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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपरिग्रह [ १४१ डाक्टर ने लड़के को डाँटा, “यदि यों एक दिन में रोगी को ठीक कर दोगे तो कमाई कैसे होगी ?" यह कुहेतु अक्ल है या नहीं ? इसमें परिग्रह की कितनी लालसा है ? चूल्हे की आग तो एक होती है किंतु असंतोषी की आग तो एक साथ ग्यारह होती है । कहावत भी है बनिये की उदासीनता कभी नहीं मिटती । अकबर बादशाह एक बार बाजार से जा रहे थे सभी झुक झुक कर सलाम करते थे। एक बनिया उदासीन होकर सिर पर हाथ रखे बैठा था। बादशाह ने बीरबल से पूछा, 'बनिया उदास क्यों है ?' बीरबल बोला "ब्रह्मा भी इसकी उदासी नहीं मिटा सकता।" बादशाह ने बनिये को बुलाया और पूछा "तुम उदासीन क्यों हो ? व्यापार में कमी हो गई या कोई उपाधि है ? बनिया बोला, ' मैंने कपड़े खरीदे, पर ग्राहकी नहीं हुई। कपड़े की १५० गाँठे पड़ी हैं, भारी रकम रुक गई है, इसी से उदास हूं।" बादशाह ने कहा, "ठीक है कल से ग्राहकी बढ़ जायेगी।" दूसरे दिन बादशाह ने एलान किया कि "राज्य सभा में पाने वाले सभी लोग नये कपड़े पहन कर आयेंगे। वर्ना पाँच सौ रुपया दंड देना होगा।" बनिये ने सब कपड़े सौ, डेढ सौ, दो सौ रुपये के भाव से बेच दिये। अंतिम ग्राहक बीरबल पाया, उसे भी २५० में बेच दिया । कुछ दिन बाद बादशाह और बीरबल फिर बाजार में गये। देखा बनिया आज भी उदासीन था । बादशाह ने उससे उदासीनता का कारण पूछा । बनिया बोला, "सारे कपड़े सौ, डेढ सौ में बेच दिये, अंतिम बचा उसे २५० में बेचा । यदि समी २५० में बेचता तो कितना नफा होता ?'' देखा आपने असंतोष का खेल ? असंतोष कभी मनुष्य को सुखी नहीं रहने देता। अत: परिग्रह का त्याग कर संतोष को धारण करने में ही सच्चा सुख है। तीर्थयात्रियों की चरण-रज से रंजित मनुष्य कर्मरज से रहित हो जाते हैं अर्थात् मोक्षसुख पाते हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
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