Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विधा की शोभा आप पढ़े हुए हो ? यदि हाँ, तो आप में नम्रता आई या नहीं ? विनय की खुशबू आपके कार्यकलापों में कितनी आ रही है ? क्या आपकी प्रवृत्ति से भ्रमरवत् प्रत्येक व्यक्ति प्रापकी ओर आकर्षित हुआ या नहीं ? पूछिये अपने अन्तर मन को। पढ़कर के पंडित तो कोई भी हो सकता है, परन्तु पण्डितोचित गुण प्रत्येक में नहीं पा जाते। पाण्डित्य-पूर्ण जीवन की मुद्रिका (अनूठी) में विनय का हीरा जड़ा हुग्रा रहता है। विनय है, तो आप विद्वान् हैं, अन्यथा आपकी ही विद्वत्ता आपको गहरे गर्त में पटक देगी। For Private And Personal Use Only

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