Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 132
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्य संसार में कोई भी वस्तु या स्थान ऐसा नहीं है जहाँ सत्य न हो। जिस वस्तु में सत्य नहीं है वह वस्तु किसी काम की नहीं रहती। जैसे दूध में घी सत्य है, अग्नि में उष्णता सत्य है, सूर्य में प्रकाश सत्य है, तिल में तैल सत्य है और पुष्प में गव सत्य है । यदि दूध में से घी निकाल लिया जाय तो क्या कोई उमे दूध कहेगा ? नहीं कहेगा। 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' सत्य अनन्त ज्ञान स्वरूप है। सत्य ही ब्रह्म है ।- (उपनिषद्) व्याकरण कर्ता की दृष्टि से 'कालत्रये तिष्ठतीति सत् तस्य भावः सत्यम् ।' जो त्रिकाल में विद्यमान रहे, एक समान रहे, वह सत् कहलाता है और सत् के भाव को सत्य कहते हैं, विश्व में धर्म भिन्न भिन्न हैं, परन्तु सभी धर्मों का सत्य तो एक ही है। सभो जीवों के हित की भावना मानसिक सत्य है। विवेकपूर्ण वचन सत्य है। किसी का अहित न हो वैसी प्रवृत्ति करना कायिक सत्य है। राजा हरिश्चन्द्र, महाराणी तारा और कुमार रोहित ने सत्य के लिये क्या दुःख भोगे यह तो आप सबको विदित ही है। भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर सोये हुए थे तब उन से पूछा गया कि, "इतने भयंकर युद्ध में भी जब आपको आँसू नहीं पाये तो अब आँसू क्यों ?" उन्होंने कहा, "मैं मृत्यु से नहीं डरता, किंतु मैंने कौरवों का अन्न खाया था जिससे मैं द्रोपदी की रक्षा नहीं कर सका । अब पश्चात्ताप कर रहा हूं। पूछा, "अापके शरीर और मुह पर इतना तेज क्यों है ?'' भीष्म, 'यह सब सत्य और ब्रह्मचर्य का ही प्रभाव है।" बचपन में भीष्म का नाम गांगेय था क्योंकि उनकी माता का नाम गंगा था । पिता का नाम राजा शान्तनु था। गांगेय राजकुमार था। एक बार राजा शान्तनु एक मच्छए की पुत्री सत्यवतो पर मोहित हो गये For Private And Personal Use Only

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