________________ मषवन सं० माषपर्णी, हि० मषवन, ब० माषाणी, म० रानउड़ीद, गु० अडवाड, क० रानोडिंडुका उटु, तै० कारुमीनुरु, और लै० जिजनेड्रेस पाटना-Grangemadrass Patana. विशेष विवरण-माषपर्णी की लता उड़द के समान ही होती है / इसे ही बनउड़दी भी कहते हैं / इसकी उत्पत्ति समतल भूमि पर होती है। उसके नीचे साधारण जड़ होती है / किन्तु पार्वत्यप्रदेशों में होनेवाली मषवन की जड़ मूली-जैसी होती है। यह स्वाद में मीठी होती है। यह उड़द के समान होती है। औषध में इसके सर्वांग का व्यवहार किया जाता है। इसकी मात्रा दो माशे तक की मानी गई है। . गुण-माषपर्णी रसे तिक्ता वृष्या दाहज्वरापहा / शुक्रवृद्धिकरी बल्या शीतला पुष्टिवद्धिनी ॥-रा० नि० मषवन-रस में तीती; वृष्य, दाह और ज्वरनाशक शुक्रवर्द्धक, बल्य, शीतल और पुष्टिदायक है। विशेष उपयोग (1) धातुवृद्धि के लिए-मषवन और सतावर का चूर्ण-दूध तथा मिश्री के साथ सेवन करना चाहिए / (2) दाह पर-मषवन पीसकर लगाएँ / (3) प्रमेह में-मषवन के रस में हल्दी का चूर्ण मिलाकर पीना चाहिए।