Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 128
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ ] पांच महाव्रत की पांच भावना 'इह मुहूर्तः सप्त सप्तति लव प्रमाण: काल विशेषः ।' ७७ लक प्रमाण काल को एक मुहर्रा कहा जाता है। जिस काल खंड के टुकडे नहीं हो सकते उसे समय कहते हैं। समय अतिसूक्ष्म होता है, उसके भाग की कल्पना भी नहीं की जा सकती । ऐसे असंख्यात समय का एक श्वासोश्वास होता है। निरोगी हष्ट-पुष्ट व्यक्ति श्वासोश्वास लेकर छोड़े उसे प्राण कहते हैं। ७ प्राण का एक स्तोक होता है । ७ स्तोक का एक लव होता है । ७७ लव का एक मुहर्त होता है। उससे कुछ कम को अन्तमुहूत्र्त कहते हैं। छद्मस्थ जीवों का ध्यान अधिक से अधिक अंतमुहूर्त का हो सकता है। उससे ज्यादा एक साथ चित्त की स्थिरता नहीं टिक सकती। खेद है, आज के विज्ञान-युग में जबकि मानव का मस्तिष्क अन्तरिक्ष की खोज में तत्पर है, तब वह अपने में ही विद्यमान शक्ति का अन्वेषण नहीं करता । यदि यह क्षणमात्र को भी अपनी ओर दृष्टिपात करें, अपने यथार्थ स्वरूप को देखें, तो इसका सहज ही उद्धार हो जाए। आत्मा अनन्त वैभव का पुज है । वह अप्रतिम है। उसके समान संसार में अन्य अमूल्य पदार्थ नहीं है। For Private And Personal Use Only

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