Book Title: Vanaspati Vigyan
Author(s): Hanumanprasad Sharma
Publisher: Mahashakti Sahitya Mandir

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Page 289
________________ वनस्पति-विज्ञान 258 हाथ तक होती है / इसके पत्ते चकवड़-जैसे लम्बे होते हैं। इसमें पाँच-पाँच अंगुल पर गाँठ होती है। यह थाना जिले में विशेष होती है। गर्मी के दिनों में यह सूख जाती है। पानी में होने वाली मुलेठी की एक तीसरी जाति होती है। उसे संस्कृत में 'मधू. लका' कहते हैं / इसकी जड़ को भी मुलेठी ही कहते हैं / विदेशी लोग इसका अर्क उतार कर भारत में भेजते हैं / हमलोग उसे बड़ी प्रसन्नता के साथ पीते हैं; किन्तु मुलेठी का उपयोग नहीं कर सकते। यह बड़े लज्जा का विषय है। इसका सत्त भी व्यवहार किया जाता है। गुण-यष्टिहिमा गुरुः स्वादी. चक्षुष्या वलवर्णकृत् / सुस्निग्धा शुक्रला केश्यास्वर्या पित्तानिलानजित् // व्रणशोथविषच्छदितृष्णाग्लानिक्षयापहा / तस्या रसक्रिया स्वाद्वी यष्टेः सा तु गुणाधिका ॥-नि० र० मुलेठी-शीतल, भारी, स्वादिष्ट, चक्षुष्य, बल-वर्णकारक, चिकनी, शुक्रल, केश्य, स्वयं तथा रक्तपित्त, वातरक्त, व्रण, शोथ, विष, वमन, तृष्णा, ग्लानि और क्षयनाशक है। मुलेठी का सत्त-स्वादिष्ट एवं मुलेठी की अपेक्षा अधिक गुणदायक है। विशेष उपयोग (1) तृषा शमन के लिए-मुलेठी चूसना चाहिए / अथवा काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।' (2) आगन्तुक व्रण पर-मुलेठी पीस और गरम करके लगानी चाहिए।

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