Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ 1 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'तवेसु वा उत्तम बंभचेरं । ' सभी प्रकार के तपों में ब्रह्मचर्य उत्तम तप है क्योंकि यह साधक को अत्यन्त कठिनाई से सिद्ध होता है । किसी विद्या को प्राप्त करना या किसी देव को साध लेना सरल है, परन्तु ब्रह्मचर्य का पालन प्रत्यन कठिन है । अन्य धार्मिक विधियों में आपका मन भटक सकता है, पर ब्रह्मचर्य की साधना में तो मन की एकाग्रता आवश्यक है । 'जे चारित्र निर्मला, जे पंचानन सिंह | विषय काय ने गजिया, ते समरू निसदिश ।। ' ब्रह्मचर्य आपकी शंका है कि लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले साधु का समय कैसे व्यतीत होता होगा ? उत्तर है: 'ज्ञान ध्यान क्रिया साधना काढे पूर्वना काल ।' 'तप कर बाल कराल ले हाथ में, वरिये शिव वधु झट पट में ।' (१) ज्ञान की साधना, (२) ध्यान का अभ्यास और ( ३ ) क्रिया में अप्रमतत्ता से वे अपने समय को आसानी से बिताते हैं । तप की तीक्ष्ण तलवार हाथ में लेकर मोक्ष रूपी दधु का शीघ्र वरण करें । तप की तलवार के सामने श्रासक्ति नहीं ठहर सकती । हे जीव क्या तू छः महीने का तप करेगा ? शक्ति नहीं है, परिणाम भी नहीं है । सोलहभत्त (अट्ठाई ) कर लेगा ? शक्ति है. परन्तु परिणाम नहीं है । पर्युषण का भत्त (तेला) कर लेगा ? शक्ति है, परिणाम भी है । 'तवेसु वा उत्तम बंभचेर ।' For Private And Personal Use Only सभी तपों में ब्रह्मचर्य उत्तम तप है। जिसने काम मल्ल को जीत लिया है, वह आत्मा धन्य है । वन्दनीय है, तीनों लोकों में पवित्र है । आत्मा नित्य है, अनादि अनंत काल से है । मोक्ष उसकी स्वाभाविक प्रगतिशील स्थिति है । इस ध्येय की सिद्धि में दूसरे व्रतों की तरह ब्रह्मचर्य भी एक साधन है । इसीलिये ब्रह्मचर्य पालन श्रात्म धर्म है । आत्मा का जीवन है, मोक्ष का एक उपाय है । 'ब्रह्मणी चरणमिति ब्रह्मचर्य: । ' आत्मा में विचरना ब्रह्मचर्य है । ब्रह्म अर्थात् वीर्य, विद्या या श्रात्मा

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