Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 138
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ ] सत्य सत्य की प्रशंसा में किसी कवि ने कहा है:'कमल सेठ ए व्रत से सुखीग्रो, झूठ से नंद कलिया रे । श्री शुभ वीर वचन प्रतीते, कल्प वृक्ष फल्यो रे ।।' कमल सेठ ने इस व्रत का पालन किया, अतः वह सुखी हुअा। सत्यव्रत की विराधना से नंद नामक बनिक पुत्र दुखी हुना। भारु नामक ब्राह्मण माँस खाने वाली चंडालिन से पूछता है कि "तू मार्ग में जल क्यों छाँट रही है ?" उसने कहा, "झूठ बोलने वाले कम चंडाल मनुष्य इस मार्ग की भूमि को स्पर्श कर इस अपवित्र कर चले गये हैं । उनको अपवित्रता को दूर करने के लिये मार्ग में जल छाँट रही हूं।' सत्यव्रत को कैसे दृढ़ करें ? कहा है 'हास्य लोभ भय क्रोध प्रत्याख्याननिरन्तरम् ।। अालोच्य भाषणेनारिण भावयेत् सून्टतव्रतम् ।।' हास्य, भय, लोभ और क्रोध के निरंतर त्याग से और विचार पूर्वक बोलने से सत्यव्रत मजबूत होता है । सत्य किसे कहते हैं ? कहा है:-- 'प्रियं पथ्यं वचस्तथ्यं सून्ट तव्रतमुच्यते । तत्तथ्यमपिनो तथ्यमप्रियं चा हितं च ।।' दूसरों को प्रिय लगने वाला, हितकारी और मधुर वाणी से कहे गए सत्य तथ्य को सत्य नामक महाव्रत कहा गया है। यदि आप समयानुसार योग्य व्यक्ति के समक्ष उचित शब्दों में अपनी बात कहेंगे तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी। सत्य कहना भी आना चाहिये। पाँच में से एक घटाने पर चार शेष रहेंगे। दो और दो जोड़ दें तो चार होंगे। दो को दो से गुणा करने पर भी चार होंगे और पाठ में दो का भाग देने पर भी उत्तर चार होगा । चार का अक अलग अलग पायेगा फिर भी सबका उत्तर एक ही होगा। अब असत्य के फल किसे कहते हैं: 'मन्मनत्वं काहलत्वं मूकत्व मुखरोगिता ।। दीक्षाऽसत्य फलं कन्या-लीकाध सत्यमुत्सृजेत् ।। समझ में न पाये ऐसा मुनमुनाना, गूगापन, मुख रोग प्रादि सभी असत्य के फल हैं। अत: जानबूझ कर कन्या, भूमि, गाय, थापन आदि के बारे में झूठ नहीं बोलना चाहिये, झूठी साक्षी नहीं देनी चाहिये। 'अलियवयणं भयंकर अयसकर वेरकरणं' असत्य वचन, भय, दुःख, अपयश और वैर पैदा करने वाला है । For Private And Personal Use Only

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