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काम पुरुषार्थ
क्रोध ससरो बोलो भालो, झट देखाई पावे । माया सासु बाल कुमारि, चंचल थवाथी घर बांध्यो ।। पति अज्ञानावस्थामां झूले छे, हु झुलाउं छु। हुं नथी परणेली. नथी कुवारि । संकल्प विकल्प दो पुत्र, मारू पेट भरातुनथी ।'
इस छलनी माया ने किसो को नहीं छोड़ा। प्राणीमात्र कामवासना के वशीभूत हैं । संकल्प विकल्प के बीच झल रहे हैं। इस झूले से ऊपर उठने पर ही प्रात्मा का उर्वीकरण हो सकता है ।
तीर्थधामों के दर्शन से भव्यजीवों में दान, शील, तप एवं भावमय सम्यक् धर्म की जागति-भक्ति बढ़ती है । जिनेन्द्र-भक्ति कल्पतरु के समान मोक्षफलदायिनी है।
इस विश्व में प्रचलित सर्व सामान्य बात यह है कि प्रत्येक व्यक्ति सुख की अभिलाषा रखता है। दुःख की लपटों में जलना कौन चाहेगा ? प्रतः दु:खमुक्ति के लिए किसी भी प्राणी को दुःख मत पहुचानो। यही शाश्वत सुख का रहस्य है।
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