Book Title: Vijay Prashasti Sar
Author(s): Vidyavijay Muni, Harshchandra Bhurabhai
Publisher: Jain Shasan

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Page 6
________________ श्री ग्रहम् ॥ श्रीमद्विजयधर्मसूरिभ्योनमः । * उपोद्घात * इस बात के कहने की आवश्यकता नहीं है कि - श्रात्महित और परहित साधन करने वाले शुद्धचरित्रवान् महापुरुषों के जीवनचरित्र के अध्ययन से मनुष्यजाति को जितना लाभ हुआ है और हो सकता है, उतना किसी अन्य साधन से नहीं हो सकता । जीवनचरित्र मोहान्धकार में पड़े हुए लोगों को ज्ञान प्रकाश में लाने वाली एक अपूर्व वस्तु है । जीवनचरित्र आन्तरिक सद्गुण रूप स्वच्छता और दुर्गणरूप मलीनता दिखाने वाला अद्भुत दर्पण हैं । संसार में जितने शिष्ट पुरुष हुए हैं, सबने अपने सामने किसी आदर्श पुरुष का जीवन चरित्र ही रख कर उन्नति के मार्ग में प्रवेश किया है । यह बात स्वाभाविक और अनिवार्य हैं ! बिना किसी आदर्श के मनुष्य कुछ कर नहीं सकता । मनुष्य का आचरण आदर्श के अनुसार ही होता है। ऐसे अवसर में महा पुरुषों की जीवनी सर्व साधारण मनुष्यों के चरित्र सुधारने में कहाँ तक उपयोगी होसकती है ? इस बात को सहृदय पाठक स्वयं अनुभव कर सकते हैं । इस पुस्तक में वर्णित चरित्र नायकों के आचरण से मनुष्यमात्र असीम लाभ उठा सकते हैं । यह सब के मननयोग्य रहस्य है। मुख्य तथा जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरि, श्रीविजय सेनसूरि तथा श्रीविजयंदेवसूरि-इन तीन महात्माओं के पवित्र चरित्रों से यह ग्रंथ गुंफित है । ये महात्मा विक्रमीय सोलहवीं और सतरहवीं शताब्दियाँ में हुए हैं । बालपन में विरक्त होकर दीक्षा के उपरान्त हमारे तीनों चरित्र नायकों ने शासन उन्नति के लिये कितना घोर प्रयत्न किया था उनका शासन

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