Book Title: Vijay Prashasti Sar Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai Publisher: Jain Shasan View full book textPage 7
________________ उपोद्घात । प्रेम कितना हढ़ और प्रगाढ़ था-सम्राट अकबर जैसे नरपालों को प्रतिबोध करने में कितने साहस और उत्कर्ष का उन महानुभावों ने परिचय दिया था, एवं उस यवनराज्यत्वकाल में स्वधर्मरक्षा के लिए यह लोग कैसे उद्यत थे यह सब बाते सूक्ष्मतया इस ग्रन्थ में निगदित है। सुतरां यह भी ज्ञात होगा कि-वे महानुभाव ऐसे धुरंधर आचार्य होने पर भी तप-जप-संयम-त्याग वैराग्य में कैसे सुदृढ़ थे? । पुनः इस पुस्तक के अवलोकन से ऐतिहासिक विषय के भी बहुत संदिग्ध रहस्यों का पता लग सकेगा। इस पुस्तक को मैने 'श्रीविजयप्रशस्ति' नामक महाकाव्य के आधार पर निर्मित किया है। और कतिपय अन्य पुस्तकों से भी सहा. यता ली है। तिस पर भी यदि किसी अशुद्धि को कोई पाठक सप्रमाण सूचित करेंगे तो मैं द्वितीयावृत्ति में उसे सहर्ष सुधारने की चेष्टा करूंगा। - इस ग्रंथ के निर्माण करने में मेरे सुयोग्य ज्येष्ठ बन्धु, न्याय शास्त्र के धुरंधर विद्वान् महाराज श्रीवल्लभविजय जीने बहुत सहायता प्रदानकी है अतएव मैं आपका अनुगृहीत हूँ। यद्यपि मेरी मातृभाषा गुजराती है, तथापि इस पुस्तक को मैने हिन्दी में लिखने का साहस किया है । अत एव इसमें भाषा संबन्धी अंशुद्धियाँ का बाहुल्य होना सम्भव है । आशा है कि पाठकवृन्द उन अशुद्धियाँ की मोर दृष्टिपात न करके पुस्तक के सारही को ग्रहण करेंगे। कार्तिकी पूर्णिमा । बीर सम्बत् २४३६ ता०२४-११-१२ कर्ताPage Navigation
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