________________ 111 कनेर गुण-हयारिः पंचधा प्रोक्तः श्वेतो रक्तश्च पाटलः / पीतः कृष्णः समुद्दिष्टः श्वेतस्यैतान्गुणान्छृणु // कटुस्तिक्तश्च तुवरस्तीक्ष्णो वीर्येण चोष्णदः / ग्राही मेहकृमीन्कुष्ठव्रणा वातनुत्परः // भक्षितो विषवज्ज्ञेयो नेत्र्यो लघुविषापहः। विस्फोटकुष्ठकृमिनुत्कण्डूव्रणकफापहः // ज्वरं नेत्ररुजं चैव हयप्राणांश्च नाशयेत् / -शा० नि० कनेर-सफेद, लाल, गुलाबी, पीला और काला; फूल के रंग-भेद से पाँच प्रकार का होता है / इनमें सफेद कनेर-कड़वा, तीता, कषैला, तीक्ष्ण, उष्णवीर्य, ग्राही तथा प्रमेह, कृमि, कुष्ठ, व्रण, अर्श एवं वात नाशक है / यह खाने से विष के समान गुण करता है। नेत्रों को हितकारी, हलका तथा विष, विस्फोट, कुष्ठ, कृमि, कंडू, व्रण, कफ, ज्वर, नेत्ररोग और घोड़ों का प्राणनाशक है। विशेष उपयोग (1) सर्प और बिच्छू के विष परसफेद कनेर की जड़ पीसकर दंश-स्थान पर लगाएँ / यदि इसके पीने से किसी प्रकार का विकार मालूम पड़े, तो घी पीएँ / (2) उपदंश में घाव पर कनेर की जड़ पीसकर लेप करनी चाहिए। . _.. (3) विषमज्वर में-कनेर की जड़ रविवार को लाकर कमर में बाँधनी चाहिए।