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योगशास्त्र
दूसरे दिन प्रातः काल वह भगवान् बुद्ध के पास गया और बोला, "भगवन्! मुझे शिष्य बनाइये ।"
बुद्ध भगवान् ने उसे एक मंत्र दिया और कहा, " वत्स ! तीस रातदिन तक इस मंत्र का अखंड जाप करना । जाप करने के पहले जितने कंकर पत्थरों का ढेर इकट्टा कर सकते हो, कर लेना । जाप पूर्ण होने पर ये सभी कंकर पत्थर रत्न बन जायेंगे ।"
गरीब ने २९ दिन-रात तक अखंड जाप किया किन्तु कंकर रत्न नहीं बने । ३० वें दिन भी प्रखंड जाप चलता रहा पर कंकर तो अब भी कंकर ही थे, रत्न बनने जैसा कोई परिवर्तन ही उनमें दिखाई नहीं दे रहा था । ३० वीं रात बीतने में मात्र दो घंटे शेष रह गये थे, पर कंकर तो अब भी कंकर ही थे, वे रत्न नहीं बने । गरीब की श्रद्धा खंडित हुई, वह बड़बड़ाने लगा, “भूख से जान निकली जा रही है, अरे कंकरों ! अनाज तो बन जाओ ।" उसका इतना बोलना था कि कंकर अनाज बन गये ।
गरीब ने बुद्ध भगवान् के पास जाकर पूछा, "भगवन् ! कंकर रत्न तो न बने पर अनाज बन गये, इसका क्या कारण है ?"
भगवान् बुद्ध बोले, '३० वीं रात्रि की अंतिम घड़ी श्रौर पल ही उत्तम थे, उसी समय उत्तम नक्षत्रों का योग होने वाला था । यदि तू थोड़ा धीरज रखता तो सारे कंकर रत्न बन जाते" ।
यह सुनकर गरीब सोचने लगा, शिष्य बना तो भी गरीब का गरीब ही रहा, अब शिष्य हो जाऊं तो जन्म-जरा-मरण से बच जाऊ' । आप भी इस ग्रन्थ को शिष्य होकर सुनें ।
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एक विद्यार्थी अरब देश से भारत में पढ़ने के लिए आया । उस समय गुरुकुलों में विद्याभ्यास कराया जाता था । एक समय गुरुजी पाठ पढ़ा रहे थे तभी एक हाथी गुरुकुल के मकान के पास से निकला । सभी विद्यार्थी हाथी को देखने के लिए बाहर चले गये, किन्तु वह अरब देश का विद्यार्थी खड़ा भी नहीं हुआ । गुरु ने उससे पूछा, "तुम्हारे देश में तो हाथी नहीं होता । तुमने कभी हाथी देखा भी नहीं होगा ? फिर भी तुम हाथो देखने नहीं गये, इसका क्या कारण है ? क्या तुम्हारे मन में हाथी को देखने की उत्सुकता पैदा नहीं हुई ?" विद्यार्थी बोला, "मैं हजारों मील की