________________ वनस्पति-विज्ञान मानते हैं, और कहते हैं-सृष्टि स्वतः रसायनधर्म से विकसित होती है। किन्तु प्रकृति द्रव्य की ये शक्तियाँ अथवा रसायनधर्म दोनों ही एक व्यापक आदि तत्त्व के आश्रय पर निर्भर करते हैं, यह स्वीकार किए बिना काम चल ही नहीं सकता। आत्मवादी अथवा आस्तिक लोग कहते हैं कि इस सृष्टि की रचना का मूल कारण एक अचिन्त्य शक्ति है / उसी को परमात्मा, ब्रह्म अथवा ईश्वर या पुरुष कहा जाता है। पदार्थवादी अथवा नास्तिक लोग कहते हैं-इस सृष्टि के सब प्राणी और पदार्थ; पदार्थों के रसायनधर्म से स्वतः उत्त्पत्ति, विकास और संहार को प्राप्त होते हैं। प्रकृतिवादियों का कथन भी पदार्थवादियों से मिलता-जुलता है। वे कहते हैं--सृष्टि स्वतः स्वाभाविक रुप से उत्पन्न होती है। किन्तु ये तीनों मतान्तर केवल वाग्युद्ध हैं / आन्तरिक शक्ति, रसायनधर्म और स्वभाव-ये तीनों एक ही अर्थ के द्योतक और विष्णु सहस्रनाम की भाँति हैं। यह निर्विवाद सिद्ध है कि इन तीनों को प्रेरित करने वाली तथा इस सृष्टि-क्रम का संचालन करने वाली एक अनादि महान शक्ति अदृश्य रुप से कार्य करती है।। ___एक बीज से असंख्य बीजों की उत्पति होती है। एक गति में से अनेक गति उत्पन्न होती हैं। एक सूर्य के असंख्य किरणें प्रादुर्भूत होती हैं। इससे सिद्ध होता है कि बहु संख्यकों की उत्पत्ति करने वाला एक संख्यक ही है / इस सृष्टि में जितने प्राणी