________________ वनस्पति-विज्ञान 112 (4) शिरोरोग में-सफेद कनेर की सूखी जड़ पत्थर पर घिसकर मस्तक के वेदनावाले भाग पर लगानी चाहिए / नागरमोथा सं० नागरमुस्ता, हि० नागरमोथा, ब० मुताथा, म० मोथे, गु० मोथ, क० मुस्ता, ता० कारप, तै० तुंगमुस्त, अ० मुष्कजमीन, फा० शादकफी, और लै० साइपरस रोदंडस-Cyprusrotondous. विशेष विवरण-मोथे की अनेक जातियाँ होती हैं। नागरमोथा वर्षाऋतु में प्रायः सभी समान्य तालाबों में पैदा होता है / भद्रमोथा सजलभूमि में होता है / एक प्रकार का मोथा मोटी डंठी वाला होता है / किन्तु सब प्रकार के मोथों में नागरमोथा ही उत्तम होता है / औषधि के लिए इसकी जड़ काम में आती है / मोथा का पेड़ अधिक-से-अधिक अँगुली-जैसा मोटा होता है / मोथा का प्रयोग सुगंधित पदार्थों में भी किया जाता है / गुण-तिक्ता नागरमुस्ता कटुः कषाया च शीतला कफनुत् / पित्तज्वरातिसारारुचितृष्णादाहनाशिनी श्रमहृत् ॥-रा० नि० नागरमोथा-तिक्त, कटु, कषैला, शीतल, हलका तथा पित्त, ज्वर, अतीसार, अरुचि, तृष्णा, दाह और श्रम नाशक है / गुण-भद्रमुस्ता तु तुवरा शीता तिक्ता च पाचका / कट्वग्निदीपनी ग्राही चाम्लपित्तकफापहा //