SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काम पुरुषार्थ क्रोध ससरो बोलो भालो, झट देखाई पावे । माया सासु बाल कुमारि, चंचल थवाथी घर बांध्यो ।। पति अज्ञानावस्थामां झूले छे, हु झुलाउं छु। हुं नथी परणेली. नथी कुवारि । संकल्प विकल्प दो पुत्र, मारू पेट भरातुनथी ।' इस छलनी माया ने किसो को नहीं छोड़ा। प्राणीमात्र कामवासना के वशीभूत हैं । संकल्प विकल्प के बीच झल रहे हैं। इस झूले से ऊपर उठने पर ही प्रात्मा का उर्वीकरण हो सकता है । तीर्थधामों के दर्शन से भव्यजीवों में दान, शील, तप एवं भावमय सम्यक् धर्म की जागति-भक्ति बढ़ती है । जिनेन्द्र-भक्ति कल्पतरु के समान मोक्षफलदायिनी है। इस विश्व में प्रचलित सर्व सामान्य बात यह है कि प्रत्येक व्यक्ति सुख की अभिलाषा रखता है। दुःख की लपटों में जलना कौन चाहेगा ? प्रतः दु:खमुक्ति के लिए किसी भी प्राणी को दुःख मत पहुचानो। यही शाश्वत सुख का रहस्य है। For Private And Personal Use Only
SR No.008690
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherBuddhisagarsuri Jain Gyanmandir
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy