Book Title: Vichar Sanskriti
Author(s): Nyayavijay
Publisher: Jain Yuvak Sangh

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Page 47
________________ સર આ સાંભળી પેલા પંડિતાને આશ્ચય થયું, તેઓએ પૂછ્યું —— " क्यों जी ! आप अपने ही मुख से अपने को नास्तिक बतला रहे हैं ? " જવાબમાં મહારાજશ્રીએ કહ્યું– " बेशक, मैं नास्तिकता का उपदेश करता हूँ, इस लिए मैं अपने को नास्तिक बतलाए जाने पर खिन्न नहीं होता ।" पंडिता पूछयु - " कैसे ? " પંડિતાએ મહારાજશ્રીએ કહ્યુ : देखिए ! मैं लोगों से कहता हूं कि हिंसा मत करो ! झूठ मत बोलो ! चोरी मत करो ! बद माशी मत करो ! क्रोध, लोभ, अभिमान को हटाओ ! इस तरह मैं हिंसा आदि के नास्तित्व में आत्मा का श्रेय मान कर औरों को भी इसी नास्तित्व के मार्ग पर लाने का प्रयत्न करता हूँ ।" पंडित श्रोदया – “ इन बातों को तो हम પંડિતા મલ્યા भी मानते हैं ” । त्यारे महाराश्री धु" तो आप भी हमारी हो पंक्ति में आ गए !" આ ઉપર પઢિતા ખુશ થયા અને વિદાય લીધી Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, watumaragyanbhandar.com

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