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योगशास्त्र
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थोड़ा-सा कष्ट आते ही गैस की भाँति हवा में उड़ जाय वह गेस आनन्द, किंतु जो हमेशा बना रहे ऐसा आध्यात्मिक प्रानन्द ठोस आनन्द है ।
नवकार को जिनशासन का डाइजेस्ट क्यों कहा है ? उसे १४ पूर्व का समुद्धार क्यों कहा है ? इसलिये कि जिनके हृदय में नवकार बसा है, संसार उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता क्योंकि नवकार का ध्यान करने वाला तो स्वयं आत्म स्वरूप हो जाता है | नवकार का स्मरण करने वाली. चील भी सुदर्शन राजपुत्री बनी। जैसे पानी का आनन्द मछली ही जान सकती है, वैसे ही नवकार का आनन्द आपका हृदय ही जान सकता है ।
धर्मीजन सात क्षेत्रों में अपनी लक्ष्मी का सद्व्यय तो करें ही ; साथ-साथ कर्मवश जो अन्धे, लूले, लंगड़े, श्रकाल, अतिवृष्टि, भूकम्प एवं अन्य दुःखों से पीड़ित हों, उनकी सहायता अवश्य करे । उनके प्रति अवश्य अनुकम्पा रखें। दया-अनुकम्पा,
हिंसा की पोषिका है। दीन-दुःखी भी पुण्यबन्ध में सहायक हैं । अतः अनुकम्पादान में कुपात्र - सुपात्र को ध्यान में न रखें । दयाभाव से उनकी सहायता
करें ।
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