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दर्शन योग
है, जो अमृत के समान उच्च जाति एवं कुल में उत्पन्न होकर भी मिथ्यात्व की गंदगी को चाटता है।
सम्यग्दर्शनी के लिये योगबिन्दु में कहा है:'मोक्ष चित्तं तदुर्भवे ।'
सम्यग्दर्शनी का शरीर संसार में रहने पर भी उसका मन सदा मोक्ष में लगा रहता है। सम्यग्दर्शन के विषय में और भी कहा है:
'शुद्ध देव गुरु धर्म, परीक्षा सद्दहंणा परिणाम। जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नामरे ।।' भ. सि. पद वंदो०
परीक्षापूर्वक सुदेव गुरु धर्म को श्रद्धा के परिणाम को सम्यग्दर्शन कहते हैं। उसे हम सभी नमस्कार करते हैं ।
सम्यग्दर्शन क्या है ? यह एक प्रकार की रुचि है, प्यास है, भूख है । किसी वस्तु को आपने देख लो, वह आपके मन को अच्छा लगी। पापको बार-बार यह इच्छा होती है कि इस वस्तु को कैसे प्राप्त करें ? यही सम्यग्दर्शन है । यह आत्मा का गुण होने से प्रात्मा में ही रहता है। सम्यग्दर्शन बाहर से नहीं पाता । लाख या करोड़ मोहर से भी बाजार में नहीं मिलता । जिस दुकान में देव-दुर्लभ वस्तुएँ मिलती हो, वहां भो सम्यग्दर्शन नहीं मिल सकता।
सम्यक्त्वो के लिये शास्त्र में कहा है:'सम्यग्दर्शन पुनात्मा रगते न भवोदधौ । सम्मत्त दसी न करेइ पाप ।।'
सम्यक्त्वधारी आत्मा इस संसार में नहीं भटकता। वह पाप-कार्य नहीं करता । सम्यग्दर्शन और मिथ्यादर्शन किसी संप्रदाय के नाम नहीं है । ऐसा कोई पंथ नहीं कहता कि अमुक व्यक्ति को मान लो तो सम्यग्दर्शन और नहीं मानो ता मिथ्यादर्शन । हमारे शरीर में एक प्रकाशमय तत्त्व है कि यदि आप उस तत्त्व की साधना करें तो ग्राप उच्च से उच्चतम भूमि को प्राप्त कर सकते हैं. यहां तक कि आप परमात्मा भी बन सकते हैं। विश्व में जितने भी महात्मा बने हैं वे सम्यग्दर्शन से ही बने हैं। कब और कैसे बने ? अपनी प्रात्मा का विकास करते हुए बने हैं।
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