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अपरिग्रह
नहीं मिला तो क्या होगा? धनी लोगों की हालत कैसी होती है ? कहा है
'भक्त द्वषो जड़े प्रीतिप्रवृत्तिगुरु लंघने, मुखे च कटुता नित्यं धनिनां ज्वरिणामिव ।'
किसी विद्वान ने धनाढ्य पुरुष की तुलना किसी ज्वरग्रस्त रोगी से की है। जैसे ज्वर ग्रस्त व्यक्ति के शरीर में गर्मी होती है, वैसे ही धनवान के शरीर में धन की गर्मी होती है। जैसे ज्वरग्रस्त पुरुष को भोजन से अरूचि होती है, वैसे ही धनवान को भी प्रायः भोजन से अरूचि हो जाती ज्वरग्रस्त का मुह कडुवा होता है वैसे ही धनवान के मुह से भी हमेंशा कड़वी बात निकलती रहती है, रात दिन भूखा रहता है, बड़े लोगों की अवगणना करता है और घमंड से छाती फूली रहती है । - भूत, भविष्य और वर्तमान काल में होने वाले सभी युद्धों के मूल में संग्रहवृत्ति हैं । धनवान अपनी संपत्ति बढ़ाते गये, राजाओं ने अपने राज्य की सीमाएँ लंबी कर दी और सत्ताधारियों ने अपने सत्ता के क्षेत्र को विशाल कर दिया। सब में युद्ध का मूल परिग्रह है । परिग्रह की लालसा में भयानक से भयानक पाप और निर्दयता हो सकती है। धन की मूर्छा जीवन को निर्दय बनाये बिना नहीं रहती । आप पूछेगे कि धन के प्रति इतनी मूर्छा क्यों ? क्योंकि धन ही शक्ति का माध्यम है । धन में अनेक वस्तुएं खरीदने को शक्ति है । सुख के संपूर्ण साधन धन से ही प्राप्त होते हैं।
इच्छा प्रारंभ है तो ममत्व परिग्रह है । सर्दी की ऋतु में घी निकालते हुए एक व्यक्ति की अंगुली में घी की फांस लग गई, अंगुली दर्द करने लगी। डाक्टर के पास गया, इंजेक्शन लगवाया, दवाई ली, पट्टी बंधवाई । सेफ्टीक न हो जाय इस भय से रोज पट्टी बंधवाता । एक महीना हो गया, दर्द मिटता नहीं, पट्टी का खर्च बढ गया। अचानक डाक्टर किसी काम से दूसरे शहर को गया और उनका लड़का मरीज देखने लगा। अंगुली के दर्द वाले को भी देखा, दस मिनट अंगुली गर्म पानी में रखी, घी की कांस घी पिघलने से निकल गई और दर्द मिट गया। जब डाक्टर लौटे तो रोगी ने कहा "अापने एक महीने पट्टी बांधी तो भी दर्द नहीं मिटा, मापके लड़के ने १० मिनट में दर्द मिटा दिया।" रोगो के जाने के बाद
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