Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांच महाव्रत की पांच भावना [ १११ दोष से रहित शुद्ध काउस्सग्ग मैं कब करूगा ? ऐसी भावना होनी चाहिये। छद्मस्थ अवस्था में तीर्थ कर और जिनकल्पी मुनि खड़े-खड़े हा का उस्सरग करते हैं। 'सांम्यं स्यान्निर्ममत्वेन तत्कृते भावना श्रयेत् ।। अनित्यतामशरणं भवमेकत्व मन्यतां ।' यो. शा. समभाव की प्राप्ति निममत्व के द्वारा होतो है। निर्ममत्व के लिये भावनाओं का प्राश्रय करना चाहिये । भगवान ने दो प्रकार का धर्म कहा हैः-श्रुत धर्म और चारित्र धर्म । यों ता दोनों ही मुख्य हैं, किंतु चारित्र धर्म में उत्कृष्ट भावना करने का आदेश है । वर्तमान काल और संघया की अपेक्षा उत्कृष्ट धर्म नहीं कर सकते पर भावना तो कर ही सकते हैं। अन्य दर्शन में भी भर्तृहरि आदि ने भावना को गंगा नदी या शत्रुजय की उपमा दी है। इनके किनारे शिलाखंड पर बैठ कर प्रभ का ध्यान करू बड पर बैठ कर प्रभु का ध्यान करू । वहाँ ध्यान में मुझे संसार की कोई अपेक्षा न हो। योगी और त्यागी को ही ध्यान होता है । यदि अशुभ विचार या ही जाते हैं या न करने योग्य हो ही जाता है तो यह अापकी कायरता है । योग के अभ्यास में ऐसी कायरता कैसे चलेगी? एक ब्राह्मण ने अपनी तीन पुत्रियों की शादी की। जब वे ससुराल जाने लगी तो कहा, "रात को सोते समय पति को हल्का सा धक्का लगा देना। पहली पूत्री ने जब पति को धक्का लगाया तो वह बीबी के पाँव दबाने लगा और पूछा, 'तेरे पाँव को चोट तो नहीं लगी ?" जब कन्या ने अपने पिता को यह बात कही तो पिता ने कहा तेरा पति नामर्द है । दूसरी कन्या ने भी जब पति को धक्का लगाया तो वह गर्म हो गया, दो चार गाली सुनाई, जब पत्नी रोने लगी तो उसे पुचकार कर खुश कर दिया। इस कन्या के विषय में ब्राह्मण ने कहा, "तेरा पति अर्द्ध मर्द है । जब तेरा पति गर्म हो तो तू नरम होजाना । जब पति नरम हो तब अपना काम निकाल लेना ।' तीसरी कन्या ने भी जब अपने पति को धक्का लगाया तो पति ने चोटी पकड़ कर उसे घर से निकाल दिया । कन्या के पिता ने अपने दामाद से माफी माँगी और कन्या से कहा "तेरा पति पूरा मर्द है । इसकी आज्ञा में ही रहना।" जगत् में जीवात्मा भी तीन प्रकार के हैं । एक जो विषय भोगों के For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157