Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ । पांच महाव्रत की पांच भावना दुखों को सहन करता है, फिर भी उन्हें छोड़ नहीं सकता, वह नामर्द पुरुष है । दूसरा वासना को घृणा तो करता है, फिर भी उसमें तल्लीन हो जाता है, वह अर्ध मर्द है। तीसरा वासना के वशीभूत नहीं होता, वह पूरा मर्द है। अशुभ विचार विषय-वासना की देन है। मन में अमृत भी भरा है। और विष भी भरा है। अनादि काल से भरे विषय विष का वमन कराने के लिये शत्रुभावना रूपी औषधि का सेवन अत्यंत उपयोगी है। कहा है ___ 'जं चलं तयं चित्तं ।' जो अस्थिर है, चंचल है, वह चित्त है। चित्त के तीन भेद हैंभावना, अनुप्रेक्षा और चिन्ता । मैत्री आदि चार या अनित्यादि १२ भावनाएं ध्यानाभ्यास के लिये उपयोगी हैं । स्मृति ध्यान से भ्रष्ट चित्त चेष्टा अथवा गहरी विचारधारा अपनाने का प्रयत्न अनुप्रेक्षा है । अनुप्रेक्षा न हो तो चिंता पाकर अपना अड्डा । जमा लेती है। अनेक प्रकार की चिंताएं मनुष्य के कलेजे को खा जाती है । एक सेठ का लड़का घोर जंगल में गया । ज्येष्ठ का महीना, भयंकर प्यास लगी । गंदे खड्ड में पानी देखा, पी लिया । घर पहुँचते ही पेट में भयंकर दर्द हो गया। वैद्य को दिखाया, उसने जान लिया कि पानी में जलोदर के कीटाणु होंगे जो पेट में उथल-पुथल कर रहे हैं । उसने हुक्के का पानी पिलाया, जिससे वमन होकर कीटाणु निकल गये। जलोदर कीटाणु की भाँति चिता भी प्रापके कलेजे को खाती है । शादी की सुहागरात थी। पति पत्नी से पूछता है, "अपनी संतान सुन्दर रूपवान होगी, उसका नाम क्या रखोगी ?" पत्नी ने कहा, 'उसका नाम शेरखाँ रखेंगे । मैं उसे बहुत संभाल कर रखूगी, कहीं नजर न लग जाय।" पति ने मजाक किया ! “क्या डाकिन खा जायगी ? कहीं शेरखां मर गया तो ?" "क्या कहा ? शेरखां मर गया, हाय ! हाय ! दोनों जोरजोर से रोने लगे 'हाय हाय रे शेर मियां स्वर्गे सिघाव्यां । शाने काजे अल्ला हे बुलाव्या ।। For Private And Personal Use Only

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