Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 144
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० । अवार्य व्रत हवा में उड़ न जाय इसलिये १७८२ रस्सियें लटका दी जिनसे तंबू को मजबूत बांध दिया। जिससे हवा और पानी से रक्षा हो सके । उस तंबू का नाम था संयम तंबू । उसमें बैठने के बाद विषय विकार कषाय रूपी भाव नहीं पा सकते । पाँच बाँसों के नाम थे अहिंसा, सत्य, अचीय, ब्रह्म वर्य मौर अपरिग्रह । सत्ताइस कीलों का नाम था अहिंसा के चार सुक्ष्म, बादर, त्रस और स्थावर । सत्य के चार क्रोध, लोभ भय और हास्य । अचौर्य के छ अल्प, बहुत्व, हल्का, भारी, सजीव, अजीव । ब्रह्मचर्य के तीन देव, मनुष्य और तिर्यच संबंधी। परिग्रह के छ थोड़ा, बहुत, हल्का, भारी, सजीव, अजीव । रात्रि भोजन त्याग के चार प्रसन (अन्न), पान (पेय, खाद्य (फल, मेवा मादि) मौर स्वाद्य (पान सुपारी आदि)। अहिंसा की ४, सत्य की ४, अचौर्य की ६ ब्रह्म वर्य की ३, परिग्रह की ६ और रात्रिभोजन को ४ इस प्रकार कुल २७ कीलें हुई । अहिंसा के ४ भेद त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर इनकी हिंसा करनी सोते, जागते, दिन में रात में, अकेले या समूह में अतः ४४ ६ = २४ हुए। करु नहीं, कराऊ नहीं, अनुमोदु नहीं २४४३ = ७२ हुए । मन, वचन काया से ७२४३ = २१६ हुए । २१६ रस्सी अहिंसा को हुई । सत्य की क्रोध, लोभ भय, हास्य से २१६ रस्मी हुई। अचौर्य की अल्प, बहुत्व, हल्का, भारी, सजीव से ३२४ रम्सियें ब्रह्मचर्य की देव, तिर्य च, मनुष्य से १६२ रस्सी हुई। अपरिग्रह को थोड़ो, बहुत हल्का, भारी सजोब, अजीव से ३२४ रस्सियें हुई। रात्रि भोजन त्याग की असन, पान, खाद्य स्वाद्य से २१६ रस्सी हुई । छ काय की ६, स्थावर की ५ त्रस की १ कुल ५, त्रस की १ कुल ६x६-३६x६-३२ कुल २१६+२१६ +-३२४ -१६२ ।-३२४+२१६ +-३२४ = १७८२ ६३२४ = १७ रस्सियें हुई। _इतनी मजबूत रस्सियों से बंधे संयम के तंबू में यदि आप भी प्रवेश कर जाँय तो आपकी भी कषाय, विषय, विकारों से रक्षा हो सकेगी। For Private And Personal Use Only

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