Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ब्रह्मचय [ प्रकार ब्रह्मचारी के मन मस्तिष्क में शक्ति केन्द्रित रहती है और वही शक्ति संपूर्ण शरीर को मिलती है । आज वैज्ञानिक भी कहता है कि मस्तिष्क ज्ञान का केन्द्र है । उसी में चेतना का निवास रहता है । मस्तिष्क ही सारी क्रियाओं का संचालन करता है । मस्तिष्क में छः अरब तन्तु मांसपेशियाँ और सूक्ष्म नाड़ियें हैं । उनमें से बहुत सचेतन रहती है, शेष सुप्तावस्था में पड़ी रहती हैं । जितने अधिक ज्ञान-तन्तु सचेतन होंगे उतना ही अधिक ज्ञान प्राप्त होगा । ब्रह्मचर्य की साधना से ज्ञान-तन्तुओं को शक्ति मिलती है, वे जागृत होते | ज्यों ज्यों ब्रह्मचारो का तेज बढ़ता है, त्यों त्यों उसकी बुद्धि भी निर्मल होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'विन्दन्ति परमं ब्रह्म यत्समालम्ब्य योगिनः ! तद् व्रतं ब्रह्मचर्य स्याद् धीर धौरेय गोचरम् ।।' जिस व्रत का अवलबन लेकर योगी पुरुष परम ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त करते हैं और जिसको धीर वीर पुरुष ही धारण कर सकते हैं, वह ब्रह्मचर्य नामक महाव्रत है । 'छेदात्पुनः पुरोहति ये साधारण शारलीनां । तद्वच्छन्नानि चांगानि प्रादुर्यान्ति सुशीलतः ।।' १३७ जिस प्रकार अनन्तकाय वनस्पति का छेदन करने से वह फिर उग जाती है, उसी प्रकार उत्तम शील व्रत से छेदन किये हुए अंग भी वापस श्रा जाते हैं । 'एकमेव व्रतं श्लाघ्यं ब्रह्मचर्य जगत्रये ।' तीनों लोकों में ब्रह्मचर्य ही पूजने योग्य है। शायद हम अपने मस्तक पर उड़ते अशुभ पक्षियों को न भी उड़ा सकें पर अपने बालों में पक्षी को घोंसला तो नहीं डालने देंगे। उसी प्रकार ब्रह्मचर्य कठिन व्रत है, फिर भी जब शूरवीर इसका पालन कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते । जो वितराग स्वामी के दर्शन भाव- भक्ति से करता है, उसके दुःख दारिद्र्य सब मिट जाते हैं । For Private And Personal Use Only

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