Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 145
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मचर्य भारतीय संस्कृति त्याग प्रधान संस्कृति है । त्याग ही उसका प्रारण है । उसकी ग्रात्मा है। जहां त्याग और वैराग्य की पूजा होती है, अर्चना होती है, सत्कार होता है और सम्मान होता है, वहां भारतीय संस्कृति है । जहाँ भोग रोग की प्रधानता है, विषय वासना की प्रबलता है, राग प्रज्वलित हो रहा है, द्वेष का दावानल धू धू कर जल रहा है, वहां भारतीय संस्कृति नहीं है ! विनय, शील, तप, नियम आदि गुणों सद्गुणों में ब्रह्मचर्य प्रधान है । वैदिक संस्कृति के महान् श्राचार्यों ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कहा है:'ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमुथाध्नत ।' -- ब्रह्मचर्य तप से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है । ब्रह्मचर्य की साधना से शरीर स्वस्थ होता है, आत्मा शक्तिवान् बनती है और विचार निर्मल होते हैं किंतु विकार और वासनाओं से शरीर का तेज और प्रोज नष्ट हो जाता है । ग्रात्मा दुर्बल हो जाती है और विचार विकृत हो जाते हैं । अमेरिकन ऋषि थोरो ने कहा था, "ब्रह्मचर्य जीवन का वृक्ष है और प्रतिभा, पवित्रता, वीरता आदि अनेक उसके मनोहर फल हैं ।' व्यास के शब्दों में "ब्रह्मचर्य श्रमृत है ।" जो व्यक्ति बह्मचर्य रूपी अमृत का प्रास्वादन कर लेता है, वह सदा के लिये अमृत बन जाता है । इन्द्र अपनी विभूति को छोड़ सकता है, यमराज न्याय का त्याग कर सकता है अग्नि शीतल हो सकती है, चन्द्रमा अग्नि वर्षा कर सकता हैं किन्तु भीष्म अपनी प्रतिज्ञा को नहीं छोड़ सकता । ब्रह्मचर्य के उस महान तेज के काररण ही कुरूक्षेत्र के मैदान में वह वीर बारण शैय्या पर अठारह दिन तक लेटा रहा । संपूर्ण शरीर तीक्ष्ण बाणों से बिंध जाने पर भी उसका चेहरा मुस्कराता रहा । जीवन की दार्शनिक गुत्थियों को सुलझाता रहा । धर्मराज के प्रश्नों के उत्तर देता रहा । यह है ब्रह्मचर्य के तेज का अनूठा उदाहरण । इंग्लैंड के सुप्रसिद्ध कवि कीट्स का नाम आपने सुना होगा । उसने For Private And Personal Use Only

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