Book Title: Yogshastra
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८ ] अर्थ पुरुषार्थ असर नहीं करती। इंजेक्शन कितना ही अच्छा क्यों न हो, वह उसी क्षण रोग को नहीं मिटा सकता। शक्ति की औषधि कितनी हो शक्तिवर्धक क्यों न हो पर उसके लेते ही शक्ति प्राप्त नहीं हो जाती। लेटर बाक्स में पत्र डालते ही मिलने वाले को नहीं मिल जाता। कम से कम ३-४ दिन तो लग ही जाते हैं। तार टेलीफोन शीघ्रगामी साधन अवश्य है पर उनमे भी समय लगता ही है। फोन बुक करा कर घंटों इन्तजार करना पड़ता है तब कहीं बात हो पाती है । प्रकृति में परिवर्तन लाने वाला भी काल ही है। वैशाख ज्येष्ठ में सूर्य क्यों तपता है ? बसन्त पाते ही उपवन क्यों प्रफुल्लित हो जाते हैं ? दैनिक जीवन के प्रयोग की वस्तुओं में भी परिवर्तन काल ही करता है । आज से २५ वर्ष पूर्व चावल में जो सुगंध और स्वाद था वह आज नहीं रहा । दस वर्ष पूर्व आपने ग्राम का जो रसास्वादन किया वह आज के ग्राम में प्राप्त नहीं होता । क्यों ? इसलिये कि काल सभी पदार्थों में शनैः शनैः परिवर्तन करता रहता है । मात्र जड़ पदार्थों पर ही नहीं, मनुष्य के मन पर भी काल का प्रभाव पड़ता है। दीपावली के दिन यदि आपके मुह से किसी को गाली निकल जाये, तो स्वयं आपको बाद में पश्चात्ताप होगा कि आज नये दिन मेरे मुह से गाली क्यों निकल गयी ? यह है मनुष्य के मन पर काल का प्रभाव । निश्चय दृष्टि से काल का महत्त्व इसलिये है कि काल लब्धि की परिपक्वता पर ही आत्मा को सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। सम्यक्त्व प्राप्ति का मूल कारण काल लब्धि ही है। काल ही सब कुछ है । कहा भी है: 'कालः स्त्रजति भूतानि, काल: संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति, कालोहि हरती क्रमः ।।' काल ही प्राणियों को जन्म देता है। काल ही प्राणियों का संहरण करता है । काल सोते हुये को जगाता है और काल ही क्रमशः मनुष्य के मन का हरण करता है । For Private And Personal Use Only

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