेवोत्तरतऽ आसीनायोछिष्टंदद्यात्सर्वंवापानीयात्प्राग्वासंचरेनिनयेत्॥आचम्य॥प्राणान्संमृशति॥ॐवा नआस्येस्तु॥ इतिमुरकराग्रेणस्पृशेत्॥ ॐ नसोर्मेप्राणोस्त॥इतितर्जन्यंगुष्ठाग्यो नासारंध्रदयंस्पृशेत्॥ ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्त॥इतिअनामिकांगुष्ठात्यांच ईयंयुगप त्॥ॐकर्णयोर्मेश्रोत्रमस्त॥ इतिमध्यमांगुष्ठाभ्यांदक्षिणकर्ण ॥अनेनैववामकर्ण॥ ॐ बाव्होर्मेबलमस्त॥इतिकरायेणदक्षिणबाहुं ।एवं वामबाहुं॥ ॐ ऊर्यो में ओजोखा // For Private and Personal Use Only Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार ॥इतियुगपमेनोरू // ॐ अरिष्टानिमेशानितनूस्लवामेसहसंतु॥इनिशिर प्रति भास्कर // 30 // पादांतानिसल्गानितान्याहस्तायामालमते॥ अथगवालंपनं॥ यद्यपिसूत्रकारेणगवा लंभोनियमेनउक्तस्तथापिमधुपयशोवर्धनइतिस्मृत्यंतरबलात्याज्यएव ॥अतःक लियुगेउत्सर्गएय॥अथवातन्निष्क्रयद्रव्योत्सर्गः॥ तत्प्रयोगस्त ॥वरस्यसमीपेमौउद गयदर्भानास्तीय।दातावरहस्तेनिक्रयद्रव्यंदत्वा गोर्गोगैरितिपठेत्॥यरोद्रव्यंगृहीसामंत्रपठेत्। |॥ॐ मातारुद्राणान्दुहिनावसूनार्ट स्वसादित्यानाममृतस्यनाभिः॥ अनुवोचंचिकितु / / 302 // |पेजनायमागामनागामदितिवधिष्ठ।ममचासकशर्मणोयजमानस्यपामाहतः। ॐ // For Private and Personal Use Only Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie उत्सृजततृणान्यत्तितिब्रूयात्॥१॥ इत्यनेन वरःकुशोपरिद्रव्यमुत्सृजेत्।। ॐकार पांशुउत्सृजते त्यायुच्चैः। अबशिष्टाचारमाप्ताः के चनपदार्थाःलिरच्यते॥ ॐ सुचक्षा. इतिगंध। ॐ अनाधृष्टे त्यक्षताः। ॐ परिधास्येइत्यनेनपरिधानवस्त्रं // ॐ यज्ञोपवी नं• इतियज्ञोपवीतं॥ आचम्य॥ ॐ यशसामेत्युत्तरीयं॥ ॐया आहारज्ज- इति| पुष्पमालामहणं॥अथावबभीत। यद्यशोप्सर इतिमंबेण॥ अथालंकारं॥ॐ // लंकरण• इतिपथमंदक्षिणकर्णे॥ ततोनेनैववामे॥ब्राह्मणेत्योभूयसींदत्वा॥राशियो| रहीत्वादाताअननमधुपर्कार्चनेनश्रीलक्ष्मीनारायणःप्रीयतांइतिजलमुत्सृजेत्॥॥ For Private and Personal Use Only Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie // 30 // संन्कार उनिसंस्कारभास्करेमधुपर्कप्रयोगः॥ ॥ननोचरोविवाहवेद्यांगत्वाशनासने उपविश्या भाका | आचम्यमाणानायम्यदेशकालोस्मृत्वा॥एवंगुण तिथोधर्मार्थकाममजासिध्यर्थंदारप ॥रियहणनिमित्नंअमिस्थापनकरिष्ये॥हरिद्राचूर्णनिर्मितेअरनिमात्रस्थंडिलेपंचामूसं काराकखायोजक नामागेःस्थापनापश्चादमेस्तेजन्या: वधूपादनिवेशनार्थस्थापन। तेजनीतृणपूलिका॥अवदेशाचारतोव्यवस्था॥ दाक्षिणात्यानामाचारादिदमपिकर्तव्यं ॥पतिपुत्रान्वितसुमंगलीस्त्रियावामहस्तेपयःपूरिनपाबंधृत्वादक्षिणेनशर्करांसंगृह्यसुसहर्ने // 303 / / ओप्रतिष्ठेतिशब्दसमयेपयःपात्रेग्रहीतशर्करापक्षिष्या। तथैवान्यसागस्त्रियामंगलप For Private and Personal Use Only Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie यसावधानसमयेवधूवरमस्तके मंगलाक्षताः समपाइतिशिष्टाचारः॥अमिस्थापनोत्तरं / / रहमध्येगत्वापाड्युरींकन्यामवस्थाप्यप्रत्यङ्मुरयोवरस्तिष्ठेत्॥वधूवरांतराले अविधुर सटसदृतयः पुरुषाउदग्दशमंतःपटंधारयेयुः॥तबदैवज्ञामंगलस्मृतीनांपठनंकु मुः॥विंशोपका उच्चारणीयाः॥सुमुहूर्ने प्रतिष्ठइत्युच्चैः शब्दकुर्युः // अवावसरेच धूवरकरालंभेवधूः करधृतपुष्पयथितवरणमालांवरकंठेसमर्पयेत्॥ उदक्संस्थं धृतांतःपटनिःसरणंकार्य॥ ततोवरः प्राङ्मुरवउपविश्यकन्यांप्रत्यङ्मुरवीसुपवेश येत्॥ननआचार्यादिदिजगणः प्रतिष्ठामंत्रब्राह्मणंपठेत्॥ ॐ मनौजूतिर्जुष For Private and Personal Use Only Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 34 // संस्कार तामा०॥१॥ ब्राह्मणं॥ॐ मनोजूतिर्जुष०॥१॥ एषवैप्रमूर्नाम०॥१॥एपधिमूर्नाम॥ भास्कर // 2 // एषवेव्यष्टिर्नाम०॥३॥एषवैचिधृतिर्ना०॥४॥ एषवैव्यागृति म०॥५॥एषवाडऊ जस्चान्ना // 6 // एषवैपयुस्चान्ना०॥७॥ एषब्रह्मवर्चसी०॥८॥एष अतिव्याधीन ॥९॥एपदीर्घानाम // 10 // एपचेक्लमिर्नामः॥११॥ एषवैपतिष्ठाना // 12 // ॐ प्रति ठासप्रतिष्टितमस्त॥दंपत्योरविच्छिन्नाप्रीतिरस्त॥ ततोवरोवध्वैपरिधानार्थवासोदद्यात् // कुमार्यावासः परिधानं॥ ॐ जराङ्गच्छपरिधत्स्ववासोमवारुष्टीनामभिः // 30 // शस्तिपावा॥ शनन्यजीवशरदः सवारयिंचपुत्रानतुसंव्ययस्वायुष्मतीदम्परिधत्स्य / For Private and Personal Use Only Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie वासः॥१॥ इतिमंत्रपाठोवरस्य॥अयोनीयवासोवरः कन्यायैसमर्पयतिमंत्रमु त्वाताप / / रिधापयति // ॐ या अरुन्नन्नवयं या अनन्वत॥ याश्यादेवीस्मन्नूनमिनोनतन्य। तास्त्वादेवीर्जरसे संव्यय स्वायुष्मनीदम्परिधत्स्ववासः॥१॥ ततःकन्यापितावधूवरयोः परस्परंसमंजेथामितिप्रेषदद्यात्॥समंजनंसन्मुखीकरणं॥ ॐ समन्जन्तुविश्वेदे वाःसमापोहृदयानिनौ ॥सम्मातरिश्वासन्धातासमुदेष्ट्रीदधातुनौ॥१॥ सन्मुखीभूतोय रोमंत्र: पठति॥ततआचारमाप्तंमांगल्यतंतुबंधनंकण्ठे ॥नत्रमंत्रः॥ मांगल्यतंतुना नेनममजीयन हेतुना॥कंठेबध्नामिरुभगेसंजीवशरदां शतं॥१॥ ॐ यदौबभन्दा For Private and Personal Use Only Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार क्षायणाहिरण्यर्ट शतानीकायसमनस्याना // तन्म: आवनामित शारदायाय भास्कर माजरदष्टियथासम्॥ इतिमंचंवरः पठनि॥ ॥ततोद्विजाःपरित्वागिर्वणोगिर इत्य नुवाकेनजुषाणोऽ अप्तुराज्यस्यचेतुस्वाहेत्यंतेनवधूवरावविच्छिन्नचतुर्विंशतिनंतु | भिर्दिगुणीलतसूत्रेणययाचारंवेष्टयेयुः॥ अयंदेशाचारः॥ तच्चवधूद क्षणस्कंधमाराय उभयोः स्कंधेपंचवारंकदिप्रदेशेसप्तवारंवेष्टयेदिति॥ तत्रमंत्राः॥ ॐपरित्वागिणोगि रैमाभवन्तुविश्व // वृद्धासुमनुवृद्धयोजुष्ठाभवन्तुष्टय // 1 // इन्द्रस्य॒स्यूसीन्द्र // 35 // |स्यध्रुवोसि॥ऐन्द्रमसिधैश्वदेवमंसि॥२॥विभूरसिप्रवाहणो घन्हिरसि हव्यवाहनः॥ // For Private and Personal Use Only Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मोमप्रचैतास्तुथोसिधिश्वदा उशिर्गसि॥३॥शिर्गसिकृविरसारिरसिबभौ | रितस्यूरसिदुवस्वान्झुन्थ्यूरसिमार्जालीयह सम्याउंसिलशान परिषधोसिपर्वमा नोनभौसियतकासृष्टोसिंहव्यसूदन तामासिज्योति समुद्रोसि॥४॥समुद्रोसिधि श्वयचा अजोस्पेकपादहिरसिबुभ्योचार्गस्येन्द्रमसिसदोस्कृतस्यद्वारोमामासन्तीप्तमध्ये नामध्यपत्तेप्रमातिरस्वृस्ति मेस्मिन्पथिदेवयाने मूयान्मित्रस्यमा॥ 5 // मित्रस्यमा चहूंपेक्षाध्यममय सगराः सर्गरास्थसगरेणनाम्नारोद्रेणानीकेनपातामयापिष्ट तमामयोगोपायतमानाचोस्त मााहिः सिष्ट॥ ॥ज्योतिरसिधिश्वरूपम्बिर्धेषा For Private and Personal Use Only Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार, न्देवानाद समित्॥वर्ट सौमतनूरुयोद्देषोपयोन्यरुतेश्य उरुयन्तासिधरूथ स्ना भास्कर // 306 // होजुषाणोअप्तुराज्यस्यबेतुस्वाहा॥७॥ // अथकन्यादानसंकल्पः॥ ॥ततो दातास्वदक्षिणेपल्यासहवधूवरपाश्चमागे शप्पासनेउदङ्मुखउपविश्याचम्यमाणानायम्य देशकालोस्मृखा॥ एवंगुणविशेषणविशिष्टायांशापुण्यतिथोअस्मिन्पुण्याहेअस्याःकन्यायाः अनेनवरेणधर्मप्रजयाउप्पयोः वंशयोःवंशवृध्यर्थतथाचममसमस्तपितृणानिर निशयानंदब्रह्मलोकायाप्त्यादिकन्यादानकल्पोक्तफलावाप्तयेअनेनवरेणअस्यांकन्यायो // 306 // |उत्पादयिष्यमाणसंतत्यादशपूर्वान्दशापरान्मांचएकविंशतिपुरुषानुवर्तुंब्राह्मविवाह For Private and Personal Use Only Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie विधिनाश्रीलक्ष्मीनारायणप्रीतयेकन्यादानमहंकरिष्ये॥ ततोवर हस्तेस पोक्षितादिक | रणं॥शिवाआप:संवित्यादिवचनप्रतिवचने॥शिवाआप:संतु॥संतुशियाआपः॥सो मनस्यमस्त ॥अस्तसौमनस्य॥अक्षतंचारिष्टंचास्त॥अस्वक्षतमरिष्टंच॥ अवाःपातु सपोक्षितमस्त ॥गंधाःपातु॥सोमंगल्यंचास्त॥ अक्षताःपांतु॥ आयुष्यमस्त॥पुष्पंपा तुसौश्रियमस्त॥ यत्पापंरोगंअशांअकल्याणंतह्रेप्रतिहतमस्त॥ ततोवरस्यगोत्रीचारः॥ अमुकसगोत्रस्य अमुक प्रवरस्यअमुकर्मण: प्रपौवाय॥अमुकसगोवस्य मुकप्रवरस्यअमुक शर्मण-पोवायाय॥ असकसगोत्रस्यअमुकप्रवरस्यअमुक शर्मणः For Private and Personal Use Only Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार // 307 // पुत्रायअमुकर्मणेश्रीधररूपिणेवराय॥तनकन्यायाश्चगोत्रोच्चारः॥अमुकसणीव || |भास्कर स्यअसकपवरस्यअमुक शर्मणःप्रपौवीं॥असुकसगोत्रस्यअमुकप्रवरस्थअमुकशमणः पौवीं॥ अमुकसगोत्रस्यअमुकमवरस्यअमुकशर्मण: पुत्रीं॥ अमुकीनाम्मीश्रीरूपिणी कन्या॥ इत्येकःपर्यायः॥एवमेवपुनःपर्याय इयमुका।।पुनः अमुक सगोत्रोत्पन्नाया मुकपवरान्वितायक्लयजुर्वेदांतर्गतमाध्यंदिनीयशारवाध्यायिनेअमुक शर्मणेश्रीध ररूपिणेवराय॥ असकसगोत्रोत्पन्नांअमुक प्रवरान्वितांअमुकीनाम्मीश्रीरूपिणीइमां | // 307 // कन्यायथाशक्त्यलंकतांउपकल्पितोपस्कारसहिताप्रजापतिदैवत्यांपुराणोक्तशतगुणीक For Private and Personal Use Only Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तज्योतिष्टोमात्रिरात्रफलमाप्तिकामःप्रजोत्पादनार्थभार्यात्वेनतुभ्यमहसंप्रददे॥ इत्यु स्वासकुशजलंकन्यादक्षिणहस्तंवरदक्षिणहस्तेदद्यात्॥वरः प्रतिटण्हातितांकन्यां॥ॐ योस्त्वाददातुपृथिवीत्यापतिराहातु॥ इत्यनेनमंत्रेण।रुतैतकन्यादानप्रतिष्ठासिध्यर्थंइ मायथाशक्तिस्वर्णमयींदक्षिणांतुझ्यमहंसंपददे॥ नमम॥ स्वस्तीनियरोव्यात्॥ ततोदाता भाजनगोधदासीमहिषीगजाश्ववाहनरहशय्यावस्मालंकारादियथाविभवंसंकल्पपूर्व कंदयात्॥ तत्रगोदानमंत्रः॥यज्ञसाधनभूतायाविश्वस्याघीघनाशिनी // विश्वरूप धरादेवःप्रीयतामनयागवा॥१॥हिरण्यगर्भसंभूतंसौवर्णचांगुलीयकं ॥सर्वप्रदंप्रय For Private and Personal Use Only Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार सामिप्रीणानुकमलापनिः॥ इत्यंगुलीयकस्य॥क्षीरोदमथने पूर्वमुत्सृतकुंडलइय।वि भास्कर // 30 // यासहसमुद्भूतंददे प्री:प्रीयतामिति॥कुंडलयोः॥कांचनंहसवलयंरूपकातिसरवपदं॥वि भूषणेमदास्यामिविषयतुतेसदेतिवलययो।परापवादपेशून्यादाक्षस्यचभक्षणात्।उ सन्नपापंदानेनतायपात्रस्यनश्यत॥इतिताबजलपात्रस्य॥यानिपापानिकाम्यानिका |मोत्थानिकतानिच॥कांस्यपात्रप्रदानेनतानिनश्यं तुमसदा॥इतिभोजनार्थकांस्यपात्रस्य ॥अगम्यागमनचैवपरदाराभिमनि।रौप्यपात्रपदानेनतानिनश्यंतुमेसदेतिजलार्थस्यमो | // 38 // जनार्थस्यचरौप्यपात्रस्यापूरितंपूगपूगेननागवल्लीदलान्वित।पूणेनचूर्णपात्रेणकर्पूर For Private and Personal Use Only Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पिष्टकेनच॥ सपूगखंडनंदिव्यंगंधर्वाप्सरसांप्रियं॥ ददेदेवनिराकंवत्प्रसादात्कुरुष्प |मामिति॥तोबूलस्य॥दीपस्तमोनाशयतिदीप:कातिप्रयच्छति॥ तस्माद्दीपप्रदानेनममवं शप्रवर्धनं। इतिदीपस्य॥एवंदासीमहिषीगजाश्वभूमिस्वर्णपात्रपुस्तकशय्याटहरजतवृष भानादानमंत्राः कौस्तुभेदृष्टव्याः॥ ॥नतःकन्यापितापति॥ यस्त्वयाधर्मश्चरितव्य सो नयासह॥धर्मेचार्थेचकामेचत्ययेयनातिचरितव्या॥नातिचरामीनिवरोवदेत्॥कोदादितिकामरकर्तिपठेत्॥ ॐ कौदाकस्माड अदाकामौदात्कामायादात्॥कामौदाताका महपतिग्रहीताकामैतत्ते॥१॥ अथवदन्यद्ददानिकामेनैवतद्ददानीदंम्मेय्यपुत्रासदि / For Private and Personal Use Only Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | नित्य त्येनिकोदाक़स्माऽ अदाकामोदारकामायादात्॥कामोदानाकाम:प्रतिग्रहीता || भास्कर // 30 // कामेतत्ते॥१॥एवंयस्त्वयेत्यादिकामस्ततिःपुनर्हिरुक्तव्या॥अत्रवैदिकाःसयःकामयेतत्रा ह्मणंपठित्यादेपत्तीप्यासवर्णाभिषेकंकुर्युः॥ अवब्राह्मणेअमयेस्वाहेत्यादिहवनपरपदंनि दिष्टंपरंसंयमवनयतीतिरुवर्णरेताअनिःस्वर्णष्टीवीतितन्मथेनसवर्णसंस्त्रवतीति सिई॥ // ॐ सय कामयेतमहामुयामित्युदगयनऽ आपूर्वमाणपक्षेपुण्यहाद शाहमुपसवृत्तीभूत्वौदुम्बरेकर्ट सेचमसेवासर्वोषधम्फलानीतिसम्मृत्यपरिससुयपरि | // 309 // लिप्यामिमुपसमाधायावृाज्य सँस्कृत्यपुर्ट सानक्षत्रेणमन्थर्ट सुन्नीयजुहोति॥१॥ || For Private and Personal Use Only Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir | यावन्तोदेवास्वृथिजातवेदः॥तिर्घञ्चो मन्तिपुरुषस्यकामान् ॥तेभ्योहुम्भागधेयनुहो || मितेमातृप्ताःकामेस्तुपयन्तुस्वाहा॥२॥ यातिरश्चीनियसे।। अहंविधरणीऽइति॥नान्त्या घृतस्यधारयायजेसर्ट राधनीमहः स्वाहा॥प्रजापतेनबदेतान्यन्य इतितृतीयाज्जुहोनि) || // 3 // ज्येष्ठायस्वाहाश्रेष्ठायस्वाहेति // अमोहुत्यामृन्थेस स्रवमयनयनिाणायस्वाहासिष्टा यैस्वाहेत्यमोहत्सामन्थेसः स्त्रवमयनयतिवाचेस्चूहाप्रतिष्ठार्यवाहे त्यमोहलामृन्थेसः स्त्र विमवनयतिचक्षुषेस्वाहासम्प॒दे स्वाहेत्यमोहखामुन्थेस स्त्रवमृवनयति श्रोत्रायस्वाहायना नायस्वाहेत्यमोहुसामुन्थेसट स्वयमृगनयतिमनसेस्वाहाप्रजात्येस्वाहेत्यमोहुखामुन्थेसर्ट For Private and Personal Use Only Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार स्वयमुवनयतिरेनसेस्वाहेत्यमोहुसामुन्थेसर्ट समवनयति॥५॥ाथस्साहेति ॥अमोहा | भास्कर // 31 // सामन्येस स्वमवनयतिषिष्यतेस्वाहेत्यमोहुत्यामुन्थेस मवमवनयतिचिन्यायस्वाह त्यमोहुत्वामन्येसः स्त्रवमयनयनिसर्चायस्चाहे त्यमोहत्सामुन्थेस स्वयमवनयति॥५॥ थिव्येस्वाहेति॥ अमोहुसामुन्थेसर्ट स्वमवनयत्यन्तरिक्षायस्वाहेत्यमोहुत्वामुन्थेस स्वयम वनयतिदिवेस्वाहेत्यमोहत्यामन्थेस स्वमवनयतिदिग्न्यः स्वाहेत्यमोहुवामृन्थेसर्ट स्त्रयम्। वनयनिब्रह्मणेस्वाहेत्समो हुलामन्थेसर्द रवमवनयतिक्षत्रायस्वाहेत्यमोहुसामन्थेस / // 310 / / सवमवनयति // 6 // : स्वाहेत्यमोहुसामन्थेसर्ट-सवमवनयतिवःस्वाहेत्यमोहुसामन्ये // For Private and Personal Use Only Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ||सई स्त्रवमयनयनिय स्वाहेत्यमोहुत्यामृन्थेसर्ट सवमयनयतिपूर्णीय स्थ: स्वाहेत्यमोहत्या मन्येसर्ट यमुवनयति॥७॥ अमृयेस्वाहेति। अगौहत्यामन्येस स्वमवनयनिोमाय स्वाहेत्यमोहुत्यामृन्थेस स्वयमृवनयतितेजसेवाहेत्यमोहुसामुन्थेस स्त्रवमयनयतिथि यैस्वाहेत्यगो हुत्यामृन्थेसर्ट सचमुवनयतिलक्ष्म्यै स्वाहेत्यमोहुत्यामन्थेसर्ट म्ययमचनयनिसा चित्रेस्वाहेत्यमोहुलामन्थेसट स्वयमवनयतिसरस्वत्यै स्वाहेत्यमोहुलामन्थेम त्रयमयनयनि विश्वेयोदेवेश्यह स्वाहेत्यमोहुसामुन्थेसई-स्त्रयमवनयतिप्रजापतयेस्वाहेत्यमोहत्वामृन्येन द खवमृवनयनि॥८॥ अथैनमभिमशति॥ मसिज्वलदसि पूर्णमसिपलब्धूमस्येकसममा For Private and Personal Use Only Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 311 // संस्कार , सिहिङ्क तमसिहिट्रियमाणमस्युद्गीथमस्युगीयमानमसिावितमसि त्याथायितुमस्या | भास्कर |सन्दीप्तमसिधिसूरसिप्रारसिज्योनिरस्य॒न्नमसिनिधनमसिसँवर्गोसीति॥९॥ अयैनम || द्यच्छनि॥आमोस्याम हितेमयि॥सहिराजेशानोधिपति समाराजेशानोधिपतिङ्करोत्यि ति॥१०॥ अथैनमाचामुनि॥ तत्सवितुर्बुरेण्यंमधुघाताऽकायतेमधुक्षरन्तिसन्धयः ॥माध्वी सन्षधी भूः स्] हा॥११॥ मुर्गोदेवस्यधीमहि।मधुनुक्तसुतोषसोमधुमाथि वर्ट रज॥मधुयोरस्तुन पितामुक स्वाहा॥१२॥धियोयोन पचोदयात्।। मधुमान्नोचना | // 31 // स्मृतिर्मधुमा 2 // अस्तुसूर्यः॥माधीर्गाचोभयन्तुनः // स्वःस्वाहेनिसर्याश्च सावित्रीमन्याहस् // For Private and Personal Use Only Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir श्चिमधुमती सर्वाश्चाहतीरहमेवेदर्द सर्वमभूयासममूर्तुवस्वःस्वाहेत्यन्तनु आचम्या प्रक्षाल्याणीजघनेनामिम्पाशिराः सृपिशति॥१३॥मातरादित्युमुपतिष्ठने दिशामेरपुण्डा |रीकमस्यहम्मनुष्याणामेकपुण्डरीकम्भूयासमितियथेतमेसजघनेनामिमासीनोबर्ट राजपति ॥१४॥तुर्द-हेतृमुद्दालक आरुणिजिसनेयाययाज्ञवल्क्यायान्तेवासन उत्कोवा-चापियर नर्द- शुष्केस्थाणौनिषिच्चेज्जायेरञ्ारवाःमरोहेयुः पलाशानीति॥१५॥ एतमुहैबचाजसा नियोयाज्ञवल्क्यो॥मधुकायपेड़ यान्तेवासिन उत्कोवाचापिथएन-शुफेस्थाणौनिषिञ्चे ज्जायेरच्या प्ररोहेयु-पलाशानीनि॥१६॥ एनुमुहैयमधुक पैड शूडायभागपित्तये / For Private and Personal Use Only Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir // 32 // संस्कार | नेवासिन: उपलोवाचापिथएन-शुष्फेस्थाणोनिषिञ्चेज्जायेरच्यरवा परोहे युद्ध पलाशा जाफर नीति॥१७॥ एतमुहैयचूडोमागवित्तिः // र्जानकय आयस्थूणायात्तेपासनात्कोवाचापि युएन शुष्फेस्थाणोनिषि सेज्जायेर गुरखा प्ररोहेसु पलाशानीति॥१८॥एतसहवाना किरायस्थूणः ॥सत्यकामाय जाबालायान्तेवासिनः उत्कोवाचापियएन कृष्फेस्थाणौनिधिञ्चेज्जायेरञ्ारवा परोहेयु पलाशानीति॥१९॥ एतमुहैवहत्यकामोजा, बालोन्तेवास यउत्कोवाचापियएनः शुष्केस्थाणोनिषिञ्चेज्जायेरच्छारयाइ मुरोहे // 212|| // पलाशानीतिनमेनन्नापुत्रायानन्तेवासिनेवाचूयात्॥२०॥चतुरोदुम्वरोभवत्यौ / For Private and Personal Use Only Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दुम्बरश्चमस औदुम्बरह मुबई औदुम्बर इध्मोदुम्बर्या उपमुन्थिन्यौ॥२१॥ दशमा म्याणिान्यानि भवन्ति ॥ीहियवास्तिलमाषा अणुपियङ्गोगोधूमाश्चमसूराश्चरख ल्पश्चस्वलकुलाश्चान्सार्धम्पिष्ट्वादधामधुनाघृतेनोपसिञ्चत्याज्यस्यजहोति॥२२॥ सर्वेषाँवा एषवे.॥१ // कांड 14 प्र. 7 बा.५ सवर्णाभिषेकोस्त॥ ततोदातावरंपा र्थयेत्॥कन्येममायतोभूयाःकन्ये मेदेविपार्श्वयोः॥ कन्येमेपृष्टतो भूयास्त्वद्दानान्मो क्षमामुयाम्॥१॥कन्यालक्षणसंपन्नांकनका भरणैर्युती॥ दास्यामिब्रह्मणेनुभ्यंब्रह्मलोक ||जिगीयया॥२॥पृथिव्यादिमहद्भूताःसाक्षिणःसर्वदेवताः॥ इमांकन्यांप्रदास्यामिपितॄणां / / For Private and Personal Use Only Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नाय .... नारणायच॥३॥ममवंशकुले जातापोषितावत्सराष्टकं // तव विषमयादत्तापुत्रपौत्रप्रवाईनी भास्कर // 3131 // 4 // इमांकन्यांशमांविषयथाशक्तिविभूषितां॥गोत्रायशर्मणे तुझ्यदत्तांविप्रसमाश्रय॥५॥ // इतिप्रार्थ्य।। अबचतुर्थश्लोकस्यद्वितीययादेयथाकन्यावयोब्दास्तथैवोच्चारणीयंपोषित तानववर्षकंदशवर्षकमिति॥ ब्राह्मणेश्योगंधतांबूलंभूयसींदक्षिणांचदत्वा॥तैराशिपोर हीत्वा॥ यथाशक्तिब्राह्मणोजनसंकल्पः॥अनेनकन्यादानारव्येनकर्मणाश्रीलक्ष्मीनाराय ण:प्रीयता॥ इतिकन्यादानविधिः॥ अथाचारप्राप्तगणपनिपूजनंककणबंधनंअक्षतारोपणं // 13 // ||आमसिंचनमपिचकार्य॥ ततोवरःदेशकालकीर्तनातेममचवध्वाः बव्हायुष्यप्राप्त्यर्थगणपतिः // For Private and Personal Use Only Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूजनंकंकणबंधनं अक्षतारोपणं आमसिंचनंचकरिष्ये॥ गणानांत्वेतिमंवेणगणपतिंसंपू ज्या कंकणप्रकारः॥वधूवरयोःपरित्वेत्यनुवाकेनवेष्टितान्कंटदेशस्थान्सूत्रतंतूनधो निष्कास्यत्रिवलीकृत्यकुंकुमाक्तान् कृत्वातेषुऊर्णायुतवृद्धिहरिद्राखंडंबध्यातकंकणंवधू वामहस्तेयदाबभनिनिमंत्रणबरोबधीयान्॥ कटिप्रदशस्थांतूनूर्धनिष्कास्यतादृशक कर्णरुत्वातेनैवमंत्रणवरदक्षिणहस्तेवधूर्बभीयात्॥अक्षन्नमीनिमंत्रणवधूवरयोःपरस्परं अक्षतारोपणं।वध्यावसोः पविवेत्यापसिंचन। पित्रामनामादायगृहीत्वानिश्रामति॥त तोवरःपित्राजनकेनपत्तासंकल्प्यदत्ताच आदायप्रतिग्रहविधिनाप्रतिगृहीत्यापश्चात्तां For Private and Personal Use Only Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गृहीसाहस्तेधृत्वानिष्फ्रामतिगृहमध्यान्मंडपेअमिसमीपंगच्छेदित्यर्थः // ॐ यदैषिम भास्कर // 31 // नसादूरंदिशोनुपवमानोवा। हिरण्यपर्णो बैकर्णःसलामन्मनसांकरोतुअमुकीतियधूनामा यहणमंत्रपागेवरस्यानिक्रमणप्रारतिएकः पुरुषउदकुंभ स्कंधेकत्वादक्षिणतोमेर्याग्यनःस्थिनोभवतिउत्तरतोवाअभिषेकपर्यंत॥अथैनौसमीक्षयनिकन्यापितापरस्परंसमी क्षेथामिनिमेषेण।। ॐ अघोरचक्षुरपतिभ्येधिशिवापशुपयः समना: सवर्चाः॥ वीरसद वकामास्योनाशन्नोभवद्विपदेशचतुष्पदे।।सोमःप्रथमोषिविदेगंधर्वोषिविद उत्तरः॥ | // 31 // तीयोमिष्टेपतिस्तुरीयस्तेमनुष्यजः॥सोमोददगन्धर्षायगन्धर्वोदव्दमय। रयिञ्चपुत्रांश्वा / //// For Private and Personal Use Only Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दादमिर्मह्यमथोऽइमां॥सानःपूषाशियतमामेरयसान ऊरू 7 उशतीविहर॥यस्या मुशंतःप्रहरामशेफंयस्यामुकामावहयोनिविष्टयै॥१॥ इत्यंतंवरस्यमंत्रपाठः॥इत्ये तस्यमंत्रस्यांतेवेदीसन्निधौपरस्परमुपायोनिरीक्षणं॥ततोवधूवरीप्रदक्षिणममिंपर्या णीयेके पश्चादमेस्ते जनीं कटवादक्षिणपादेनप्रवृत्योपविशति॥ तनोदक्षिणतोब्रह्मा सनादिपावासादनेरुखानावचरः॥पात्रासादनानंतरंउपकल्पनीयानि॥शमीपलाशमि श्रालाजाः॥अश्मा॥ लोहितमानडुहंचमतदनावेबर्हिषः।कुमार्याघाता। भूप॥ दृटपुरुषः // उदकुंभः॥आचार्यायवरद्रव्यमिति।पवित्रच्छेदनादिपर्युक्षणांतेआधारावाज्यभान For Private and Personal Use Only Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गौचजुहुया त्॥ तद्यथा।मनसा॥ॐ प्रजापतयेस्वाहा॥ इदंप्रजा इन्द्रायस्वाहाइ भास्कर ||दमिंद्रा॥ॐ अगयेस्वा- इदम // ॐ सोमायस्वा इदंसो०॥ अथावरायाःपायश्विनाथा) हुतयः॥ॐ भू.स्वाहाइदम // ॐ भुवःस्वा. इदेवाय॥ ॐ स्वः स्वाहा इदंसूर्या // ॐ सन्नौ अमे॥ इदमग्रीवः॥ ॐ सत्वन्नौ अमे०॥ इदमनीव०॥ ॐ अयाश्चाने इदममयेअय से॥ ॐ येतेशतं इदेव सवि०मरु स्व यः॥ ॐ उद्दुत्तमं०॥ इदंवरुणायादित्या यादि ॥इदंसर्वप्रायश्चित्तारव्यं॥ // अथराष्ट्रासहोमः॥ ॐऋतापाडूतथामामिर्गन्ध | // 315 // / बसनऽ इदम्ब्रह्मक्षत्रम्पौतृतस्मैस्वाहावाट् // इदमृतासाहेकतधाम्ने अमयेगन्धर्वाय / For Private and Personal Use Only Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नमम॥ ॐ कतापातामामिर्गन्धर्वस्तस्यौषधयोप्सरसोमुदीनामताभ्यः स्वाहा॥ इदा मोषधीयोप्सरोयोमुझ्योनमम।। ॐ सर्ट हितोधियामासूर्योगन्धर्वः स इदम्ब्रह्मता बम्पातु तस्मैस्वाहावाट्॥इदंसर्द-हितायविश्वसाम्ने सूर्यायगन्धर्वायन०॥ ॐ सर्द हिना विश्वसामासूर्योगन्धर्चस्तस्य॒मरीचयोप्सरस आयोनामताभ्यः स्वाहा।।इदंमरीचियो प्सरोभ्यआयुयोन०॥ ॐ सषुम्णः सूर्यरश्मिअन्द्रमौगन्धर्वः सनड्दम्ब्रह्मक्षत्रपौतु नस् स्वाहावाद्।।इदंसुषुम्णायसूर्यरश्मयेचन्द्रमसेगन्धर्वायन०॥ ॐ सुषुम्णः सूर्यर |श्मिश्चन्द्रमौगन्धर्वस्तस्य॒नक्षत्राण्यप्सरसौभेकुरैयोनामताभ्यः स्वाहा॥ इदंनक्षवेयोप्स For Private and Personal Use Only Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भ्यो कुरिभ्योन // ॐ इपिरोचिश्वयाचातौगन्धर्चः सन इदम्ब्रह्मसूत्रपातुत्तस्म॒स्या भास्कर // 16 // हाचा॥इदमिषिरायविश्वव्यचसेवातायगन्धर्वायन०॥ॐ पिरोविश्वव्यचाचाौग न्धर्वस्तस्यापोप्सरसऽ ऊोनामताभ्यः स्वाहा॥ इदमयोप्सरोयड उगर्योनमः // ॐ ज्युः सुपर्णायज्ञोगन्धर्वःसने दम्ब्रह्मक्षत्रम्पातुतस्मै स्वाहा वाद्॥ इदंफ्युज्यवेरूप ययज्ञायगन्धर्वायन०॥ ॐ ज्युसुपर्णायज्ञोगेन्धुर्वस्तस्यदक्षिणाअफरसस्तावानाम ताभ्यः स्वाहा। इदंदक्षिणायोप्सरोझ्यस्तावाश्योन०॥ ॐ प्र॒जाप॑तिर्विश्वकर्मामनौगन्ध // 16 // विःसनइदम्ब्रह्मसूत्रम्पानुनस् स्याहाब्वाइ // इदंप्रजापतयेविश्वकर्मणेमनसेगन्धर्वायन / For Private and Personal Use Only Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir || ॐ प्रजापनिर्बिश्वकर्मामनौगन्धर्वस्तस्यऋक्सामान्यप्सरसाएष्ठयोनामनाभ्यःस्वा॥इट || मुक्सामेभ्योप्सरोभ्याएष्टिायोनमम॥ // अथजयाहीमः॥ ॐचित्तंचस्वाहाइदंचित्ता यनः॥ ॐ चित्तिश्चस्वा इदंचित्यैन०॥ ॐ आकूनंचस्वा. इदंआकूताय ॥ॐआ कूतिश्चस्वाहा।।इदंआकृत्येन // ॐविज्ञानंचस्वा इदंविज्ञातायन०॥विज्ञानिश्चस्वा इदं विज्ञात्येन ॥ॐ मनश्वस्था. इदंमनसे॥ ॐ शकर्यअस्था. इदंशक्करीयोनः॥ ॐदर्श श्वस्वा इदंदर्शायः॥ ॐ पौर्णमासंचवा इदंपौर्णमासायनः // ॐ बृहच्चस्था इदंबृह | तेन // ॐ रथंतरंचस्वा इदंरयंतरा०॥ ॐप्रजापतिर्जयानिन्द्रायवृष्णेप्रायच्छदुग्रस्त For Private and Personal Use Only Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नाजयेषु॥ तस्मेषिश:समनमन्तः सर्वाःसऽउयःसः इहव्योबभूवस्वाहा॥ इदंप्रजापतयेजया भास्कर // 317 // निन्द्रायनम०॥ ॥अथाभ्यातानहोमः॥ॐ अमितानामधिपतिः समायत्तस्मिन्ब्रह्मण्यस्मि क्षत्रेस्यामाशिष्यस्याम्पुरोधायामस्मिन्कर्मण्यस्यान्देवहूत्या स्वाहा॥ इदममयेमूना नामधिपतयेनमम॥ एवमायातानहीमे प्रत्याहुतीसमावसस्मिन्नित्यारण्यसर्वत्रसमान॥ॐ इन्द्रोज्येष्ठानामधिपतिः समावत्वस्मिन्ब्रह्मण्यस्मिन्क्षत्रेस्यामाशिष्यस्याम्पुरोधायामम्मि कर्मण्यस्यान्देवहूत्यार्ट स्वाहा॥ इदमिन्द्रायज्येष्ठानामधिपतयेन॥ॐ यम:पृथिव्या // 25 // |अधिपतिः समाव० स्वाहा॥ इदंयमायपृथिव्याअधिप नयेन॥ दक्षिणस्यांअन्यपात्र / For Private and Personal Use Only Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir निधायनन्मध्येत्यागः॥ ॥णीतोदकोपस्पर्शः॥ॐवायुरन्तरिक्षस्याधिपतिःस स्वाहा।इदंवा यवेन्तरिक्षस्याधिपतयेन०॥ॐसूर्योदियोधिपतिःसमा स्वाहा॥इदंसूर्यायदिवोधिपतयेन०॥ ॥ॐ चन्द्रमानक्षत्राणामधिपतिःसमा स्वाहा।इदंचन्द्रमसेनक्षत्राणामधिपतयेन॥ॐ बृहस्य निर्ब्रह्मणोधिपतिःसमा स्वाहा।।इदंबृहस्पतयेब्रह्मणोधिपतयेन०॥ ॐमित्रःसत्यानामधिपतिः समा स्वाहा॥इदंमिवायसत्यानामधिपतये न०॥ॐ वरुणोपामधिपतिःसमा स्वाहा।। इदंबरु णायापामधिपतयेन०॥ ॐ समुद्रः स्रोत्यानामधिपतिःसमा स्वाहा॥ इदंसमुद्रायत्रोत्याना मधिपतयेन०॥ॐ अन्न सामाज्यानामधिपतिसमा० स्वाहा। इदमन्नाय साम्राज्या For Private and Personal Use Only Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार // 318 // नामधिपतिनेन // ॐ सोमओषधीनामधिपनि:ममा स्वाहा॥ इदं सोमायौषधीनामधि भास्कर पतयेन०॥ ॐ सविताप्रसवानामधिपतिः स स्वाहा॥इदंसवित्रेप्रसवानामधिपनयेन। ॐ रुद्रापशूनामधिपनिःसमा स्वाहा॥इदंरुद्रायपथूनामधिपनयेन०॥ऐशान्यांअन्य पात्रंनिधायनन्मध्येत्यागः॥उदकोपस्पर्शः॥ ॐ त्वष्टारूपाणामधिपतिःसमा स्वाहा।। इदेख ट्ररूपाणामधिपतयेन // ॐ विष्णुःपर्वतानामधिपनिःसमा स्वाहाइदंविष्णवेपर्वतानामधिप नयेन०॥ ॐमरुतोगणानामधिपतयःसमा०स्वाहा॥इदंमरु-योगणानामधिपतिभ्योनाॐ // 18 // पितरः पितामहाःपरेवरेततास्ततामहाः॥ इहमावत्वस्मिन्ब्रह्म स्वाहा।। इदंपितृभ्यः पिता For Private and Personal Use Only Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir महेभ्यः परेभ्योवरेत्यस्ननेपयस्वनामहेश्यश्चनमम ॥दक्षिणाम्योर्मध्ये अन्यपानिधाय| तन्मध्येत्यागः / / उदकोपस्पर्शः॥एतेष्टादशमंत्रा अन्यातानसंज्ञकाः॥ ॥अथामिरित्यादि। पंचकं॥ ॐ अमिरेतुप्रथमोदेवनानार्ट सोस्येप्रजांमुंचतुमृत्युपाशात्॥नदयर्ट-राजावरुणो नुमन्यनायथेयः स्त्रीपोत्रमघन्नरोदास्वाहा।। इदममये ॥ॐ इमाममिस्त्रायतांगार्हपत्यःप्र| जामस्थेनयतुदीर्घमायुः॥अशून्योपस्थाजीवनामस्तमानापौवमानंदमतिविबुध्यतामियः | स्वाहा॥ इदममयेन ॥ॐ स्वस्तिनो अमेदिवापृथिव्याविश्वानिधययथायजत्र॥वदस्यो ||मयिदिविजातंप्रशसंनदस्मासद्रविणंधेहिचित्र स्वाहा।। इदमाये ॥ॐ सुगन्नुपयो / For Private and Personal Use Only Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पदिशन्न एहिज्योनिषाध्येयजरन्न आयुः॥अपेतुमृत्युरमृतं मागाद्वैवस्वनोनोऽ अभयंकर मास्कर णोतुस्वाहा॥ इदंवैवस्वतायन०॥दक्षिणस्थाअन्यपानेत्यागः॥यधक्ष्णोर्वस्त्रपटंप्रक्षिप्यनूष्णी ॥ॐ परंमृत्योऽ अनुपरेहिपंथायन्ने अन्यइतरोदेवयानात्। चक्षुष्मतेशृण्वतेतेब्रवीमिमा नप्रजार्ट शरिषोमोनवीरान्स्वाहा // इदंमृत्यवेनममेतिअमोत्यागः॥परंमृत्यवितिचैकेप्राश नाते॥परंमृत्यवित्येतामेवाहुतिमेकेआचार्याः संवपाशनातेइच्छंतीत्यर्थः॥उदकोपस्पर्शः॥ ॥अथलाज होमः॥कुमार्याघाताआसादिनशूर्पस्थशमीपलाशमिश्रान्लाजानंजलिनांजलाया // 19 // यपति॥ तान्संहतेनतिष्ठत्यग्री जुहोतिवधूः॥ ॐ अर्यमणंदेयंकन्या अग्निमयक्षन For Private and Personal Use Only Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स नो अर्यमादेवःप्रेतोसुचतुमापतेःस्वाहा॥ इदमर्यम्णेनमम॥अनेनमंत्रणांजलिस्थान्लाजान्ततीयोरांजुहोति॥ॐ इयन्नार्जुपब्रूतलाजानावपंतिका॥ आयुष्मानस्तुमेप तिरेधन्नां ज्ञातयोममस्वाहा। इदममयेनमम॥अनेनमंत्रणांजलिस्थान्लाजानधैंजुहो नि॥ ॐ इमान्लाजानावपाम्यमौसमृद्धिकरणं तय // ममतुत्यचसंवननंतदमिरना मन्यतामियः स्वाहा॥ इदममयेनम ॥इत्यनेनमंत्रणांजलिस्थान्साँल्लाजा हो ति॥मंत्रत्रयंकन्ययावाचयतिवरः॥अथास्यैदक्षिण हस्तंवरीगण्हातिसाराष्ट।। ॐ ग णामिनेसोमगत्यायहस्तंमयापत्याजरदृष्टिर्यथासः॥भगो अर्थमासचिनापुरंधिर्मात्यादुर्गा For Private and Personal Use Only Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार हपत्यायदेवाः॥ अमोहमस्मिसात्वर्ट सात्वमस्यमोऽ अहं॥सामाहमस्मि ऋत्कं द्यौरहपृथिवी भास्कर // 320 // त्वं॥ नावेव विवहावहैसहरेनोदधावहै। प्रजांप्रजनयावहैपुत्रान्विन्द्यावहै बहून्॥संतुजर दष्टयःसंप्रियौरोचिष्णूसुमनस्यमानी।।पश्येमशरदः शतज्जीवेमशरदः शत शृपण्याम शरदः शतम्।।१॥ इतिहस्तग्रहणेवरस्यमंत्रपाठः / अथैनामश्मानंबरोवामहस्तेनवधूदक्षि णपादमारोहयत्युत्तरतोमेः॥ ॐ आरोहेममश्मानमश्मेवलर्ट-स्थिरामव॥ अप्तितिष्ठपत न्यनोवबाधस्वपृतनायतः॥१॥ इत्यश्मारोहणेवरस्यमंत्रपाठः॥अथगाथांगायति॥ ॐसा // 20 // ||रस्वनिप्रेदमवसुभगेवाजिनीवति॥यास्त्वा विश्वस्यभूतस्यप्रजायामस्याग्रतः॥ यस्यांत | For Private and Personal Use Only Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 6. समभवद्यस्याम्विश्वमिदंजगत्॥तामद्यगायोगास्यामियास्त्रीणासत्तमंयशः॥१॥ इत्यंतंवरोगाथांगायति॥ अथवधूपुरःसरोषदक्षिणमगिंपरिक्रामतोवधूवरो॥ ॐ तुझ्या ||मग्रेपर्यवहन्सू(वहतुनासह॥ पुनःपनियोजायांदामेप्रजयासह॥१॥ इतिपरिक्रमणे वरस्यमंत्रपाठः॥एवंकुमार्याघाताशमीपलाशमिल्लाजानंजलिनांजलावावपतीत्यारफ्यपरिक्रमणांनंपुनरद्वयंकर्मकुर्यात्॥ ततस्मृतीयपरिक्रमणानंतरंकुमार्यावाताशूर्पकोणपदेशेनसवाल्लाजान्कुमार्याअंजलावावपति // तिष्ठतीकुमारीसर्वोल्लाजानुहोति॥ ॐ भगायस्वाहाइदंभगायनमम॥इनिमंत्रकन्ययायाचयतिवरः॥नतःसमाचा For Private and Personal Use Only Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कार रातूष्णींचतुर्थपरिक्रमणी। नेनरथावृत्तिः॥पुनःपश्चादमे:प्राग्यदुपविश्यवरोब्रह्मान्चा भास्कर // 321 // रब्धःप्राजापत्यहोमंकुर्यात्॥ ॐ प्रजापतयेस्वाहाइदंप्रजापनयेनममेतिपोसण्यांत्यागः // अमेरुत्तरतअथैनांवधूसुदीची सप्तपदानिप्रकामयतिवरोवक्ष्यमाणमंत्रैः॥शि| ष्टाचारादेद्युत्तरतः वेदीमारश्यउत्तरोत्तरंहस्तांतरालेधान्यसप्ताचलान्कत्यावर प्रतिपदा सीत्यनेनमंत्रेणसंपूज्य॥ तेषुवधूप्रतिज्ञापठनपुरःसरंमंत्रपठित्वावध्यादक्षिणपादस्पर्शय ॥तियाम्यमारभ्यउदक्संस्थंउत्तरोत्तरं।वरः देशकालकीर्तनांतेपतिगृहीतवदारसिध्यर्थसप्ताचल | // 31 // पूजनंकरिष्ये॥ॐ प्रतिपदसिषतिपदैत्यानुपर्दस्यनुपदैत्यासंपदसिसंपदैत्यानेजोसिने सेवा / For Private and Personal Use Only Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || इतिमंत्रणसंपूज्यवधूपदंकामयति॥ ॐ एकमिषेविष्णुस्वानयत्तु॥ इतिवरेणोक्तेन |मंत्रणवधूदक्षिणेकपदंदद्यादुदक्॥तदनंतरंवामपादंव्यर्थं॥ पुनर्दक्षिणपददानमंत्रमुत्का। एवंसर्वत्र॥ ॐ ऊर्जेविष्णुस्वानयतुइतिद्वितीयं॥ ॐ त्रीणिरायस्पोषायविष्णुस्वानय तु॥इतिवृतीयं॥ ॐ चत्वारिमायोभवायविष्णुस्वानयतुइतिचतुर्थं।। ॐ पंचपशुभ्योविष्णुस्वानयतु॥इतिपंचम।। ॐषतुझ्योविष्णुस्वानयतुइतिषष्टं॥ ॐ सरयेसप्तपदान वसामामनुव्रतामवविष्णुस्त्वानयतु॥ इतिसप्तम।। परिक्रमणनस्वस्थानोपवेशनं / केचिया तिपदेकन्ययैकैकप्रतिज्ञामंत्रःपरनीयस्तेचयथा॥सवःयानिसर्वाणित्त्यासहविभज्यते॥ For Private and Personal Use Only Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार // 322 // यत्रखतदहंतवप्रथमेसाब्रवीदिदं॥१॥ कुटुंबंरक्षयिष्यामिआवृद्वबालकादिकं // अस्निना- भास्कर स्तिचसंतोषीदिनी // 2 // भर्तुर्मनिरतानित्वंसदेवषियमाषिणी॥पविष्यामिपदेचैवहतीये // 3 // आर्तेआ भविष्यामिसुरवदुःखविभागिनी॥तवाज्ञापालयिष्यामिकन्यातूर्यपदेब्रवीत्॥४॥ ऋतुकालेशुचिस्माताक्रीडिव्यामित्यासह॥ नाहपरतरंगछेकन्यापंचपदेप्रवीत्॥५॥ इहाया साक्षिणोविष्णुस्खयाहेनैववंचिता॥उपयोःपीनिसंभूताकन्याषष्ठपदेब्रवीत्॥६॥होमय ज्ञादिकार्येषुभवामिचसहायनी॥धर्मार्थकामकार्येषुकन्यासप्तपदेब्रवीत्॥७॥ इतिकन्या ||322 // मंत्राः॥ इतिसप्तपदीक्रमणं॥ अथवरः गृहान्निक्रमणसमयेएक पुरुषस्कंधेकतादुदकुं / For Private and Personal Use Only Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मादुदकंदक्षिणहस्तेनादायमंत्रपठनवधूमूर्धन्यतिषिंचति॥ ॐ आपःशिवाःशिव // 1 // इत्यनेनमंत्रण। पुनस्तस्मादेवकुंभादुदकमादायापोहिष्ठेतिक्रक्वयसुत्कामूर्धन्यभिषिं चनि॥ अथदिवाविवाहश्चेत्तदावधूर्वरेणसूर्यमुदीक्षस्वेतिप्रेषितासनीसूर्यमदीक्षते॥ नच्च क्षरित्यनेनमंत्रेणशृणुयामशरदः शतादित्यं तेना।वध्याएवमंत्रपाठः॥अथवरोवध्याद क्षिणार्ट सम्योपरि हस्तंनीत्वातस्याहृदयमालमते॥ ॐ मम बने ते हृदयंदधामिममचित्तमनुचित्तंनेअस्तु॥ ममवाचमेकमनाजुषस्वप्रजापतिष्यानियुनक्तुमचं ॥इत्यनेन मंत्रणस्वपटिनेन॥नतोवरोऽनामिकाग्रवधूशिरसिधृत्वातामभिमंत्रयते॥ ॐ सुमंगली For Private and Personal Use Only Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार, रियंवधूरिमार्ट समेतपश्यत॥ सौभाग्यमस्यैदखायाथास्वविपरेतन॥ इत्यनेनमंत्रणस्वपटि मास्कर // 323 // तेन॥अवसमाचारादबूंवरस्यवामभागेउपवेशयंति। अत्रावसरेवध्वाःसीमंतेवर सिंदूरंद दाति // ॐ घाममद्यसवित/ममुश्चोदिवेदिवेधाममुस्माय सावीळ // घामस्यूहिक्षय स्यदेवमूरैरयाधिया_ममा स्याम॥१॥दक्षिणत उहेक उपदधातितदेताःपुण्या लक्ष्मीदक्षिणोदध्म इतितस्माद्यस्यदक्षिणतोलक्ष्मभवति पुण्यलक्ष्मीकऽ इत्याचा सतऽ उत्तरतःस्त्रियाऽ उत्तरतु आयतनाहिस्त्रीतत्तृत्कृतमेवपुरस्तात्वेवैनाऽ उपदध्या | // 323 // या हैवशिरस्तुदेवहुन्तजिहाथैताः पुण्यालक्ष्मीर्मुरबोधत्तेतस्माद्यस्यमुखेलक्ष्म, For Private and Personal Use Only Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भवतितंपुण्य लक्ष्मीक इत्याचक्षते // इतिमंत्रपागेवरस्य॥अथामे प्रागुदग्वानुगुप्त आगारंपूर्वपरिकल्पितं भवति॥ तस्मिन्नानडुहरोहितचर्मपायीवमुपरिलोमास्तीर्णभवति।। कलौतदभावेप्रागयानुदगयान्वाकुशानास्तरेत् // तदुपरितांवधूंपत्यमुरवींदृटपुरुषउन्म) थ्योक्षिप्योपवेशयति॥ॐ इहगावोनिषीदंखिहाश्चाडइहपूरुषाः॥ इहोसहस्रदक्षिण णोयज्ञ इहपूषानिषीदत्तु॥१॥ इत्यनेनट पुरुषपठितेनमंत्रेण॥केचित्तुजामात दृटमाचक्षते॥अस्मिन्पक्षेजामातैवोक्षिप्यमंत्रमुत्काआस्तृतकुशेषूपवेशयतिवधूं। ततआगत्यपूर्ववद्यथास्थानवरोदक्षिणतउपविश्यपाखिष्टरुदोमंकुर्यात्॥ ॐ अम। For Private and Personal Use Only Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार यविष्टकतेस्वाहा॥इदमग्रयेस्पिष्टकृतेनममा।ततःसंस्त्रवप्राशनादिप्रणीताविमोकांनं मास्कर // 324 // होमशेषंसमाप्य॥अथस्वकीयाचार्यायगोदानंकरोतिब्राह्मणवेज्जामाता॥ क्षत्रिया चार्याययामंददाति॥वैश्यआचार्यायाश्चंददाति॥अथरावौविवाहस्तदाएतदरदानानंत विरोवधूंध्रुवमीक्षस्वेतिप्रेषदखाध्रुवमीक्षयते॥ ॐ ध्रुवमसिनुवंतापश्यामि ध्रुवैधिपोष्ये मयिमखंवादात्॥बृहस्पतिर्मयापत्याप्रजावतीसंजीवशरदःशतम्॥इतिवरेणमंत्रेपटिनेव भूर्भुवमीक्षते॥सायद्यपिनपश्येत्तदापश्यामीत्येवब्रूयात्॥ ॥अथाशीर्वादः॥ ॐ युद्देवैत / / 324 // राजप्रसीयंजुहोति॥ एताहदेवताःसुता एनसननैतृत्सोष्यमाणोभुवनिता एवैन / For Private and Personal Use Only Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मीणानिता अस्माऽ इष्टाः प्रीता एत सवमनुमन्यतेताभिनुमतःसूयतेयस्मैवैराजानोराज्यमनुमन्यतेसराजाभवति॥१॥ कांड 9 प्रपाठक 3 ब्राह्मण मंत्र 5 ॥अथा तोराष्ट्रभृतोजुहोति॥राजानोवैराष्ट्रामृतस्ते हिराष्ट्राणिवियत्येताहदेवताःसुता एतेनस नयेनैतत्सोप्यमाणो मुवतिना एवैतृवीणातिता भस्मा इष्टाः पीना एत-सवमृनुमन्यतेताभिरनुमतःसूयतेयस्मैवैराजानोराज्यमनुमन्यतेसराजाप्तवति // 2 // कोड 90 ॥३वा. 3 मं१ // अथरथशीर्षजहोति॥एपवैससव एतदैतत्स्य॒तेयस्मेनमेतादेवताः सवमनुमन्यतेयाभिरनुमतः सूयतेयस्मैवैग़जानोराज्यमनुमन्यतेसराजाभपनि // 3 // For Private and Personal Use Only Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir // 325 // का-९ प्र० 3 ब्रा० 3 मं०१३ // तदेवस्थामेव॥ एतानिहवीट षिनिर्वपेदेताहदेवताःस भास्कर नाऽएतेनसवेन नेतृत्सोष्यमाणो वनिता एवैतत्पीणानिता अस्माऽ इष्टाःप्रीता एतः सवमनुमन्यतेताभिरनुमनः सूयतेयस्मै वैराजानोराज्यमनुमन्यतेसराजाभवति॥४॥ का०९ प्र० 3 बा.५ मं०१२ ॥अथराजानमभिषुत्यामौजुहोति। एषवैसस एनडैना सूयनेयमस्मैतमेतादेवृत्ता:सवृमनुमन्यतेयाभिरनुमतः सूयतेयुस्मैवैराजानोराज्यमन मन्यतेसराजाभवति॥५॥ का०९ प्र० 4 बा.१ मं०८ ॥शनमानभवति॥ शतायुवै // 25 // पुरुषःशतेंद्रिय: आयुरेवेन्द्रियम्वीर्यमात्मन्यते।। 6 // दंपत्योरविच्छिन्नाप्रीतिरस्काये For Private and Personal Use Only Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शाभिवृद्धिरस्त॥ इत्याशीर्वादः॥यथाशक्तिब्राह्मणभोजनसंकल्पः॥विवाहानिमहा नसेमक्षिप्य॥ कर्मेश्वरार्पणंकुर्यात्॥ कारिकायां // लाजहोमवयेमंत्रानश्मनोरोह तथा॥भगायचैकमंत्रचकन्यापठतिपंचकं॥ ध्रुवदर्शनकालेचषष्टश्चैवउदाहतइति कन्यावस्त्रपरीधानेतथैवचोत्तरीयके॥तथासमीक्षाकालेतुपितुर्निक्रमणेगृहात्॥अश्म नोरोहणेचैवहसयाहेतथैवच॥ तथासप्तपदेचैववधूमूलभिषेचने॥हृदयालंपनेचैवत थैवअभिमंत्रणे॥ दृटपुरुषेकमेणेवएतान्मंबान्वरःपठेत्॥इति॥ // अथविवाहेमंत्राधि कारिणः // वधूवरस्थपितरोवधूवरौतथैवचा। विवाहेमंत्रपाठीच अपरोन्येक बोधकइति॥१॥ For Private and Personal Use Only Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie संस्कार रौद्रीपैत्रीतथामृत्युर्यमाहुत्याकृतेतथा॥ अंतर्धानविनायस्तु अल्पायुपतीभवेत्॥१॥री-भास्कर // 326 // दीपेचीमृत्युयमाहुती खात्यपःस्पृशेत्॥अपोस्पर्शनकालेतुस्पृशेत्प्रणीतकंजलं॥२॥य |मायदक्षिणेत्यागईशान्यांरुद्रमेयच॥दक्षिणाग्नेययोर्मध्येपितृत्यागोविधीयते॥३॥एतत्या गंस्वयंपाचेअन्यदेयात्तुप्रोक्षणी॥४॥धष्टबीहिर्मवेल्लाजारामीदलविमिश्रिता॥कन्याहोमंप्रकुर्वीतभर्तुर्यातुश्चसंगमे॥५॥ वरेणवामहस्तेनवधूपादंचदक्षिणं॥शिलामारोह येसाज्ञःमंगलानियथाक्रमं॥६॥शक्तिरूपेणयागेल्याशिवरूपशिलापतिः॥उभो || || // 326|| | अंगुष्ठसंस्पर्शात्साकन्याविधवाप्तवेत्॥७॥कामोअघोपबाणेस्तैः महारैरनिदारुणेः॥ तस्माद / For Private and Personal Use Only Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir येभवेतन्यातस्यबाणस्यशांतये॥८॥कन्यकायेवरंक खाब्राह्मणोज्ञानदुर्वल:॥ विधवाजायने / नारीनिषिद्धस्तत्रकारणात्॥९॥अयेतुशभदापलीमांगल्येसर्वकर्मणि॥पदेपदेश्वमेधंचधनायुः पुत्रवर्धन।।१०॥लाजानाज्यस्नुकुंअंब्रह्माणमृविजंगुरूं॥एतेषांबाह्यतःकखाशेषाणोतुपद क्षिणा॥११॥ यध्यादक्षिणपादानिसमानिएकमेत्तुसा॥याम्यादुदगदिक्संस्थापक्रमे दुत्तरीत्तरं ॥१२॥गणयेद्दक्षिणपदान्पदयामान्निरर्थकान् // 12 // पनिपुवान्वितापव्याश्चतस्त्रास भगा स्त्रियः ॥सौभाग्यमस्यैदास्तामंगलाचारपूर्वकमिति॥१३॥पतिपुत्रवतीनारीसु रूपगुणशालिनी।। अविच्छिन्नप्रजासाध्वीसदयासासमंगली॥११॥ // इतिकारि / / For Private and Personal Use Only Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार कावचनानि॥अथकश्चिद्यदिनातृकाकन्यामुद्दहेत्तदानस्याः पित्रोः रथाधिकंगयां भास्कर शतंदखोरहेत्॥एतेनपुत्रिकादोषान्मुच्यते॥यामवचनं चाबविवाहेकुर्यात्॥ स्मशानेच॥ विवाहस्मशानयोर्यामःप्रमाणमितिश्रुतेः॥ यामशब्देनस्वकुलवृद्धाः स्त्रियोभिधीयते॥ नाश्चपूर्वपुरुषैरनुष्ठीयमानंसदाचारस्मरंति॥ विवाहादारयत्रिराबमक्षारालवणाशिनी स्यातां॥ जायापतीअधाशयीयातांत्रिरावमेव॥ अधः शब्दःखट्दाव्युदासार्थोनतुआस्त रणव्युदासार्थः॥ संवत्सरंनमिथुनमुपेयातांद्वादशरात्रंवाषड्रात्रंबाविरात्रंवेति॥मिथुनक | // 327 // रणेशत्यपेक्षयाएतेविकल्पाः॥संवत्सरादिपक्षाशक्तीविरात्रपक्षेप्याश्रियमाणेचतुर्थ्य For Private and Personal Use Only Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्तरकालंपंचम्यारात्रावभिगमनं कर्तव्य। कुत एतत्॥चतुर्थीकर्मण्यकृतेभार्यात्वमेव नाद्यापिसंवृत्तंतस्यांविवाहैकदेशवाच्चतुर्थीकर्मणः॥इतिसंस्कार भास्करेविवाहदिनक त्यप्रयोगः॥ ॥अथऐरिणीप्रदान। तच्चआचारप्राप्त विवाहाच्चतुर्थदिने पररात्रेका य॥ तत्स्वरूप।वंशपात्रमिहैकंचशूपैःषोडशभिर्युत॥करकैरुद्रसंरव्याकैःसवर्णपरिपूरि तैः॥ शतछिींकमामेकांगोधूमेनप्रपूरितां॥ व्यजनैकंतथैवचेतिवापाठभेदः॥सवस्त्र चसदीपंचसौभाग्यद्रव्यसंयुतं नानापक्वान्नसंयुक्तंफलतांबूलसंयुतं॥एतावदैरिणी रूपंकर्तव्यंप्रीतिवर्धनं॥ उमाशंकरयोःपीत्यैऐरिणीदानमुत्तमं॥वरमात्रेपदास्यामिक For Private and Personal Use Only Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भास्कर // 328 // संस्कार न्यादानस्थसिद्धये॥ // अथऐरिणीपूजा॥ ततःकन्यापितासपलीक: मंडपमध्यपाङ्मु वःगु भासनेउपविश्य॥ स्वायवंशपानिधायतत्पुरतःवस्वाच्छादितपीठेवधूवरौप्रत्यङ्मा खायुपवेशयेत्॥वरमातरंमर्तसहितांपीठे उदङ्मुखीसपवेशयेत्॥आचम्यप्राणानायम्यदेश कालोसंकीर्त्य॥एवंगुणविशेष तिथीमयाच तुभिरहोभिःनिष्पादितविवाहारव्यस्यकर्म ण: सांगतामिध्यर्थं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थंकन्यादानसंपूर्णफलावाप्तयेवधूवरयो: बव्हायुष्यप्राप्तयेवंशाभिवृध्यर्थश्रीउमामहेश्वरप्रीतयेचवरमात्रेऐरिणीप्रदानमह] | // 328 // करिष्ये॥तबनिर्विमतासिध्यर्थमहागणपनिपूजनं ॥मनोजूतिरितिप्रतिष्ठा॥ ततःश्रीश्च For Private and Personal Use Only Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तेतिमंत्रणषोडशोपचारैः ऐरिणीपूजयेत्॥प्रार्थना॥ ऐरिणित्वमुमादेवीमहेशोगिरिजापतिः / In अतस्वांपूजयिष्यामिऐरिणीसर्वकामदां॥ ऐरिणित्वमुमादेवीवंशपावस्वरूपिणी।। का न्यादानस्यसंपूर्णफलंदेहिशिवपिये॥यावचंद्रश्नसूर्यश्चयावत्तिष्ठतिमेदिनी॥तावद्धिवंशा वृद्धिवंदेहिमेशंकरपिये। अनयापूजयाऐरिणीस्वरूपिणीउमामहेश्वरीप्रीयेतां // वरमान हस्तेशिवा आपःसंतु॥संतुशिवाआपः॥सौमनस्यमस्त॥अस्तसौमनस्य॥ अक्षतंचारिष्ट चारत॥अस्वक्षतम०॥ गंधाःपांतु॥सौमंगल्यंचास्नु॥अक्षता:पातु॥आयुष्यमस्तु॥पुष्पाणिपांनु, सौश्रियमस्त॥यसापंरोगअरुभअकल्याणंतरेप्रतिहतमस्त॥दानमंत्रः॥वंशोवंशकरः / For Private and Personal Use Only Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार श्रेष्ठोवंशोवंशसमुद्भवः॥वंशपात्रमिदंदानवंशवृद्धिकरंपरं // वंशपात्रमिदंपुण्यवंशजान मास्कर // 329 // समुद्भवं॥वंशानामुत्तमंदानंकन्यादानफलप्रदम्।।वंशपावाणिसर्वाणिमयासंपादितानिदै उमाकांतायदास्यामिममवंशाभिवृदये॥वंशवृद्धिकरंदानंसोभाग्यादिसमन्वित।।नानापकान्नसंयुक्तं दंपत्योवंशवर्धनं। वस्त्रेणाच्छादितंपूगफलहेमसमन्वितं॥ददामियर मानस्तेपार्वतीशंकरौतथा॥दातामहेश्वरोदेवोगृहीतापिमहेश्वरः॥दानेनानेनमेदेवष सीदपरमेश्वर॥ इदंऐरिणीवंशपावंसदक्षिणाकंवरमाचेतुभ्यम हंसंप्रददेनमम ॥त- | // 329 // तोवरगोबजादीन्गंधवस्यादिभिःसंपूज्य॥पार्थयेत्॥ यछत्त्याविहितंवगृद्यकथि| || For Private and Personal Use Only Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandie तैमत्रैश्चपौराणिकैनवस्त्रजलान्नचंदनदलायवाचतुर्मिर्दिनैः॥दपत्योर्ममवंशय // द्विमनघांदद्यादुमा शंकरोन्यूनतत्कृपयाखिलसफलतांयातुहिजानांनतिः॥१॥नतो वधूगोत्रजा: तत्ऐरिणीवंशपात्रंगृहीत्वावरगोबजादीनांशिरसिधारयेयुः॥ ॐ घृ तवती भुवनानामभित्रियो:पृथ्वीमधुदुर्धरूपेशंसा॥द्यावापृथिवीवरुणस्य॒धर्मणा |विष्कमिते अजरेरिरेतसा॥१॥ इतिमंत्रण॥ ततःकन्यांनिवेदयेत्॥ अष्टवर्षाखियं कन्यापुत्रवत्सालितामया॥ इदानींतवपुत्रायदत्तास्नेहेनपाल्यतां॥१॥ अनेनवरपि|| तुरुत्संगेदद्यात्॥पुनरुत्याप्य।अस्मदादिसहृईधून्त्यकायातिभवद्गृहं॥अतिस्ने || For Private and Personal Use Only Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार हेनवैमानः कन्यामेपरिपालय॥२॥अनेनवरमातुरुत्संगेदद्यान्॥अत्रावसरेवध्यावसि मास्कर // 330i | टारुंधतीपूजनं॥श्रीश्चतेतिमंत्रणवसिष्ठारुंधतीयांनमःपंचोपचारैसंपूज्य। पूजांतेगं |धपुष्यफलहिरण्योपेतंअर्पदयात् // तत्रमंत्रः // अरुंधतिमहामागेवसिष्ठपियवादि। नी॥सोमाग्यसंततिदेहिग्रहाणार्धनमोस्तुते॥१॥ इत्यधुंदत्वाप्रार्थयेत् // अरुंधतिमहामा गेवसिष्ठप्रियवल्लभे॥सोमाग्यदेहिसततंपुत्रपौवांश्चदेहिमे॥ततोऽवंडसोभाग्यादिकामा नयावसिष्ठारुंधतीप्रीतयेषोडशाष्टौवायायनानिब्राह्मणेभ्योदयात्॥ अथवावायननिष|| | // 330 // यीभूतंयथाशक्तिरजतद्रव्यंअरवंडसौभाग्यप्राप्तिकामनयावसिष्ठारुंधतीप्रीतयेअमुकशा || For Private and Personal Use Only Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मणे ब्राह्मणायतुभ्यमहंसंप्रददेइति // ततोवरहस्सेकन्यांनिवेदयेत्॥इयंकन्यामयादत्ता | तवविषसहायिनी॥ स्वदेशेपरदेशेवापरिपाहिकुलोचितं॥१॥ इतिमंत्रेणनिवेदयेत्॥ ब्राह्म णेभ्योदक्षिणांदत्वातैराशिषोलीयादित्यैरिणीप्रदान॥ // अथवधूप्रवेशः॥ वधूप्रवेश प्र यमेतथैव शुभप्रदः पंचमकेथवान्हि॥द्वितीयकेवायचतुर्थकेवाषष्टेवियोगामय टुरख दःस्यात् // 1 // तथाचसंग्रहे॥विवाहमारण्यवधूप्रवेशोयुग्मेतिथौषोडशवासरांतात्॥ऊर्चततोब्देत्यु जिपंचमांतादतः परस्तान्नियमोनचास्ति॥२॥ अयुग्मेतृतीयंत्यत्वायुग्मेषष्टंविवर्जयेत्॥षा सकालेव्यतीपातवैधृतीसंक्रमंतथा॥ उपरागंश्राइदिनंवर्जयित्साशुष्कभिः॥३॥ज्योतिः For Private and Personal Use Only Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार // 331 // शास्माकदिवमेशुभकालेनथैवच॥राबोवधूप्रवेशः स्यादिवानेवकदाचनेति॥ 4 // तत्र भास्कर ज्योति शास्त्रोक्तशाकालेवर पित्रादत्तांवधूगृहीत्वायानेउपविश्यमंगलवायघोषपुरःसरंमं गलगीतपठनपरैः पुरंधीजनैराचार्यादिप्रैिःआनोमद्रा:स्वस्सिन इंद्रेतिसुमंगलसूक्तपठनपरै| श्वसहस्वगृहमागत्यगृहमध्ये पुप्तासनेप्राङ्मुरखउपविश्यस्वदक्षिणतः वधूमुपवेश्य।देशकालौ स्मृत्ला अस्याःममनवोटापार्यायाःप्रथमगृहप्रवेशंकरिष्ये॥ तदंगविहितंगणपतिपूजनस्वस्ति पुण्याहवाचनंचकरिष्येइतिरुत्वा॥ ततआचारप्राप्तंकांस्यपावेतंदुलान्प्रसार्यतदुपरिसुवर्णशला // 331 / / कियाश्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादौअमुकीइतिनामविलिरव्यमनोजूतिरितिप्रतिष्ठाप्यश्रीचनेति | For Private and Personal Use Only Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |मंत्रणपोडशोपचारैःसंपूज्य॥अन्यद्यथाकुलाचारं कुर्यात् ॥ततोवरेणनामवाचनपुरःसरंव ध्यानामप्रतिष्ठितंकुर्यात्॥श्रीकुलदेवताप्रयुक्तमादौअमुकनामप्रतिष्ठितंइतिविर्वाचयित्वा॥ ब्राह्मणाःमनोजूतिरिनिमंत्रपठित्वावधूशिरसिमंत्राक्षतान्दद्युः॥ब्राह्मणेभ्योगंधतांबूलदक्षिणा दिदत्वा तैराशियोगहीयात्॥ इनिबधूप्रवेशः॥ ॥अथपथमाब्देवधूनिवासः॥ज्योनि निबंधे॥उदाहायथमेशुचीयदिवसेद्भर्तुर्यहेकन्यकाहन्यात्तजननींशयेनिजततुंज्येष्ठे |पतिज्येष्ठकं ।।पौषेचश्वशरंपनिंचमलिनेचैत्रेवपित्रालयेतिष्ठंतीपितरंनिहंतिनभयंतेषा मामावेभवेत्॥ इनिप्रथमाब्देवधूनिवासः॥ // अथचतुर्थीकोच्यते॥ नच्चविवाहा, For Private and Personal Use Only Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चतुर्थदिने पररात्रेऐरिणीप्रदानोत्तरंकार्यं / गृहमध्येमिस्यापनंतवैव चतुर्थीकोक्तं // 32 // हरिहरादिभिस्तथापित शिष्टा: बहि:शालायांवेद्यांकुस्तीति॥तवार्यक्रमः॥कृत्येचा तुर्थिकेतुवधुवरउभयोर्मंगलस्नानकार्यस्थाप्योवैवाहिकामिस्तदुत्तर उदकुंअंचरुनौपचे युः॥हुला घाराज्यभागानथघृतहवनमनिवायूचसूर्यश्चंद्रोगंधर्वपंचप्रजापति चरुणाषट् स्ववंचोदपावे॥१॥ शेषैःस्विष्टनवाज्याहुतिमनुहयनंप्रोक्षणीसंस्रवंतत्याश्यंशेषसमाप्यंअथ वरवधूमूर्धन्यषिंचोदपावात्॥प्राणैस्तेस्यालिपाकंहुनितमपिवधूंषाशयिखावरेणकर्मादीमंगला // 332|| सारचितक्रमणिकासर्वसंस्कारमाला॥२॥ इति॥ ॥नतोवरोवध्वासहवधूपिटगृहेमंगलंमा / For Private and Personal Use Only Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्याहतपट्टकूलादिवाससीपरिधायधृत्तकुंकुमतिलकोवेद्याशुभासने उपविश्यदक्षिणतः पत्नींचोपवेश्य॥ आचम्यप्राणानायम्यदेशकालकीर्तनोनेविवाहेकदेशलाच्चतुर्थीकर्माहेक रिष्ये। तबनिर्विधार्थगणपतिपूजनंयास्मरणंकुर्यात्॥ तवगृहायंतरनोमिमुपसमाधाय स्थंडिलेपंचायूसंस्कारपूर्वकं विवाहामिंपतिष्ठाप्य॥ततोदक्षिणतोब्रह्मासनादिप्रणीतास्था पनानंतरप्रणीतोत्तरतउदपात्रंपनिष्ठाण्य॥ आज्य॥स्थालीपाकचरुः॥पवित्रीकरणादिआ घाराज्यभागांनमाधानवत्॥ आज्यभागानंतरमाज्येनपंचाहुनयोवक्ष्यमाणमंत्रैः॥ॐ अमेप्रायश्चित्तेवंदेवानांप्रायश्विनिरसिब्राह्मणस्वानाथकाम उपधावामियास्यैपतिघीना For Private and Personal Use Only Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार नूरनामस्यैनाशयस्वाहा॥इदममयेनमम॥ॐ वायोप्रायश्चित्तेसंदेवानांपायश्चितिरसिबास मास्कर णस्त्वानाथकाम उपधावामियास्यैप्रजाप्नीतनूस्तामस्येनाशयस्याहा॥ इदं वायवेनः॥ ॐ सू र्यप्रायश्चित्तेबन्देवानाम्पायश्चित्तिरसिब्राह्मण स्वानाथकाम उपधाचामियास्येपसुधीननूस्ता मस्येनाशयस्वाहा // इदंसूर्यायनमः॥ ॐ चंद्रप्रायश्चित्तेवंदेवानांपायश्विनिरसिब्राह्मण स्वानाथकाम उपधावामियास्यैगृहधीतनूस्तामस्यैनाशयस्वाहा॥ इदंचंद्रमसेन // अंगं| धर्वप्रायश्चित्तेवंदेवानाम्प्रायश्चित्तिरसिब्राह्मणस्त्वानाथकामऽ उपधावामियास्येयशोनीन // 33 // नूस्तामस्येनाशयस्वाहा॥इदंगंधर्वायनमम॥तनःस्थालीपाकेनप्रजापतयइतिएकाहुतिः॥ | For Private and Personal Use Only Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॐ प्रजापतयेस्वाहा।।इदंप्र॥ आसांपडाहुनीनांप्रणीनापावस्पोनरनउदपावेमेसवपासना विष्टकनोपिकेचिदिच्छंति॥अन्यासामाहुतीनांपाक्षणीपात्रसंघवपासनं॥तनः स्यालीपाकेन स्विष्टकतं॥ ॐ अभयस्विष्टलनेस्वाहाइदममयेसिष्टरुतेनमम॥ ननआज्येनमहाव्याहत्यादिम जापत्यांतानवाहुनयः॥तनःप्रोक्षणीपात्रेयेसंखवारलेषांपाशना पवित्राभ्यांमार्जनादिपणीनानि मोकांतंहोमशेषसमाप्यातनःप्रणीतोत्तरस्थादुदपात्रादुदकंपल्लवेनादायवधूमूर्धन्यभिषिंचनिवरः // ॐ यातेपतिनीजानीपकभीरहनीयशोमीनिंदिनातनूर्यारनीनत एनांकरोमिसाजीर्यसंम यासहासौअसोस्थानेनामादेशः॥ अमुकीइत्यनेन॥अथैनांवधूंस्थालीपाकंपाशयतिवरः।।ॐ For Private and Personal Use Only Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार प्राणैस्लेप्राणान्त्सन्दधाम्यस्थिभिरस्थीनिमार्ट सैर्मार्ट सानित्वचात्वचम्॥१॥ इतिमंचे भास्कर ॥२३॥णवरपठितेनतांचाचमय्य॥ यथाशक्तिब्राह्मणभोजनसंकल्पः॥ब्राह्मणेत्योभूयसींदत्वाने राशिपोगण्हीयाहरः // इतिसंस्कारपास्करे चतुर्थीकर्मप्रयोगः॥ ॥अथदेवकोत्थापन तबकालः॥ समेचदिवसेकुर्यादेवकोत्थापनंबुधः॥षष्ठंचविषमंनेष्टंमुत्त्वापंचमसप्तमो॥१॥ मंडपोद्दासनकार्यसमेवाविषमेदिने॥ समेषष्ठंदिनंवयंविषमेधिनवंत्यजेदिति॥२॥अत्र स्थापनदिनात्परिगणना॥ तत्रविषमेबिनवंसमेषष्ठंदिनवज्यं / / चतुर्थपंचमसप्तमातिरिक्तं // 334 / / नावेष्टमित्यर्थः॥ मुहूर्नमार्तडीकायो॥विवाहदिनमारभ्यनवत्रिषष्ठदिवसेषूद्वासनमपि For Private and Personal Use Only Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie |नकार्यमित्युक्तं तन्मंडपम्यननुदेवकादेरितिदृष्टव्यं / उक्त दिनेवरवधूसहितःस्वस्वगृहेवर |पितावधूपिनाचस्वदक्षिणतःपल्यासहसभासनेप्राङ्मुखउपविश्य॥ आचम्यप्राणानाय म्यदेशकालोसंकीर्त्यममगृहेषमुषगुमासेषुशोभनप्राप्त्यर्थविवाहांगभूतंदेवकोत्थापनमं| डपोडासनारव्यंकर्मकरिष्ये। तदंगविहितंगणपति पूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनंचकरि येइतिहत्वा॥ स्वस्तिवाचनेभोब्राह्मणाः मयाक्रियमाणयोःदेवकोत्थापनमंडपोडासना ख्यकर्मणोःपुण्याहंभवतोब्रुवंतु॥ ॐ पुण्याहं॥एवंकल्याणकादिस्वस्सिंश्रीयंइनि।ततः / स्थापितदेवनानांपंचोपचारैरुत्तरपूजनंकार्य।उनिष्ठब्रह्मणस्पतेयांतुमागणेतिमंत्रेण-1 For Private and Personal Use Only Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भास्कर संस्कार स्थापितदेवताःविसृज्य॥ ॐ उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पतेदेवयतैस्वेमहे॥ उपप्रयन्तुमरुतःसु // 335 // दानव इन्द्रावासा ॥१॥यांतुमातृगणाःसर्वस्वशक्त्यापूजितामया। इष्टकाम प्रसिध्यर्थं पुनरागमनायच॥१॥आवाहितदेवनाःस्वस्थानेगच्छतेत्युस्थापयेत्॥नता चार्योनंदिन्यादिमंडपमातॄणांसूवमुन्मुच्यतेनद्दे पूगीफलेवेष्टयित्वा॥ नंदिन्यादिमातॄणां पानिपैनिदध्यात्॥ततोयजमानःपल्यासहवरोवधूश्चनच्छूपहस्तैर्गहीवार्पआचा पेजलंसिंचतिसतिशूर्पणगृहास्यंतरमारमयमंडपांतंधिवारंगलाजलधारांपातयेत्॥धसो: // पवित्रमसि॥ द्यौःशांतिरितिमंत्रण॥धारापातनोत्तरतेनैवमंत्रणतन्मात्पल्लवै:सपत्नीकं For Private and Personal Use Only Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir यजमानमभिषिच्यशूर्पस्थमातृपल्लवानिमंडपोपरिनिक्षिष्य॥ईशानकोणप्रदेशेमंडप विना विमुच्य॥ततसूत्रवेष्टितेदेपूगीफलेआचार्योगहीबायजमानायश्रेयोदानंकुर्यात्।। तयथा॥ सपत्नीकयजमानस्यांजली॥शिवा आपःसंतु॥संतुशिवाआपः॥सौमनस्यम स्त॥अस्तसोमनस्यं ॥अक्षतं चारिष्टंचास्तु॥अस्वक्षतमरिष्टंचा। इतिवचनपतिवचने। अवाःपातु॥सुप्रोक्षितमस्त॥गंधाःपांतु॥सौमंगल्यंचास्त॥ अक्षताःपांतु॥आयुष्यम स्त। पुष्पंपातु सोश्रियमस्त॥यसापंरोगंअशांअकल्याणंतरेप्रतिहतमस्त॥ इत्यं जल्युपरिउदकंत्रामयित्वोदीच्यानिषिचेत्॥ततोयजमानः॥ोब्राह्मणाःममगृहेषट्स। For Private and Personal Use Only Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार षट् मासेषुशोभनानिभवनोबुवंतु // संनुशोभनानीत्याचार्यः॥ इतिविरुत्कासनमेत भास्कर // 336 // द्विवाहकर्मणआचार्यत्वंतदुसन्नश्रेयस्स्तुभ्यमहंसंप्रददेइतियजमानहस्नेसाक्षतजलपू) गीफलइयंप्रक्षिप्यप्रतिगृह्यतामितिवदेत् // यजमानोदेवस्यवेतिप्रतिगृहाति॥ ततोचस्त्रालंकारादिभिर्यथाविभवमाचार्यपूजनंसखातस्मेमहादक्षिणांदत्वा ऽन्येश्योब्राह्मणेभ्यो भूयसींदक्षिणांदत्वातैराशिषोटहीवा।।यस्थस्मृत्येनिकर्मसंपूर्णतांवाचयित्वा। ब्राह्मणान्मोजा यित्वा॥सहद्भिःसहयजमानो जीनेनिदेवकोत्थापनं॥ इतिसंस्कार भास्करेविवाहसंस्कारम। // 336 / / |योगः॥ // अथहिरागमः॥ तत्रमाघफाल्गुनवेशारखाः शुक्लपक्षश्चक्रमाः॥अश्विनी / For Private and Personal Use Only Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie रोहिणीपुनर्वसपुष्योत्तरात्रयानुराधाज्येष्ठाहस्तस्वातीचित्राश्रवणशततारकानक्षत्रेषुचंद्र |बुधशकवारेषुगुरुरुकास्तादिरहितेस्थिरलमादिशभकालेद्वितीयवधूप्रवेशःशुमः ॥द्विरागमनेऽधिमासविष्णुशयनमासीसमवत्सराःप्रतिशकादिदोषाश्चवाः॥द्विरा गमोपियदिविवाहमारभ्यषोडशदिनमध्ये क्रियतेतदापनिशकादिदोषोस्नादिदोषश्च नास्ति॥यथा॥हिरागमःषोडशवासरांतेएकादशाहेसमवासरेषु॥ नचानकक्षनतिथि नयोगोनवारशल्यादिविचारणीयं। केवलांगिरसकेवल गुपारद्वाजवसिष्ठकश्यपा| विवत्सगोत्राणांप्रतिशकदोषोन॥रेवत्यश्विनीमरणीकृत्तिकाद्यचरणेषुचंद्रेसतिशु For Private and Personal Use Only Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संसार कस्योधत्वात्प्रतिशकदोषोन॥ दुर्भिक्षेदेशविप्लवे विवाहेतीर्थगमनेएकनगरयामयी भास्कर // 33 // प्रतिक्रदोषोन॥इतिद्विरागमः॥ ॥विवाहेमार्ययासहभोजनमाहांगिराः॥ ब्राह्मण्या सहयोश्रीयादृच्छिष्टंयाकदाचन।तबदोषनमन्यतेसर्वएवमनीषिणः // 1 // एकपात्रेसमा भीयाद्विवाहेषुवधूवरो॥ तत्रदोषनमन्यतेआचारफरेषनैवचेति॥ संयहे॥ एकासनंचे कशय्याएकपात्रेचभोजनं॥एकत्रमंगलस्नानंएकवाहनरोहणं॥ कुर्वन्विवाहेएतानिमा विद्विषोनदोषभागिति॥ अथाफ्युदयिक श्राद्धोत्तरदेवकोत्थापनपर्यंतं निषिद्वकर्मा- // 337 // ||णि॥गार्ग्यः॥ नांदीश्राद्धेकृतेपश्चाद्यावन्मावृविसर्जनं॥ दर्शश्राद्धंक्षयप्राईस्मानंशी | | For Private and Personal Use Only Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तोदकेनच॥अपसव्यंस्वधाकारंनित्यथातथैवच // ब्रह्मयज्ञंचाध्ययनंनदीसीमांतलंघन उपवासव्रतं चैवश्राद्ध भोजनमेवच॥ नैवकुर्यु:सपिंडाश्चमंडपोडासनावधि॥१॥त्रिपु रुषसापिंड्यपर्यंत।। अवनित्यश्राद्धनिषेधेननकार्यविहिनपितृयज्ञनिषेधमिद्धिः॥वधाका रयहणंतत्सहितवैश्वदेवनिषेधार्थ॥ // नथान्यच॥ अभ्यंगेसूतकेरात्रीविवाहेपुत्रजन्म निमांगल्येषुचसर्वेषुनधार्यगोपिचंदनं॥१॥ इति॥ ॥अथमा विसर्जनानंतरंज ब्दपर्यंत निषेधमाह॥ वसिष्ठः॥स्मानंसचैलंतिलमिश्रकर्मप्रेतानुयानंकलशपदान।। पूर्वतीर्थामरदर्शनंचविवर्जयेन्मंगलतोब्दमेकं // 1 // पितॄणामुद्देशेनकलशदानमित्य For Private and Personal Use Only Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार थः॥ ॥अवापवादः॥ तीर्थसंवत्सरेप्रेनेपितृयज्ञेमहालये॥ कृतोद्वाहोपिकुर्वीतपि भास्कर // 33 // उनिर्वपणंसदेति॥ ॥मासषट्दविवाहादौव्रतमारंभणेपिच॥ जीर्ण मोडादिनत्याज्यंग हसंमार्जनीतथेति॥ ॥स्मश्रुकरणे॥उyविवाहासुत्रस्यतथाचव्रतबंधनात्॥आत्म नोमुंडनचैववर्षवर्षार्धमेवच॥विमासंवाविपक्षवानकुर्वीतकदाचनेति॥ ॥कन्यागृहे | भोजननिषेधः॥ भविष्ये। अप्रजायांतुकन्यायांनमुंजीतकदाचन॥दौहित्रस्यमुखंडवाकिमर्थमनुशोचति॥ नमुंजीतेत्यत्रकन्यागृहेइतिशेषः॥ अपरार्के आदित्यपुराणेचा // 338 / / अप्रजायांतुकन्यायांनाभीयाकन्यकारहे॥ब्राह्मादिविधिनाकन्यादखान्भीयात्कदाचन। For Private and Personal Use Only Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथधुंजीतमोहाच्चेत्सयातिनरकंध्रुवमिति // ब्राह्मविवाहविधिनादातुंयोग्यांकन्याद त्वाकदापितस्याःगृहेनैवान्भीयादित्यर्थः // शाकलकारिकास्वपि॥ दुहित्रन्न जीयाद्या वित्तस्यासवेत्सतः॥अन्यथायस्तमुंजीनदानंतस्यवृथाभवेत्॥कन्यायास्वमसूतायायस्व नमुंजतेयदि॥ अघसकेवलंसुंक्तेप्राजापत्येनशध्यनीति॥ // अथवरस्यमृतमा यत्वपरिहारोपायः॥ तदुक्तंबृहद्याज्ञवल्क्येन॥परिवेनृत्तपापेनमृतभार्यवंजायते॥न दोषपरिहारार्थप्राजापत्यत्रयंतथा। चांद्रायणत्रयंचैके अनेके द्विगुणंचरेत् // एकेएक | भार्यामरणेइदंपायश्चित्तं॥अनेकेअनेकमार्यामरणेतुएतस्पायश्चित्तंदिगुणचरेदित्यर्थः For Private and Personal Use Only Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार भास्कर गणेशपूजयेदादौपुण्याहवाचयेद्विजैः॥ दुर्गामिविष्णुप्रतिमाःस्थापयेत्पूजयेत्ततः।। // 339 // विभिस्तदेवनाप्रीत्यै हुनेदष्टाधिकायुतं॥ आहुतिंचरुणाज्येनप्रतिद्रव्येर्धसंख्यया। दुर्गा मिविष्णुमंत्रैश्चपुनःपुनरितीरितइति॥ ॥अथप्रयोगः॥सदिनेसस्नातोयजमाना सनेउपविश्याचम्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनानेमममृतमार्यत्वदोषनिरासद्वाराधीप रमेश्वरप्रीत्यर्थंवक्ष्यमाणप्रकारेणअष्टाधिकायुतसंख्ययाचर्वाज्यहवनंकरिष्ये ॥तत्रा दौनिर्विघ्नतार्थगणपतिपूजनंस्वस्तिपुण्याहवाचनआचार्यादिवरणंदिग्रक्षणपंचगव्य // 39 // // करणंभूमिपूजनं अमिस्थापनंकलशानांस्थापनंदुर्गामिविष्णुदेवतानांस्थापनंपूजनंच / For Private and Personal Use Only Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir / करिष्ये इतिक्रमेणरुत्सा॥देवतामंत्रास्त॥ अम्बेअम्बिकेतिदुर्गा॥ वन्नोअमेतवदेवेनि / अमिं॥ इदंविष्णुरितिविष्णु॥तनोदक्षिणतोब्रह्मासनादिपवित्रयोः प्रणीतासनिधानांनेरुत्वान्वादध्यात्॥ तद्यथा॥ तवप्रजापतिइंद्रअमिंसोमएताःआघाराज्यभागदेवता एकेकया हुत्याआज्येनअत्रप्रधानंदुर्गाअनिविष्णुचस्वस्वमंत्रेणअष्टषष्ठितमाधिकषोडशशनसरव्य याचरुहोमंतथाचपुनरत्रप्रधानदेवतानांस्वस्वमंत्रणपूर्वक्तिसंरव्ययाज्यहोमशेषेणविष्टक निअभिवायुसूर्यंअग्रीवरुणोअमीवरुणोपुनरमिंवरुणंसवितारंविष्णुविश्वान्देवान्मरुतःस्वर्काविरुणं आदित्यं अदितिंप्रजापतिएतादेवता आज्येनैकैकयाहुत्या अस्मिन्कर्मण्यहंयक्ष्ये॥ इत्यचा // For Private and Personal Use Only Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सस्कार धानं॥ पतिदैवतंतूष्णीनिरूप्यपोक्ष्यच॥ त्यागकालं अष्टानगयुतसंख्याहुनिपर्याप्नचर्चा भास्कर // 34 // ज्यद्रव्यंयथामंत्रलिंगदुर्गायअमयेविष्णवेचनममेतित्यागंकुर्यात्॥प्रयमंगणेशायवरा हुनिंदत्वाअन्वाधानोक्तरीत्या हवनकार्य। पूजास्तिऐतिकमेण होमशेषसमाप्यदशविप्रानो जयेदिनि। हवनाहुतिक्रमोयथा॥आज्यभागांतेपूर्वअम्बेअम्बिकतिमंत्रणदुर्गाये चर्चा हुनयः Hin68 // वन्नोऽअमेनिअमयेच हुनयः 1668 // इदं विष्णुरितिविष्णवेच;हुतयः१६६८ अनंतरंअम्बेदुर्गा. आज्याहुतयः 1668 // बन्नो अग्नयेआज्याहुतयः १६६८॥इदं // 34 // / विष्णवे आज्याहुतयः 1668 // एवमेवप्रकारेण सर्वाहुतयः 10008 अष्टोत्तरायुना मवेति॥ For Private and Personal Use Only Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अथवाक स्यचिद्राह्मणस्यविवाहंकुर्यात्॥ ॥इतिमतमार्यसपरिहारोपायः॥ // 5 // अथभार्या विद्यमानत्वेसतिद्वितीयविवाहे पिवेदनीयकारणमाहयाज्ञवल्क्यः। सुरापीच्याधि ताधूर्तावध्यार्थभ्यप्रियंवदा॥स्त्रीप्रसूश्चाधिवेत्तव्याख्यतरंकारयेदिति॥ // अधिवेदनेकालप तीक्षामाहमनुः॥वंध्याष्टमेऽधिवेत्तव्यादशमेतुमनप्रजा॥एकादशेस्त्रीजननीसद्यस्वप्रियवादिनीति॥ ॥विवाहांतरेविशेषः॥ एकामुत्क्रम्यकामार्थमन्यांलब्धंयइच्छनि॥समर्थस्तो पयिसाथैःपूर्वोदामपरांवहेन्॥याज्ञवल्क्यः॥आज्ञासंपादिनींदक्षांचीरसूपियवादिनी॥त्य जन्दाय तृतीयोशमद्रव्योभरणस्त्रियः॥सधनोधनतृतीयांशमधनोशनाच्छादनात्मका For Private and Personal Use Only Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कार रणचदद्यादित्यर्थः॥ ॥अथस्त्रीनिधनेद्वितीयपरिणयनकालमाह। सिंधौ।प्रमदाम भास्कर // 341 // निवासरादितःपुनरुद्वाहविधिवरस्यच॥ विषमेपरिवत्सरेशुभोयुगुलेचापिमृतिप्रदोभवे दिति॥ ॥अथकन्याविषयोगेसमुसनाचेद्वैधव्ययोगहरकुंमविवाहः॥ सचविषयोगस्त्रि विधः। सूर्यभोमार्किवारेषुतिथिभद्राशनाभिधम्॥ आश्लेषारुत्तिकानांगेनवजानावि षांगना॥१॥ जनुर्लमेरिपुक्षेत्रसंस्थितःपापरवेचरः॥दिसाम्यमपियोगेस्मिन्संजाताविष कन्यका॥२॥ लमेशनैश्चरोयस्याः सतेर्किनवमेकुजः॥विषारण्यासापिनो हास्यात्रिविधायि // 24 // पकन्यका॥३॥तदोषपरिहारोपायः॥ सावित्र्यादिवतंकृलावैधव्यविनिवृत्तये॥ अश्वत्था For Private and Personal Use Only Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir |दिभिरुडाह्यादद्यात्तांचि रजीपिनेइति॥ // अन्यच्च॥ ॥बालवैधव्ययोगेतुकुंभद्रुप्रति मादिभिः॥रुत्वालगंतनःपश्चात्कन्यो डायतिचापरे॥ // कुंभःप्रसिद्धःद्रुप्रतिमेतिस्पर्णी मयाचस्थद्रुमप्रतिमा॥ नैःसह अनूटाकन्योहाह्या॥पुन दोषाभावस्तुविधानरवंडे // स्वर्णद्रुपिप्पलानांचप्रतिमाविष्णुरूपिणी। तयासहविवाहेतुपुनर्मूत्वंनजायते॥ // सूर्यावरुणसंवादे।।विवाहापूर्वकाले तुचंद्रताराबलान्विते॥कुसंस्थाप्यविधिवत्तवद्रु पनिमायजेत्॥ मधुपर्कादिकंदत्वा तदनेकन्यकांनयेत्॥विवाहोक्तेनमंत्रणकुंभेनसह चोहहेत्॥सूत्रेणवेष्टयेत्पश्चा द्दशतुविधानतः॥ऊकुमालंरुतंदेहंतयोरेकोतमंदिरे॥तनः For Private and Personal Use Only Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार कुंभचनिःसार्यप्रभज्यसलिलाशये॥ ततोभिषेचनंकर्यासंचपल्लववारिभिः॥ततोलंकारय भास्कर // 352 // पाट्यांबरायपनिपादयेदिति॥ ॥अथप्रयोगः॥ नत्रपूर्वोक्तदिनेकन्यापिताकन्ययासह एकांतेविष्णुमंदिरेगत्याआसनेप्राङ्मुखउपविश्यस्वदक्षितः कन्यामुपवेश्य॥देशकाल कीर्तनानंतरंकन्यायाः नक्षत्रादियोगेनयहयोगेनपुनर्भूदोषापावेनचविपारव्ययोगसंम ववैधव्यारिष्टपरिहारार्थश्रीपरमेश्वरप्रीतयेकुंभविवाहंकरिष्ये।तत्रादौनिर्विघ्नतार्थगणप निपूजनंस्वस्सिपुण्याहवाचनादिनांदीश्राद्धांतंकवाचार्यवृता।ततस्तंदुलाष्टदलेमही // 342 // योरित्यादिक्रमेणकलशंप्रतिष्ठाप्यपूर्णपात्रेनिधायवस्त्रयुग्मेनसंवेष्ट्य तत्रवरुणसंपूज्या / For Private and Personal Use Only Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तत्राम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठापूर्वकंखर्णमयविष्णुरूपाश्वत्थदुमपनिमांप्रतिष्ठाप्यषोडगे पचारैःसंपूज्यप्रार्थयेत्॥ नत्रमंत्रः॥ वरुणांगत्वरूपायजीवनानांसमाश्रय॥पनिंजीव | यकन्यायाचिरंपुत्रसुरवंकुरु॥ देहिविष्णीवरदेवकन्यांपालयदुःखतइति॥तनोमधुप वस्त्रालंकारार्पणं॥अंतःपटकन्याकुंभांतराले धृसामंगलपद्याष्टकंपठिला॥ओप तिष्ठेत्यनंतरंपटंनिसाया। कन्याये वस्त्रोपवस्त्रमंगलतंतुबंधनसमीक्षणांतमंत्रपठने नदत्वा ॥दशवारंअधस्तादुपरिचकुंअंकन्यांचपरित्वेत्यनुवाकेनसूवंसंवेष्ट्याकंभस्य / विष्णवेकन्यांसमर्पयेत्॥ मंत्रस्तु॥गौरीकन्यामिमांश्लक्ष्णांयथाशक्तिविभूषितां॥ददा For Private and Personal Use Only Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार मियेष्णवेतुझ्यंसौभाग्यं देहिसर्वदा॥१॥ विष्णुरूपिणेश्वत्यकुंभायेमांकन्यांत्रीरूपि भास्कर ॥३४॥णीसंप्रददेइतिसमर्पयेत्॥ ततोवेष्टितसूत्राशनिःसार्यजलेप्राज्य॥ ततआचार्यः इजलेनरेंद्रयारुणपायमानीयमत्रैःपल्लवेनकन्यामभिषिच्यशद्धयाससापरिधाप्यवे वाह्य वस्त्रादिकं सर्वंआचार्यायदद्यात्॥ अनघायास्मीतिविवारंकन्यावदेत्॥ एवमस्थितिद्विजोयात्॥ आचार्यायवरंदत्वातस्मादाशिषी गृहीत्वाकर्मेश्वरायार्पयेन। // इतिकुंभविवाहः॥ ॥अथबालवैधव्य हरविष्णुमूर्तिदानं॥ तत्सकारोनारदेनो // 343 / / तः॥ ब्राह्मणंसाधुमामंत्र्यसंपूज्य विविधार्हणेः॥ तस्मेदद्याद्विधानेनविष्णोर्मूर्तिचतुर्म For Private and Personal Use Only Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir जां॥ शद्धवर्णसवर्णनपलस्यैकसलक्षणां॥ तदर्धेनतदर्धेनविलशस्यनुसारतः॥नि मितांरुचिरांशरवगदा-चकाजसंयुतां दधानांवामापीनकुमुदोत्पलमालिकांस दक्षिणांचतांदद्यान्मंत्रमेतमुदीरयेदिति ॥प्रयोगस्त॥देशकाल कीर्तनांतेममवैधव्यारिष्टनिरसनार्थअरवंडसोप्पाग्य प्राप्तयेचविष्णुपतिमादानंकरिष्ये॥ ताम्मपात्रते दुलेनापूर्यनदुपरिस्वर्णमयींकताभ्युत्तारणप्राणप्रतिष्टांविष्णुप्रतिमांचतुर्भुजायुधान्वि तांप्रतिष्ठाप्यषोडशोपचारः पूजयेत्॥ पूजाकालेपीतांबरादियस्याणिकुंडलायलंकारान् कुमुदादिपुष्पमालावार्पयित्वाप्रणमेत्॥ भगवन्कमलाकांतसर्वमंगलदायक। हत्वास For Private and Personal Use Only Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार पियरिष्टानिसौभाग्यंचाभिवर्धय॥१॥ इनिसंपार्थ्य।।प्रतिगृहीतारंब्राह्मणसंपूज्यार्चित भास्कर // 344 // |पतिमांसोपस्करांदद्यात्॥ दानमंत्रस्तु॥यन्मयाप्राच्यजनुषिनंत्यापतिसमागम। विषोप विषशस्त्राद्यैर्हतोवातिसरक्तया॥प्राप्यमानमहाघोरंयशःसौख्यधनापहं॥वैधव्याय निदुःरवौघान्नाशयसरवलब्धये॥बहुसोप्पाग्यदात्रींचमहाविष्णोरिमांतनुं॥सौच णीप्रतिमांशत्यातुभ्यसंपददेद्विज॥१॥इमामयार्चितांविष्णुप्रतिमांसोपस्करांवैधव्यारिष्टनिरासार्थअरचंडसौभाग्यप्राप्तयेचअमुकशर्मणेब्राह्मणायतुभ्यमहंसंप्रददेइति // 34 // || दत्वा ॥यथाशक्तिसवर्णदक्षिणांदखातस्मादाशिषोराहीला॥कन्याअनघायाहमस्मीतित्रि / For Private and Personal Use Only Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विदेत्॥एवमस्तितिविप्रोक्तिरहीत्वा॥ ब्राह्मणाम्भोजयेत्॥ ननोवैवाहिकंकुर्यात्।। इतिवैधव्ययोगहरविष्णुप्रतिमादानं॥ // 7 // ॥अथतृतीय मानुषीविवा हस्यनिषिद्धत्वात्तस्मिन्कर्तव्येसत्यर्कीविवाहविधिरुच्यते॥ ॥तत्रतृतीयमानुषी विवाहनिषेधमाह कश्यपः॥तृतीयांमानुषींनैवचतुर्थीयःसमुहहेत्॥पुत्रपौत्रादिसंप नकुटुंबीसामिकोवरः॥उदहेदितिसिध्ययंतृतीयानकदाचन॥मोहादज्ञानतोवापि गच्छेत्रींयदिमानुषी।बियतेनचसंदेहोगर्गस्यवचनंयथा॥ ॥यसिष्टः॥चतुर्थ्या विवाहार्थनृतीयार्कीसमुद्हेत् // आदित्यदिवसेवापिहस्तक्षेवाशनैश्चरे॥शुभेदिने / For Private and Personal Use Only Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार वापूर्वाण्हकुर्यादीविवाहकं // ब्राह्म। यामात्याच्यामुदीच्यांवासुपुष्पफलसंयुतां॥निरीक्ष्यय भास्कर // 345 // मनोधस्तात्स्थंडिलंरचयेदुधः॥ व्यासः॥स्नाखालंरुतवासांसिरत्नगंधविभूषितः॥सुपुष्प फलशारखंचअर्कीगुल्मसमाश्रयेत्॥सलक्षणेनकुंभस्थामीसंस्थाप्ययत्नतः॥अर्कक न्यापदानार्थआचार्यकल्सयेत्पुरा॥उभौगोत्रविभिन्नंतंशांनंदांनंदयान्वितं॥आचार्येणस्वयंभाव्यं दत्तांसूर्येणकन्यको॥ अर्कीसन्निधिमागत्यतत्रस्वस्त्यादिवाचयेत्॥नांदी, थाइंहिरण्येनअष्टवर्गान्प्रपूजयेत्॥पूजयेन्मधुपर्केणआचार्योयत्ननोवरम्॥ राज्ञोपवीतं // 345 // रस्त्रंचहलकर्णादिभूषण॥ उष्णीषगंधमाल्यादिवरायचपदापयेत् ॥ब्रह्मपुराणे॥ य For Private and Personal Use Only Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir थाविधीनिरुच्येतइत्यस्यानंतरंक्रमः॥रूलार्क पुरननिष्ठन्ग्रार्थयेनुद्विजोत्तमः॥ // // |बिलोकपासिन्समाश्चछाययासहिनोरये // तृतीयोडाहजंदोषनिवारयत संकुरु॥१॥ नवाध्यारोप्यदेवेशंछाययासहितरविं॥ वस्त्रैर्माल्येनथागंधै स्तन्मंत्रणपपूजयेत्॥तन्मंत्र आकृष्णनति॥ अन्यच्च॥ श्वेतवस्त्रेणमवेश्यनथाकार्पासतंतुभिः॥गंघपुष्पैःसमयय॑तलिंगैरभिषिच्यते॥ गुडौदनंतुनैवेद्य तांबूलंचममर्पयेत्॥व्यासः॥अर्कीपदक्षिा णकुर्वन्जपन्मंत्रमिमंबुधः॥ // ममप्रीनिकराययंमयासृष्टापुरातनी॥ अर्कजा ब्रह्मणासृष्टाअस्माकंपरिरक्षतु॥१॥ पुनःप्रदक्षिणरुत्वामंत्रेणानेनमंत्रवित्॥ // For Private and Personal Use Only Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie संस्कार नमस्नेमंगलेदेविनमःसवितुरात्मजे॥ आहिमांरुपयादेविपनीत्वमेइहागता / अलिशास्कर // 346 // ब्रह्मणासृष्टासर्वप्राणिहितायच॥वृक्षाणामादिभूतावंदेवानांप्रीतिवर्धिनी॥ तृतीरोडा हजंपामृत्युंचा निवारय // नतश्चकन्यावरणात्रिपुरुषकुलसञ्चरेत्॥ आदित्यासा विनाचार्कः पुत्रीपोत्री पपोत्रिका // गोवंकाश्यपइत्युक्तंलोकेलौकिकमाचरेत्। अन्यञ्च॥ वरःकाश्यपगोत्रश्चेत्तदाचार्यःस्वपूर्वजान॥उच्चरेन्ममपुत्रीतिस्वगोत्रैःस/ हिनदिधिः॥ ॥व्यासः॥समुहूर्तेीनिरीक्ष्यस्वस्तिसूक्तमुदीरयेत्॥आशिषश्चत | // 346 // निःकुर्यादाचार्यप्रसुईिजैः॥ यथाचार्यःसमाहूयविधिनातन्मुरवोच्चतां॥परिगृह्यन / For Private and Personal Use Only Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सोहोमंरायोक्तविधिनाचरेत्॥ ॥अर्कीदानमंत्रस्तु॥अर्ककन्यामिमांविषयथाश |क्तिविभूषितां॥ गोवायशर्मणेतुभ्यदत्तांविषसमाश्रय॥१॥ ॥अंजल्यक्षतकर्माणि रुत्वाकंकणपूर्वकं॥यावसंचावृतंसूबंअर्किवृक्षेप्रवेष्टयेत्॥पंचीरुलंपुनः सूत्रस्कंधे बभातिमवनः॥स्वशारखोक्ते नमंत्रणगायत्र्याचाथवाजपेत्॥ बृहत्सामेतिमत्रेणसूत्र रक्षांप्रकल्पयेत्॥अाश्चपुरतःपश्चाइक्षिणोनरयोस्तथा॥आमेयादिक्रमेणैवधि | दिक्षुअपिचैवहि॥ अष्टोकं मान्प्रतिष्ठाप्यक्रमेणेवयथाविधि॥प्रस्रवप्रतिकुंचत्रिभिः सूत्रेणवेष्टयेत्॥हरिद्रागंधसंयुक्तान्यूरयेच्छीतलैजलैः॥पंचपल्लवसंयुक्तान्फल For Private and Personal Use Only Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie मंस्कार रत्नसमन्वितान् ॥सर्वोषधिसमायुक्तापूर्णपावसमन्वितान्॥ पनिकुंभेमहाविष्णुसंपू- भास्कर // 347 ज्यपरमेश्वरं॥पाचार्यादीनिनैवेयं कुर्यान्नाम्नेयमंत्रविन्॥ऊमोदकैर्वरंअर्कीवारुणेरभि / पिंचयेत्॥ ॥अत्रहोमप्रकार:शौनकेनदर्शिनः॥तृतीयेतुविवाहेचसंप्राप्तेपुरुषस्या तु॥अर्कीविवाहंवक्ष्यामिशोनकोक्तविधानतः॥ अर्कीसन्निधिमागसतववस्त्यादिवा चयेत्॥ नांदीश्राईमकुर्वीतआचार्यवरयेननः॥ अर्कीमत्यर्च्यसौर्याचगंधपुण्यातना भिः॥सौर्याएवचसूर्यश्चआरुणेनकचेनच॥स्वयंचालंकृतस्तहस्त्रमाल्यादिभिः // 347 // कौः॥अर्कस्योत्तरदेशेतुस्थंडिलंकारयेत्तनः॥उल्लेखनादिकंरुत्याअमिंसंस्थापा / For Private and Personal Use Only Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie येत्ततः॥ब्रह्मासनादिकंरुखासमन्वारब्धएतया॥ एतयाअर्फकन्यया॥संस्कृताज्य सवेणेवआघारांतमतःपरं॥ आज्याहुतिंचजुहुयात्संगोपिरनएकया॥यस्मैखाकामका मश्चएतयाचततःपरं। व्यस्ताभिश्वसमस्ताभिस्ततअस्विष्टद्भवेत्॥परिवेशनपर्यंत मयाश्चेत्यादिकं कमात्॥ प्रार्थनामंत्रादिविशेषमा हव्यासः॥ पुनः प्रदक्षिणरुखामं बमेतसुदीरयेत्॥ मयारुतमिदंकर्मस्थावरेषुजरायुणा॥ अर्कापत्यानिनोद हितसर्वं क्षेतुमर्हसि॥१॥ // इत्यु काशांतिसूक्तंचजत्वाचविसजेसुनः॥गोयुग्मंदक्षि णांदद्यादाचार्यायचभक्तितः॥इतरेयोपिवित्योदक्षिणांचापिशक्तितः॥तत्सर्व For Private and Personal Use Only Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार गुरवेदद्यादंब्राह्मण भोजन॥ एवमौसममात्ययविधिनामानुषींपुरा॥उइ हेदन्यथा भास्कर // 34 // नेवपुत्रपौत्राभिवृद्धिमान्॥एवमेतद्विज श्रेष्ठविधिनासम्यगुइहेत्॥धनधान्यसमहिं) चइच्छाभीष्टवरंबजेदित्यर्कीविवाहक्रमः॥ // अथप्रयोगः॥ अत्रक्रियमाणविवाहासाश्चतुर्दिनादिव्यवहितेरविशनिवासरे हस्तनक्षत्रेशातिथ्यादिदिनेयामा त्याच्यासुदीच्यांचापुष्पफलयुतार्कीगुल्मंप्रयोज्यनदधोभागेपुरतःस्थंडिलंविरच्य।। अर्कीपश्चिमतोयजमान उपविश्य॥गुल्मस्यसमंतात्मागायष्टदिक्षुतंदुलेनाष्टदलानि // 34 // पिरच्यआचम्यमाणानायम्यदेशकालकीर्तनांते ममतृतीयमानुषीविवाहदोषपरिहा For Private and Personal Use Only Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie रार्थकतफलप्राप्तयेचअर्कीविवाहंकरिष्ये॥ तदंगविहितंनिर्विमार्थगणपतिपूजनेख स्लिपुण्याहवाचनमातृकापूजननांदीश्राद्धंचकरिष्येइतिरुवा॥ तच्चनांदीश्राद्धं हेम्नाकर्न न्यं ॥कर्मार्थस्वकुलाचार्यवृत्वा॥ अपरमर्कीदानाचार्यवृणुयात्॥ ततोवर:अर्कीगुल्मस्या येतंदुलाष्टदले महीघोरितिक्रमेणपूर्णपावनिधानांतंकलशंपनिष्ठाप्यगंगाद्यावाह्याभिम यवरुणसंपूज्य॥तदुपरिअम्युत्तारणप्राणप्रतिष्ठासंपायवर्णमयींछाययासहितामर्क | पतिमांप्रतिष्ठाप्य॥वख्योपवस्त्राणिसमH॥आरुष्णेनेनिषोडशोपचारेःसंपूज्य गुटोट |ननैवेयंदखा // पूजनांतेप्रार्थयेन्॥त्रिलोकवामिन्सप्ताश्चछाययासहितोरवे॥न्ता / For Private and Personal Use Only Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | योद्धाहजंदोषनिवारयसुखंकुरु॥१॥ ततोर्कीआपीहिष्ठेनित्यूचनशुहजलेनाभिषिच्यषो मास्कर ॥३४९॥डशोपचोरेःसंपूज्यप्रदक्षिणांकुर्यात्॥तवमंत्रः॥ममप्रीतिकगयांवैवयासृष्टापुरातनी॥ 'अर्कजाब्रह्मणासृष्टा यस्माकंपरिरक्षतु॥१॥ इत्येका॥नमस्तेमंगलेदेविनमः सवितुरान्म जारक्षमांकृपयागश्वसनात्मेइहागना॥१॥ इतिद्वितीयप्रदक्षिणा॥नतोर्कीपार्थ येत्॥ अर्कित्वंब्रह्मणासृष्टासर्वप्राणिहितायच॥वृक्षाणामादिभूनावंदेवानांप्रीतिव |र्धिनी॥१॥ सर्वारिष्टहरानित्यं सर्वमंगलदायिनी॥ तृतीयोद्धाहजंपापंमृत्युंचाशुविनाशय // 349) || // 2 // // ततोदानाचार्यः देशकालीस्मृताअर्कीविवाहार्थमागनंवरंमधुपर्कणार्चयिष्येइ For Private and Personal Use Only Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie |तिसंकल्पपूर्वकं स्वशारवोक्तविधिनावरायमधुपर्कपूजांसमर्पयेत्।।ततोचरः स्थंडिलेपंच | संस्कारपूर्वकमसिंप्रतिष्ठाप्य॥ अर्कीवरांतरालेअंतःपटंधृत्वाकर्माचार्यादिब्राह्मणेर्मग लपद्याष्टकंपरिखाओंपतिष्ठेत्युक्ताउत्तरनः अंतःपटनिःसार्य॥आचार्यादिब्राह्मणा: स्वस्तिनइन्द्रेनिमंगलसूक्तंपठेयुः॥ ततोजरांगच्छेनि अर्यवासोपरिधाष्य।। या अकंन नेत्युत्तरीयं॥ समंजंजिनिअर्कीनिरीक्ष्य॥यदाबध्ननितिमंत्रणमांगल्यनंतुंबीया त॥नतोगायत्र्याबृहत्सामेनपरिवेत्यनुवाकेनवाअर्कीवरयोः सूत्रमावेष्ट्य॥ननादानाचार्य दङ्मुरवउपविश्यदेशकालौस्मृताश्रीपरमेश्वरप्रीतयेअर्कीकन्यादानंकरिष्ये॥वरहस्तेशिवा / For Private and Personal Use Only Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार आपःसंवेत्यादिकखा॥वरस्यगोत्रोच्चारः॥अमुकसगोत्रस्यअमुकप्रवरस्यअमुकर्म भास्कर ण:प्रपोवाय॥ अगो० अ० प्र० अ-श पौत्राय॥ अम्गो अम० अ०श पुत्राय॥ अ. गो० अ०प्र० अ० श०णेवराय॥ अथार्कीपक्षे॥काश्यपगोत्रस्यकाश्यपावत्सारनैध्रुवेति विप्रवरस्यआदित्यस्यप्रपौत्रीं॥ कान्गो का त्रिप्र. सवितुः पौत्री। कागो विप्र अर्क स्यपुत्रीं॥ का गोबोत्पन्नाकाविप्र अर्कीनाम्नीमांकन्यांसूर्यदेवत्यांतवतृतीयमानुषीविवाहो पनिरासार्थभार्यात्वेनत्तुभ्यमहसंपददे ॥अनेनार्कीशारवांवरहस्सेदवातदुपरिसकुशी- // 30 // |दकंनिषिंचेत्॥एवं त्रिवारंकुर्यात् ।।वरस्यकाश्यपगोत्रं चेनर्हिदानाचार्यः अर्कीनाम्नी / / For Private and Personal Use Only Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir इमांकन्यासूर्यदत्तांविसाव्यस्वगोत्रोच्चारपूर्वकंआत्मनश्चत्रिपूर्वजान्ममपुत्रींइत्यू हंकुर्यात्॥ // अर्कीकन्यामिमांविप्रयथाशक्तिविभूषितां ॥गोत्रायशर्मणेतुन्या दत्नाविप्रसमाश्रय॥१॥ ॥ततोवरः अयुपरिअक्षतांजलीनीन्समर्पयेत्॥तब मंत्राः॥ ॐ यज्ञोमेकामः समृध्यताम्॥इतिप्रथमांजलि:॥ॐ धर्मोमेकामः समृध्य नाम्॥ इतिद्वितीयां०॥ ॐ यशोमेकाम: समृध्यताम्।। इतितृतीयो०॥ // ततोर्कीगुल्मे परिवेत्यनुवाकेनवेष्टितंसूत्रनिष्कास्यपंचगणरुवातत्रहरिद्राखंडंबधातलंकणंब हसामेतिमंत्रणअर्कीदक्षिणशारवायांबधीयात्॥नत्रमंत्रः। ॐ बृहत्सामनक्षत्रम For Private and Personal Use Only Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार द्धवृष्टयंत्रिष्टुमौजशुभितमुग्रवीरं॥इंद्रस्तोमेनपंचदशेनमध्यमिदंबाननुसगरेणर-भास्कर |क्षा॥१॥इनिमंत्रणकंकणंबधीयात्॥ततोर्कीदिग्विदिक्षुरुताष्टदलेमहीद्योरित्यादिक्रमे गाष्टोकुंभान्संस्थाप्य॥केचित्लागादिचतुर्दिक्षुचतुरःकुंभान्॥ सूत्रेणावेष्ट्यचंदन प्रक्षेपणे;ष्टगंधंक्षिप्वापूर्णपात्रंनिधायतेषुनाम्माविष्णुमावास्यषोडशोपचारेःसंपूजा येत्॥ // वरः देशकालकीर्तनांतेअर्कीविवाहांगभूतंहोमंकरिष्ये॥ ॥तोदक्षि णतोब्रह्मासनादिआज्यभागांतंचरुवर्जकुशकंडिकांसंपाद्य॥ तत्रापारावाज्यभागो | // मनसा॥ॐ प्रजापतयेस्वा. इदंप्रजा० नमम॥ॐइंद्रायस्वा इदमिन्द्रा॥ॐ अमये For Private and Personal Use Only Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्वा. इदमनये०॥ ॐ सोमायस्वा इदंमोमायः॥ ॥तनोबृहस्पति अमिंचैकैकयाहु त्याज्येनहुला॥तद्यथा॥ॐ संगोभिरांगिरसोनक्षमाणोभगऽ इवदर्यमाणंनिनाय॥ज नैमित्रोनदंपतीअनक्तिबृहस्पनेबाजयांगुरिवाजोस्वाहा॥ इदंबृहस्पतयेनमम॥ ॐ य स्मैलाकामकामायवहंसम्भाड्यजामहे॥ तामस्मात्यकामंदसायथेदंघृतंपिबस्वाहा॥इद ममयेनमम॥ ॥तनोव्यस्तसमनव्याहती त्याज्येन॥ ॐ स्वा. इदमम०॥ ॐ भुवःस्वाम इदंबायचे॥ॐ स्वः स्वा इदंसूर्यायः ॥ॐ भूवः स्वःस्वा इदंप्रजापतये॥ ततःविष्टक त्॥तत्तोभूरायाःप्रजापत्यांतानवाहुतीराज्येन॥ ॥ततासंसवमाशनादिपणीनाविमोको For Private and Personal Use Only Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कारी होमशेषसमापयेत् ॥ततोर्कीमार्थयेत्॥मयारुत्तमिदंकर्मस्थावरेषुजरायणा॥ अर्काप- भास्कर // 352 // त्यानिनोदेहितसर्वक्षतुमर्हसि॥१॥ततआचार्योगंधादिक्षिसंपूज्यताभ्यांचगोयुग्मंदद्यात्॥ ष्टिोब्राह्मणाभोजयेत्॥ नानानामगोत्रेभ्योबाह्मणेभ्योभूयसींदक्षिणांदखा॥राशिषोराहीला पूजोपकरणादिकं आचार्यायदत्वा॥स्थापिनदेवनानांउत्तरपूजांकखा।देवतामिक्सृिज्यायस्या स्मृत्येतिनत्वाकर्मेश्वरार्पणेरुत्वा॥ शांतिसूक्तंजपेत्॥ // एवंरुत्वाविशतुभार्याक्षेमंचविंद तीनि॥ // इतिश्रीमदृषिभट्टविरचिनेसंस्कार भास्करेअर्कीविवाहपोंगः॥ // 5 // // 352 // // // अथानादिष्टप्रायश्चित्तं॥ कालातिकमेनियतवन्॥गर्भाधानादीनिउपनयनांनानिक / For Private and Personal Use Only Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie माणिनियतकालान्यपिहितानि॥यदिदैववशात्पुरुषापराधाहादोषाहातेषांनियनस्य || कालस्यअतिक्रमोमवतिनदाकिंकर्तव्यमिनिसंदेहेनिर्णयमाह॥कालातिक्रमेयस्यसंस्कार कर्मणःशास्त्रनियमितोयः काउस्तस्यअतिकमेलंघनेनियतवनिस्सवन्नित्येश्रोतकसेयदि हिनंतहत्अनादिष्टप्रायश्चित्तंभवति एवकृतप्रायश्चित्तस्यअतिक्रांतकालेसंस्कारकर्मण्य धिकारः संपद्यते॥अनादिष्टप्रायश्चित्तेतिकर्तव्यताप्रयोगेवक्ष्यते॥ अत्रकालातिकमइत्युपल क्षणं॥ ॥अतः अन्येषामपिकर्मणानाशेइदमनादिष्टमेवप्रायश्चित्तागृह्यकारेणपायश्चित्तांतर | स्यअनुपदिष्ट खान्॥किंतुीतानामनिदेरोप्राप्तेअविज्ञातेपनिमहाव्याहृत्तिभिःसर्वामिश्चतुर्थ For Private and Personal Use Only Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandie संस्कार सर्वप्रायश्चित्तेचेत्यस्येवकालातिकमेनियतवदित्यनेनानिदेशः कृतोनतूपदेशरुत:॥ भास्कर // 353 // गृह्यकारेणतत्रविज्ञातमप्रत्यक्षश्रुतिमूलं॥किमिदमार्वेदिकंथार्जुर्वेदिकंसामवेटिकंचत्वनि श्रितस्मातकर्मतस्यारो यौनकल्सेच्यातिचतुष्टयपंचवारुणहोमंप्रायश्रिनंउहिष्टमत्राय यसूत्रगृह्योक्तकर्मणामपिस्मार्तवात शेतस्थेवानिदेशोयुक्तः॥नपुनःप्रत्यक्षवेदमूलकम, शोपदिष्टता॥ कालातिक्रमेनियतवदित्यस्यार्थउक्तः॥ इनिकर्तव्यताबलिप्यते॥पूर्णा हुतिवदाज्यंसंस्कृत्यअनादिष्टप्रायश्चित्नहोमकुर्यात्॥पूर्णाहुतिर्यथाकात्यायनसूत्रेपूर्णा // 353 // // इतिजुहोनिनिरूप्याज्यंगार्हपत्येधिश्रित्ययुक्नुवंचसंमृज्याज्यमुद्दास्योत्पूयावेक्ष्यगृही। For Private and Personal Use Only Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्वान्यारब्धएवर्ट सर्वत्र॥ // अवैपयोगः॥ ॥यदावसयिकस्यअनादिष्टंप्राप्नोतिनदा || मिःसंतएव॥ यदिनिरमेस्तदासद्धायांमौउक्तमानेनस्थंडिलंविरच्यनवपंचभूसंस्कारान्छ खालौकिकानिस्थापयित्वास्थाल्यामाज्यनिर्वाप्याग्रावधिश्रित्यनुवंद.ः संमृज्याज्यमुद्दास्य कुशतरुणाभ्यामुत्सूयावेक्ष्यमुयेणादायोपरिसमिधंनिधायोत्थायस्सुवंसव्येऊखादक्षिणेनानौनिष्ठन्समिधमाधायोपविश्यदक्षिणंजान्वाच्यओंभूःखाहेतिस्वस्थेनाज्येनैकामाहुतिहु खा॥इदमायेनममेतित्यागः एवंसर्वत्र॥ॐ भुवः स्वाहा॥ इदंवायवे ॥ॐ स्वःस्वाहा | इदंसूर्याय ॥ॐ भूर्भुवः स्वःस्वाहा॥इदंप्रजापतये ॥ॐ बन्नो अग्ने मुग्ध्यस्मस्वाहा। For Private and Personal Use Only Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir संस्कार | इदममीवरुणायां // ॐ सत्खन्नो अग्ने नएधिस्वाहा॥इदममीवरुणात्यो। ॐ अयाचा भास्कर // 35 // मे मेषजः स्वाहा॥ इदमग्नये अयसे०॥ ॐ बेतेशतं स्वर्गःस्वाहा॥ इदंवरुणायसवित्रे विष्णवेविश्वेश्योदेवेश्योमरु-द्यः पश्यश्च ॥ॐ उदुत्तम स्यामस्वाहा॥ इदंवरुणाया दित्यायादितयेच०॥एवंवेणादायाज्याहुतिर्नुहोनि॥ // इदंनवाहुनिहोमात्मकंयत्रय प्रायश्चित्तानादेशःकर्मणांनियतकालातिकमोवातत्रतत्रानादिष्टसंज्ञकंपायश्चित् वेदितव्य म्॥ // इत्यनादिष्टप्रायश्चित्तम्॥ ॥ग्रंथाननेकानालोक्यययामनिमयारुतः॥याज्ञि | कानांहितार्थाय श्रीरामचरणार्पितः॥ 1 // भूनेवरसाशाके 1621 प्रमाथिनिझसे | For Private and Personal Use Only Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie मधौ॥ ऋषिसंज्ञेनरचितः सर्वसंस्कारभास्करः॥२॥ // 7 // // 7 // // अयं षोडशसंस्कारपयोगग्रन्थो मोहमय्यां राजधान्यां सोहनीत्युपनामधेयस्य नाराय णस्य जगदीश्वरारण्ये मुद्रणालये शिलायन्त्रे शके यांङ्कर्षिभूमिते 1799 अधिक शुक्र शुक्ला ष्टम्यां भास्करवासरे चासुद्यतः तेनसकलेशःप्रसीदतु. हा ग्रंथ सन् 1867 च्या २५व्या आयाममाणे रजिस्टर केला आहे. किम्मत ३रुपये For Private and Personal Use Only Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir i Canada WANAO n a naman aman dann nay NYA NYAYO Yamanannya.WYOYOY YYYYYY YY WOWOWILDW इतिसंस्कारसास्करः समाप्तः ID UZUUDUBULUVUUUUUUUUUUUUUUUUUUUDUVVUULUVUUDUUUUUUUUUUU For Private and Personal Use Only Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only