Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 120
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नियतिवाद पुरुषार्थ नियतिवाद या भाविभाव का तर्क है कि विश्व की व्यवस्था निश्चित है । दिन के पीछे रात और रात के पीछे दिन निश्चित है। जड़ और चेतन सभी पदार्थ नियतिवाद की धुरी पर चल रहे हैं। मनुष्य पुरुषार्थ करता है और पुरुषार्थ करना ही मनुष्य के वश में है, परन्तु होगा वही जो नियति में निश्चित है । जब कभी कोई दुर्घटना हो जाती है तब हम यह सोचते हैं कि यदि हम घर से निकले ही न होते तो आज दुर्घटना ग्रसित न होते । परन्तु यह तो हमारी अल्पबुद्धि के विकल्प हैं, वास्तव में ज्ञानी भगवान् की दृष्टि में तो वैसा होना ही था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्ण ने नेमिनाथ भगवान् से प्रश्न किया कि "द्वारका का विध्वंस किसके हाथ होगा ?" नेमिनाथ भगवान् ने कहा, "एक दिन द्विपायन ऋषि के क्रोध की ज्वाला में द्वारका नष्ट होगी ।" कृष्ण ने फिर पूछा, "भगवन् ! क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे द्वारका नष्ट न हो ?" नेमिनाथ भगवान् ने कहा " हे कृष्ण भाविभाव को कोई नहीं टाल सकता । फिर भी द्वारका में जब तक प्रायंबिल तप चलता रहेगा, तब तक द्वारका का कुछ नहीं बिगड़ सकता " इसके पश्चात् ११ १२ वर्ष बीत गये । लोगों ने समझा द्विपायन आकर चले गये होंगे। लोगों ने प्रायंबिल तप बन्द कर दिया । एक दिन द्विपायन वहां आये और किसी यादव ने मदिरा के नशे में उन्हें कुछ उलाहना दे दिया । बस द्विपायन का क्रोध भड़क उठा उन्होंने शाप दे दिया और तप-विहीन नगर जलकर भस्म हो गया। जब चारों तरफ आग लग रही थी तब आकाशवाणी हुई कि "जो दीक्षा ले लेगा वह इस अग्नि से बच जायगा।" फिर भी एक भी व्यक्ति ने दीक्षा नहीं ली । कृष्ण बलभद्र खड़े खड़े देखते ही रह गये । कोई बचने की कोशिश करते तो देव उन्हें पकड़ कर फिर अग्नि में डाल देते । कृष्ण बलभद्र ने माता-पिता को रथ में For Private And Personal Use Only

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