Book Title: Vyavaharasutram evam Bruhatkalpsutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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॥ चउत्थो उद्देसो॥ नो कप्पइ आयरियउवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चरित्तए ॥१॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पविइयस्स हेमंतगिम्हामु चरित्तए ॥२॥ नो कप्पइ गणावच्छेयगस्स अप्पविइयस्स हेमंतगिम्हासु चरित्तए ॥३॥ कप्पइ गणावच्छेयगस्स अप्पतइयस्स हेमंतगिम्हामु चरित्तए ॥४॥ नो कप्पई आयरियउवज्झायस्स अप्पविइयस्स वासावासं वत्थए ॥५॥ कप्पइ आयरियउवज्झायस्स अप्पतझ्यस्स वासावासं वत्थए ॥६॥ नो कप्पइ गणावज्छेयगस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए ॥७॥ कप्पइ गणावच्छेयगस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए ॥८॥
से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा , मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा संनिवेसंसि वहूर्ण
आयरियउवज्झायाणं अप्पविइयाणं, वहणं गच्छावच्छेयगाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हामु चरित्तए अन्नमन्ननिस्साए ॥९॥ • से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडं सि वा मडवंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा संनिवेसंसि वा वहूर्ण आयरियउवज्झायाणं अप्पतइयाणं, वहूर्ण गणावच्छेयगाणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ वासावासं वत्थए अन्नमन्ननिस्साए ॥१०॥
गामाणुगाम दुइज्जमाणे भिक्खू जं पुरओ कटु विहरइ से आहच्च वीसंभेज्जा, अस्थि या इत्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे से उवसंपज्जियन्वे, णत्थि या इत्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे तस्स अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तणं तण्णं दिसं उवलित्तए, नो से कप्पड़ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तिय वत्थए, तंसि च णं कारणंसि निहियंसि परो वएज्जा वसाहि अज्जो ! एगरायं वा दुराय वा एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाभो वा दुरायाओ वा वत्थए, जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥११॥
वासावासं पज्जोसविओ भिक्खू जं पुरओ कटु विहरइ से आहच्च वीसंभेज्जाअस्थि या इत्थ अन्ने केइ उपसंपज्जणारिहे से उवसंपज्जियव्वे, नत्थि या इत्थ अन्ने केइ उव