________________ सेमल सं० शाल्मली, हि० सेमल, ब० शिमुल, म० सांवरी, गु० शेमलो, क० यवलवदमर, ता. पुला, तै० रुगचेटु, अँ सिल्क काटनटी-Silk Cottyntree, और लै० सालमेलिया मेलबेरिका-Salmaliya Malabarica. विशेष विवरण-सेमल का वृक्ष प्रायः जंगलों में होता है / एक डंठल में आठ-दस पत्ते तक लगते हैं। इसमें काँटे होते हैं। इसके फूल कमल के समान लाल रंग के होते हैं। फल आक के समान होते हैं। इसके भीतर से रुई निकलती है। यह सफेद और लाल दो जाति का होता है। कार्तिक और अगहन में इसमें फूल आते हैं तथा चैत्र में फल आते हैं। फल जिस समय हरे रहते हैं, उसी समय लोग तोड़ और सुखाकर इसके भीतर से रुई निकालते हैं / यह रुई तकिया आदि बनाने के काम आती है / गुण-शाल्मली मधुरा वृष्या बल्या च तुवरा मता / शीतला पिच्छिलालध्वी स्निग्धा स्वाद्वी रसायना // शुक्रला श्लेष्मला चैव धातुवृद्धिकरी मता। रक्तपित्तं च पित्तं च रक्तदोषं च नाशयेत् // त्वग्रसोस्या ग्राहकः स्यात्तवरः कफनाशनः / पुष्पन्तु शीतलं तिक्तं गुरुस्वादु कषायकम् // वातलं ग्राहकं रूक्षं कफपित्तविनाशकम् / रक्तदोषहरं चैव गुणा ते फलस्य च //