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दर्शन योग
जैन दर्शन एक महान् दर्शन है, जिसके मुख्यतः तीन आधार स्तंभ हैं. :- (१) दर्शन (२) ज्ञान और (३), चरित्र । सम्यग दर्शन शब्द सम्यग में दर्शन को जोड़कर बना है। सम्यग शब्द दर्शन का विशेषण है। दर्शन के भी अनेक अर्थ होते हैं। जैसे दर्शन अर्थात देखना यह इसका लोक प्रसिद्ध व्यवहारिक शब्दार्थ है, किंतु विशिष्टि रूप से तत्त्व या वस्तु को भली प्रकार से देखना ही सम्यग् दर्शन है।
दर्शन का दूसरा अर्थ होता है तात्त्विक सिद्धान्तों की भिन्न-भिन्न विशिष्ट प्रकार की विचार धाराएँ जैसे जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, संख्य दर्शन, वेदान्त दर्शन आदि ।
दर्शन का तीसरा अर्थ होता है श्रद्धा, जिसका संबंध विचारों और मान्यताओं से हैं । कौन-कौन सा तत्त्व हेय, ज्ञेय या उपादेय है इसको जानकर निश्चय करना। श्रद्धा शुद्ध व अशुद्ध दोनों प्रकार की हो सकती है । इस की स्पष्टता के लिये दर्शन के पर्व सम्यग् विशेषण को जोड़ा गया है।
सम्यग् दर्शन का प्रालंबन लेकर साधक कषायों के पहाड़ और वासना की नदी को आसानी से पार कर सकता है। कहा भी है :
'दंसरण मूलो धम्मो' धर्म का मूल ही दर्शन है । सम्यग् दर्शन बीज है जो फल-फूल कर एक दिन चारित्र के विशाल वट वृक्ष के रूप में परिणित हो जाता है और जो अनन्त-प्राणियों का शान्ति प्रदायक होता है ।
सम्यग् दर्शन के लिये तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है:'तत्त्वार्थ श्रद्धानं सभ्यग्दर्शन'
भगवान द्वारा प्रतिपादित नौ तत्त्वों में श्रद्धा रखना ही सम्यग् दर्शन है। किसी प्राचार्य ने स्वभाव और पर के विवेक को सम्यग् दर्शन बताया है ।
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