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विधा की शोभा
आप पढ़े हुए हो ? यदि हाँ, तो आप में नम्रता आई या नहीं ? विनय की खुशबू आपके कार्यकलापों में कितनी आ रही है ? क्या
आपकी प्रवृत्ति से भ्रमरवत् प्रत्येक व्यक्ति प्रापकी ओर आकर्षित हुआ या नहीं ? पूछिये अपने अन्तर मन को। पढ़कर के पंडित तो कोई भी हो सकता है, परन्तु पण्डितोचित गुण प्रत्येक में नहीं पा जाते। पाण्डित्य-पूर्ण जीवन की मुद्रिका (अनूठी) में विनय का हीरा जड़ा हुग्रा रहता है। विनय है, तो आप विद्वान् हैं, अन्यथा आपकी ही विद्वत्ता आपको गहरे गर्त में पटक देगी।
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